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श्रीजिनाय नमः श्रीविनयविजयजी महाराजविरचित ॥ सुबोधिका नामक कल्पसूत्रनी
टीका- गुजराती नापांतर ॥ B8558588888888888888888888888888
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कल्पसूत्र सुबोधिका टीका- गुजरातीमां
जापांतर करावी
उपावी प्रसिद्ध करनार, श्रावक जीमसिंह माणेक
HALKRICRORSCRACKASARGANGANG
जैन पुस्तको प्रसिद्ध करनार तथा वेचनार
मांमवी, शाकगढी, मुंव.
वीर संवत् २४४१
विक्रम संवत् १९७१
श्रावण पूर्णिमा.
सने १९१५.
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॥ प्रस्तावना ॥
संसाररूप नाट्यालयनी अंदर प्रमाद, विकथा, दुर्ध्यान तथा ईर्ष्या यादि कारणोने लइने जीवो | अनादि कालथी नवा नवा वेष धारण करे बे ने तदनुरूप चेष्टा पण करे बे. यद्यपि कोइक वार शुभ कर्मोदयना प्रजावथी देव, गुरु, धर्मनी पूजा जक्ति तेमज आराधना करता देखाय वे, परंतु आंतरिक दोषो शांत नहीं थवाथी विचारा पुनः तेवा ने तेवा थइ संसारचक्रमां गोयां मारे ढें. जे जीवो एक वखत देव, गुरु, धर्मनी श्राराधना छाने स्तुति करता तेज जीवो देव, गुरु, धर्मनी निंदा करवा लागी जाय बे, नहीं करवानां कृत्यों करे बे, नहीं बोलवानुं बोले बेाने बेवढे प्रायः नास्तिक बनी जाय बे. या प्रताप पोतपोतानां कर्मनो बे, एटले तेमां श्राश्वर्य पामवा जेवुं नथी, अथवा तो अन्यनां कृत्यों पर ध्यान दइ थापणे अमूल्य समय नष्ट करवो जोश्तो नथी. कर्मना | नचाव्या दरेक जीवने नाचवुं पडे बे, माटे शुभ निमित्तोनो आश्रय लइ कर्म राजाने दराववा अने धर्म महाराजानो विजय करवा माटे हमेशां प्रयत्नशील रहेतुं जोइए.
दरेक धर्मनी अंदर प्रायः केटलाक पर्वदिवसो मुकरर थयेला बे ते एटलाज माटे के ते दिवसोमां जव्य जीवो विशेषे करीने धर्मध्यान करी कर्म राजाने परास्त करे. कोइ पण धर्म एवो नहीं होय के जेमां अमुक दिवस पापना प्रायश्चित्त माटे मुकरर थयेल न होय. श्रावी रीते सर्वोत्तम, पवित्र जैन धर्मनी अंदर पण तेवा केटलाएक दिवस निर्णीत बे, जे पैकी पर्युषणा पर्वना दिवस घणाज मनोहर ने शुभ कार्य संपादक श्रात्मशुद्धिनुं असाधारण कारण वे. या | पर्वनी अंदर लोकप्रधान देवो पण तमाम प्रकारनां दिव्य सुखो बोमी दइने नंदीश्वर आदि द्वीपमां ज जगवाननी पूजा नक्ति आठ दिवस सुधी करे बे.
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कल्प
सुवो
॥
॥
SASH-46-AAAHARASHARASHTRA
जैननां पीस्तालीश आगम कहेवाय . तेमां बदसूत्र बे. तेमां चोथा बेदसूत्रनुं नाम दशा-प्रस्तावना श्रुतस्कंध . था सूत्र श्री नाबाहु स्वामीए रचेगुं बे. तेमणे दशाश्रुतस्कंधना थाउमा अध्ययन-18 पणाश्री प्रत्याख्यान प्रवाद नामनानवमा पूर्वमांश्री पर्युषणा कल्पनी साथे स्थविरावली श्रने सामा | चारीजोमीने तेनुं कल्पसूत्र' एवं जूनाम आप्युं बे. या कल्पसूत्रमा मूल श्लोकसंख्या बारसो| सोल होवाथी ते साधारण रीते 'वारसा' ना नामथी ओलखाय . है या सूत्र प्रथम पर्युषणानी रात्रे साधुपर्षदामां गुरुमुखथी सर्वे साधुर्ड कायोत्सर्गध्यानमा रहीने
श्रवण करता हता,परंतु थानंदपुर (वमनगर)मां ध्रुवसेन राजाना पुत्रनो शोक निवृत करवाना हेतुथी। ए कल्पसूत्र सजाने विषे वंचायु. ते दिवसथी कल्पसूत्रने सनामां वांचवानी शरुयात थ अने)
हजु पण ते प्रवृत्ति चालुज . 8 था मूलसूत्र मागधी (प्राकृत) नाषामांहोवाश्री घणा आचार्योए तेनी संस्कृतमा टीका रचेली । है. तेमां पण महान् उपाध्याय श्रीविनयविजयजी महाराजे 'सुबोधिका' टीका बनावी ने ते घणी |
सरल श्रने रसिक नाषामां करी . ते टीका संवत् १६५६ ना ज्येष्ठ सुदि ने गुरुवारे पुष्य नक्षत्रे ।
पूरी थइ बे. हालमां संस्कृत भाषा जाणनारा घणा थोमा होवाथी श्रमोए सुबोधिका टीकार्नु नाषां-31 ४तर करावी उपावेल डे तेमज ग्रंथ वधारे सुशोभित करवा सारु तेमां ५७ चित्रो नाखवामां आवेल .8 4. कल्पसूत्र सुवोधिकाना नव क्षण एटले व्याख्यान करवामां श्रावेल . तेमां कर कर जातना विषयो श्रावेला डे ते अनुक्रमणिका जोवाथी मालूम पमशे. प्रथमनां सात व्याख्यानमां अनुक्रमे |
3 ॥२॥ श्रीमहावीर स्वामी, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ श्रने यादीश्वर नगवाननां चरित्र यावेल जे. श्राठमा| व्याख्यानमां स्थविरावली थने नवमा व्याख्यानमां सामाचारी दाखल करवामां आवेल बे. आवटे ग्रंथ समाप्त करीने सुंदर प्रशस्ति पण मूकी बे.
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४ कल्पसूत्र सुवोधिकाना नाषांतरनी श्रा चोथी श्रावृत्ति अमारा तरफथी बहार पामवामां आवेल ने. है था ( चोथी ) श्रावृत्तिनां थोमां फारमो श्रागलनी श्रावृत्ति मुजब उपाया पठी अमने मालूम पड्यु |
के श्रागलनी श्रावृत्तिमा नाषांतर करनारे केटलोएक जाग पम्तो मूकी दीधो ले तेमज तेना। हस्तक केटलीक जग्योए अशुछिरही गयेल , तेथी पम्तो मूकेलो नाग दाखल करावी, अशुछिनु । बनी शक्या मुजब संशोधन करावी तथा बेवटना नागनुं फरीथी नाषांतर करावी या आवृत्ति है
बदार पारवामां थावी . तेनी अंदर दृष्टिदोषथी तेमज मतिमंदताने लीधे कां पण नूलो रही लग होय तो मुनि महाराजा तेमज सुइ श्रावकबंधु सुधारीने वांचशे तथा ते नूलो लखी जणावर
श्रमने उपकृत करशे तो हवे पळीनी श्रावृत्तिमां शरुयातनो नाग जे संशोधन करावीने सुधार-3 वानो ने तेनी साथे था नूलो पण सुधारी शकाशे. इत्यलं विस्तरेण.
R-55R-CREARSA
सी.
घर नं. २२५ थी २३१ शाकगही, मांगवी, मुंबर,
वीर संवत् २४४१ विक्रम संवत् १९७१
श्रावण पूर्णिमा
श्रावक नीमसिंह माणेकना
कार्यप्रवर्तक शा, नाणजी माया.
NSAR
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अनुक्रमणिका.
कल्प०
काअनुक्रम
एका.
सुबोग
विषय.
॥३॥
आंक. विषय.
पृष्ठ. आंक. प्रथमं व्याख्यानं.
१० कल्पसूत्रनुं माहात्म्य ....
१ए कल्पसूत्रनी रचना कोणे अने १ मंगलाचरण तथा टीकाकारे करेली पोतानी लघुता १ २" कहप" शब्दनो विस्तार सहित अर्थ ....
केवी रीते करी ? तेनुं वर्णन .... ... ३ श्राचेलक्य कटपर्नु वर्णन .... ....
२० चौद पूर्वोनु मान तथा तेनां नामो ४ औद्देशिक (आधाकर्मिक ) कटपर्नु वर्णन.... २१ कट्पसूत्र वांचवाना कोण अधिकारी ? तथा ते । ५ शय्यातर कटपर्नु वर्णन
सन्ना सन्मुख क्यारथी वंचावु शरु थयुं? तेनुं वर्णन ६ ६ राजपि कटपर्नु वर्णन.... ....
२२ नागकेतुनी कथा ७ कृतिकर्म ( वंदना) कटपर्नु वर्णन
२३ जग शब्दना अर्थो .... वृत्त कट्पनुं वर्णन ....
२४ कट्याणको संबंधी चर्चा .. ए ज्येष्ठ कटपर्नु वर्णन ....
२५ श्रीवीर प्रजुन देवानंदानी कुदिमा अवतरQ १० प्रतिक्रमण कट्पनुं वर्णन
२६ चौद स्वप्नो जोवाथी देवानंदाना हर्षनुं वर्णन ११ मास कट्पनुं वर्णन ....
२७ देवानंदानुं ज्ञषजदत्त ब्राह्मण पासे श्रावq .... १२ पर्युषणा कटपर्नु वर्णन ....
२० पजदत्त ब्राह्मणे तेणी ने कहेलो स्वमविचार १३ शजु जम मुनिनां दृष्टांत
शए बत्रीश लदाणोनुं वर्णन.... १४ वक्र जम मुनिनां दृष्टांत
३० अंगोपांगनां लक्षणोनुं वर्णन १५ शजु प्राइ मुनिनां दृष्टांत
३१ सामुडिक वर्णन का १६ कया कारण थी मुनिने चतुर्मास
३२ मानोन्माननुं वर्णन | उपरांत पण रहेवु कटपे ? तेनुं वर्णन
1 ३३ कार्तिक शेवनी कथा .... १७ औषधनुं दृष्टांत
...... ५ ३४ इंजनुं वर्णन....
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Jain Educatic
क.
३५ शक्रस्तवनो अर्थ
३६ मेघकुमारनी कथा
विषय.
....
www.
द्वितीयं व्याख्यानं.
....
....
लो हुकम ५२ हरिणैगमेषीनुं वर्णन ५३ गर्न संहरण करवाना जांगा
****
१६
१७
१७
१८
३७ शक्रस्तवनो चालु अर्थ.. ३० तीर्थंकरो कया कुलमां उपजे ? ३७ “ उपसर्ग” अबेरानुं वर्णन १४० गोशालानुं वृत्तांत ४१ "गर्भहरण” अवेरानुं वर्णन ४२ "स्त्री तीर्थंकर" अबेरानुं वर्णन ४३ " जावित पर्षदा " अबेरानुं वर्णन ४४ "कृष्णनुं मरकामां जवुं” ए
१८
१८
....
20
बेरानुं वर्णन १५
४५ "चंद्र सूर्यनुं मूल विमाने उतरवु” ए अवेरानुं वर्णन १७
烤麵
४६ "हरिवंश कुलनी उत्पत्ति" ए अबेरानुं वर्णन ४७ "चमोत्पात" ए अबेरानुं वर्णन
१ ए
....
४० " एकसो ने वनुं एकी वखते सिद्ध यर्बु” ए रानुं वर्णन "असंयतिनी पूजा " ए अबेरानुं वर्णन
....
....
५० वीर प्रजुना सत्तावीश नवोनुं वर्णन
...
२१ गर्भ बदलाववा माटे इंद्रे हरिगमेषीने करे
****
....
2000
वर्णन
****
....
....
....
....
....
4400
www.
पृष्ठ. यांक.
१५
१६
麵
२०
२०
विषय.
५४ प्रनुं गर्भसंहरण संबंधी ज्ञान ५५ त्रिशला राणीना शयनग्रहनुं वर्णन
२६ गजना स्वमनुं वर्णन ७ वृषजना स्वमनुं वर्णन २८ सिंहना स्वमनुं वर्णन लक्ष्मी देवीना स्वमनुं वर्णन
....
२३
२३
२३
....
****
....
....
....
....
....
....
तृतीयं व्याख्यानं.
६० पुष्पमालाना स्वप्ननुं वर्णन ६१ चंद्रना स्वप्ननुं वर्णन
६२ सूर्यना स्वमनुं वर्णन
६३ ध्वजाना स्वमनुं वर्णन
६४ कलशना स्वमनुं वर्णन
६५ पद्म सरोवरना स्वप्ननुं वर्णन
६६ क्षीर समुना स्वमनुं वर्णन
६७ देवविमानना स्वमनुं वर्णन
....
६० रत्नराशिना स्वप्ननुं वर्णन ६ अग्निशिखाना स्वमनुं वर्णन ७० त्रिशला राणीनी वाणीनुं वर्णन ७१ सिद्धार्थ राजाए कहेलो स्वमोनो अर्थ १२ सिद्धार्थ राजा करावेलो महोत्सव ७३ सूर्योदयनुं वर्णन
....
....
....
....
....
*...
....
....
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....
....
....
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www.
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....
पृष्ठ.
२४
२४
२५
१५
२५
२५
२७
२०
२७.
३०
३१
३१
३२
३३
३४
३४
३५
३६
•
३७
३०
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कल्प सुबो
अनुक्रमणिका.
॥४॥
आंक. विषय. पृष्ठ. अांक.
विषय. ४ सिद्धार्थ राजाना मर्दन, स्नान, अलंकार - ए१ अनुना जन्मोत्सव माटे इंशादिक देवोर्नु आवq ५५ दिकनुं वर्णन ....
एक प्रनुए जमणा पगना अंगुगथी कंपावेलो मेरु ७५ सिद्धार्थ राजानुं स्नानगृहमांथी नीकल
ए३ सिद्धार्थ राजाए करेलो प्रनुनो जन्मोत्सव ..... ७६ कनातनुं वर्णन .... ....
एव मातपिताए प्रभुने करावेलुं सूर्य चंजन दर्शन पुत्र स्वमपाठकोन वर्णन .... ...
एए अनुनां त्रण नामर्नु वर्णन .... ७० पांचसे सुनटोनुं दृष्टांत ... ...
ए६ प्रनुनी आमलकी क्रीडा-वर्णन ..... .... पुए स्वमपाठकोए राजाने दीधेला आशीर्वाद .... | ए मिथ्यादृष्टि देवर्नु वृत्तांत चतुर्थं व्याख्यानं.
एप्रनुर्नु पाठशालामां आगमन .... ८० स्वप्नपाठकोए स्वप्नोनुं करेबुं वर्णन .... एए ब्राह्मणना रूपे इंजनुं त्यां आवq.... ७१ जूंजक देवोए सिद्धार्थ राजाना घरमां नरेखां १०० प्रजुनो लग्नमहोत्सव .... .... धननु वर्णन.... .... .... ...
४७ १०१ प्रनुनो दीक्षा लेवानो अभिप्राय ..... ७२ चार प्रकारनां धननुं वर्णन .... .... ४० १०२ नंदिवर्धनना आग्रहथी प्रनुर्नु बे वर्ष सुधी ४३ गर्नमा रहेला वीर प्रनुनो दयायुक्त विचार | घरमा रहेq.... .... ....
प्रनु गर्जमां स्थिर रहेवाश्री त्रिशला राणीने |१०३ लोकांतिक देवोर्नु आगमन .... __थयेलो शोक .... .... पए १०४ प्रनुए आपेला वर्षीदान- वर्णन .... ८५ सिद्धार्थ राजाना शोकातुर नुवननु वर्णन .... १०५ प्रनुनो दीक्षामहोत्सव .... ७६ गर्जना कंपनयी त्रिशला राणीने थयेलो हर्ष १०६ नगरनी स्त्रीउनुं वर्णन.... 6 गर्जपोषणना उपायो ....
१०७ प्रनुए लीधेली दीक्षा .... ७७ चोवीशे तीर्थकरोना गर्नकालनुं प्रमाण ... ५३
षष्ठं व्याख्यानं. जए वीर प्रनुनो जन्म ....
५५ १०८ प्रनुए सहन करेला उपसर्गो .... पंचमं व्याख्यानं
१० गोवालीये करेलो प्रनुने उपसर्ग .... ए. उपन्न दिक्कुमारिकानुं वर्णन .... ५४ ११० प्रनु- मोराक सन्निवेशमा आवद्यु
Hए
॥
४॥
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अांक. विषय. पृष्ठ. अांक.
विषय. १११ प्रनुए लीधेला पांच अनिग्रहो .... .... ६ए
सप्तमं व्याख्यानं. ११२ देवदृप्य वस्त्र लेनार ब्राह्मणचं वृत्तांत ....
(पार्श्व प्रजुनुं चरित्र) ११३ सामुजिकवेत्तानुं वर्णन.... ११५ शूलपाणि यदनुं वृत्तांत तथा तेणे करेला
१३० पार्श्व प्रनुनो जन्म ....
१३१ कम तापसनुं वृत्तांत ..... प्रत्तुने उपसर्गो ....
| १३२ पार्श्व प्रनुए लीधेली दीक्षा ११५ उत्पल निमित्तिश्रानुं वृत्तांत ....
१३३ मेघमालीए करेलो प्रजुने उपसर्ग.... ११६ अखंदक निमित्तिानुं वृत्तांत
१३४ पार्श्व प्रनुना परिवारजें वर्णन .... ११७ चंडकौशिकनुं वृत्तांत .... ... ला११० सुदंष्ट्र देवे करेलो प्रनुने उपसर्ग ....
(नेमिनाथ प्रजुनुं चरित्र) ११ए कंबल शंवलनी कथा .... ....
१३५ नेमिनाथ प्रनुनो जन्म .... .... १२० गोशालानुं वृत्तांत .....
१३६ नेमिनाथ प्रनुए वगामेलो शंख .... .... | १२१ संगम देवे करेला प्रनुने उपसर्गो....
१३७ प्रनुए शंख वगामवाश्री श्रीकृष्णने श्रयेला
विचारो १२२ चंदनबालानुं वृत्तांत
....
१३० सत्यजामा आदिके प्रनुना विवाह माटे करेली १२३ प्रजुने श्रयेलुं केवलज्ञान १२४ गणधरवाद .... .... ....
१३ए नेमिनाथ प्रनुना विवाहनुं वर्णन .... १२५ प्रनुन मोगमन ....
....
१४० नेमिनाथ प्रनुए विवाह नहीं करतां *१२६ अनुना मोक्षथी गौतम स्वामीनो शोक
पागे वाट्यो.... |१२७ दीवालीना महोत्सव- चालु अर्बु
१४१ राजीमतीनो वैराग्य .... ४|१२८ अठ्याशी ग्रहोना नाम....
ए० १५२ नेमिनाथ प्रनुनुं दीदाग्रहण १२ए प्रनुना परिवारनुं वर्णन
ए१ १४३ रथनेमिनुं वृत्तांत
SACRECRUCIENCRECAMERICAUCRACK
विचा
कोशेष
...
NNN
P/DD DD
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श्रांक.
कल्प० सुबो०
अनुक्रमणिका.
MM
॥५॥
MMMM
विषय. पृष्ठ. श्रांक.
विषय. | १४४ नेमिनाथ प्रचना परिवारजें वर्णन
अष्टमं व्याख्यानं. १४५ नेमिनाथ प्रनुन मोदगमन
(स्थविरावलि चरित्र ) १४६ तीर्थकरोना आंतरा ..... (रूषनदेव प्रजुनुं चरित्र)
१६० गण थवानुं कारण ....
१६१ सुधास्वामीन चरित्र १४७ षन्न प्रजुनो जन्म ....
१६२ जंबूस्वामीनु चरित्र .... १५० युगलियानुं वृत्तांत .....
१६३ जज्बाहुस्वामी तथा वराहमिहिरनुं वृत्तांत ..... १४ए विनीता नगरीनी स्थापना
१६५ स्थूलनाजीनुं वृत्तांत .... १५० षजदेव प्रनुए चलावेलो लोकव्यवहार
१६५ आर्यसुहस्ति तथा आर्यमहागिरिजीनु वृत्तांत १५१ प्रजुना पुत्रोनां नामो ....
१६६ वैशेषिक मतनी स्थापना १५२ षनदेव प्रनुए सीधेली दीक्षा ....
१६७ प्रियग्रंथ महाराजनुं वृत्तांत १५३ नमि विनमिनुं वृत्तांत ....
....
१६७ वज्रस्वामीजी आदिक, वृत्तांत .... १५४ श्रेयांसकुमार, वृत्तांत .... १५५ प्रनुने श्रयेलु केवलज्ञान
नवमं व्याख्यानं ( सामाचारी) १५६ मरुदेवा माता, वृत्तांत
१११ १६ए पर्युषणानो अधिकार .... १५७ झपनदेव प्रनुनो परिवार
११२ १७० साधुना आचारनुं वर्णन १५७ षनदेव पनुनुं मोक्षगमन
११३ १७१ टीकाकारनी प्रशस्ति .... ४॥ १५ए देवोए करेलो प्रन्नुनो निर्वाण महोत्सव .... ११३ १७२ शुद्धिपत्रक ....
इति अनुक्रमणिका समाप्त.
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॥
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CORRECORROSCRICROCIRCRACHCHEACHEDCLOCALLOW
॥ श्रीजिनाय नमः॥ ॥ कल्पसूत्र सुबोधिकानुं गुजराती भाषांतर ॥
टीकाकार श्रीविनयविजयजी महाराज मंगलाचरण करे . परम कल्याणने करनारा श्रीजगदीश्वर अर्हत प्रजुने प्रणाम करी हुँ बाल श्रन्यासीउने उपकार । करनारी सुबोधिका नामे कल्पसूत्रनी टीका करुं बुं. १ श्रा कल्पसूत्र उपर निपुण बुद्धिवाला पुरु-14 षोने गम्य एवी जो के घणी टीका , तथापि अपबुद्धिवाला पुरुषोने बोध थाय तेवा हेतुथी। श्रा टीका करवा विष मारो प्रयत्न सफल . २ जोके सूर्यनी घणी कांति सर्व लोकोने वस्तुनो बोध करनारी होय , तथापि नूमिगृह (जोयरा)मां रहेला माणसोने तो तत्काल दीपिकाज उपकार करे| बे. ३ था टीकामां विशेष अर्थ कर्या नथी, युक्ति बतावी नथी, अने पद्यपामित्य दर्शाव्यु नयी पण मात्र बाल बुद्धि अन्यासीउने बोध थवाने अर्थनी व्याख्याज आपेली ३.४ जो के हुँ अपबुद्धिवालो थर था टीका रचुं बुं पण सत्पुरुषोने उपहास्य नहीं था, कारण के ते सत्पुरुषो एवो उप-18
देश करे ने के, “सर्व माणसोए कल्याणमा यथाशक्ति यत्न करवो जोइए." ५ 2 अहीश्रा पूर्व काले नवकल्प विहार करवानाक्रम वडे प्राप्त थयेला योग्य क्षेत्रमांअने सांप्रत काले । परंपराथी गुरुए आदेश करेला क्षेत्रमा चतुर्मास रहेला साधु कल्याण निमित्ते श्रानंदपुरमा सना 3 समक्ष वांच्या पली संघनी समक्ष पांच दिवस अने नव क्षणे श्रीकल्पसूत्रने वांचे नेते कल्पसूत्रमा कल्प हूँ शब्द वडे साधुजनो आचार कहेवाय . ते कल्प-श्राचारना दश नेद देते श्राप्रमाणे:-१श्राचेलक्य,
औदेशिक, ३ शय्यातर, ४ राजपिम, ५ कृतिकर्म, ६ व्रत, ज्येष्ठ, प्रतिक्रमण, ए मास कम्प, १० पर्युषणा. ते दश कल्पनी व्याख्या था प्रमाणे जे.
CRENC0-%AMSANCHAMICROCRACLECRECROCESCALCHOCHOCALSOME
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कल्प०
॥ १ ॥
Jain Education
१ श्रावेलक्य. ( आचेलक . )
जेने चेल एटले वस्त्र न होय ते अचेलक कहेवाय, ते अचेलकनो जाव ते याचेलक्य अर्थात् वस्त्ररहितपणुं. ते तीर्थकरोने श्राश्रीने रहेलुं बे. तेमां पहला श्रने बेल्ला तीर्थकरोने शकेंद्रे लावी आपेला || देवरूष्य वस्त्रनो अपगम थवाथी तेर्जने सर्वदा अचेलकत्व एटले वस्त्ररहितपणुं बे ने वीजा तीर्थकरोने तो सर्वदा सचेलकत्व एटले वस्त्रसहितपणुं बे. या विषे किरणावली टीकाकारे जे चोवीश तीर्थ| करोने पण शक्रेंड आपेला देवडूष्य वस्त्रना छापगम थवाथी अचेलकपणुं कर्तुं बे, ते शक नरेलुं बे. साधु ने श्रीने एटले अजितनाथ विगेरे बावीश तीर्थंकरोनां तीर्थना साधु के जेर्ज सरल ने प्राज्ञ कहेवाय बे, तेउने घणा मूल्य वालां विविध रंगी वस्त्रोना उपजोगनी श्राज्ञा होवाथी सचेलकपणुं बे ने वली केटलाएक श्वेतरंगी परिमाणवालां वस्त्रने धारण करनार होवाथी तेमने अचेलकपपुंज बे. या प्रमाणे तेने या कल्प अनियतपणे रहेलो बे. जे श्रीकृषन छाने वीर प्रजुनां तीर्थना यतिनं बे, ते सर्वे श्वेताने परिमाणवालां जीर्ण वस्त्रने धरनारा होवाथी तेमने अचेल कपपुंज बे. यहीं शंका | थाय डे के वस्त्रनो उपजोग छतां तेमने अचेलकपणुं केम कहेवाय ? तेनो प्रत्युत्तर थापे बे. जे जीर्ण वस्त्र होय ते तुछ होवाथी तेवुं वस्त्र बतां पण वस्त्ररहितपणुं कदेवाय बे, ते सर्व लोकोमां प्रसिद्ध बे. जेमके पोतीयां पहेरी नदीने उतरता लोको कहे वे के 'अमो नग्न थइने नदी उतरी गया' तेमज वस्त्र बतां पण लोको मेराइ अने धोवी विगेरेने कहे बे के 'मोने सत्वर वस्त्र आपो, अमे नागा रहीए। बीए' श्रावी रीते साधुउने वस्त्रो बतां पण अचेलकपणुं जाणी लेवुं. इति प्रथम कल्प.
२ौदेशिक कल्प.
सिएटले दे शिक कल्प अर्थात् श्राधाकर्मिक साधु निमित्ते अशन, पान, खादिम, खादिम, वस्त्र, पात्र अने उपाय विगेरे जे करेलुं होय, ते पहेला अने बेल्ला तीर्थंकरनां तीर्थमां एक साधुने, एक साधुना समुदायने, अथवा एक उपाश्रयने याश्रीने करेलुं होय ते सर्वे साधु विगेरेने कल्पतुं नथी।
सुबो०
॥ १॥
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श्रने बावीश तीर्थंकरोनां तीर्थमां तो जे साधु विगेरेने या श्रीने करेलुं होय ते तेनेज कल्पतुं नश्री छाने बीजाने कल्पे बे एवी रीते बीजो प्रदेशिक कल्प वे. २
३ शय्यातर कल्प.
त्री जो कल्प शय्यातर एटले जे उपाश्रयनो स्वामी होय ते, तेनो पिंग जे १ अशन, २ पान, ३ खादिम, ४ स्वादिम, ५ वस्त्र, ६ पात्र, ७ कांवल, ८ रजोहरण, ए सोय, १० अस्तरो, ११ नख तथा दांत सुधारवानुं छात्र ने १२ कर्णने सुधारवानुं साधन, ए बार प्रकारनो बे, ते बधा तीर्थंकरोनां तीर्थोमां सर्व साधुउने कल्पे नहीं, कारण के तेथी अनेषणीय वस्तुनो प्रसंग, छाने उपाश्रय मलवो दुर्लज थाय इत्यादि घणा दोष लागवानो संजव बे. जो साधु बधी रात्रि जागे अने प्रातःकाले प्रतिक्रमण बीजे जइ करे तो ते मूल उपाश्रयनो स्वामी शय्यातर यतो नथी, अने जो साधु त्यां निद्रा करे छाने प्रतिक्रमण बीजे ठेकाणे करे तो ते वंनेना स्वामी शय्यातर थाय बे.
तेमज चारित्रनी इछावाला उपधि सहित शिष्यने शय्यातरना घरनी तृण, मगल, जस्म (राख), मल्लक, पाटलो, बाजोट, शय्या, संस्तारो अने लेप विगेरे वस्तु ग्रहण करवी कल्पती नथी. ए त्रीजो शय्यातर कल्प जाणवो. ३
४ राजपिंग कल्प.
पिंड एटले सेनापति, पुरोहित, नगरशेठ, मंत्री अने सार्थवाह ए पांचेनी साथे राज्यनुं पालन करनार मूर्धा जिषिक्त जे राजा तेनो पिंग जे श्रशन, पान, खादिम, खादिम, वस्त्र, पात्र, कांवल ने रजोहरण ए या प्रकारनो कदेवाय ते. ते पहेला अने बेला तीर्थंकरोना साधुर्जने राजा पासे जतां श्रावतां सामंत विगेरेथी स्वाध्यायनो नाश थवानो संभव बे, वली साधुर्जना अपशुकन गणाय तेथी शरीरने व्याघात थवानो संजव बे तेमज खाद्यनो लोन, लघुता छाने निंदा विगेरे दोष थवानो पण संजव बे, तेथी ते राजपिंगनो निषेध करेलो बे. बावीश तीर्थंकरोना साधु हमेशां सरल अने प्राइ बे तेथी तेमने उ
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कल्प०
HILDCILMCISCAMGARHGAMCHARIRALAKARSACRORANGO
है पर कहेला दोषनो अनाव ने माटे तेमने राजपिंक कल्पे ले. या चोथो राजपिंक कल्प जाणवो. सुवो
५ कृतिकर्म कल्प. । कृतिकर्म एटले वंदना, ते बे प्रकारनी दे. अन्युत्थान श्रने छादशावर्त ते वंदना सर्व तीर्थंकरोनां ।
तीर्थमां साधुए परस्पर दीदापर्यायथी करवी. साध्वी कदि चिरकालनी दीक्षित होय तोपण | है तेनाथी नवो दीक्षित साधु वंद्य बे, कारण के धर्म पुरुषप्रधान दे.ए पांचमो कृतिकर्म कल्प जाणवो.५४
६ व्रत कल्प. | व्रत एटले महावतो ते बावीश तीर्थंकरोना साधुने चार होय बे, कारण के ते एम जाणे । के अपरिगृहीत एवी स्त्री साथे लोग थवानो असंलव ने तेथी स्त्री पण परिग्रह डे एटले परिग्रह पच्चरकाण करवायी स्त्रीनु पञ्चकाण थर चुक्युंज. पहेला अने बेला तीर्थकरोना साधुने । तो तेवा ज्ञाननो अनाव डे तेथी ते ने पांच महाव्रतो . ए हो व्रत कल्प. ६
ज्येष्ठ कल्प. | ज्येष्ठ एटले मोटानो कल्प, अर्थात् वृद्ध अने लघुनो व्यवहार. तेमा पहेला अने नेहा तीर्थंकरोना ।
साधुउने स्थापनाथी आरंजी दीक्षापर्याय गणाय ने अने बाकीना तीर्थंकरोना साधुने अतिचार | है वगरनुं चारित्रहोवाथी दीक्षाना दिवसथीज पिता अने पुत्र, माता अने उहिता, राजा अने मंत्री, शेव
अने वणिकपुत्र विगेरे जो साथे दीक्षा ले तो तेए वृक्ष लघुपणे केम वर्तवू ? ते कहे . जो पिता है विगेरे वृद्धोधने पुत्र विगेरे लघु षट् जीवनिकाय, अध्ययन अने योगोछहन-योग वेहेवा विगेरे क्रि-|| 8 याथी जो साथे योग्यताने प्राप्त थया होय तो तेउने अनुक्रमथीज स्थापित करवा. जो कदि तेमां थोडं है अंतर होय तो जरा विलंबथी पण पिता विगेरेने प्रथम स्थापित करवा. जो तेम न करे तो पिता ॥२॥ विगेरेने वृद्धपणाने लीधे पुत्रादिकनी उपर अप्रीति थाय. जो कदि पुत्रादिक बुझिवाला होय अने पि-|| तादिक बुझिवगरना होय अने तेथी तेउमां मोटुं अंतर (तफावत) होय तो ते वृक्ष पितादिकने था| ||
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प्रमाणे प्रतिबोधवा- "हे महानाग, तमारो पुत्र बुद्धिवान् बतां पण बीजा घणा साधुथी लघु थर इजशे अने तमारो पुत्र ज्येष्ठ वृक्ष गणाय तेमां तमारं पण गौरव डे". या प्रमाणे विज्ञप्ति करवाथी जो 3|| है ते पितादि अनुज्ञा आपे तो पुत्रादिने प्रथम स्थापवा, अने जो अनुज्ञा न आपे तो स्थापवा नहीं. ए सातमो ज्येष्ठ कल्प जाणवो.
प्रतिक्रमण कल्प. ह अतिचार लागे वा न लागे पण श्रीषन अने वीर प्रजुना साधुरीने बंने काल प्रतिक्रमण अवश्य दकर जोश्ए, अने बाकीना तीर्थंकरोना मुनि ने दोष-अतिचार लागे त्यारेज प्रतिक्रमण करवं जोश-18| है ए, ते सिवाय नहीं. तेमां पण मध्यम तीर्थकरोना यतिने कारण होय तोज देवसिक (देवसी) अने रात्रिक (राई) प्रतिक्रमण प्राये करीने करवा. ते सिवाय बीजां पाक्षिक, चातुर्मासिक अने सांव-है रिक प्रतिक्रमण करवानी जरूर नथी. एवीरीते श्राठमो प्रतिक्रमण कल्प जाणवो.
एमास कल्प. है। पहेला अने नेहा तीर्थंकरोना मुनिउँने मास कल्पनी मर्यादा नियमथी . ते उकाल, अशक्ति अने र
रोग विगेरे कारणो होय तो शहेरना परामां, बीजा पामामां अने ते वसति बीजा खुणामां परा-1 वर्त्त-फेरवणी करीने पण सत्य करवी जोशए; परंतु शेष काले एक मासथी अधिक रहे नहीं, कारण के तेथी प्रतिबंध, लघुता विगेरे घणा दोष लागवानो संजव बे, पण मध्यम तीर्थकरोना मुनि सरल अने प्राज्ञ होवाथी तेमनामां उपर कहेला दोषोनो बजावडे तेथी ते ने मास कल्प नियमथी नश्री.18 ते यति तो पूर्व कोटि सुधी एक स्थले रहे अने कोश् कारणने लश्ने मासनी अंदर पण विहार करे हूँ जे. एवी रीते आ नवमो मास कल्प जाणवो. ए
१० पर्युषणा कल्प. पर्युषणा एटले परि नामे समस्तपणे उषणा एटले रहे, ते पर्युषणा कहेवाय. तेमां पर्युषणा शब्द
-OSARIPOSASTOISSA30*30*
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सुबोध
कल्प० वडे करीने समस्तपणे रहे, ते अने वार्षिक पर्व बने पण कहेवाय जे. तेमां ते वार्षिक पर्व नाउपद मासनी
शुक्ल पंचमीए अने कालकसूरि थया पनी लाउपद शुक्ल चतुर्थीएज थाय जे. समस्तपणाथी रहेवा-है। ॥३॥
रूप जे पर्युषणा कल्पनेते बे प्रकारनो. सालंबन श्रने निरालंबन. तेमां जे निरालंबन एटले कारण
नाअनाववालो पर्युषणा कल्प ते जघन्य उत्कृष्ट एवा बेन्नेदवालो . तेमां जघन्य सांवत्सरिक प्रतिक्रम-15 रणथी मामीने कार्तिक चतुर्मासना प्रतिक्रमण सुधी सीत्तेर दिवसना परिमाणनो ,अने उत्कृष्ट प-18
Kषणाकाल चार मासनोबे. आबे प्रकारनो निरालंबन पर्युषणा काल स्थविरकल्पिटनोबेशने जि-त नकल्पिउने तो एक निरालंबन चातुर्मासिकज कल्प . अर्थात् कोश् कारणने लश्ने सालंबन थाय. हवे है
जे क्षेत्रमा मास कल्प को होय, तेज देत्रमा चतुर्मास करवाथी अथवा चतुर्मास कर्या पठी मास ६ कल्प करवाथी मासनो कल्प थाय ते पण स्थविरकल्पि-नेज उचित ने अने पांच पांच दिवसोनो वधा-131 रोकरी गृहस्थोने जणाववान जणाववानो अधिकार विस्तारथीअहीं लख्यो नथी, कारण के संघनी आज्ञाथी ते विधि हाल उछेद थ गयो , तेमज ग्रंथविस्तारना जयथी अत्रे कहेलो नथी. जो ते विषे है विशेष जाणवू होय तो कल्पकिरणावली विगेरे टीकाठमां जो खेवू. एवी रीते सर्व ठेकाणे जाणी लेवु. P एवी रीते जेनुं स्वरूप वर्णव्यु ले एवो पर्युषणा कल्प प्रथम अने चरम तीर्थंकरोनां तीर्थमां नियत ने अने | वाकीना बावीश तीर्थंकरोनां तीर्थमां अनियत , कारण के तेउना साधुन तो दोषनो अनाव होय तो है एक क्षेत्रमा देश उणी पूर्व कोटि सुधी रहे , अने जो दोष जोवामां आवे तो एक मास कल्प सुधी पण रहेता नश्री. एवीरीते महाविदेह क्षेत्रमा पण वावीश तीर्थकरोनी जेम सर्व तीर्थंकरोना कल्पनी व्य- वस्था जाणी बेवी. एवीरीते दशमो कल्प जाणवो ॥१॥ उपर कहेला ए दश कल्पो श्रीझपन प्रजु
तथा श्रीवर्धमान स्वामीनां तीर्थमां नियत अने बीजाबावीश तीर्थकरोनां तीर्थमां अचेलक, औद्देहै शिक, प्रतिक्रमण, राजपिंड, मास अने पर्युषणा ए उ कल्पो अनियत जे. बाकीना शय्यातर, चतुर्बत,
पुरुषज्येष्ठ, कृतिकर्म ए चार कल्पो नियतज .एवी रीते ते दश कल्पोनो नियत अने अनियत वि
॥३॥
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नाग जाणवो. अहीं कोई शंका करे के सर्वने साधवा योग्य मोक्षमार्ग एकज दे, तो तेमां पहेला,
बेला भने बाकीना बावीश तीर्थंकरोना साधुरीमा श्राचारनो नेद केम ले ? तेना समाधानमा क-18 टू के ते नेद थवानुं कारण जीवविशेष बे, ते कहे बे-श्रीषन प्रजुना तीर्थना जीवो सरल हूँ स्वजावी अने जम बे, तेथी ते ने धर्मनो बोध थवो उर्लन , कारण के तेमनामां जडपणुं , श्रने श्रीवीर प्रजुना तीर्थना जीवो ( साधु ) वक्र अने जम बे, तेथी तेमने धर्मनुं पालन पुष्कर ने, अने अजितनाथ विगेरे बावीश तीर्थंकरोना साधुऊने धर्मनो बोध अने तेनुं पालवू था बंने 8 ६ पण सकर ( सहेलां), कारण के ते सरल अने प्राज्ञ स्वजावी बे, तेथी तेमना श्राचारना बे तूनेद थया ले. अहीं तेना दृष्टांतो बतावे - | पहेला तीर्थंकरना केटलाएक मुनि बहारनी नूमिश्री गुरु पासे श्राव्या, त्यारे गुरुए पूज्यु के,हे मुनि, तमो बाटली वधी वेला क्यां रोकाया ? मुनिए कडं, हे स्वामी, श्रमो एक नृत्य करता नटने
जोवामां रोकाया हता, त्यारे गुरुए कह्यु के, नटना नृत्यने जोवं, ते साधुने कल्पे नहीं, त्यारे तेए ६ (बहु सारु) एम कही ते वात अंगीकार करी. वली एक वखते तेज साधु चिरकाले उपाश्रयमां श्राव्या, है त्यारे गुरुए पण पूर्वनी जेम पूज्युं, एटले ते बोल्या के, हे प्रजु, अमो एक नृत्य करती नटीने जोवाने ।
उन्ना हता, त्यारे गुरुमहाराज बोख्या, हे महानाग, ते वखते में तमने नट जोवानो निषेध को हतो. ज्यारे नटनो निषेध थयो तो पठी नटी जोवानो निषेध थश्चुक्योज. पनी तेए गुरुने विज्ञप्ति करी के, स्वामी, ए वात अमोए जाणी नहीं, हवेधी पुनः तेम नहीं करीए. श्रही ते प्रथम तीर्थकरना सा-हूँ|
धु जमहोवाथी नटनो निषेध करवाथी नटीनो निषेध थश् चुक्यो एम ते जाणी शक्या नहीं अने है। है राजु खनावी होवाश्री तेमणे गुरुने सरल उत्तर श्रापी दीधो. एवी रीते आ प्रथम दृष्टांत जाणवो. का अहीं बीजो पण दृष्टांत , को कुंकण देशना वणिके वृद्धावस्थामां दीक्षा लीधी हती. एक वखते हैं। ते वणिक र्यापथिकी कायोत्सर्ग करी चिरकाल रोकाइ रह्यो. ज्यारे कायोत्सर्ग पारी आव्यो एटले
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कल्प
सुबोन
॥४॥
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गुरुए पूज्यु के, आटलो बधो दीर्घ कालनो कायोत्सर्ग करी तें शुं चिंतव्यु ? ते बोल्यो, स्वामी ! जीवदया हूँ चितवी. गुरुए पूज्यु, शी रीते ? त्यारे तेणे कडं के, पूर्वे गृहस्थावस्थामा देत्रमा वृद जंमेली वावेला । घणां धान्य थयां हतां. हमणां मारा पुत्रो जो निश्चित थश्ने प्रथम वृदोने मेलशे नहीं तो पड़ी है धान्य नहीं थवाथी ते बीचारानुं शुं थशे ! था प्रमाणे सरलपणाथी पोतानो अभिप्राय यथार्थपणे निवेदन को एटले गुरुए कह्यु, “महानाग, तें ए इष्ट ध्यान कयु, मुनिने एम चिंतवqअयुक्त जे." गुरुए था प्रमाणे कहेवाथी ते शिष्ये मिथ्या उष्कृत श्राप्यु. ए बीजो दृष्टांत. तेवी रीते श्रीवीर है प्रजुना मुनि विषे बे दृष्टांतो जे. जेमके, केटलाएक वीर प्रजुना मुनि को एक नटने नृत्य करतो जो गुरु पासे श्राव्या त्यारे गुरुए पूज्युं अने पनी नट जोवानो निषेध कर्यो. पुनः एक वार | ते कोइ नटीनुं नृत्य जोश्ने श्राव्या त्यारे गुरुए पूज्युं एटले ते वक्रपणे जुदा जुदा उत्तर श्रापवा 8 लाग्या. ज्यारे गुरुए चोकसपणे पूज्युं त्यारे तेए साचे साचं जणाव्यु पनी गुरुए उपको आप्यो एटले है ते गुरुने सामो उपालंज करवा लाग्या के, ज्यारे तमोए अमने नट जोवानो निषेध कर्यो ते समये है
नटी जोवानो निषेध केम न कर्यो ? आ दोष तमारोज डे, अमो शुं जाणीए ? ए प्रथम दृष्टांत. है। कोश्व्यापारीनो पुत्र हतो. तेनो पिता तेने घणीवार एवी शिक्षा आपतो के, 'पिता विगेरे वडिलोनी
सामे बोलवू नहीं.' पितानी आ शिदा तेणे वक्रताथी मनमां धारण करी राखी. एक वखते घरना हूँ सर्वे स्वजन बहार गया हता, ते लाग जोश्ते पुत्रे विचार्यु के, वारंवार शिदा आपनार पिताने आज हुँ शिक्षा आपुं.श्राचिंतवी ते कमाम बंध करीअंदर रह्यो. ज्यारे पिता विगेरे पाठा आव्या त्यारे कमाम १ उघामवाने घणा पोकार कर्या तोपण ते पुत्रे जवाब आप्यो नहीं तेमज कमाम उघाड्यां नहीं. पली पिता निंत उलंगी गृहमा पेठो एटले ते पुत्रने हसतो जोयो. ज्यारे उपालंन आप्यो एटले तेणे
कडं के, तमेज शिखव्यु ले के वृक्ष वझिलोनी सामे उत्तर न श्रापवो. श्रा बीजो दृष्टांत २. हवे अजित । है विगेरे बावीश तीर्थंकरोना मुनि शजु अने प्राज्ञ होय ने तेनो दृष्टांत आपे . जेम केटलाएक
॥
४॥
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अजितनाथ प्रजुना मुनि कोइ नटने जोइ चिरकाले श्राव्या. गुंरुए पूज्यं एटले ते ए यथार्थ कयुं. पढी गुरुए तेम करवाने निषेध कर्यो. कोश्वार पाठा तेज मुनि बहार गया, त्यां ते नटीने नृत्य करती जोइ प्राइ होवाथी विचार करवा लाग्या के, आपणने गुरुए राग थवामां हेतुरूप जाणी नट जोवानुं निषेध्युं वे तो या नटी तो स्त्री होवाने लीधे राग थवानुं अत्यंत कारणरूप बे, तो तेथी तेनो सर्वथा निषेधज होवो जोइए. एवं विचारीने ते ए नटीना नृत्यनुं अवलोकन कर्तुं । नहीं. यहीं शंका करे के, त्यारे तो रुजु अने प्राज्ञ एवा बावीश तीर्थंकरोना यतिजनेज धर्म हो, रुजु छाने जम एवा प्रथम तीर्थंकरना मुनिर्जुने क्यांथी धर्म होय? कारण के तेने बोध नथी, तेमां वली वक्र ने जम एवा श्रीवीर प्रजुना मुनिर्जने तो सर्वथा धर्मनोज श्राव वे, एवी शंका करवी नहीं, कारण के प्रथम तीर्थंकरना यतिउने जो के जमपणाने लीधे स्खलना पामवानो संजव वे तथापि तेज॑नो जाव शुद्ध होवाथी धर्म प्राप्त थाय बे. तेमज वीर प्रजुना मुनि वक्र छाने जड होवाथी ते मनो जाव रुजु प्राज्ञनी अपेक्षाए शुद्ध न होय तथापि सर्वथा धर्मज नथी एम कहेवाय नहीं, कारण तेम कहेवामां महान् दोष लागे े. ते विषे कयुं वे के, धर्म नथी, सामायिक नयी छाने व्रत नथी तेवा पुरुषने श्रमण संघे संघनी बहार करवो. १ जे पर्युषणा कल्प नियतपणे रहेवानो सीत्तेर दिवसना प्रमानो कह्यो बे, ते पण कारणने जावेज जाणवो जो कोइ कारण होय तो चतुर्मासमां पण | विहार करवो कल्पे बे. ते विषे कयुं वे के, " शिव थाय तेम होय, आहार मलतो न होय धने राजाथी के रोगथी पराजव थतो होय, तो चतुर्मासमां पण बीजे विहार करवो कल्पे वे." स्थं मिल स्थान सारुं न होय, उपाश्रयमां जीवांत बहु होय, कुंथवा थया होय, अग्नि लाग्यो होय छाने सर्प रहेतो होय तो त्यांथी बीजे विहार करवो कल्पे वे. २ वली जो श्रावां कारणो होय तो चतुर्मास वीत्या पठी पण रहेवुं कल्पे वे. ते या प्रमाणे- "वर्षाद रहे तो न होय छाने मार्ग कादवथी नरेलो होय तेथी कार्त्तिक पूर्णिमानो अतिक्रम थाय तोपण उत्तम मुनि रहे बे. " ३ वली उपर कहेला
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कल्प०
॥५॥
शिव विगेरे दोष न होय तोपण संयमनो निर्वाह करवाने क्षेत्रना गुणोनी अन्वेषणा करवी. क्षेत्र जघन्य, उत्कृष्ट अने मध्यम एवा त्रण प्रकारनुं वे. तेमां जे चार गुणोथी युक्त होय ते जघन्य क| देवाय ते चार गुणो या प्रमाणे बे-ज्यां विहारभूमि एटले १ जिनप्रासाद होय, २ ज्यां स्थंमिल (वल्ले जवानुं) शुद्ध, निर्जीव छाने कोइ जोवे नहीं तेवुं होय, ३ ज्यां स्वाध्याय - सझाय करवानी भूमि सुलन एटले अस्वाध्यायश्री रहित होय, अने ४ ज्यां साधुर्जने थाहार मलवो सुलन होय. जे तेर गुपोथी युक्त होय ते उत्कृष्ट कहेवाय. ते गुणो या प्रमाणे बे- १ ज्यां घणो कादव न होय, २ ज्यां घणा संमूर्तिम जीवो उद्भव थता न होय, ३ ज्यां वल्लानुं स्थान निर्दोष होय, ४ ज्यां रहेवानो उपाश्रय स्त्रीना संसर्ग विगेरेथी रहित होय, ५ ज्यां गोरस घणो मले तेम होय, ६ ज्यां लोकसमूह महान् अने नजिक होय, ज्यां वैद्यो नजिक होय, ज्यां श्रौषधो सुलन होय, ए ज्यां गृहस्थोनां घर कुटुंबवाल ने धन धान्यादिकथी पूर्ण होय, १० ज्यां राजा जडिक होय, ११ ज्यां ब्राह्मणादिकथी मुनि
नुं अपमान न थतुं होय, १२ ज्यां निका स्टेलाइथी मलती होय, अने १३ ज्यां स्वाध्याय शुद्ध रीते यतो होय. ते तेर गुणोथी युक्त उत्कृष्ट क्षेत्र ठे. पूर्वे कडेला चार गुणोथी अधिक, पांचथी बधा गुणोए युक्त अने तेरमा गुणथी ऊएं एटले वारमा गुण पर्यंत एवं मध्यम क्षेत्र बे. तेथी प्रथम उत्कृष्टा क्षेत्रमां, त्यां जो तेवुं न होय तो मध्यम क्षेत्रमां त्यां पण तेवुंन होय तो जघन्य क्षेत्रमां श्रने हालमां तो गुरुए था|ज्ञा करेला क्षेत्रमां साधुर्जए पर्युषणा कल्प करवो. उपर दर्शावेलो या दश प्रकारनो कल्प जो दोषना - जावे कर्यो होय तो त्रीजा वैद्यना औषधनी जेम हितकारक थाय छे. ते विषे या प्रमाणे कथा बे- कोइ राजाए पोताना पुत्रने जविष्यमां रोग न थाय तेवी चिकित्सा करवाने त्रण वैद्योने बोलाव्या. तेमां प्रथम वैद्य बोल्यो- मारुं औषध जो रोग होय तो तेने दणे ने जो रोग न होय तो दोष प्र कट करे बे. राजाए कयुं, सुतेला सर्पने उगडवा जेवा यावा औषधथी सर्यु. वीजो वैद्य बोल्योमारुं औषध जो रोग होय तो तेने हणे बे घने रोग न होय तो गुण के दोष करतुं नथी. राजाए
सुबो
॥५॥
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कद्यु, अग्निमां होम्या जेवू श्रावू औषध शा कामर्नु ? त्रीजो वैद्य बोल्यो-मारं औषध जो शरीरे रोग
होय तो तेने हणे, अने जो रोग न होय तो शरीरमा सौंदर्य, वीर्य श्रने तुष्टि पुष्टि करे . राजाए ॥ दूयं के श्रा औषध सारं बे. तेवी रीते था कल्प पण जो दोष होय तो दोषनो नाश करे अने | है दोषनो अनाव होय तो धर्म, पोषण करे ने तेथी ए प्राप्त थयेला पर्युषणा पर्वमां मंगल निमित्त है। पांच दिवस सुधी कल्पसूत्र वांचवू. जेम देवताउँमां इंज, ताराठमां चंड, न्यायने विषे प्रवीण पुरुषोमां राम, स्वरूपवंतमां काम, रूपवती स्त्रीमां रंजा, वाजित्रोमां नंजा, हस्तिठमां ऐरावण,
साहसिकमां रावण, बुद्धिमान्मां अजय कुमार, तीर्थोमांशत्रुजय, गुणोमां विनय, धनुर्धारीमा अर्जुन, 81 हूँ मंत्रोमां नवकार, अने वृक्षोमां थाम्रवृक्ष ले तेम ते कल्पसूत्र सर्व शास्त्रोमां शिरोमणिपणाने धारण हूँ है करे . ते विष कडं ने के, जेम मंत्रोमां परमेष्ठी मंत्र, तीर्थोमां शत्रुजय, दानमां जीवदया, गुणोमा । विनय, व्रतोमांब्रह्मचर्य, नियममां संतोष, तपमां शमता अने तत्वमा सम्ग्यदर्शन तेम श्री सर्वज्ञ प्रजुए कहेला सर्व पर्वोमां श्रीवार्षिक पर्व (पर्युषणा) उत्कृष्ट ने. १ वली कवू डे के,अस्तथी बीजो कोइ ।। देव नथी, मुक्तिश्री बीजं कोई पद नथी, श्रीशत्रुजयश्री बीजं तीर्थ नथी अने श्रीकल्पसूत्रथी बीजं । को शास्त्र नथी.२ था कल्पसूत्र सादात् कल्पवृक्षज बे. ते आनुपूर्वीना क्रम वगर कहेवू दे, तेथी है। तेमां कहेवू श्रीवीर प्रजुनुं चरित्र तेनुं बीज , श्रीपार्श्वनाथनुं चरित्र अंकुर , श्रीनेमिचरित्र है। स्कंध (थमीश्रा) , श्री ऋषनचरित्र शाखाउँनो समूह बे, स्थविरावलीरूप पुष्पो ने, सामाचारीनुं । झान ते सुगंध डे अने मोक्षप्राप्ति ए कल्पसूत्ररूपी कल्पवृदनुं फल . वली कडं जे के, “वांच-18 वाथी, तेमां सहाय करवाथी अने सर्व श्रदरो श्रवण करवाथी विधिपूर्वक श्राराधेनुं था कल्पसूत्र हूँ श्राव नवनी अंदर मोददायक थाय बे.” १ जे श्रीजिनशासन प्रनावना अने पूजामां परायण था। एकाग्र चित्तथी श्रा कल्पसूत्रने एकवीश वार सांजले बे ते हे गौतम, श्रा संसारसागरने तरी जाय /. २ आ प्रमाणे श्री कल्पसूत्रनो महिमा सांजली कष्टोथी अने धननोव्यय करवाथी साध्य एवां 8
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कल्प०
॥ ६॥
SKS
तपस्या, पूजा ने प्रजावना विगेरे धर्मनां कार्यामां श्रालस्य करवुन जोइए, कारण के उपर कहेली तपस्यादि सर्व सामग्रीए युक्त एवुंज कल्पसूत्रनुं श्रवण वांबित फलने थापनारुं बे. जेम बीज पण जो तेनी साथे वृष्टि, वायु विगेरेनी सामग्री होय तोज फलनी सिद्धि करवामां समर्थ थाय वे, ते सिवाय यतुं नथी. एवी रीते श्रा श्रीकल्पसूत्र पण देव गुंरुनी पूजा, प्रजावना अने साधर्मिकनी जक्ति प्रमुख सामग्री साथै श्रवण करवायीज यथार्थ फलना हेतुरूप याय डे. नहीं तो " सर्व जिनवरोमां श्रेष्ठ एवा श्रीवर्द्धमान स्वामीने करेलो एक पण नमस्कार पुरुष श्रथवा स्त्रीने या संसारसागरमांथी तारे बे.” आवुं वचन सांजली प्रयासथी साध्य एवा कल्पसूत्रना श्रवणमां पण आलस्य यर जाय.
