________________
हीरसौभाग्य : देवविमलगणि
१३१ शारीरिक सौन्दर्य का सरसरा वर्णन किया गया है (२.२०-४०)। सप्तम सर्ग में, ठेठ परंपरागत शैली में, उसका विस्तृत नखशिख वर्णन है । श्रीहर्ष की सौन्दर्य चित्रण की इस विधि से प्रेरित होकर देवविमल ने भी अपने काव्य में, दो स्थानों पर, नारीसौन्दर्य का चित्रण किया है, जो श्रीहर्ष के ऋण की स्पष्ट स्वीकृति है । हीरसौभाग्य के द्वितीय सर्ग में नाथी का नख-शिख वर्णन अत्यन्त रोचक तथा कवित्वपूर्ण है। इसकी तुलना में नैषध के द्वितीय सर्ग का दमयन्ती-वर्णन नीरस तथा ऊहात्मक है। श्रीहर्ष के पगचिह्नों पर चलते हुए देवविमल ने अष्टम सर्ग में शासनदेवता के सौन्दर्य का निरूपण किया है, जो दमयन्ती के सौन्दर्य-चित्रण (सप्तम सर्ग) की भांति बहुत लम्बा तथा नखशिख कोटि का है। श्रीहर्ष से स्पर्धा की आतुरता में देवविमल ने शासनदेवी के धार्मिक स्वरूप को भूल कर उसे ठेठ मानवी रूप में प्रस्तुत किया है जिससे वह उसके अंगों-प्रत्यंगों का सविस्तार चित्रण करके सप्तम सर्ग की दमयन्ती का समानान्तर प्रस्तुत करने में सफल हुआ है । श्रीहर्ष के सप्तम सर्ग के सौन्दर्य-चित्रण का प्रभाव हीरसौभाग्य के दोनों वर्णनों पर इतना गहरा पड़ा है कि उनमें भावों तथा भाषा का अत्यधिक साम्य दिखाई देता है। परन्तु नैषध तथा हीरसौभाग्य के दोनों वर्णनों में विशेष अन्तर है। श्रीहर्ष दर्शन, व्याकरण तथा अन्य शास्त्रों की बारीकियों में उलझकर ऊहात्मक शैली के गोरखधन्धे में इस तरह फंस गए हैं कि उनके अप्रस्तुत अपनी दूरारूढ़ता के कारण प्रस्तुत को अधिकतर धूमिल कर देते हैं ! देवविमल के भी कुछ अप्रस्तुत दूरारूढ़ता के कलंक से मुक्त नहीं हैं किन्तु वे, समग्र रूप में, भावों को विशदता प्रदान करते हैं । फलतः देवविमल का सौन्दर्यचित्रण श्रीहर्ष की अपेक्षा अधिक सन्तुलित, आकर्षक तथा कवित्वपूर्ण
हीरसौभाग्य का पंचम सर्ग, प्रतिपाद्य की भिन्नता होने पर भी, नैषधचरित के पन्द्रहवें सर्ग से अत्यधिक प्रभावित है तथा शब्दसाम्य एवं भावसाम्य से इतना परिपूर्ण है कि उसे श्रीहर्ष के उक्त सर्ग का स्वतंत्र संस्करण कहना सर्वथा उपयुक्त होगा। नैषध में स्वयम्वर के पश्चात् ज्योतिषी दमयन्ती से पाणिग्रहण का मुहूर्त निश्चित करते हैं । हीरसौभाग्य में भी हीरकुमार अपनी दीक्षा का समुचित मुहूर्त निश्चित करने के लिए दैवज्ञों को आमन्त्रित करता है ।" कुमार हीर का दीक्षापूर्व अलंकरण दमयन्ती तथा नल की विवाहपूर्व सज्जा पर आधारित है। देवविमल १३. नैषध ७.२३, ६४, ७७, १०१, ८७, ६०, २७; हीर० क्रमशः २.१८, २४, ४१,
६.२८, ५१, १३०, १३५ आदि आदि. १४. निरीय भूपेन निरीक्षितानना शशंस मौहत्तिकसंसदशकम् । नैषध, १५.८.
आजुहाव गणकान्स सुवाणीन् । हीरसौभाग्य ५.६१.