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भरतबाहुबलिमहाकाव्य : पुण्यकुशल
१५५ द्वारा बाहुबलि को भरत का प्रभुत्व स्वीकार करने का सन्देश देने में मुखसन्धि है । कथावस्तु की जो परिणति क्रमश: बाहुबलि और भरत की कैवल्य-प्राप्ति में हुई है, उसका बीज यहीं निहित है। तृतीय से पंचम सर्ग तक बाहुबलि द्वारा प्रस्ताव को अस्वीकार करने, भरत के पश्चात्ताप, सेनापति के उसे युद्ध के लिए प्रोत्साहित करने तथा सेना के प्रस्थान में, मुखसन्धि में जिस बीज का वपन हुआ था, उसका कुछ विकास हुआ है । अतः यहां प्रतिमुख सन्धि स्वीकार की जा सकती है । ग्यारहवें सर्ग में बाहुबलि के मन्त्री द्वारा उसे अग्रज की आज्ञा मानने किन्तु विद्याधर अनिलवेग द्वारा उसे राज्यलोलुप भरत का दृढतापूर्वक मुकाबला करने की प्रेरणा के द्वन्द्व में गर्भसन्धि विद्यमान है। बारहवें सर्ग में भरत को विजय-प्राप्ति में सन्देह होने से लेकर पन्द्रहवें सर्ग में उसकी सेना के पराजित होने के वर्णन में फलप्राप्ति के प्रति कुछ संशय उदित होता है । यहां विमर्श सन्धि मानी जा सकती है। अठारहवें सर्ग में पहले बाहुबलि और तत्पश्चात् भरत के केवलज्ञान प्राप्त करने में निर्बहण सन्धि है। यही काव्य का फलागम है।
___इस प्रकार भ० बा० महाकाव्य में वे समूची विशेषताएं विद्यमान हैं, जो किसी महाकाव्य को महान् तथा प्राणवान् बनाने के लिये शास्त्रीय दृष्टि से आवश्यक हैं। भ० बा महाकाव्य का स्वरूप
भ० बा० महाकाव्य का समूचा वातावरण, प्रकृति तथा भावना शास्त्रीय काव्य के अनुकूल है । पौराणिक रचनाओं की भांति इसमें न भवान्तरों का नीरस वर्णन है, न अवान्तर कथाओं का जाल, न कर्मवाद की सायास प्रतिष्ठा, न अन्य दार्शनिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन और न चित्र-विचित्र घटनाओं की भरमार । काव्य को शास्त्रीय रूप देना ही कवि को अभीष्ट है। संक्षिप्त-से कथानक को अठारह सों का कलेवर प्रदान कर देना उसकी शास्त्रीयता का सूचक है। वनविहार आदि के अन्तर्गत भरत के सैनिकों की विलासपूर्ण चेष्टाएँ तथा अन्य शृंगारिक वर्णन शास्त्रीय काव्य के ही अवयव हो सकते हैं। विविध रसों की सशक्त व्यंजना, प्रकृति का व्यापक एवं अभिराम चित्रण, उत्कृष्ट काव्य-कला, भाषा-शैलीगत उदात्तता, मनोरम भावों वी अभिव्यक्ति आदि भी इसकी शास्त्रीयता को पोषित करते हैं ।
जहां तक इसकी पौराणिकता का प्रश्न है, इसमें कतिपय अतिप्राकृतिक घटनाओं का समावेश हुआ है । भरत का पुरोहित तथा बाहुबलि का पुत्र चन्द्रयशाः युद्ध में मृत अपने-अपने पक्ष के वीरों को मन्त्रबल से पुनर्जीवित कर देते हैं । देवगण, प्रत्येक द्वन्द्वयुद्ध में बाहुबलि की विजय का अभिनन्दन, पुष्पवृष्टि से करते हैं तथा उसे चक्र पर मुष्टिप्रहार करने से रोकते हैं । बाहुबलि की कैवल्य-प्राप्ति का समाचार भरत को