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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास के सामायिक नामक प्रथम अध्ययन की व्याख्या करते हुए चूर्णिकार ने अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर के भवों की चर्चा की है तथा आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के धनसार्थवाह आदि भवों का वर्णन किया है। ऋषभदेव के जन्म, विवाह, अपत्य आदि का वर्णन करते हुए तत्कालीन शिल्प, कर्म, लेख आदि पर भी प्रकाश डाला है। इसी प्रसंग पर आचार्य ने ऋषभदेव के पुत्र भरत की दिग्विजय-यात्रा का अति रोचक एवं विद्वत्तापूर्ण वर्णन किया है। भरत का राज्याभिषेक, भरत और बाहुबलि का युद्ध, बाहुबलि को केवलज्ञान की प्राप्ति आदि घटनाओं के वर्णन में भी चूर्णिकार ने अपना कौशल दिखाया है। भगवान् महावीर के जीवन से सम्बन्धित निम्नोक्त घटनाओं का वर्णन भी प्रस्तुत चूणि : में उपलब्ध है : धैर्य-परीक्षा, विवाह, अपत्य, दान, सम्बोध, लोकान्तिकागमन, इन्द्रागमन, दीक्षा-महोत्सव, उपसर्ग, अभिग्रह-पंचक, अच्छंदक-वृत्त, चण्डकौशिकवृत्त, गोशालक-वृत्त, संगमककृत-उपसर्ग, देवीकृत-उपसर्ग, वैशाली आदि में विहार, चन्दनबाला-वृत्त, गोपकृत-शलाकोपसर्ग, केवलोत्पाद, समवसरण, गणधर-दीक्षा। सामायिकसम्बन्धी अन्य विषयों की चर्चा में आनंद, कामदेव, शिवराजर्षि, गंगदत्त, इलापुत्र, मेतार्य, कालिकाचार्य, चिलातिपुत्र, धर्मरुचि, तेतलीपुत्र आदि अनेक ऐतिहासिक आख्यानों के दृष्टान्त दिये गये हैं। तृतीय अध्ययन वंदना की व्याख्या में चूर्णिकार ने वंद्यावंद्य का विचार करते हुए पाँच प्रकार के श्रमणों को अवंद्य बताया है : १. आजीवक, २. तापस, ३. परिव्राजक, ४. तच्चणिय ( तत्क्षणिक ), ५. बोटिक । प्रतिक्रमण नामक चतुर्थ अध्ययन की चूर्षि में अभयकुमार, श्रेणिक, चेल्लणा, सुलसा, कोणिक, चेटक, उदायी, महा• पद्मनंद, शकटाल, वररुचि, स्थूलभद्र आदि ऐतिहासिक व्यक्तियों से सम्बन्धित
अनेक कथानकों का संग्रह किया गया है। आगे के अध्ययनों में भी इसी प्रकार विविध विषयों का सदृष्टान्त व्याख्यान किया गया है। दशवकालिकचूणि ( जिनदासकृत ) :
प्रस्तुत चू िनियुक्ति का अनुसरण करती है। इसमें आवश्यकचूणि का भी उल्लेख है । पंचम अध्ययन से सम्बन्धित चूणि में मांसाहार, मद्यपान आदि की भी चर्चा है । चूर्णिकार ने तरंगवती, ओघनियुक्ति, पिण्डनियुक्ति आदि ग्रंथों का नामोल्लेख भी किया है। उत्तराध्ययनचूर्णि:
यह चूणि भी नियुक्त्यनुसारी है । इसके अंत में चूर्णिकार ने अपना परिचय देते हुए अपने को 'वाणिजकुलसंभूओ, कोडियगणिओ उ वयरसाहीतो । . गोवालियमहत्तरओ....."तेसिं सीसेण इमं......' अर्थात् वाणिज्यकुलीन,
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