हथकर्त्ता पुरुषा विश्वास उपरथी तेनां वचननो विश्वास द्यावे एवो नियम बे तेथी च्या कल्पसूत्रकर्त्ताने यहीं जणाववा जोइए. ते चौद पूर्वने जाणनारा युगप्रधान श्रीनद्रबाहु स्वामी बे, तेर्जए दशाश्रुतस्कंधना श्रावमा अध्ययनपणाथी प्रसिद्ध प्रत्याख्यानप्रवाद नामना नवमा पूर्वमांथी उद्धार करी या कल्पसूत्र रचेलुं बे. ते चौद पूर्वोनुं प्रमाण या प्रमाणे वे - प्रथम पूर्व एक हस्तिना प्रमा एवाला मषीना पुंजश्री लखाय तेवुं बे. बीजुं पूर्व वे हस्तिना प्रमाणना मषीना ढगलाथी लखाय तेवुं बे. त्रीजुं चार हस्तिप्रमाण मषीना पुंजथी लखाय तेवुं बे. चोथुं श्राव हस्तिप्रमाण मषीपुंजथी लखाय तेवुं बे. पांचमुं सोल हस्तिप्रमाण मषीपुंजयी लखाय तेवुं ठे. बहुं वत्रीश हस्तिप्रमाण मषीपुंजथी लखाय तेवुं बे. सातमुं चौसठ हस्तिप्रमाण मषी पुंजयी लखाय तेतुं बे. यामुं बसो ने श्रय्यावीश हस्तिप्रमाण मषी पुंजी लखाय तेवुं वे. नवसुं बसो ने उप्पन हस्तिप्रमाणनुं वे. दशमं पांचसो बार हस्तिउना प्रमाणनुं बे. अग्यारमुं एक हजार ने चोवीश द स्तिर्जना प्रमाणनुं वे. बारमुं बे हजार ने अमतालीश हस्तिना प्रमाणनुं बे. तेरमुं चार हजार ने बन्नुं हस्तिर्जना प्रमाणनुं बे. चौदमुं श्राव हजार एक सो ने वाएं दस्तिर्जना प्रमाणनुं वे. एकंदर सर्वे मली चौद पूर्वो सोल हजार त्रणसो ने त्र्याशी हस्तिना
सुवो०
॥ ६॥
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COCACANCLUCRACH
प्रमाणवाला मषी पुंजोथी लखी शकाय तेटलां .तेनी स्थापना, यंत्र श्राप्रमाणे , तेथीए महापुरुषोए रचित होवाथी मानवा योग्य वे अने तेमां गंजीर अर्थ रहेलो बे.
कथु बे के " जो सर्व नदीउनी रेती एकठी करीए अने सर्व समुसोनुं जल एकत्र करीए तेथी|8| अनंतगणो एक सूत्रनो अर्थ थाय .” १ मुखमां सहस्र जिह्वा होय अने जो हृदयमां केवलझान होय तोपण मनुष्योश्रीश्रा कल्पसूत्र-माहात्म्य कही शकायतेम नथी. ते कल्पसूत्रने वांचवामां श्रने सांजलवामां मुख्य रीते साधु ने साध्वी अधिकारी जे. तेमां पण कालथी रात्रिने विषे कालगणनादि विधिने करनारा साधुउने वाचन अने श्रवण बंने योग्य ने अने साध्वीनने तो निशीथ चूर्णी विगेरेमा कहेला विधि वडे दिवसे पण योग्य वे.श्रीवीर प्रजुना निर्वाण पडी नवसोने एंशी वर्षअतिक्रम थतांबीजा मतप्रमाणे नवसोनेत्राणुं वर्ष अतिक्रम थतां आनंदपुरमा पुत्रना मृत्युथी दुःखी थयेला ध्रुवसेन राजाना मनने समाधान करवाने या कल्पसूत्र मोटा महोत्सव साथे सन्नानी समक्ष वांचवा श्रारंज्यु हतुं,त्यार-2 थी मामीने चतुर्विध संघ तेनाश्रवणनो अधिकारी थयो पण वांचवाने अधिकारी तो मात्रयोग वेदेनार साधु जे.या वार्षिक पर्वमां कल्पसूत्रना श्रवणनी जेम था पांच कार्य पण अवश्य करवा योग्य . ते पाहू प्रमाणे-पहेलु कार्य चैत्यपरिपाटी एटले प्रत्येक चैत्ये वंदना अर्थे फरवू,बीगँ कार्य सर्व साधुनने वंदना करवी, त्रीगँ कार्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करवू,चोथु कार्य परस्पर साधर्मी लाउने खमावतुं अने है पांचमुं कार्य अष्टम तप करवं, ए पांच कार्यों पण कल्पसूत्रना श्रवणनी जेम इनित पदार्थने आप-8
नारां , तेमज अवश्य कर्त्तव्य , वली श्रीजिन जगवंते ते करवानी थाझा करी जे एम जाणवू. तेहै मां जे अहम तप ने ते त्रण उपवासथी बने , ते तप महा फलनुं कारण, ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप
त्रण रत्नने आपनार,त्रण शख्यने उन्मूलन करनार,त्रण जन्मने पवित्र करनार, मन, वचन श्रने कायाना दोषने शोषण करनार अने त्रण जगत्मा श्रेष्ठ पदने पमामनार तेथी मोदपदना अभिलाषी एवा ६ नविप्राणीए ते अष्टम तप अवश्य करवा योग्य ते उपर नागकेतुनो दृष्टांत बेः-चंतकांता नामे नगरी
ALCOHORICALCANADAM
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॥७॥
कल्प० हती, तेमां विजयसेन नामे राजा हतो. ते नगरीमा श्रीकांत नामे एक व्यापारी रहेतो हतो, तेने ६ सुबो०
श्रीसखी नामे स्त्री हती. ते स्त्रीनी बहु प्रार्थनाथी एक पुत्रनो प्रसव थयो हतो. ते पुत्र बालक हतो || तेवामां पर्युषणा पर्व नजीक आव्युं ते वखते तेना कुटुंबमां अष्टम तपनी वार्ता थती हती, ते सांजली |
जातिस्मरण थयु अने स्तनपान करनारा पण ते बालके अष्टम तप कयु. ज्यारे अष्टम तप कर्यु एटले || ६ स्तनपानने नहीं करता ते बालकने वासी श्रयेला मालतीना पुष्पनी जेम ग्लानि पामेलो जो मा-8 है तापिता अनेक उपाय करवा लाग्या अनुक्रमे ते बालक मूर्ग पाम्यो एटले तेने मृत्युपामेलो जाणी ते-हूँ
नां वजन, सगां, कुटुंबीए तेने नूमि उपर नाख्यो, तेवामां राजा विजयसेने ते पुत्रने अने तेनाज उःखथी तेना पिताने मृत्यु पामेला जाणी तेनुं अव्य ग्रहण करवा सुनटोने मोकल्या. या तरफ धरणेउनुं आसन ते बालकना अष्टम तपना प्रजावधी कंपित थयु. तत्काल तेनुं वृत्तांत जाणी लश्नूमि उपर : पडेला ते बालकने अमृतना बांटाश्री आश्वासन करी ब्राह्मण- रूप लश् व्यने ग्रहण करता ते राजाना सुनटोने अटकाव्या. ते सांजली राजा पण सत्वर त्यां श्राव्यो अने कह्यु, हे ब्राह्मण, जे अपुत्र है। मृत्यु पामे तेना ऽव्यनुं ग्रहण अमे करीए बीए एपरंपराधी बे, तो ते तुं केम अटकावे ? ब्राह्मण-2 रूपी धरणे बोल्यो, राजन्,आनो पुत्र जीवे . ते सांजलतांज राजा प्रमुख बोली उठ्या के,ते केवी रीते
ने क्यां? पबीतेणे जमिमांथी साक्षातनिधिनी जेम ते बालकने जीवतो बताव्यो.सर्वे विस्मय पामी पूबवा लाग्या के,तमे कोण डो? अने आ शुं? त्यारे धरणे बोल्यो-टुं धरणे नामे नागराज ढुं,
आ बालके अष्टम तप कर्यु हतुं, तेथी ए महात्मानी सहाय करवाने हुं आवेलो ढुं. राजा प्रमुखे कडं, . स्वामी, मात्र जन्म पामतावेंतज तेणे अष्टम तपशी रीते कर्यु ? धरणे बोल्यो, राजन् , या बालक पूर्वनवे कोइ वणिकपुत्र हतो, बाख्यवयमांज तेनी माता मृत्यु पामी हती, तेने एक अपर माता हती,18 ते तेने अति पीमा आपती हती. तेथी कंटाली तेणे पोताना मित्रने ते अपर मातार्नुःख जणाव्यु. मित्रे तेने एवो उपदेश कर्यों के, तें पूर्वनवे तप कर्यु नथी, तेथीज श्रावो परानव पामे बे. ते पनी ते
MCGMCCORRECIRCCAMROCCAUSALAMSANSADS
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GAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAADA
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पा.७
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राजाना माएसो
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राजा.
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ब्राह्माना रूपेंद्र
- चित्र १
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ORAICHAPICHAGHIHIGHSCHAARS*****
यथाशक्ति तप करवाने तैयार अयो. एक वखते 'हुं श्रावता पर्युषणा पर्वमा अष्टम तप करीश'|| एवो मनमा निश्चय करी ते तृणनी कुंपमीमां सुश् गयो हतो. ते अवसर मेलवी तेनी 81 अपर माताए नजीक रहेला श्रग्निनो एक तणखो तेमां नाख्यो. एटले ते कुंपमी बली जतां साथे ते 8 पण बलीने मृत्यु पाम्यो. अष्टम तपना ध्यानथी ते था श्रीकांतश्रेष्ठीनो पुत्र थयो . तेथी करीने एणे है पूर्वनवे चिंतवेलु अष्टम तप हमणां बाल्यवयमा कयु ३. श्रा महापुरुष लघुकर्मी हो था नवमांज P मुक्तिगामी थशे. तेथी ते यत्नथी पालन करवा योग्य जे. एथी तमने मोटो उपकार थशे. श्रा ६ प्रमाणे कही धरणे तेना कंठमां पोतानो हार नाखी स्वस्थाने चाल्यो गयो. है पड़ी खजनोए श्रावी श्रीकांत शेग्नुं मृतकार्य-उत्तरकार्यु कयुअने तेना पुत्रनुनागकेतु एवं नाम पाड्यु. है।
अनुक्रमे ते बाल्यवयथी जितेंघिय अने परम श्रावक थयो. एक वखते विजयसेन राजाए कोश् चोर न । हतो ते उतां तेने चोर-कलंक लगामीमारी नाख्यो,थाथी ते व्यंतर थयो. ते व्यंतरेबधा नगरनो विघात करवाने एक मोटी शिला रची. वली राजाने पगना प्रहारथी रुधिरनुं वमन करावी सिंहासन
उपरथी पृथ्वी उपर पाडी नाख्यो.था जो नागकेतुए विचार्यु के, हुँ जीवतांथा संघ तथा प्रासादनोस् है विनाश थाय ते केम जोयुं जाय ? श्रावं विचारी प्रासादना शिखर उपर चमी तेणे ते शिलाने हाथमां है। इधरी राखी. ते पड़ी ते व्यंतर पण तेना तपनी शक्ति सहन करी शक्यो नहीं एटंले ते शिलाने के
संहारी नागकेतुने नमी पड्यो.तेना वचनथी राजाने पण उपवरहित को. एक वखते ते नागकेतु जिनेउपूजा करतो हतो तेवामां पुष्पनी अंदर रहेलो सर्प तेने मश्यो, तथापिते अव्यग्रपणे नावना-16 है रूढ थयो तेथी केवलज्ञानने प्राप्त थयो. पठी शासनदेवताए तेने मुनिनो वेष अर्पण कर्यो अने ते है। चिरकाल विहार करवा लाग्यो. श्रा प्रमाणे नागकेतुनी कथा सांजली बीजाए पण अष्टम तप । करवामां यत्न करवो जोश्ए. इति नागकेतु कथा. हवे था कल्पसूत्रमांत्रण बाबत मुख्यपणे वाचवानी नेते विषे पुरिमचरिमा ए गाथा बेतेनी व्याख्या
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कल्प
सुबोग
॥
॥
USAGAROGRACROCRACCORRECOCCAMOCRACRI
श्रा प्रमाणे -पुरिमचरिमाणत्ति एटले श्रीषन अने वीर प्रजुनो आ कल्प एटले याचार के वृष्टि था के न थाउँ पण अवश्य करीने पर्युषणा पर्व करवं. उपलक्षणथी जाणी लेवू के ते पर्युषणा पर्वमां कल्पसूत्र पण वांचq. एक तो ए आचार अने बीजुंते वर्षमानतीर्थमां मंगलना कारणरूपले. 2
कदिशंका थाय के, श्रीवर्धमानतीर्थमां शामाटे कयु ? तो कहे जे के, जे कारण माटे अहीं श्री ६ जिन जगवंतनां चरित्रो कहेला ,तेमज गणधरादि स्थविरावलीनां चरित्रो कहेलांडे, वली ते सामा-६
चारी कदेवाय ने तेमांप्रथम अधिकारमा सर्व जिनचरित्रोमां नजीक उपकारीपणाने लीधे प्रथम श्रीवीर प्रजुनं चरित्र वर्णन करतां श्रीजज्बाह स्वामीजघन्य तथा मध्यम वाचनारूप प्रथम सत्ररचे
तेणं कालेणं ए वाक्यथी ते परिनियुएनयवं त्यांसुधी संबंध .तेणं कालेणं केतां ते काले एटले अवसपिणी कालना चोथा आरा पर्यंत. मूलमां सर्व ठेकाणे जे 'ण' श्रदर ते वाक्यालंकारने अर्थे जे. तेणं स-18 मएणं केतां विशिष्ट एवो जे कालनो विनाग तेसमय कहेवाय , ते समयमां के जे समय श्रीवर्धमान र खामी चवq इत्यादिड वस्तुना कारण थया हता, ते समयमा 'समणे नगवं महावीरे' श्रमण एटले है तपस्या करवामां तत्पर एवा, जगवान् केतां सूर्य अने योनि सिवाय नगना बार अर्थवाला, जेने है माटे कदे के, “सूर्य, ज्ञान, माहात्म्य, यश, वैराग्य, मुक्ति, रूप, वीर्य, प्रयत्न, श्छा, लक्ष्मी, धर्म, ६ ऐश्वर्य अने योनि-ए चौद अर्थमां जग शब्द प्रवर्ते . आमां प्रथम सूर्य अने मेवटनो योनि ए बेई है अर्थ वर्जवा. अहीशंका थाय के, जे जग शब्दनो अर्थ योनि थाय ते कदि वर्जवायोग्य होय पण सूर्यवा-1
चक लग शब्द शी रीते वर्जवो? ते सत्य ले. अहीं उपमापणाथी सूर्य थाय पण वत् प्रत्ययांत होवाथी । नगवान् एटले सूर्यवान् एवो अर्थ लागतो नथी, तेथी ते वर्जित कयों बे, महावीर एटले कर्मरूपी । वैरीने पराभव करवाने समर्थ अर्थात् श्रीवर्धमान स्वामी, ते वर्धमान खामी पंचदबुत्तरे होबत्ति
" एटले हस्तनक्षत्र उत्तर एवं नदात्र उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र बे, कारण के गणत्रीमां तेनाथी हस्त उत्तरमांबे, ते उत्तराफाल्गुनी पांच स्थानोमा जेने ते पंचहस्तोत्तर एवा नगवंत वीर प्रजु जे.
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होति पटले होता हवा. वहीं षट् कल्याणकवादी कहे वे के, “पंचबुत्तरे साइया परिनिनुए” |ए वचन उपरथी श्री महावीर प्रजुने व कल्याणक संपन्न याय, या कहेतुं योग्य नथी, कारण जो एम कदेशो तो "उसने अरदाकोस लिए" इत्यादि जंबूद्वीपप्रज्ञ तिनुं वचन बे, तेथी श्रीकृषन प्रजुने पण व कल्याणक कही शकाशे. तमारे पण ते कल्याणकोने माटे तेम कड़े वुं नहीं. तेथी जेम "पंच उत्तरा| पाढे" ए वाक्यमां नक्षत्रना साम्यथी राज्यानिषेक तेमां गणेलो बे, पण कल्याणक तो "अजीइ बट्टे" |एवी रीते एनी साथे पांचज बे. तेम यहीं पण पंचहत्तरे ए नक्षत्रनी तुल्यतात्री ते मध्ये गर्जनो - पदार गणेलो बे, अने कल्याणक तो साइला परिनिबुए एनी साथे पांचज लीधां बे. वली श्री श्राचारां| गटीका विगेरेमां पंचबुत्तरे ए वाक्यमां पांच वस्तुज व्याख्यान करी बे, कल्याणकनी व्याख्या करी नथी. श्रीहरिजप्रसूरिकृत यात्रा पंचाशक उपर श्री अजयदेवसूरिए करेली वृत्तिमां श्रीवीर प्रजुनां | पंच कल्याणक था प्रमाणे कलां बे. घाषाढ मासनी शुक्ल बठे गर्जसंक्रम १, चैत्र मासनी शुक्ल तेरसे जन्म २, मागशर मासनी शुक्ल दशमीए दी दा३, वैशाख शुक्ल दशमी ए केवलज्ञान ४ ने कार्तिक मासनी श्रमासे मोक्ष ए. एवी रीते श्रीवीर प्रजुनां पंच कल्याणक कह्यां ठे. हवे जो बहुं कल्याणक गणातुं होत तो तेमां तेनो दिवस पण कह्यो होत. वली बीजुं एम पण बे के, बहुं कल्याणक जो गर्भापहार गणाय तो ते नीचा गोत्रना विपाकरूप, प्रतिनिंदवा योग्य अने आश्चर्यरूप बे तेने कल्याणक कहेवुं ते अनुचित बे. कदि यहीं शंका करशो के, पंचनुत्तरे ए ठेकाणे गर्जापहार केम कह्यो ? तो ते सत्य बे, पण तेना समाधानमां कहेवानुं के, ज्यारे जगवंत वीर प्रभु श्रीदेवानंदानी कुक्षिमां श्रवतर्या ने माता त्रिशलाने प्रसव थयो ए असंगत बे तेने निवारवाने माटेज पंचबुत्तरे ए वचनथी गर्जनो अपहार सूचव्यो बे. ते विषे हवे विशेष कद्देवानी जरूर नथी.
एएम सिद्ध युंके, कल्याणक पांचज बे. ते या प्रमाणे जगवंतने पंचहस्तोत्तरपणुं मध्यम वा - चनाथी दर्शावे बेहत्तराहिं चुएति एटले उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमां प्राणत नामना दशमा देवलोक
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कल्प
मांथी श्रीनगवंत चवेला . चश्त्ता गठनं वक्रते एटले त्यांथी चवीने गर्नमां उत्पन्न थयेला . हनुत्त- सुबोग है राहिं० एटले उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमा गर्नमांथी गर्नमा संहार थयेला अर्थात् देवानंदाना गर्नश्री त्रि
शलाना गर्नमां मुक्त थयेला. 8. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमा थयेला; हजुत्तराहिं मुंडे० एटले उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमा मुंम थयेला.
ते अव्य अने जावथी मुंम थयेला. अव्यथी मुंम केशनो लोच करवाथी अने लावधी मुंग राग द्वेषना ६
अनावथी. अगार एटले घरमांथी नीकलीने अनगारिपणाने-साधेपणाने पवइ कहेतां प्राप्त थयेगा। A. तेम उत्तराफाल्गुनी नदात्रमा अनंत कहेतां अनंतवस्तुना विषयरूप, अणुत्तर कहेतां अनुपम एवं, निवाघा कदेतां व्याघातरहित, एटले जीत, बादडी विगेरेनी स्खलना रहित एवं, निरावरण कहेतां ।
समस्त श्रावरणधी रहित एवं,कसिण कहेतां सर्व पर्यायथी युक्त एबु अर्थात् सर्व वस्तुने जणाव-13 हूँ नालं, पडिपुम कहेतां परिपूर्ण-सर्व अवयवोधी संपूर्ण-एवा प्रकारचें वरं कहेतांप्रधान एवं केवलज्ञान
अने केवलदर्शन जेने समुपन्न कहेतां उत्पन्न थयेल . वली उत्तराफाल्गुनी नदानमां तेने प्राप्त थया । ने अने साणा परिनियुग कहेतां खाति नक्षत्रमा जगवान् श्रीवीर प्रजु मोदे गया जे. हवे विस्तारवाली वाचनाथी श्रीवीर प्रजुन चरित्र कहे -तेणं समएणं इत्यादिनो अर्थ पूर्वनी जेम जाणी लेवो. | जे से गिम्हा कहेतांजे ग्रीष्मझतुना समयनो, चउने मासे कहेतां चोथो मास,अहमे परके कहेतां । है श्राठमो पक्ष अर्थात् आषाढ मासनो शुक्लपक्ष. तस्सणं श्राषाढ कहेतां ते आषाढ मासना शुक्ल पकनी
बही परकेणं कहेतां बही रात्रिए. रात्रि अर्थ लेवानुं कारण ए के दिवस अने रात्रि वडे अहोरात्रिना , |बंने पद गणाय बे. पुवरत्तावरत्त कहेता पूर्वरात्र अने अपररात्रनो समय, ते आगल कहेवामां श्रावशे.श्रहीं पद शब्द वडे रात्रि अर्थ लेवो. महाविजयण कहेतां-जेमां महान्-मोटो विजय बे ते महावि-18॥॥ जय कहेवाय. वली ते केवू डे के पुप्फुत्तर कहेतां पुष्पोत्तर नामे बे. ते पवर पुंमरीया कहेतां बीजां श्रेष्ठ । विमानोमा पुमरीक कहेतां श्वेत कमलनाजेवू अर्थात् अति श्रेष्ठ ले.ते महाविमाणा कहेतां महाविमान |
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केवु ले ? वीसंसागरोवम कहेतां वीश सागरोपम स्थितिवाझुंबे. तेमां देवताउनी उत्कृष्ट स्थिति वीश सागरोपमनी रहे बे. लगवंत श्रीवीर प्रजुनी स्थिति पण एटलीज हती. हवे ते विमानश्री श्राउख० क- देतां श्रायुष्यना दय वडे, जवखयेणं कहेतां देवगति नामकर्मना दय वडे, विश्खयेणं कहेतां स्थिति एटले वैक्रिय शरीरमा रहे तेना दय वडे,कहेता पूर्ण करवा वझे,श्रणंतरं कहेतां अंतर रहित एवं चयं है चश्त्ता कहेतां च्यवन करीने श्हेव जंबू कहेतां श्राजजंबूझीप नामनाछीपने विषे,नारदेवासे कहेता है नरत क्षेत्रना दक्षिणार्ध जरतने विषे अवसर्पिणी काल एटले जेमांसमये समये रूप रस विगेरेनी हानि थती जाय ते अवसर्पिणी काल कहेवाय, ते कालने विषे सुषमसुषमा नामनो चार कोटाकोटि सागर-13 नाप्रमाणवालो पहेलो थारो उल्लंघन थया पली सुषमा नामनो त्रण कोटाकोटि सागरना प्रमाणवालो ₹ बीजो आरोआवे, ते नखंघन थया पड़ी सुषमःषमा नामनो वे कोटाकोटि सागरना प्रमाणवालो त्रीजो श्रारोआवे. ते जवंघन थया पली पुषमसुषमा नामे चोथोथारो आवे,ते घणो जवंधन थयेलो डे, कांश्क ऊणो बे. ते कहे बे
बेंतालीश हजार वर्षोथी जणी एक सागर कोटाकोटि चोथा श्रारानं प्रमाण जे. तेमां चोथा आरानां पंचोतेर वर्ष अने सामाआठ मास शेष रहेतां श्रीवीर प्रजुनो अवतार थयो . श्रीवीर प्रजुनुं श्राहै युष्य बोतेर वर्षतुं . श्रीवीर प्रजुना निर्वाणथी त्रण वर्ष थने साडाआठ मास जतां चोथा श्रारानी
समाप्ति थाय ने तेथी प्रथम जे वेंतालीश हजार वर्ष कह्यां ते एकवीश एकवीश हजारना प्रमाणवाला पां|चमा अने हा श्रारा संबंधी जाणवां. | एकवीश तीर्थंकरो इक्ष्वाकु कुलमा उत्पन्न थयेला अने काश्यपगोत्री ने अने बात्रीशमा मुनिसुव्रत । अने त्रेवीशमां नेमि जगवंत ते हरिवंश कुलमां उत्पन्न थयेला अने गौतमगोत्री जे.एवीरीते ते त्रेवीश
अतीत थया पली श्रमण नगवंत श्रीमहावीरथया ने जेप्रन्नु चरम-बेला तीर्थकर अनेर जे पूर्वना तीर्थंकरोए निर्देश करेला बे एटले श्रीवीर प्रजु उत्पन्न थशे एम कहेढुंब. वली जे जगवंत 3
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कल्प
॥१०॥
ACEBCALCOHOSARGAMCHAMA
ब्राह्मणकुंमग्राम नामना नगरमां कोमालगोत्री एवा झपनदत्त ब्राह्मणनी स्त्री देवानंदा ब्राह्मणी के जे जा-|| सबो० लंधरसगोत्री ने तेनी कुदिमां गर्नपणाथी उत्पन्न थया हता. ते क्यारे उत्पन्न थया हता के, पूर्वरात्र अने है अपर रात्रना समयमा अर्थात् मध्यरात्रे उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र चंजना योगने प्राप्त थतां. दिव्य आहार, 13 दिव्य जवअने दिव्य शरीरनो त्याग करवाथी ज्यारे जगवंत गर्नमां उत्पन्न थया त्यारे तेत्रण ज्ञानथी यु-९ दत हता. 'हुंच्यवीश एवं जाणता अर्थात् पोताना च्यववानो नविष्यकाल जाणता हता.
पोते चवे ते वखते जाणता नथी, कारण के ते एक समये थाय ने अने 'हुँ चव्यो' एम जाणे बे. जे रात्रे श्रमण जगवंत श्रीमहावीर प्रजालंधरसगोत्री देवानंदाब्राह्मणीनी कुदिमां गर्नपणे उत्पन्न थ-5
या ते रात्रिए ते देवानंदा ब्राह्मणी पोतानी शय्यामां अति निमालेती नहती तेम अतिशे जाग्रत पण नहै हती एटले ते अल्प निखा करती हती. ते वखते तेणीए आवा प्रकारनां एटले जेमनुं स्वरूप हवे कहेवा-। मांश्रावशे एवां, वली ते स्वप्नां केवां बे, उदार-श्रेष्ठ , कल्याणना हेतु , उपवने हरनारां डे, धनना हेतुबे, मंगलिक , अने शोनाए युक्त के एवां चौद महास्वप्नोने जोश्ते देवानंदा ब्राह्मणी जागी गया. ते कयां कयां स्वप्नो जे ते विषे गय वसह इत्यादि गाथा . आ गाथा सेहेली , तेमा विशेष कहेवार्नु । आप्रमाणे .अनिषेक एटले लक्ष्मी संबंधी अनिषेक जाणवो. पद्म-कमलथी उपलदित एवं सरे विमान एटले देव संबंधी नवन एटले घर-थहीं जे प्रजुनो जीव स्वर्गथी अवतरेतेनी माता विमान जुवे |
अनेजे प्रनुनो जीवनरकमांथी थावे तेनीमाता नवन एटले घरने जुवे बे. ते बंनेमांथी एकनुं दर्शन होय तेथी चौदज स्वप्न थाय . शिखी एटले धूमाडावगरनो अग्नि लेवो. एवी रीते ते देवानंदा ब्राह्मणी यथोक्त चौद स्वप्नोने जोश जाग्रत थयां. | ते पड़ी ते देवानंदा ब्राह्मणी हर्ष तथा विस्मय पाम्यां अने परम संतोषने प्राप्त थयां वली चित्तमा
श्रानंद पाम्यां. तेमना हृदयमां प्रीति थश, मनमां परम तुष्टि थ. हर्षना वशथी तेमनुं हृदय विस्तार ॥ १० ॥ ६ पामी गयु. मेघना जलनी धाराथी सिंचन थयेटुं कदंबर्नु पुष्प जेम प्रफुद्धित थाय तेम तेनारोमकूप
* कदंबर्नु वृद मेघनी धाराश्री प्रफुल्लित थाय .
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देवानंदा ब्राह्मएगी.
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पा.१०
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प्रफुल्लित थया. यावी रीते थयेलां महानंदा ब्राह्मणी ते स्वप्नोनुं स्मरण करवा लाग्यां. ते स्मरण करीने | शय्यामांथी बेठा थयां. पठी ते त्वरित एटले मानसिक उत्कंठाथी रहित एवी, चपल एटले कायानी चपलताथी वर्जित एवी, असंत्रांत एटले स्खलना वगरनी, विलंबित एटले विलंब रहित एवी अने | राजहंसना जेवी गति वडे ज्यां रुषजदत्त ब्राह्मण हता, त्यां ते श्राव्यां. त्यां श्रावीने शषजदत्त ब्राह्मणने जय छाने विजयथी वधावे वे एटले आशिष आपे बे. तेमां खदेशमां जय अने परदेशमां विजय समजवो. ते वधावीने नद्रासन उपर बेठां, ते पढी श्रमने टाली श्राश्वासनने अने दोजना अजावथी विश्वासने प्राप्त कर्यो तेथीज सुखे करी उत्तम श्रासनने प्राप्त थयां.
पठी जे अंजलि वे हाथ वडे करेली दती, जेमां दश नख उदय पाम्या हता ने जेनुं प्रदक्षिण भ्रमण मस्तक उपर करेलुं हतुं एवी अंजलि ते देवानंदाए पोताना मस्तक उपर करी या प्रमाणे कयुं, हे देवानु प्रिय, आज रात्रे हुं अल्प निद्रा करती हती ते वखते हुं श्रा आागल कहुं हुं एवां चौद उत्तम खप्नोने ( गज, वृषन विगेरे) जोड़ने जागी गए, ते चौद स्वप्नोनुं कल्याणकारी शुं फल तथा वृत्तिविशेष यशे ते ढुं विचारुं तुं. यहीं फल एटले पुत्रादि ने वृत्ति एटले जीवननो उपाय प्रमुख, तेमांथी शुं थशे? ते पबी ते |रुषजदत्त ब्राह्मणे देवानंदा पासेथी ए अर्थ सांगली, मनमां अवधारी, हर्षादि प्राप्त करी, मेघनी धारा वडे सिंचन थयेला कदंब वृनां पुष्पनी पेठे शरीरना बिद्ररूप कुवाने विषे उंचां थयां बे रोमांच जेने एवो थयो बे तेणे स्वप्नांनी धारणा करी, धारणा करीने अर्थ विचारणा करी, अर्थविचारणा करीने पोतानुं खाजाविक मतिपूर्वक एवं जे बुद्धिविज्ञान ते वने करीने हीं जे अनागत कालनो विषय थाय ते | मति ने वर्त्तमान कालनो विषय थाय ते बुद्धि कहेवाय बे.
" विषयने प्राप्त न करे ते मति कद्देवाय ने सांप्रतकालने दर्शावनारी ते बुद्धि कहेवाय. जे नूता|र्थने बतावे ते स्मृति जाणवी अनेत्र कालने दर्शावे ते प्रज्ञा कहेवाय.” १ अतीत-नूत ने अनागत - जविष्यकालनी वस्तुना विषयमां यावे ते विज्ञान कहेवाय. ते पढी ते स्वप्नांना अर्थनो निश्चय
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कल्प०
॥ ११ ॥
करे बे, ते निश्चय करीने ते देवानंदा ब्राह्मणी प्रत्ये बोल्या - ते शुं बोट्या ते कहे बे- हे देवानु प्रिये, | तमे उदार, कल्याणकारी, धनदायक, मांगल्यरूप अने शोभायुक्त स्वप्ना जोयां बे. ते स्वप्नां आरोग्य, संतोष, दीर्घ श्रायुष्य, कल्याण एटले उपद्रवनो अनाव, मंगल एटले वांबित फलनी प्राप्ति ए सर्व वस्तुर्डने करनारां स्वप्नो तमे जोयां बे. ते या प्रमाणे- हे देवानुप्रिये, तेथी तमने अर्थलान, जोगलाज, पुत्रलाज ने सुखलान यशे तमने नव मास पूरा छाने सामासात दिवस गया पढी तमे एक पुत्रने जन्म श्रापशो. ते पुत्र केवो थशे ते कहे .
हाथ ने कोमल बे ने जेना शरीरमां लक्षणवाली अने खरूपथी परिपूर्ण एवी पांच इंडियो बे तेमज लक्षण ने व्यंजनना गुणे करीने युक्त एवो पुत्र यशे . यहीं लक्षण एटले बत्र चामरा दि जाणवां. ते चक्रवर्ती ने तीर्थकरोने एक हजार ने आठ होय ते. बलदेव ने वासुदेवने एकसो श्राव होय बे ने बीजा जाग्यवानने वत्रीश लक्षणो होय बे- ते बत्रीश लक्षणो या प्रमाणे बे
"बत्र, कमल, धनुष्य, रथ, वज्र, काचबो, अंकुश, वापिका, स्वस्तिक (साथी), तोरण, सरोवर, केशरीसिंह, वृक्ष, चक्र, शंख, हस्ती, समुद्र, कलश, मेहेल, मत्स्य, जव, यज्ञस्तंज, स्तूप (चोतरो), कमंगल, पर्वत, चामर, दर्पण, बलद, पताका, लक्ष्मीनो अनिषेक, उत्तम माला अने मयूर ए बत्रीशलक्षणो पुण्यवंत जीवोने होय बे." एलक्ष्णवाला पुरुषनां सात लक्षण रातां व उंचां, पांच सूक्ष्म अने लांब, त्रण विशाल, त्रण लघु अने त्रण गंजीर-एवी रीते बत्रीश लक्षणो पुरुष कहेवाय बे. तेमां ते नख, पग, हाथ, जीज, होठ, तालबुं श्रने नेत्रना खूषा, ए सात रातां श्रेष्ठ बे. कांख, हृदय, कोक, नासिका, नख छाने मुख, ए व उन्नत - उंचां श्रेष्ठ बे. दांत, चाममी, केश, आंगलीना पर्व अने नख, ए पांच सूक्ष्म श्रेष्ठ बे. नेत्र, हृदय, नासिका, हमपची अने जुजा, ए पांच लांबां श्रेष्ठ बे. ललाट, बाती, अने मुख, ए त्रण विस्तारवालां उत्तम बे. मोक, जंघा घने लिंग-इंद्रिय, ए त्रण लघु सारांबे. सत्त्व, स्वर अने नानि, एत्रण गंजीर सारां बे-ए बत्रीश लक्षणो थयां. शरीरनो अर्ध जाग मुख बे अथ
सुबो०
॥ ११ ॥
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वा सर्व शरीर मुख कहेवाय बे,तेनाथी नासिका श्रेष्ठ ने श्रने नासिकाथी लोचन श्रेष्ठ जे. १ जेवां लोचन होय तेवं शील समजबु. जेवी नासिका तेवी सरलता समजवी. जेवं रूप तेवु अव्य जाणवु श्रने जेवू शील तेवा गुण जाणी लेवा. ५ जे पुरुष थति ठीगणो होय, अति लांबो होय, अति जामो होय, अति उबलो होय, अतिशे कालो होय अने अतिशे गोरो होय, ते बजातना पुरुषोमां सत्त्व रहे होय . ३ सकर्मी, स्वरूपवान्, नीरोगी, सारा स्वप्नावालो, सारी नीतिवालो अजे कवि थयेलो पुरुष । पोते स्वर्गमांथी श्राव्यो ने अने पोताने पातुं स्वर्गमा जवानुं सूचवे .४ दलवगरनो, दयालु, दानी, जियोने दमन करनार, माह्यो अने हमेशां सरल एवो पुरुष मनुष्य योनिमांधी आवी पागे मनुष्य 8 योनिमां जाय . ५ माया, लोन, कुधा, आलस्य अने घणो आहार इत्यादि चेष्टाश्री पुरुष पोते तिहै यच योनिमाथी श्रावेलो ने एम सूचवे .६ जे पुरुष रागी, स्वजननो वेषी, उर्जाषा बोलनार श्रने
मूर्खनो संग करनार होय ते पोते नरकमांधी आवेलो सूचवे .७ पुरुषोने दक्षिण नागमां जो श्रावत
होय तो ते शुज फल श्रापे .. वाम नागमां होय तो ते अतिनिंदवा योग्य ले अने ते सिवायना ना-18 ६गमां होय तो मध्यम फल आपे जे. जे पुरुषोना हाथमा रेखा थोडी होय अथवा घणी होय तो ते
अल्प आयुष्यवाला, निर्धन अने पुःखी थाय, तेमां कांइपण संशय नथी. एजे पुरुषनी अनामिका (ट-है चली आंगलीनी पासेनी) श्रांगलीनी अंत्यरेखाथी कनिष्ठाांगली जो अधिक होय तो ते पुरुषने धननी | वृद्धि थाय अने मोशाल पद घणो होय. १० मणिबंधथी जे रेखा चाले ते पितानी रेखा अनेक-15 रन (टचली थांगलीनी नीचेना नाग) थी जे बे रेखा चाले ने ते वैनव अने श्रायुष्यनी रेखा बे, ते त्रण रेखाउँ तर्जनी (अंगोग पासेनी अांगली) अने अंगोगनी वचे जर मले बे. ११ जेठने ते त्रण रेखा संपूर्ण अने दोष वगरनी होय ते ने गोत्र-कुल, धन अने आयुष्यनुं संपूर्ण सुख मले है। बे, जो तेवू न होय तो न्यून सुख मले . १५ आयुष्यनी रेखा जेटली आंगलीने उलंघन करी आगल जाय तेटलां पचवीश वर्षनी आयुष्य विछानोए जाणी लेवी.१३ जो जमणा हाथना अंगो-18
GROGRAMGAOREOGARLOCALCORDCROCALAMO
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सुबो
कल्प०
गना मध्यमा जव रेखा होय तो विद्या, प्रख्याति अने वैजव प्राप्त थाय ने अने ते पुरुषनो जन्म ६ शुक्ल पदमां समजवो. १४ जे पुरुषनी आंखो राती होय तेने स्त्री त्यजी शकती नथी, जेनी आंखो।
सुवर्णना जेवी पीली होय तेने ऽव्य त्यजतुं नश्री, जेना हाथ लांबा होय तेने ऐश्वर्य डोमतुं नथी श्रने | जेना शरीरमां मांसनी पुष्टि होय तेने सुख बोमतुं नथी. १५ जो नेत्रमा स्नेह (चीकाश) होय तो सौ-15
नाग्य होय, जो दांतमा स्नेह होय तो सारां जोजनो मले अने जो शरीरमा स्नेह होय तो सुख मले ६अने जो पगमा स्नेह होय तो वाहन प्राप्त थाय. जेनी उर (ती) विशाल होय ते धन धान्यनो जोगी Fथाय, जेनुं मस्तक विशाल होय ते उत्तम राजा थाय,जेनी कटीनो नाग विशाल होय तेने स्त्री अने पुत्रो
घणा थाय अने जेना पग विशाल होय ते हमेशां सुखी थाय. १७ श्रा प्रमाणे लक्षणो जाणवां. | हवे व्यंजन कहे, व्यंजन एटले शरीर उपर जेमसाअने तिलक विगेरे होय जे ते, लक्षण तथा 5 व्यंजनना गुणोश्री युक्त एवो ते कुमार हतो. वली ते मान तथा उन्मानना प्रमाणने प्राप्त थयो हतो. 8 तेमां जलना जरेला कुंडनी अंदर एक पुरुषने प्रवेश करावे, पडी जे जल बहार नीकलीजाय तेटनु र जल प्रोणमान थाय त्यारे ते पुरुष मानप्रात कद्देवाय अने जो ताजवा उपर थर्धानारना मानवालो थाय । तोते उन्मानप्राप्त कहेवाय. हवे जे नार कह्यो तेनुं मान आ प्रमाणे , “उ सर्षवना दाणानो एक जव थाय, त्रण जवनी एक चणोठी थाय, त्रण चणोतीनो एक वाल थाय अने सोल वालनो एक गदीश्राणो है थाय.१ दशगदीश्राणानो एक पल थाय अने दोढसो गदीआणानो एक मण थाय, दश मणनी एक घटिका थाय एम विछानो कहे , दश घटिकानो एक नार थाय. प्रथम जे कडं के ते दोढसोनो एक |मण थाय त्यां गदीश्राणा लेवा पल लेवा नहीं, जो दोढसो पलनो मण थाय एम लश्ए तो नारना
अठ्योतेर मण थ जाय अने तेना अर्धनागे जंगणचालीश मण थाय, एथीएटर्बु शरीरनुमान संजवे नहीं.जो दोढसोगदीश्राणानोमण लइए तोलारना चालीश शेरना मान वमेकांक अधिक एवा पोणा आठमण थाय थने तेनुं अर्धमान एटले पोणाचारमण श्रने पांच शेरथी वधारे शरीरनुं प्रमाण संजवे ,
HOSALEGALORERARMADAMAGRECORDERS
॥ १२॥
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अने तेथी दोढसो गर्दी थाणानो मप पण संजवे. कोइ देशमां कांश्क ऊणा त्रण शेरने पण मए कहेवानो व्यवहार बे. दवे प्रमाण विषे कहे बे. पोताना अंगुल वडे एकसो श्राव अंगुलनी उंचाइवालो उत्तम पुरुष कदेवाय बे, मध्यम ने हीन पुरुष बन्नुं तथा चोराशी यांगलनी उंचाइवाला होय ते. अहीं जे उत्तम पुरुष कह्यो ते तीर्थंकरथी अन्य लेवो, कारण के जे तीर्थंकर होय ते बार थांगलनी मस्तकनी पाघमी सुधां गणीए तो एकसो ने वीश श्रांगल उंचा होय ते. हवे तेवी रीतनां मान, उन्मान अने प्रमाणथी परिपूर्ण एवां मस्तक प्रमुख सर्व अंगो जेमां उत्पन्न थयां बे, एवा प्रकारनुं सुंदर जेनुं शरीर बे एवो, वली | ते केवो बालक के जेनी व्याकृति चंद्रना जेवी रमणीय बे, जे मनोहर बे, जेनुं दर्शन प्रिय बे अने जेनुं स्वरूप सुंदर बे एवा बालकने हे देवानुप्रिये, तमे जन्म श्रापशो. ए
ad बालक व शे. केवो थशे ते कहे बे- ज्यारे ते बालजावने ठोकी देशे श्रर्थात् आठ वर्षनो यशे, त्यारे ते एवो थशे के जेनामां सर्व विज्ञान परिणाम पामशे. अनुक्रमे ज्यारे यौवन वयने प्राप्त यशे त्यारे ते रुग्वेद विगेरेनो स्मारक थशे. अहीं मूलमां धातु श्रात्मनेपदी बे ते बतां जे या प्रयोग कर्यो बे ते विचारवा जेवो बे. रुग्वेद ए पदमां बड़ी विजक्किना बहुवचननो लोप थयेलो बे. ते रुग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद ने अथर्ववेद केवा बे के जेमां इतिहास एटले पुराण पांचमो बे ने निघंटु कहेतां नामसंग्रह कोश जेमां बघो बे. ते वेद केवा के जे अंग तथा उपांगोए सहित बे. तेमां शिक्षा, कल्प, व्याकरण, बंद, ज्योतिष ने निरुक्ति- ए व अंग कद्देवाय बे, उपांग एटले अंगना अर्थने विस्तार करनारा. वली ते वेद केवा बे, तात्पर्यथी युक्त बे, एवा पूर्वे कहेला चार वेदना जे स्मारक एटले बीजाउने विस्मरण | थयेल तेमने स्मरण करावनार बें, वली ते बालक वारक बे एटले बीजार्ज श्रशुद्ध पाठ जणे तेमने निषेध करनार बे, तेमज ते बालक ते वेदोनो धारक बे, एटले धारण करवाने समर्थ ते. हे देवानुप्रिये, ते बालक एवो थशे. वली ते बालक केवो थशे के पूर्वे कलां व अंगनो विचार करनार थशे, यहीं विद् धातुनो अर्थ जाणवुं लइए तो पुनरुक्ति दोष आवे छे. वली ते षष्टितंत्र एटले कपिल संबंधी (सांख्यना) शास्त्रमां पं
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कल्प
३
॥
REE RASHRERASHASAN
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मित थशे, तेमज गणितशास्त्रमा निपुण थशे. गणितशास्त्र एटले गणितविद्या जेमके, “ एक स्तंज एवो हूँ सुवो है के जे अर्धे पाणीमां बे, तेनो बारमो नाग कादवमां बे, बहो जाग रेतीमां दबायो डे अने ते दोढ है।
हाथ बहार देखाय जे. ते स्तंजनुं मान केटबु हो, जोए ते विचारीने कहो ? तेना जवाबमां गणित
उपरथी सिह थाय के, ते स्तंज ब हाथनो .अहीं मूलमा को ठेकाणे 'सिरकाण' एवो पण पाठ ६. सिरकाण शब्द वडे श्राचार ग्रंथ जाणवो.शिदा एटले अदरोनी मर्यादानो ग्रंथ. कल्प एटले य
झादिविधिनुं शास्त्र तेमांते निपुण थशे. व्याकरण एटले शब्दशास्त्र ते वीश व्याकरणो नेते श्रा प्रमादणे- ऐंज व्याकरण, जैनें व्याकरण, सिद्धहेमचंड व्याकरण, चांज व्याकरण, पाणिनीय व्याकरण,
सारखत व्याकरण, शाकायन व्याकरण, वामन व्याकरण, विश्रांत व्याकरण, बुद्धिसागर व्याकरण, सरस्वती कंगनरण व्याकरण, विद्याधर व्याकरण, कलापक व्याकरण, जीमसेन व्याकरण, शैव व्याकरण, गौम व्याकरण, नंदि व्याकरण, जयोत्पल व्याकरण, मुष्टि व्याकरण अने जयदेव व्याकरण-ए वीश व्याकरणो जे. ते व्याकरणोमां, बंदशास्त्रमा, निरुक्त एटले पदनी व्युत्पत्तिवाली टीका विगेरेमा, ज्योतिषशास्त्रमा अजे बीजां ब्राह्मणोने हितकारी एवां घणां शास्त्रोमा तेमज परिबाजक-संन्यास संबंधी नय एटले श्राचारशास्त्रोमां ते घणो निपुण थशे.हे देवानुप्रिये, है
तमे तेवां उदार स्वप्नां दीगं बे. 8| एम करीने ते स्वप्नांनी वारंवार अनुमोदना करे .ते पड़ी ते देवानंदा ब्राह्मणी मस्तक उपर अंजलि ६ करीने रुषजदत्त ब्राह्मणने या प्रमाणे कहेवा लाग्यां-हे देवानुप्रिय, तमे कडं ते एमज डे, हे देवा-3 ६ नुप्रिय, ते यथार्थ डे अनेते संदेहवगरनुं बे. ते श्छेबुं , ते प्रतीष्ट एटले तमारा मुखमांथी पमतां-18
ज में ग्रहण कर्यु . ते उजय धर्म एटले छित श्रने प्रतीष्ट . श्रा तमे कहेलो अर्थ सत्य बे. तमे जे कहो तो ते तेमज -एम कहीने ते देवानंदा ते स्वप्नांने सारी रीते अंगीकार करे . पड़ी
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राजा.
चित्र ३
कार्तिक शेठ.
गौरिक तापस.
कार्तिक शेठ.
राजसभा.
पा. १३
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ACEBCAMCMCANCRECORAKASHAMALASALAM
षजदत्त ब्राह्मणनी साथे उदार एवा मनुष्य संबंधी जोगववा योग्य नोगने जोगवता थकां विहार करे बे. १३ ते समयेते शक्र नामे इंश विहार करवाने तत्पर थयो ए संबंध जाणवो. ते इं केवो नेते कहे,8 ६ ते शक्र नामना सिंहासननो अधिष्ठाता . ते देवताउँनो स्वामी ने. ते देवताउने विषे राजा एटले कांति ४ है प्रमुख गुणोथी विराजमान ले. ते वज्रपाणि एटले हाथमां वज्रने धारण करनार जे. ते पुरंदर एटले दैत्यो
नां नगरोने विदारण करनार जे. वली ते शतक्रतु बे एटले श्रावकनी पांचमी प्रतिमा वदेवारूपी सो क्र-IP तु-यज्ञ जेणे करेला ले. कार्तिक श्रेष्ठीना नवनी अपेक्षाए था कहेल . ते कथा या प्रमाणे बे- पृ.
11 थिवीनूषण नगरमांप्रजापाल नामे राजा ने अने कार्तिक नामे श्रेष्ठी . तेणे श्रावकनी सो पमिमा वही 81 हूँ हती तेथी ते शतक्रतु एवा नामथी विख्यात थयो हतो. एक वखते गैरिक नामे एक संन्यासी एक मासनो उपवासी त्यां श्रावी चड्यो. एक कार्तिक श्रेष्ठी विना सर्वे लोको तेना नक्त थया.ते जाणी पेलो है गैरिक संन्यासी कार्तिक श्रेष्ठीनी उपर रोष पाम्यो. एक वखते राजाए ते संन्यासीने नोजन माटे नि
मंत्रण कयुं त्यारे तेणे कडं के, जो कार्तिक श्रेष्ठी पीरसे तो हुँ तारे घेर पारणुं करूं. राजाए ते प्रमाणे 8 ६ अंगीकार करी कार्तिक श्रेष्ठीने कडं के, तुं मारे घेर आवी ते गैरिक संन्यासीने जोजन कराव. का-16 |र्तिक श्रेष्ठीए का, हे राजा, तमारी आज्ञाथी हुँ नोजन करावीश. पड़ी ते कार्तिक शेठे गैरिकने जोजन कराववा मांड्यं. जोजन करतां गैरिके(तुं निर्लज बं)एम जणाववा नासिकानो बांगलीथी स्पर्श करी चेष्टा करी, ते वखते कार्तिक श्रेष्ठीए विचार्यु के, 'जो में प्रथमथी दीक्षा लीधी होत तो थासं-13 न्यासीमारोपरानव न करत.'श्राप्रमाणे चिंतवी ते श्रेष्ठीए एक हजार ने श्राप वणिकपुत्रोनी साथे 3 श्रीमुनिसुव्रत स्वामीनी पासे चारित्र लीधुं. पली छादशांगीनणीने बार वर्षने पर्याये ते सौधर्म इंडथयो. जे गैरिक संन्यासी हतो ते पण पोताना धर्ममां तत्पर रही ते इंजनुं वाहन ऐरावण नामे थयो. ते ऐरावण था कार्तिक श्रेष्ठी जे एवं जाणी नासवा लाग्यो एटले शर्के तेने पकडी तेना मस्तक उपर थारूढ यश् गयो. ऐरावणे तेने जय पमानवाने बे रूप काँ. इथे पण बे रूप काँ. पड़ी तेणे चार रूप
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18| सुबो०
HORSES
कल्प०. कर्यां एटले इसे पण चार रूप कां. पनी अवधिज्ञानथी तेनुं स्वरूप जाणी लश्तेणे तेनो तिरस्कार कयों. हूँ।
ज्यारे तिरस्कार कयों, एटले तेणे पोतानुं खानाविक रूप करी दीg. एवी रीते कार्तिक श्रेष्ठीनी कथा बे. ॥१४॥
| सहस्राक्ष एटले तेने पांचसो मंत्रीरूपे देवता ले तेनां नेत्रो इंजनुं कार्य करे ने तेथी ते पण| इंसंबंधीज समजवां, तेथी इंसहस्राक (हजार नेत्रवालो) कहेवाय जे. वली ते मघवान् ने एटले ।
मघ कहेतां मोटा मेघ जेने वश तेवो बे. | वली ते पाक नामना दैत्यने शिक्षा करनारो . ते मेरुथी दक्षिणमां श्रावेला लोकार्धनो अधिपति है बे, उत्तर लोकार्धनो खामी इशान ने तेथी. ते ऐरावणना वाहनवालो . ते सुर-देवताउने श्रानंद थापनार . ते बत्रीश लाख विमाननो थधिपति जे. रज वगरनां अने खळपणाथी आकाश जेवां बारी-15 क वस्त्रने धारण करनारो . तेणे घटता स्थान उपर माला अने मुकुट धारण कर्यां बे, नवीन सुवर्णना मनोहर, श्राश्चर्य करनारा बने थाम तेम कंपतां एवां बे कुंमलो तेना गाल उपर अथडाय बे. वली ते केवो ले के जेने त्रादि राजचिह्वरूप मोटी समृद्धि , वली जेनी शरीरादिकनी कांति मोटी बे, जे महाबलवान् , जे मोटो यशवालो , जेनो महिमा मोटो बे, जे महासुखी , जेनुं शरीर देदी
प्यमान बे, जे पग सुधी लटकती पंचवर्णी पुष्पनी मालाने धारण करे बे. है। ते हाल क्या रहे नेते कहे .ते सौधर्म कल्पने विषे डे, ते सौधर्म देवलोकनाथानूषणरूप विमा-हूँ
नमा दे, त्यां सुधर्मा नामनी सनामां शक्र नामना सिंहासनने विषे रहे ले. त्यां रही ते इंज करी वि-है
हार करे ले ते कहे . ते इंऽ त्यां बत्रीश लाख विमाननो अधिपति , तेमज चोराशी हजार सामा-2 |६|निक देवतानो अधिपति बे. ते सामानिक देवतानी समृद्धि इंजना जेवी जे. हूँ| तेत्रीश त्रायस्त्रिंशक देवता जे पूज्य अथवा मंत्री तुल्य देव ने तेमनो जे अधिपति जे. चार
लोकपाल के जेमनां नाम सोम, यम, वरुण श्रने कबर ने तेमनो जे अधिपति जे. पद्मा, शिवा, शची, अंजू,श्रमला, अप्सरा, नवमिका अने रोहिणी एवां नामे आठ अग्रमहिषी (पटराणी) के जे ।
HUSHOSSAIGOSSOS
४॥
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प्रत्येक सोल हजार देवीउना परिवारवाली ले तेमनो जे खामी ने. बाह्य,मध्यम अने आत्यंतर एवीत्रण हापर्षदानो जे अधिपति बे. गंधर्व, नाटक, अश्व, हाथी, रथ, सुनट अने वृषन एवां नामनां सात सै-181
न्यनो जे खामी ने. नवनपति विगेरे वृषनने स्थाने महिष लेवा. तेमज सात सेनापतिनो अने चारे । दिशाउँमा प्रत्येक चोराशी हजार श्रात्मरक्षक देवता एकंदर संख्याए त्रण लाख अने बत्रीश हजार
थाय तेमनोजे अधिपति . ते सिवाय बीजा घणा सौधर्म कल्पना निवासी वैमानिक देव अने देवीन्न । ४ श्राधिपत्य एटले अधिपतिनुं कर्म अर्थात दाने, अग्रेसरपणाने,नायकपणाने,पोषकपणाने, अत्यंत मो-11 ६ टापणाने,आझाए करीने ईश्वर जे सेनापति तेनी पोताना सैन्य प्रत्ये अद्लुत बाझानाप्रधानपणाने नीहै मेला पुरुषोनी पासे जे करावे ,वली पोते तेमनुं पालन करे ने वली ते शुकरे के अविछिन्न एवां नाटक, है गीत अने वाजितो,तेमां वीणा,कमताल,बीजां वायने तोमे तेवा मेघध्वनिवाला मादल अने मोटा ढोल, २ तेमना मोटा शब्द वझे देवताने योग्य एवा जोगववा लायक नोगने जोगवतो विहार करे ३.१४ वली ते । या संपूर्ण जंबूछीपने विशाल एवा अवधिज्ञान वडे अवलोकन करतो विहार करे .ते इंजनगवंत महा-81 वीर प्रज्जुनो जन्म जाणी हर्ष पामेलो ने,संतोष पामेलो तेमज चित्तथी आनंद पामेलो ,मनमांप्रसन्न
थयेलो डे, घणा चित्तसंतोषने पामेलो ,हर्षना वशथी प्रसरेला हृदयवालो ,मेघनी धाराथी सिंचायेकोला कदंबवृदनां सुगंधी पुष्पनी जेम रोमांचित थयेल ने तेथी जेना रोमकूप उंचा थया , वली जेनुं मुख
अने नेत्रो विकास पामेला उत्तम कमलना जेवां बे, कारण के ते हर्षथी परिपूर्ण बे.तेम श्रीजगवंतना दर्शनथी अधिक संन्रम थवाने लीधे तेनां उत्तम कंकण कंपी चालतां हतां.बहेरखा अने बाजुबंध तुटी
जता हता. मुकुट अने कुंमल जे लोकमां प्रसिक , ए सर्व बाजूषणो जेनां प्रचलित श्रयेला बे एवो है। P, वली जेनुं हृदय हार वझे विराजमान जे. जे लंबायमान मुमणां ने हींचका खातां श्राजूषणोने ,
धारण करे जे. एवो इंश अकस्मात् संज्रम-श्रादरथी, उत्सुकपणाथी अने कायानी चपलताथ। एकदम सिंहासन उपरथी बेठो थयो.बेगे थश्ने पादपीठ एटले पग मूकवाना बाजोठ उपरथी नीचे
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कल्प० २५॥
PRORSCOORDCROSSESCREGALISALCULACESS
उतर्यो भने नीचे उतरीने मरकत मणि तथा रिष्ट श्रने अंजन नामनां रत्नो वडे निपुण एवा कारीगरे रचेलीयने देदीप्यमान एवा चंडकांत विगेरेमणि अने कर्केतन विगेरे रत्नोथी मंमित एवी ते पाहुकाने उतारी नाखी श्रने उतारीने ते इंघ एक पट उत्तरासंग करे . ते कर्या पली अंजलि करवाने बंने हाथ योजे , तेवो थश्ते प्रजुनी सन्मुख साताठ पगला सामो जाय , पनी डाबा ढींचणने 5 उपाडे एटले पृथ्वीने लग्न (श्रमकेलो) न थाय तेम स्थापे अने दक्षिण जानुने पृथ्वी उपर मूके, पडी त्रण वार पृथ्वी उपर मस्तक नमावे, नमावीने जरा उत्तरार्ध अंगथी उन्नो थाय, तेम करी कंकण अने बेरखाथी स्तंजन करेली नुजाउने वाले, ते वालीने हाथना संपुटमां रचेली दश नख सहित दक्षिणावर्त्तप-2 णे मस्तक पर जमावाती एवी अंजलि मस्तक पर करीने या प्रमाणे बोल्यो. ते शुं बोल्यो.ते कहे ,मूलमां 'ण'ए श्रदर सर्व ठेकाणे वाक्यालंकारने माटे .त्रण जुवनने पूजवा योग्य एवा अहंत प्रजुने नमस्कार हो.कर्मरूप वैरीने हणवाथी अरिहंताणं एवो पण पाउने अथवा अरुहंताणं एवो पाउ लश्ए तो रागळे षरूपकर्मवीजनो अनाव करनार एवो अर्थ थाय एटले जवदेत्रमा ते बीज उगवानोज अनाव थाय ने. वली ते प्रज्नु जगवंत एटले ज्ञानादिवाला तेमज ते आदिकर एटले पोतपोताना तीर्थनी अपेक्षाए धर्मना आदिकर्ता जे. वनी जे तीर्थ एटले संघ अथवा प्रथम गणधर तेने स्थापन करनारा बे. जे स्वयं-18 बुद्ध एटले परोपदेशथी बोध पामेला नथी, पोतानी मेले बोध पामेला जे.जे अनंत गुणोना निधानरूप होवाथीपुरुषोमां उत्तम .जे कर्मरूपी वैरीउमां निर्दय शूरवीर होवाथी पुरुषसिंह बे. वली जे पुरुषोमा । प्रधान एवा पुमरीक-श्वेत कमलनी जेवा जे. जेम पुंडरीक-कमल कादवमां थाय अने जल वडे वधे , पबीते जल तथा कादवने बोडी उपर रहे. एवीरीते जगवंत पण कर्मरूपी कादवमा उत्पन्न थया अने नोगरूपी जलथी वृद्धि पाम्या बे. ते कर्म अने जोगनो त्याग करी पड़ी जुदा रहे बे. वली ते उत्तम पुरुषोमां गंधहस्ती एटले मदगंधी हस्ती जेवा. जेम गंधहस्तीना है गंधथी बीजा हाथी पलायन करी जाय बे तेम जगवंतना प्रनावथी बीजा फुकाल विगेरे उपवो
GAOCALCROCOCCACANCCASCALCANOAACANCHCANCALCASCALC
॥१५॥
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चित्र. ४
इंद्र महाराज सिंहासन उपरथी उतरी ने नमस्कार करेले..
