Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ० २ गा. ४४ दर्शनपरीषहेऽष्टाविंशतिलब्धिवर्णनम् ५२९
खेलौषधिः-यत् प्रभावात् श्लेष्मा सर्वरोगापहारकः सुरभिश्च भवति सा ॥३॥
जल्लोषधिः- जल्लो-मळः कर्णवदननासिकानयनजिह्वासमुद्भवः शरीरसमुद्भवश्व, स एव ओषधिर्भवति यत्पभावात् सा ॥४॥
सौंषधिः-यत्प्रभावात् सर्वे विमूत्रकेशनखादय ओषधयो भवन्ति सा ॥५॥
संभिन्नश्रोतोलब्धिः -यत्मभावात् सर्वैरपि शरीरावयवः सुस्पष्ट शृणोति सा । यद्वा-'संभिन्नस्रोतस् ' इतिच्छाया । अत्र स्रोतस् शब्द इन्द्रियवाचकः, तेन यत्प्रभावात्-एकैकमिन्द्रियं सर्वेषामिन्द्रियाणां कार्य संपादयति सा। यथा-कर्णेनैव श्रवणदर्शनघ्राणरसनस्पर्शनकार्याणि लब्धिप्रभावात् सम्पादयति ॥ ६॥ ___ अवधिलब्धिः-अवधिज्ञानमेव लब्धिः-अवधिलब्धिः । अरूपिद्रव्यं विहाय धिका काम करने लग जाते हैं, तथा उनमें सुगंध आने लगती है, इस का नाम विमुडोषधि है २ । जिसके प्रभाव से श्लेष्मा सर्वरोग का अपहारक हो जाता है उस का नाम खेलौषधि है । इसके प्रभाव से श्लेष्म भी सुगंधवाला हो जाता है ३। जिसके प्रभावसे कान, मुख, नासिका, नयन, एवं जिह्वा का मैल, तथा शरीरका मैल औषधि जैसा परिणमित होता है उसका नाम जल्लोषधि है ४।जिसके प्रभावसे विष्टा, मूत्र, केश, तथा नख आदिक औषधि जैसे हो जाते हैं उसका नाम सौंषधि है ५। जिसके प्रभावसे समस्त शारीरिक अवयवों द्वारा सुना जाय,अथवा एक ही इन्द्रिय जिसके प्रभाव से अन्य इन्द्रियों का काम करने लग जाय उस का नाम संभिन्नातोलब्धि है। जिसके यह लब्धि होती है वह एक कर्ण इन्द्रिय से ही अवशिष्ट इन्द्रियों के काम-दर्शनादिक करने की शक्तिवाला हो जाता है ६। जिसके प्रभाव से अमूर्तिक द्रव्य को छोड़ कर मूर्तिक द्रव्यको जानने की सामर्थ्य आत्मामें प्रकट हो जाती है उसका नाम લાગે છે. તેનું નામ વિમુડ ઓષધિ છે. (૨) જેના પ્રભાવથી કલેષ્મા સર્વ રેગોને નાશ કરનાર છે તેનું નામ ખેલૌષધિ છે, તેના પ્રભાવથી શ્લેષ્મ પણ सुगया थ/ जय छ. (3) २ प्रमाथी आन, माटु, ना, नए भने છભનો મેલ તથા શરીરને મેલ, ઔષધિની જેમ પરિણમિત બને છે તેનું नाम र मौषधि छे. (४) न प्रमाथी विष्टा, भूत्र, वाण, नभ, माहि
ઔષધિ જેવા થઈ જાય છે તેનું નામ સર્વોષધિ છે. (૫) જેના પ્રભાવથી શરીરનાં તમામ અવયવ દ્વારા સંભળાય અથવા એક જ ઈન્દ્રિય જેના પ્રભાવથી બીજી ઈન્દ્રિયનું કામ કરવા લાગી જાય તેનું નામ સંભિન્નશ્રોતોલબ્ધિ છે. જેને આ લબ્ધિ હોય છે તે એક કર્ણ ઇન્દ્રિયથી જ અવશિષ્ટ ઈન્દ્રિયોનાં उ०६७
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