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सब के रक्षक देवता हैं। बतीस हजार देश ओर बतीस हजार मुकुटबध-राजा इन्हो के आधीन होते है। बतीस हजार देवता
आधीन होते है, बतीस हजार रानियां, बतीस हजार दासियां यह वास्तव मे रानियां ही होती हैं । प्रथम वतीस हजार रानियों से इन का दर्जा कुछ मध्यम होता है । इस लिये ६४००० रानियां होती है । बतीस प्रकार के नाटक तीन सौ साठ रस हुए । अठारह आणि प्रश्रेणि आदि राजे, चौरासी लाख अश्व, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख सग्रामी रथ, चौरासी लाख विकट गाड़ियां, विमानादि का समावेश है। छियानवे करोड़ पदाति सेना, बहत्तर हजार राजधानी, छियानवे करोड ग्राम, निन्यानवे हजार द्रोणमुख जैसे बम्बई, कराची आदि आजकल है ऐसे नगर, अड़तालीस हजार पट्टन तिजारती नगर जैसे देहली, अमृतसर की तरह, चौबीस हजार कर्वट सेना स्थान (छावनी), चौबीस हजार मंडल बीस हजार सोन चान्दी रत्न लोहादि की खाने, सोलह हजार खेड़े, चौदह हजार सवाद, छप्पन हजार अन्तरोदक अखंड भरतक्षेत्र का ऐश्वर्य भोगने वाले को चक्रवर्ती कहते है। छः खंडो के राजाओं को दिग्विजय के द्वारा अपने आधीन करते है और न्याय से प्रजा को सुखी करते हुए राज्य करते है। ऐसे १२-चक्रवती २४ तीर्थंकरों के समय में नीचे लिखी रीति से हुए हैं।
(१) भरत-ऋषभदेव जी के पुत्र वे बड़े धर्मात्मा थे। एक समय इनको तीन समाचार एक साथ मिले। ऋपभदेव का