इंद्र महाराजनी सभानादिव...
पा. १५
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पण नाश पामी जाय . तेमज जे लोक एटले जव्य प्राणीउना समूहमां चोत्रीश अतिशयोए । युक्त होवाथी उत्तम बे. वसी जव्य प्राणीऊना नाथ डे थर्थात् योग देम करनारा बे. तेमां योग एटले श्रप्राप्त एवा ज्ञानादिनी प्राप्ति अने केम एटले प्राप्त थयेल झानादिक- रक्षण,तेने करनारा. लोक एटले सर्व जीवोना हितकारी,कारण के दया स्वरूपी वली ते मिथ्यात्वरूप अंधकारने नाश करनार होवाथी लोकमा प्रदीपरूप ले. वली सूर्यनी जेम सर्व वस्तुना प्रकाशक होवाथी लोकमां से
उद्योत करनारा ले. तेम वली अजय एटले नयनो अनाव तेने आपनारा ले. BI ते जय सात प्रकारना डे ते था प्रमाणे-जे मनुष्य थकी जय ते पहेलो इहलोकनय कहेवाय / ४. मनुष्यने देवादिकनो जय ते बीजो परलोकलय. धन विगेरे लइ सेवानो नय ते त्रीजो आदा-द।
ननय. बहारना को निमित्तनी अपेक्षा वगर उत्पन्न थयेल जय ते चोथो अकस्मात्नय कहेवाय बे. पांचमो श्राजीविकानो जय,बहो मरणजय अने सातमो अपकीर्तिनोजय.एम सात प्रकारना नय बे,तेवा नयमांथी निर्नय करनारा .वली तेने नेत्र समान श्रुत ज्ञानने आपनारा .तेमज मार्ग एटले सम्यग्-15 दर्शन विगेरे मोक्षमार्गने थापनाराजे अर्थात् बतावनारा जे-जेम को लोको मुसाफरीए जता हता,15 तेमनुंजव्य चोरोए खुंटी लीधुं अने पड़ी तेमने आंखे पाटा बांधीने अवले मार्गे चमावी दीधा. तेवा-हू मां को श्रावी तेमनां नेत्र उपरथी पाटाबोडी लइ, धन आपी,मार्ग बतावी उपकारी थाय तेम नगवंत पण कामक्रोधादि कषायोए जेमनुं धर्मरूप धन बुंटी लीधुं ने अने मिथ्यात्वरूप पाटाथी जेजना विवेकरूपी नेत्र बंध कयाँ बे एवा प्राणीने श्रुतझान, सर्म तथा मुक्तिमार्गने बतावी उपकारी थाय ४. वली ते प्रनु केवा के जे आ संसारथी जय पाम्या तेमने शरण आपनारा .वली जीव एट-8
ले मृत्युनो अनाव-जीवन तेने आपनारा . को ठेकाणे बोहिदयाणं एवोपाठ एटले बोधि एट-है। शाले समकित तेने आपनारा.वली ते चारित्ररूप धर्मने आपनारा .धर्मनो उपदेश आपनारा .यहीं ध
मर्नु उपदेशकपणुं तेउने धर्मनास्वामीपणाने लीधे कह्यु बे, नटनी जेम फोगट नथी ते दर्शाववाने कहे ।
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कल्प 18के ते धर्मना नायक . वली धर्मना सारथी . जेम सारथी उन्मार्गे जता एवा रथने पालो मार्गमां 8 सुबो
लावे तेम जगवंत पण मार्गज्रष्ट थयेलामाणसने पाठो मार्गे लावे , ते उपर मेघकुमारनु दृष्टांत - एक वखते श्रीवीर प्रजु राजगृह नगरीमां समोसर्या हता. तेमनी देशना सांजली श्रेणिक राजा अने है। धारिणी राणीनो पुत्र मेघकुमार प्रतिबोध पाम्यो. तेणे मातापितानी मांस मांगरजा लइ पोतानी बार प्रियानो त्याग करी दीक्षा ग्रहण करी.प्रनुए शिक्षा आपवाने तेने स्थविर साधुने सोंप्यो.एक वखते | उपाश्रयमा अनुक्रमे साधुऊना संस्तारा करतां मेघकुमारनो संस्तारो छारजागनी पासे बेहो आव्यो.18 त्यां मात्रु करवाने जता आवता साधुऊना चरणनी रजथी नरागयेलामेघकुमारने श्राखी रात कणवार है। पण निमा नयावी.त्यारे तेणे चिंतव्यु के,मारे घेर सुखशय्या क्यां! अने श्रावीरीतेनूमि उपर थ
लोटवु क्यां! अरे! आवुःख मारे क्या सुधी सहन करवू ? माटे प्रातःकाले प्रजुनी रजा लश् पागे | ६ घेर जश्श. श्रावु चिंतवी प्रजातकाले प्रजुनी पासे श्राव्यो. प्रजुए मधुर वचनथी बोलाव्यो. हे वत्स !/81 ६ ते रात्रे एवं उर्ध्यान कयुं पण ते विचार्या वगर करे .नरकादिकनां पुःखनी श्रागल ए फुःख कोण मा. है .अनेक सागरोपम तेवांपुःख प्राणीए घणी वार सहन काँ जे. वली कयुं के, “अग्निमां प्रवेश है।
करवो सारो श्रने शुरू कर्मथी मृत्यु पाम ते सारं, पण ग्रहण करेला व्रतनो नंग अने शीलनी स्खलना । करवी ते सारं नहीं."१ तेम श्रा चारित्रादि कष्टनुं श्राचरण मोटा फलने आपे बे,तें पोतेज पूर्व नवे धर्मने 31 अर्थे कष्ट अनुजव्युं हतुं, तेनुं था फल प्राप्त थयेवु बे.तारा पूर्व नवने सांजल-थाथी त्रीजे नवे वैताढ्य
पर्वतनी नूमि उपर तुसुमेरूप्रन नामे हाथी थयो हतो.ते उ दांतवालो, धोलो अने एक हजार हाथिशणीनो स्वामी थयो. एक वखते दावानलथीनय पामी नासी जतां तृषा लागवाथी एक घणा कादव
वाला सरोवरमांथावी पड्यो.मार्गनो अजाण होते कादवमाखंची जजलशने तीर बनेमांथी व्रष्ट
थयो. पली तारा पूर्वना वैरवाला हाथीए आवी तने दंतोशलनो मार मार्यो. तेनी वेदना सात दिवस है।सुधी जोगवी अंते एकसो वीश वर्षनी आयुष्य पूरी करी ( मृत्यु पामी) विंध्याचल उपर पागे स्
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CHAMOSHLARICHI RICHARUSHIARACHACHORROSHOP
हाथी थर अवतो. ते वखते तुंराता वर्णनो, चार दांतवालो श्रने सातसो हाथिणीनो स्वामी थयो.श्र-|| शानुक्रमे एक वार दावानलने जोइ तने जातिस्मरण थयु, एटले पूर्व जवन स्मरण थयु. पड़ी तें दावान-1 ||
लना परानवमांथी वचवाने एक योजनना प्रमाणवालुं मंगल कयु. तेमां वर्षने आरंने, मध्ये अने अंते जे कां तृण वेल विगेरे थाय ते सर्व उखेमी नाखे. एक वखते दावानलथी जय पामेला वनना प्राणी
ते हाथीना मंडलमां व्यापी रह्या, ते वखते तुं पण सत्वर श्रावीने ते मंमलमां आवी रह्यो. कोश्वार देहने खुजली करवानी श्वाथी तें एक पग उपाड्यो,ते पग उपामतांज को ससलो संकमामणथी पीमाजश्ने तेनी नीचे नरायो. शरीरने खंजवाली ते पग नीचे मूकतां ते ससलो तारा जोवामां आव्यो. तेनी/8 ६ उपर दया लावी बे दिवस सुधी तुं उंचो पग राखी उन्नो रह्यो. ज्यारे दावानल शांत थयो अने सर्व है है जीवो पोतपोतानां स्थानमा चाख्या गया त्यारे ते हस्ती पोतानो पग गली पडवाश्री पृथ्वी उपर पडी।
गयो. पनी त्रण दिवस सुधी लुधा अने तृषाथी पीमित थश्ते कृपालु हाथी सो वर्षनी थायुष्य पूरी करी थहीं तुं आ श्रेणिक राजा अने धारिणी राणीनो पुत्र थयो बो. हे मेघकुमार, ते वखते तिर्यंचना 3
नवमां पण तें धर्मने अर्थे तेवं कष्ट सहन कर्यु हतुं तो आ जगतने वंदन करवा योग्य साधुना चररणथी अथमाता तुं केम फुःख धरे ले ? आवो उपदेशापी जगवंते तेने धर्ममां स्थिर कर्यो. पडी जेने है
जातिस्मरण शान थयेवू दे एवा मेघकुमारे 'एक नेत्रो सिवाय बीजु बधुं शरीर हुँ वोसरा, ढुं' एवो 2 अजिग्रह को. अनुक्रमे अतिचार रहित चारित्रने श्राराधी अंते महिनानी संलेखना करी ते श्री विजय विमानमां देवता थयो. त्यांची चवीने महाविदेह क्षेत्रमा सिद्धिने पामशे. इति मेघकुमार कथा ॥ __ महामहोपाध्याय श्री कीर्तिविजय गणिना शिष्य उपाध्याय श्री विनयविजय गणिए रचेला कल्पसूत्रनी सुबोधिका टीकानो श्रा प्रथम क्षण समाप्त थयो. १
॥अथ द्वितीयं व्याख्यानं प्रारभ्यते ॥ त्रण समुज अने चोथो हिमालय ए चार अंत (बडा) मा प्रजुपणे थयेला धर्मना श्रेष्ठ चक्रवर्ती |
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॥ १७ ॥
एवा श्रर्थात् धर्मना नायक एवा, समुद्रमां डुबता एवा प्राणीउने द्वीप जेवा एटले संसारसागरमां आधाररूप एवा, वली ताप एटले अनर्थनो नाश करवाना देतुरूप एवा, वली कर्मना उपद्रवथी जय पामेला प्राणीउने शरणरूप एवा, गतिरूप एवा, स्वस्थताने माटे जेने दुःखी माणसो श्राश्रित थाय ते गति कद्देवाय वली श्रा संसाररूपी कूवामां पकता एवा प्राणीउने अवलंबन रूप एवा, मूलमां दीवो ताणं इत्यादि पद प्रथमांत बे ते बतां पण ते चतुर्थीना श्रर्थमां बद्धी विनक्ति बेडे होय तेम व्याख्या करवी. वली जे अप्रतिहत एटले बादमी के जींत विगेरेथी अस्खलित एवा उत्तम प्रधान ज्ञान दर्शनने धारण करनारा वली बद्म एटले घातिकर्म जेनाथी निवृत्त थयां बे एवा, वली राग द्वेषने जीतनारा बे. वली ते उपदेश दान विगेरे आपी जव्य प्राणीउने जीवाडनारा बे. या संसारसमुद्रने तरेला बे ने सेवको तारनारा बे. वली ते तत्त्वना बोधवाला बे छाजे बीजाउने तखना बोधक बे. पोते कर्मना पांजरामां| श्री मुक्त बे ने सेवकोने मूकावनारा बे. वली पोते सर्वज्ञ तथा सर्व वस्तुने जोनारा दें. तेमज उपअव रहित, अचल, रोगरहित, अनंत वस्तुविषयनुं ज्ञानस्वरूप, श्रादि अंत रहितपणाथी कयरहित एवं, तेमां अंत एटले सर्वथी नाश छाने दय देशथी नाश तेणे रहित एवं, वली बाधारहित, तथा पुनरावृत्ति, पुनरागमन तेणे रहित एवं सिद्धिगति नामनुं स्थान बे, ते स्थानने प्राप्त थयेला, जयने जीतनारा श्रीजिन जगवंतने नमस्कार बे. आवी रीते सर्व जिनोने नमस्कार करी शक्र इंद्र श्रीवीर प्रभुने नमस्कार करे बे.
श्रम जगवंत श्रीमहावीर प्रभु के जे पूर्वना तीर्थंकरोए कहेला अने सिद्धिगति नामना स्थान प्रत्ये जवानी इछावाला बे, तेमने नमस्कार हो. श्रीवीर प्रभु हवे मुक्तिए जवाना बे तेथी या विशेषण याप्युं छे. या सर्व विशेषणो बडीना एक वचनांत बे ते बतां पण ते चतुर्थीना श्रर्थमां लेवां. इंद्र कहे बे, ते देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिमां रहेला ते वीर प्रजुने हुं वंदना करुं हुं हुं यहीं रह्यो बुं अने प्रभु ते कुक्षिमां रह्या बे. ते मने यहीं रहेलाने जुवे एम धारी इंद्र ते प्रजुने वंदना करे बे ने नमस्कार करे बे.
सुबो०
॥ १७ ॥
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ते करीने इंज पूर्वाभिमुखे सिंहासन उपर बेगे. ते पनी देवोना इं अने देवोना राजा एवा है। ते इंजने श्रावो आत्मविषय संकल्प उत्पन्न थयो, जे चिंतात्मक, अनिलाषरूप अने मनोगत एटले, ६ वचनथी प्रकाशित नहीं करेलो संकल्प हतो. ते केवो संकल्प थयो ते कहे बे. है आबनाव को दिवस नूतकालमां थयो नथी, वर्तमानकालमांथतो नथी अने नविष्यकालमां थशे है
नहीं,के जे अहंत, चक्रवर्ती,बलदेव,अथवा वासुदेवअंत्य एटले शूकुलमां,अधम कुलमां, तुल-अल्प है कुलमां, निर्धन कुलमां, कृपण एटले लोजी कुलमां, जिनुकोना कुलमां, अथवा ब्राह्मणना कुलमा श्राव्या होय, अथवा धावता होय, अथवा हवे पनी आवनारा होय एम थयुनथी त्यारे ते केवा कुलमा ४ उत्पन्न थाय ने ते कहे . ते आ प्रकारे निश्चये करीने उग्र एटले श्रीआदिनाथ प्रजुए रक्षकपणे हूँ स्थापन करेला लोको तेर्जना कुलमां, जोग एटले गुरुपणे स्थापन करेला तेना कुलमां, राजन्य एटले श्रीषनदेव प्रजुए मित्र तरीके स्थापन करेला तेऊना कुलमां, श्वाक एटले श्रीशषजदेवना वंशमा उत्पन्न थयेला तेना कुलमां,क्षत्रिय एटले श्रीयादिनाथे प्रजाना दर्शन तरीके स्थापन करेला तेजनाक-8 लमां, हरि एटले पूर्व जवना वैरी देवताए आणेल हरिवर्ष देत्रनुं युगल तेना वंशजना कुलमां,ते सिवाय बीजाशक जाति ने कुलवाला वंशमां, (अहीं जाति एटले मातानो पक्ष ने कुल एटले पितानो पक्ष समजवो.) एवा कुलमां आवेला , आवे ने अने आवशे-ते सिवाय पूर्वे कहेला नीचादि कुलमां ते अहतादि अवतरता नथी. त्यारे तेप्रनु अहीं केम उत्पन्न थया ते कहे - नवितव्यता नामे एक लोकमां थाश्चर्यकारी जाव-बनाव रहेलो .अनंत उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काल उलंघन थतां जे एवो कोप-3 दार्थ उत्पन्न थाय . तेमांश्रा चालता अवसर्पिणी कालमां आवां दश आश्चर्य थयेला . ते आ प्रमाणे| उपसर्ग १, गर्जनुंहरण २, स्त्री तीर्थंकर ३, अनावित पर्षदा ४, कृष्णर्नु अपरकंकामां जर्बु ५, चंड
सूर्यनुं उतरवू ६, हरिवंश कुलनी उत्पत्ति , चमरेंजनो उत्पात , एकसो बाउनुं सिझ थq ए, तथा ७ असंयतिनी पूजा १०, ए दश श्राश्चर्य थयेला बे. तेनी व्याख्या या प्रमाणे -
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कल्प०
॥ १८ ॥
पसले पवते श्रीवीर प्रजुने बद्मस्थावस्थामां घणा थयेला बे ते खागल कहेवामां श्रावशे. वली ए जगवंतनी केवली व्यवस्था के जेमां प्रजावथीज सर्व उपद्रव शमी जाय तेमां पण पोताना शिष्याजास एटले अधम शिष्य गोशाले उपद्रव कर्यो दतो. ते या प्रमाणे वृत्तांत बे. एक वखते श्रीवीर प्रभु वि|हार करता श्रावस्ती नगरीमां समोसर्या. तेवामां गोशालो 'हुं जिन जगवंत ढुं' एम लोकोमां ख्याति करतो त्यां श्रव्यो. तेथी 'श्रावस्ती नगरीमां बे जिन जगवंत श्राव्या वे' एवी लोकोमां प्रसिद्धि थइ. ते सांजली गौतमे जगवान् वीर प्रजुने पूठ्युं - खामी, 'हुं जिन जगवंत हुं' एम पोताने विख्यात करनार या बीजो कोण बे? जगवंते कयुं, ते जिन नथी, पण शरवण गामनो रहेवासी मंखली ने सुजद्रा थकी घणी |गायोवाली ब्राह्मणनी गोशालामां उत्पन्न थवाथी गोशाल एवा नामने धारण करनार एक मारो शिष्य बे. ते मारी पासेधीज जरा बहुश्रुत य पोतानुं जिन नाम व्यर्थपणे विख्यात करे बे. ते पढी या वात | सर्व ठेकाणे प्रसिद्ध थयेली सांजलीने ते गोशालो अति रोष पाम्यो. तेवामां गोचरीए गयेला आनंद नामना जगवंतना शिष्यने कयुं, हे आनंद ! एक दृष्टांत सांजल, केटलाएक वणिक लोको धन मेलववाने जात जातनां करीयाणां गामामां जरी परदेश जवा नीकल्या. ते कोइ अरण्यमां पेठा. त्यां | जल न मलवाची तृषातुर थइ जलनी गवेषणा करवा लाग्या. तेवामां चार राफमाना शिखर जोवामां आव्यां. तेमणे एक शिखर फोड्युं त्यां तेमांची घणुं जल नीकल्युं. ते जलथी तृषा रहित घर बाकीना जलथी पात्र जरी लीधां पठी एक वृद्ध वणिके कयुं के श्रापणुं धारेलुं कार्य सिद्ध ययुं. दवे बीजुं शिखर फोडशो नहीं. तेम वार्या तोपण ते ए बीजुं शिखर तोडी पाड्युं. तेमांथी सुवर्ण प्राप्त थयुं. पठी वृद्धे तेवी रीते वार्या तोपण ते ए त्रीजुं शिखर फोड्यं. तेमांथी रत्न प्राप्त थयां पठी घणा वार्या तोपण ते लोनांध व्यापारीउए चोथा शिखरने फोड्युं. तेमांथी दष्टिविष सर्प प्रगट थयो. तेणे पोतानी दृष्टिनो पात करी सर्वने पंचत्व पमामी दीधा जे पेलो वृद्ध हितोपदेशक हुतो ते न्यायी होवाथी नजीक रहेल देवताए तेने स्वस्थानमां मूकी दीघो. हे श्रानंद, या प्रमाणे तारो
सुवो०
॥ १८ ॥
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SCORGANGACASSAGAGARGAORAGAON
धर्माचार्य थाटली संपत्ति प्राप्त थ तोपण तेथी संतोष न पामी जेवां तेवां नाषण करी मने कोपावे 8|, तेथी हुँ मारा तपना तेजश्री तेने नस्म करी नाखीश; माटे तुं सत्वर जश् श्रा खबर तेने निवेदन 3 कर. पेला वृक्ष वणिकनी जेम तने हितोपदेशक जाणी तारी रदा करीश. श्रा सांजली आनंद सा-/ धुए जय पामी ते सर्व वृत्तांत जगवंतनी श्रागल कह्यो. जगवंते कद्यु, हे आनंद, तुं सत्वर जश है गौतमादि मुनिने जणाव के था गोशालो अहीं श्रावे , तो तेनी साथे कोइए कांइ जोषण कर नहीं. सर्वने श्रामा अवला चाख्या जवू. पड़ी तेमणे तेम कयु एटलामां गोशाले श्रावी जगवंतने कद्यु, हे काश्यप गोत्री, श्राम केम बोले जे ? के था मंखलीनो पुत्र गोशालो . ते तारो शिष्य मंखलीपुत्र तो है मृत्यु पामी गयो बे. हूं तो जुदोज बं. परीषहोने सहन करवामां समर्थ एवं तेनुं शरीर जाणी तेमांश-16 धिष्ठान करी रह्यो बु. या प्रमाणे गोशाले करेला नगवंतना तिरस्कारने नहीं सहन करता सुनक्षत्र अने सर्वानुनूति नामे बे मुनि वचमां उत्तर श्रापवा लाग्या एटले गोशाले तेजोलेश्याथी तेमने वाली नाख्या, ते दग्ध थश्ने खर्गे गया. पनी जगवंते का, हे गोशाला, तुं तेज गोशालोबो, बीजो नथी. शामाटे 8 वृथा आत्माने गोपवे ने ? था प्रमाणे आत्मा गोपवी शकातो नश्री. जेम कोश् चोर रक्षकोना जोवामां श्राव्यो, पढ़ी ते तृणथी के प्रांगलीथी पोताना देहने आबादन करे तेथी झुं ते आठादित थाय ? श्रावी रीते प्रनुए यथार्थ कयु एटले ते पुरात्माए जगवंतनी उपर तेजोलेश्या मूकी. ते लेश्या 2 नगवंतने त्रण प्रदक्षिणा करी ते गोशालानाज शरीरमा पेठी. तेनाथी शरीर दग्ध थश्गयुं श्रने विविध वेदनाअनुजवी ते सातमी रात्रे मृत्यु पामी गयो. जगवंते पण तेना तापथी मास सुधीरातीचोल कांति धर बाधाने अनुजवी. याप्रमाणे जेना नामना स्मरणथी सर्व दुःख शमी जाय तेवा वीर नगवंतने पण है जेथा उपसर्ग थयो ते प्रथम श्राश्चर्य बे. १ गर्जनुं हरण एटले बीजा उदरमा मूकी दे, ते पण कोइ जि-2 नने पूर्वे थयु नथी,श्रीवीर प्रजुने थयुं बे ए बीजें आश्चर्य . २ तीर्थंकरो हमेशां उत्तम पुरुषोज थाय| बे, स्त्री थता नथी. श्रा अवसर्पिणीमा मिथिला नगरीना पति कुंजराजनां पुत्री मति नामे उंगणी
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कल्प
शमा तीर्थकर थइ तीर्थने प्रवर्त्ताव्यु हतुं, एत्रीजु आश्चर्य ३. ३ अनाविता पर्षदा एटले जगवंतनी दे- सुबो० है शना कदि पण निष्फल थती नथी, पण ज्यारे श्रीवर्धमान स्वामीने केवलज्ञान थयुं त्यारे तेमणे प्रथ-है।
मना समोवसरणमां देशना आपी हती, पण तेथी कोश्ने विरतिनां परिणाम थयां नहीं. एचोथु था-2 ॐश्चर्य.४ नवमा वासुदेव कृष्णने जौपदी निमित्ते अपरकंकामां जq पड्युं ते पण आश्चर्य . ते था प्रमाणे
कथा ले-पूर्वे पांमवनी स्त्री जौपदीए नारदने श्रावता जोश ते संयमी न होवाथी तेने सामा उना था। मान प्राप्यु नहीं तेथी तेणे रोष धरी औपदीने कष्टमां पामवाने धातकी खंडना जरतक्षेत्रमा श्रावेली अपरकंका नामे राजधानीनो स्वामी पद्मोत्तर के जे स्त्रीठमां लुब्ध हतो तेनी श्रागल श्रावी प्रौपदीना रूपनुं वर्णन कर्यु तेणे पोताना मित्ररूप को देवतानी पासे प्रौपदीने पोताने घेर श्राणी. श्रहीं पांड-15 वोनी माता कुंतीए ते खबर जाणी कृष्णने विज्ञप्ति करी एटले कृष्ण प्रौपदीनी गवेषणा करवामां हूँ व्यग्रथया. तेमने नारदना मुखथी ते समाचार प्राप्त थया एटले तेमणे सुस्थित देवनी श्राराधना करी./हू
देवताए ते कृष्णने मार्ग बताव्यो एटले ते बे लाख योजन विस्तारवाला लवण समुडने उद्धंघन करी पद्मोत्तरनी अपरकंका राजधानीमा गया. त्यां पांमवोनो तिरस्कार करनारा ते पद्मोत्तरने नरसिंहरूप करीजीतील पडी प्रौपदीना वचनश्री तेने जीवतो मूकी पोते प्रौपदी साथे पाठा वल्या. चालता 8 चालता शंखनो नाद को. ते सांजली त्यां विहार करता मुनिसुव्रत प्रजुना वचनथी कृष्णने आवेला 8 जाणी मलवाने उत्सुक एवा कपिल वासुदेवे पण समुपकांठे श्रावी शंखनो नाद कयों. पबीते बनेनाशंखना नाद परस्परमली गया. श्राप्रमाणे था श्रवसर्पिणीमां कृष्णर्नु अपरकंका राजधानीमां गमन थयुं । हतुं ए पांचमुं आश्चर्य . ५ कौशांबी नगरीमा जगवंत श्री वर्धमान स्वामीने वांदवाने सूर्य भने । चंड पोतानां मूल विमानथी उतर्या हता, ए बहुं आश्चर्य. ६ हरिवंश कुलनी उत्पत्ति पण एक 8
॥१ ॥ आश्चर्य बे. ते या प्रमाणे-कौशांबी नगरीमा सुमुख नामे राजा हतो. तेणे शालापति वीरक राजानी वनमाला नामनी स्त्री घणी स्वरूपवान जाणीने पोताना अंतःपुरमा नाखी. ते शालापति
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SURAS
चित्र ५
श्री कृष्ण वासुदेव
कपिल वासुदेव
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तेना वियोगयी विकल थइ गयो. जे को जोवामां आवे तेने वनमाला वनमाला कही बोलावतो शाहतो. एवीरीते कौतुकथी अनेक लोकोथी वीटाएलो शालापति नगरमां नमवा लाग्यो. वनमाला साथे क्रीमा करता राजाए तेने जोयो. तेनी एवी स्थिति जोइ आपणे था अनुचित काम कर्यु' एम ते दंपती चिंता करवा लाग्यां. तेवामा तेमनी उपर विजली पम्वाथी ते मृत्यु पामी गया. त्यांथी । ते हरिवर्ष क्षेत्रमा जुगलीयापणे श्रवत. शालापति तेउने मृत्यु पामेलां सांजली अरे ! ते बंने 2
पापीने पाप लाग्यु-एम कही सावधान थर गयो. ते पडी ए वैराग्यथी तपस्या करी सौधर्म क-18 ४पमा किल्बिषिक व्यंतर थयो. विनंग ज्ञानथी ते बनेने जो चिंतववा लाग्यो, अहो! था मारा
वैरी जुगलीयानुं सुख अनुनवी देवता थशे, तेथी ते बनेने हुँ उर्गतिमां पाईं. श्रा, चिंतवी पोतानी शक्तिथी देह संक्षेप करी तेउने अहीं लाव्यो. लावीने राज्य थापी तेमने सात व्यसनो शिखडाव्या. ते पड़ी ते तेवा व्यसनी थइ मृत्यु पामी नरके गया. तेनो जे वंश ते हरिवंश कडेवाय. अहीं जुगलीयाने अहीं लाववा, शरीर तथा आयुष्यनो संदेप करवो अने नरकमां जq-ए श्राश्चर्य -था 8 सातमुं श्राश्चर्य. ७ चमर नामना थसुरकुमारनो उत्पात ए पण श्राश्चर्य बे-ए था प्रमाणे-पूरण ना-15 मना एक मुनि तपस्या करी चमरेंजपणे उत्पन्न थया. ज्यारे ते नवा उत्पन्न थया त्यारे सौधर्मे-है
ने पोताना शिर उपर रहेला जो कोप पाम्या पडी परिघ ल श्रीवीरनुं शरण करी सौधर्मना) अंगरक्षकोने त्रास पमामी सौधर्म विमाननी वेदिकामां पग मूकी शकेंज उपर थाक्रोश को. तेथी। क्रोध पामी शके जाज्वल्यमान वज्र तेनी उपर मूक्यु, तेथी ए जय पामीने नगवंतना चरणमा संता गयो. ते वृत्तांत जाणी इंश तरत त्यां श्राव्यो, प्रनुथी चार आंगल दूर रहेढुं वन लीधुं अने कह्यु के, है
प्रसादथी तने बोडी मक्यो बे. एमकहीचमरने बोमी मुक्यो. या चमरनुं जे ऊर्ध्वगमन ते श्रापमुं आश्चर्य . एक समयमा उत्कृष्ट अवगाहनवाला एकसो श्राप जीव सिद्धिए न जाय ते । बतां था श्रवसर्पिणीमा तेटला सिकिए गया बे. जेमके श्रीषजनाथ, तेमना जरत सिवाय नवाएं।
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॥ २० ॥
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पुत्रो थने घाव जरतना पुत्र एक समये सिद्धिने पाम्या - ए नवमं श्राश्चर्य बे. ए असंयत एटले संयम | वगरना जे प्रारंभ परिग्रहमां यासक्त वे तेवानी पूजा. जे संयत-संयमवाला ने ते तो सर्वदा पूजाय, पण श्रावसर्पिणी मां एटले नवमा श्रने दशमा जिननी अंतरे असंयत एवा पण ब्राह्मणादिकनी पूजा प्रवर्त्ती ए दशमं श्राश्चर्य. १० या दश आश्चर्यो अनंतकाल गया पढी था अवसर्पिणीमां थयेलां बे. | एवी रीते कालनी समानताथी बाकीना चार जरतमां ने पांच ऐरवतमां एम प्रकारांतरे दश दश श्राश्चर्यो जाणवां. हवे ते दश श्राश्रर्यो कोना कोना तीर्थमां थयां ते स्पष्ट करे ठे-एकसो ने आठ सि | किए गया ए आश्चर्य श्रीरुषनदेवना तीर्थमां थयुं दतुं हरिवंशनी उत्पत्तिनुं आश्चर्य शीतलनाथना तीर्थमां ययुं हतुं. परकंका राजधानीमां जवानुं श्राश्चर्य श्री नेमिनाथना तीर्थमां थयुं हतुं. स्त्री तीकर थवानुं श्राश्वर्य श्रीमल्लिनाथना तीर्थमां घयुं दतुं श्रसंयत-ब्राह्मणादिकनी पूजानुं आश्चर्य श्रीसुविधिनाथना तीर्थमां ययुं हतुं. बाकीनां उपसर्ग, गर्जनुं हरण, श्रावित पर्षदा, चमरनुं ऊर्ध्व गमन ने सूर्य चंद्रनुं अवतरण - ए पांच श्राश्वर्य श्री वीरतीर्थमां थयां बे.
ए दश श्राश्चर्य समाप्त थयां. दवे एक आश्चर्य बीजुं ययुं. श्रा श्राश्चर्य के जे नामगोत्र एटले नाम वडे गोत्र अर्थात् जे गोत्र नामनुं कर्म बे ते. वली ते केवुं ठे के जे अक्षीण एटले स्थितिना श्रयथी रहेलुं बे, वली ते रसना परिजोगयी अज्ञात बे, वली निर्जीर्ण श्रटले जीवना प्रदेशथी नहीं सडेलुं एवं बे, एवा गोत्र अर्थात् नीच गोत्रना उदयश्री जगवान् महावीर ब्राह्मणीनी कुद्दिमां उत्पन्न थया. नीच गोत्र जगवंते सत्यावीश स्थूल जवनी अपेक्षाए त्रीजा जवमां बांध्युं हतुं, ते या प्रमाणे वृत्तांत बे. पदेला जवमां पश्चिम महाविदेह क्षेत्रमां नयसार नामे एक ग्रामपति हतो. एक वखते ते काष्ठ लेवाने वनमां गयो. मध्याह्नकाल यतां ते वनमां जोजनसमये सार्थथी जुदा थयेला साधु तेना जोवामां श्राव्या. तेमने जो ते हर्ष पामी चिंतवन करवा लाग्यो, अहो ! मारां मोटां जाग्य ! आ स | मये अतिथिनो समागम थयो. पढी घणा हर्षथी ते साधुर्जने शन पानादिकथी प्रतिलाच्या पाठी
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॥ २० ॥
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हैलोजन कर्या बाद ते साधुउने नमीने बोल्यो, महानाग, चालो, श्रापने मार्ग बतावं. पडी मार्गमा
चालता साधए 'था योग्य ' एम धारी धर्मनो उपदेश थापी तेने समकितनी प्राप्ति करावी. अंतकाले नवकार स्मरण करतां मृत्यु पामी ते बीजे नवे सौधर्म देवलोकमां पख्योपम आयुष्यवालो देवता थयो. त्यांश्री चवीने त्रीजे नवे मरीचि नामे जरत चक्रवर्तीनो पुत्र थयो. वैराग्य प्राप्त करी श्री षनदेव प्रजुनी पासे तेणे दीक्षा लीधी अने स्थविर पासे एकादशांगीन अध्ययन कयु. एक वखते ते ग्रीष्मऋतुमां तापादिकनी पीमा पामी चितवन करवा लाग्यो के, "श्रा संयमनो , नार श्रति वहन करवो मुश्केल , ते माराथी निर्वाह करी शकाशे नहीं अने हवे श्रा वेष बोमी । घेर चाल्या जq ते सर्वथा अनुचित ने" था, विचारी तेणे एक अभिनव वेष धारण कों. ते श्रा प्रमाणे-श्रा साधु मन, वचन अने कायाना त्रण दमथी विरत ने अने हुं तेवो नथी तो मारे त्रण दमनुं चिह्न हो. था साधुः अव्य अने नावथी मुंमित बे, हुं तेवो नथी तेथी मारा & मस्तक उपर शिखा थने कुर मुंगन हो. सर्व श्रमणोने प्राणातिपातथी विरति डे परंतु मारे तो स्थूल हिंसाथ। विरति हो. साधु शीलवतथी सुगंधी ने अने हुं तेवो नथी तेथी मारे तो चंद नादिकनुं विलेपन हो. मुनि मोह वगरना बे श्रने हुँ तो मोहथी श्राबादित बुं, तेथी मारे बत्रीवेंद्र आछादन हो. मुनिना चरण उपान वगरना जे पण मारा बे चरणमा उपान हो. श्रमण-मुनि कषाय रहित ने अने ढुंकषाय सहित बुं, तेथी मारे कषाय वस्त्र हो. मुनि नानथी विरत ले परंतु मारे तोपरि-|| |मित (मापवाला) जलथी स्नान तेमज पान हो. एवी रीते खबुद्धिथी परिव्राजकनो वेष कल्पी लीधो. 81 ४|| पनी विरूप वेषवाला तेने जोर सर्व लोको तेने धर्म पूबवा लाग्या, त्यारे तेउनी आगल साधुधर्मनी प्र-31
रूपणा करवा लाग्यो. देशनाशक्तिथी अनेक राजपुत्रोने प्रतिबोध पमाडी नगवंतने शिष्यपणे वर्त्तवा लाग्यो, अने नगवंतनी साथेज विहार करवा लाग्यो. एक वखते जगवंत अयोध्यामां समोसर्या, त्यां । वंदना करवाने आवेला जरते प्रजुने पूज्यु के, खामी, या पर्षदामां था चोविशीनी अंदर जरतक्षेत्रने
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कल्प
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विषे को जिन थाय तेवो पुरुष डे ? जगवंते कडं, हे जरत, आ तारो पुत्र मरीचि आ चालती अवसर्पिणीमां वीर नामे चोवीशमा तीर्थकर, विदेह देवनी मूका राजधानीमा प्रिय मित्र नामे चक्रवर्ती अने थानरतक्षेत्रमा प्रथम वासुदेव थशे.श्रा सांजली दर्ष पामेला नरते मरीचि पासे जश्त्रण प्रददिणा अने वंदना करी कडं, हे मरीचि, जेटला लाल ने तेटला तेंज मेलव्या बे, कारण के तुं तीर्थकर, वासुदेव श्रने चक्रवर्ती थश्श. हुँ तारा था परिव्राजकपणाने वांदतो नथी, पण तुं तीर्थकर थश्श एम 4 है धारी तने वंदना करुं हुं. एम वारंवार स्तुति करी नरत पोताना स्थानमा गयो. मरीचिए पण ते सां.
नली हर्षना थधिक्यथी त्रिपदी बनावी नृत्य करतां आ प्रमाणे कर्वा "पहेलो वासुदेव थश्श, मूकापुरीमा चक्रवर्ती थश्श श्रने नेहो तीर्थकर यश्श. अहो ! माझं कुल घणुं उत्तम . बधा वासुदेवोमां 5
हुँ पहेलो वासुदेव थश्श, मारा पिता जरत बधा चक्रवर्तीउँमा पहेला चक्रवर्ती ने अने मारा पिता-3 हूँ मह रुषजदेव सर्व तीर्थंकरोमां पहेला तीर्थंकर ने. अहो ! मारुं कुल केवु उत्तम !” श्रा प्रमाणे मद
करवाथी मरीचिए नीच गोत्र बांध्यु. कडं ने के, "जे माणस जाति, लाल, कुल, ऐश्वर्य, बल, रूप, तप,
अने विद्या ए सर्वर्नु अनिमान करे तो तेने पुनः ते बधां हीन मले जे." ते पनी ज्यारे जगवंत निर्वाण ४. पाम्या, एटले ते पूर्वनी जेम लोकोने प्रतिबोध करी साधुऊना शिष्य करी तेउनी साथे विहार करवा 5
लाग्यो. एकदा मरीचिना शरीरे व्याधि थयो पण कोश्तेनी वैयावच्च करतुं नहीं त्यारे तेणे चिंतव्युं के,श्र-5 हो,श्रा निग्रंथो घणा परिचित ने तथापि ते पारका ,तेथी जो हुँ नीरोगी था तो एक वैयावच्च करनारो। शिष्य करूं-श्राम विचायु. अनुक्रमे ते नीरोगी थयो. एक वखते कपिल नामनो कोश् राजपुत्र मरीचिनी ।
देशना सांजली प्रतिबोध पाम्यो एटले मरीचिए का, हे कपिल, तुं साधुउनी पासे जश् चारित्र ग्रहण दूधकर. त्यारे कपिले कयु, स्वामी, हूं तो तमारा दर्शन व्रत लश्श. त्यारे मरीचि बोल्यो, हे कपिल, ते
साधु त्रण प्रकारना दंडश्री विरत ने अने हुँ तो त्रण दमवालो इत्यादि सर्व पोतानुं वरूप कही बताव्यु, तथापि ते नारेकर्मी कपिल चारित्रथी विमुख थश् बोध्यो, शुं तमारा दर्शनमां सर्वथा धर्म
॥१॥
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नथी ? ते सांजली मरीचिए विचायु के, श्रा मारो योग्य शिष्य थशे. एवं विचारीने कछु के, कपिल, जैन मार्गमां पण धर्म बेथने मारा मार्गमा पण बे. ते सांजली कपिले तेनी पासे दीक्षा लीधी. मरीचिए श्रावो नत्मत्र वचनथी कोटाकोटीसागरोपम संसार उपार्जन कर्यो. जे अहीं किरणावलीकार कहे बे के, कविला इत्थं पिश्यंपिए वचन उत्सूत्र मिश्रित जे. तेवा उत्सूत्रनाषीने नियतपणे अनंत संसार है बे एम कही पोताना मतनुं स्थापन करवानी रसिकता ने एम जाणवू. तेनो मत था प्रमाणे के उसूत्र कहेनाराने नियतपणेज अनंत संसार थाय . जो था मरीचिनुं वचन उत्सूत्र कहीए तो एने पण अनंत संसार प्राप्त थवानो प्रसंग श्रावे, पण तेने अनंत संसार थयो नथी, तेथी ते उत्सूत्रमि-13 श्रित एवो तेमनो मत युक्त नथी, कारण के 'उत्सूत्र कहेनाराने अनंत संसार में एवो नियम नथी. -श्रीनगवती सूत्र विगेरे घणा ग्रंथोने अनुसारे उत्सूत्र कहेनाराजमां शिरोमणिरूप जमालिनिहवने पण ,
परिमित संसार जोवामां आव्यो बे. वली उत्सूत्र मिश्र कहेवाथी पण श्रा मरीचिना वचननु उत्सूत्र | पणुं चास्युं जतुं नथी. विषमिश्रित अन्न विषज गणाय बे. हवे ए विषे वधारे कहेवू योग्य नथी,ए-15 टझुंज बस डे. ते कर्मनी थालोचना कर्या वगर चोराशी लाख पूर्व- श्रायुष्य पूर्ण करी मृत्युपामी चोथे । नवे ब्रह्मलोकमां दश सागरोपमनी स्थितिवालो देवता थयो. त्यांधी चवीने पांचमेजवे कोखाक नामना ग्राममां एंशी लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो ब्राह्मण थयो.ते अतिविषयासक्त अने शूकवगरनो थयो. बेवटे त्रिदमी थबहुकाल सुधी संसारमा जम्यो. श्रा तेना नव स्थूल जवनी अंदर गणाता नथी. त्यांथी| बहे नवे स्थूणा नगरीमां बोतेर लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो पुष्प नामे ब्राह्मण थयो. ते त्रिदंमी था
मृत्यु पाम्यो. सातमे नवे सौधर्म कल्पमा मध्य स्थिति देवता थयो. त्यांची चवीने थाम्मे नवे चैत्य है लग्राममां साठ लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो अग्निद्योत नामे ब्राह्मण थयो. ते त्रिदंडी थर मृत्यु पाम्यो.
नवमा नवमां ईशान देवलोके मध्य स्थितिवालो देवता थयो, त्यांची चवी दशमे नवे मंदर ग्रामे उपन्न लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो श्रमिनूति नामे ब्राह्मण थयो. अंते त्रिदंमी थश् मृत्यु पाम्यो. अगीयारमा
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॥ १२ ॥
जवमां त्रीजा कल्पनी अंदर मध्यस्थितिवालो देवता थयो. त्यांथी चवी बारमे जवे श्वेतांबी नगरीमां चुम्मालीश लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो नारद्वाज नामे ब्राह्मण थयो. ते त्रिदंडी थइ मृत्यु पामी तेरमे जवे | माहेंद्र कल्पमां मध्य स्थिति देवता थयो. त्यांथी चवीने केटलोक काल संसारमां जमी चौदमे जवे | राजगृह नगरमां चोत्रीश लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो स्थावर नामे ब्राह्मण थयो. ते त्रिदंडी थइ मृत्यु पामी पंदरमा जवमां ब्रह्मलोकमां मध्यम स्थितिवालो देव थयो. सोलमा जवमां कोटिवर्षना श्रायुष्यवालो विश्वभूति नामे युवराज पुत्र थयो. ते संभूति मुनि पासे चारित्र लइ एक हजार वर्ष पुस्तप तपस्या करवा लाग्यो. एक समये मासोपवासना पारणा माटे मथुरापुरी मां गोचरी सारु गयो. त्यां कोइ एक गाये तपस्याथी कृश थवाने सीधे तेने पृथ्वी उपर पामी नाख्यो. तेने पडेलो जोइ त्यां परणवाने श्रावेला विशाखनंदी नामना तेना काकाना पुत्रे तेनुं उपहास्य कर्यु, तेथी कोप पामी तेणे ते गायने वे शींगडे पकड़ी थाकाशमां जमावी ने एवं नियाएं कर्यु के, में करेला उग्र तपथी हुं जवांतरे घणो पराक्रमी थाउं. त्यांथी | मृत्यु पामी सत्तरमे जवे महाशुक्र विमाने उत्कृष्ट स्थितिवालो देवता थयो. त्यांथी चवीने अढारमे जवे पोतनपुरनो राजा प्रजापति के जे पोतानी पुत्री उपर कामी थयो हतो, तेनी पत्नीरूप मृगावती पुत्रीनी कुक्षिमां चोराशी लाख वर्षना श्रायुष्यवालो त्रिपृष्ट नामे वासुदेव थयो. त्यां बाल्यवयमां पण | प्रतिवासुदेवना शालि क्षेत्रमां विघ्न करनारा सिंहने शस्त्र बोकी विदारण कर्यो. अनुक्रमे वासुदेवपणाने प्राप्त थयो. एक वखते ते वासुदेवे पोताना शय्यापालकने श्राज्ञा करी के, ज्यारे श्रमे सुर जइए त्यारे तुं श्रा गायकोने गायन करता अटकावजे तेवी श्राज्ञा कर्या ठतां गीतरसमां आसक्त थयेला | ते शय्यापालके वासुदेव सुता दता ने तेने वार्या नहीं. ते पछी क्षणवारे जाग्रत थइ वासुदेवे । कयुं, "अरे पापी, मारी आज्ञा पालवाथी पण तने गीतश्रवण प्रिय लाग्युं, तो ले, तेनुं फल जोगव.” एम कही तेना बने कानमां तपेलुं सीसुं रेड्यं. या कृत्यथ। तेणे पोताना कानमां खीला नखाववानुं कर्म उपार्जन कर्यु. एवी रीते अनेक दुष्कर्म करी त्यांथी मृत्यु पामी जंगणीशमे नवे सातमी ना
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रके नारकीपणे उत्पन्न थयो. त्यांथी नीकली वीशमा नवमां सिंह थयो. त्यांथी मृत्यु पामी एकवीश
मा नवमां चोथी नारकीमा उत्पन्न थयो. त्यांची नीकली घणा नव नमी बावीशमे नवे मनुष्यपणुं है प्राप्त करी शुज कर्म उपार्जन करी त्रेवीशमे नवे मूका राजधानीमां धनंजय राजानी धारिणी देवीनी
कुक्षिमा चोराशी लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो प्रिय मित्र नामे चक्रवर्ती थयो. ते पोहिलाचार्यनी पासे है दीदा लइ एक कोटि वर्ष सुधीदीदा पाली चोवीशमे नवे महाशुक्र देवलोकमां देवता थयो. त्यांथी । चवीने पचीशमे नवे था जरतदेतनी बत्रिका नगरीमा जितशत्रु राजानी जमा नामे देवीनी कुदिमाई पचीश लाख वर्षना आयुष्यवालोनंदन नामे पुत्र थयो.ते पोहिलाचार्यनी पासे चारित्र लश् जाव जीव सुधी मासढ़पण करी वीश स्थानकनी थाराधना वडे तीर्थंकर नामकर्म निकाचित करी एक लाख वर्ष है
सुधी चारित्रपर्याय पाली मासिक संलेखनाथी मृत्यु पामी वीशमे नवे प्राणत करूपमा पुष्पोत्तरावतं४सक विमानमां वीश सागरोपमनी स्थितिवालो देवता थयो. त्यांची चवीने पूर्वे मरीचि जवमां बांधेला
अने जोगववाने वाकी रहेला नीच गोत्रना कर्मथी सत्यावीशमे नवे ब्राह्मणकुंमग्राम नगरमां षनदत्त । है ब्राह्मणनी देवानंदा ब्राह्मणीनी कुदिमां ते उत्पन्न थयो. तेथी शक्र-इंस था प्रमाणे चिंतवे डे के एवी रीते नीच गोत्र कर्मना उदयथी अहंत, चक्री,बलदेव श्रथवा वासुदेव विगेरे अंत प्रमुख नीचकुलोमां है
आव्या ,आवे के अने आवशे, अने कुक्षिमा गर्नपणे उत्पन्न थया ने, थाय ने अने थशे, पण जन्म 2 8 लेवाने माटे ते योनिमाथी नीकल्या नथी, नीकलता नथी श्रने नीकलशे नहीं. जावार्थ एवो डे के
कदाचित कर्मना उदयथी ते अहंत विगेरेनो अवतार तुबप्रमख नीच गोत्रमा थाय, पण योनिथी जन्म तो थयो नथी, थतो नथी अने थशे नहीं; अने था श्रमण जगवंत महावीर प्रजु जंबूझोपने विषे हैं नरतक्षेत्रमा ब्राह्मणकुंडग्राम नगरमांषनदत्त ब्राह्मणनी स्त्री देवानंदानी कुदिमां गर्नपणे उत्पन्न थया । बे, ते माटे श्रावो श्राचार . ते कोनो श्राचार देते कहे. देवताना राजा शक्रादि इंशोनो चार बे. तथतीत, वत्तमान अनअनागत एवा इंजनोथाचार .ते कयो याचार ते कहे .तेवा प्रकारना पूर्वे|8|
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करूप०
॥ १३ ॥
| कहेला स्वरूपवाला अंत्यादि कुलथी अत प्रजुने लइने तेवा प्रकारना जय विगेरे बीजी विशुद्ध जाति अने कुलवाला वंशमां राज्यसंपत्ति करते बते ने पालते ते मूकवानो इंद्रोनो श्राचार बे, माटे ते श्रेय - कल्याण बे, मने पण घटे ठे के, ज्ञात एटले श्रीकृषनस्वामीना वंशना क्षत्रिमां प्रख्यात एवा काश्यपगोत्री सिद्धार्थ राजानी वाशिष्टगोत्री जार्या त्रिशला क्षत्रियाणीनी कुद्दिमां गर्जपणे प्रभुने मूकवा जोइए ने जे त्रिशला क्षत्रियाणीनो पुत्री रूप गर्न बे, ते त्यांची लइ जालंधरसगोत्री देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिमां मूकी देवा मारे युक्त बे. एम करीने ते विचारे बे, विचारीने पदाति-सेनाना नायक | एवा हरिगमेषी देवने बोलावे े. बोलावीने या प्रमाणे कहे बे- हे देवानुप्रिय, त्यांथी मांगी ने साहरावित्तए त्यां सुधीनां चार सूत्रो व इंद्र पोतानुं चिंतवेलुं हरिणैगमेषी देवने कड़े बे. वली कड़े बे के, दे देवानुप्रिय, इंद्रोनो याचार बे ते कारण माटे तुं जा छाने देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिमांथी जगवंतने त्रिशला क्षत्रियाणीनी कुद्दिमां मूकी दे, घने त्रिशलानो जे गर्न बे तेने देवानंदानी कुक्षिमां मूकी दे. ए प्रमाणे करीने या मारी श्राज्ञाने सत्वर अर्पण कर कार्य करीने यावी, या कार्य में कयुं, एम शीघ्र निवेदन कर. ते पढी ते हरिगमेषी देव के जे पेदल सेनानो अधिपति बे तेने देवेंद्र ने देवराज एवा इंडे या प्रमाणे कथं एटले हृदयमां हर्ष पामी रोमांचित थ गयो. एवो हरिणैगमेषी देव मस्तके अंजलि करी बोल्यो, जेवी आप देवनी आज्ञा, एम कही श्राज्ञानुं वचन विनयथी सांजले ने अंगीकार करे, अंगीकार करीने इशान कोणमां जाय. त्यां जश्ने वै क्रिय| समुद्घात एटले वैक्रिय शरीर करवा माटे प्रयत्न करे. ते करीने संख्येय योजन प्रमाण दंमनी आकृति - वाला उपर छाने नीचे विशाल जीवप्रदेशना कर्मपुद्गलना समूहने बहार काढे. ते करवा वखते खावा | प्रकार ना पुद्गलोने ग्रहण करे. ते या प्रमाणे- कर्केतनादि रत्नोना, जो के रत्न पुद्गलो औदारिक बे तेथी | ते वैक्रिय शरीर करवामां असमर्थ बे. तेमां तो वैक्रिय वर्गणाना पुद्गलोज उपयोगमां श्रावे, तोपण रत्नोनी जेम ते सार पुद्गलो बे एम जाणवुं. ते रत्नो जेवां के हीरा, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, इं
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॥ २३ ॥
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दासी परबो करती सुई गई.
चित्र. ८
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देवानंदी जेबी है.
