Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ० २ गा. ३२ रोगपरीषहजयः छाया-ज्ञात्वा उत्पतितं दुःखं, वेदनया दुःखार्तितः ।
अदीनः स्थापयेत् प्रज्ञां, स्पृष्टस्तत्र अधिसहेत ॥ ३२ ॥ टीका-" नच्चा" इत्यादि ।
वेदनया वेदनीयकर्मणा दुःखं=श्वासकासादिषोडशविधरोगसम्बन्धिकं कष्टम् उत्पतितम् उत्पन्नं भवतीति ज्ञात्वा दुःखार्तितः = भाविदुःखशङ्कयाऽऽर्तभावं गतः अदीनः = दैन्यभावरहितः सन् प्रज्ञा=बुद्धिं स्थापयेत्=भाविदुःखशङ्कया चलन्ती बुद्धि स्थिरीकुर्यात् । तथा यदि साधुः स्पृष्टः श्वास-कास-ज्वर-दाहकुक्षिशूल-भगन्दरा-शौंजीण-दृष्टिरोग-मूर्धशूला-रुच्य-क्षिशूल-कर्णशूल-कण्डू___आहार के अलाभ से अथवा अन्तप्रान्त आहार के लाभ से शरीर में रोग उत्पन्न हो जाता है इसलिये सोलहवां रोगपरीषह साधु को जीतना चाहिये, यह बात सूत्रकार कहते हैं-'नच्चा' इत्यादि ।
अन्धयार्थ-(वेयणाए-वेदनया) वेदनीय कर्म के उदय से (दुक्खदुःखं) श्वास कास आदि सोलह प्रकार के रोग संबंधी दुःख ( उप्पइयंउत्पतितम् ) उत्पन्न होता है ऐसा (नच्चा-ज्ञात्वा ) जानकर (दुहहिएदुःखार्तितः) भावी दुःख की आशङ्का से आर्त भाव को प्राप्त हुआ मुनि (अदीणो-अदीनः) दैन्यभाव से रहित होकर (पन्न ठावए-प्रज्ञा स्थापयेत् ) भावी दुःख की आशङ्का से चलित होती हुई अपनी बुद्धि को स्थिर करे। यदि साधु (पुटो-स्पृष्टः) श्वास, कास, ज्वर, दाह, कुक्षिशूल, भगन्दर, अर्श, अजीर्ण, दृष्टिरोग मूर्धशल, अरुचि, नेत्रशूल
આહારના અલાભથી અથવા અહિતકર્તા (અપગ્ય) આહારથી શરીરમાં રેગ થવા સંભવ છે તેથી સેળ રેગપરીષહ સાધુએ જીત જોઈએ એ वात सूत्र१२ ४ छ—'मच्चा' छत्याल, ___qयाथ-वेयणाए-घेदमया वहनीय भन। यथा दुक्खं-दुःखम् श्वास पास मास प्रारना । सधी हु: ५ उप्पइयं-उत्पतितम्, अत्पन्न थाय छ मेनु नच्चा-ज्ञात्वा की दुहट्टिए-दुःखार्तितः मावी भनी माशाथी मातापर प्रात ४२नार मुनि अदीणो-अदीनः छैन्य माथी २डित मनी पन्नं ठावए-प्रज्ञा स्थापयेत् लावी हुमनी माथी यहीत थती पोतानी मुद्धिन स्थिर ४२. 24 ने साधु पुट्ठो-स्पृष्टः १ श्वास, २ ४॥स, 3 w१२, ४ ४, ५ ५४is, ૬ ભગન્દર, ૭ હરસ, ૮ અજીર્ણ, ૯ દષ્ટિગ, ૧૦ મુર્ધશૂળ, ૧૧ અરૂચિ,
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