Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ०३ गा० ९ श्रद्धादौलभ्ये क्रियमाणकृतविषयक विचारः ६५३
अत्रायमनुमानप्रयोगः - कृतं क्रियमाणं न भवति कृतत्वात् पूर्वनिष्पन्नघटवदिति । यद् विद्यमानं तन केनचित् क्रियते यथा पूर्वनिष्पन्नो घटः ।
यदि कृतमेव क्रियमाणं मन्यते तदा बहो दोषाः स्युः, तथाहि यदि कृतमपि क्रियते इति मन्यते, तर्हि कृतोऽपि घटः पुनः पुनः सततं क्रियताम् कृतत्वाविशेषात् एवं चानवरतं घटोत्पत्तिक्रियाया एव सच्चात् कदाचिदपि क्रियापरिसमाप्तिर्न स्यात् । एवं सत्येकस्यापि कार्यस्य निष्पत्तिर्न स्यात् ॥ १ ॥
"
इसका अभिप्राय यह हुआ कि कृत कार्य भी क्रियमाण होता है, तब तो आप पूर्वोत्पन्न की ही पुनः क्रिया द्वारा उत्पत्ति स्वीकार करते हैं, ऐसी स्थिति में बहुत पूर्व उत्पन्न हुए पदार्थ की भी फिर से उत्पत्ति होने लगेगी, परन्तु कृत की क्रियमाणता प्रमाणविरुद्ध है ।
यहां अनुमान प्रयोग इस प्रकार बनाना चाहिये - " कृतं क्रियमाणं न भवति कृतत्वात् पूर्वनिष्पन्नघटवत् " अर्थात् जिस प्रकार पूर्वनिष्पन्न घट में क्रियमाण ऐसा व्यवहार नहीं होता है उसी प्रकार जो कृत होता है वह क्रियमाण नहीं होता है, क्यों कि वह कृत है । तथा " यदिद्यमानं तन केनचित् क्रियते, यथा पूर्वनिष्पन्नो घटः " जो विद्यमान है वह किसी के द्वारा किया नहीं जा सकता है जैसे पूर्वनिपन्न (पहले बना हुआ ) घट |
यदि कृत ही क्रियमाण माना जाय तो इसमें अनेक दोष आते हैं, वे इस प्रकार से यदि कृत पदार्थ में भी “क्रियते " इस प्रकार का व्यवहार माना जाय तो कृत किया गया भी जो घट है उस में भी पुनः पुनः करने का प्रसंग प्राप्त होता है, क्यों कि उसमें कृतत्व की कोई विशेषता नहीं है । इस प्रकार निरन्तर घटोत्पत्तिरूप क्रिया के
જ સ્ક્રીને ક્રિયા દ્વારા ઉત્પત્તિના સ્વીકાર કરી છે. એ સ્થિતિમાં બહુ પહેલાં થયેલ પદાર્થની ઉત્પત્તિ ફરીથી થવા માંડશે, પરતુ તની ક્રિયમાળા પ્રમાણથીવિરૂદ્ધ છે. यहि अनुमान प्रयोग या प्रकारे मनावय। लेड से " कृतं क्रियमाणं न भवति कृतत्वात् पूर्व निष्पन्न घटवत् ” अर्थात् ने अमारे पूर्व निष्यन्न घटनां वियमाणु એવા વહેવાર ન થતા હાય તા તે કાર્ય ક્રિયમાણુ ખની શકતું નથી. કારણ કે, તે કૃત છે. જે વિદ્યમાન છે તે કાઇના દ્વારા કરવામાં આવતું નથી. જેમ પૂર્વ નિષ્પન્ન ઘટ ! જો કૃતને જ ક્રિયમાણુ માનવામાં આવે તે એમાં અનેક દોષ આવે છે. या अारे ले द्रुत पहार्थमा पशु “ क्रियते " मा अमरनो वहेवार मानवामां આવે તે કરવામાં આવેલ જે ઘટ છે એમાં પણ ફરી ફરી કરણના પ્રસંગ प्राप्त थाय छे. भ है, मां तत्वनी अर्ध विशेषता नथी. या प्रकारे निरं
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ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર ઃ ૧