हर सी मैषीदेव बालक
हरा केरी जायखे
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सगर्न, पुलक, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक,जातरूप,सुनग,अंक, स्फटिक,अने रिष्ट एवां है नामनी सोल रत्नजाति बे. तेजना जे बादर-स्थूल अर्थात अत्यंत असार पुदगलो तेमने बोडीने, जे ४ सूक्ष्म एटले अत्यंत साररूप पुद्गलो होय तेने ग्रहण करे. ग्रहण करीने फरीवार वैक्रियसमुद्घात वडे | पूर्वनी जेम प्रयत्न करे, ते करीने नवने धारण करवानी अपेक्षाए उत्तर वैक्रिय एबुं बीजं रूप करे,
रीने अन्य गतिथी जत्कृष्ट-मनोहर, चित्तना उत्सुकपणावाली, कायानी चपलतावाली, तीव्र, बाकीनी गतिउने जीतनारी,प्रचंम, शीघ्र, को ठेकाणे बेयाए एवो पाठ एटले विघ्ननो परिहार करवामां दक्ष एवी अने देवता योग्य एवी देवगति वडे अतिक्रमण करतो ते तिर्जा असंख्य छीपसमुमोनामध्यनागे थज्यां जंबूछीप बे,तेमांजरतदेवने विषे ब्राह्मणकुंमग्राम नामे नगरबे,तेमांझपनदत्त ब्रामणने घेर ज्यां देवानंदा ब्राह्मणी नेत्यां ते श्रावे,श्रावीने महावीरनुं दर्शन थतां तेमने प्रणाम करे,प्रणाम है। करी परिवार सहित देवानंदा ब्राह्मणीने अवस्वापिनी निसापे, ते निमा श्रापी अशुचि पुद्गलोने । हरी ले अने शुज पुद्गलो नाखे, ते नाखीने पली 'जगवंत मने आशा आपो' एम कहे,तेम कहीने 3 बाधा रहित एवा जगवंतने अव्याबाध सुख वडे दिव्य प्रत्नावथी करतलना संपुटमा ग्रहण करे. तेने 8 है ग्रहण करती वखते गर्जने कांश पीमा थती नथी. ते विषेपणं नंते ए नगवतीनी गाथामां कडं बे.
विवेद एटले त्वचानो बेद कर्या वगर गर्न प्रवेश करवो अशक्य . ते गर्नने हाथमा लज्यां क्षत्रियकुंमग्राम नगरबे,जे नगरमा सिफार्थ क्षत्रियनुं घर बे अने जे घरमां त्रिशला क्षत्रियाणी ने त्यांथावे जे, अने आवीने परिवार सहित एवी त्रिशला दत्रियाणीने अवस्खापिनी निशा आपे ,अने श्रापीने श्र-3 शुज पुद्गलो पूर करे , अने तेम करीने शुज पुद्गलोने मूके डे अने शुन पुद्गलोने मूकीने ते श्रमण जगवंत श्रीमहावीरने बाधा रहितपणे त्रिशला क्षत्रियाणीनी कुदिमां गर्नपणे मूके बे. श्रहीं गर्जने | ||संहरण करवामां चार नांगा . गर्भाशयथी गर्जाशयमा १ गर्नाशयथी योनिमांश् योनिथी गर्भाशयमां ४३ अने योनिथी योनिमां ध. तेमां अहीं योनिमार्गे लश् गर्नाशयमा मूके ए त्रीजो नांगोअनुज्ञात ,
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कल्प
॥
४॥
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बाकीना नांगानो निषेध कर्यो . ते विषे जगवती सूत्रमा लख्युं . वली जे त्रिशला क्षत्रियाणीनो 81 टू पुत्रीरूप गर्न हतो तेने पण देवानंदा ब्राह्मणीनी कुदिमां मूके डे, तेम करीने पनी जे दिशामांथी पोते है
श्राव्यो ते दिशा प्रत्ये जाय.पनी असंख्य द्वीपसमुसोनी मध्यमांथलद योजन प्रमाण दिव्य गतिथी है। उमतो ते ज्यां सौधर्म कल्पमां सौधर्मावतंसक नामना विमानने विषेशक नामनासिंहासन उपर देवेंजर देवराज शक्रेज रहेलो डे त्यां आवे.त्यां श्रावीने इंजनी थाझाने तुरत प्रत्यर्पित करे . ते काले ते समये 8
वर्षाकाल संबंधी त्रीजो मास, पांचमुं पखवामीयु ते आश्विन मासनो कृष्णपक्ष, तेनी त्रयोदशीनो पक्ष दार्थात पाबली अर्धरात्रि, ते रात्रिनेविषे ब्याशी अहोरात्र अतिक्रांत थया पबीत्र्याशीमा अहोरात्रनोट
अंतरकाल एटले रात्रिनो काल प्रवर्त्तता ते हरिणैगमेषी देवताए त्रिशला मातानी कुदिमां ते श्रमण ? नगवंत महावीरनो गर्न सहयो. ते हरिणेगमेषी देव केवो हतो केजे पोतानो अने इंजनो हितकारी || वली अनुकंपक एटले नगवंतनो जक्त जे. अनुकंपा शब्द नक्तिवाचक नेते विषे 'आयरिय' ए वचन-प्र-18 माण जे. अहीं कवि उत्प्रेक्षा करे बे-“श्रीनगवंत सिद्धार्थ राजाना प्राप्तकुलना घरमा प्रवेश करवाने क-हू + णवार मुहूर्त आववानी राह जोता होय तेम जे ब्राह्मणना घरमा ब्याशी अहोरात्र सुधी रह्या हता, ते ।
श्रीवरम तीर्थकर प्रनु पवित्र करो. ते संहरण काले श्रमणजगवंत श्रीमहावीर त्रण झाने युक्त हता, तेथी। पोतानुं संदरण थवानुं ते जाणे बे, पण संहरण थती वखते जाणता नथी अने मारुंगर्जमांथी संहरण ६ थयुंए जाणे .अहीं शंका थाय ले के संहरण थती वखते ते जाणतानथी ते वात केम संजवे? कारण
के ते संहरण असंख्य समयनुं ने, वली जगवंत श्रने संहरण करनार हरिणैगमेषी देवना ज्ञाननो है ते विषय डे, तेम तेनी अपेक्षाए नगवंतने विशिष्ट ज्ञान ले. तेना उत्तरमा कहे जे के या वाक्य संहरण है
करनारा देवनी कुशलताने जणावे . ते देवताए नगवंतनुं एवी रीते संहरण कयु के जेथी नगवंते जाएयु तोपण जाणे जाएयुज न होय तेम लाग्युं, कारण के कांश पण पीडानो अनाव हतो. जेम 8 को कहे डे के तमे मारा पगमाथी एवी रीते कांटो काढ्यो के जे मारा जाणवामांज श्राव्यु
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॥२४॥
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नहीं. ज्यां श्रतिशे सुख लागे त्यां श्रावो व्यपदेश थाय बे. सिझांतमां पण जोवामां थावे के जेकी व्यंतर देवता ले ते उत्तम स्त्रीउनां गीत अने वाद्यना शब्दथी नित्ये सुखी अने प्रमुदित थपोताना | गतकालने पण जाणता नथी. वली याचारांग सूत्रमा कडं के ते हरण करातां जाणे. ए विरोध पण न थावे एम मानवु.जे रात्रे श्रमण जगवंत महावीर देवानंदानी कुतिमाथी त्रिशलानी कुदिमां संहरणधी आव्या, ते रात्रे ते देवानंदाए पूर्वे कहेलां चौद खप्नो त्रिशलाए हरी लीधेलांजोयां. ते जोश ।
जागी गइ. जे रात्रे जगवंतने गर्नपणे त्रिशला दत्रियाणीनी कुदिमां मूक्या ते रात्रे त्रिशला क्षत्रिया-15 हणीजे वर्णवी शकाय नहीं तेवा वासगृहमा हती. जे वासगृह-शयनगृह केर्बु हतुं तो के महा नाग्यवंतने 8 ६ योग्य हतं.जे चित्रकर्म वडे रमणीय हतुं.जेनो बहारनो नाग चुना विगेरेथी धवलित को हतो.जे टूल पाषणादिकथी घसेढुं,तेथी सुकोमल हतुं.जेनो उपरनो जाग विविध चित्रोथी युक्त हतो. जेनो अधो ,
जाग-तलीयुं देदीप्यमान हतुं. मणिरत्नोपी जे अंधकारने नाश करतुंहतुं. जे पंचवर्णनां मणिउथी नि-12 वक होवाथी अत्यंत सम हतुं अने जेनी नूमिनो नाग विविध स्वस्तिक विगेरेनी रचनाश्री मनोहर हतो. पंचवर्णा, सरस, सुगंधी अने पामतेम वेरेला पुष्पपुंजना उपचार-पूजाश्री जे व्याप्त हतुं. कृष्णागुरु, चीरजातना, सिव्हक नामनाथने दशांग विगेरे अनेक सुगंधी अव्यना संयोगथी उत्पन्न थयेल धूप जेमां थताहता.ए सर्व वस्तु संबंधी मघमघीने प्रगट थयेल सुगंध वडे जे बाह्लादक हतुं.वली जेमां उत्तम ? सुगंधीनो गंध प्रसरतो हतो.जे वासनवन गंध अव्यना जेवू अर्थात् अतिसुगंधी हतुं. एवा वासनवनमा ।
न वर्णवीशकाय तेवी शय्या-पलंग उपर ते रही हती. ते केवी शय्या ? तो के जेमां शरीरना प्रमाण 81 ६ जेटली तलाबे, उन्नय तरफ एटले मस्तकांत अने पादांतमां बे उशीषां बे, ते सिवाय बंने पडखे उशीषां है
तेथी ते शय्या बंने नागमां ऊंची लागे बे. वली तेने लीधे मध्यमां नमेली अने गंजीर ले. जेम गंगातटनी रेतीमां पग विगेरे मूकवाथी ते पग नीचे उतरी जाय तेम ते शय्यामां पण अतिकोमलपणाने ली- धेतेम हतुं. अतिकोमल रेशमी वस्त्रना पटथी ते श्राबादित . वली जेमा रज पझे नहीं तेवू श्राबादन
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कल्प०
॥ २५ ॥
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बे. राता वस्त्रनी मछरदानीथी ते ढांकेली बे. छाति रमणीय बे. सुकोमल मृगचर्म, कपासनी रूवांटी, बूर जातनी वनस्पति, मांखण थने याकमाना रूना जेवो जेनो स्पर्श बे. सुगंधी, सुगन्धे करीने प्रधान एवां पुष्पथी ने वासचूर्ण थी जेमां उपचार करवामां श्राव्यो बे. यावी शय्यामां मध्य रात्रिना अवसरे | सुती जागती अल्प निद्रा करती त्रिशला क्षत्रियाणी गज, वृषन विगेरे चौद महास्वप्नोने जोइने जागी ग. ते त्रिशला क्षत्रियाणी प्रथम स्वप्नामां हाथी जोवे -यहीं 'प्रथम हस्ती जुवे' एम जे कह्युं ते घणी | जिनमाताई तेम जोवे बे, तेथी पाठानुक्रमनी अपेक्षाए कर्तुं ठे. अन्यथा श्रीकृषन देवनी माता प्रथम |रुषन ने वीरमाता प्रथम सिंहने जोवे. हवे ते केवो हाथी जोयो के जेने चार दांत बे. कोइ ठेकाणे तउ चउदंतं एवो पाठ वे तो एवो अर्थ थाय के, तेजश्री घणा बलवान् एवा चार दांतवालो. ते हाथी | केवो बे ? यति उंचो बे. वली वर्ष्या पठी दुग्धवर्ण थयेलो विशाल मेघ, मोतीनो हार, क्षीरसमुद्र, चं| नां किरणो, जलनां बिंडु ने रूपानो महान् पर्वत वैताढ्य तेना जेवो उज्ज्वल बे. गंधना लोजथी ज्यां जमरा आवे बे एवा विशिष्ट गंधवाला मदजलथी जेना गंगस्थल सुगंधी थयेला वे. इंद्रना हस्ती | ऐरावत जेवुं जेना देहनुं शास्त्रोक्त प्रमाण बे-एवा हाथीने त्रिशला माता जुवे बे. वली ते केवो हाथी बे तो के जलपूर्ण मेघनी गर्जना जेवो गंजीर ने मनोहर जेनो ध्वनि बे. वली ते शुभ एटले प्रशंसवा योग्य बे. जेनामां सर्व लक्षणोनो समूह बे, घने जेने प्रधान अने विशाल उरु बे एवा उत्तम | हस्तीने त्रिशला माताए प्रथम स्वप्नमां जोयो.
ते हस्तीना दर्शन थया पढी ते वृषनने जुवे बे. ते वृषण केवो बे तो के उज्ज्वल एवा कमलपत्रना समूहथी जेनी अधिक रूपकांति बे. जे पोतानी कांतिना समूह ने विस्तारी सर्व तरफ दशे दिशाने निश्चयपऐ शोनावे बे. वली जेनो स्कंध जाग शोजाना समूड़े करेली प्रेरणाथी होय तेम उल्लास पामती कांति वडे प्रकाशित, सुशोजित अने मनोहर बे. जो के स्कंधनो जाग उन्नत होवाथी स्वयमेव उल्लास पामे तथापि | शोजाना समूहनी प्रेरणाथी जाणे उल्लास पामता होय तेवी उत्प्रेक्षा करे बे. सूक्ष्म, शुद्ध अने सुकुमाल रोम
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॥ २५ ॥
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वडे स्निग्ध एवी जेनी कांति बे. जेनुं अंग दृढ बांधादार, मांसवागुं, एथीज पुष्ट, प्रधान अने यथास्थाने | रहेला योग्य अवयववालु होवाथी घणुं सुंदर लागे जे. जेनां बे शींगमां, घाटा वर्तुलाकार,अति उत्कृष्ट, 3 चौकाशवाला पदार्थथी अग्र नागे युक्त अने तीक्ष्ण जे. वली ते वृषन दान्त एटले क्रूर नथी, उपवने|४ हरनारो .तेना दांत सरखा प्रमाणवाला, सुशोजित अने श्वेत-निर्दोष बे. जेना परिमित गुण है एवां मंगलोनुं जे मुख एटले श्राववानुं कारण एवा वृषनने त्रिशलाए जोयो. ही तेवा वृषजना दर्शन कर्या पली श्राकाशमांथी उतरतो अने पोताना मुखमां प्रवेश करतो एक सिंह त्रिशला माताए स्वप्नमांजोयो. ते सिंह केवो ने तो के हारना समूह, क्षीरसागर, चंडकिरण,
जलनां बिं अने रूपाना महान् पर्वत वैताढ्यना जेवो उज्ज्वल जे. वली ते मनोहर होवाश्री दर्शनीय र है. तेनाबे पोहोंचा-पंका दृढ अने प्रधान ने. वर्तुलाकार, पुष्ट, परस्पर जमाएली प्रधान अने तीदण ।
दाढोथी तेनुं मुख अलंकृत थयेनुं बे. सारी रीते सिंचन करेला शातिवंत कमल जेवा कोमल अने २ प्रमाणथी सुशोजित तथा प्रधान एवा तेना बने होठ बे. राता कमलना पत्र जेवं कोमल तालबुं ने, ६ अने लप लप थती प्रधान जिह्वा बे-ए ताल अने जिह्वा ते बंनेथी ते शोजतो हतो. है। सोनी जेमा सोनुं नाखीने गाले ले तेवी कुरमीमां रहेढुं, तपी गयेलु अने प्रदक्षिणा फरतुं एवं जे है।
उत्तम सुवर्ण तेना जेवां गोल अने निर्मल विजलीजेवांचलकतां जेनां बे नेत्रो. विशाल, पुष्ट अने प्र-2 धान जेना बंने साथल . परिपूर्ण अने निर्मल जेनी कांध . कोमल, उज्ज्वल, सूक्ष्म, श्रेष्ठ लक्षणवाली अने दीर्घ एवी जे केशवाली ले तेना उडतपणाधी जे सुशोनित जे. उन्नत, कुंमलाकारे शोजायमान करी जे पोताना पूंडमाने अफलावे . जे मनथी क्रूर नथी, जेनी श्राकृति सुंदर थने जे विलास सहित गति करे जे. जे आकाशमांथी नीचे उतरे जे. जेना गाढ अने तीदण अग्रवाला नख ने अने मुखनी शोजाने माटे पचव जेवी प्रसारेली जेनी मनोहर जिह्वा बे एवा केशरीने त्रिशलाए जोयो.
ते पनी एटले सिंहना दर्शन थया पली पूर्णचं जेवा मुखवाली त्रिशला देवीए पद्मप्रहना कम
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कल्प
॥१६॥
स्लमां वसनारी जगवती लक्ष्मी देवीने हिमालयना शिखर उपर दिग्गजेंडे पोतानी पुष्ट सुंढथी अनिषेक|8| सुबो।
करातांजोते लक्ष्मी देवी केवी? जंचा हिमालय पर्वत उपर थयेला प्रधान कमलस्थान उपर बेठेली बे-ते श्राप्रमाणे. ए हिमालय पर्वत एकसो योजन ऊंचो . वार कलाए अधिक एक हजार ने बावन है योजन विशाल अने सुवर्णनो ने. तेनी उपर दश योजन ऊंमो, पांचसो योजन विशाल श्रने एक ६ हजार योजन लांबो वज्रमय तलीयावालो पद्मइद नामे धरो बे. तेना मध्य जागे एक कमल .8
ते जलथी बे कोश उंचुं बे, एक योजन विशाल , एक योजन लांबुं . तेनुं नील रत्नमय नालवु दश योजननुं बे. तेनुं मूल वज्रमय बे. तेनो कंद रिष्ट रत्नमय बे. तेनी बाह्य पांखडा रक्त कनकमय बे. तेनी वचली पांखमी सुवर्णमय बे. ते कमलनी कनकमय कर्णिका जे बे कोश ! विशाल, बे कोश दीर्घ श्रने एक कोश उंची . तेना केसरा रक्त सुवर्णमय ले. तेनी मध्यमां अर्थ है
कोश विशाल, एक कोश दोर्घ, कांऊणुं एक कोश उँचुं श्रीदेवीनुं जवन . तेने पांचसो धनुष्य उंचां, है अढीसो धनुष्य विशाल, पूर्व,दक्षिण अने उत्तर दिशामा रहेलांत्रण छार . तेना मध्य नागे श्रढीसो है धनुष्यनामापवाली रत्नमय वेदिका जे. तेनी उपर श्रीदेवीने योग्य एवी शय्या जे. हवे ते मुख्य कमलनी चारे तरफ श्रीदेवीनां बाजरणे जरेला, वलयाकारे रदेला प्रथम कहेला मापथी अर्धा मापे उंचां,
लांबां श्रने विशाल एवां एकसो थाउ कमलो बे. एवी रीते सर्व पण वलयोमा अनुक्रमे श्रधु अर्धं 81 है मान जाणवू. एवी रीते प्रथम वलय थयु. बीजे वलये वायव्य, ईशान अने उत्तर दिशामां चार
हजार सामानिक देवतानां चार हजार कमलो . पूर्व दिशामां चार महत्तरां कमलो . अग्नि दिशामां गुरुस्थाने रहेला अत्यंतर पर्षदाना देवतानां श्रा० हजार कमलो दे. दक्षिण दिशामा मित्रस्थाने रहेला मध्यम पर्षदाना देवतानां दश हजार कमलो . नैतदिशामां किंकरस्थाने है रहेला बाह्य पर्षदाना देवतानां बार हजार कमलो दे. पश्चिम दिशामां हाथी, अश्व, रथ, पेदल,
गंधर्व अनेनाव्यरूप सात कटकना नायकोनां सात कमल. एवीरीते बीजं वलय थयु.५त्रीजे
lain
tamanal
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वलये तेटला गरका देवतानां सोल हजार कमलो के.एवी वलय.३ चोथे वलये अत्यंत
सोस हजार कमलो . ए त्रीजु वलय. ३ चोथे वलये अत्यंतर | यानियोगिक देवताउँनां बत्रीश लाख कमलो . ए चोथु वलय. पांचमे वलये मध्यम श्रानियोगिक देवतानां चालीश लाख कमलो . ए पांचमुंवलय.५ बरे वलये वाझ श्रानियोगिक देवानां 8 श्रमतालीश लाख कमलो . ए बहुं वलय.६ मूल कमल साथे सर्व संख्याए एक कोटी, वीश लाख, | पचास हजार,एकसो ने वीश कमलो थाय . एवीजातना कमललक्षणस्थानउपर जे श्रीदेवी रहेली
. वली ते केवी हती तो के मनोहर रूपवाली हती, तेमना बंने चरण सारीरीते स्थापित करेला कन-11 कमय काचवा जेवा हता, अति उन्नत अने पुष्ट एवा अंगोग उपर रहेला श्रीदेवीना नख स्वाजाविक 8 तेवा राता हता, के जाणे लाख विगेरेश्री रंग्या होय, तेवा पुष्ट, मध्ये उंचा, सूक्ष्म, ताम्रवर्णी अने र स्निग्ध नखो हता. तेमना हाथ तथा पग कमलनां पांदमांनी जेम सुकुमाल हता. तेमनी बांगली कोमल होवाथी श्रेष्ठ हती. कुरुविंद जातना श्रावर्त्तथी अथवा तेवा श्रानूषणथी शोजित, अने वृत्तानुपूर्व एटले हाथीनी सुंढनी जेम पूर्वथी उत्तरोत्तर स्थूल एवी जेनी बे जंघा हती, जेना जानु गुप्त हता, जेना 8 बंने उरु गजेंउनी सुंढ जेवा पुष्ट हता. सुवर्णनी मेखलाए युक्त होवाश्री मनोहर अने विस्तारवा_ जेनुं ६ कटितट हतुं, उंची जातना काजल, जमरा अने मेघना समूहना जेवा वर्णवाली, सरल, सरखी, घाटी, है सूक्ष्म, सुंदर, विलासथी मनोहर, शिरीष पुष्पादि वस्तुथी कोमल अने रमणीय, एवी तेनी रोमराजी, हती. तेनुं जघनस्थल नानिममलथी सुंदर,विशाल अने श्रेष्ठ लक्षणोवाळु हतुं तेना शरीरनो मध्य नाग,
मुष्टिमांश्रावे तेवो अने श्रेष्ठ त्रिवलिनी रेखावालो हतो. विविध जातनां चंडकांत विगेरे मणि, वैडूर्य विहै गेरे रत्नो, कनक एटले पीतवर्ण सुवर्ण अने निर्मल मोटी जातनुं रक्तवर्ण सुवर्ण तेना रचेलां बाजरण
एटले अंग उपर पहेरवानां गलचवा, कंकण विगेरे अने जूषण एटले उपांग उपर पहेरवाना मुजिका विगेरे तेथी जेनां मस्तकादि अंग श्रने अंगुली विगेरे उपांग शोजतां हतां अर्थात् ते श्रीदेवीनां अंग बाजरणोथी अने उपांग आनूषणोथी विराजित हतां. वली मोतीना हारथी ४
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कल्प
शोजायमान, डोलर विगेरेनां पुष्पोथी व्याप्त अने देदीप्यमान एवा स्तनयुगलरूप बे सुवर्ण | सुवो है कलश तेणीए धारण कर्या हता. PI वली ते लक्ष्मी देवी केवी दे, तो के यथायोग्य स्थानके स्थापन करेलांजे मरकतपत्र कहेतां पानां,12 ते वडे करीने शोजायुक्त थएली, तथा आंखोने अत्यंत आनंद आपनारा एवा जे मोतीउना गुछा, ते. ए करीने मनोहर थएलो जे मोतीनो हार, तेणे करीने शोजायुक्त थएली. (अहीं "शोलायुक्त थएली" एटवू पदमूल सूत्रमा नथी थाप्यु, ते अध्याहार तरिके लेखवू, अने एवी रीतेज आगलनां पण बन्ने विशेषणोमां ले लेवं.) वली ते लक्ष्मी केवी बे.तो के उदरस्थ कहेतां हृदयमा रहेलीजे दी-18
नारमाला कहेतां सोनाना सिक्काउनी जे माला तेणे करीने शोनायुक्त थएली एवी. वली ते लक्ष्मी देवी । 5 केवी डे,तो के मनोहर श्रने कंठमा रहेलो जे मणिसूत्र कहेता मणिनो जे रत्नमय दोरो, तेणे करीने 31
शोनायुक्त थएली एवी. वली ते लक्ष्मी देवी केवी , तो के श्रावी रीतना शोनागुणना समुदयथी,
एटले कांतिगुणना अतिशयपणाथी शोजित थएली. हवे ते शोजागुणसमुदय केवो , तेनां विशेषणो , १ कहे . अंस कहेतां जे खन्ना तेऊना पर लागीने रहेढुं जे कुंमलनुं युग्म, तेनी नवसायमान थती, शो-2
नती श्रने समीचीन के कांति जेमां एवो. वली ते शोनागुणसमुदय केवो , तो के लक्ष्मी देवीना मु.। खनो जाणे कुटुंबीज होय नहीं, एवो. अर्थात् जेम राजा कुटुंबी अने सेवकोथी शोने , तेम लक्ष्मी 8 देवीनुं मुख, ते शोजागुणसमुदये करीने शोने जे. “अहीं खन्ना सुधी लटकता" ए विशेषण कुंडलोन वे. त्यारे अहीं कोशंका करे के, शोजागुणसमुदयनां बन्ने विशेषणोनी वच्चे, कुंडलयुगलनुं विशेषण शामाटे मूक्यु ? तथा ते विशेषणनो परनिपात केम कर्यो ? तेने माटे कहे ले के आ मूल सूत्र प्राकृत नाषामां बे, अने तेथी ते नाषामां अन्य विशेषणोनी वच्चे पण बीजां विशेषणो श्रावे , तथा विशेषणोनो 8109॥ परनिपात पण थाय , अने एवीरीते सर्व जगोए विशेषणना परनिपात माटेनो खुलासो जाणी लेवो. हवे वली ते लक्ष्मी देवी केवी बे, तो के कमलनी पेठे निर्मल अने विस्तारवालां के लोचनो जेणीनां ।
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एवी. वली ते लक्ष्मी देवी केवी , तो के देदीप्यमान एवा जे हाथो, तेणे करीने ग्रहण करेखां जे बे कमलो, तेउमांधी करतुं जे मकरंदरूप पाणी, तेणे करी युक्त एवी, अर्थात् लक्ष्मी देवीए पोताना है। बन्ने हाथमां बे कमलो ग्रहण करेला बे, अने तेमांथी मकरंदनां एटले पुष्पोमां थता रसनां बिंद नीचे पमतां जाय जे. वली ते लक्ष्मी देवी केवी , तो के केवल क्रीमाए करीने (पण पसीनो घर है। करवा माटे नहीं, कारण के देव संबंधी शरीरने पसीनो थतोज नथी) पवन लेवा माटे हलावेलो जे तालवृंद कहेतां पंखो, तेणे करीने शोनायुक्त थएली. (अहीं पण “ शोनायुक्त थएली” ए पद अध्याहार जाणवू.) वली ते लक्ष्मी देवी केवी , तो के सारी रीते बुटो करेलो, ( पण जटाजूटनी/8 पेठे परस्पर चोंटी गएला वालवालो नहीं,) तथा वली श्यामवर्ण एटले काली कांतिवालो तथा हैं घाटो, ( पण वच्चे आंतरावालो नहीं,) अने सूक्ष्म कहेतां कोमल,(पण मुकरना वालनी पेठे जाडा है।
केशवालो नहीं,) तथा अत्यंत लंबायमान थएलो, एवो डे वेणिदंड कहेतां चोटलो जेणीनो, एवी | प्रारीतनी लक्ष्मी देवीने त्रिशला क्षत्रियाणीए चोथा स्वप्नमां जो. | एवी रीते महोपाध्याय श्री कीर्ति विजय गणि, शिष्योपाध्याय श्री विनय विजय गणिए रचेली |कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टीकाना गुजराती नाषांतरमां बीजो क्षण समाप्त थयो. श्रीरस्तु ॥
॥ श्री जिनाय नमः॥
तृतीयं व्याख्यानं प्रारच्यते है हवे एवी रीतनुं लक्ष्मीनुं स्वप्न जोया बाद, त्रिशला कृत्रियाणीए ननस्तल कहेता आकाश
तलमाथी पमती एवी जे दाम कहेता पुष्पनी मालानु, पांचमुं स्वप्न जोयु. ते पुष्पोनी माला केवी बे, तो के सरस कहेतां मकरंदे करीने युक्त ने पुष्पो कहेतां फुलो जेमां, एवां जे कल्पवृदोनां पुष्पो, ते वडे करीने रमणीय कदेतां मनोहर थएली एवी. वली ते पुष्पोनी माला
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सुबो
कस्प० 18 केवी , तो के चंपो, अशोक, पुन्नाग, नाग, प्रियंगु, शिरीष, मुझर, मल्लिका, जादू
जूझ, अंकोल, कोज, कोरंट, दमनकपत्र, नवमालिका, बकुल, तिलक, वासंतिक, सूर्य॥२०॥
विकाशी कमल, चंडविकाशी कमल, पाटल, कुंद, अतिमुक्त तथा सहकार आदिकनां पुष्पोनी ने सुगंधी जेमां एवी. वली ते पुष्पोनी माला केवी , तो के अनुपम एटले जेने कं।
पण उपमा श्रापी शकाय नहीं एवो अद्वितीय, अने मनने अत्यंत आनंद उपजावे एवो जे सु. , गंध, तेणे करीने श्रासपास दशे दिशाउँने सुगंध युक्त करती एवी. वली ते पुष्पोनी माला केवी है हैं, तो के सर्वत्र्नुकं कहेतां सघली शतुमा मलता जे पुष्पो तेणे करीने युक्त थएली एवी, अर्थात्
ते पुष्पमालामां गए रुतुमां थतां पुष्पो गुंथेला हतां. वली ते पुष्पोनी माला केवी ,तो के अत्यंत देदीप्यमान थतां, अने तेथीज अत्यंत मनोहर लागतां, एवां जे जुदी जुदी जातनां लाल, पीला 8 विगेरे रंगोनां जे पुष्पो, तेजेए करीने बच्चे वच्चे करेली जे रचना कदेतां गुंथणी, तेथी चित्र कहेता है है आश्चर्य करनारी एवी. श्रा विशेषणथी एवो नावार्थ कह्यो के ते पुष्पमालामां घणो सफेद वर्ण वर्ते ,
अने अंदर थोडा थोमा वीजा पण वर्णो बे, एम सूचव्यु. वली ते माला केवी बे, तो के गुमगुमा-1 *यमान एटले कर्णने मधुर लागे एवो जे शब्द, तेने करतो, अने अन्य स्थानकेथी त्यां श्रावीने, ते 81
पुष्पोनी मालामां अत्यंत श्रासक्त थतो, तथा न समजी शकाय एवा गुंजारवने करतो एवो षट्-|| पद, मधुकरी ( मधमाख ) तथा जमरोनो जे समूह,ते ने अग्र नागमां, बन्ने पमखांना नागमां तथा है नीचेना नागमा जेने एवी अर्थात ते पुष्पमालानो विस्तार पामतो जे अत्यंत सुगंध, तेथी करीने ते मालाना सघला नागो पर जमरा श्रावीने वलगेला हता. अहीं षट्पद ( पगवालो), मधुकरी, तथा जमर विगेरे जुदा जुदा रंगना जमराउनी जाति कहेली बे, एम जाणी लेवु. एवी
510 रीतनी पुष्पोनी मालाने थाकाशमाथी पमती त्रिशला क्षत्रियाणीए पांचमा स्वप्नमां जो. त्यार पठी हा स्वप्नमां त्रिशला क्षत्रियाणीए चंने जोयो. ते चंछ केवो हतो, तो के गोदीर क-11
॥
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पांचमे स्वप्ने ये फूखनी माला.
सातमे स्वप्ने सूर्य.
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देतां गायनुं दूध, फीण, पाणीना कणीच्या, तथा रजतकलश कहेतां रूपानो कलश, तेना सरखा सफेद रंगवालो. वली ते चंद्र केवो तो तो के शुभ एटले शांतता थापना एवो. वली ते चंद्र केवो हतो, तो के था दुनियामां रहेता जे लोको, तेज॑नां हृदय एटले मन, अने नयन कतां खोने, कांत कदेतां वल्लज लागे एवो. वली ते चंद्र केवो हतो तो के संपूर्ण बे मंडल जेनुं एवो. वली ते चंद्र केवो इतो तो के तिमिर कतां अंधकारोनो जे समूह तेणे करीने निविक छाने गंजीर एवां जे वननां गह्वरो कदेतां कामीथी जरपूर एवा वनना जागो, ते मां अंधकारनो अजाव करनारो, अर्थात् कामी मां रहेला अंधकारनो पण नाश करनारो. कर्तुं बे के:
विरम तिमिर साहसादमुष्मा - यदि रविरस्तमितः स्वतस्ततः किम् ॥ कलयसि न पुरो महोमहोर्मि- स्फुटतर कैरवितांतरिक्षमिडुम् ॥ १ ॥
अर्थ- हे अंधकार, या तारा साहसथी तुं अटकी जा ( एटले विराम पाम ), कारण के सूर्यना श्राथम्या पढ़ी, तेजनां मोटां मोजांए करीने, प्रफुल्लित थयेला चंद्र विकासी कैरव सरखं करेल बे व्याकाश जेणे, अथवा कांतिवालां किरणोए करीने रक्षण करेलुं बे प्रकाशनुं जेणे एवा था चंद्रने शुं, तुं अगामी जोतो नथी ?
वली ते चंद्र केवो तो के वर्ष ने मास श्रादिकना प्रमाणने करनारा, शुक्ला ने कृष्ण एवा जे वे पक्षो, | तेनी मध्यमा रहेली जे पूर्णिमा, तेने विषे राजती कदेतां शोजती बे, लेखा कहेतां कला जेनी एवो. वली ते चंद्र केवो बे तो के कुमुद कहेतां चंद्र विकासी जे कमलो, तेउने विकवर करनारो. कह्युं बे केःदिनकरतापव्याप- प्रपन्नमूर्छा नि कुमुदगहनानि ॥ उत्तस्थुरमृतदीधिति - कांतिसुधासे कतस्त्वरितं ॥ १ ॥
अर्थ- दिनकर कहेतां सूर्यना तापनी जे व्याप्ति कहेतां फेला, तेथी प्राप्त थपली बे मूर्छा जेने, अर्थात् करमाइ गएलां, एवां जे कुमुदगहनानि कतां चंद्र विकासी कमलोनां जे वनो, ते, अमृतदीधिति कहेतां चंद्रनी जे कांति, तेरूपी जे श्रमृत, तेना सिंचावाथी; अर्थात् तेना
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कल्प० ॥ २५ ॥
पर चंद्रनां किरणो परुवाथी, एकदम पाठां विकस्वरपणाने कहेतां प्रफुलितपणाने पाम्या. वली ते चंद्र केवो वे तो के निशा कहेतां जे रात्रि, तेने शोजावनारो वली ते चंद्र केवो वे तो के सुर |रिमृष्ट कहेतां राख यादिकथी मांजीने उज्ज्वल करेलो जे रिसो, तेना तलीयानी बे उपमा जेने एवो. वली ते चंद्र केवो वे तो के हंसनी पेठे पटु कहेतां सफेद वे, वर्ण कहेतां रंग जेनो एवो. वली ते चंद्र केवो बे तो के ज्योतिष कहेतां जे ताराजे, तेज॑नां मुखोने शोजावनारो, अर्थात् तेनो उपरी एवो. वली ते चंद्र केवो वे तो के तम कहेतां जे अंधकार, तेना प्रत्ये रिपु कहेतां वैरी सरखो एवो. वली ते चंद्र केवो ने तो के मदन कहेतां जे कामदेव, तेनां शरापूर कहेतां जाथां (जेनां तीरो रखाय बे, तथा जेने पीठ पावल योद्धा बांधी राखे बे) ते सरखो. श्रर्थात् धनुषने धारण करनारो माणस, तुणीर कहेतां । | नाथांने मेलवीने, हर्षित थयो थको, जेम हरिण यादिकनो वध करे वे, तेम मदन कदेतां कामदेव पण चंद्रना उदयने पामीने जरा पण शंका राख्या विना माणसोने पोतानां पुष्पोरूपी बाणोथी व्याकुल करे ठे वली ते चंद्र केवो वे तो के जलधि कहेतां जे समुद्र, तेनी जे वेला कहेतां पाणीनी बोल, तेने वधारनारो एवो. वली ते चंद्र केवो वे तो के प्राणवल्लन कहेतां जे जरतार, तेनाथी एलो वे वि रह जेणीने अने तेथी करीने दुर्मनस्क कहेतां व्यग्रचित्तवाली एवी जे स्त्री, तेने पोतानां किरणोए | करीने शोषमां (शोकमां ) गरकाव करतो, अर्थात् स्त्रीनां जरतारना वियोगरूपी दुःखने उलटो वृद्धि करतो. वली ते चंद्र केवो वे तो के सौम्य कहेतां मनोहर के रूप जेनुं एवो. वली ते चंद्र केवो वे तो के | गगन मंगल कहेतां व्याकाशमंगल तेनुं विशाल ने सुंदर आकार वालुं तथा चंक्रम्यमाण कहेतां चलनखजाववालुं, एवं शोजा करनारुं जाणे तिलकज होय नहीं, एवो. वली ते चंद्र केवो बे तो के रोहिणी नामनी जे पोतानी स्त्री तेनो खामी ठे, तथा तेणीने हित करनारो वे, हितकारी एवं विशेषण एक पना प्रेमने दूर करवा माटे बे. (अर्थात् बन्ने पना प्रेमने बतावनारुं वे.) घ्यावी रीतनो चंद्र ने रोहिणी बच्चे स्त्री जरतारनो संबंध कविसमयनी अपेक्षाथी बे, केमके रोहिणी तो एक नक्षत्र विशेष वे, अने चंद्र तथा
सुत्री०
॥ २५ ॥
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ISRISKIS
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नक्षत्रनी वच्चे तो स्वामिसेवकपणानो नाव सिझांतमां प्रसिद्ध ,पण कंश स्त्रीजरतारपणानो नाव कहेलो | नश्री. एवी रीते व्हा खप्नमां त्रिशला क्षत्रियाणीए उससायमान थता एवा संपूर्ण चंडने जोयो. | ते वार पड़ी सातमा स्वप्नमां त्रिशला दत्रियाणीए सूर्यने जोयो. हवे ते सूर्य केवो हतो, तेनुं वर्णन करे । है. निश्चये करीने तमःपटल कहेतां अंधकारनो जे समूह, तेने परिस्फोटक कहेतां नाश करनारो हूँ
एवो. वली ते सूर्य केवो ने तो के तेज वडे करीने प्रज्वलत् कहेतां जाज्वल्यमान के रूप जेनुं एवो. हवे । सूर्यनां बिंवमा रहेला बादर एवा जे पृथ्वीकाय, ते तो हमेशां शीतल कहेतां झक आपनारा दे, पण श्रातपनामकर्मनो तेने ( सूर्यने ) उदय होवाश्री तेजे करीने ते माणसोने व्याकुल एटले पीमा-13 युक्त करे , एवी रीते जाणवू. वली ते सूर्य केवो ने तो के रक्ताशोक कहेता लाल रंगवालु अशोक जातनुं को वृक्षविशेष, तथा प्रफुल्लित थएबुंजे किंशुक कहेतां केसुमार्नु पुष्प, तथा शुकमुख कहे-18 तां पोपट, मुख (चांच ) तथा गुंजार्ध कहेतां चणोपीनो अ? जाग, के जे लोकोमा प्रसिक २ एटली वस्तुनी जे रताश, तेना सरखो ने लाल वर्ण जेनो एवो. वली ते सूर्य केयो ने तो के कमलो-15 नां जे वनो, तेने अलंकरण कहेतां शोना करनारो, अर्थात् तेने विकस्वर करनारो, कारण के विकस्वर एटले प्रफुल्लित श्रएलां, एवां जे कमलो, ते जाणे के अलंकारोज होय नहीं तेवां शोनी नीकले है बे. वली ते सूर्य केवो तो के ज्योतिषनुं जे चक्र, ते प्रत्ये अंकन कहेतां चिह्वरूप,अर्थात् मेष श्रादिक जे.
राशि, तेमां जे पोतानुं संक्रमण, तेणे करीने ज्योतिषनां लक्षणने जणावनारो. वली ते सूर्य के-15 51वो ने तो के अंबरतल कहेतां जे श्राकाशतल, ते प्रत्ये प्रदीपक कहेता प्रकाशनो करनारो. वली ते ।
सूर्य केवो ने तो के हिमपटल कहेतां बरफनो जे समूह तेने गलग्रह एटले गलहस्त देनारो, अर्थात् र बरफना समूहनो नाश करनारो. वली ते सूर्य केवो ने तो के ग्रहगण कहेतां ग्रहोना जे समूहो तेनो उरु कहेतां महान् एवो नायक कहेतां स्वामी जे. वली ते सूर्य केवो ने तो के रात्रिविनाश कहेतां । रात्रिने नाश करवाना एक कारणरूप एवो. वली ते सूर्य केवो ने तो के उदयास्त कहेतां तेना उदय 51
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कल्प० थवाना अवसर वखते तथा तेना अस्त थवाना अवसर वखते, फक्त एक मुहूर्तवार सुधी ने सुखदर्शन 8
सवो करीने जोवापणं जेनं एवो.अनेते सिवाय बीजे वखते दनिरीक्ष्यरूपं कहेतांपुःखे करी॥३०॥
ने जोर शकाय एवं स्वरूप जेनुं एवो, अर्थात् जेनी सन्मुख पण जोशकातुं नथी एवो. वली ते । सूर्य केवो ने तो के रात्रिने वखते उफत कहेता पोतानी छाप्रमाणे चालनारा, अर्थात् स्वेछाचारी एवा
जे अन्याय करनारा चोर श्रादिको, तेउनो जे प्रचार, एटले चोरी माटे थामतेम चटकवू, तेने निवा-18 ₹रक कहेतां अटकाव करनारो. वली ते सूर्य केवो ने तो के शीतवेग कहेतां ठंमीनोजे वेग, तेने मथन र
करनारो, अर्थात् पोताना तापथी ठमीने पूर करनारो एवो. वली ते सूर्य केवो ले तो के मेरु नामनोजे । पर्वत तेनो श्राश्रय करीने प्रदक्षिणा वडे करीने (तेनी) मेरुनी आसपास नमनारो एवो. वली ते । सूर्य केवो ने तो के विशाल कहेतां विस्तारवालु डे मंझप कहेतां मांडबुं जेनुं एवो. वली ते सूर्य केवो | बेतो के रश्मिसहस्रेण कहेतां दश सो, अर्थात एक हजार एवां जे पोतानां किरणो तेणे करीने प्रद-14 लित कहेतां नाश करेली बे, दीप्तिवंत कहेतां चलकाटवाला एवाजे चंड ताराबादिको, तेउनी शोना जेणे एवो, अर्थात् तेणे पोतानां किरणोए करीने सघला तेजस्वी पदार्थोनी कांतिनो नाश करेलो . हवे यहीं जे सूर्यनां एक हजार किरणो कह्यां,ते तो फक्त लोकमां एवी रीते प्रसिद्ध होवाथी कह्यां ,पण| 8 तेनां किरणो तो काल विशेषनी अपेदाए अधिक पण यश् शके . लौकिक शास्त्रोमां पण कडंडे के:- 18 __ रुतुन्नेदात्पुनस्तस्या-तिरिच्यतेऽपि रश्मयः ॥ शतानि छादश मधौ, त्रयोदश तु माधवे ॥१॥
अर्थ-ऋतुना नेदो प्रमाणे वली ते सूर्यनां किरणो वृद्धि पण पामे डे, जेमके चैत्र मासमां तेनां : बारसो किरणो थाय ने, अने वैशाख मासमां तेनां तेरसो किरणो पण थाय ॥
चतुर्दश पुनज्येष्ठे, ननोनजस्ययोस्तथा, ॥ पंचदशैव त्वाषाढे, षोडशैव तथाश्विने ॥२॥ अर्थ-वली जेठ महिनामां तेनां किरणो चौदसो थाय ,तेम श्रावण अने नादरवामां पण तेटला
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ज एटले चौदसो थाय ते, अने आषाढ मासमां तेनां किरणो पंदरसो थाय बे, घने यसो | महिनामां तेनां किरणो सोलसो थाय बे ॥
कार्तिके त्वेकादश च शतान्येवं तपस्यपि ॥ मार्गे च दशसार्धानि, शतान्येवं च फाल्गुने | ॥ ३ ॥ पौषे एव परं मासि, सहस्रं किरणा खेः ॥
अर्थ- कार्तिक मासमां तेनां किरणो अग्यारसो थाय बे, अने माघ महिनामां पण तेटलांज एटले ग्यारसो किरणो थाय बे, अने मागशर महिनामां एक हजार अने पचास किरणो तेनां होय बे, ने फागण महिनामां पण तेटलांज, एटले एक हजार अने पचास किरणो होय ते. वली पोष महिनामां तेनां एक हजार किरणो होय बे. एवी रीते सूर्यनुं यंत्र जाणं.
एव ते सातमा वनमां सूर्यने जोया बाद त्रिशला क्षत्रियाणीए आठमा स्वप्नमां ध्वजने जोयो. ते ध्वज केवो बे तो के जात्य कहेतां उत्तम जातिनुं एटले सो टचनुं जे कनक कहेतां सुवर्ण तेनो बनावेलो जे दंग, तेना पर रहेलो; अर्थात् सुवर्णमय जे दंग तेना शिखर पर रहेलो. वली ते ध्वज केवो वे तो के समूहीभूत कहेतां जयाबंध रहेलां एवां, अने लीलां, कालां, रातां, पीलां ने सफेद, एवी रीते पांचे जा|तिनां रंगवालां, अने तेथी मनोहर लागतां अने वली सुकुमाल कहेतां कोमल, तथा उल्लसायमान यतां, एटले श्रम तेम फरकतां एवी रीतनां जे मयूर पिछ कहेतां मोर नामना पक्षीनां जे पिंढा, तेर्जए करीने जाणे ध्वज पर वाल बनावेला होय नहीं, एवी रीते ते पिंढांडे जेना पर शोजी रह्यां बे, एवा ध्वजने, अर्थात् जेम माणसना मस्तक पर चोटलो शोभे बे, तेम या ध्वज पर पण वेणिनी जगोए मोरपिंबनो गुछो स्थापेलो बे. वली ते ध्वज केवो बे तो के अधिकसश्रीक कहेतां अत्यंत शोजाए करीने युक्त एवो. वली ते ध्वज केवो वे तो के नीचे वर्णन करेलां विशेषणोवाला सिंहे करीने शोभायुक्त थएलो. ते सिंद केवो, तेनुं वर्णन दवे करे बे. स्फटिक एटले स्फटिक जातिनुं रत्नविषेष, शंख एटले समुद्रमां जे थाय बे ते, छाने वली जे लोकमां प्रसिद्ध बे ते, यंक पण रत्ननी जाति विशेष बे ते, कुंद ए सफेद पुष्पनी
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कल्प
॥३१॥
SNOREDNISOLOGROCARROCHOCALDCROCORDCHIR-CHAMSHUSA
जाति , जेने डोलर पण कहे जे ते, दकरजस् एटले पाणीना कणीया, रजतकलश कहेतां रूपानो बना-18 ₹ वेलो जे कलश ते,एवी रीते उपर जणावेली संघली वस्तुनी पेठे उज्ज्वल वर्णवालो. वली ते सिंह केवो ,
तो के मस्तक पर रहेलो, अर्थात् चित्रामणरूपे ध्वजना उपरना नाग पर चित्री राखेलो एवो. वली ते सिंह केवो ने तो के राजमान कहेतां पोताना सुंदरपणाथी अत्यंत शोनायुक्त थएलो एवो, वली ते सिंह केवो तो के थाकाशतलना मंगलने फोमी नाखवानेज जाणे उद्यमवालो थयो होय नहीं. एवो, अर्थात् पवनना ऊपाटाथी ध्वजा श्राकाश मार्गमां उंचे उंचे उड्या करती हती, अने तेथी करीने तेमां चित्रामण रूपे करेलो सिंह पण श्राकाश प्रत्ये उख्या करतो हतो; तेनापर कविए उत्प्रेक्षा करी के था , सिंह जे आकाश तरफ उख्या करे , ते शुं आकाशने फोमी नाखवानोज उद्यम करे ? एवो जा-2 वार्थ जाणवो. एवीरीते उपर वर्णन करेला सिंहना चित्रामणवालोध्वज. वली ते ध्वज केवो ने तो के मंद मंद अने सुखकारी एवो जे मरुत कहेता पवन, तेनुं जे श्राश्लेष कहेतां मलवु, तेणे करीने जे आंदोलन कहेतां चलायमान थवंतेने स्वजा जेनो एवो.अर्थात मंद मंद वाताएवा वायथी चलायमान थएलो. वली ते ध्वज केवो तो के अति प्रमाणवालो एटले मोटो एवो. वलो ते ध्वज केवो तो के माणसोने ,
जोवाने लायक ने स्वरूप जेनुएवो. एवीरीतना आठमा स्वप्नभां त्रिशला क्षत्रियाणीए ध्वजने जोयो. 15 5. हवे ते जोया बाद नवमा स्वप्नमां तेणीए रजतपूर्णकलश, एटले रूपाना बनावेला अने संपूर्ण 8
नरेला एवा कलश एटले कंचने जोयो. ते कलश केवो तो के जात्य कहेतां अत्यंत जंची जातिनुंद जे कांचन कहेतां सोनुं तेनी पेठे अत्यंत देदीप्यमान बे रूप जेनुं एवो, अर्थात् जेम उत्तम जातिना है सुवर्णतुं तेज अत्यंत निर्मल होय , तेम ते कलशनुं तेज पण अत्यंत निर्मल जाणवू. वली ते कलश
केवो ने तो के निर्मल एटले बिलकुल मेल विनानुं जे पाणी, तेनाथी संपूर्ण रीते नरेलो, अने तेश्रीज 5/॥३१॥ ६ कल्याणने सूचवनारो एवो. वली ते कलश केवो तो के देदीप्यमान वे शोजा कहेतां कांति जेनी
एवो. वली ते कलश केवो ने तो के कमलोनो कलाप कहेतां जे समूह, ते वडे करीने आसपास सर्वबाजु
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ध्वजार्नु स्वप्न माठमु.
कसशनु स्वप्न नवमु.
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पद्म सरोबरनु स्वमदशमुं.
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पा.३१.
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AGRAASARAM
उथी शोजतो एवो. वली ते कलश केवो ने तो के प्रतिपूर्ण एटले जरा पण न्यून नहीं एवा जे | मंगलनेदो कहेतां मंगलना प्रकारो, तेनी जे समागम कहेतां संकेत तेना स्थानकरूप; अर्थात् ४ जेम संकेत करी राखेला स्थानक प्रत्ये माणसो अवश्य दाखल थाय , तेम था कलश पण दृष्टि-18 गोचर थयाथी सर्व प्रकारनां जे मंगलो, ते पण प्राप्त थाय ने एवो नाव जाणवो. वली ते कलश केवो ने तो के प्रवररत्नो एटले अत्यंत उत्तम उत्तम जातिनां जे रत्नो, तेए करीने शोजतुं जे कमल , तेना पर रहेलो एवो; अर्थात् रत्नोए करीने विकखर एटले प्रफुतित थएबुं जे कमल, तेना पर ते कलश मूक्यो हतो एवो नावार्थ जाणवो. वली ते कलश केवो ने तो के नयन कहेतां जे आंखो,8 ते प्रत्ये नूषण करनारो, एटले आंखोने आनंद आपनारो, कारण के कमलनु विकस्वर थq ते जेम ६ कमलनं जूषण , तेम अांखोने यानंद थवो ते पण तेनं जूषण ले. वली ते कलश केवो ले तो के अत्यंत देदीप्यमान एवो. वली ते कलश केवो ने तो के सर्वतः कहेतां सर्व जे दिशा, ते प्रत्ये| निश्चये करीने दीपतो एवो. वली ते कलश केवो ने तो के सौम्य एटले अत्यंत पशस्त कहेतां अत्यंत उत्तम प्रकारनी जे लक्ष्मी, तेना तो स्थानक समान एवो. वली ते कलश केवो ने तो के सर्वे प्रकारना जे पापो कहेतां श्रमंगलो, तेए करीने परिवर्जित कहेतां बिलकुल रहित, अने तेथी करीनेज शुन्न भने देदीप्यमान देखातो एवो. तथा श्री एटले जे शोना, तेथी करीने प्रधान कहेतां अत्यंत मनोहर लागतो एवो. वली ते कलश केवो तो के सर्व क एटले सघली ऋतुमा उत्पन्न थतां जे सुगंध युक्त पुष्पो, तेनी गुंथेली जे माला, तेने स्थापन करेली ने जे कलशना कंगना
नागमां, एवा कलशने त्रिशला क्षत्रियाणीए नवमा स्वप्नमां जोयो. है। पनी दशमा स्वप्नमां तेणीए पद्मसरोवरने जोयु. हवे ते पद्मसरोवर केवु ने तो के तरुण कहेता है
नूतन एटले नवो उगेलो जे सूर्य, तेनांजे किरणो, तेनए करीने बोधित एटले विकखर थएलांजे सहस्रपत्रो कहेतांमोटा मोटांजे कमलो, तेठए करीने अत्यंत सुगंधीवाद्यं तथा जरा पीलाश अने रताश
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कल्प
॥३॥
CRECRUADSAURAHAOGACASSACROST
मारतुंडे पाणी जेनुं एवं. वली ते पद्मसरोवर केवु दे तो के जलचर कहेतां पाणीमां वसनाराजे प्राणी, सुबो तेजनोजेसमूह, तेणे करीने परिपूर्ण कहेतां चारे बाजुएश्री व्याप्त थएयु एवं. वली ते पद्मसरोवर के है।
तो के मत्स्य कहेतां माउलाए करीने वपराइ रहेलो ने पाणीनो समूह जेनो एवं. वली ते पद्मसरोवर । केवु ने तो के ज्वलत् कहेतां देदीप्यमान एवं. शाथी देदीप्यमान, ते हवे कहे . कमलो एटले सूर्यना ६ प्रकाशथी विकखर थतां कमलविशेषो, कुवलयो कहेतां चंजना प्रकाशश्री विकासने पामतां कमलवि-18
शेषो, उत्पल एटले लाल रंगनां कमलो, तामरस एटले मोटा मोटां कमलो, तथा पुंडरीक एटले है सफेद रंगनां कमलो, एवी रीते जुदी जुदी जातिनां कमलोनो विस्तीर्ण अने फेलावो पामतो एवो र जे श्रीसमुदय कहेतां शोजानो जे समूह ( कमलोने तो शोजाना समूहथीज शोलापणुं मले बे, पण 8 कंश तेमने सूर्यनां बिंब श्रादिकनी पेठे देदीप्यमानपणुं होतुं नथी) तेणे करीने जाणे देदीप्यमानज लागतुं होय नहीं, ए, पद्मसरोवर. (एवी रीते कविए एटले श्रीनबाहुखामिजीए अत्रे है उत्प्रेक्षा अलंकार मूक्यो बे.) वली ते पद्मसरोवर केवु दे तो के रमणीय कहेतां मनने अत्यंत यानंद उपजावे एवी के रूपनी शोजा जेनी एवं. वली ते पद्मसरोवर केवु ले तो के प्रमुदित कहेतां । अत्यंत हर्षित थएबुं बे अंतः कहेतां अंतःकरण जेनुं एवाजे जमराना अने मत्त कहेता मदोन्मत्त । थएली जे जमरी, तेजेना समूहो,तेए करीने अवविह्यमान कहेतां चुंबन करातां ले कमलो जेमां एवं. वली ते पद्मसरोवर के बे तो के कादंब जातिनां पदी, बलाका कहेतां बगलांजे, चक कहेता, चक्रवाक नामनां पदी, कलहंस एटले कल कदेतां मधुर डे शब्द जेनो एवा जे हंसो एटले 8
राजहंसो, तथा सारस कहेता लांबाडे घुटणो जेना एवां एक जातिनां पक्षी इत्यादिक जे गर्वित थएहै लांडे एटले धावा मनोहर स्थानकनी प्राप्तिथी थएलो अहंकार जेउने, एवाजे शकुनिगण कहेता है।
पक्षीनी जातिऊनाजे समूहो, तेऊनांजे इंछ कहेतां स्त्रीजरतारोनां जे जोमलां, तेए करीने सेवातुं ||॥ ३२ ॥
पाणी जेनुं एवं. वली ते पद्मसरोवर केवु ने तो के पद्मिनी एटले जे कमलिनी, तेउनांजे पत्रो कहेतां पांद-13 8 मांउ, ते पर लागेला एटले चोंटेला जे जलविंचुनिचय कहेतां पाणीउनां बिंडुर्जुना जे समूहो, तेणे क
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चित्र १४.
क्षीरसमुद्रनुं स्वप्न. ११ मुं.
पा. ३२.
