Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
४५४
टीका- ' अज्जेवाहं ' इत्यादि ।
अहम्, अद्वैत्र=अस्मिन्नेव दिने न लभे-न प्राप्नोमि अपि सम्भावयामि श्वः = आगामिदिने, इदमुपलक्षणम् तेन अन्यस्मिन् कस्मिंश्चिदागामिनि दिने इत्यर्थः, लाभः स्यात् = आहारादिप्राप्तिर्भविष्यति, एवंम् अनेनोक्तप्रकारेण यः साधुः प्रतिसमीक्षते = चिन्तयति - अलाभे सत्यनुद्विग्नः सन् संयमयात्रां निर्वहतीत्यर्थः । तं मुनिम्- अलाभः =अलाभपरी पहः, न तर्जयेत् = कथमपि पराजयं कर्तुं न शक्नुया
'अज्जेवाहं - इत्यादि ।
अन्वयार्थ - (अहं अहम् ) मुझे (अज्जेव न लग्भामि-अद्यैव न लभे ) आज यदि आहार का लाभ नहीं हुआ है (अवि-अपि) तो (सुए - श्वः) आगामी दिन में उपलक्षण से और भी किसी अन्य दिवस में (लाभो सिया - लाभः स्यात्) उसका लाभ हो जायगा । ( एवं - एवम् ) इस प्रकार से ( जो - यः ) साधु ( पडिसंचिक्खे प्रतिसमीक्षते ) विचार लेता है, ( तं तम् ) उसके लिये ( अलाभो - अलाभः ) अलाभपहीषह (न तज्जए - न तर्जयेत् ) कभी भी संतापित नहीं कर सकता है । इसका तात्पर्य यह है - याचना करने पर भी यदि गृहस्थ-दाता की इच्छा होगी ता ही देगा, नहीं होगी तो नहीं देगा । यदि वह नहीं देता है तो इसमें साधु के लिये अपरितुष्ट होने की बात ही कौन सी है। जो साधु इस प्रकार की विचारधारा से युक्त होता है वह भिक्षा का लाभ न होने पर भी समचित्त बना रहता है, उसके मन में विकृति नहीं आती है । इसी से वह अलाभपरीषह का विजेता बन जाता है।
6
उत्तराध्ययन सूत्रे
,
अज्जेवाहं ' त्याहि.
मन्वयार्थ - अहं अहम् भने अज्जेव न लब्भामि-अद्यैव न लभे भा४ ले लोभनने। साल थये। नथी अघि-अपि तो सुए श्वः आगामी द्विवसभां उपलक्षथी मीन या अर्ध दिवसे लाभो सिया-लाभः स्यात् भेने। साल भजशे एवं - एवम् मा प्रहारे जो - यः साधु पडिसंचिक्खे - प्रतिसमीक्षते वियारी से छे त - तम् तेने भाटे अलाभोअलाभः असालपरीषडु उट्ठी पशु संताय आयनार मनतो नथी. भानुं तात्पर्य से छे કે, યાચના કરવા છતાં પણ જો ગૃહસ્થ દાતાની ઈચ્છા હશે તે આપશે. નહી હાય તા નહીં આપે. જો તે આપે નહિ. તે સાધુ માટે તેમાં અસતષ લાવવાની વાત જ કયાં છે, જે સાધુ આ પ્રકારની વિચારધારાથી યુકત છે તે ભિક્ષાને લાભ ન થવાથી પણ સમચિત્ત બની રહે છે. તેના મનમાં વિકૃતી આવતી નથી. તેનાથી અલાભપરીષહના વિજેતા મની રહે છે.
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર ઃ ૧