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जैन संस्कृत महाकाव्य १४०८ के करीब अलपखान अपने पिता दिलावरखान को विष देकर मालव की गद्दी पर आसीन हुआ था। सन् १४११ तथा १४१८ में होशंग (अलपखान) ने निकटवर्ती गुजरात पर दो बार आक्रमण किया किन्तु अहमदशाह के रणकौशल ने उसे भग्नमनोरथ कर दिया । १४१६ ई. में अहमदशाह से पुनः पराजित होकर उसे भण्डपदुर्ग में शरण लेनी पड़ी थी। यदि आलमसाहि की उक्त पहचान ठीक है तो - १४१६ तथा १४३२ ई० की मध्यवर्ती अवधि को काव्यमण्डन का रचनाकाल माना
जा सकता है। कथानक
काव्यमण्डन का कथानक महाभारत के एक प्रारम्भिक प्रसंग पर आधारित है, जिसे कवि ने तेरह सर्गों में प्रस्तुत किया है। प्रथम सर्ग में मंगलाचरण के पश्चात् भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कौरव वीरों तथा पाण्डव कुमारों के शौर्य एवं यश का वर्णन है । यहीं पाण्डवों के प्रति धृतराष्ट्र के पुत्रों की ईर्ष्या का प्रथम संकेत मिलता है । द्वितीय तथा तृतीय सर्ग का मुख्य कथा से कोई सम्बन्ध नहीं है । इनमें परम्परागत ऋतुओं का वर्णन किया गया है । चतुर्थ सर्ग में वीर पाण्डवों के गुणों को सहन करने में असमर्थ दुर्बुद्धि कौरव उन्हें लाक्षागृह में भस्मीभूत करने का षड्यन्त्र बनाते हैं। सरलहृदय पाण्डव, माता सहित, जतुगृह में रहने का निमन्त्रण स्वीकार कर लेते हैं । देखते-देखते, रात्रि को लाक्षागृह धू-धू करके जल उठता है, किन्तु पाण्डव भूमि-मार्ग से सकुशल निकल जाते हैं । भीम कौरवों को अपने क्रोध की अग्नि में शलभों की तरह भस्म करने का संकल्प करता है परन्तु युधिष्ठिर की शान्ति का मेघ उसे प्रज्वलित होने से पूर्व ही शान्त कर देता है । धर्मराज के अनुरोध पर वे प्रतीकार की भावना छोड़ कर, समय-यापन करने के लिये तीर्थयात्रा को चले जाते हैं । पांचवें से आठवें सर्ग तक चार सर्गों में पाण्डवों के तीर्थाटन का विस्तृत वर्णन है । इन सगों में गंगा, यमुना, शिप्रा, नर्मदा, कावेरी आदि विभिन्न नदियों, काशी, प्रयाग, महाकाल, अमरकण्टक, गया, नसिंहक्षेत्र आदि तीर्थों तथा उनके अधिष्ठाता देवोंअष्टमूर्ति, जटाम, विश्वनाथ शिव का पुराणों की तरह किन्तु अलंकृत शैली में अत्यन्त श्रद्धापूर्वक वर्णन किया गया है । छठे सर्ग में मायावी दनुज किर्मीर भीम की अनुपस्थिति में पाण्डवों तथा उनकी माता कुन्ती को महाभिचार से अचेत बना कर उन्हें कुलदेवता को बलि देने के लिये बांध ले जाता है । हिडिम्बा भीम को तत्काल कुलदेवी के आयतन में पहुँचा देती है, जहां वह किर्मीर को मार कर अपने ११. मण्डन के स्थितिकाल के विस्तृत विवेचन के लिये देखिये-पी.के. गोडे-द
प्राइममिनिस्टर ऑफ मालव एण्ड हिज वर्क्स, जैन एण्टीक्वेरी, ११.२, पृ. २५-३४।