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रीने जाणे मंगन युक्त थलुं होय नहीं ? अर्थात् तेमां रहेलां कमलिनीनां पांदडांने जाणे के नील रत्नो| मय बे ने तेर्ज पर मुक्ताफल कहेतां मोतीउनुं अनुकरण करनारां पडेलां जे पाणी नां बिंडुर्ज, ते ए करीने कमलो अत्यंत शोना श्रापनारां देखाय बे. एवां पत्रोए करीने ते तलाव कृतचित्रं इव कहेतां करेलुंबे श्राश्चर्य जेणे, एवं होय नहीं ? तेम देखाय ते. वली ते पद्मसरोवर केतुं वे तो के हृदय कदेतां जे अंतःकरण, यने नयन कहेतां जे यांखो, तेने अत्यंत वल्लज कहेतां मनोहर लागे एवं तथा "पद्मसरोवर" बे नाम जेनुं एवं वली ते पद्मसरोवर केवुं बे तो के सरस्सु कहेतां तलावाने विषे पूज्य कहेतां पूजा करवाने लायक एवं अने तेथीज अभिराम कहेतां अत्यंत रमणीय लागे बे. एवी रीतना | पद्मसरोवरने त्रिशला क्षत्रियाणीए दशमा खप्नने विषे जोयुं.
पठी अग्यारमे खने शरद नामनी जे तु, तेना चंद्रमा सरखं बे वदन कहेतां मुख जेनुं, एवी ते त्रिशला क्षत्रियाणीए क्षीरसमुद्रने जोयो. ते कीरसमुद्र के वो बे तो के चंद्र किरणराशि कदेतां चंद्रनां जे किरणो, तेर्जनो जे समूह, तेना सरखी जे श्री कदेतां शोजा, ते सरखी वे वक्षःस्थलनी शोजा जेनी एवो. दवे वक्षः शब्दनो अर्थ तो हृदय थाय बे, अने ते हृदय तो प्राणीजने होय बे, पण कंइ समुद्रने होतुं नथी; माटे वहीं हृदय शब्द व करीने मध्य जाग को वे अने तेश्री जेनो मध्यजाग घणो उज्ज्वल वे एम जाणवुं. वली ते की रसमुद्र केवो बे तो के चतुर्षु दिग्मार्गेषु कहेतां चारे दिशाउंना जे मार्गो, तेउने विषे प्रकर्षेण एटले अत्यंत वेग वडे करीने वर्धमान कहेतां वृद्धि पामतो बे, जलसंचय कहेतां पाणीनो समूह जेनो एवो. अर्थात् चारे दिशामां ते समुद्रमां अत्यंत उंको एवो जलनो प्रवाह बे, एवो जावार्थ जाणवो. वली ते क्षीरसमुद्र केवो बे तो के चपल ने अत्यंत चपल एवा, अत्यंत मोटा मोटा जे कल्लोलो कहेतां मोजांउ, तेर्जए करीने चलायनान यतुं, तथा वली पातुं एकबुं थइने जुडुं पकतुं, एवी रीतनुं वे, तोय कहे तां पाणी जेनुं एवो. वली ते क्षीरसमुद्र के वो बे तो के पटु एटले जरा पण मंदता विनानो एवो जे पवन, तेणे करीने यात कहेता दवाएला, थने तेथी करीनेज उपरा उपरी दोडवाने प्रवृत्त थएला, अने तेथी
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कल्प
॥३३॥
AURANGA ROGREGASAIGARAAGRICRACK
६ करीनेज चपल जणाता अने प्रकट रीते देखाता,एवा जे तरंगो कहेतां कबोलो,तथा आसपास (श्राजु-हूँ सुवो
बाजु) नाचता एवा पण जे जंग कहेतां कबोलविशेषो,तथा अत्यंत दोन पामेला,अर्थात् जाणे जयन्त्रांतज थया होय तेम चारे कोरे भ्रमण करता अर्थात् अथमाता अने तेथी करीने शोनावाला थएला, तथा निर्मल एटले जरा पण मलिनता विनाना, अने उत्कट एटले उंचे उबलती एवी जे उर्मि कहेता है तरंगो (मोजां) (एवी रीते तरंग, जंग, कडोल, जर्मि विगेरे मोजांजनाप्रकारोजाणवा) एवी रीतनां 8 मोजांनो जे संबंध कहेता परस्पर मल, तेणे करीने अत्यंत उतावलथी तीरानिमुख कहेतां कांगनी सन्मुख दोमतो तथा अपनिवर्तमान कहेतां कांगथी पागो वलतो थको, नासुरतर कहेतां । अत्यंत दीप्तिवालो लागतो अने तेथी करीने अनिराम कहेतां मनने थाहाद उपजावतो एवो. वली ते दीर समुफ केवो ने तो के महान् कहेतां मोटा मोटा जे मगरमठो, तथा प्रसिद्ध एवांजे माउलांज,8
तथा तिमि, तिमिंगल, निरुफ, तितितिलिका विगेरे जुदी जुदी जातिना जलचर प्राणीविशेषो, है तेना जे अनिघातो कहेतां पुंडमीना पाणी पर करवामां आवता जे पनामा, तेणे करीने उत्पन्न है
थएलो, अने कर्पूरवत् कहेतां कपूरनी पेठे उज्ज्वल कहेतां सफेद रंग जेनो, एवो जे फीणनो समूह ते जे जेनी अंदर एवो. वली ते वीरसमुरु केवो ने तो के मोटी मोटी एवी जे गंगा था-15 दिक नदी, तेजना अत्यंत वेगथी जोसनर दोमी आवता जे प्रवाहो, तेथी उत्पन्न थतुं जे गंगावत 8 नामनुं व्रमण एटले श्रावर्त्तविशेष (पाणीनी घूमरी अथवा वंटोली ) त्यां व्याकुल थतुं एटले मुंका
जतुं, अने तेथीज उंचा उबाला मारतुं (एटले श्रावर्त्तमां पमवाथी श्रने बीजी जगो तरफ जवाने अव-2 काश नहीं मलवाथी उंचे उबलतुं) अने उंचे उबलीने पालुं तेना तेज आवर्त्तमां पमतुं, अने तेथी करीने । ते श्रावर्तनी अंदरज उमणपणाने प्राप्त थएबुं, अने तेथी करीनेज, तथा स्वनावधी पण चपल थएj,18 एवीरीतर्नु ने पाणी जेनी अंदर,एवा क्षीरसमुज्ने त्रिशला क्षत्रियाणीए अग्यारमा स्वप्ननी अंदर जोयो.||॥ ३३ ॥
अग्यारमुं स्वप्न जोया बाद तेणीए बारमा खप्तमा एक अति उत्तम एवा विमानने जोयु. हवे है
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ARASAASAASASSA
ते विमान केवु ने तो के तरुण कहेतां नवो उगेलो जे सूर्य, तेनुंजे मंडल कहेतां बिंब, तेना सरखी ने प्रजा की कहेतां कांति जेनी एवं. वली ते विमान केवु दे तो के देदीप्यमान कहेतां अत्यंत तेज युक्त ने शोना है। जेनी एवं. वली ते विमान केवु दे तो के उत्तम प्रकारनुंजे कंचन कहेतां सुवर्ण अने मणिनो जे समूह, तेणे करीने बहुज मनोहर थएला जे एक हजार ने आठ स्तंनो, तेए करीने अत्यंत देदीप्यमान है। होवाथी नन्न कहेतां श्राकाशने पण कांति युक्त बनावतुं एवं. वली ते विमान केवू डे तो के कनकप्रतर है। कहेतां सोनानां बनावेलां जे पत्रां,तेउँमा लटकतां जे मोती, तेणे करीने उज्ज्वल थएवं एवं. वली ते विमान के ने तो के अत्यंत जाज्वल्यमान थएली श्रने देवताउँने लायकनी, लंबायमान थएली/81 एटले लटकेली दे, एवी रीतनी पुष्पनी माला जेना पर एवं. वली ते विमान के वे तो के हामृग कहेतां वरगमां, वृषन, तुरग कहेतां घोमा, नर कहेतां माणसो, मकर कहेतां मगरमलो, विदग कहेता पदी, व्याल कहेतां सर्पो, किन्नर कहेतां देवजातिविशेष, रुरु कहेतां हरिणजातिविशेष, शरल कहेतां अष्टापद नामना जीवो, चमरी कहेता जेना माना वालनां चमर बने । एवी गायो, संसक्त कहेतां कोजंगली प्राणी विशेष, कुंजर कहेतां हाथी, वनलता कहेतां अशोक वृदनी लता श्रादिक लता, तथा पद्मलता कहेतां कमलिनी, ते संघलांनां चित्रोनीजे विचित्र प्रकारनी रचना, तेए करीने चित्रकारी कहेतां मनने अत्यंत आश्चर्य उपजावनालं. वली ते विमान | केवु ने तो के ("गांधर्व” शब्दे करीने अहीं गीतनो अर्थ करवो, तथा " उपवाद्यमान" शब्दनो अर्थ | वाजित्रो करवो) गांधर्वोए करीने गवातां जे गायनो तथा वगाडातां जे वाजितो ते नो संपूर्ण रीते || घोष कहेतां नाद जेमां एवं. वली ते विमान केवु ने तो के नित्य कहेतां जरा पण आंतरारहित, सजल कहेतां वरसादनां पाणीए करीने संपूर्ण कहेतां नरेलो, अने निबिम तथा पृथुल एटले विस्तारवालो, एवो जे जलधर कहेतां मेघ, तेनो जे गर्जित शब्द कहेतां गारव, एटले गर्जना वखते थतो जे ध्वनि, तेनो अनुनादि कहेता तेना तुख्य नादवालो, एवोजे देव संबंधी इंसुनिनो मोटो शब्द, ते वडे
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सवोन कपन
करीने समस्त एवो जेथा जीवलोक, तेने पूरतुं, अर्थात् दुंदुनिना नादश्री समस्त जगतने व्याप्त करतुं । सुवा
ए. वली ते विमान केवु दे तो के कालागुरु एटले कृष्णागुरु, प्रवरकुन्पुरुष्क (कोश् सुगंधवाऱ्याव्यवि३४॥
शेष) तथा तुरुष्क इत्यादि, के जेनां नामो अगाडी आवी गएलां ने तेउनो, श्रने बीजां पण सुगं-3 दधीनां अंगजूतव्यो, तथा दशांग आदिक धूपोनो बलातो, थने तेथी मघमघायमान थइ रहेलो,
श्रने वली बाजुबाजु फेलावो पामतो जे गंध, तेणे करीने अनिराम कहेता मनोहर थएबुं एवं. वली है ते विमान के डे तो के ज्यां नित्य प्रकाश रहे बे एवं. वली ते विमान केवु ने तो के जे उज्ज्वल डे अने २ तेथी करीने जेनी कांति उज्ज्वल बे एवं. वली ते विमान केवंतो के सरवर कहेतां उत्तम उत्तम जा-13 तिना जे देवो, तेए करीने सुशोनित एटले जरपूर थएवं, पण खाली नहीं रहेढुंए. वली ते विमान है केबु बे तो के शातावेदनीय नामनुंजे कर्म, तेनो डे उपलोग जेनी अंदर एवं. वली ते विमान केवु दे तो है
के विमानवरपुंमरीक कहेता बीजां सघलां विमानोमा पुमरीकनी पेठे अति उत्तम एवं. एवी रीतना विमानने त्रिशला दत्रियाणीए बारमा स्वप्ननी अंदर जोयु. 21 त्यार पड़ी तेरमा स्वप्नमां तेणीए रत्ननिकरराशि कहेतां रत्नोना समूहनो ढगलो जोयो. ते रत्ननो 6 हूँ ढगलो केवो ने तो के पुलक जातिनां रत्नो, वज्र कहेतां हीरानी जातिनां रत्नो, इंजनील कहेतां लीलमनी जातिनां रत्नो, सस्यक जातिनां रत्नो, ककेयण कहेतां कर्केतन जातिनां रत्नो, लोहियरुख कहेतां लोहिताद जातिनां रत्नो, मरगय कहेतां मरकत जातिनां रत्नो, मसारगल जातिनां रत्नो, प्र
वाल जातिनां रत्नो, स्फटिक जातिनां रत्नो, सौगंधिक जातिनां रत्नो, हंसगर्न जातिनां रत्नो, अंजण ६ कहेतां अंजन जातिनां रत्नो तथा चंद्रकांतमणिनी जातिनां रत्नो इत्यादि अनेक जातिनां रत्नोए करीने,
महीतल कहेतां पृथ्वीतल,ते पर रह्यो उतां पण गगनमंमल कहेतां श्राकाशना मंडलना अंत नागने पण ॥३॥ प्रनाए करीने युक्त करतो एवो. अर्थात् लोकमां प्रसिद्ध एवं जे श्राकाश, तेना शिखरने पण पोतानी है कांतिथी शोलावतो एवो. वली ते रत्नोनो ढगलो केवो ने तो के तुंग कहेतां चंचो एवो. ते केटलो
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122RAMANAVANAVSARIJNAARALREPARAMRRJARATI
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बारमा स्वप्नमा देव विमान
तेरमा स्वनमा रलनी राशि.
चीदमा स्वप्रमा निर्धनअग्मिनीशिखा.
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उंचो ? ते हवे कहे बे. मेरुगिरिसदृशं कहेतां मेरु नामनो जे पर्वत, तेना सरखो, एवो उंचो एलो रत्नोनो समूह ते त्रिशला क्षत्रियाणीए तेरमा स्वप्नमां जोयो.
हवे "सिंहिं चेत्यादितः सिद्धिं यावत्" एटले शिखि कहेतां श्रग्निथी मांगीने शिखि कहेतां नि सुधीनुं पद ग्रहण कर. हवे अहीं कोई शंका करे के पहेला पण शिखिपद ने पातुं पण शिखि पद ग्रहण करवाथी पुनरुक्ति दोष शुं न श्रावे ? तेने माटे कहे बे. पहेलां " शिखि" ( "सिंहिं” ) एवं पद) कहेलुं बे, ते पद “ गयव सहेति” गाथामां कहेलुं जे "सिंहिं" पद तेना ग्रहण माटे बे, अने अंते रहेलुं । "सिंहिं” पद खरूपना ग्रहण करवा माटे बे. माटे तेनो जावार्थ ए के "गयव सद" ए गाथामां जे “सिंहिं" पद कहेलुं बे, ते चौदमुं स्वप्न जाणवुं, अने तेथी श्रावी रीतना "सिंहिं" (शिखि ) कहेतां अग्निने जुए बे, एम योजना करी लेवी; अने तेथी करीनेज " तर्ज पुणो " एटले अने वली पण, एवं पद कथं नथी; केमके “सिंहिं च" ए पदथी तेनो जावार्थ स्वयमेवज जगाइ यावे बे. माटे जे गाथाना अंतमां "सिंहिं" पद रहेलुं बे, तेनेज विशेष्यपद तरीके जाणवुं. एवी रीते चौदमा स्वप्नमां त्रिशला क्षत्रियाणीए अनिने जोयो. ते अग्नि के वो बे तो के विपुल कहेतां विस्तारवाली, अने उज्ज्वल एवं जे घी तथा पीला रंगनुं जे मध, ते बन्नेथी सिंचाती, अने तेथी करीनेज धूमामा वि नानी अने “धग् धग्" एवी रीतना शब्दने प्रगट करती, तथा जाज्वल्यमान एटले बहुज तेजवाली थएली एवी जे ज्वाला, तेर्जए करीने उज्ज्वल लागतो अने तेथी करीनेज अनिराम कहेतां मनने अत्यंत श्रानंद यापतो एवो. वली ते नि केवो बे तो के तरतम योगे करीने युक्त एवा जे ज्वालाउना समूह, तेथे करीने अनुक्रम प्रमाणेज जाणे निचित थएलो होय नहीं एवो, अर्थात् तरतम योग एटले एक ज्वाला उंची, बीजी तेथी पण उंची, त्रीजी तेनाथी पण वधारे उंची, | एवी रीतना तरतम योगे करीने युक्त थएला जे ज्वालार्जुना समूहो तेथे करीने, अन्योन्य कहेतां घर| स्परस सघली ज्वाला जाणे मांहे प्रवेशज करी गइ होय नहीं ? एवो. ( अर्थात् बिलकुल अंतर
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कल्प
॥३५॥
विना ज्वाला ते श्रग्निमां हती.) वली ते अग्नि केवो वे तो के ज्वालानुं जे ऊर्ध्व कहेतां चेना नागोमां प्रसरीने जे "ज्वलनक" कहेतां बलवं, (अहीं "ज्वलनक" शब्दने जे "क" प्रत्यय लागेलो है बे, ते "स्वार्थेक" एवीरीतना व्याकरणना सूत्रे करीने लागेलो .) (वली अहीं तृतीया विनक्तिना एक वचननो लोप थश्ने समास थयेलो बे.) ते बलवाए करीने कोश् को प्रदेशमां श्राकाशने पण, जाणे पकावतो होय नहीं ? एवो, अर्थात् ते अग्निनी शिखा श्राकाश प्रत्ये पहोंचवाश्री, जाणे तेने : (आकाशने ) पण पकाववानीज तैयारी करतो होय नहीं ? एवो. (एवी रीतनो कविए उत्प्रेदाअलंकार मेट्यो.) वली ते अग्नि केवो तो के अतिशय एवो जे वेग, तेणे करीने चंचलपणाने प्राप्त थए-12 लो एवो अग्नि त्रिशला कत्रियाणीए चौदमा स्वप्नमां जोयो. एवी रीतनां शुज कहेतां कल्याणना13 हेतुरूप, तथा उमया एटले कीर्तिए करीने पण सहित एवां, तथा प्रियदर्शन कहेतां फक्त जोवा मात्र-18 थीज प्रीतिने उत्पन्न करनारां एवां, तथा उत्तम ने खरूप जेनुं एवां ते स्वप्नोने निशानी अंदर जोश्ने, अरविंद कहेतां कमलना सरखां ने लोचन कहेतां श्रांखोजेनी एवी तथा हर्षे करीने पुलकित कहेता है रोमांच युक्त थएबुं ने शरीरजेणीनुं एवी ते त्रिशला क्षत्रियाणीप्रतिबुझा कहेतां जागी उठी. हवे अहीं। प्रसंग होवाथी उपर कहेलां स्वप्नोने गर्नकालना समय वखते सघला जिनेश्वरोनी माता पण जुए ।
बे, एवं देखामता थका गाथा कहे . हैं एए चउदस सुमिणे, सवा पासे तित्थयरमाया ॥ रयणि वक्कमई, कुछिसि महायसो अरिहा ॥१॥ PI अर्थ-जे रात्रिए महायशवाला एवा अरिहंत प्रजु मातानी कुक्षिमा श्रावे , ते रात्रिए
सघला जिनेश्वर प्रजुनी सघली माता उपर कहेलां चौद स्वप्नांजे जुए . | पनी उपर वर्णवेलां चौद महास्वप्नोने जोस्ने जागी उठी उती हर्ष पामेली, संतोष पामेली, हर्षथी पूर्ण है हृदयवाली, मेघधाराथी सिंचन थएला कदंबपुष्पनी पेठे शरीरनां निरूप कूवाने विषे उल्हास पाम्यां ,
ले रुवामां जेनां एवी त्रिशला दत्रियाणी स्वप्नोनुं स्मरण करे , अने स्मरण करीने शय्यामांथी उठे ,
॥३५॥
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सिद्धार्थ राजा.
चित्र. १६.)
त्रिशलाराएगी.
दासीनं
दरवान
पा. ३५.
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अने उठीने पादपी थी नीचे उतरे बें, अने नीचे उतरान । चत्तन। उत्सुकता राहत, कायाना चपलता रहित, स्खलना रहित, विलंब रहित एवी राजहंसना जेवी गति वडे ज्यां शय्यागृह वे अने ज्यां सिद्धार्थ क्षत्रिय वे त्यां श्रावे वे अने घ्यावीने तेवी रीतनी वाणीए करीने, बोलती की तेने जगामवा लागी. हवे ते वाणी केवी बे तो के विशिष्ट कहेतां उत्तम उत्तम जातिर्जना जे गुणो तेर्जए करीने संयुक्त कहेतां जरेली | एवी. वली ते वाणी केवी बे तो के इष्ट कहेतां ते सिद्धार्थ क्षत्रियना मनने वल्लन लागे एवी. वली ते वाणी केवी बे तो के हमेशां वांबित बे श्रने तेथी करीने प्रिय एवी वली ते वाणी केवी बे तो के मनने विनोद कराववावाली, अने तेथी करीनेज मनने गमे तेवी, पण कोइ दहामो मूली जवाय नहीं एवी. वली ते वाणी केवी बे तो के उदार कक्षेतां सुंदर एवो बे ध्वनि कहेतां अवाज जेनो एवा 'जे वर्णो कहेतां अक्षरो, तेर्जए करीने संयुत थएली एवी. वली ते वाणी केवी बे तो के कल्याण कहेतां समस्त प्रकारनी जे समृद्धि, तेउने करनारी. वली तेवाणी केवी बे तो के शिव कहेतां कोइ पण प्रकारना जे उपद्रवो कहेतां विघ्नो तेर्जए करीने रहित एवी, कारण के ते वाणी मां एवा तो अक्षरो गोठवेला हता के जेथी बिलकुल उपद्रव थवानो तो संजवज नहोतो, अने तेथी करीनेज धन्य कहेतां धननी जे प्राप्ति, तेने कराववावाली. वली ते वाणी केवी ठे तो के मंगल कहेतां जे कल्याण, ते करवामां प्रवीण एवी. वली ते वाणी केवी बे तो के शोजाए करीने युक्त, अर्थात् अलंकारोए करीने विराजित एली. वली ते वाणी केवी बे तो के सुकुमाल कहेतां सुखे करीने तेनो अर्थ जणाइ जाय अने तेथी करीने हृदयने अत्यंत प्यारी लागे एवी. वली ते वाणी केवी बे तो के हृदयने प्रह्लाद करनारी, एटले हृदयमा रहेलो जे चिंता या दिकनो शोक, तेना उच्छेदने करनारी. वली ते वाणी केवी वे तो के मित कहेतां अल्प एटले थोमा बे शब्दो जेनी अंदर एवी, अने बहु बे अर्थ कहेतां जावार्थ जेनी अंदर एवी, तथा मधुर कहेतां कानने अत्यंत सुखनी करनारी एवी, तथा मंजुल कतां उत्तम लालित्य कदेतां ऊडऊ| मकवाला शब्दो ने वाक्यो तथा वर्णोंवाली, (एवी रीते यहीं त्रणे पदनो कर्मधारय समास करी लेवो,)
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कल्प
॥३६॥
अर्थात् मित, मधुर अने मंजुल एवी वाणीउए करीने बोलती थकी ते त्रिशला क्षत्रियाणी सिद्धार्थ रा-18 सुबो जाने जगामती हवी. तेवी रीते तेने जगाड्या बाद,तेनी एटले सिफार्थ राजानी आझा थवाथी ते त्रिशला क्षत्रियाणी,नाना प्रकारना एटले जुदी जुदी जातिनां जे मणि, कनक कहेता सुवर्ण,तथा रत्नो,तेउनी जेरचना,तेणे करीने चित्रकदेतांमनने श्राश्चर्य उपजावे एवा नसासन कदेतांसिंहासन पर बेठी.बेसी-12 ने,मार्गे चालतां थएलोजे खेद तेनोनाश थवाश्री शांतताने पामेली,अने तेथी करीनेज,दोजना अनावे 5 8 करीने विश्वास पामेली श्रने अत्यंत सुखे करीने शासन पर बेठेली त्रिशला सिद्धार्थ राजाने,श्रागल करे-16 बुं बे वर्णन जेनुं एवी वाणीए करीने कदेवा लागी के हे स्वामिन् ! श्राजे में चौद महाखप्नो जोयां बे,अने है
तेथी मनोहर एवां जे ते स्वप्नो, तेनुं कल्याण एटले मंगलने करनालं, एवं शुंफल तथा वृत्तिविशेष थशे? २ प्रत्यारे सिद्धार्थ राजा पण त्रिशला क्षत्रियाणीना मुखथी एवो अर्थ (शु कल्याणकारी फल वृत्ति विगेरे)।
कानधी सांजलीने,तथा तेने हृदयमां सारी रीते धारीने हर्षित थयो थको,संतुष्ट थयो थको अर्थात् हर्ष-18
थी पूर्ण हृदयवालो थयो थको, मेघनी धाराथी सिंचाएलां कदंबनां सुगंधी पुष्पनी पेठे शरीरनां विरूप & कूवाने विषे उल्हास पामेलांरुवाडांवालो थयो थको,ते स्वप्नोने ग्रहण करतोहवो, एटले चित्तने विषेधारण
करतो हवो; तथा हृदयमा धारण करीने ईहा कहेतां खरा अर्थनी विचारशक्तिमां लीन थतो हवो; अने एवी रीते लीन थश्ने पोतानी स्वानाविक मतिपूर्वक बुझिना विझाने करीने ते स्वप्नोना अर्थोनो निश्चय करतो हवो, श्रने अर्थनो निश्चय कर्या बाद ते सिद्धार्थ राजा त्रिशला दत्रियाणीने,पागल जेनु र है वर्णन करवामां आवेढुंबे, एवी उत्तम प्रकारनी वाणीए करीने बोलतो थको कहेवा लाग्यो के हे देवा
नुप्रिये कहेतां सरल ले खन्नाव जेणीनो एवी हे त्रिशला क्षत्रियाणि, तें उदार कहेतां मनोहर खप्नां जोयां , कल्याण कहेतां कल्याणना करनारांस्वप्नो तें जोयां , शिव कहेतां निरुपव करनारां स्वप्नो ॥३६॥ तें जोयांडे, धन्ना कदेतां धनप्राप्ति करावे एवां स्वप्नो तेंथाजे जोयां बे, मंगल कहेतां मंगलने अर्थात् ६ कल्याणने करनारां स्वप्नो तें श्राजे जोयां डे, वली लक्ष्मीए करीने युक्त एवा ते स्वप्नो श्राजे तें जोयां ,
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है वली आरोग्यने पण करनारां एवां स्वप्नो तें आजे जोयां , वली तुष्टि कदेतां संतोषने थापनारां एवां | स्वप्नो श्राजे तें जोयां . वली दीर्घायु करनारां स्वप्नो आजे तें जोयां डे, वली कल्याण अने मंगलिकनां । करनारां एवां स्वप्नो तें श्राजे जोएलां बे. माटे हवे एवां मनोहर स्वप्नोनुं तमोने शुं फल थशे ? ते हवे |
हे देवानुप्रिये, ते स्वप्नोथी अर्थनो कहेता मणि माणिक सुवर्ण श्रादिकनो लान थशे, वली लोग कहेतां शब्दादिक जे नोग्य पदार्थो, तेनो पण लाज थशे,पुत्र एटले संतान आदिकनो पण लाज थशे, सुख एटले निवृत्तिनो पण लाल थशे, वली राज्य कहेतां सात लक्षणो युक्त जे राज्य, तेनो पण लान 5 थशे, राज्यनां ते सात लक्षणो कयां कयां, ते नीचे प्रमाणे जाणी सेवां. खामी एटले राजा, अमात्य एटले प्रधान, सुहृद् एटले मित्र, कोश एटले नंमार, राष्ट्र एटले देश, उर्ग एटले किलो,तथा सैन्य एटले चतुरंगी ( हाथी, घोमा, पाला अने रथ ) सेना. एवी रीतनां सात अंगयुक्त राज्यनो लान थशे. एवी रीते सामान्यपणाथी फलनुं वर्णन करीने हवे विशेषपणाथी तेनुं वर्णन करे ..
हे देवानुप्रिये, भाजयी नव महिना संपूर्ण गया बाद, तथा ते उपरांत सामा श्राप रात्रिदिवसो पण अतिक्रमण थये बते, उत्तम डे स्वरूप जेनु, एवा एक पुत्रने तुं जन्म आपीश. हवे ते पुत्र केवो तो के श्रमारा कुलने विषे केतु कहेतां ध्वज सरखा एवा अति अनुत पुत्रने तुं जन्म आपीशवली ते पुत्र केवो तो है के अमारा कुलने विषे दीपक समान,अर्थात् कुलने प्रकाश करनारो तथा मंगल करनारो, एवा पुत्रने । तुं जन्म थापीश. वली ते पुत्र केवो तो के कुलने विषे पर्वत समान, अर्थात् पर्वतनी पेठे जेने कोइ पण 1 उश्मन परानव न करी शके एवा, तथा स्थिर अने कुलना आधारभूत एवा पुत्रने तुं जन्म आपीश. व-31 ली ते पुत्र केवो तो के कुलने विषे अवतंस कहेतां मुकुट समान, कारण के ते यश अने शोजाने धारण करनारो थशे. वली ते पुत्र केवो तो के लोकोने विष तिलक समान, अने वलो कुलने विषे कीर्तिना करनारा एवा पुत्रने तुं जन्म थापीश वली ते पुत्र केवो तो के कुलनी वृत्ति करनारो,एटले कुलनो निर्वाह क-2 देतां आजीविका चलावनारा एवा पुत्रने तुं जन्म पापीश; वली ते पुत्र केवो तो के कुलने विषे दिनकर 3
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कल्प
६ कहेतां सूर्य सरखो, कारण के ते कुलने प्रकाश करनारो थशे, एवा पुत्रने तुंजन्म आपीश. वली ते पुत्र है
है केवो थशे तोके पृथ्वीनी पेठे कुलने आधारभूत थशे, एवा पुत्रने तुं जन्म आपीश. वली ते पुत्र केवो है। ॥३०॥
तो के कुलनी जे नंदि कहेतां वृद्धि, तेने करनारो, एवा पुत्रने तुं जन्म श्रापीश. वली ते पुत्र केवो तो के कुलने विषे यश करनारो, अर्थात् सर्व दिशाउँमां कुलनी प्रख्यातिनो करनारो. कडं ने के:- 3 | "एकदिग्गामिनी कीर्तिः, सर्व दिग्गामुकं यशः”॥अर्थ-कीर्ति एक दिशामां जनारी होय , अनेजे 5 सर्व दिशामां व्यापे ते यश कहेवाय; माटे एवा पुत्रने जन्म थापीश. वली ते पुत्र केवो तो के
ने विषे पादप एटले वृक्ष समान अर्थात् वृद जेम पंथे चालनाराऊने आश्रयरूप थश्ने बाया श्रापे , इतेमतुंपण कुलने श्राश्रयनूत एवा पुत्रने जन्म श्रापीश. वली ते पुत्र केवो तो के कुलनी सर्व रीते वृद्धि
करनार एवा पुत्रने तुंजन्म आपीश. वली ते पुत्र केवो तो के सुकुमाल बेहाथ अने पगो जेना, तथा जरा 8 पण न्यूनता विनाना अने संपूर्ण पांचे इंडियो सहित शरीरवाला, तथा लक्षण अने व्यंजन यादिक गुहै णोए करीने सहित, तथा मानोपमाने करीने सुंदर डे सर्व अंग जेनुं एवा, तथा चं सरखा सौम्य आ
कारवाला, तथा कांत एटले मनोहर तथा प्रिय ले दर्शन जेनुं एवा, तथा उत्तम रूपवाला एवा पुत्र-2 ने तुं जन्म थापीश.वली ते बालक पण बाल्यावस्थाने त्यजी दश् सर्व जातना विज्ञाने करीने युक्त अर्थात्
परिपक्क विज्ञानवालो थशे.वली यौवनावस्था पाम्यो तो दान देवामां शरो अर्थात अंगीकार हूँ कार्याने निर्वाह करवामां समर्थ, वीर कहेता रण संग्राम करवामां समर्थ तथा विक्रांत कहेतां परराज्यने ।
थाक्रमण करवामां समर्थ अर्थात् महापराक्रमे करीने युक्त थशे. वली ते विस्तीर्ण थकी पण विपुल अ-2 कार्थात् अत्यंत विस्तारवाला बल कदेतां सेना तथा वाहन कदेतां बेल थादिके करीने युक्त थशे. वली ते 8
राज्यनो स्वामी कहेतां राजा थशे. माटे हे देवानुप्रिये, त्रिशला क्षत्रियाणि, ते अत्यंत मनोहर एवां स्व-18 मोजोयां जे. एम बेत्रण वार प्रशंसा करी. त्यार पली ते त्रिशला क्षत्रियाणी सिद्धार्थ राजानी पासे ए स्व. ॥३७॥ मांना अर्थने सांजलीने श्रने अवधारीने हर्षित थएली, संतुष्ट थएली, यावत् हर्षश्री जरा गएला हृद-18
NAGARSARKARISSAGESASARAKASSACRACKS
TECORDCORESCEBCAMSACAMAMASCALCANCREASCALOCALGAOCALC
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यवाली थथकी बंने हाथ एका करीने तथा मस्तके अंजलि करीने या प्रमाणे कदेवा लागी. हे।इ। स्वामिन् ! ए एमजबे, ए तेमज . ए यथार्थ बे, ए संदेह रहित , एशवित बे. हे स्वामिन् ! तमारा म.18
खथी पमता एवा ते वचनने में ग्रहण काँ बे. हे स्वामिन् ! वांडेलु बतां वारंवार ए वांजेतुं जे. हे स्वामिन ! दए अर्थसत्य जे. जेवी रीते ए श्रर्थ तमे कह्यो ने तेज प्रमाणे ते .एम कही तेणीए ते स्वप्नने सारी रीते*
अंगीकार कयाँ तथा तेम करीने सिधार्थ राजाए तेने अनुशा श्रापवाथी, एटले तेने स्थानके जवानी तेणीने रजा श्रापवाथी ते त्रिशला क्षत्रियाणी, नाना प्रकारनां मणि अने रत्नोनी रचनापी विचित्र एवा तेजप्रासन परथी उठी; तथा उठीने उतावल रहित, चापल्यपणाए करीने रहित, संत्रांत विनानी तथा
विलंब विनानी राजहंस जे गतिथी चाले तेवी गतिथी ज्यां पोतानी शय्या हती, त्यां चाली ग तथा है है तेम करीने, एटक्षे त्यां जश्ने, एम कहेवा लागी के, मारा था उत्तम कहेता स्वरूपधीज सुंदर एवां,
तथा प्रधान कहेतां उत्तम फलने देनारा, अने तेथीज मंगलिक करनारां, एवां था स्वप्नो, वीजां खराब स्वप्नोथी नाश न पामे तो सारुं, एम विचारीने देव गुरुजन विगेरेना संबंधवाली, अने तेथी| करीनेज प्रशस्त कहेतां महामंगलकारी एवी धर्म संबंधी कथाए करीने, स्वप्नजागरिका करता स्वप्नोने रक्षण करवा माटेनुं जे जागरण,तेने करती थकी,तथास्वप्नोनेज याद करती थकी रहेवा लागी. | हवे ते सिद्धार्थ राजा पण प्रत्युषकाले कहेतां जे वखते प्रजातकाल थयो ते वखते, कौटुंबिक पुरुषो| कहेता सेवक पुरुषोने बोलावतो हवो; तथा बोलावीने तेजेने ते कहेवा लाग्यो के हे सेवको! आज ज-11 त्सव दिन कहेतां मोटा महोत्सवनो दिवस , तेथी एकदम विशेष प्रकारथी जेम थाय तेम, बहारना ।
नाग पर रहेली उपस्थानशाला कहेतां बेठकनी जगो, अर्थात् कचेरी, तेने गंधोदक कहेतां सुगंध युक्त है थिएबुं जे पाणी, तेनाथी पवित्र करो, तथा त्यां रहेलो जे कचरो, तेने पूर फेंकावीने ते साफ करो, तथा ?
गण श्रादिकथी तेने लीपावो; तथा सुगंधी एवां पांच वर्णोनां जे उत्तम उत्तम पुष्पो, ते त्यां पथरावो 51 तथा बलता एवा कृष्णागुरु,श्रेष्ठ कुन्दरुष्क,तुरुष्क विगेरेधूपोनो उत्तम अने मघमघायमान थइरहेलो जे 31
206400*XOSH XHOSASSAA%99444
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कल्प
सुगंध तेणे करीने ते कचेरीने सुंदर तथा चूर्णादिकथी अत्यंत सुगंधमय करो; अने त्यां सुगंधवाली गो-रसुवो दिली पण पथरावो; ए सघवं कार्य तमो पोते जाते जश्ने करो, बीजाऊनी पासे पण करावो अने तेम कर्या ॥३०॥
वाद त्यां तमो सिंहासननी रचना करो; अने तेम करीने, श्रावीने मने कहो के,तमारी थाज्ञा प्रमाणे अ-२ मोएसघदूं तैयार करी राख्युं वे. ते सांजलीने ते कौटुंबिको पण, एवीरीते सिद्धार्थ राजाधी आज्ञा कराया उता, अत्यंत हर्षित तथा संतुष्ट थया, अने हाथ जोडीने तथा मस्तके अंजलि करीने, ते सिद्धार्थ है। राजाने कहेवा लाग्या के, जेम आप कहोबो, ते प्रमाणेज अमोपण करी: एम कहीने आका प्रमाणे विनयश्री सिद्धार्थ राजानां वचनने सांजले, अने सांजलीने सिद्धार्थ दत्रियनी पासेथी वहार नीकले ।
अने बहार नीकलाने ज्यां बहार कचेरी ने त्यां जाय जे. त्यां जश्ने बहारनी कचेरीने सुगंधी जलथी सिंचन करवा पूर्वक पवित्र करीने त्यां सिंहासननी रचना सुधीनुं सर्व कार्य करे ने अने ते करीने ज्यां सि-3 धार्थ क्षत्रिय नेत्यां ते आवे , अने श्रावीने बे हाथ जोमीने मस्तक पर अंजलि करीने सिद्धार्थ दर त्रियने “थापनी आझा प्रमाणे अमोए सघ तैयार कयु ने” एम निवेदन कर्यु. का हवे ते वार पड़ी सिद्धार्थ राजा पण रजनी कहेतां रात्रि वीत्या वाद, पद्म तथा “कमल” एटले हरि-2
णनी जातिविशेष, तेनुं जे नयन कहेतां लोचन, ते प्रफुल्लित कहेतां विकस्वर थाते उते अर्थात् जे. वखते कमलोनां पत्रो तथा हरिणनां नेत्रो पण विकस्वर एटले खुल्लां थयां हां एवो पांगर कहेतापू श्वेत रंगवालो प्रजातकाल होते बते, एवी रीते रात्रिना वोत्या बाद, प्रजात थवाथी, अनुक्रमे सूर्य है पण उगते बते; ते सूर्य केवो तो के रक्त कहेतां लाल रंगनुं जे अशोक नामवृक्ष तेनी कांतिना समूह सरखो, वली ते सूर्य केवो तो के किंशुक कहेता केसुमांनां पुष्प सरखो, वली ते सूर्य केवो तो
क कहेतां जे पोपट तेनी चांच सरखो, वली ते सूर्य केवो तो के चषोठीनो जे अर्ध नाग तेना 31 ॥३०॥ टू जेवो, एटले चणोठीमा रहेलो कालो नाग वर्जीने वाकी जे लाल नाग होय तेना जेवो, वली ते ४
सूर्य केवो तो के बंधुजीवक एटले एक फुलनी जातनुं नाम , के जेने लोको बपोरीया कहे , तेना ,
CARDCROCOCCORROSOCIENCOURCENGINGOLIC
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जेवो, वली ते सूर्य केवो तो के पारापत कहेतां जे पारेवां (कबुतर) तेना पग अने श्रांखो जेवो, वली ते सूर्य केवो तो के परभृत कहेतां जे कोयल, तेणे क्रोध थादिकथी लाल करेली जे अांखो, ते आंखोना जेवो, वली ते सूर्य केवो तो के जपापुष्प कहेतां जासूद नामनी जातिनां जे पुष्पो, तेन-14
नो जे राशि कहेता ढगलो, तेना जेवो, वली ते सूर्य केवो तो के प्रसिद्ध एवो जे हिंगलो तेनो जे Pढगलो, तेना जेवो. उपर जे सघली लाल रंगनी वस्तु कही, तेनाथी पण अधिक शोजतो एवो. तेनाथी पण अधिक शोचतो, एम शा माटे कह्यो ? एम जो कोश् शंका करे तो तेने माटे खुलासो एवो के, रताशमां तो तेना सरखो, पण कांतिए करीने तो तेनाथी पण थधिक सूर्य शोने बे, एम वृक्ष श्राचायोंनो मत जे. अथवा लाल रंगमां अशोकथी मामीने ठेक हिंगलाना ढगला सुधीनां जे विशेषणो, तेनो शोजतो एवो जे अतिरेक कहेतां प्रकर्ष, तेना जेवो सूर्य एवो अर्थ पण करवो. वली ते सूर्य केवो । तो के कमलोना जे श्राकरो कहेता उत्पत्तिनां स्थानको, अर्थात् पद्मनी उत्पत्ति थवानांजे तलावो, तेने विषे रहेला जे कमलोनां वनो, तेउने विकखर करनारो, एवो, वली ते सूर्य केवो तो के हजार ने किरणो 3
जेनां एवो, वली ते सूर्य केवो , तो के दिनकर कहेतां दिवसने उत्पन्न करवामां समर्थ एवो, वली ते है सूर्य केवो तोके तेजे करीने देदीप्यमान एवो, वली ते सूर्य केवो तो के तेनां (सूर्यनां) किरणोना जे अनिघात, तेणे करीने अपराधी एटले पुश्मनरूप एवो जे अंधकार, तेनो नाश होते उते, नवो एवो जे तेनो लाल रंगनो ताप, ते जाणे के कुंकुमज होय नहीं? तेनाथी तमाम मनुष्यलोक व्याप्त होते बते, श्र-
र्थात् जेम कुंकुमे करीने कंश्क वस्तुने पिंजरी कराय , तेस ते सूर्यनां तेजे करीने पण समस्त मनुष्यलोक हैपण पिंजरा रंगनो (कंशक रातो अने कंश्क पीला रंगनो) कराते उते, ते सिद्धार्थ राजा शयनीय कहेतां से
पोतानी शय्यामांथी उठतोहवो. ते शय्यामांधी उठीने ते पादपीठ परथी (पलंग उपरथी नीचे उत-2 करवामादे मुकेली सीमी उपरथी) नीचे उतर्यो. नीचे उतरीने ज्यां अट्टनशाला कहेतां कसरतशाला
हती, ते तरफ चाख्यो. ते तरफ चालीने ते तेनी अंदर दाखल थयो. त्यांदाखल थश्ने अनेक प्रकारनां 8
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कल्प०
॥ ३५ ॥
जे कसरतने लायकनां साधनो, (मुल या दिक) ते तेणे लीधां तथा तेथी वल्गन, व्यामर्दन तथा मल्लयुद्ध श्रादिक तेणे कर्यां. वल्गन एटले कुदका मारवा विगेरे, व्यामर्दन एटले परस्पर हाथ व्यादिक अंगोने मोमवा ते, तथा मल्लयुद्ध तो लोकोमां प्रसिद्ध बे. एसघली क्रिया करीने, श्रांत थलो ए|टले सामान्य प्रकारे श्रमने प्राप्त थयो थको, तथा परिश्रांत एटले सर्व अंग प्रत्ये श्रमने प्राप्त थयो थको, | मर्दन करावा लाग्यो. ते मर्दन केवा प्रकारनुं ? तेनुं वर्णन हवे करे बे. शतपाकतैल कहेतां सो वखत नवी नवी औषधिजेना रसोए करीने पकावेलुं, अथवा जेने पकाववामां एक सो सोनामोहोरो लागे एवं, | श्रने एवीज रीते सहस्रपाकतैल कहेतां एक हजार औषधिना रसथी पकावेलुं, अथवा जेने पकावतां | एक हजार सोनामोहोरो लागे एवं. एवी रीतनां श्रुत्यंत सुगंधी उए करीने युक्त घएलां जे तैल यादिको, (यादि शब्दथी कपूरनां पाणी श्रादिकनुं पण ग्रहण कर. ) तेर्जए करीने तेणे मर्दन कराव्युं. वे ते तैलादिको केवां तेनुं वर्णन करे बे. प्रीणनीय कहेतां रस, रुधिर एटले लोही इत्यादि शरीरनी - दर रहेली धातुउने समता करनारां, वली ते तैलादिक केवां तो के दीपनीय कदेतां जठराग्निने प्रदीप्त करनारां, वली ते तैलादिक केवां तो के मदनीय कहेतां कामनी वृद्धि करनारां, वली ते तैलादिक केवां तो के बृंहणीय कहेतां मांसने पुष्टि करनारां, वली ते केवां तो के दर्पणीय कक्षेतां बलने करवावालां, वली ते केवां तो के सघलां इंडिय श्रने अंगोने प्रह्लादनीय कहेतां ध्यानंद उपजावनाएं, एवी रीतनां तैल श्रादिकथी तेणे माणसो पासे पोताना अंगनुं मर्दन कराव्यं, अने तेथी तेनो थाक पण उतरी गयो. हवे ते मर्दन करनारा माणसो केवा तो के निपुण कहेतां सघला प्रकारना उपायोमां विचक्षण एवा. वली ते | माणसो केवा तो के संपूर्ण वे, हाथ अने पगो जेउना, अर्थात् हाथ पगमां कंपू पण खोमखापण विनाना. | वली ते माणसो केवा तो के जेउना हायनां तलीयां पण अत्यंत सुकुमाल बे एवा. ( अहीं किरणावली | नामनी टीका करनार श्री धर्मसागर उपाध्याये तथा दीपिका नामनी टीका करनारे पण " पाणिपा "दस्य " ने बदले " पाणिपादानां " एवो प्रयोग लख्यो बे, ते विजारवा जेवो बे; अर्थात् ते व्याकरणना
सुबो०
॥ ३५ ॥
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LOTTTTOUTUBE
SEठम्यग्जटल
mmmmm चित्र १७.)
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सिद्धार्थ राजा पाट नुपर बेसीतैलादिकें मर्दन करावे हे..
न्हाबाने अर्थ जल उष्ण करायठे.
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पा.३१
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नियमश्री विरुद्ध बे, कारण के "प्राणितुयांगाणां " एवी रीतना हेमचंद्र महाराजे कहेला व्याकरणना सूत्र ने अनुसारे तेनो “एकवद्भाव" थवो जोइए. अर्थात् " पणिपादानां " एम पद नहीं मूकतां " पाणिपादस्य " एवं पद मूकवुं जोइए. वली ते पुरुषो केवा तो के अभ्यंगन कहेतां तेल च्यादिकनुं चोपमवुं ते, तथा मर्दन कहे तां तेने चोलवं ते, तथा उलन कदेतां तेज तेलने चोली ने तेनी वाटो करीने पातुं काढी नाखवुं ते, इत्यादिक जे प्रकारो, ते मां उत्कृष्ट अभ्यासत्राला एवा. वली ते माणसो केवा के अवसरने एटले उचित कालने जाणनारा एवा. वली ते माणसो केवा तो के दक्ष कहेतां तुरतातुरत कार्य | करनारा एवा. वली ते माणसो केवा तो के मर्दन करनारा माणसोमां पण अग्रेसर एवा. वली ते माणसो केवा तो के कुशल कहेतां विवेके करीने युक्त एवा. वली ते माणसो केवा तो के मेधावी कहेतां पूर्व ए|टले यति उत्कृष्ट जे चतुराइ तेने ग्रहण करवामां समर्थ एवा. वली ते माणसो केवा तो के जीतेलो बेपरिश्रम जेणे एवा, अर्थात् बहु महेनत करता बतां नहीं थाकी जता एवा पुरुषोए करी ने पहलो स्थिसुखकारिण्या कहेतां जे चंपीए करीने शरीररमां रहेलां हामकांउने सुख उपजे एवो प्रकार, बीजो मांस सुखकारिण्या कहेतां जे चंपीए करीने शरीरमां रहेला मांसने पण सुख उपजे एवो प्रकार, त्रीजो त्वचासुखकारिण्या कहेतां, जे चंपीथी त्वचा कदेतां चामडीने पण सुख उपजे एवो प्रकार, तथा चोथो रोम| सुखकारिण्या कहेतां जे चंपी थी रोमोने पण सुख उपजे एवो प्रकार, एवी रीतनी चार प्रकारनी शरीरने सुख करनारी चंपी विगेरेनी क्रियाथी, चंपाएला थवाथी थाकरहित थएला ते सिद्धार्थ राजा तुरत | श्रट्टनशाला कहेतां कसरतशालामांथी बहार नीकल्या. त्यांथी नीकल्या बाद तुरतज ते ज्यां मनगृह कहेतां स्नान करवानुं गृह एटले स्थानक हतुं, ते तरफ ते सिद्धार्थ राजा श्राव्या. ते तरफ आवीने तेथे तेमां प्रवेश क्यों. त्यां प्रवेश करी ने मुक्ताफल कहेतां मोती यादिकथी व्याप्त एटले जडेला एवा जे गवाहो | कहेतां ऊरुखाउँ, ते बे जेनी अंदर, अने तेर्जए करीने अजिराम कक्षेतां मनने अत्यंत आनंद यापनारा एवा, तथा विचित्र एटले जुदी जुदी जातिनां श्रथवा श्राश्चर्य उपजावनाएं एवा जे मणि श्रने रत्नो, ते
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कल्प
॥४०॥
ए करीने जडेलो , कुहिमतल कहेतां तलीयानो नाग जेनो, एवी ने नूमि ज्यां, एवा प्रकारना स्नान- सुबोग ममप कहेतां स्नान करवाने माटे बनावेलामांमवामां नाना प्रकारना कहेतां विचित्र प्रकारनां जे| मणिर्ड तथा रत्नो, तेए करीने जडेला, अने तेथी मनने श्राश्चर्य उपजावनारा, एवा स्नानपीठ कहेतां । स्नान करवा माटे तैयार करी राखेला बाजोठ पर ते सुखे करीने बेग अने एवीरीते सुखे समाधे त्यां बेग|| बाद पुष्पोदक कहेतां फुलोना रसथी मिश्रित थएलांजे जलो कहेतां पाणी,तेए करीने, तथा गंधोदक 3 एटले श्रीखंम कहेतां जे सुखम,तेनो जे रस,तेणे करीने मिश्रित थएलां जल,ते ए करीने,तथा उष्णोदक कहेतां अग्निए करीने वासण श्रादिकोमा गरम करेलां पाणीउथी तथा शुनोदक कहेता पवित्र एवां जे । तीर्थो, त्यांथी मगावेलां एवांजे पाणी, तेउए करीने, तथा शुद्धोदक एटले स्वनावीज निर्मल कहेतां । जरा पण मेल विनानां एवां जे पाणी, तेए करीने, एवी रीतनां विविध कहेतां जुदा जुदा प्रकारनां जे पाणी, ते ए करीने, कल्याणकरणप्रवर कहेतां मंगलिक कार्योने करवामां समर्थ एवो जे स्नान करवानो विधि, तेणे करीने, मजितः तादृशैः पुरुषैः कहेता, उपर जेनुं वर्णन करवामां श्रावेलु डे, एवा पुरुषोए है करीने ते सिद्धार्थ राजाए स्नान कर्यु ते स्नान अवसरे, बहु प्रकारनां सेंकडो कौतुकोए करीने युक्त थयो । थको, ते राजा मंगलकारी श्रेष्ठ स्नान करी रह्या पनी पदमल कहेतांरंवाटीवायं, अने तेथी करीनेज स्प-15
मां अत्यंत कोमल लागे एवं तथा उत्तम प्रकारनी गंटेली ने सुगंधी जेनी अंदर एवं लाल रंगनुं ६ ६ जे कापम, तेणे करीने, निर्जलीकृत कहेतां बिलकुल पाणी विनानुं पोतानुं अंग कहेतां शरीर करतोह- है वो. तथा त्यार बाद अहतं कहेतां श्राखुं अने बहुमूल्य कहेतां जेने खरीदवा जतां अथवा बनावतां घणुं है
व्य लागे एबुं,तथा अत्यंत उत्तम जाति-जे पूष्यरत्न कहेतां रेशमी कापमर्नु बनावेवू जे वस्त्र, तेणे क-2 रीने तेणे पोताना शरीरने लपेटी लीgअर्थात् तेणे ते उत्तम वस्त्र पहेयु. वली ते राजा केवो तो के सरस 50४०॥
कहेतारसे करीने संयुक्त थएबुं एवं तथा सुरनि कहेतां सुगंध युक्त थएबुं एq जे गोशीर्षचंदन कहेता हू ₹ गायना मस्तकमांथी नीकलतुं एवं जे गोरुचंदन(गोरोचन)तेणे करीने अनुलिप्त कहेतां लेपन युक्त थएवं
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ने शरीर जेनुं एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के माला एटले पुष्पोनी माला तथा वर्णक एटले पीची अने शरीरने शोजावनारं कुंकुम आदिकनुं विलेपन, ते सघg शुचि कहेतां पवित्र ने जेने एवो.|| ! जावली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के परिहित कहेतां शरीर पर पहेरेला बे,मणि श्रने सुवर्णमय कहेतां
सोनामय,नूषण कहेतां अलंकारो जेणे एवोवली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के कल्पित कहेतां शरीर पर
योग्य स्थानके पहेरेला , हार कहेतांजेमां जुदी जुदी अढार सेरो होय ते, तथा अर्धहार कहेतां जेमां है जुदी जुदी नव सेरो होय ते, अने त्रिसरिक एटले जेमांत्रण सेरो जुदी जुदी होय एवो हार, तथा प्रलंवमान कहेतां लांबो लटकतो एवो, प्रालंब कहेतां कुंबनक (ॉमj) तथा कटिसूत्र कहेतां केमने स्थानके पहेरवानुं जे आजूषण ते, अर्थात् कंदोरो, एटलां उपर वर्ण वेलांजे श्रानूषणो, तेए करीने करेली में उत्तम प्रकारनी शोनाजेणे एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के पिनक कदेतां पहेरेलां , ग्रैवेयक
कहेतां कंठमां पहेरवानां कंगादिक जुदी जुदी जातिनां आनूषणो जेणे एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा । है केवो तो के अंगुलीयक कदेतां आंगलीमां पदेरवानां जुदा जुदा प्रकारनां आजूषणो के जे वेढ, वींटी विगेरेनांनामथी नियामांप्रसिकनेते तथा ललित कहेतां अत्यंत शाज तां केशोने शोजावनारां पुष्प श्रादिकनां थानूषणो, ते जेणे योग्य स्थानके पहेरेलां एवो. वली ते सिकार्थ राजा केवो तो के वर एटले अत्यंत उत्तम जातिनां एवां जे कटक कहेतांकडां तथात्रुटित कहेता है पोंची, बाजुबंध विगेरे जातिनां आजूषणोश्री स्तंचित थयेला बे हाथ जेना एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के अधिक एवं जे तेनुं पोतार्नु स्वानाविक रूप,तेणे करीने अत्यंत शोनायुक्त थएलो एवो. वली|४|| ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के कानमा पहेरवानांजे कुंमलो, तेणे करीने अत्यंत प्रकाशित थएवं ने श्रानन कहेतां मुख जेनुं एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के मस्तक पर पहेरवानो जे मुकुट, तेणे करीने से
अत्यंत तेजवायुं थएबुं ने मस्तक जेनुएवो.वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के हारे करीने श्राबादित एट-2 शाले श्राबादन युक्त करेवू, अने तेथी करीने जोनार माणसोने प्रमोद कहेतां अतिशय दर्षने आपनाएं |
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सुबोग
कल्प
द हृदय कहेतां वक्षःस्थल जेनुएवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो ने तो के मुखिका कहेता वींटी श्रादि
कथी पिंगल कहेता पीला रंगवाली थएली ने हाथनी आंगली जेनी एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो है ॥४१॥
तो के प्रलंब कहेतां लांबो, अने तेथी करीनेज नीचे लटकतो एवो जे छुपट्टो, तेणे करीने उत्तम रीते करेमुंडे उत्तरासंग जेणे एवो. वली ते सिद्धार्थ राजा केवो तो के नाना प्रकारनां एटले जुदी जुदी जातिनांजे
मणि अने कनक कहेतां जे सुवर्णो, अने रत्नो,तेणे करीने दीप्तिमंत कहेतां कांतिवालां, अने तेथी करी-14 हैनेज महार्घ्य कहेतां जेने खरीद करतां अने बनावतां पण घणुं मूल्य पडे एवां,तथा निपुण एटले शिल्प
विद्यामां अत्यंत प्रवीण थएलो एवो जे शिल्पी कहेतां कारिगर, तेणे उपचित कहेतां घडीने बनावेलां, 2 तथा अत्यंत दीपतां, तथा घणीज चीवट राखीने वनावेलां,तथा कोजाणी न शके तथा उखमी पण
नजाय एवी रीते जोडेला सांधा जेनी अंदर एवां,श्रने तेथी करीनेज विशिष्ट कहेतां बीजां श्रानू-8 हूँषणोथी अत्यंत रमणीय लागे एवां, तथा मनने पण हरी लीए एवां, धारण करेल ने वीरवलय कहेतां ।
वीरपणानो जे पोतानो अहंकार तेने सूचवनारांवलयो कहेतां कमां जेणे एवो; अर्थात् जे कोश पोताने , वीर तरिके मानतो होय, ते मने जीतीने या कडां उतरावे, एवी बुद्धिथी धारण करेल ने वीरवलय जेणे एवो सिद्धार्थ राजा. हवे कवि कहे के वधारे तेनुं शुं वर्णन करवू ? ते राजा तो कल्पवृदनी पेठे वि-3
नूषित थएलोहतो; एटले कल्पवृक्ष जेम पत्र कहेतां पांदमां श्रादिकथी अलंकृत होय, अने पुष्प एटले है है फुल आदिकधी जेम नूषित होय, तेमा सिद्धार्थ राजा पण मुकुट आदिकथी अलंकृत हतो, तथा वस्त्र श्रादिकथी विनूषित थयो हतो. वली ते राजा केवो तो के कोरिंट नामनां वृदनां जे पुष्पो, तेनी बना-2
वेलीजे मालार्ड, तेए करीने सहित एवं, अने तेना पर धारण करातुं जे उत्र, तथा श्वेत वर्णवाला अने । | मनोहर एवां, अने बन्ने बाजुए वींकाता एवां जे चामरो, तेए करीने नूषित थएलो एवो. वली ते राजा ||
॥४१ है केवो तो के मंगलचूत कहेतां कल्याणकारी एवो जे"जय जय” नो शब्द ते कराइरहेलो , थालोकमाINत्र कहेता जेना जोवामात्रथी एवो; अर्थात जेने जोतां थकाज लोको जय जय शब्द करी रह्या डे
ORDCORROCRACLASTROCEDARSAMADRASRDCOREGROGAMCX
॥
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INवली ते राजा केवोतो के अनेक कहेतां घणा एवा जे गणनायको कहेता पोतपोताना समुदायना स्वामी-12||
एटले उपरी, तथा दंडनायक कहेतां तंत्रपाल एटले देशनी चिंता करनाराज, तथा राजा एटले मांमलिक राजा, अर्थात् पोताना ताबा तलेना देशोना खंमीथा राजा, तया ईश्वरो एटले युवराजा, (अहीं कल्पसूत्रनी किरणावली नामनी टीका करनारा धर्मसागर उपाध्याय तथा दीपिका नामनीटीका है। करनार ए बन्नेए ईश्वरनो अर्थ “युवराजाः” ने बदले "युवराजानः" एम करीने प्रयोग मूकेलो ने ते विचारवा लायक,केमके ते व्याकरणना नियमथी उलटोबे; कारण के "अट्रसमासांतागमनेन" एवी रीतनाव्याकरणना सूत्रथी "युवराजाः" एवी रीतनोप्रयोग थाय , पण "युवराजानः" यश् शकतो
नश्री, तेथी विद्वानोए मूकेलो प्रयोग विचार करवा जेवो ) तथा तलवरा कहेतां संतुष्ट थएला राजाहए दीधेलो जे पट्टबंध कहेतां चांद, तेणे करीने विनूषित थएला एवा राजस्थानीय कहेतां राजदरबारी
माणसो तथा मांडलिक कहेतां ममलना स्वामी एटले उपरी, तथा कौटुंबिक कहेतां केटलांक एवां जे कुटुंबो, तेऊनां स्वामी, तथा मंत्रि कहेतां राज्यना अधिष्ठायक एवा सचिवो, के जे तमाम राज्य
संबंधी कार्यने चलावे ते, तथा महामंत्रि कहेतां उपर कहेला मंत्रित करतां पण जेने वधारे अधिहै कार एवा, तथा गणक एटले ज्योतिष संबंधी विद्यानां शास्त्रीने पार पहोंचेला ज्योतिषी, तथा दौ
वारिक कहेतां घार पासे चोकी करनारा प्रतिहारो एटले बमीदारो,तथा अमात्यो कहेतां पोतानी साथेजजेनो जन्म थएलो होय एवा मंत्रिर्ज, तथा चेटो कहेतां चाकरोतुं कार्य करनारा माणसो,पीठमर्दको एटले पीप कहेतां आसनने जे मर्दन करे ते अर्थात् नजदीकमा रही सेवा करनारा, एटले मित्रो, (का-13 रण के ते मित्रो होवाश्री, तेमने को वखते पोताना श्रासन पर पण जोममां राजा बेसामे डे,) तथा । नागरो कहेतां नगरमा वसनारा लोको, तथा निगमो एटले वेपार करनारा लोको, तथा श्रेष्ठी कहेतां रे नगरना मुख्य मुख्य वेपार करनारा लोको, तथा सेनापति एटले चतुरंगी सेनाना अधिकारी, तथा 1 सार्थवाहो कहेतां सार्थना नायको, एटले उपरी, तथा पूतो कहेतां बीजा राजाऊनी पासे जइ, पोताना
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॥४२॥
कल्प०
राजाउनो संदेशो कहेनारा, तथा संधिपालो कहेतां अन्य राजाउनी साथे पोताना राजाउँने संधि है सुवो करावनारा, अर्थात् एलची, ए उपर कहेला सघला माणसोथी वीटाएलो एवो ते सिद्धार्थ राजा स्नानगृह कहेता ते स्नान करवाना घरमांथी बहार नीकलतो हवो.हवे श्रहीं तेनां संबंधमां महाकवि श्री ना-2 बाहुस्वामी उपमा अलंकार मूके डे के ग्रहसमूदथी देदीप्यमान एवो जे नक्षत्र अने ताराऊनो जे समूह
ते वच्चे वर्ततो एवो, जाणे ते राजा, चंड होय नहीं ? तेम शोजतो हतो; केमके उपर वर्णवेलो जे परि-18 ₹वार ते ग्रहगण, नक्षत्र अने तारा सरखो हतो, तथा तेनी वच्चे राजा चंछ सरखो शोजतो हतो. हवे
ते सिद्धार्थ राजाजे स्नान करवाना घर माहेथी बहार नीकल्यो, तेने माटे कवि उपमा अलंकार मूके ने के ते राजा स्नानगृहमांधी बहार नीकट्यो, ते जाणे के सफेद रंगनां जे वादलान,तेमांथी ग्रहोना समूहोनी साथे चं जाणे बहार नीकल्यो होय नहीं? एवो ते राजा शोजतो हतो. वली ते राजा केवो तो के 8 जेनुं दर्शन प्रिय डे एवो एटले वादलांमांथी वहार नीकळेलो अने नदात्र श्रादिथी वीटाएलो चंछ जेम: प्रियदर्शनी थाय ने तेम अहीं राजाना संबंधमां पण जाणवू. वली ते राजा केवो तो के नरेंज कहेता है माणसोनो इंछ कहेतां राजा तथा नरवृषन कहेतां माणसोने विषे वृषन समान एटले पृथ्वीनो , नार धारण करवामां समर्थ एवो, तथा नरसिंह कहेतां मनुष्योमा सिंह समान, केमके ते फुःखे करीने 3
सहन थ शके एवां पराक्रमवालो हतो. वली ते राजा केवो तो के अत्यंत अधिक एवी जे राज्य सं-18 + बंधीनी लक्ष्मी, तेणे करीने अत्यंत देदीप्यमान एवो, ते राजा मजनगृह एटले स्नानगृहमांथी नीकलीने, बहार रहेली जे उपस्थानशाला कहेतां वेठकनी जगो अर्थात् कचेरी, तेनी अंदर श्राव्यो. त्यां । श्रावी ते पूर्व दिशा तरफ पोतानुं मुख करीने बेगे. एवी रीते सिंहासन पर पूर्व सन्मुख बेसीने, तेणे पोताथी इशान खुणानी बाजुमां श्राउ जसासनो कहेतां सिंहासनो मंगाव्यां, तथा तेमना पर श्वेत 81॥४॥ एटले सफेद वस्त्रो बीडाव्यां, तथा तेउने सिद्धार्थ कहेतां सफेद सरसवोना दाणाथी मांगलिक उप-10 चार कराव्यो, अर्थात् ते सफेद सरसवोना दाणायी तेनी पूजा करी. तेम कराव्या बाद तेणे पोता.
