Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 796
________________ ७४१ प्रियदर्शिनी टीका अ० ३ गा० ९ गुप्ताचार्यरोहगुप्तयोर्वादः अपि च-समभिरूढनयानुसारेण जीवप्रदेशो नोजीवो भवितुमर्हति, अतः सिद्धान्तेऽपि नोजीवोऽस्तीति मन्यते । अनुयोगद्वारसूत्रे हि-प्रमाणद्वारान्तर्गतं नयप्रमाणं विचारयता भगवता प्रोक्तम् “समभिरूढो सदनयं भणइ-जइ कम्मधारएण भणसि तो एवं भणाहि-जीवे य से पएसे य, से पएसे नोजीवे " इति । छाया-समभिरूढः शब्दनयं भणति-यदि कर्मधारयेण भणसि, तर्हि एवं भण-जीवश्च स प्रदेशश्च, स प्रदेशो नोजीवः । इति ॥ तदनेन प्रदेशलक्षणो जी वैकद्रेशो नोजीव उक्तः। यथा घटैकदेशो नोघट इति । जीव से पृथक् होते हुए अवश्य पृथक् वस्तु हैं, ऐसा मानने में क्या विरोध हो सकता है। अतः वह जीव और अजीव इनसे विलक्षण होने से "नोजीव है" ऐसा कहा जाता है। ___और भी-समभिरूढनय की अपेक्षा से जीवप्रदेश नोजीव ही होना चाहिये तभी तो सिद्धान्त में "नोजीव है" ऐसा माना गया है। अनुयोगद्वारसूत्र में प्रमाणद्वारान्तर्गत नयप्रमाण का विचार करते समय भगवान ने कहा है "समभिरूढो सदनयं भणइ, जह कम्मधारएण भणसि तो एवं भणाहि-जीवे य से पएसे य, से पएसे नोजीवे" इति छाया-समभिरूढः शब्दनयं भणति, यदि कर्मधारयेण भणसि, तर्हि एवं भण-जीवश्च स प्रदेशश्च, स प्रदेशो नोजीवः । इति ।। . इस पाठ से यह कहा गया है कि प्रदेशलक्षण जीव का एक देश नोजीव है। जिस प्रकार घट का एक देश नोघट है। इस प्रकार વસ્તુ છે. એવું માનવામાં કર્યો વિરોધ હોઈ શકે ? આથી તે જીવ અને અજી. વથી કાંઈક જુદું જ હોવાથી “જીવ છે” એવું કહી શકાય. તે ઉપરાંત સમભિરૂઢનયની અપેક્ષાએ તે જીવપ્રદેશ નેજીવ જ હોવો જોઈએ. માટે સિદ્ધાંતમાં “જીવ છે.” એવું માનવામાં આવે છે. અનુગદ્વારસૂત્રમાં પ્રમાણદ્વારા અન્તર્ગત નયપ્રમાણને વિચાર કરતી વખતે ભગવાને કહ્યું છે ! "समभिरुढो सद्दनयं भणइ-जइ कम्मधारएण भणसि नो एवं भणाहि जीवे य से पएसे य, से पएसे नो जीवे " इति। छाया-समभिरुढः शब्दनयं भणति यदि कर्मधारयेण भणसि, तर्हि एवं भण जीवश्च स प्रदेशश्च, स प्रदेशो नोजीवः इति ॥ આ પાઠથી એમ કહેવામાં આવેલ છે કે, પ્રદેશ લક્ષણ જીવન એક દેશ નેજીવ છે. જેવી રીતે ઘટને એક દેશ ને ઘટ છે. આ રીતે યુક્તિ પૂર્વક ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧

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