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काव्यमण्डन : मण्डन
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आच्छेत्सीदपि बन्धनान्यपहसन्धर्मादिकानां ततो
धामीत्तन्नगरं चकर्ष परुषं केशेषु शत्रुस्त्रियः ॥७॥३८ । प्रमुख वीर रस के अतिरिक्त काव्यमण्डन में करुण, भयानक, रौद्र, शान्त, श्रृंगार तथा अद्भुत रस अंग रूप में विद्यमान हैं। ये अंगभूत रस अंगी रस को परिपुष्ट करके काव्य की रसवत्ता को तीव्र बनाते हैं तथा उसमें इन्द्रधनुषी सौन्दर्य की सृष्टि करते हैं। गौण रसों में करुण रस की प्रधानता है । जतुगह में पाण्डवों के दहन से आशंकित पौरवासियों के विलाप में और किर्मीर द्वारा बन्दी बनाए गये पाण्डवों को बलि देने के लिए कुलदेवी के मन्दिर में ले जाने पर कुन्ती के मातृसुलभ चीत्कार में करुण रस की तीव्रता प्रगट हुई है। वारणावत के निवासियों के शोक में करुणा की मार्मिकता है।
वृथा पृथायास्तनया नयाढ्या दग्धा विदग्धा जतुमन्दिरस्थाः। विद्वषद्भिः कुरुराजपुत्रः पापात्मभिर्धर्मभृतो हहाऽमी ॥ दीनानुकम्पां च करिष्यते कः को मानयिष्यत्यपि मानयोग्यान् ।
वत्तिष्यते सम्प्रति कः प्रजासु भृशानुरागात्त्विह बन्धुवच्च ॥४.१५-१६
दैत्य किर्मीर पाण्डवों को वशीभूत करने के निमित्त सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्मशान में महाभिचार होम का अनुष्ठान करता है । श्मशान की भयंकरता के वर्णन में भयानक रस का परिपाक है। किर्मीर की साधनास्थली कहीं भूत-पिशाचों की हुंकार से गुंजित है, कहीं कराल वेतालों तथा डाकिनियों का जमघट है, कहीं प्रेत भैरव अट्टहास कर रहे हैं, कहीं योगिनियों का चक्रवाल अपनी किलकिलाहट से हृदय को कंपा रहा है और कहीं डमरुओं का विकट नाद और महिषों, मेंढों आदि का चीत्कार त्रास पैदा कर रहा है । इस भयावह परिवेश में किर्मीर का महाभिचार किसे भीत नहीं कर देता ?
हिंसाकरं सत्वरसिद्धिदं च श्मशानवाटे वटसन्निकृष्टे । हुंकारवबूतपिशाचचके सदक्षिणीराक्षसशाकिनीके ॥६.२६ उत्तालवेतालकरालकासकंकालकष्माण्डकडाकिनीके ।
प्रहासवत्प्रेतकरंकरके प्रहर्षवभैरवीरवे च ॥ ६.२७ उदितकिलिकिलाके योगिनीचक्रवाले विकटडमरुनादक्षेत्रपालाकुले च। मनुषमहिषमेषः कुक्कुटरारद्भिः कलितकुसुममालैर्वध्यमानः सुरौद्रः ॥६.२८
कुन्ती अपने एक पुत्र के बलिदान से ब्राह्मणी के इकलौते पुत्र के प्राणों की रक्षा करने का प्रस्ताव करती है । पवित्रहृदया ब्राह्मणी इसे प्राणिहिंसा मान कर बस्वीकार कर देती है। उसकी इस धारणा का प्रतिवाद करती हुई कुन्ती उसे जगत् की विभूतियों तथा पदार्थों की नश्वरता और विषयों की विरसता से अवगत कराती