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ना सिंहासनथी नहीं बहु नजदी कमां, तेम नहीं बहु बेटे, एवी रीते तेथे एक यवनिका कडेतां कनात तणावी. हवे ते कनात केवी तो के नाना प्रकारनां एटले जुदी जुदी जातिनां जे मणि, माणिक, रत्नो | विगेरे जवाहीरथी मंकित थाली, अने तेथी करीनेज अधिक रीते प्रेक्षणीय कहेतां जोवा लायक एवी. वली ते यवनिका कहतां कनात केवी तो के महार्घ्य कहे तां जेनुं अत्यंत मूल्य याय एवी. वली ते कनात केवी तो के वर कहेतां प्रधान एवं जे पत्तन कहेतां नगर, ते नगर पण केवुं तो के ज्यां उत्तम उत्तम जातिनां वस्त्रो वणाय बे, तथा ज्यां उत्तम उत्तम जातिनां रत्नो नीपजे बे, एवा नगरनी अंदर बनावेली. वली | ते यवनिका कहेतां कनात केवी तो के अत्यंत कोमल ने स्पर्श जेनो एवी. वली ते कनात केवी तो के उत्तम जातिना रुनुं बनावेलुं वारिक एवं जे सुतर, तेनी सेंकडो गमे जे रचना, ते ए करीने मनने श्राश्वर्य उपजे एवो बे ताणं कदे तां ताणो जेनी अंदर एवी. वली ते कनात केवी तो के इहामृग कहेतां वरु, रुपन कहेतां बलदो, तुरग कहे तां घोडा, नर कहेतां मनुष्यो, मगर कहेतां मगरमछो, विहंग कहेतां जुदी जुदी जातिनां पक्षी, व्याल कहेतां सर्पो, किन्नर कहेतां किन्नरो, रुरु कहेतां एक जातिनां हरिणो, सरज कहेतां श्रष्टापद नामनां प्राणी, चमरी कहेतां जेनां पुंडकांना वालोनां चामरो बने बे एवी चमरी गायो,कुंजर कहेतां हाथी, तथा वनलता कहेतां श्रटवीमां यती चंपक, यांबा विगेरेनी लतार्ज, पद्मलता कहेतां कमलनी लतार्ज, के जेर्ज पुनियामां प्रसिद्ध ठे, एवी रीते उपर वर्णवेलां सघलांनी जे रचना कहेतां चित्रकामो, तेर्जए करीने चित्र कहेतां मनने अत्यंत श्राश्चर्य उपजावनारी एवी रीतनी अभ्यंतर यव|निका कहतां तेजरने (राणीवासने) बेसवानी जे कनात, तेने रचावीने, तेणे ( राजाए) तेनी छंदरना जागमां एक सिंहासन मंगाव्युं. ते सिंहासन केतुं तो के नाना प्रकारनां जे मणि माणेका दि कुबेरात, तेनी जे रचना, तेणे करीने चित्र कहेतां चित्तने आश्चर्य उपजावे एवं वली ते सिंहासन के तो के गादी छाने कोमल तकी आए करीने याठादित करेलुं एवं वली ते सिंहासन के तो के श्वेत | कहेतां सफेद एवं जे मलमल श्रादिकनुं सुकुमाल वस्त्र, तेथे करीने प्रत्यवस्तृत कहेतां पातुं उपर या
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कल्प
सुबोध
॥४३॥
CREAMSALUCANCCCCCCCORRECARDCREECH
छादित करेवु एवं. (उपर खोल चडावेवू.) वली ते सिंहासन केवु तो के (रेशमनी गादी तेना पर बी-18 है गववा वझे करीने) अत्यंत सुकुमाल थएबुं एवं. वली ते सिंहासन केवु तो के अंगने सुख आप
नारो डे स्पर्श जेनो एवं, थने तेथी करीनेज अत्यंत शोजाए करीने युक्त थएबुं एवं ते सिंहासन सिद्धार्थ राजाए त्रिशला क्षत्रियाणीने बेसवा माटे तैयार कराव्यु. एवी रीतनी सघली तैयारी कर्या बाद तेणे कौटुंबिक पुरुषोने बोलाव्या, अने तेने बोलावीने तेणे कडं के, हे देवानुप्रियो, तमो 5 हूँ क्षिप्र कहेतां तुरतज जश्ने स्वप्नपाठको कहेतां स्वप्नशास्त्रोमां पार पहोंचेला एवा पंडितोने बोलावीर
लावो. ते स्वप्नपाठको केवा तो के आठ अंगो ने जेनी अंदर, एवी रीतनुं जे महानिमित्त शास्त्र, एटले . नविष्य कालमा थता बनावो सूचवनारूं जे शास्त्र, तथा जेमां स्वप्नादिकनां फलोनुं माहात्म्य कहेवू होय एवा जे ग्रंथो, तेऊनां मूलसूत्रो अने वली तेऊना जे अर्थो, तेन्ने संपूर्ण रीते जाणनारा एवा.
वली ते खानपाठको केवा तो के विविध प्रकारनां जे शास्त्रो तेउने विषे पण कुशल कहेता पंडित है एवा. हवे ते ज्योतिषशास्त्रनां आठ अंगो कयां कयां ते देखामे बे.
अंगं स्वप्नं खरं चैव, लौमं व्यंजनलक्षणे ॥ उत्पातमंतरिदं च, निमित्तं स्मृतमष्टधा ॥१॥ अर्थ-पहेलु अंग एटले अंगस्फुरणनी चेष्टा जाणवी ते, जेमके पुरुष- जमणुं अंग स्फुरे तो सारं, अने । स्त्रीनुं माबु अंग स्फुरे तो सारं. बीजुं स्वप्न एटले उत्तम जातिनां, मध्यम जातिनां तथा अधम जातिनां जे । खप्नो माणसोने श्रावे , तेनां फलादिकने जे जाणवां ते.त्रीजुं स्वर कहेतां छुर्गा (पदी विशेष), रुपारेल, काली, शियाल विगेरेना शब्दोथी थतां फलादिकने जाणवू ते. चोडुं नौम कहेतां पृथ्वीमां थता कंप ४ एटले धुजारा श्रादिकनुं जे झान जाणवू ते. पांचमुंव्यंजन कहेतां मषा, तल आदिकनां फलो, जे ज्ञान 31
॥४३॥ जाणवू ते. बहुं हाथपगोनी रेखा श्रादिकनुंजे झान सामुजिकशास्त्रोमां कहेवू , तेना विज्ञानने जाएवं ते. सातमुं उत्पात तथा उल्कापात कहेतां तारा श्रादिकना खरवाश्री सारां नरसां फलने जे जाणवू ।
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ते. तथा श्रापमुं अंतरिक्ष कहेतां ग्रहोना उदय अथवा अस्त श्रादिक थवाश्री जे सारा माग बनावो बने तेनुं जे विज्ञान यq ते. | एवीरीते सिझार्थ राजाए करेल ने हुकम जेठने एवा ते कौटुंबिक लोको हर्ष पामेला,संतोष पामेला, है यावत् हर्षथी पूर्ण हृदयवाला थया थका राजानी ते श्राझाने हाथ जोमीने सांजलवा लाग्या, अने सां
नलीने सिद्धार्थ क्षत्रियनी पासेथी बहार जाय , अने बहार जश्ने दत्रियकुंमग्राम नगरना मध्य ना-2 गमां थश्ने ज्यां स्वप्नपाठकोनां घर जे त्यां जाय बे अने जश्ने तेने बोलावे. पड़ी ते स्वप्नपाको पण सिद्धार्थ राजाना कौटुंबिकोने बोलाववा आवेला जाणीने अत्यंत हर्षित थया;तथा पठी तेए स्नान क-15 यु, त्यार बाद तेए बलिकर्म कहेतां पूजा करी.वली ते स्वप्नपाठको केवा तो के करेलां तिलक श्रादिक जेए एवा. वली ते स्वप्नपाठको केवा तोके दधि कहेतां दही, दूर्वा कहेतां ध्रो तथा अक्षत कहेतां चोखा है श्रादिकथी करेलुं मंगल जेए एवा.ते मंगलोशाने माटे तो के पुःस्वप्न कहेतां खराब एवां जे स्वप्न श्रादिक तेनो नाश करवा माटे. वली ते स्वप्नपाठको केवा तो के शुद्ध एटले पवित्र अने उज्ज्वल एवां 3 तथा प्रवेश्य कहेतां राजानी सन्नामां जेवां कपमा पहेरीने जवाय एवां तथा मंगलसूचक पहेरेलां | श्रेष्ठ कपमा जेणे एवा. वली ते स्वप्नपाको केवा तो के अस्प कहेतां थोमां अने महार्घ कहेतां मोटी किमतनां जे श्रानूषणो, तेए करीने अलंकृत कहेतां शोनावेबुंदे शरीर जेए एवा. वली ते स्वप्नपा-2
को केवा तो के सिद्धार्थ कहेता जे सफेद रंगना सरसवो तथा हरितालिका एटले जे पूर्वी ते बन्ने । वस्तुऊने जेए मंगल कहेतां कल्याणने माटे धारण करेली मस्तकमां जेए एवा. एवीरीतना थश्ने तेसघला पोतपोताने घेरथीनीकल्या. एवीरीते पोतानां घरोमांथी नीकल्या बाद ते ते क्षत्रियकुंमग्रामनीमध्यमां थश्ने, ज्यां सिद्धार्थ राजा, नुवनवर कहेतां उत्तम मेहेलो तेने विषे पण है श्रवतंसक कहेतां मुकुट सरखं एवं जे नुवन , तेना प्रतिकार कहेतां मूल दरवाजा पासे ते श्राव्या. त्यां श्राव्या बाद ते सघला एका थश्ने, एक सरखा मतवाला थया, अने तेजेए
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सुबोन
कल्प
पोतामांना एकने अगामी करोने वीजा सघला तेना अनुयायी कहेतां ते उपरी कहे तेम ।
करनारा तथा बोलनारा थया, अर्थात् तेवो सघला संप करीने एक मतवाला थया;कारण के कह्यु डे केः-४ ॥४४॥
सर्वेऽपि यत्र नेतारः, सर्वे पंडितमानिनः ॥ सर्वे महत्त्वमिछति, तदुबंदमवसीदति ॥१॥ अर्थ-ज्यां सघला माणसो उपरी थश्ने बेसे, तथा ज्यां सघला पोताने पंमित माननारा होय, तथा ज्यां सघला पोताने मोटा मलवानी श्छा करे, ते टोQ अंते नाशने प्राप्त थाय.
तेना पर अत्रे पांचसो सुनटोनुं एक दृष्टांत कहे जे.एक दहामो कोश्क पांचसे सुनटो एका थश्ने मां-16 होमांहे संबंध विनाना थया थका, नोकरी माटे एक राजा पासे आव्या. त्यारे राजाए मंत्रिना वचनथी । |तेजनी परीक्षा करवा माटे, तेउने सुवामाटे एकज शय्या मोकली. हवे ते मां सघला अहंकारी हता. श्रने तेथी ते नानामोटानो पण व्यवहार राखता नहोता, तेथी ते एक शय्या आवेली जोश्ने, ते लेवार माटे मांहोमांहे विवाद तथा क्लेश करवा लाग्या. अंते एवा उराव पर श्राव्या के कोइ पण ते शय्या पर 5 ६ सुवे नहीं, अने तेथी ते शय्याने वचमा राखीने तेनी तरफ पोताना पगो राखीने सुता. हवे राजाए ते-*
उनुं वृत्तांत जाणवा माटे गुप्त पुरुषोने राखेला हता, तेनए ते वृत्तांत प्रजातमा राजाने निवेदन कर्यु. त्यारे । राजाए विचार्यु के आवी रीते काणा विनाना अने माहोमांहे संप विनाना तथा अहंकारी एवा था सु
नटो युकादिक शीरीते करी शकशे? एमविचारीतेने निनबीने काढी मेल्या. 8 तेथी ते स्वप्नपाको पण सघला एकग मलीने तथा एकसंपवाला थश्ने ज्यां सिझार्थ क्षत्रिय बेगे । हतो, त्यां याव्या. तथा श्रावीने हाथ जोमीने राजाने ते आशिष देवा लाग्या के हे राजा! तुं जय
म, विजय पाम. वली तेए कह्यु केःकदीर्घायुर्जव,वृत्तवान् नव,नव श्रीमान्,यशस्वी नव,प्रज्ञावान् नव,नूरिसत्वकरुणादानैकशुमो नव, नोगा-3||४॥ ४ढ्यो जव, नाग्यवान् लव,महासौनाग्यशाली नव,प्रौढश्रीनव,कीर्तिमान् नव, सदा विश्वोपजीव्यो नवर 18 थर्थ-हे राजा, तुं दीर्घ कहेतां लांबा आयुष्यवालो था, वृत्तवान् कहेतां यम नियमादि व्रतने
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धारण करनारो था, श्रीमान् कद्देतां लक्ष्मीवान् था, यशखी कहेतां यशवालो था, प्रज्ञावान् कहेतां बुद्धिवालो था, नूरिकतां घणां एवां जे सत्व कहेतां प्राणी, ते प्रत्ये जे करुणादान कहेतां दयादान, तेने विषे शुंक कहेतां पराक्रमी था, अर्थात् प्राणी उपर दयालु था, जोगोए करीने श्राढ्य कदेतां सहित था, जाग्यवान् कहेतां जाग्यवालो था, तथा उत्तम प्रकारनं जे सौभाग्य तेथे करीने पण मनोहर था, प्रौढ कहेतां मोटी एवी जे श्री कहेतां लक्ष्मी अथवा शोना तेणे करीने युक्त था, वली कीर्त्तिए करीने पण तुं युक्त था, तथा हमेशां समस्त जगत्ने उपजीव्यक' कहेतां आजीविका देनारो, श्रने रक्षण करनारो था.
वहीं किरणावलीकरे तथा दीपिकाकारे " कोटिंजर" एवो प्रयोग मूक्यो बे, ते व्याकरणथी | विरुद्ध होवाथी विद्वानोने विचारवा जेवो बे.)
पण बीजा काव्ये करीने पण राजाने आशीर्वाद थापे बे, ते नीचे प्रमाणे जाणवुं. कल्याणमस्तु शिवमस्तु धनागमोऽस्तु, दीर्घायुरस्तु सुतजन्मसमृद्धिरस्तु ॥ वैरियोsस्तु नरनाथ सदा जयोऽस्तु, युष्मत्कुले च सततं जिनन क्तिरस्तु ॥ २ ॥ अर्थ- हे नरनाथ, तमने कल्याण थाश्रो, निरुपद्रवपणुं थाओ, धननुं श्रावागमन थाश्रो, लांबु श्रायुष्य थाओ, पुत्रजन्मनी समृद्धि यायो, वैरीओनो नाश थाओ, हमेशां तमारो जय थाओ तथा तमारा कुलमां हमेशां जिनेश्वर प्रजुनी नक्ति रहो.
एव रीते महोपाध्याय श्री कीर्त्तिविजयगखिना शिष्य उपाध्याय श्री विनयविजयगणिए रचेली कल्पसूत्रनी सुवोधिका नामनी टीकाना गुजराती भाषांतरमां त्रीजो क्षण समाप्त थयो . श्रीरस्तु ॥ श्रीजिनाय नमः ॥
॥ चतुर्थं व्याख्यानं प्रारभ्यते ॥ ते वार पढी ते सिद्धार्थ राजाए ते स्वप्नपाठकोने तेमना गुणोनी स्तुति करीने वांद्या, पुष्पादिकथी
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कल्प
| तेमने पूज्या, फल वस्त्र श्रादिकना दानथी तेमनो सत्कार कर्यो, अने उन्ना थवा विगेरेश्री तेमनु है सुबोध
है सन्मान कर्यु. एवी रीते थया थका तेश्रो दरेक श्रगामी राखेलां आसनो पर बेग; ते वार पड़ी ते । ॥४५॥
सिद्धार्थ राजा त्रिशला क्षत्रियाणीने पमदानी अंदर राखीने पुष्प तथा नालीयेर श्रादिक फलोए । करीने जरेला ने हाथ जेना (केमके खाली हाथे देव, गुरु, राजा तथा विशेषे करीने निमित्तियाने मलq नहीं, केमके फलथी फल मले )एवो राजा ते स्वप्नपाठकोने घणा विनयथी एम कहेवा लाग्यो के हे देवानुप्रियो ! आजे त्रिशला क्षत्रियाणी तेवी शय्यामां सुती जागती अर्थात् है अल्पनिडा करती तीथायावा प्रकारनां (गज. वृषन विगेरेनां) श्रेष्ठ चौद महा स्वप्नोने जोइने जागी। गइ, माटे हे देवानुप्रियो ! ते चौद श्रेष्ठ महा खप्नोमां हुँ विचारु ढुं के कयुं स्वप्न कल्याणकारी अने फलवृत्तिविशेष श्रापनारं थशे ? पड़ी ते स्वप्नपाठको सिद्धार्थ राजानी पासेथी ए स्वप्नोने 8 सांजलीने, जाणीने,हर्ष पामेला, संतोष पामेला, यावत् हर्षथी पूर्ण हृदयवाला थया बता ते स्वप्नोने सा-हूँ रीरीते हृदयमा धारी राखे ने अने हृदयमा धारी राखीने स्वप्नोना अर्थनो विचार करवा लाग्या है थने अर्थनो विचार करीने ते परस्पर मसलत करवा लाग्या अने मसलत करीने पोतानी बुद्धिथी। जाणेल के अर्थ जेए, परस्पर ग्रहण करेल वे अर्थ जेए, संशय पमते बते परस्पर पूजेलो अर्थ जेए, निश्चित करेलो ने अर्थ जेए, अवधारण करेल डे अर्थ जेए, एवा थया थका, सिद्धार्थ राजा
|पासे स्वप्नशास्त्रोने नच्चारता थका एम कोताहवा.अनुजवेलं. सांजलेलं, दीवेलं, प्रकृतिना विका-|| रथी उत्पन्न थएबुं, स्वनावे उत्पन्न थएबुं, चिंतानी परंपराधी उत्पन्न थएबुं, देवतादिकना उपदेशश्री ।। उत्पन्न थएबुं,धर्मकार्यना प्रनावथी उत्पन्न थएबुं तथा पापना उदयथी उत्पन्न थएवं, एवी रीते नव प्रकारनुं माणसोनुं स्वप्न जाणवू. पहेला प्रकारोथी दीठेवू शुज अथवा अशुज स्वप्न निरर्थक जाय , 5॥ ४५ ॥
। स्वप्न सार्थक थाय बे; रात्रिना चारे पहोरमां दीठेवू स्वप्नील बार, उ, त्रण तथा एक मासे अनुक्रमे फलदायक थाय बे. रात्रिनी नेवी बे घमीए जोएलुं स्वप्न
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पा.४५
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Wanyong
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दश दिवसमां निश्चे फले बे, तथा सूर्योदय वखते दी वेलुं स्वप्न तुरत निश्चे फले बे. दिवसमां दीवेल खप्ननी श्रेणी तेमज श्राधि, व्याधि तथा मलमूत्रादिकनी पी माथी उत्पन्न थलुं स्वप्न ए सर्व निरर्थक जाएबुं. धर्ममां रक्त (यासक्त), समधातुवालो, स्थिर चित्तवालो, जितेंद्रिय तथा दयालु माणस प्राये करीने स्वप्नयी प्रार्थित अर्थने साधे वे. खराब स्वप्न कोइने संजलाववुंज नहीं; सारुं स्वप्न गुरु या दिकने संजलावसुं; अने ते न होय तो गायना कानमां पण संजलाववुं. उत्तम स्वप्नने जोइ बुद्धिवान् माणसे सुबुं नहीं; केमके तेथी तेनुं फल मलतुं नथी, अने श्राखी रात्रि जिनेश्वर प्रजुनां स्तवनमांज गुंजारवी खराब स्वप्न जोइने फरीने पातुं सुइ जनुं, अने ते कोने कहेतुं पण नहीं; अने तेथी ते फलवंत यतुं नथी. जे माणस पहेलां अनिष्ट स्वप्नने जोइने पावलथी शुभ स्वप्न जुए बे, ते तेने (शुभ) फलदायक थाय बे ने एम परावर्ते जाणवुं. स्वप्नमां मनुष्य, सिंह, घोमो, हाथी, वृषन यने सिंहणथी युक्त एवा रथमां आरूढ थयेलो जे माणस जाय वे ते राजा थाय बे. स्वप्नमां घोमा, हाथी, वाहन, आसन, घर, निवसन यादिकनो जे अपहार ते, राजा तरफनी वीक तथा शोक करनारो, बंधुनो विरोध करनारो, तथा पैसानी हानि करनारो थाय बे. जे पुरुष सूर्यचंद्रनां संपूर्ण बिंबने गली जाय, ते गरीब होय तोपण सुवर्ण श्रने समुद्र सहित पृथ्वीने निश्चे मेलवे बे. प्रहरण, आभूषण, मणि, मोती, सोनुं, रूपुं तथा धातुर्जनुं जे दरण, ते धन ने मानने नाश करनाएं, तथा प्रायः जयंकर मरण करनारुं बे. सफेद हाथी पर बेठो थको नदीने कांठे जातनुं जोजन करे, ते जातिहीन होय तोपण धर्मरूपी धनने ग्रहण करतो थको याखी पृथ्वीने जोगवे. पोतानी स्त्रीना हरणथी धननो नाश थाय, पराजवयी क्लेश थाय, अने गोत्रनी स्त्रीना हरण तथा पराजवथी बंधुनो वधबंधन याय. सफेद सर्पथी जे माणस पोतानी जमणी जुजामां मंखाय, ते माणसने पांच रात्रिमां हजार सोनामोहोरो मले. जे माणसनी शय्या तथा पगरखांनुं दण स्वप्नमां थाय, तेनी स्त्री मृत्यु पामे, तथा तेना शरीरे अत्यंत पीमा थाय. जे माणस मनुष्यनां मस्तक, पग तथा हाथनुं स्वप्नमां जप करे वे, तेने अनुक्रमे
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सुवो
कल्प० राज्य, हजार सोनामोहोरो, तथा तेथी श्रीं सोनामोहोरो मले जे. जे माणस वारणानी नोगलनो,
शय्यानो, हिंचोलानो, पापुकानो तथा घरनो जंग जुए बे, तेनी स्त्रीनो नाश थाय बे. जे माणस ॥४६॥
तलाव, समुफ, जलथी जरेली नदी, तथा मित्रनुं मरण जुए बे, ते माणसने निमित्त विना पण
अत्यंत धन मले बे. गणवायूँ गमुल तथा औषध सहित तपेढुं पाणी जे माणस पीए , ते माणस। है निश्चे अतिसार रोगथी मृत्यु पामे . जे माणस स्वप्नमां देवनी प्रतिमानी यात्रा, स्नान, नेट तथा 8
पूजा आदिक करे बे, ते माणसने सर्व जगोएथी वृद्धि थाय दे. जे माणस स्वप्नमां पोताना हृद यरूपी तलावमां उत्पन्न थएलां कमलोने जुए दे, ते माणस कुष्ठी थश्ने तुरत मृत्यु पामे . जे मा
णस स्वप्नमां मनोहर घी मेलवे डे, तेनो यश वृद्धि पामे डे; वली दीरान्ननी साथे तेनुं खाईं जुए ए प्रशस्त हूँ. स्वप्नमां हसे तो शोक थाय, नाचवाथी वधबंधन थाय,जणवाथीक लेश थाय,एम माह्या माणसे जाणहै वु; गाय, घोमो, राजा,हाथी श्रने देव सिवायनां सघलां काला रंगनां स्वप्न खराब जाणवां- वली कपास,
लवण श्रादि सिवायनां सघलां सफेद रंगनां स्वप्नांसारांजाणवां.जे स्वप्नां पोता प्रत्ये जोयेल होय ते शुन अथवा अशुज ते माणसने थाय ने अनेजे स्वप्नां वीजा प्रत्येनां होय तेमां तेने पोताने कांश । नथी. खराव स्वप्न देखाय तो देव गुरुने पूजवा तथा शक्ति प्रमाणे तप करवो; केमके हमेशां ध-5 मिमां रक्त थयेला माणसोने खराब स्वप्न पण उत्तम स्वप्न तुल्य थाय जे. एवी ति हे देवानुप्रिय ! 6 हे सिझार्थ राजन्! अमारा स्वप्नशास्त्रने विषे ३तालीश स्वप्न सामान्य फल आपनारां श्रने त्रीश महा स्वप्न उत्तम फल थापनारां ने. एम सर्वे मलीने बहोंतर स्वप्न कहेला ले. तेमां पण हे देवानुप्रिय!||
तनीमाता अथवा चक्रवर्तीनी माता अरिहंत अथवा चक्रवर्ती गर्नमां श्रावते बते आत्र महा स्वप्नोमांथीयावां चौद महा स्वप्नो जोश्ने जागी जाय . ते चौद स्वप्न गज, वृषन विगेरे. वा-18| ॥४६॥ सुदेवनी माता वासुदेव गर्नमां आवते ते या चौद महा स्वप्नमांथी मात्र सात स्वप्न जोश्ने जागी जाय बे. बलदेवनी माता बलदेव गर्नमां आवते ते श्रा चौद महा स्वप्नमाथी मात्र चार
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स्वप्न जोश्ने जागी जाय , श्रने मंमलिकनी माता मंडलिक गर्नमां श्रावते ते श्रा चौद महा स्वप्न-2 मांथी मात्र एक स्वप्नने जोश्ने जागी जाय ;माटे हे देवानुप्रिय !आ त्रिशला क्षत्रियाणीए तो आ3 चौदे महा स्वप्नो जोयेला , माटे हे देवानुप्रिय !आ त्रिशला कृत्रियाणीए ए प्रशस्त स्वप्न जोयेला .18 हे देवानुप्रिय! त्रिशला दत्रियाणीए यावत् मंगलकारक स्वप्न जोयेला . तेथी हे देवानुप्रिय! तमोने है। अर्थनो लाल, जोगनो लान, पुत्रनो लाज, सुखनो लान अने राज्यनो लान थशे; श्रने एवे प्रकारे दे।
देवानुप्रिय ! त्रिशला क्षत्रियाणी नव मास संपूर्ण थश् सामा सात रात्रि दिवस जाते ते तमाराकुऐलमां ध्वज समान, दीपक समान, मुकुट समान, पर्वत समान, तिलक समान, कुलनी कीर्त्तिना कर-18
नार, कुलना निर्वाह करनार, कुलमां सूर्य समान, कुलना आधाररूप, कुलना यश करनार, कुलने । विषवृक्ष समान, कुलनी परंपराने वधारनार, सुकोमल हाथपगनां तलीयावाला, नहीं ओबा एवा । परिपूर्ण पंचेंजिय युक्त शरीरवाला, लक्षण अने व्यंजनना गुणोए करीने युक्त, मान अने उन्मानना 2 प्रमाणथी परिपूर्ण अने सारी रीते प्रगट थयेला अवयवोए करीने सुंदर अंगवाला, चंड़ समान म-18 नोहर श्राकृतिवाला, प्रिय, प्रियदर्शनी श्रने सुंदर रूपवाला एवा पुत्रने जन्म आपशे. वली ते पुत्र वाव्य अवस्थाने तजीने परिपक्व विज्ञानवाला यश् यौवनावस्थाने प्राप्त थये बते दानादिक आपवामा शूरा, संग्रामने विषे वीर, परराज्यने आक्रमण करवामां समर्थ, घणा विस्तार युक्त सेना तथा वाहन-2 वाला अने चारे दिशाना स्वामी एवा चक्रवर्ती राज्यपति राजा थशे, तेमज त्रण लोकना नायक अने धर्मने विषे श्रेष्ठ एवा चार गतिना नाश करनार चक्रवर्ती जिनेश्वर थशे. | तेमां जिनपणामां ते चौदे स्वप्ननां पृथक पृथक फलो नीचे प्रमाणे जाणवां. चार दांतवाला हाथीने जोवाथी चार प्रकारना धर्मने ते कहेशे. वृषनने जोवाथी आ जरतक्षेत्रमा ते बोधिरूपी बीजने वावशे.. सिंहने जोवाथी कामदेव श्रादिकरूप जे उन्मत्त हाथीश्रो, तेणे करीने नंगातुं एवं जे व्यजनरूपी वन, तेनी रदा करशे. लदमीने जोवाथी वार्षिक दान दश्ने तीर्थकरनी लदमीने जोगवशे. माला जो
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कल्प०
॥ ४७ ॥
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वाथी त्रणे भुवनने मस्तकमां धारवाने ते लायक थशे. चंद्रने जोवाथी जव्यरूपी जे कुवलय कहेतां चंविकासी कमल, तेने विकस्वरपणुं आपशे. सूर्यने जोवाथी कांतिना मंगले करीने ते भूषित थशे. ध्वजने जोवाथी धर्मरूपी ध्वजे करीने ते नूषित थशे. कलशने जोवाथी धर्मरूपी महेलनां शिखर |परते रहेशे पद्मसरोवर जोवाथी देवोए संचार करेलां जे कमलो तेना पर स्थापन करेला वे चरणो जेणे एवा ते थशे. समुद्रने जोवाथी केवलज्ञानरूपी रलना स्थानक सरखा थशे. विमान जोवाथी वैमानिक जे देवो, तेथोने पण पूजनीय थशे. रत्नना राशिने जोवाथी रत्नना गढोए करीने ते नूषित थशे. धूमामा | विनाना अग्निने जोवाथी नव्यजनरूपी सुवर्णने शुद्ध करनारा थशे. चौदे स्वप्ननां एकठां फलरूप चौदे | रज्वात्मक लोकना छा जाग पर रहेनारा थशे. माटे हे देवानुप्रिय ! त्रिशला क्षत्रियाणीए अत्यंत उदार, यावत् मंगलकारक एवां श्रा चौद मदा स्वप्नो जोयेलां बे. पढी सिद्धार्थ राजाए स्वप्नपाठकोनी पासेथी ए अर्थ सांजलीने ने धारीने हर्ष पामेला, संतोष पामेला, यावत् दर्षथी पूर्ण हृदयवाला थया थका बे दाथथी यावत् अंजलि करीने ते स्वप्नपाठकोने या प्रमाणे कयुं. हे देवानुप्रिय पाठको ! ए एमज बे. हे स्वप्नपाठको ! ते तेमज बे. हे पाठको ! ए यथार्थ बे. हे पाठको ! ए वांछित बे. हे पाठको ! तमारा मुखथी पतांज ए वचनने में ग्रहण करेलुं बे. हे पाठको ! ए वांछित बतां वारंवार वांछेडुंबे. ए अर्थ साचो ठे. जेवी रीते ए अर्थने तमे कहो हो तेवी रीते ते बे एम कहीने सिद्धार्थ राजा ते स्वप्नोने सारी रीते धारण करे बे ने धारण करीने ते स्वप्नपाठकोने विपुल एवा शालि यादि - | कना अशन एटले जोजननी वस्तुश्रोए करीने, अत्यंत उत्तम एवां पुष्पोए करीने, वस्त्रोए करीने, सुगंधीओए करीने, पुष्पोनी गुंथेली मालाओए करीने, मुकुट आदिक आभूषणोए करीने तेमनो सत्कार करता हवा, तेमने विनयपूर्वक वचनोथी सन्मान करता हवा; ाने ते करीने ब्रेक जीवित पर्यंत तेमनो निर्वाह चाले एटलुं तेमने प्रीतिदान देता हवा, तथा तेम करीने तेने | विसर्जन करता हवा. पठी सिद्धार्थ राजा सिंहासन परथी उठीने ज्यां त्रिशला क्षत्रियाणी कना
सुवो०
॥ ४७ ॥
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तनी अंदर बेग हता,त्यां श्राव्या,अने श्रावीने तेने कहेता हवा के हे त्रिशला! या प्रमाणे स्वप्नशास्त्रमा बेतालीश सामान्य स्वप्न श्रने त्रीश महास्वप्नथी श्रारंजीने जेवट एक महा स्वप्नने जोश्ने जगायले अने|| हे त्रिशला ! तें तो था चौद महा स्वप्नो दीठां , तें उदार स्वप्नो दीगं , माटे त्रण लोकना नायक|8 श्रने धर्मने विषे श्रेष्ठ एवा चार गतिना नाश करनार चक्रवर्ती जिनेश्वर तारा पुत्र थशे. पनी
शला क्षत्रियाणी ए अर्थने सांजलीने अने धारीने हर्ष पामेली, संतोष पामेली, यावत् हर्षथी पूर्ण हृदकायवाली थर थकी वे हाथ वडे अंजलि करीने ते स्वप्नोने सारी रीते हृदयमा धारी राखे अने धारी
राखीने सिद्धार्थ राजाए जवानी रजा आपी एटले नाना प्रकारनां मणि अने रत्नोनी रचनाथी मनो-15
हर एवा जसासन उपरथी उठे अने उठीने उतावल विनानी, चपलता विनानी, यावत् राजहंसना है सरखी गति वडे ज्यां पोतानुं निवासमंदिर ने त्यां श्रावेडे अने आवीने पोताना मंदिरमा पेगं. 2 हवे जे दिवसथी श्रारंनीने श्रमण जगवान् महावीर प्रजु ते राजकुलने विषेश्राव्या ते दिवसथी श्रा
रंजीने जेश्रो धनदना स्वाधीनपणाने धारण करे , एवा जे तिर्यग् लोकमां रहेनारा घणा जूनक देवता४ो , शक्रनां वचने करीने, अर्थात् इंजे वैश्रमण एटले कुबेरने कयु, अने कुबरे तिर्यजूंनकोने कद्यु,18 + अने तेथी ते जूंनक देवो, जेनुं बागल स्वरूप वर्णववामां श्रावशे, एवा पूर्वे निधानरूपे माटी र राखेलां अने तेथीज पुराणां एवां महानिधानो लाव्या. ते नीचे प्रमाणे जाणवां. नाश थएला डे मालिको जेयोना, नाश थएला ने एकठा करवावाला जेथोना एवां निधानो, वलीते निधानो केवां तो के जे निधानोनां गोत्रीयो तथा घरो नाश पामेला एवां,तथा सर्व प्रकारे अनावने प्राप्त थएला डे खामी,
जेना, तथा सर्व प्रकारे नाश पाम्या ने एकठा करनारा जेना, तथा सर्व प्रकारे नाश पाम्यां ने गोत्रीयो है अने घरो जेनां; हवे ते निधानो कयां कयां स्थानकोमा ? ते कहे . गाममां, कर कहेतां लोखंग है
थादिकनी उत्पत्तिनां स्थानकमां,नगर एटले ज्यां कर न लेवातो होय तेमां,खेट कहेता जेनी श्रासपास है धूलिनो कोट ले तेमां, कर्वट एटले कुनगरोमां, ममंव एटले चारे वाजुएश्री अर्धा योजन दूर रहेला ।
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गामोमां, द्रोण एटले ज्यां जलवाटे घने स्थलवाटे बन्ने वाटे रस्ताओ होय ते त्यां, पत्तन एटले जल | अथवा स्थल बन्नेमांथी एक मार्ग ज्यां होय तेमां श्राश्रमो कहेतां तीर्थनां स्थानको, अथवा कृषि - ओने रहेवानां स्थानकोमां, संबाद कहेतां सपाट भूमिमां के ज्यां खेकुतो रक्षा माटे धान्यने राखे बे, ते स्थानकोमा, सन्निवेश कहेतां ज्यां संघ, लश्कर विगेरे खावीने उतरे बें, ते स्थानकोमां, तथा शृंगा|टक कहेतां सिंध्याटक (सींघोमां) नामे फलना आकारे त्रण खुणावालुं जे स्थानक होय तेमां, त्रिक ए|टले ज्यां त्रण रस्ता श्रावीने एकठा थाय बे, ते स्थानकमां, चतुष्क कहेतां ज्यां चार रस्ताओ एकठा थाय बे, ते स्थानकमां, चत्वर कहेतां ज्यां अनेक रस्ता एकता थाय बे, ते स्थानकर्मा, चतुर्मुख कहेतां जेनां चार वारणा होय एवा देवकुल कहेतां देवालयोमां, महापथ कहेतां राजमार्गमां, | ग्रामस्थान कहेतां गाममा धोनां जे उंचां स्थानको, तेओने विषे, तथा नगरस्थानक कहेतां नगरनां उंचां स्थानकोमां, तथा ग्राम निर्धमन कहेतां गाममांथी पाणी जवाना मार्गरूप जे खालो तेर्जमां, |एवी रीतेज नगर निर्धमन कहेतां नगरमांथी पाणी जवाना मार्गरूप जे खालो तेर्उमां, व्यापण एटले जे दुकानो तेथोमां, देवकुल कहेतां य श्रादिकनां जे स्थानको तेश्रोमा, सजा क देतां माणसोने बेसवानां जे स्थानको तेश्रोमां, प्रपा कहेतां पाणीनां जे पर्वो तेयोमां, तथा याराम कहेतां केल यादिक वृ दोए करीने याच्छादित थएला तथा स्त्री पुरुषोने कीमा करवानां स्थानकरूप एवा बगीचाओमां, तथा उद्यान कहे तां पुष्प ने फलोए करीने सहित एवां जे वृक्षो, तेओए करीने शोभायुक्त थलां तथा घण | माणसोने उपजोगमां यावी शके एवां उद्यानिकाना स्थानकोमां, तथा वन कहेतां एक जातिनां वृना समूहो वे जेमां एवां स्थानकोमां, तथा वनखंग कहेतां अनेक जातिनां बे वृक्षोना समुदायो जेमां एवां स्थानकोमां, तथा स्मशान कहेतां ज्यां माखसोनी लासोने श्रनिदाद करवामां आवे वे एवां स्थानकोमां, शून्यागार कक्षेतां जेमां कोइनी वस्ती न होय एवां शून्य घरोमां, तथा गिरिकंदरा कहेतां पर्वतोनी जे गुफार्ड तेर्जमां, तथा शांतिगृह कहेतां ज्यां शांतिनां कार्यों थाय बे एवां स्थानकोमां, तथा शैलगृह
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हैकहेतां पर्वतनां घरोमां, तथा उपस्थानगृह कहेतांज्यां श्रास्थानसनानां मकानो एवां स्थानकोमा तथा नवनगृह कहेतां कुटुंबीने वसवानों जे स्थानको तेमां, एवी रीते ग्रामादिक अने,
मारकादिने विषे रहेलां महा निधानो, के जेजे त्या पूर्वे थइ गएला कृपण माणसोए माटेलां बे.ते सघलां निधानोनेलश्ने तियेकजूंनक देवो सिद्धार्थ राजाना घरमां संघरता हवा. | हवे जे रात्रिने विषे श्रमण जगवंत श्री महावीर स्वामी झातकुलनी अंदर संहराया, ते रात्रियी। पारंजीने ते ज्ञातकुल हिरएच अने सूवर्णथी वृद्धि पामतुंहबु. ते हिरण्य एटले रू' अथवा नहीं घडेवं सुवर्ण,अने सुवर्ण एटले घमेबु सोनु. धन चार प्रकारनुं एक तो गणी शकाय तेवू, बीजुं धारी शकायते, त्रीजुं मापी शकाय तेवु, तथा चोथु परिवेद्य यश् शके ते. तेमां फल पुष्पादिक गणी शकाय एवं, कंकमा गोल आदिक धारी शकाय तेवं (जोखी शकाय तेवू), चोपड तथा खुण विगेरे मापी शकाय तेवं, तथा रत्नादिक परिवेदी शकाय तेवू जाणवं. तथा धान्य चोवीश प्रकारनु जाणवू. तेनां नामो नीचे प्रमाणे जाणवां. जव, घ, शालि, व्रीहि, सहीय, कुदव,अणुथा, कंगु, रालय, तिल, मग, अमद, अलसी,हरि-18 मंथ, तिनडा, निप्फाव, सिलिंद, रायमासा, उबू, मसूर,तुवरी, कलथी, धन्नय अने कलाया, ए चोवीश|8 प्रकारनं धान्य जाणवं. तथा राज्यनां सात अंगो जाणवां, ते नीचे प्रमाणे. एक तो राष्ट कहेतां देश, बीजुं बल कहेतां चतुरंगी सेना, त्रीजुं वाहन कहेतां खचर आदिक वाहनो, चोथु कोश कहेतांमार, पांचमु कोष्ठागार कहेतां धान्य नरी राखवाना कोगरो, उहुं पुर एटले नगर, तथा सातमं अंतःपुर कहेतां राणीने रहेवानुं स्थानक अर्थात् जनानखानु; तथा जानपद कहेता देशवासी लोकथी तथा यशोवाद एटले कीर्ति, ए सघलाथी ते झातकुल वृद्धि पामतुंह. तथा विपुल एटले विस्तारवावु धन हूँ एटले गायो श्रादिक,तथा कनक एटले घमेदूं अथवा नहीं घडेबुं एवं बन्ने प्रकार, सुवर्ण, तथा रत्न एटले कर्केतन श्रादिक तथा मणि एटले चंकांत आदिक तथा मौक्तिक एटले मोती के जे प्रसिह , तथा शंख कहेतां दक्षिणावर्त्तादिक शंखो तथा शिला एटले राजपट्टादिक तथा प्रवाल एटले विमो,
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तथा रक्तरत्न कहेता.पद्मराग श्रादिक अर्थात् माणिक आदिक, अहीं आदि ” एवा शब्दश्री वस्त्र, कंबल विगेरेने ग्रहण करवां, तथा सत् एटले विद्यमान एवं, पण अजालनी पेठे असत् नहीं एवं जे । सारखापतेय कहेतांप्रधान अर्थात् उत्तम जातिनुंजे अव्य, तेणे करीने, तथा प्रीति कहेतां मन संबंधी-3
नी जे तुष्टि, तथा सत्कार कहेतां वस्त्र आदिकथी स्वजनोए करेली जक्ति, ते सघलाउँना समुदाये 8 ६ करीने ते ज्ञातकुल अत्यंत वृद्धि पामतुं हवं. है। हवे श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुनां मातापिताने हवे पड़ी कहेवाशे एवा प्रकारनो पोताना सं. बंधी चिंतवेलो, प्रार्थेलो,मनमा रहेलो अध्यवसाय उपजतो हवो.ते अध्यवसाय केवो? ते हवे कहे . ज्यारथी अमारो आ पुत्र कुदिने विषे गर्नपणाए करीने उत्पन्न थएलो वे, त्यारथी मामीने अमे ।। रूपाथी वृद्धि पामीए बीए, सुवर्णथी वृद्धि पामीए बीए, धनथी वृद्धि पामीए बीए, एवी रीते
उपर कहेला बेक प्रीतिसत्कार सुधीनां विशेषणोए करीने अत्यंत वृद्धि पामीए बीए, तेथी करीने दे है ज्यारे अमारा आ बालकनो जन्म थशे, त्यारे अमो पण या धनादिकनी वृद्धिने अनुरूप एवं आ 2 बालकनुं गुणोए करीने निष्पन्न एवं नाम पामशुं. ते नाम शुं ? ते हवे कहे . “वर्धमान इति"15
एटले "वर्धमान” एवं अमो तेमनुं नाम पामशुं. ६ ते वार पठी श्रमण जगवंत श्री महावीर स्वामीए गर्नमांजरहीने विचार्यु के मारा हलनचलनथी ।
माताने कष्ट मा थार्ज, एवी रीते मातानी अनुकंपा माटे, अर्थात् मातानी नक्ति माटे, लथा बीजाए । पण भावी रीते मातानी नक्ति करवी, एवं देखामवा माटे, पोते निश्चल, निष्पंद अर्थात् कंश पण हाल्या | चाच्या विना, अने तेश्री करीनेज निष्कंप कहेतां कंप विना,तथा अंगोना गोपववाथी जरा लीन थएला, तथा अंगोपांगना गोपववाथी प्रकर्षे करीने लीन थएला, अने तेथी करीनेज गुप्त रहेला एवा श्री ॥४ए । वीर प्रन्नु होता हवा. तेना पर कविए उत्प्रेदा करी के, शुं एकांतमां माताना गर्नमां रहीने प्रनु । मोह राजाने जीतवा माटे विचार करे ? अथवा परब्रह्म माटे कंश् अगोचर एवा ध्यानने रचे ले ?
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| अथवा शुं कल्याण रसने साधे बे ? अथवा कामनो नाश करवा माटे पोताना रूपने तेणे लोपी नाख्युं वे शुं ? एवा श्रीवीर प्रभु तमारी लक्ष्मीने माटे था.
