Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका. अ० १ गा० ३४-३५ ग्रासैषणाविधिः वाग्यतना च। २३५ 'नीचे' इति तत्रोत्क्षेपनिक्षेपनिरीक्षणासंभवः स्वपरविराधनासमवश्चेति योतयति।
'आसन्ने' इति पश्चात्कर्मादिसंभवं ज्ञापयति । _ 'अतिदूरे' इति एषणाशुद्धयसंभवं बोधयति ॥ ३४ ॥
अथ ग्रासैषणाविधिमाह-- मूलम्-अप्पंपाणेऽप्पबीयम्मि, पडिच्छन्नम्मि संqडे ।
समयं संजए भुंजे, जयं अपरिसाडियं ॥३५॥ छाया-अल्पमाणेऽल्पबीजे, प्रतिच्छन्ने संवृते।
समकं संयतो भुञ्जीत, यतमानोऽपरिशाटितम् ॥३५॥ टीका-'अप्पपाणे' इत्यादि___ अल्पप्राणे अवस्थितागन्तुकद्वीन्द्रियादिजीवरहिते, अल्पबीजे शाल्यादिबीजरहिते, इदमुपलक्षणम्-पृथ्व्यायेकेन्द्रियजीवरहिते इत्यर्थः, प्रतिच्छन्ने संपा. तिमजीवा यथा न पतन्ति तथोपरिकृतप्रावरणयुक्त, संकृते-पार्वतः कटकुडयासंभावना रहती है। 'नीचे इस पद से भी यही बात उनकी लक्षित होती है । 'आसन्ने' पद से पश्चात्कर्मादिक की संभावना रहती है, तथा 'अतिरे' पद से एषणाशुद्धि की ठीक तरह पालना नहीं होती है वह बात प्रदर्शित की गई है ॥३४॥
अब ग्रासैषणा का विधि कहते हैं-'अप्पपाण' इत्यादि.
अन्वयार्थ-(अप्पपाणे अप्पबीयम्मि पडिच्छन्नम्मि संवुडे-अल्पप्राणे अल्पबीजे प्रतिच्छन्ने संवृते) अवस्थित एवं आगन्तुक द्वीन्द्रियादिक जीवों से रहित तथा शाली आदि बीजों से रहित, इसी तरह पृथ्वी आदि एकेन्द्रिय जीवों से वर्जित और संपातिम जीव न पड़ सके इस ख्याल से ऊपर से तथा चारों तरफ से छाये हुए ऐसे उपाश्रय "नीचे" २॥ ५४थी ५७५ मे पात भने लक्षित छ. "आसन्ने” २॥ ५४थी पश्चात महिनी सलवना २ छ. तथा "अतिदुरे" २॥ यथा अषण शुद्धिनी ઠીક ઠીક પાલના થતી નથી એ વાત પ્રદર્શિત કરવામાં આવી છે. તે ૩૪
वे पासैषायानी विधी ४ामा मावे छे. अप्पपाणे०-त्याहि. स-क्याथ:-अप्पपाणे अप्पबीयम्मि पडिच्छन्नम्मि संवुडे-अल्पप्राणे अल्पबीजे प्रतिच्छन्ने संवृते २पस्थित मने मांगतु द्वीन्द्रियाwिalथी २डित तथा el આદિ બીજેથી રહિત, એજ રીતે પૃથ્વી આદિ એકેન્દ્રિય જીથી વજીત અને સંપત્તિમય જીવ ન પડી શકે આ ખ્યાલથી ઉપરથી તથા ચારે બાજુથી
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