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श्रामविलास ]
[१२ और भी संकुचित होकर पितृ-ऋणसे छूटनेके उद्देश्यसे एक पुत्रकी उत्पत्ति पर ही समाप्त हो जाय तो महान् पुण्यरूप है। जितना इन्द्रियलोलुपताप राग संकुचित होगा, उतना ही पुण्य-रूप और जितना विकसित होगा उतना ही पापरूप होगा। जैसा मनुजीने कहा है :--
प्रवृत्तिरेपा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला अर्थात् भूतोंकी प्रवृत्ति भोगोंमे स्वाभाविक है, परन्तु निवृत्ति महाफलदायनी है । इन्द्रियलोलुपताके सर्वथा अभाव के कारण ही महर्षि ज्यासदेवके द्वारा धृतराष्ट्र, विदुर और पाएडुकी उत्पत्ति पापरूप न होकर पुण्यरूप ही हुई। ___ हिंसा-जो हिंसा अपने पेटको कत्र बनानेके लिये या अन्य किसी तुच्छ स्वार्थ के लिये की गई है, वह अवश्य पापरूप है। परन्तु हिंसामे ही यदि उदारतापूर्वक स्वार्थत्याग भरा हुआ हो तो महान् पुण्यरूप है, जैसा एक कहानीके द्वारा पीछे निरूपण किया गया है । राजाके लिये प्रजापालननीतिसे अपराधीको दण्ड देना पुण्यरूप है, अथवा धर्मरक्षाके लिये युद्ध ठानना परम पुण्य है। परन्तु प्रजापालननीति तथा धर्मरक्षा लक्ष्य न रह कर केवल अपने स्वार्थके ही लिये हिंसा की जाय तो महान् अनर्थरूप है। जैसे वर्तमान में राजनीति का प्रवाह चल रहा है, क्योंकि वर्तमान राजनीति प्राकृतिक नियमविरुद्ध है, इस लिये अवश्य इस नीतिको प्रकृतिके डंडेकी चोट सहनी पडेगी, कोई शक्ति नहीं जो इसकी चोटको रोक सके।
१. यह अन्य बृटिशराज्यके समय शिखा गया था, यहाँ उसो नीति से
संरेत किया गया है।