एव रीते प्रजुना निश्चल रहेवा बाद ते त्रिशला क्षत्रियाणीने एवी रीतनो अध्यवसाय उत्पन्न थयो; ते अध्यवसाय केवी रीतनो ? ते हवे कहे ते. शुं या मारो गर्न कोइ देवादिके दरी लीधो वे ? अथवा शुं मारो गर्न मृत्यु पाम्यो ? अथवा शुं ते मारो गर्न च्युत एलो वे ? अर्थात् ग र्जना स्वनावथी शुं परिभ्रष्ट थलो बे ? अथवा शुं ते मारो गर्ज गली गयो बे ? अर्थात् द्रवरूप थइने शुं खरी गयो बे ? के जेथी पहेलां तो मारो गर्न हालतो हतो ने कंपायमान थतो हतो, अने हवे तो बिलकुल हालतो नथी ने कंपतो नथी. एवा विचारथी उपत कहेतां कलुषीभूत थएल | बे मननो संकल्प जेणीनो एवी, तथा एवी रीते गर्नहरणादिकना विकल्पथी उत्पन्न थएली जे यातिं कहेतां पीमा, तेथी थलो जे शोक, तेरूपी जे समुद्र, तेमां पमी, अर्थात् बूमी; अने तेथीज करतल कहेतां हथेलीमां स्थापन करेल वे मुख जेणीए एवी, तथा यार्त्तध्यानने प्राप्त थपली तथा भूमि तरफ राखेली वे दृष्टि जेणीए एवी त्रिशला क्षत्रियाणी मनमां विचारखा लागी के श्रावी रीते मारा गर्जने जो कं नुकशानी थइ होय तो खरेखर हुं पुण्यरहित जीवोनी व धिरूप प्रख्यात एली बुं. यथवा चिंतामणिरत्न जाग्यहीन माणसने घेर समृद्धि पामी शकतुं नथी अर्थात् रही शकतुं नथी; केमके रत्ननो भंडार कं दरिद्रीना घरनी सोबत करतो नयी. वली पृथ्वीनां अजाग्यना वशथी मारवाम देशमां कल्पवृक्ष उगतुं नथी, तेम पुण्यरहित एवा तृषाकुल माणसने पण अमृतनी सामग्री मलती नथी; अरे ! दैव प्रत्ये पण धिक्कार बे ! हमेशां वक्र एवा ते दैवे अरे ! आशुं कर्तुं ? तेणे मारुं मनोरथरूपी वृक्ष मूलमांथी उखेमी नाख्यं; कलंकरहित लोचनयुगल मने यापीने लइ लीधुं; वली या पापी दैवे निधिरत्न आपीने पाहुं खेंची लीधुं; वली या पापी दैवे मने मेरु पर्वतना शिखर पर चमावीने पामी नाखी; तथा ते निर्लज्जे जोजननुं जाजन पीर
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कल्पन IP सीने खेंची लीधुं. अथवा हे विधात्रि, में जवांतर अथवा था नवमां पण कंश तारो शुं अपराध | सुयोग
कों ने? के जेश्री श्राम करतां तुं उचित अनुचितनो विचारज करती नश्री ! हवे हुँ शुं करूं !! ॥५०॥
क्यां जलं !!! अथवा कोनी पासे कहुं !! या अधम उदैवे मने वाली तथा खाधी तथा मूळ पमामी. हवे मारे था राजनी शी जरुर वे ? अथवा विषयजन्य एवां था कृत्रिम सुखोनी पण मारे 3 हवे शी जरुर ले ? अथवा उकूलनी शय्यामां शयनश्री उत्पन्न अतुं ने सुख जेमां एवा था महे-13 लनी पण मारे शी जरुर ? हाथी, वृषन थादिक स्वप्नश्री सुचित थएला, उचित, पवित्र तथा त्रण जगतने पूजनिक, त्रण जुवनना माणसो प्रत्ये अतुल्य एवा पुत्ररूपी रत्न विना हवे मारे कशानी शी जरुर ? या असार संसारने धिक्कार , तथा पुःखथी प्राप्त यता एका विषयसुखना ४ क्लेशोने पण धिक्कार बे, तेम मधथी लेपयुक्त थएली खड्गनी धाराने चाटवा सरखा लामोने पण धिक्कार जे. अथवा झषियोए धर्मशास्त्रोमां कहेवू एवं कश्क दुष्कर्म में पूर्व नवमां करेलु ने. (ते || दुष्कर्म कयुं ? तो के पशु पंखी अथवा माणसोनां बालकोनो में तेमनां मातपिताथी वियोग पमाव्यो ।
लाग 3) अथवा अधम बुकिंवाली एवी जे हुँ, तेणीए शुं नानां वाउरमांओने तेमनी माताओथी | ४वियोग कराव्यो ? वली तेश्रोने सूधनो में अंतराय कर्यो , अथवा कराव्यो , अथवा शुंबच्चांओ स-18 शहित में लंदरनांदरो पाणीएथी पूर्या ने ? अथवा शुं में इंमा भने बच्चांओ सहित पदीओना माला नीचे
न पर पामीनाख्या अथवा कोयल.पोपट तथा ककमा श्रादिकनां बच्चांओनो में शं वियोग। कराव्यो ? अथवा में झुं बालहत्या करी ? अथवा शोकोनां वालको पर में शुं पुष्ट विचारो चिंतव्या वे? अथवा में कंश कामण श्रादिक का ? अथवा में कोश्ना गर्नोन स्तंजन, नाश ॥५०॥ अथवा पारवा प्रमुख शु कयु बे? अथवा ते संबंधी कंर में मंत्र अथवा औषधो कर्यां ले ? अथवा
क त विना जीवोने पुःख होय नहीं.. एवी रीते चिंतातुर थएली, तथा तेथी करमा गएला कमल सरखं ने मुख जेणी, एवी ते
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RES-50-
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| त्रिशला राणीने जोवाथी सखीए तेनुं कारण तेणीने पूज्यु. त्यारे ते त्रिशला दत्रियाणी आंखोमां 3 अश्रु लावीने, निःश्वास सहित वचने करीने कहेवा लागी के, हुं मंदनाग्यवाली हवे शुं कहुं ?* मारूं तो जीवित पण चादयुं गडे ठे. त्यारे सखीओए कह्यु के हे सखि, बीजु सघ अमंगल शांत है | था ? पण तारा गर्नने तो कुशल डे के नहीं ? ते वात हे चतुर सखि, तुं सत्य कहे ? त्यारे तेणीए । कडं के हे सखी! ज्यारे मारा गर्जनेज कुशल होय त्यारे तो बीजं मारे शुं शकुशल ने? इत्यादिक कहीने मूळ खाश्ने ते पृथ्वी पर पडी. पड़ी सखीए शीतल पवन आदिकधी घणा उपचारो क-14
थी तेणीने चैतन्य आव्या बाद पानी ते रमवा लागी. अपार पाणीवाला, मोटा तथा रत्नोनां निधानरूप एवा समुअमां पडेलो बिवालो घमो ज्यारे जराइ शकतो नथी, त्यारे तेमां समुज्नो शो दोष छे ? वली वसंत ऋतुमा ज्यारे सघली वनस्पति प्रफुल्लित थाय , अने ते वखते ज्यारे । कंथेरने ( केरमानां वृदने ) पत्रो आवतां नथी, तेमां वसंत ऋतुनो शो दोष ? चुं अने सीधुं एवं वृक्ष घणां एवां फलोना नारे करीने ज्यारे नमेधुं बे, अने ते उपरनां फलने ज्यारे कुबमो माणस मेलवी शकतो नथी, त्यारे ते वृदनो शो दोष ? माटे हे प्रजु ! ज्यारे हुं मारा इछितने मेलवी शकती नथी तेमां तमारो शुं दोष ? तेमां मारा कर्मनोज दोष बे, केमके घुवम ज्यारे श दिवसे जो शकतो नथी, त्यारे तेमां सूर्यनो शो दोष ने ? माटे हवे तो मारे मरणनुज शरण लेवं,81 केमके फोकट जीववा वडे करीने शुं? एवी रीते तेणीना विलापने सांजलीने सघली सखी श्रा
दिक परिवार पण रमवा लाग्यो.अरे !!था शुं थइ गयुं ? कारण विना दैव वैरीरूप थयो अरे! ४ कुलदेवी ! तमो क्यां गा ? श्राम उदासीन थश्ने केम बेठी बो ? हवे एवी रीते विघ्न श्रावी है पमते बते विचरण एवी कुलनी वृक्ष स्त्री शांति तथा मंत्रना उपचारो तथा मानता थाखमी ( बाधा ) श्रादिक करवा लागी, जोशीने बोलावीने पूवा लागी. नाटक आदिकने थटकाववा लागी. तथा अत्यंत जंचा सादनां वचनोने निवारवा लागी. उत्तम बुझिवालो एवो राजा है
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पण लोको सहित चिंतातुर थयो, तथा सघला मंत्री पण हवे शुं करवु ? एवी रीते अत्यंत सुबोग विमूढ थया,
हवे ते अवसरने विषे सिद्धार्थ राजानुं नवन के थयु हतुं ? ते सूत्रकार पोते वर्णवे . ते सिद्धार्थ राजानु जवन, मृदंग कहेतां मर्दल, तंत्री एटले वीणा, ताल एटले हाथनी ताली, तथा नाटकनां पात्रो तेनुं जे मनोझपणुं ते निवृत्त थएबुं ने जेमां एवं थयु, अने तेथी करीने । विमनस्क कहेतां चपलचित्तवातुं थयु. एवीरीतनो वृत्तांत ते श्रमण नगवंत श्री महावीर प्रज गर्नमा रह्या थका, अवधिज्ञानथी जोक्ने विचारवा लाग्या के हवे शुं करवू ? अथवा कोने क-18
हे ? मोहनी गति श्रावी रीतनीज . पुष्ट धातुनी पेठे अमारो जे गुण ते उलटो दोषनी पुष्टि । * वास्ते थयो. में तो मारी माताना सुख माटे कयु, ते उलटुं तेणीना खेद माटे थयु. माटे ा नावी
एवो जे कलिकाल तेने सूचववावायूँ था लक्षण बे. माटे जेम नालीयेरना पाणीमां नाखेलो कहैपूर मृत्यु माटे थाय ने, तेम था पंचम श्रारामां गुण पण दोषने करनारो थशे. एवी रीते श्रमण
नगवंत श्री महावीर प्रनु माताने उत्पन्न थएला एवी रीतना पोताना संबंधी चित, प्रार्थित थने * मनमा रहेला संकल्पने अवधिज्ञानथी जाणीने एक देश कहेतां श्रांगली श्रादिकथी कंपता हवा. ते जाणीने ते त्रिशला दत्रियाणी हर्षित थर थकी, तथा संतुष्ट थर थकी कहेवा लागी. झुं । कहेवा लागी ? ते हवे कहे . निश्चे मारो गर्न हरायेलो नथी, मृत्यु पामेलो नथी, चवेलो नथी, अने गली गयो पण नथी. ए मारो गर्न पूर्व हालतो नहोतो; परंतु हमणां हाले ने एम कहीने
हर्ष पामेली, प्रसन्न थयेली, यावत् हर्षश्री पूर्ण हृदयवाली त्रिशला दत्रियाणी या प्रमाणे विला४सकरवा लागी. एवी रीते ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी रीते हर्षित थ? तेनुं हवे वर्णन करे . उलसाय-2
मान थयेलां नयनयुगल जेणीनां, तथा स्मेर थयेला बे कपोल जेणीना, तथा प्रफुलित थयेल ने मु. खरूपी कमलजेणीनु, तथा जाणेल ले गर्जने कुशलपणुं जेणीए तथा रोमांचित थयेल ने कंचुक जेणीनो ।
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एवी यश् थकी मधुर वाणीथी कहेवा लागी के, मारा गर्जने कल्याण बे.अरे! धिक्कार ने ! के में श्रति मोहयुक्त मतिपणाए करीने कुविकल्पो चिंतव्या; हजु मारां नाग्यो विद्यमान छे, तेम हुं त्रणे जु-18 वनोमां माननीय बुं, तथा धन्य . मारुं जीवित वखाणवालायक बे, तथा मारो जन्म कृतार्थप-14 णाने प्राप्त थयो . श्री जिनेश्वर प्रजु मारा प्रत्ये प्रसादयुक्त थयेला , तथा गोत्रदेवीए पण मारा है। पर कृपा करी , अने बेक जन्म पर्यंत जे में जिनधर्मरूपी कल्पवृदनी श्राराधना करी, ते आज 7 मारी सफल थवे. एवी रीते अत्यंत हर्षयुक्त चित्तवाली त्रिशला देवीने जोश्ने वृह स्त्रीजनां शमुखकमलोमांथी " जय जय नंदा" इत्यादि आशीषना ध्वनि नीकलवा लाग्या बली कुलांगना हर्षपूर्वक मनोहर एवां धवलो गावा लागी. तथा ध्वज, पताका जडवा लागी, मोतीऊना साथीया पूरावा लाग्या, तथा ते वखते सघ राजकुल आनंदमय थ रह्यु. तथा वाजित्र, गीत, अने नाटकोए करीने समस्त राजकुल देवलोक सरखी शोनावालु थयुं, तथा क्रोमो गमे धननां । वधामणांउने सिद्धार्थ राजाए ग्रहण कर्यां, तथा क्रोमो गमे धन आप्युं श्रने एवी रीते सिझार्थ 5 राजा थत्यंत हर्षयुक्त थयो थको कल्पवृक्षनी पेठे शोजवा लाग्यो.
ते वार परीश्रमण जगवंत श्रीमहावीर प्रजु गर्नमा रह्या थकाज पक्षयीयधिकमास,एटले सामा महिना गये उते, भावी रीतना अनिग्रहने ग्रहण करता हवा. ते कयो अनिग्रह ? ते हवे कहे जे. ख-2 रेखर मारां मातापिता ज्यांसुधी जीवे, त्यांसुधी मारे लोच करी घरथी नीकलीने अणगारपणुं एटले
दीदा लेवी नहीं एवी रीतना अनिग्रहने तेमणे ग्रहण को हुँ उदरमा ढुं त्यारे पण मारी मातानो 8 टू मारा पर ज्यारे श्रावो स्नेह , त्यारे ज्यारे मारो जन्म थशे, त्यारे तो ते स्नेह केवो थशे ? एवी
रीतनी बुद्धि लावीने तेमणे एवो श्रनिग्रह ग्रहण कयों, अने वली बीजाने पण माताने विषे । बहु मान देखावा माटे तेमणे तेम कर्यु. केमके कयु डे के पशु ज्यांसुधी माता धवरावे , त्यांसुधी स्नेह राखे , अधम माणसो ज्यांसुधी स्त्री मले , त्यांसुधी माता पर स्नेह राखे बे,
SCRECROCESCARDCOMSASRAELCOLLECORRECARICORICALCHEBCALC
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मध्यम माणसो ज्यांसुधी माता घरनुं कामकाज करे , त्यांसुधी स्नेह राखे , तथा उत्तम मा
सुबोग कणसो बेक जीवित पर्यंत माताने तीर्थ समान गणी तेना पर स्नेह राखे बे.
मापनीतेत्रिशला क्षत्रियाणीए स्नान कर्यु, त्यारबाद पूजा करी तथा कौतुक मं-18 गल कर्यां, तथा सर्व प्रकारनां आजूषणोथी ते नूषित थक्ष पनी ते गर्नने ते त्रिशला क्षत्रियाणी नहीं अति मां, नहीं अति उष्ण, नहीं थति तिखां, नहीं अति कडवां, नहीं अति कषायेलां. नहीं अति खाटां, नहीं अति मधुरां, नहीं अति चीकणां, नहीं अति लुखां, नहीं अति आर्ड,
त सकेला तेमज सर्व तुने विष सुखकारी एवं रीतना नोजन, याबादन, गंध तथा
करीने पोषवा लागी. तेमां नोजन तो प्रसिक, श्राबादन एटले वस्त्र, गंध एटले पटवासादिक, माव्य एटले पुष्पमाला, तेए करीने गर्नने पोषवा लागी. अति शीतल एवा थाहारादिक गर्नने हितकारी होता नथी; केमके तेमांथी केटलाक वायु करनारा होय , केट-1| लाक पित्त करनारा होय जे अने केटलाक श्लेष्म करनारा होय बे, ते गर्नने अहितकारी होय । जे; कारण के वाग्जट्ट नामना वैद्यक ग्रंथमां पण कडं बे के वायुवाला पदार्थो खावाथी गर्न कबमो. शांधलो. जम तथा वामनरूप थाय बे, पित्तवाला पदार्थो जक्षण करवाथी खलति. पीलो. तथा चित्रीवालो थाय ने, तथा कफवाला पदार्थो नदण करवाथी पांमुरोगवालो थाय बे, अति
खार जोजन नेत्रोने नाश करनारूं , अति ठंडं पवनने कोपाववावाj , अति उष्ण बलने हरे हैं। है, तथा अति काम सेववाथी जीवितने हरे . वली पण मैथुन, यान, वाहन, मार्गमां जवं,
स्खलना पामवी, पमी जवं, पीमा थवी, अत्यंत दोग, श्रथमावु, विषम जगो पर सुवापणं, विषम जगो पर बेसबुं ते, उपवास करवा ते, वेग, विघात, अति दुखां, अति तीखां, तथा अति ॥५ कमवां नोजन, अति राग, थति शोक, अति खारी वस्तुउनुं सेवन, अतिसार, वमन, जुला
वा तथा अजीर्ण यादिकथी गर्न तेना बंधनथी मुक्त थाय ने. माटे एवी रीते
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SANCHALISASEAS
थति शीतल श्रादिक थाहारथी गर्जने पोषवो नहीं. वली केवां जोजन, श्राबादन, गंध तथा माव्यथी गर्जने पोषवो ते कहे . सघली ऋतुमां जोजन करातां अने जे सुखना हेतु होय , अनेक गुणोने करवावाला होय तेवा. तेनुं हवे वर्णन करे ने. वर्षा ऋतुमां लवण खावं ते अमृत तुल्य
बे, शरद् ऋतुमां पाणी अमृत सर ने, हेमंत ऋतुमां गायतुं दूध अमृत तुल्य , शिशिर - है तुमा खाटुं नोजन अमृत तुल्य , वसंतमां घीनुं जोजन अमृत सरखं , तथा लेखी शतुमा गो-है
लनुं जोजन अमृत सरखं . हवे ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी डे ? ते कहे . रोग एटले ज्वर
श्रादिक, शोक एटले इष्टना वियोग श्रादिकथी उत्पन्न थती दिलगिरी, मोह एटले मूर्ग, जय ६ एटले बीक, परिश्रम एटले कसरत इत्यादिक घरगयां ले जेणीनां एवी, अर्थात् रोग आदिकथी रहित थएली, कारण के ते सघलां गर्जने अहित करनारां . सुश्रुत नामना वैद्यक ग्रंथमां पण कडं ले के गर्नवती स्त्री जो दिवसे उंघे तो गर्न पण उघणसी थाय, अंजन करवायी गर्न आं- धलो थाय, रोवाथी विकारवाली आंखोवालो थाय, स्नान अने लेपनथी उःशील थाय, तैलना मर्दनथी कुष्टरोगवालो थाय, नख कातरवाथी खराब नखवालो थाय, दोमवाथी चंचल थाय, 1
हसवाथी काला दांतवालो, काला होग्वालो, काला तालवावालो, तथा काली जीजवालो थाय, है बहु बोलवाथी बकबकीयो थाय, अति शब्दो सांजलवाथी बहेरो थाय, अवलेखनथी खलति थाय,
वीऊणो श्रादिक हलाववाथी ( पवन देवाथी) उन्मत्त थाय, एवीरीते कुलनी वृक्षस्त्रीओ तेणीने
शीखामण श्रापती हवी. वली ते स्त्रीतेने कदेती के त्रिशला कृत्रियाणी. तं धीरे धीरे चाल. ६ धीरे धीरे बोल, क्रोधना क्रमने तजी दे, पथ्य वस्तुओनुं जोजन कर, नामी पोची बांध, ख-| हूँ मखम हस नहीं, आकाशमां (खुली जगामां) बेस नहीं, पथारीमां सुती रहे, अतिशय है। नीचे अथवा बहार जा नहीं; एवी रीते गर्नना सबवथी मंद थयेली त्रिशला क्षत्रियाणीने सखी कहती हवी. वली ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी हती ? ते कहे . ते गर्जने जे हित लागे
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कल्प० ॥ ५३ ॥
एवं अने ते पण परिमाणवायुं, थोडं नहीं, तेम वधारे पण नहीं, पथ्य कहेतां आरोग्यताने करना, अने तेथीज गर्जने पुष्टि करे एवं अने ते पण उचित एवा स्थानके, पण आकाश श्रा - दिक जागमां नहीं, अने ते पण समये एटले जोजननो समय होते बते, आहार करती हवी. तथा विविक्त एटले दोषोए करीने रहित तथा मुटु एटले कोमल एवां जे शयन ने श्रासनो, तेथोए करीने, तथा प्रतिरिक्त एटले अन्य माणसोनी अपेक्षा माणसो विनानी, अने तेथी करीनेज सुखने करनारी, अने तेथी करीने मनने अनुकूल लागे एवी एटले मनने हर्ष उपजावे एवी, एवी रीतना जे विहारनी पृथ्वी, ते पर विहार करती हवी.
हवे ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी रीते गर्जने धारण करती हवी ? ते कहे बे. उत्तम प्रका |रना गर्जना प्रजावथी उत्पन्न थयेला वे दोहद कहेतां मनोरथो जेणीने एवी, ते मनमां एम जाणती हवी के हुं अमारी पडो एटले सर्व जीवोनी हिंसा बंध करवानो पद वग मायुं दान दजं, गुरुओने सारी रीते पूजुं, तीर्थंकरोनी पूजा रचावुं, संघने विषे घणे प्रकारे वात्सल्यता करूं, सिंहासन पर बेसुं, उत्तम बत्र माथे धारण करावं, उत्तम सफेद चामरो मारी श्रासपास वींकावुं, सघलाओ पर थाज्ञा चलावुं तथा राजाश्रो चावीने मारा पादपीठने नमे, एवी डुं थाउं. वली हाथीना मस्तक पर बेसीने पताका जमते बते तथा वाजित्रोना नादोथी दिशाश्रोना जागो पूराते बते, तथा लोको जय जय शब्दोथी स्तुति करते बते, हर्षथी हुं उद्याननी पापरहित क्रीमा करूं. वली ते त्रिशला क्षत्रियाणी केवी ? तो के सिद्धार्थ राजाए सर्व मनोरथो संपूर्ण करवायी संपूर्ण थयेल वे दोहद जेणीनो एवी, तथा तेथी। करीने सन्मानयुक्त करेल वे दोहद जेपीए एवी; अने तेथी करीनेज नथी करेल कोइ पण दोहदनी अवगणना जेणीए एवी; वली ते केवी ? तो के संपूर्ण रीते वांबित थयेल वे दोहद जेणीनो एवी, तथा सर्व प्रकारे संपूर्ण थयेल बे दोहद जेणीनो एवी, एवी रीतनी थइ थकी, ते गर्जने धारण करती हवी. तथा सुखेथी एटले
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सघला जिनेश्वरोनुं गवार
जेम गर्नने वाधा न आवे एवी रीतश्री स्तंन श्रादिकर्नु अवलंबन लेती हवी, तया निझा करती हवी, उन्नी थती हवी, श्रासन पर बेसती हवी, तथा निता विना शय्या पर सुश्ने आलोटती हवी,
कुष्टिमतल कहेतां जमीन पर विहार करती हवी, अने एवी रीते सुखे सुखे गर्नने धारण करती हवी.४ ४ हवे ते कालने विषे तथा ते समयने विषे श्रमण जगवंत श्री महावीर स्वामी गर्जमां श्राव्या
बाद, जे या जनालानो पहेलो मास, बीजुं पखवामीयुं ते चैत्र मासनो शुक्ल पक्ष, ते चैत्र मासना। * शुक्ल पक्षनी तेरसने दिवसे नव महीना संपूर्ण होते ते, तथा अरधी श्राग्मी रात्रि जाते बते, एटले नव महीना धने सामासात दिवसो जाते ते (पुत्रने जन्म आप्यो). एवी रीते
जिनेश्वरोनुं गर्जवासनी स्थितिनुं मान कंश तुल्य नथी. षनदेव प्रजु नव मास श्रने चार दिवस गर्जमा रह्या, अजितनाथ प्रनुाठमास श्रने पचीश दिवस गर्नमा रह्या, संजवनाथ प्रनु नव मास श्रने उ दिवस गर्नमा रह्या, अनिनंदन स्वामी श्राव मास ने अव्यावीश दिवस गर्नमा रह्या, सुमतिनाथ प्रनु नव मास अने ब दिवस गर्नमा रह्या, पद्मप्रन खामी नव मास अने ल दिवस गर्नमा रह्या, सुपार्श्वनाथ प्रनु नव मास अने जंगणीश दिवस गर्नमा रह्या, चंपन प्रनु नव मास| ने सात दिवस गर्नमां रह्या, सुविधिनाथ प्रनु आठ महीना ने बवीश दिवस गर्नमा रह्या, शीतलनाथ प्रनु नव मास अनेक दिवस गर्नमा रह्या, श्रेयांसनाथ प्रजु नव मास ने ब दिवस गर्नमा रह्या, वासुपूज्य स्वामी श्राप महीना ने वीश दिवस गर्नमा रह्या,विमलनाथ प्रजु आठ महीना ने एकवीश दिवस गर्नमा रह्या, अनंतनाथ प्रनु नव मास अने उ दिवस गर्नमा रह्या, धर्मनाथ प्रनु आठ महीना ने बवीश दिवस गर्नमा रह्या, शांतिनाथ प्रनु नव महीना ने उ दिवस गर्नमा रह्या, कुंथुनाथ * प्रनु नव महीना ने पांच दिवस गर्नमा रह्या, अरनाथ प्रनु नव महीना ने श्राप दिवस गर्जमां है रह्या, मलिनाथ प्रजु नव महीना ने सात दिवस गर्नमां रह्या, मुनिसुव्रत स्वामी नव महीना ने श्राप दिवस गर्नमा रह्या, नमिनाथ प्रजु नव महीना ने श्राप दिवस गर्नमां रह्या, नेमनाथ
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कल्प
प्रजु नव महीना ने आठ दिवस गर्नमा रह्या, पार्श्वनाथ प्रनु नव महीना ने उ दिवस गर्नमा ।
रह्या, तथा महावीर प्रजु नव महीना ने सामा सात दिवस गर्नमा रह्या, एवी रीते श्री सोम॥५४॥
तिलक सूरीश्वरे करेल सप्ततिशत स्थानक नामे ग्रंथमां तेनुं यंत्र कहे बे. . 3 ते वखते सघला ग्रहो उच्च स्थानक प्रत्ये श्रावते बते, एटले मेषादि राशिमा रहेला सूर्यादिक उंचार
जाणवा, तेमां पण दशादिक अंशो सुधी परम नच्च जाणवा. तेउनु फल सुखी, जोगी, धनवान् , स्वामी, मंमलाधिप,राजा,चक्री एम अनुक्रमे उच्च ग्रहोगेंफल जाणवू.तेमांत्रण उंचा होय तो राजा थाय,पांच | जंचा होय तो अर्धचक्री थाय,ब जंचा होय तो चक्रवर्ती थाय तथा सात जंचा होय तो तीर्थकर थाय.18 ___एवी रीते उत्तम चंनो योग श्रावते बते, दिशा पण सौम्य कहेता रजनी वृष्टि श्रादिकथी। रहित होते ते, वली ते दिशार्ड केवी ? तो के अंधकारे करीने रहित होते बते, केमके प्रजुना जन्म वखते सर्व जगोए उद्योतज थर रहे डे; तथा दिग्दाह आदिकना अनावथी शुद्ध होते बते, तथा कागमा, घुवम, उर्गा श्रादिकनां पण जयकारक शुकन होते बते, तथा दक्षिणावर्त्तवालो अने श्र-8 नुकूल कहेतां सुगंधी अने शीतल, तथा सुखने देनारो, तथा मंद होवाथी पृथ्वीने स्पर्श करतो,
केमके प्रचंम वायु तो उपरना जागमां फेलाय ले एवी रीतनो वायु वाते उते, तथा जे वखते सपघला प्रकारनां जमीन पर धान्य जगेलां बे, एवो काल होते बते, तथा सुकाल होवाथी खुशी थ
येला अने वसंतोत्सवादिकथी क्रीमामां पडेला एवा देशना लोको होते बते, अपर रात्रिना स-3 मय वखते चंडनो उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र साथे योग श्रावते ते जरा पण बाधारहित थयेला ते
॥५४॥ त्रिशला दत्रियाणी थारोग्य कहेतां पीमारहित एवा पुत्रने जन्म आपतां हवा. 81 एवीरीते महोपाध्याय श्रीकीर्ति विजयगणिना शिष्योपाध्याय श्रीविनयविजयगणिए रचेली श्री
कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टोकाना गुजराती भाषांतरमा चोथो कण समाप्त थयो. श्रीरस्तु. है।
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SHARRAHASRAAHARASHNERSHARE
॥ श्रीजिनाय नमः॥
॥पंचमं व्याख्यानं प्रारभ्यते ॥ | जे रात्रिए श्रमण जगवान् महावीर प्रजुनो जन्म थयो, ते रात्रि केवी हती? तेनुं हवे वर्णन करे | है इस श्रादिक घणा देवोए करीने, तथा प्रजुना जन्मोत्सव माटे श्रावती एवी घणी दिक्कुमारिकार्ड
तथा देवांगनाए करीने, तथा स्वर्गथी पृथ्वी पर थावता श्रने मेरुना शिखर पर जवा माटे जंचे 18
चमता एवा देवोए करीने जाणे अत्यंत श्राकुल थश्होय तेम हर्षने लीधे अहाट हासादिकथी अस्पष्ट | ४ उच्चार वडे कोलाहल करती होय तेवी थर; श्रने था सूत्रे करीने विस्तार सहित प्रजुनो जन्मोत्सव देवोए कर्यो, एम सूचव्यु. ते वखते अचेतन एवी दिशाउँ पण जाणे हर्षितज थयेली होय तेम २
यानंद पामवा लागी, तथा ते वखते सुखेथी थतो स्पर्श जेठनो, एवा वायु पण मंद मंद वावा कालाग्या. त्रणे जगतमां द्योत थ रह्यो, आकाशमां इंसुनिनाद वागवा लाग्यो, नारकीमा रहेला|
जीवो पण खुशी थवा लाग्या, तथा पृथ्वी पण उवासने पामी. | हवे त्यां पहेला तीर्थंकर प्रजुना जन्मना सूतिकर्मने विषे उपन्न दिक्कुमारिका श्रावीने पो
तानो शाश्वतो एवो श्राचार करवा लागी. ते आचार नीचे प्रमाणे जाणवो. # अधोलोकमां रहेनारी आठ दिक्कुमारिका पोतानां श्रासनो कंपवाथी, अवधिझाने करीने 8
अरिहंत प्रजुनो जन्म थयेलो जाणीने ते सूतिकागृहने विषे श्रावी. तेउनां नामो जोगंकरा, लोग-* वती, सुनोगा, जोगमालिनी, सुवत्सा, वत्समित्रा, पुष्पमाला तथा अनिंदिता. ते प्रजुने तथा ते= मनी माताने नमीने ईशान दिशामा सूतिकागृहने करती हवी, तथा त्यांची एक योजन सुधीनी
पृथ्वीने संवर्त वायुथी शोधती हवी. वली मेघंकरा,मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, वारिषेणा श्रने बलाहका नामनी श्राव दिक्कुमारिका ऊर्ध्व लोकथी आवीने प्रजुने माता स
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कल्प०
॥ ५५ ॥
हित नमीने हर्षपूर्वक गंधोदक तथा पुष्पोना समूहनी वृष्टि करती हवी. तथा नंदोत्तरा, नंदा, श्रानंदा, नंदिवर्धना, विजया, वैजयंती, जयंती ने अपराजिता नामनी आठ दिक्कुमारिकार्ड पूर्व | रुचकर्थी घ्यावीने गामीमां जोवा माटे दर्पणने धारण करती हवी. तथा समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती, शेषवती, चित्रगुप्ता तथा वसुंधरा नामनी आठ दिक्कुमा रिकार्ड द ऋणि रुचकथी घ्यावीने स्नानने माटे जरेला कलशार्जने हाथमां धारण करीने गीतगान करवा लागी. तथा इलादेवी, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मावती, एकनासा, नवमिका, जडा अने शीता नामनी आठ | दिक्कुमारिकार्ड पश्चिम रुचकथी श्रावीने पवन माटे हाथमां पंखार्ज लइने उनी तथा अलंबुसा, मितकेशी, पुंमरीका, वारुणी, हासा, सर्वप्रजा, श्री अने ही ए नामे या दिक्कुमारिकार्ड उत्तर | रुचकथी यावीने चामर वींजवा लागी तथा चित्रा, चित्रकरा, शतेरा ने वसुदामिनी ए चार | कुमारिकार्ड विदिग् रुचकाप्रियी यावीने हाथमां दीवा लइ विदिशामां उजी तथा रूपा, रूपासिका, सुरूपा ने रूपवती नामनी चार दिक्कुमारिकार्ड रुचक द्वीपथी यावी, अने चार अंगुली बेटे नालने बेदीने खोदेला खामामां दाटी, तथा ते खामाने वैदुर्य मणिथी पूरीने, तेना पर पीठ बनाव्युं, तथा तेने पूर्वाधी बांधीने, ते जन्मगृहथी पूर्व दिशामां, दक्षिण | दिशामां ने उत्तर दिशामां एम त्रण दिशाउंमां त्रण केलनां घरो बनाव्यां. ते मांथी दक्षिण तरफना केलना घरमा ते बन्नेने ( मातापुत्रने ) लइ जश्ने, ते ए तेमने अभ्यंग (तैलमर्दन ) कर्यु तथा पठी पूर्व तरफना घरमां स्नान करावी, कपमां तथा आभूषणो पराव्यां पढी उत्तर | तरफना केलना घरमां बे धरणीनां काष्ठो घसीने, तेमांथी अग्नि निपजावी, चंदनथी होम करीने ते ए बन्नेने रक्षापोटली बांधी तथा पढी मणिना वे गोलाई श्रास्फालती थकी "तमो पवर्त जेटला श्रायुव्यवाला था" एम कही प्रभुने तथा तेमनी माताने जन्मस्थान के मूकीने ते पोतपोताने स्थानके ग. ते दिक्कुमारिर्जनी साथे प्रत्येकना चार हजार सामानिक देवो होय, चार मदत्तराज होय, सोल
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हजार अंगरक्षको होय, सात लश्कर तथा तेना अधिपति होय, तथा बीजा पण महर्धिक देवो है होय; तथा ते श्राजियोगिक देवोए योजनप्रमाण करेलां विमानोमां बेसीने त्यां आवे जे. एवी/ 1
रीते दिक्कुमारिकानो महोत्सव जाणवो. 4 ते वार पड़ी पर्वत सरखं निश्चल एवं इंजनुं श्रासन चलायमान थयुं, त्यारे इंॐ अवधिज्ञानथी बेला तीर्थंकरनो जन्म थयो एम जाण्यु, अने तेथी तेणे वनमय एवी योजननी सुघोषा नामनी । घंटा नैगमेषी देव पासे वगमावी अने तेथी सघलां विमानोमां रहेली घंटा पण वागवा लागी. पली ते नैगमेषी देवे उंचे प्रकारे पोतेज इंजनो हुकम देवोने जणाव्यो, अने तेथी देवो पण हर्ष-13 युक्त थ चालवानी तैयारी करवा लाग्या. पालक नामना देवे बनावेला तथा लाख योजननामा-६ नवाला एवा पालक नामना विमान पर इंश बेगे; ए पालक नामना विमानमां इंजना आसननी है सन्मुख अग्रमहिषीउनां श्राप जसासनो हतां, माबी बाजुमां चोराशी हजार सामानिक देवोनां ।
चोराशी हजार नझासनो हतां, दक्षिण बाजुमां वार हजार अभ्यंतर पर्षदानां बार हजार नसासनो ४ाहतां, तथा चौद हजार मध्य पर्षदानां चौद हजार नझासनो हता,एवी रीते सोल हजार बाह्य पर्षदानां 8 सोल हजार जसासनो हता, पाउलना नागमांसात सेनापतिउँनां सात नसासनो हता. चारे दिशामांप्रत्येकमां चोराशी हजार आत्मरक्षक देवोनां चोराशी हजार नगासनो इता. तथा एवी रीते है बीजा पण घणा देवोथी वीटाएलो तथा सिंहासन पर बेठेलो, तथा गवाता के गुणो जेना एवो है ते त्यांथी चालवा लाग्यो, तथा बीजा देवो पण एवी रीते त्यांथी चालवा लाग्या. तेओमां 5 केटलाक तो इंजना हुकमथी, केटलाक मित्रना अनुवर्त्तनथी, केटलाक स्त्रीउथी ( देवीथी ) प्रेरायेला, केटलाक पोतानाज नावथी, केटलाक कौतुकथी, केटलाक विस्मयपणाथी तथा केटलाक नक्तिथी, एवी रीते सघला देवो विविध प्रकारनां वाहनोए करीने युक्त थया थका चालवा लाग्या. ते वखते विविध प्रकारनां वाजित्रोना शब्दोथी तथा घंटाओना नादोथी तथा देवोना
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कल्प
॥५६॥
SAGROCEROSAROKAR
कोलाहलथी सघलुं ब्रह्मांग गाजी रघु. तेोमांथी सिंह पर स्वार थयेलो देव हाथी पर स्वार | सुबोण थयेला देवने कहेवा लाग्यो के तारा हाथीने तुं पूर कर, केमके नहींतर मारो था जोरावर के-15 सरी सिंह खरेखर तारा हाथीने मारी नाखशे. तथा एवीज रीते पामा पर बेठेलो घोडे स्वारने, गरुम पर बेठेलो सर्पवालाने तथा चित्रा पर बेठेलोबकरा पर बेठेलाने आदरपूर्वक कहेवा लाग्यो.2
ते वखते देवोनां क्रोमो गमे विमानो श्रादिक वाहनोए करीने विस्तीर्ण एवो पण आकाशमार्ग ६सांकमो थर गयो. केटलाक देवो तो मित्रने पण तजीने दक्षपणाए करी अगाडी जता हवा. है तथा बीजो देव वली कोश्ने एम कहेतो हवो के हे ना! तुं जरा मारे माटे थोमी वार तो है
योन. केटलाक तो वली एम कहेवा लाग्या के हे देवो! पर्वना दिवसो तो एवी रीते सांकमाज, होय , माटे हमणां तो मौन करीनेज चालो. एवीरीते श्राकाशमां श्रावता थका देवोनां मस्तको पर चंदनां किरणो पमवाथी ते "निर्जर" बता पण जाणे जरायुक्त थयेला होय तेम शोजता | हवा. ( केमके तेमनां मस्तको चंजनां किरणोथी सफेद लागतां हता.) देवोनां मस्तक पर रहेला हूँ तारा घटिका सरखा, कंठमां कंगा सरखा तथा शरीर पर पसीनानां विंधन सरखा शोजता हता. एवी रीते इंज नंदीश्वर छीप पासे विमानने संदेपीने त्यां व्यो, तथा जिने थने तेमनी मा-2 ताने तेणे त्रण प्रदक्षिणा करी, तथा तेमने नमस्कार करी ते कहेवा लाग्यो के हे रत्नकुक्षि! तथा ६ जगत्मां दीपिका सरखी माता! तमारा प्रत्ये नमस्कार था. ढुं देवोनो स्वामी इंछ लु, तथा देवहै लोकथी अहीं आव्यो डं, तथा श्रा प्रजुनो हुँ जन्ममहोत्सव करीश. माटे हे माता ! तमारे मरद्द नहीं, एम कही तेणीने अवस्वापिनी निमा तेणे श्रापी; तथा जिनेश्वर प्रजनुं प्रतिबिंब करीने ते मातानी पासे राख्यु. पनी तीर्थकर प्रजुने तेणे हस्तसंपुटमां ग्रहण कर्या, तथा सघलो लावो पोते ॥५ ॥ सेवा माटे तेणे (इंजे) पोतानां पांच रूपो काँ. एक रूपे करी प्रजुने ग्रहण कर्या, बे रूपोए क. रीने परखे रही चामर उमाड्यां, एक रूपे करी त्र धर्यु, तथा एक रूपे करीने वज़ धारण कयु.*
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सूतिकागृह.
चित्र २१
इन्द्र पांच
करीने
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हवे देवोमांथी जे अगामी होय बे, ते पठाड़ी रहेलाने धन्य माने बे, तथा पछाडी रहेलो श्रगामी रहेलाने धन्य माने वे, तथा केटलाक श्रगामीना जागमां गयेला देवो प्रजुने जोवा माटे पोतानी पीठमां पण नेत्रने छवा लाग्या. एवी रीते इंद्र मेरु पर्वतना शिखर पर जर, त्यां दक्षिण जागमां रहेला पांशुक वनमां पांसुकंबला नामनी शिला पर गयो. त्यां प्रजुने खोलामां लइ पूर्व सन्मुख ते बेवो; तथा ते वखते सघला देवो पण प्रजुना चरणनी समीप श्राव्या. दश वैमानिक, वीश जवनपतिर्ज, वत्रीश व्यंतरो, वे ज्योतिष्क एम मली चोसव इंद्रो त्यां श्राव्या. त्यां सोनाना, रूपाना, रत्नोना, सोनारूपाना, सोना अने रलोना, रूपा ने रलोना, सोना, रूपा अने रत्नना, तथा माटीना, एवा था जातिना प्रत्येकना एक हजार ने आठ एक योजनना मुखवाला कलशो ( पचीश योजन उंचा, वार यो जन पोहोला ने एक योजनना नालवाला सर्व देवोना एक करोड छाने साठ लाख कलश ) तथा एवी रीते शृंगार, दर्पण, रत्नकरंमक, सुप्रतिष्ठक एवा थाल, पुष्प, चंगेरिकादिक पूजानां उपकरणो, | प्रत्येक कलशनी पेठे एक हजार ने आठ प्रमाणे जाणवां, तथा मागध यादिक तीर्थनी माटी, गंगा|दिकनां जल, पद्मसरोवर यादिकनां पाणी तथा कमलो, कुल्ल हिमवंत, वर्षधर, वैताढ्य विजय तथा वदस्कार यादिक पर्वतो परश्री सर्वव, पुष्प, गंध विगेरे सर्व प्रकारनी औौषधीओने श्रच्युतेंद्र था| जियोगिक देवोनी मारफते मगावी लेतो हवो. ते वखते वक्षःस्थल पासे राखेल बे कीरसमुद्रना पाणीना घमा जेर्जए एवा देवो जाणे संसारनो समूह तरवा माटे घमाउनेज तेर्जए धारण कर्या | होय तेम शोजवा लाग्या; तथा जाणे जावरूप वृक्षने सिंचता होय अथवा पोतानो मेल जाणे धोइ नाखताज होय अथवा धर्मरूप प्रासाद उपर जाणे कलश स्थापन करता होय तेम ते देवो शोजता हवा.
हवे ते वखते इंद्रना संशयने जाणीने वीर प्रजुए जमणा अंगुठार्थी चारे बाजुएथी मेरु पर्वतने कंपाव्यो; ते वखते पृथ्वी भुजवा लागी, शिखरो परवा लाग्यां तथा समुद्रो कोजायमान थवा लाग्या तथा एवी रीते ब्रह्मांग फुटी जाय एवा शब्दो यते उते, क्रोध पामेल इंद्रे अवधिथी जाणी
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कल्प०
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प्रभु पासे क्षमा मागी असंख्याता तीर्थंकरो मांहेथी आज दिन सुधी मने कोइए पगेयी स्पर्श कर्यो नयी, अने श्राजे था वीर प्रजुए कर्यो, एवा हर्षथी जाणे ते मेरु नाचतोज होय नहीं ! तेम देखावा | लाग्यो. वली तेणे विचार्य के या स्नात्रनीरना अनिषेकथी करतां सघलां करणारूपी में हारो पहेर्या, तथा जिनेश्वररूपी मुकुटने धारीने हुं सघला पर्वतोनो राजा थयो बुं. हवे त्यां पहेलां अच्युतेंद्र प्रजुने नवरावे, तथा एवी रीते अनुक्रमे बेक चंद्र सूर्यादिक सुधी सघलाई निषेक करे. अहीं कवि घटना करे वे के, स्नात्रमहोत्सव वखते चरम तीर्थंकरना मस्तक पर श्वेत बत्रनी पेठे श्राचरण करतुं मुखरूपी चंद्र प्रत्ये किरणोना समूहनी पेठे याचरण करतुं तथा कंठमां हारनी पेठे आचरण करतुं तथा समस्त शरीर पर चीन देशना कपमानी पेठे याचरण करतुं तथा इंद्रोना समूहोए उंचा करेला घमाना समूहना मध्य जागमांथी नीचे पडतुं एवं क्षीरसमुद्रनुं । पाणी तमारी लक्ष्मीने माटे था !
पठी इंद्रे पोते चार वृषनोनुं स्वरूप कर्यु, तथा तेनां श्राव शिंगडांमांथी पकता दूधयी पोते प्रभुनुं श्रनिषेचन करवा लाग्यो. ते देवो प्रजुने पाणीथी स्नान करावतां एवी रीते उलटा पोते नि - |र्मलपणाने प्राप्त थया ! ! पठी ते मंगलदीवो तथा यारात्रिक क्रिया करीने नृत्य, गीत, वाद्य | श्रादिकथी विविध प्रकारे महोत्सव करवा लाग्या. पढी इंद्रे गंधकाषाय्य नामना दिव्य वस्त्रयी प्र जुना अंगने लुंठीने अने चंदन श्रादिकधी लेपन करीने पुष्पोथी तेमनी पूजा करी. पठी इंडे प्रजुनी सन्मुख रत्नना पाटला पर रूपाना चोखाए करीने दर्पण, वर्धमान, कलश, मत्स्ययुगल, श्रीवत्स, स्वस्तिक, नंदावर्त्त तथा सिंहासन, ए श्रष्ट मंगलो आलेखीने प्रजुनी स्तुति करवा मांगी. पठी प्र जुने तेमनी माता पासे लावीने मूक्या, तथा पेलुं प्रतिबिंब घने यवस्थापिनी निद्राने पोतानी शक्तिथी इंद्रे पाठां ग्रहण करी लीधां.
पोशीका प्रत्ये कुंमल ने रेशमी कपमांनी जोमी मूकी तथा चंद्रवामां श्रीदाम,
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| सुवो०
॥ ५७ ॥
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चित्र.२२.)OOSल हरल
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पादुक वनमा प्रभुजीनो स्नात्र महोत्सव देवो करेके.
चार वृषभना रूपें इन्द्र नवरावे ठे.
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पा.५५.
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सूतिकागृह.
चित्र २३.
अष्ट मंगल,
महाराजे
पा. ५६.
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चौकीदार
सिद्धार्थ राजा.
काप्टर दासी वधामए यापेरे
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पा.५६
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& रत्नदाम श्रने सोनानो दमो राख्यां. तथा वत्रीश क्रोम रत्न, सोना अने रूपानी वृष्टि करीने इंजे का
आनियोगिक देवोने मोढेधी घोषणा करावी के प्रजु अथवा प्रजुनी माता तरफ जे को श्रशुल चिंतवशे, तेना मस्तकना अर्जुन वृदना मांजरनी पेठे सात टुकमा थशे. वली प्रजुना |अंगुठा पर अमृत मूकीने तथा नंदीश्वर हीपमां बहा महोत्सव करीने सघला देवो पोताने| स्थानके गया. एवीरीते देवोए करेलो श्री वीर प्रजुनो जन्मोत्सव जाणवो. ___ हवे ते अवसरने विषे प्रियंवदा नामनी दासी जलदी राजा पासे जर ते पुत्रना जन्मना वृ. त्तांतने कदेती हवी. सिद्धार्थ राजा पण ते वृत्तांतने सांजलीने अत्यंत हर्षित थयो, तथा हर्षयी तेनी वाचा पण गद्गद शब्दोवाली थक्ष, तथा तेना शरीर पर रोमांच थयां. वली तेणीने राजाए
मुकुट सिवाय सघलां श्राजूषणो वधामणीमां बाप्यां, तथा तेणीनुं माथु धोवरावीने तेने , ₹दासीपणाथी मुक्त करी. * जे रात्रिने विषे श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रनु जन्म्या ते रात्रिने विष कुबेरनी आज्ञा मा-2 ननारा घणा तिर्यग्जूंनक देवता सिद्धार्थ राजाना घरने विषे रूपानी वृष्टि, सोनानी वृष्टि, हीरानी वृष्टि, वस्त्रनी वृष्टि, बाजरणनी वृष्टि, नागरवेल विगेरे पांदमांनी वृष्टि, पुष्पनी वृष्टि, नालियेर विगेरे फलनी वृष्टि,शालि विगेरे बीजनी वृष्टि, पुष्पमालानी वृष्टि, सुगंधनी वृष्टि, वासदेपनी वृष्टि, हिंगलादिक वर्णनी वृष्टि तथा अव्यनी वृष्टि वरसाववा लाग्या.
पठी सिद्धार्थ राजाए जवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक देवोए तीर्थकरना जन्मा-3 निषकनो उत्सव कर्ये उते प्रजात कालना अवसरे नगरना भारतकोने बोलाव्या अने बोलावीने तेमने में लैकडं के हे देवानुप्रियो, तमे शीघ्र क्षत्रियकुंमग्राम नामना नगरमांजे केदखानांश्रो होय तेने साफ
करो, अर्थात् तेमा रहेला केदीओने ठोमी मूको; केमके कां ने के युवराजना अनिषेक वखते, शत्रुना राज्यनो नाश करती वखते, तथा पुत्रजन्मना महोत्सवने दिवसे केदीयोने बंधन-31
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कल्प०
॥ ५८ ॥
मुक्त कराय बे. वली तमो मान एटले रस अने धान्यना विषयरूप, तथा उन्मान एटले जोखाय ते, ते सघलामां वधारो करो; अने तेम करीने या क्षत्रियकुंरुग्राम नामना नगरने अंदरथी अने बहारथी पण तमे अत्यंत शोभायुक्त करो. ते नगरने केवी रीते शोभायुक्त करो ? ते हवे हे बे. सुगंधी जलनो ढंटकाव करीने तेथी यासिक्त करो, तथा कचरो विगेरे दूर करो तथा बाप आदिकथी लींपावो. वली केवुं करो? तो के शृंगाटक कदेतां त्रण खुणावालां स्थानको त्रिक कहेतां ज्यां त्रण मार्गो नेगा थाय एवां स्थानको, चतुष्क कहेतां ज्यां चार मार्गो नेगा याय एवां स्थानको चत्वर कहेतां ज्यां अनेक मार्गों जेगा थाय एवां स्थानको, चतुर्मुख कक्षेतां देवालय यादिक, | महापथ कहेतां राजमार्ग, पंथ कहेतां सामान्य मार्गो, एटलां स्थानकोमां पाणीए करीने सिंचेला, थने तेथी करीनेज पवित्र तथा कचरो विगेरे दूर करवायी शोजायुक्त करेला, एवा जे रथ्यांतर कहेतां मार्गना मध्यजागो तथा आपणवीथि कहेतां दुकानोना मार्गो अर्थात् बजारो, ते बे जेनी अंदर एवं. तथा वली ते नगर केवुं ? तो के मंच कतां महोत्सव जोवा माटे लोकोए वेसवा | माटे करेला ऊरुखायो, तथा यतिमंच कहेतां तेथ्योनी पण उपर करेल ऊरुखाश्रो, तेओए करीने शहेरने शोजायुक्त करो. वली ते नगर केतुं ? तो के नाना प्रकारनी रंगबेरंगी जे ध्वजाओ (कदेतां जेनी अंदर सिंह आदिकनां चित्रामणोए करीने सहित एवां मोटा लुगमांओ लटकी रह्यां बे एवी ध्वजाओ ) तथा पताका कहेतां नानी ध्वजाओ, तेयोए करीने शोजायुक्त करो. विली ते नगर केवुं ? तो के बाण यादिकथी भूमि पर लेपनवालुं तथा चाक यादिकथी जिंतो | पर करेली वे सफेदाइ ज्यां एवं करीने पूजना कर्या सरखुं करो ? वली ते नगर केवुं ? तो के गोशीर्ष चंदन तथा रसयुक्त एवं जे रक्तचंदन, तथा दर्दर एटले पर्वतमा उत्पन्न थयेलुं जे चंदन, ते ए करीने जिंत यादिक पर दीघेला ने पांच आंगलीजना हाथाओ ज्यां एवं ते नगर करो. वली ते नगर केवुं ? तो के घरनी अंदर चोककी ओ पर राखेल वे चंदनना कलशो ज्यां एवं
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९ करो. वली ते नगर के ? तो के बारणांओना नागोमां चंदनना कलशोए करीने करेलां ने तो
रणो जेमां एवं ते नगर करो. वली ते नगर केतुं ? तो के नूमि पर तथा उपरना नागमा पण वि-18 स्तीर्ण श्रने गोल आकारवालो लटकावेल ने पुष्पोनी मालाथोनो समूह जेमां एवं ते नगर करो४ वली ते नगर केQ ? तो के पंच वर्णना तथा रसे करीने युक्त अजे सुरनि कहेतां सुगंधवाला / एवा जे पुष्पोना समूहो, तेश्रोनो करेल जे उपचार कहेतां शोना, तेणे करीने ते नगरने युक्त करो. वली ते नगर केवु ? तो के बलता एवा कृष्णागरु,श्रेष्ठ कुंकुरुक, तुरुष्क विगेरे जातिना धूप-13 थी मघमघी रहेला सुगंधथी अत्यंत मनोहर एवं करो तथा चूर्णोना श्रेष्ठ सुगंधथी उत्तम सुगंधवावु करो तथा सुगंधनी गोटी सरखं करो. वली ते नगर केवु ? तो के नट कहेतां नाटक करावनारा तथा नर्तक कहेतां पोते नाचनारा, तथा जहा एटले दोरीओ पर खेल करनारा, तथा मल, तथा । मुगीओथी युद्ध करनारा, तथा विज्ञवक एटले माणसोने हास्य कुतूहल करावनारा विषको, अथवा जेओ मोढांओना चालाओ करीने कुदे तेओ, ठेकनारा तथा नदी विगेरेने तरनारा तथा रसे करीने युक्त एवी वा ऊना करनाराओतथा सुंदर कथा कहेनारा तथा लासक कहेतांरास रमनारायो, तथा आरक्षको कहेतां कोटवालो, तथा लंख कहेतां वांसपर चमी तेना अग्रनाग पर खेल करनाराओ, तथा मंख कहेतां हाथमा बबी राखी निदा मागनाराओ के जेयो 'गौरीपुत्रो' एवा नामश्री प्रसिद्ध तेओ, तथा तूण नामनां वाजिन वगामनाराज, तथा तुंबवीणिका एटले वीणा वगाडनाराजे, तथा जेठ ताली वगामीने कथाओ कहे जे एवा लोको, तेए करीने संयुक्त, एवा आ * क्षत्रियकुंमग्राम नामना नगरने तमो पोते करो, बीजा पासे तेम करावो अने तेम करीने तथा है करावीने हजारो गमे गामांनां धोंसरां तथा प्रसिद्ध एवां हजारो गमे मुशलो उत्सवनी अंदर उन्नां करावो. ( तेम कराववानी मतलब ए के ते महोत्सव चालते उते, तेम करवाश्री, गाडां खेमवानी तथा खांमवा श्रादिकनी मना करेली , एम वृक्ष श्राचार्योनो मत .) एम करीने *
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कल्प० ते मारी आज्ञा तमो पानी आपो. तथा पाठी आपीने थावीने मने कहो के तमारी आज्ञाप्रमाणे || सुवो०
सघर्बु तैयार कयु जे. ॥५ ॥
___एवी रीते सिझार्थ राजाथी आज्ञा कराएला ते कौटुंबिक पुरुषो हर्ष पाम्या, संतोष पाम्या, है यावत् हर्षथी पूर्ण हृदयवाला थया उता वे हथेलीथी यावत् अंजलि करीने ते सिझार्थ राजानी साझा सांजली तरतज क्षत्रियकुंमग्राम नगरमां बंदिजनने बोडी मूकवाथी आरंजीने हजारो मुॐशल उन्ना करवा सुधीनां सर्व कार्य करीने ज्यां सिद्धार्थ राजा हता त्यां आव्या अने श्रावीने ,
तेमने तेमनी आज्ञा पानी सोंपता हवा. ६ ते वार पड़ी ते सिझार्थ राजा, ज्यां कसरतशाला हती त्यां गया; तथा त्यां जश् श्रावीने सर्व
प्रकारनी शकिए करीने युक्त, तथा सर्व युक्तिए करीने एटले सघली उचित वस्तुऊना संयोगे करीने ४ युक्त,सर्व सैन्य वडे करीने, तथा पालखी घोडा आदिक सर्व प्रकारनां वाहनोए करीने, तथा प-* रिवार श्रादिकना समूहे करीने, तथा सघला अंतःपुरे करीने, तथा सघली पुष्प, गंध, वस्त्र, माव्य, अलंकार श्रादिकनी जे शोजा, तेणे करीने, तथा सघलाप्रकारनां वागतां एवांजे वाजितो,तेना निनादो कहेतां शब्दोए करीने, तथा वाजिबोनाएकी वखते थता शब्दोए करीने, तथा शंख, माटीना पटह, तथा नेरी, तथा कालर,तथा खरमुखी एटले काहला नामर्नु वाजित्र, तथा मुरज कहेतां ढोल, तथा 8 मृदंग तथा उंउनि, ए सघलां वाजित्रोनो जे मोटो शब्द, तथा तेना पम्घारूप थतो जे प्रतिशब्द,
तेणे करीने, तथा एवी रीते सामग्री सहित सिद्धार्थ राजा दश दिवस सुधी महोत्सवपूर्वक कुलम-2 &र्यादा करता हवा. हवे ते कुलमर्यादा केवी ? ते कहे . तेणे वेचाण थती वस्तुओने जगातथी
॥५ ॥ मुक्त करी. वली ते कुलमर्यादा केवी ? तो के कर कहेतां दरेक वर्षे राजा जे प्रजा पासेथी लेने ते करे करीने प्रजाने रहित करी, अर्थात् कर माफ कर्या; अने तेथीज सघलाउने हर्षना हेतुरूप होवाथी उत्कृष्ट एवी. वली ते कुलमर्यादा केवी ? तो के जे जे वस्तु जे जे माणसोने जोती
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होय, ते ते बजारमाथी मूल्य दीधा विनाज लोकोए ग्रहण करवी, केमके तेनुं मूल्य राजा श्रापशे
एवी रीतनी जाहेरखवरवाली, अने तेथी करीनेज अमेय कहेतां प्रमाण विनानी वस्तु मेलवी | 2 कृशकाय एवी. वली ते कुलमर्यादा केवी ? तो के नास्तिकोने घेर पण राजानी आझाने आपनारा
राजपुरुषोनो ने प्रवेश जेनी अंदर एवी. वली ते कुलमर्यादा केवी ? तो के दंम कहेतां राजा वडे अपराधना प्रमाणमा प्रजा पासेथी ग्रहण करातुं जे धन ते, तथा कुदंम कहेतां मोटो अपराध होते हैं बते पण अल्प एवो जेराजा दम ले ने ते, ते वन्नेथी रहित एवी. वली ते कुलमर्यादा केवी ? तो के ? करजे करीने पण रहित एवी अर्थात् सघलानुं करज पण राजा श्रापशे एवी. वली ते कुलमर्यादा केवी? तो के उत्तम एवी गणिकाओ, तथा नाटकमां जोडायेलां पात्रोए करीने सहित एवी. वली ते कुल-15 मर्यादा केवी ? तो के अनेक एवा जे प्रेदाकारी, तेजेए करीने सेवित थयेली. वली ते कुलमर्यादा केवी ? तो के नथी तजायेलां मृदंगो जेनी अंदर एवी. वली ते कुलमर्यादा केवी ? तो के नथी क-है। रमायेली पुष्पनी मालाओ जेनी अंदर एवी. वली ते कुलमर्यादा केवी ? तो के प्रमुदित कहेतां हवंत, अने तेथी करीनेज क्रीमा करवाने लागेला ने नगरना लोको सहित देशना लोको जेनी
अंदर एवी. एवी रीतनी उत्सवरूप कुलमर्यादा सिद्धार्थ राजा दश दिवस सुधी पालता हवा. है। पड़ी ते सिद्धार्थ राजा, तेवी रीते दश दिवस सुधी कुलमर्यादा पालते बते, सेंकमो, हजारो अने र
लाखोप्रमाणे अरिहंतनी प्रतिमानी पूजाओ करता हवा; केमके प्रजुनां मातपिता श्री पार्श्वनाथ प्रजुना, संतानना श्रावको हता. “यज" धातु देवपूजाना अर्थने कहेनारी , माटे अहीं “याग” एवा 2
शब्दथी प्रतिमानी पूजाज ग्रहण करवी, केमके वीजा यझोनो असंनव वली तेश्रो पार्श्वनाथ & प्रजुनां संतानना श्रावको हता, एम आचारांगमां कहेलु ने. वली ते राजा पर्वने दहाडे दानने 8
अने मानेली मानताने पोते देता श्रने सेवको पासे देवरावता उता सेंकमो, हजारो अने लाखो एवां वधामणांने पोते ग्रहण करता अने सेवको पासे ग्रहण करावता बता आप्रकारे महोत्सव करता हवा.
