Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 794
________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. ३ गा० ९ गुप्ताचार्यरोहगुप्तयोर्वादः ७३९ किञ्च-धर्मास्तिकायादिदेशिनोऽपृथग्भूतोऽपि देशः सिद्धान्ते पृथय वस्तुत्वेन कथितः, किं पुनर्यच्छिन्नं जीवात् पृथक् कृतं गृहगोधिकादिपुच्छं पृथगू वस्तु न भविष्यति, अपि तु भविष्यत्येव । वच्च छिन्नत्वेन पृथग्भूतत्वात् , स्फुरणादिना च अजीवविलक्षणत्वात् , सामर्थ्यान्नोजीव इत्युच्यते। अजीवमरूपणां कुर्वता भगवता धर्मास्तिकायादीनाममूर्ताजीवानां दशविधत्वमुक्तम् । ___ " अजीवा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा-रूवि-अजीवा य, अरूवि-अजीवा य । रूवि-अजीवा चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा-खंधा, देसा, पएसा, परमाणुपोग्गला। अरूवि-अजीवा दसविहा पन्नत्ता । तं जहा-धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे धम्मत्थिकायस्स पएसे, एवं अधम्मत्थिकाए वि, आगासत्थिकाए वि, अद्धासमए"। ___ और भी-जब धर्मास्तिकायादिक देशी के अपृथग्भूत भी देश सिद्धान्त में पृथक् वस्तुरूप से कहे गये हैं तो क्या जीव से पृथक् हुई छिपकली की पूंछ पृथक् वस्तु नहीं कही जासकती है। छिन्न होने से वह सम्पूर्ण जीव से जुदी है, तथा स्फुरण आदि क्रियाविशिष्ट होने से वह अजीवसे भिन्न है। इससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि वह नोजीव है। अजी की प्ररूपणा करते समय भगवान ने धर्मास्तिकायादिक अमूर्त अजीवों को दश प्रकार का कहा है___ "अजीवा दुविहा पण्णत्ता-तं जहारूवि-अजीवाय अरूवि-अजीवा य रुवि-अजीवा चउन्विहा पण्णत्ता - तं जहा-खंधा देसा पएसा परमाणुपोग्गला । अवि-अजीवा दूसविहा पण्णत्सा तं जहा-धम्मत्थिकाए, धम्मस्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पऐसे, एवं अधम्मत्थिकाए वि आगासत्थिकाए वि अद्धासमये।" જ્યારે ધર્માસ્તિકાયાદિક દેશના અપૃથભૂત (છુટો ન પડેલો) દેશ પણ સિદ્ધાંતમાં પૃથક્ વસ્તુ સ્વરૂપથી કહેવાયેલ છે તે શું જીવથી છુટી પડેલી ગરોળીની પૂંછડી પૃથક્ વસ્તુ ન કહેવાય ? અલગ થવાથી તે સંપૂર્ણ જીવથી જુદી છે તથા સ્કુરણ આદિ ક્રિયા વિશિષ્ટ હોવાથી તે અજીવથી પણ ભિન્ન છે એથી એ વાત સિદ્ધ થાય છે કે તે “ જીવ' છે. અજીવની પ્રરૂપણ કરતી વખતે ભગવાને ધર્માસ્તિકાયાદિક અમૂર્ત અ ને દશ પ્રકારના કહ્યા છે "अजीवा दुविहा पण्णत्ता-तं जहा रूवि अजीवा य, अरूवि अजीवा य, रूवि अजीवा, चउव्विहा पण्णत्ता-तं जहा-खंधा देसा पएसा परमाणु पोग्गला । अरूवि अजीवा दसविहा पण्णत्ता-तं जहा - धम्मत्थिकाए, धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पएसे, एवं अधम्मत्थिकाए वि आगासत्थिकाए वि अद्धासमए।" ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧

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