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प्रियदर्शिनी टीका ०२ गा. २५ माक्रोशपरीषहजये क्षमाघरमुनिधान्तः ।
उक्तार्थमेव विशदीकुर्वन् पाहमूलम्-सोचाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकंटगा।
तुसिणीओ उंवेहेज्जा, न ताओ मणसी करे ॥२५॥ छाया-श्रुत्वा खलु परुषा भाषाः, दारुणा ग्रामकण्टकाः ।
__ तूष्णीकः उपेक्षेत, न ता मनसि कुर्यात् ॥२५॥ टीका-'सोच्चाणं' इत्यादि।
दारुणाः-दारयन्ति-विदारयन्ति संयमधैर्यमिति दारुणाः दुःसहाः, मनसि वनापातकारिका इत्यर्थः, प्रामकण्टकाम्यामा इन्द्रियाणां समूहस्तस्य कण्टका इव कण्टकाः =दुःखोत्पादकत्वेन प्रतिकूलाः परुषा-रूक्षाः कठोराः, भाषाः वचनानि, श्रुत्वा खलु तूष्णीकः मौनावलम्बी सन् , उपेक्षेत-ता भाषा अवधीरयेत्-नाद्रियेत। 'उवेहिजा' जाता है। इनके इस व्यवहार को मुझे समताभाव से सहन करना चाहिये, क्योंकि इससे मेरे अधिक कर्मों की निर्जरा होगी, इस निर्जरा में यह मेरा उपकारी है। अतः इस उपकारी के प्रति मैं देष करूँगा यह मेरी कितनी अज्ञानता होगी। ऐसा विचार कर साधु आक्रोशपरीषह पर विजय प्राप्त करे ॥ २४ ॥
उपरोक्त अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहते हैं-'सोच्चाणं'-इत्यादि.
अन्वयार्थ-(दारुणा-दारुणाः) संयमरूपी धैर्यको विदारणकरने वाली मन में वज्र के तुल्य दुस्सह आघात पहुँचाने वाली तथा (गामकंटगाग्रामकंटकाः) इन्द्रियों को कंटकतुल्य दुःख की उत्पादक होने से प्रतिकूल (फरसा-परुषाः) रूक्ष-कठोर ऐसी (भासा-भाषा:) लोगों की-असभ्य व्यक्तियोंकी भाषाओं-वचनों को (सोच्चाण-श्रुत्वा खलु) सुनकर मुनि (तुसिणीओ उवेहेज्जा-तूष्णीकः उपेक्षेत) चुपचाप रहा हुवा-मौन धारण સમતાભાવથી સહન કરવું જોઈએ. કેમકે એથી મને અધિક કર્મોની નિજેરા થશે. એ વિચાર કરી સાધુ આક્રોશ પરીષહ ઉપર વિજય પ્રાપ્ત કરે. ૨૪
उपतमथन स्पष्ट ४२ai ४ छ-' सोच्चा णं' त्याहि. भ-क्याथ-दारुणा-दारुणाः सयभ३पी धै। विहा२६ ४२पापाजी -मनमा १० तस्य मायात पडेयापाणी गामकंटगा-प्रामकंटक: तयाछन्द्रियान ४८४ समान भने उत्पादन ४२नार बाथी प्रतिभ्रूण फरसाः-परुषाः ३६ ठार शवी भासा-भाषाः ससस्य बना वयनाने सोच्चाणं-श्रुत्वा खलु सलजीत मुनि तुसिणीओ उवेहेज्जा-तूष्णीकः उपेक्षेत यु५०५ २७ी, मौन धार५ ४रीत उ० ५५
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૧