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॥ ६० ॥
श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुनां मातापिताए पहेले दिवसे एवी रीते कुलमर्यादा करी. तथा त्रीजे दिवसे चंद्र सूर्य देखामवानो महोत्सव करता हवा.
तेन विधि नीचे प्रमाणे जावो. जन्मथी मांगी बे दिवस जाते बते, गृहस्थ गुरु अरिहंत | प्रजुनी प्रतिमा पासे रूपानी चंद्रनी मूर्तिने प्रतिष्ठित करीने पूजी ने विधिपूर्वक स्थापे. ते वार पी स्नान करेली तथा उत्तम वस्त्राभूषणो पहेरेली एवी प्रजुनी माताने पुत्र सहित, चंद्रनो उदय होते बते, प्रत्यक्ष चंद्रनी सन्मुख लइ जइने “ श्रर्ह चंद्रोऽसि, निशाकरोऽसि, नक्षत्रपतिरसि, सु धाकरोऽसि, औषधी गर्भोऽसि, अस्य कुलस्य वृद्धिं कुरु स्वाहा” एवी रीतनो चंडनो मंत्र उच्चारण करतो थको चंद्रने देखाडे, पढी माता पुत्र सहित यर थकी गुरुने नमे; त्यारे गुरु पण आशीर्वाद आपे के सघली औषधीए की मिश्रित थयेल बे किरणोनी पंक्ति जेनी, तथा सघली श्रापदाओने दरवामां जे प्रवीण बे एवो था चंद्र हमेशां प्रसन्न थयो थको तमारा समस्त वंशने विषे वृद्धि करो. एवीज रीते सूर्यनुं पण दर्शन करावे; तेमां मूर्ति सोनानी अथवा तो त्रांवानी करे, छाने मंत्र नीचे प्रमाणे बोले. “ ॐ श्रहं सूर्योऽसि, दिनकरोऽसि, तमोऽपहोऽसि, सहस्र किरगोऽसि, जगच्चकुरसि प्रसीद" पढी गुरु याशीर्वाद आप के सघला देव ने असुरोने वंदनीय, सर्व पूर्व कार्योना करनारा तथा ऋण जगतने चक्कु समान एवा सूर्य पुत्र सहित तमोने मंगलना । देनारा था. एवी रीते चंद्र सूर्यनां दर्शननो विधि जाणवो. दमणांना कालमां तो तेने बदले | बालकने रिसो देखाडे बे.
ते वार पछी बठे दहाड़े एटले कुलधर्मे करीने बड़ी रात्रि जागता थका जागरणमहोत्सव करे. एवी रीते ग्यारमो दिवस गये बते अशुचि एवां जे जन्मकार्यो, जेवां के नालछेद इत्यादि कार्यो | समाप्त होते ते अने वारमो दिवस श्रावते ते प्रजुनां मातापिताए घणां एवां अशन, पान, खा| दिम ने खादिम एम चार प्रकारनां जोजन तैयार कराव्यां; अने तेम करावीने मित्रोने, ज्ञाति
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॥ ६० ॥
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ठाउमाजमाउछन Mmmmmmmmund चित्र २५.
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प्रभुनोनामनावती वखते ज्ञानिने भोजन.
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एटल पाताना जातवालाजन, पुत्राादक सगाउन, पित्राश्न, पुत्र तथा पुत्राना ससरा थादिकन, दास दासीउने तथा श्री ऋषनदेव प्रजुना वंशना दत्रिने तेए जमवा माटे नोतर या तेम कर्या पली प्रजा आदिक कार्यों करीने तथा कौतुकमंगल करीने, तथा शुरु सजाप्रवेशने योग्य मंगलिक श्रने श्रेष्ट वस्त्रो पहेरीने, तथा थोमां.पण महा मूल्यवालां थान्नूषणोथी शरीर अलंकृत करीने जगवंतनां मातापिता जोजनसमये नोजनमंम्पमा सारां श्रासनो पर वेग. तथा नपर कहेला स्वजनादिकनी साथे तेघणां एवां अशन,पान, खादिम अने खादिम एवा प्रकारनां नोजनोने सेलडीनी पेठे थोडं खातां थकां वधारे तजतां थकां, खजूर थादिकनी पेठे घणुं खातां अने थोडं तजतां थकां, अने उत्तम भोजननी पेठे सघर्बु खाइजतां अने केटलीक वस्तु एकबीजाने आप-18| तां थकां जमवा लाग्यां; अर्थात् एवी रीते जोजन करता हवा. एवी रीते नोजन कर्या बाद ते बेठकनी/ जगो पर श्रावी बेग; एवीरीते रहेता थकां त्यां शुद्ध एवं पाणी पीता हवा. ते वार पनी परम पवित्र थश्ने ते मित्रादिक वर्गनो तेए धणां एवां पुष्प,वस्त्र,गंध,माला तथा बानूषण श्रादिकश्री सत्कार कयों अने सन्मान कर्यु तथा तेम करीने ते मित्रादिक वर्गने प्रजुनां मातापिताए था प्रमाणे कडं के, हे स्वजनो! प्रथम पण अमारो श्रा वालक गर्नमां उत्पन्न थये उते आ थावा प्रकारनो चिंतवेलो संकल्प थयो हतो. ते संकल्प कयो ने ते हवे कहे . ज्यारथी श्रारंजीने अमारो था| बालक उदरमा गर्जरूपे उत्पन्न थयो हतो ते दिवसथी अमे रूपा वडे वृद्धि पामीए बीए, सोना 21 वडे वृद्धि पामीए बीए, तेमज धनश्री, धान्यश्री, राज्यर्थी यावत् सर्व प्रकारनां अव्यथी अने प्री-181 तिसत्कारथी अमे बहु बहु वृद्धि पामीए बीए. वली सीमाडाना राजा पण अमारे वश थयेला . माटे ज्यारे अमारा था वालकनो जन्म थशे त्यारे बा बालकनुं था एने योग्य, गुणवायं अने गुणने अनुसरतुं ‘वर्धमान' एवं नाम पाडशुं. ते पूर्वे उत्पन्न थयेली अमारी मनोरथसंपत्ति है श्राजे फलीचूत थइ , माटे अमारो कुमार वर्धमान ए नामे थाउं.
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कल्प
MASSACROADCASSESASSASSAGAR
हवे काश्यप गोत्रवाला श्रमण जगवंत श्रीमहावीर प्रजुनां त्रण नामो कहेवाय ने, ते श्रा प्र. सुवोण माणे जाणवां. तेमांश्री मातापिताए “वर्षमान” एवं प्रथम नाम पाड्यु; तप करवा विगेरेनी
शक्ति प्रजुनी साथेज उत्पन्न थइ ने माटे "श्रमण” एवं बीजं नाम जाणवु तथा लय अने नैरवमा ? |निष्कंप रहेवाश्री; तेमां जय एटले अकस्मात् वीजली श्रादिकथी उत्पन्न थयेलो जय, तथा नैरव । है एटले सिंह श्रादिक, तथा नूख, तरस आदिक बावीश परिषहो, तथा देवता संबंधी चार उप-18
सो, तथा तेना जुदा जुदा नेदो लेखीए तो सोल उपसर्गो, तेने प्रजुए क्षमाए करीने सहन 5 कर्या , पण असमर्थपणाए करीने नहीं; वली नसादिक तथा एकरात्रिकी श्रादिक प्रतिमाना है।
तथा अनिग्रहोना पालनारा, तथा त्रण झाने करीने मनोहर होवाथी बुद्धिवंत, तेम तेमणे रति (अरति पण सहन करेली , अर्थात् तेमां हर्ष शोक तेमणे कयों नथी; एवी रीते ते ते गुणोना ते 3
नाजनरूप ने, अर्थात् रागोषरहित ने एम वृक्ष आचार्योनो मत डे; तथा वीर्य कहेता पराक्रमे हूँ। करीने संपन्न ने. एवी रीतना प्रजुने देवोए "श्रमण नगवान् महावीर" एवं नाम आप्यु जे. एवं नाम देवोए केम कर्यु ? तेने माटे अहीं वृक्ष संप्रदायनो मत . ___एवी रीते उपर वर्णवेली युक्तिए करीने सुरासुरनरेश्वरोए करेल वे जन्मोत्सव जेमनो एवा ते 3
वीर प्रनु बीजना चंनी पेठे, अथवा कल्पवृदना अंकुरनी पेठे वृद्धि पामता थका अनुक्रमे केवा रथया ? ते कहे . चंछ सर तेमनु मुख थयुं, ऐरावण हाथी सरखी तेमनी चाल थर, तेमना !
होठ लाल थया, दांतनी पंक्ति सफेद यक्ष, केशनो समूह कालो थयो, हाथ कमल सरखा कोमल थया; श्वासोबास सुगंधी थयो, तथा कांतिए करीने पण ते उबसायमान थया. वली ते मति, श्रुत तथा अवधिज्ञान संयुत हता, वली तेमने पूर्वनवर्नु पण स्मरण हतुं, रोग रहित हता, वली|5॥६॥ मति, कांति, धीरज श्रादिक पोताना गुणोए करीने जगतथी पण अधिक हता, तेम जगतमा तिलक समान हता.
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चित्र २७. MISSESSMEETI
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नोकरारमन करे।
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पा.५५
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* एक दहामो ते वीर कुमार कौतुक रहित हता, तोपण समान वयवाला कुमारोना नपरोधथी|
तेमनी साथे क्रीडा करता थका, थामलकीक्रीडा करवाने माटे नगरनी बहार गया; त्यां ते कुमारो वृक्ष पर चमवा आदिके करीने कीमा करता हता. एटलामां सौधर्मे पोतानी सनामां वीर प्रनुनी धैर्यता श्रादिक गुणोनुं वर्णन करता हवा; तेमणे कयु के हे देवो ! हमणांना कालमां म.|| नुष्यलोकमां श्री वर्षमान कुमार बालक बे, तोपण महा पराक्रमी जे; तेने इंसादिक देवो पण है। वीवराववाने समर्थ नथी; ते सांजली कोश्क मिथ्यादृष्टि देवे विचार्यु के अहो ! इंजने तो पोताना स्वामिपणाना अजिमाने करीने निरंकुश अने विचारो विनानी, एक पुंबडं नाखी नगरने दाटी 3 देवा जेवां नहीं श्रका श्रावे एवां वचनोनी चतुराई श्रावी होय तेम लागे , के जेथी एक मनु-13 ष्यकीटने पण बाटली हदे चमावी देने, माटे आजेज त्यां ज तेने बीवरावीने इंजना वचनने हुं जू पाईं. एम विचारी ते देवे मनुष्यलोकमां श्रावीने सांवेला सरखा जामा, चपल एवी बेर जीनोवाला, नयंकर फुफामावाला, अत्यंत क्रूर थाकारवाला, विस्तार पामता कोपवाला, विस्तारवाली फणावाला तथा चलकता मणिवाला एवा सर्प करीने तेणे ते क्रीमा करवाना वृदने वींव्यू. ते जो सर्व कुमारो त्यांथी नासी गया, त्यारे श्रीवीर कुमारे जरा पण लय राख्या विना, पोते त्यांजर, ते सर्पने ९ हाथमां लश्पूर फेंकी दीधो. त्यार पठी सघला कुमारो पाबा एकठा थश्ने दमानी रमत करते बते । ते देव पण एक कुमारनुं रूप विकुर्वीने तेमनी साथे क्रीमा करवा लाग्यो. ते रमतमां नीचे प्रमाणे ५ शरत इती.जे कोर कुमार हारी जाय, ते जीतेला कुमारने पोतानी पीठ पर चमावे. पडी ते देवकु
मारे जाणीने हारी जश्ने प्रजुने पोतानी पीठ पर बेसामी पोतानुं सात ताड जेटबुं लंचुं शरीर कयु. दैत्यारे नगवाने पण तेनुं स्वरूप जाणीने तेने पोतानी वन सरखी कठिन मुवीथी पीठ पर मार्यो; हत्यारे ते देव पण ते प्रहारनी वेदनाथी पीडित थयो थको मशकनी पेठे संकोच पाम्यो. ते वार
पड़ी ते देवे शक्रतुं वचन खरुं मानीने पोतानुं स्वरूप प्रगट कयु, तथा सघलो आगलनो वृत्तांत
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कप०
है कही संचलावीने वारंवार प्रजुनी तेणे कमा मागी, तथा तेम करीने ते पोताने स्थानके गयो. ते 8 सुबो
वखते इंजे संतुष्ट थश्ने प्रजुनुं "वीर" एवं नाम कयु. एवी रीते श्रामलकीक्रीमानुं वृत्तांत जाणवु.|| ॥६ ॥
87 दवे प्रजुना मातापिता तेमने श्राप वर्षनी उमरना थया जाणीने अति मोहथी आजूषणो
आदिक पहेरावीने पाठशालामां लश् गया. ते वखते मातापिताए लग्नस्थितिपूर्वक अति हर्षित &थश्ने घणुं धन खरचीने मोटो अने मूख्यवान् उत्सव को. की ते वखते हाथी तथा घोमाना समूहे करीने, तथा मनोहर एवा बाजुबंध तथा हारोए क
रीने, तथा सोनानां घमावेलां एवां विंटी, कुंडल तथा कंकण श्रादिके करीने, तथा अत्यंत म-है। नोहर एवां पंच वर्णनां रेशमी कापडे करीने स्वजन आदिक राजाश्रोनो तेमणे नक्तिपूर्वक सकार को. तथा पंमितने माटे नाना प्रकारनां वस्त्र, आजूषणो, नालियेर आदिक तथा निशा-51 लीबायोने वहेंचवा माटे सोपारी, शीगोमां, खजूर, साकर, खांझ, चारोली तथा प्राक्ष श्रादिक । मनोहर खावानी वस्तुओ पण तेमणे साथे लीधी तथा सोना, रूपा श्रने रत्नोनां मिश्रणथी ब-है। नावेलां पुस्तकोनां उपकरणो, तथा मनोहर खमीया, लेखण तथा पाटीओ पण साथे लीधां. वली सरस्वती देवीनी मूर्तिनी पूजा माटे मनोहर, नर्बु तथा घणां रत्नोथी जडित एवं सोनार्नु
जूषण, तथा निशालीश्राओ माटे विविध प्रकारनां वस्त्रो पण साथे लीधां. एवी रीते सघली ज-8 सणवानी सामग्रीश्रो सहित कुलनी वृक्ष स्त्रीयोथी तीर्थोदके करीने स्नान करायेला, पहेरेला
एवा घणा जे अलंकारो, तेश्रोए करीने कांतियुक्त थयेला, मस्तक पर मेघामंबर सरखं धारण करेल नेत्र जेणे एवा, चार चामरोथी वीकातुं ने अंग जेमनं एवा, चतुरंगी सेनाथी वीटा-1॥६॥ येला, वागतां ले विविध वाजांयो जेनीयागल एवा ते वीर प्रनु पंडितने घेर जता हवा. ते वखते पंमित पण राजाना पुत्रने जणाववाने उचित एवी, तथा दीरसमडना पाणी सरखा उज्ज्वल धोतीयां, सोनानी जनोश, तथा केसरनां तिलक श्रादिकनी सामग्री करतो हवो.
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वृद्ध ब्राम्हणनेरूपेइंद्रमहाराज.
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17 हवे ते वखते इंजनुं श्रासन हालता पीपलानां पाननी पेठे, तथा हाथीना काननी पेठे, तथा,
कपटीना ध्याननी पेठे, तथा राजाना माननी पेठे चलायमान थयु. तेथी अवधिज्ञाने करीने ते वृत्तांत जाण्या वाद इंछ देवोने कहेवा लाग्या के अहो ! आ तो मोटुं आश्चर्य ने के प्रजुने पण निशाले नणवा माटे मोकलाय !!! माटे ते तो जेम आंबा पर तोरण, अमृतमा मीश, ब्राह्मीने * पाठनी विधि, चंडमां सफेदाइनु थारोपण, कुंदनमां सुवर्णतुं स्थापन, तथा पवित्रतानी संपत्तिने माटे शास्त्रनुं नणवं, एटलानी माफक प्रजुने पण पाठशालामा जणवा माटे मोकलवानुं कार्य जे. तीर्थंकर प्रनु पासे जे वचनो बोलवां , ते तो मानी पासे मामानुं वर्णन, लंका नगरी प्रत्ये स-3 मुजनां मोजांनुं वर्णन, तथा समुनने लवणनी नेट श्रापवा जे जे; केमके जिनेश्वरो तो नॐण्या विना विद्यावान, अव्य विना परमेश्वर तथा जूषण विना मनोहर ने, माटे एवा प्रनु त-18
मारुं रक्षण करो. एम कही ते इंच तुरत ब्राह्मणनुं खरूप करीने ज्यां प्रजु हता, ते पंमितने घेर श्राव्यो. तथा त्यां प्रजुने पंमितने योग्य एवा श्रासन पर बेसाडीने पंमितना पण मनमा रहेला संदेहो प्रजुने पूढतो हवो. ते जो लोको विचारवा लाग्या के आ बालक ते आनो शो उत्तर दश् शकशे ? एम विचारता हता, तेटलामां श्री वीर प्रजुए तेना सघला उत्तरो दोधा. त्यारथी|
"जिनें" नामनुं व्याकरण थयु. ए जो सघला लोको श्राश्चर्य पाम्या, तथा पंमित पण मनमा । है चिंतववा लाग्यो के अहो ! आ बालक एवा वर्धमान कुमारे पण आटली बधी विद्यानो क्यां अ-11
च्यास कर्यो दशे !!! अरे ! वली था केटबुं बधुं आश्चर्य ने के बालपणाथी मने पडेला जे|B संदेहोर्नु कोइए पण निराकरण कयु नहोतुं, ते सघला संदेहो आ बालक एवा पण वीर प्रजुए घर कर्या. वली आवी विद्या जाणनारनुं आटबुं बधुं गंजीरपणुं !! अथवा श्रावा महात्माउने ते है युक्तज , केमके मेघ पण शरद् ऋतुमा खाली गाजे बे, ते वरसतो नथी, अने वर्षा ऋतुमा जे गाजतो नथी ते वरसे ; एवीज रीते नीच माणस पण बोले डे, अने करतो नथी, अने ज
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कल्प
सुवो
॥
३॥
त्तम माणस बोलता नथी, पण करी देखामे . तेमज असार पदार्थनो प्राये मोटो आडंबर होय, केमके जेवो कांसानो अवाज थाय बे, तेवो सोनानो अवाज थतो नयी. इत्यादिक विचार करता एवा पंमितने इंझे कह्यु के हे विप्र! तारे मनमां आमने मनुष्य मात्र एवा बालक नहीं जाणवा, पण थाने तो त्रण जगतना नाथ अने सघलां शास्त्रोना पारने पहोंचेला एवा श्री वीर जिनेश्वर तारे जाणवा. इत्यादिक श्री वीर प्रजुनी स्तुति करीने इंछ पोताने स्थानके गयो. श्री वीर प्रनु पण सघला झातकुलना क्षत्रिनश्री परिवारयुक्त थया थका पोताने घेर श्राव्या. एवी रीते प्रजुने * पाठशालामां मोकलवानो अधिकार जाणवो. | एवी रीते प्रजुनी बाल्यावस्था गया बाद यौवन युक्त श्रये बते, तथा लोगो जोगववाने समर्थ है &थये बते प्रजुने माता पिताए शुभ मुहूर्त्तमां समरवीर राजानी यशोदा नामे पुत्री परणावी. तेणीनी -
साथे सुख जोगवतांप्रनुने एक पुत्री थइ, अने तेणीने पण को मोटा राजाना पुत्र एवा पोताना ना-23 रणेज जमाली साथे परणावी, अने तेणीने पण शेषवती नामनी पुत्री थइ, अने ते प्रजुनी दौहित्री थाय. & श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुना पिता काश्यप गोत्रवाला हता. तेमनां त्रण नाम आ प्र-2 माणे कडेवाय ने. एक सिझार्थ, बीजं श्रेयांस अने त्रीजं यशखी. श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रनुनी मातानुं वाशिष्ठ गोत्र हतुं. तेमनां त्रण नाम था प्रमाणे कहेवाय . एक त्रिशला, बीजें: विदेह दिन्ना अने त्रीजुं प्रीतिकारिणी. श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुना काका सुपार्श्व, मोटा नाश् नंदिवर्धन, बहेन सुदर्शना, अने स्त्री कौमिन्य गोतवाली यशोदा हती. श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रनुनी काश्यप गोत्रवाली पुत्री एक हती. तेनां बे नाम यावीरीते कवाय वे. एक पोजा अने बीजं प्रियदर्शना. श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रनुनी कौशिक गोत्रवाली एक पौत्री हती. तेनां वे नाम श्रावी रीते कहेवाय . एक शेषवती अने वीजें यशस्वती. __ हवे दद कहेतां सकल कलाठमां कुशल एवा, तथा निपुण ने प्रतिज्ञा जेनी एवा, तथा सुंदर
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रूपवाला, तथा सर्व प्रकारना गुणोए करीने थालिंगित थयेला, तथा सरल, तथा विनयवान्, तथा प्रख्यात, तथा ज्ञात कहेतां जे सिफार्थ राजा, तेना पुत्र, तथा केवल पुत्र मात्रज एटटुंज नहीं, पण ज्ञातकुलने विषे चंड सरखा, वज्रषजनाराच संघयण तथा समचतुरस्त्र संस्थानना मनोहरपणाने लीधे सुंदर ने देह जेमनो एवा, तथा वैदेह दिन्न कहेतां त्रिशलाना पुत्र एटले विदेहा कहेतां जे त्रिशला दात्रियाणी, तेणीनी कुदिए उत्पन्न थयेवू डे शरीर जेमनुं एवा, गृहस्थावासमां सुकुमाल एवा, ( केमके दीदा वखते तो परिषहो सहन करवाथी सुकुमालपणाए
करीने रहित हता ) श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रनु त्रीश वर्ष सुधी गृहस्थावासमां रहीने, * मातापिता ज्यारे देवलोके गयां, त्यारे नंदिवर्धन श्रादिक वनीलोनी लीधेल ने रजा जेमणे एवा,
एटले गर्नमांज होते बते प्रतिज्ञा करी हती के मातापिताना बेग हुँ दीदा लश्श नहीं, एवी रीतनी प्रतिज्ञा संपूर्ण थ जेमनी एवा, अहीं श्रावश्यकसूत्रना अनिप्राये प्रजुने अध्यावीश वर्ष वीत्या बाद तेमनां मातापिता चोथे स्वर्गे गयां, अने श्राचारांगना अभिप्राये अनशन करी] ॐ अच्युत देवलोके गयां. ते वार पठी प्रजुए पोताना मोटा लाइ नंदिवर्धनने कयुं के हे राजन् !
मारो थनिग्रह संपूर्ण थयो ने, माटे हुँ हवे दीदा लश्श. त्यारे नंदिवर्धने कह्यु के हे नाइ! मासातपिताना विरदथी खिन्न थयेला एवा मने आ वात कहीने तुं घा पर खार मेलवा जेवू केम करे
ने ? त्यारे प्रजुए कह्यु के हे नाइ! पिता, माता, वाता, वेदेन विगेरेनो संबंध आ जीव अनेक वार परस्परना स्नेहथी बांधी चुक्यो बे; माटे शामाटे आपे प्रतिबंध करवो जोइए ? त्यारे नंदि-3 वर्धने कह्यु के हे ना! ते सघा हूं जाणुं बं, पण प्राण थकी पण अत्यंत वहाला एवा जे तमो,
तेनो विरह मने अत्यंत पीमा उपजावे , माटे मारा उपरोधथी तसे वे वर्ष सुधी घरमां रहो. हत्यारे प्रजुए कह्यु के ठीक; पण हे राजन् ! मारा माटे तमारे को पण जातनो श्रारंज करवो नहीं;
हुँ प्रासुक एवां आहार पाणी ग्रहण करीने रहीश; त्यारे नंदिवर्धन राजाए पण ते कबूल कर्यु.
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कल्प तेश्री बीजां बे वर्ष सुधी वस्त्रालंकारश्री नूषित एवाप्रनु पण प्रासुक थने एषणीय एवा श्राहारथी,181 सबो०
सचित्त पाणीने पण नहीं पीता थका घरमा रह्या. ते वारथी मांमी प्रजुए अचित्त पाणीथी पण ॥६४॥
सर्व स्नान कर्यु नहीं, तथा त्यारथी जीवित पर्यंत ब्रह्मचर्य तेमणे पाव्युं; पण दीकोत्सवमां तो सचित्त पाणीथी प्रजुए स्नान कर्यु , केमके तेवो कप कहेतां श्राचार बे. एवी रीते प्रजुने वै-12 राग्ययुक्त जाणीने चौद खप्नोथी सूचित एवा चक्रवर्तिपणानी बुद्धिथी तेमनी सेवा करता एवा 8
श्रेणिक तथा चंप्रद्योत आदिक राजकुमारो पोतपोताने स्थानके गया. है एवी रीते प्रजुनी प्रतिज्ञा एक बाजुए समाप्त थर, श्रने बीजी तरफ लोकांतिक देवोए प्रजुने ।
प्रतिबोध कों, लोकांतिक एटले संसारने अंते रहेला देवो, अर्थात् एकावतारी देवो, केमके जो है तेम न मानीए तो ब्रह्मलोकमा रहेनारा एवा देवाने लोकांतिकपणुं घटी शकतं नश्री: ते देवो नव 51 प्रकारना बे. तेऊनां नाम सारखत, श्रादित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्यायाध, अग्नि अने 5 अरिष्ट. हवे प्रजु जो के स्वयंबुद्ध हता तेथी तेना उपदेशनी प्रजुने जरुर नथी, तोपण श्राम करवून ए तेमनो आचार . तेज कहे . जीत एटले अवश्य नावे करीने डे कल्प कहेता आचार जे
नो ते जीतकदिपक कहेवाय; एवा ते देवो इष्ट, मनोहर आदिक गुणोवाली वाणीयी प्रजुने निरंतर अभिनंदता थका तथा स्तुति करता थका एम कहेवा लाग्या के हे नंदा ! कहेतां हे समृ-3 ऐकिवाला प्रनु ! तमे जय पामो, जय पामो. हे कल्याणवान् ! तमे जय पामो, जय पामो. हे उत्तम है क्षत्रिय! तमे जय पामो, जय पामो. हे जगवान् ! हे लोकना नाथ! तमे प्रतिबोध पामो, अने संघला
जगतना जीवोने हितकारी एवा धर्मतीर्थने प्रवर्त्तावो, केमके ते तीर्थ सर्व लोकने विपे सर्व । ||जीवोने हितकारी, सुखकारी थने मोक्षने थापनाकं थशे,एम कही ते जय जय शब्द करवा लाग्या. ॥६॥
हवे श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने तो मनुष्यने उचित एवो जे विवाहादिक गृहस्थधर्म तेथी। पहेलांज, अनुपम तथा उपयोगवाला तथा केवलज्ञान उपजे त्यां सुधी स्थिर रहे एवां अवधिज्ञान।।।
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श्री महावीर. भगवान.
नवलोकांतिक देव.
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भगवान.
दान लेनार याचक.
चित्र. 30
इन्द्र
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याचक.
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अने अवधिदर्शन तो दतांज; तेथी ते अनुत्तर अने आजोगिक ज्ञान दर्शने करीने पोताना दीक्षाकालने जाणता हवा, छाने जाणीने रूपुं, सोनुं, धन, राज्य, देश तथा एवी रीते सेना, वाहन, धनना नंगार, अनाजना जंगार, तेमज नगर, अंतःपुर, देशवासी लोकने तजी दइने तथा घणां एवां धन, सुवर्ण, रत्न, मणि, मुक्ताफल, शंख, स्फटिक, प्रवाल, रक्त रत्न प्रमुख उत्तम सार वस्तुउने तजी दइने, तथा वली शुं करीने ? तो के विशेष प्रकारे ते सघलुं तजीने, तथा वली शुं करीने? तो के ते सुवर्ण श्रादिकने अस्थिर मानीने, ते सघलुं याचको प्रत्ये जागे पक्तुं बहेंची श्रापीने, अथवा थाटलुं श्राने देवुं घालुं याने देवं, एम विचार करीने, तथा गोत्री प्रत्ये तेनो जाग पामी था पीने प्रभु नीकल्या. या सूत्रे करीने प्रजुनुं वार्षिक दान सूचव्युं, घने ते नीचे प्रमाणे जाणवुं. | जगवान् दीक्षाना दिवसथी पहेलानुं एक वर्ष बाकी रहे त्यारे प्रातःकाले वार्षिक दान देवा मांडे बे; अने ते दान सूर्योदयश्री मांगीने कल्पवर्तवेला पर्यंत यापे; एवी रीते हमेश प्रत्ये प्रभु एक क्रोम ने आठ लाख सोनैया यापे. वली “जेने जे जोइए, ते लो” एवी रीतनी उद्घोषणापूर्वक जे कंइ जेने जोइए, ते प्रभु तेने आपे बे, अने ते सघलुं द्रव्य इंद्रना हुकमश्री सघला देवो पूरुं पामी थापे. एवी रीते एक वर्षमां त्रणसो व्यासी कोम ने एंशी लाख सोनैया देवाय.
'वर्षिदाननुं यहीं कवि वर्णन करे बे के वरसतुं एवं जे ते वर्षिदान, तेथी नाश थयेल बे दारिद्र्यरूपी दावानलो जेउना, छाने तैयार करेला एवा घोडाउंनी पंक्ति, वस्त्र तथा आभूषणोथी नयी उलखी शकाती कांति जेउनी एवा मागण लोको ज्यारे पोताने घेर दान लइने पाढा श्राव्या, त्यारे तेमनी स्त्रीउए पण उलखी नहीं शकवाथी सोगन यादिक दइने तेउने खात्री करवी पमी, तथा केटलाक मश्करा लोकोए तो पोतानुं हसवुं रोकीने तेमने कयुंके हे खामिन् ! तमो कोण ढो ?
एवी रीते दान दइने फरीने जगवाने नंदिवर्धनने पूब्धुं के दे राजन् ! तमारा कहेवा प्रमाणे हवे अवधि संपूर्ण थयो छे, माटे हवे हुं दीक्षा लडं बुं. ते सांजली नंदिवर्धने पण ध्वज, तोरण
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कल्प०
॥ ६५ ॥
विगेरेथी बजार तथा या कुंमपुर नगरने देवलोक सरखं बनाव्युं. ते वार पडी नंदिवर्धन राजा तथा इंद्र आदिके सोनाना, रूपाना, मणिना, सोनारूपाना, सोनामणिना, रूपामणिना, सोना रूपा मणिना, तथा माटीना, दरेकना एक हजार ने श्राव कलशो तथा बीजी पण सघली सामग्री करावी.
तेवार पी च्युतेंद्रादिक चोस इंद्रे अनिषेक करते बते, ते देवोए करेला कलशो, देव संबंधी प्रजावधी राजाए करावेला कलशोमां पेठा, अने तेथी ते अत्यंत शोजवा लाग्या. पठी नंदिवर्धन राजाए प्रजुने पूर्व सन्मुख बेसामीने देवोए लावेला क्षीरसमुद्रना पाणीथी तथा सर्व तीर्थनी माटीथी तथा सर्व औषधिथी निषेक कर्यो. ते वखते इंद्रो हाथमां जारी तथा था| रिसार्ट सहित जय, जय शब्द करता थका अगामी उजा रह्या. एवी रीते प्रजुने स्नान कराव्या वाद गंधकाषाय्य नामना वस्त्रथी लुबेलुं वे शरीर जेनुं, तथा दिव्य चंदनथी लेपनयुक्त करेलां वे गात्र जेनां, तथा कल्पवृक्षनां पुष्पोनी मालाउँथी मनोहर थयेल वे कंठनो जाग जेनो, तथा जेना बेकामां सोनुं जडेलुं बे एवां स्वच्छ, उज्ज्वल तथा लाखोनां मूल्यनां श्वेत वस्त्रोथ वींटायेलुं बे शरीर जेनुं, तथा हारथी शोजतुं बे वक्षःस्थल जेनुं, तथा बाजुबंध अने कमांथी शोजतो बे जुजदंग जेनो, तथा कुंमलथी शोजता बे गाल जेना एवा प्रभु, श्रीनंदिवर्धन राजाए करावेली तथा पचास धनुष्य लांबी, थाने पचीश धनुष्य पोहोली, तथा बत्रीश धनुष्य उंची, तथा घणा स्तंजोथी शोजती, तथा मणि धने सुवर्ण थी विचित्र लागती, तथा दिव्य प्रजावधी अंदर समायेली ठे देवोए करेली पण पालखी जेमां, एवी चंद्रप्रजा नामनी पालखी मां बेसी ने दीक्षा लेवा माटे चालवा लाग्या. वाकीनुं वर्णन सूत्रकार पोतेज कहे बे.
ते कालने विषे तथा ते समयने विषे जे या शियालानो पहेलो मास अने पहेलुं पखवामीयुं ते माग| शरमासनो कृष्ण पक्ष, तेनी दशमीने दिवसे, पूर्व दिशा प्रत्ये बाया जते पाठलनी पोरसी संपूर्ण होते बते, अने ते पण प्रमाणने प्राप्त होते बते, एटले जरा पण न्यूनाधिक नहीं, एवी रीते होते ते सुव्रत नामना
सुवो०
॥ ६५ ॥
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चित्र ३१
महोत्सवनो बरघोडी.
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दिवसे, विजय नामना मुहर्ते, करेल ने उहनो तप जेमणे, तथा शुभ वेश्या जेमनी, एवा ते 8 प्रजु आगल वर्णवेली चंउप्रजा नामनी पालखीमां, पूर्व दिशा सन्मुख सिंहासन पर बेग. त्यां प्रजुनी 3 जमणी बाजुए कुलनी महत्तरिका हंसनां लक्षणे करी युक्त एवा पटशाटकने लश्ने बेठी, तथा डाबी वाजुए प्रजुनी धावमाता दीक्षानां उपकरणो लश्ने बेठी, तथा पालना नागमां एक तरुण है स्त्री उत्तम श्रृंगार पहेरीने तथा हाथमां श्वेत पत्र लश्ने वेठी, ईशानखुणामां एक स्त्री संपूर्ण नरेलो कलश लश्ने बेठी, अग्निखुणामां एक स्त्री मणिमय एवो हाथमां पंखो लश्ने सिंहासन पर बेठी; पठी नंदिवर्धन राजाए हुकम करेला माणसो जेटलामां ते पालखी उपाडे , तेटलामां
शक्रेझे दक्षिण तरफनी उपरनी वाहा उपामी, ईशाने उत्तर तरफनी उपरनी वाहा उपामी, च६मरेंझे दक्षिण तरफनी नीचेनी वाहा उपामी, तथा बलींजे उत्तर तरफनी नीचेनी वाहा नपामी,
श्रने बाकीना जवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क तथा वैमानिकना इंसो के जे चलायमान थतां कुंमल| आदिक श्राजरणोए करीने मनोहर लागता हता, तथा पंच वर्णनां पुष्पोनी वृष्टि करता हता,3 तथा उंछनि वगामता हता, ते पोतपोतानी योग्यता प्रमाणे ते पालखीने उपामता हवा. पनीर शक्रेज तथा ईशाने ते वाहाने बोडीने प्रजुने चामर वीजवा लाग्या. एवी रीते प्रजु पालखी पर चमते उते देवोए करीने गगनतल शरद् ऋतुमा रहेला पद्म सरोवर सरखं, प्रफुल्लित थयेला । अलशीना वन सरखं, करेणना वन सरखं, चंपाना वन सर तथा तिलकना वन सरखं मनोहर
रीते शोजवा लाग्यु. तेम अंतर रहित वागतां एवां नंना, नेरी, मृदंग, उंति तथा शंख श्रा-2 ४/दिक अनेक वाजित्रोना नादो आकाशतलमां विस्तार पामया लाग्या, अने ते नादथी नगरनी है
स्त्री पोतपोतानां कार्यो तजीने श्रावती थकी पोतानी विविध प्रकारनी चेष्टाउँथी माणसोने श्रा-2 हैश्चर्य करती हवी. कां ने के त्रण वानां स्त्रीने ववल . एक जगमो, वीजें काजल, त्रीजेंसिंपूर.
वली पण त्रण वानां बीजां अत्यंत ववन . एक झूध, बीजो जमाइ श्रने त्रीजुं वाजूं. तेनी चे.
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कपाटा नीचे प्रमाणे . केटलीक बालिका उत्सुकपणाथी पोताना गालो पर काजलना अंको करती/81
हवी, अने आंखमां कस्तुरी नाखती हवी, गलामा नूपुर पहेरती हवी, तथा पगमां कंगो पहे. ॥६६॥
दरती हवी. कोइए तो केस पर हार पहेयों, तथा घमघमती घुघरीवालो कंदोरो गलामां पर्यो,
तथा गोशीर्ष चंदनथी पगने रंग्या, अने अलताथी शरीरने रंग्यु. कोश्क बालिका तो अर्ध स्नान करेली, अने तेथी गलतुं ले पाणी एवी तथा बुटा डे केश जेणीना एवी पहेला त्रास, तथा जाएया बाद कोने हास्य न करावती हवी? कोश्क मुग्ध बालानां वस्त्रो ढीलां थ खसी जवाथी तेणी हाथमां केवल नामी पकमीनेज रहेली हती, तोपण सघला लोको प्रजुने जोवामां लागते है। बते तेणीने जरा पण शरम लागी नहीं. कोश्क तरुण स्त्री तो उत्सुकपणाथी पोताना रडता बालकने तजीने, तथा हाथमां तेने बदले वीलामाने लश्ने, केम पर बेसामीने रस्ते जती थकी कोने हास्य नहीं करावती हवी? कोश्क स्त्री तो कहेवा लागी के प्रचुर्नु अहो महा रूप ! अहो तेज ! श्रहो शरीरनुं सौजाग्य केवु ने!!! हुं तो विधात्राना हाथनी था चतुराश् जोइ तेनां दुःख ललं. है। विकखर श्रयेल ने कपोल जेणीना एवी कोश्क स्त्री तो प्रजुनु मुख जोवामां अत्यंत लोलुप थवाथी । पोतानां पमी गयेला सोनानां श्रानूषणोने जाणती पण न हती. कोश्क चंचल नेत्रवाली स्त्री तो पोताना हस्तकमलथी पवित्र मोती उमामवा लागी अने केटलीक तो मंगलोने कोमल स्वरथी
गावा लागी, तथा केटलीक तो हर्षथी संपूर्ण थश्ने नाचवा लागी. 4 एवी रीते नगरनी स्त्रीउथी जोवातो ने विजवनो प्रकर्ष जेमनो एवा प्रजुनी अगामी पहेला है। है तो रत्नमय अष्ट मंगलो चालतां हवा. ते नीचे प्रमाणे, खस्तिक, श्रीवत्स, नंदावर्त्त, वर्धमानक, 27
नासन, कलश, मत्स्ययुग, श्रने दर्पण; तेनी पड़ी पूर्ण कलश, कारी, चामर, त्यार बाद मोटी पताका, 31 उत्र, मणि अने स्वर्णमय पादपीठवावु सिंहासन, त्यार बाद स्वार विनाना एकसो आठ उत्तम हाथी, तेटलाज घोमा, त्यार बाद तेटलाज घंटा अने पताकाए करीने मनोहर लागता अने शस्त्रया पूर्ण रथो,
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तेटलाज उत्तम पुरुषो, ते वार पठी अनुक्रमे घोमा, हाथी, रथ तया पालानां सैन्यो, ते वार पछी एक हजार नानी पताकाउंथी मंदित थयेलो तथा एक हजार जोजन जंबो एवो ध्वज, ते वार पठी खड्डू धरनाराउं, ते वार पढी जालांवालाई, ते वार पढी ढालवालाई, ते वार पढी हास्य करावनाराजे, ते वार पढी नर्त करनाराउं, ते वार पछी जय जय शब्द करती कंदर्पिकार्ड, ते वार पढी घणा उग्रकुलना जोगकुलना राजार्ज, क्षत्रियो, कोटवालो, मांगलिको, कौटुंबिको, शेवी - चार्ज, सार्थवाहो, देवो, देवी विगेरे प्रभुनी अगामी चालता हता, ते वार पढी स्वर्ग, मृत्युलोक धने पातालमा रहेनारा देव, मनुष्य अने असुरो सहित एवी पर्षदाए करीने सारी रीते अनुग मन करातुं तथा अगामी शंख वगामनाराउं, चक्र धारण करनाराउं, हल धारण करनारा एटले गलामां सोनानां लांगलना थाकारनां श्राभूषण धरनारा जट्ट विशेषो, मुखयी चाटु वचन बोलनारा माणसो, पोतानी खांध पर बेसाडेल बे माणसो जेईए एवा माणसो, तथा मागध एटले बिरुदावली बोलनारा माणसो, तथा घंटा लइ चालनारा राउलीच्या माणसो, ते सघलाउंथी वींटायेला प्रजुने | कुलना वकिल यादिक खजनो, इष्टादिक विशेषणोवाली वाणीए करीने प्रजुने अभिनंदता थका बोलवा लाग्या के "जय जय नंदा, जय जय जदा जहं ते" एटले हे समृद्धिमन् ! तथा हे जडकारक ! तमे । जय पामो, तमने जड यार्ड तथा अजित एवी इंडियाने अतिचार रहित एवां ज्ञान, दर्शन, चारित्रयी वश करो. तथा तमोए वश करेल एवा श्रमणधर्मने तमे पालो. वली हे प्रभु ! तमोए विघ्नने जीत्या बे, तोपण तमे सिद्धि मांहे जइ वसो अर्थात् तमे त्यां मोक्षमां अंतराय रहित रहो. तथा रागद्वेषरूपी मल्लनो तमे निश्चयपूर्वक नाश करो. शाथी ? तो के बाह्य अने अन्यंतर एवां त पथी तथा संतोष ने धैर्यतामां प्रवीण थया थका या कर्मोरूपी शत्रुनुं मर्दन करो. शाथी ? | तो के उत्तम एवा शुक्ल ध्यानथी. वली हे वीर ! अप्रमत्त थया थका त्रण लोकरूपी जे मल्लयुद्धनो खामो, तेनी अंदर श्राराधनपताकाने तमे ग्रहण करो. तथा तिमिर रहित एवं अनुपम जे के
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॥ ६७ ॥
वलज्ञान तेने मेलवो ने मोक्षरूपी परम पदने तमे प्राप्त था. केवी रीते ? तो के जिनेश्वर प्रजुए कहेला अकुटिल मार्ग वमे करीने. शुं करीने ? तो के परिषहोनी सेनाने हणीने तथा हे क्षत्रियने विषे वृषन समान ! तमे जय पामो, जय पामो तथा घणा दिवसो सुधी, घणां पखवामीयांर्ड सुधी तथा घणा महिनाउँ सुधी, तथा घणी एवी हेमंत यादिक बे मासना परि माणवाली रुतु सुधी, तथा घणी उमासी सुधी, तथा घणां वर्षो सुधी, उपसर्गोथी निर्भय थया थका, विजली, सिंह यादिकना जयोने कमाए करीने सहन करता थका तमे जय पामो. वली | तमारा धर्ममां विघ्नोनो अभाव थाओ. एम कही खजन लोको जय जय शब्दो करवा लाग्या. ते वार पडी भ्रमण जगवंत श्री महावीरस्वामी क्षत्रियकुंम नगरनी मध्यमां थश्ने ज्यां ज्ञातखंग नामे वन हतुं तथा ज्यां अशोक वृक्ष दतुं, त्यां श्राव्या. केवी रीते श्राव्या? तो के हजारो एवां नेत्रोनी पंक्ति थी जोवाता, तथा वारंवार जोवातुं वे सौंदर्य जेमनुं एवा; वली केवा ? तो के श्रेणिबंध थ येला लोकोनां मुखनी हजारो गमे पंक्तिथी वारंवार स्तुति कराता; वली केवा ? तो के हजारो गमे हृदयनी पंक्तिथी तमे जय पामो, जीवो, इत्यादि ध्याने करीने समृद्धिने पमामाता; वली केवा ? ' के हजारो गमे मनोरथोनी पंक्तिथी विशेष प्रकारे स्पर्श कराता, अर्थात् आपणे एमना | सेवक थइए तो सारं, एवी रीते लोकोथी चिंतवाता; वली केवा ? तो के कांति, रूप अने गुणोए) करीने प्रार्थना कराता, अर्थात् स्वामिपणाए करीने वांग कराता; वली केवा ? तो के श्रांगली - उनी हजारो पंक्तिथी देखामाता; वली केवा ? तो के जमणा हाथथी हजारो स्त्री पुरुषोना नम|स्काराने ग्रहण करता; वली केवा ? तो के जवनोनी हजारो गमे श्रेणिउने उल्लंघन करता; वली केवा ? तो के वीणा, तलताल, वादित्र, गीत, वादन विगेरेना शब्दोथी, तथा मधुराने मनोहर एवा जय जय शब्दना उद्घोषणथी मिश्रित थयेला एवा अति कोमल मनुष्योना शब्दे करीने सावधान यता तथा, समस्त बत्रादिक राज्य चिह्ननी कलिए करीने तथा, धानूषण यादिकनी सर्व प्र
सुबो०
॥ ६५ ॥
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कारनी कांतिए करीने, तथा हाथी, घोमा श्रादिक सर्व प्रकारनी सेनाए करीने, तथा शिबिकादिक सर्व प्रकारनां वाहने करीने, तथा सघला महाजनोना मेलापे करीने, तथा सर्व प्रकारना श्रादरे करीने, तथा सर्वप्रकारनी संपदाए करीने,तथा समस्त शोजाए करीने, तथा सर्व हर्षश्री थता उत्सुकपणाए क-18 रीने, तथा सर्व स्वजनोना मेलापे करीने, तथा अढार एवी निगमादिक नगरमा रहेती प्रजाए करी- हूँ
तथा सर्व नाटकोए करीने, तथा सर्व तालचरोए करीने, तथा सर्व अंतःपुरे करीने, तथा सर्व पुष्प गंध,माख्य अने अलंकारोनी शोनाए करीने, तथा सर्व वाजित्रोना एका मलता एवा शब्दे अने प्रति-11 रवे करीने, तथा मोटी झझिए करीने,तथा मोटी द्युतिए करीने, तथा मोटा बल एटले सैन्ये करीने, त-18 था मोटा वाहने करीने, तथा मोटा समुदये करीने, तथा श्रेष्ठ वाजित्रोनुं समकाले वागवू डे जेमां एवार शंख, ढोल, पटह, नेरी, कबरी, खरमुखी, हुमुक अने देवउंसुलिना थता शब्दना प्रतिशब्दरूप मोटा है शब्दे करीने युक्त,एवाप्रकारनी झझिथी व्रत लेवा माटे जता प्रजुनी पाउल चतुरंगी सेनाथी वीटायेलो, तथा मनोहर बत्र चामरथी शोजतो एवो नंदिवर्धन राजा पण जवा लाग्यो. उपर वर्णवेला श्रामम्बरे/ करीने युक्त एवा जगवान् क्षत्रियक्ामग्राम नगरना मध्य जागमा थश्ने नीकले , अने नीकलीने ज्यां ज्ञातखंमवन नामे उद्यान दे श्रने जे उद्यानमां उत्तम अशोक नामे वृदबे त्यां प्रनु आव्या अने आवीने ते वृदनी नीचे प्रनुए पालखीने स्थापन करावी. तथा ते स्थापन करावीने तेमाथी प्रजु नीचे उता. एम करीने प्रत्तु पोतानी मेलेज घरेणां, माला प्रमुख श्रानूषण श्रादिकने उतारवा लाग्या. ते एवी रीते के श्रांगलीएथी वीटी, हाथ परथी वीरवलय, जुजा परथी बाजुबंध, कंथी। हार, कानथी कुंमल तथा मस्तक परथी मुकुट पण उतार्यो.ते सघलां आनूषणो कुलनी महत्तराए टू हंसलक्षणवाली सामीमां लीधां. ते लश्ने तेणीए "इख्खागकुलसमुप्पन्नेसि णं तुम जाया” इत्यादि है पाठ कह्यो. एम कही प्रजुने वांदीने ते एक बाजु खसी गश्.ते वार पड़ी प्रजुए एक मुष्ठिथी माढी| मुबना वालोनो, तथा चार मुष्ठिथी मस्तक परना केशोनो, एम पंच मुष्ठिथी पोतानी मेलेज लोच
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कल्प
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॥६
को. तेम करीने पाणी पीधा वगर बहना तप सहित, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र साथे चंजनो योग है
आवते ते इंजे मावा खन्ना पर धारण करेला एक देवष्य वस्त्रने लश्ने प्रजु एकला एटले तू ॥
रागद्वेषनी सहाय विना, अद्वितीय एटले जेम षनदेव प्रजुए चोसठ हजार राजा साथे, मल्लिनाथ अने पार्श्वनाथजीए त्रणसो साथे, वासुपूज्यजीए उसो साथे, तथा वाकीना जिनेश्वरोए जेम एक हजार साये दीक्षा लीधी हती, तेम वीर जगवाननी साथे कोइ पण नहोतुं, तेथी अद्वितीय एटले एकाकी, तथा व्यथी केशलोचे करीने मुंडित थयेला तथा नावथी है क्रोधादिकने पूर करवाथी मुंमित थयेला घरथी नीकली श्रागारीपणानो त्याग करी एटले अना
गारताने (साधपणाने प्राप्त थया. तेनो विधि नीचे मुजब जाणवो. एवीरीते उपर कहेवा प्रमाणे कयों ने पंचमुष्टि लोच जेणे एवा ते प्रजु ज्यारे सामायिक करवाने श्छता हवा, त्यारे इंजे सघलो ।
वाजिन श्रादिकनो कोलाहल बंध कराव्यो. त्यार पडी प्रजुए "नमो सिकाणं" इत्यादि कथनपूर्वक हूँ|"करेमि सामाश्यं सव्वं सावऊं जोगं पञ्चकामि” इत्यादि पाठ जच्चारण कर्यो; पण "ते" एवो पाठ
बोल्या नहीं, केमके एवो तेमनो कल्प कहेतां श्राचार बे. एवी रीते चारित्र ग्रहण कर्यु के तुर-है
तज प्रजुने चोथु मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न थयु. ते वार पठी सादिक देवो प्रजुने वांदीने नंदी18|श्वर छीपनी यात्रा करीने पोतपोताने स्थानके गया. टू। एवी रीते महोपाध्याय श्री कीर्ति विजयगणिना शिष्योपाध्याय श्री विनयविजयगणिए रचेली है कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टीकाना गुजराती भाषांतरमां पांचमो क्षण समाप्त थयो. श्रीरस्तु.
॥ षष्ठं व्याख्यानं प्रारज्यते ॥ । ते वार पड़ी चार ज्ञानवाला लगवान् बंधुवर्गनी रजा लश्ने विहार करवा लाग्या. बंधुवर्ग 5६॥ पण ज्यांसुधी प्रजु दृष्टिगोचर रह्या, त्यांसुधी त्यां रीने “हे वीर" हवे अमे तमारा विना शून्य वन सरखा घेर प्रत्ये केम जश्शुं ? वली हे बंधु ! कोनी साथे अमे वातचित करीने सुख नोग
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वीशुं ? तथा हवे कोनी साथे जोजन करीशुं ? वली हे आर्य ! सघलां कार्योंमां हे वीर ! हे वीर ! एम बोलावीने तमारां दर्शनथी तथा अतिशय प्रीतिथी श्रमे हर्ष पामता हता. हवे श्राश्रय विनाना श्रमे कोनो आश्रय लइशुं ? वली हे बांधव ! श्रमारी यांखोने अमृतांजन सरखुं तमारुं अतिप्रिय दर्शन हवे मोने क्यारे थशे ? वली हे उत्तम गुणोए करीने मनोहर ! रागरहित चित्तवाला एवा पण तमे मोने क्यारे संजालशो ? एम बोलता थका अश्रु सहित खोवाला थया थका केटलाक ! कष्टथी पोताने घेर गया.
हवे प्रजुने दीक्षामहोत्सव वखते देवोए जे गोशीर्षचंदन श्रादिकथी तथा पुष्पोए करीने पूज्या हता, तेनो सुगंध चार महीनाथी पण अधिक प्रजुना शरीर पर रह्यो हतो, थने ते गंधथी | खेंचाइने जमराठे श्रावीने प्रजुने मंख देवा लाग्या. केटलाक युवानीयार्ड प्रजु पासे ते सुगंधी मागवा लाग्या, पण प्रभु तो मौन रह्या, तेथी ते क्रोधायमान थइने प्रजुने चाकरा उपसर्गो करता। हवा. स्त्रीर्ड पण प्रजुने अद्भुत रूपवाला तथा सुगंध युक्त शरीरवाला जोइने कामातुर थ थकी अनुकूल उपसर्गो करती हती, पण प्रभु तो मेरुनी पेठे स्थिर थया थका ते सघलुं सहन करता थका विहार करवा लाग्या. हवे ते दिवसे वे घमी दिवस बाकी हतो, त्यारे प्रभु कुमारग्राम प्रत्ये पहोंच्या, तथा त्यां रात्रिए कायोत्सर्गध्यानमा रह्या.
एटलामा कोइ गोवाली आखो दिवस हलमां बलदोने जोगीने संध्यावखते तेने प्रजुनी | पासे मूकीने गायो दोवा माटे घेर गयो, अने ते वेलो तो वनमां चरवा माटे चाया गया. पढी ते गोवालीए यावीने प्रजुने पूब्धुं के हे आर्य ! मारा बलदो क्यों बे ? पण प्रभु बोल्या नहीं, त्यारे ते जाएयुं के थाने खबर नथी, तेथी तेउनी वनमां ते शोध करवा लाग्यो. पढी बलदो तो थोमी रात्रि बाकी रही त्यारे पोतानी मेलेज प्रभु पासे याव्या. ते वखते गोवाली पण त्यां श्राव्यो, अने बलदोने जोइ तेणे विचार्य के हो ! याने खबर हती, तोपण तेथे मने याखी रात जमाव्यो
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कल्पन 16एम विचारी क्रोधथी रासमी लइ मारवा माटे ते प्रजु तरफ दोड्यो. एटलामांझे ते वृत्तांत अव-181 सुबो०
विज्ञानथी जाणीने गोवालीश्राने श्रावीने शिक्षा करी. ॥६ ॥
| पठी इथे प्रजुने विनंति करी के हे प्रजु ! तमोने घणा उपसर्गो थवाना , माटे चार वर्ष सुधीर वैयावृत्य माटे हुँ आपनी पासेज रहुं. त्यारे प्रजुए कह्यु के हे देवें ! एवं कदापि थयुं नश्री, थतुं । नश्री, अने शशे पण नहीं, केमके तीर्थंकरो को देवें अथवा असुरेंनी सहायथी केवलझान । उपार्जन करता नथी, पण फक्त पोतानांज पराक्रमथी केवलज्ञान उपार्जन करे बे. त्यारे इंछ पण मरणांत उपसर्गने टालवा माटे प्रजुनी मासीना पुत्र सिद्धार्थ व्यंतरने प्रनुनी वैयावृत्य माटे स्थापीने । पोते देवलोके गयो. हा ते वार पछी प्रजुए सवारमा कोसाग नामना सन्निवेशमां बहुल नामना ब्राह्मणने घेर "मारे पात्र
सहित धर्म प्ररूपवो” एम विचारी पहेलुं पारणुं त्यां गृहस्थना पात्रमा परमान्नथी कर्यु ते वखते चेलो-3 रक्षेप, गंधोदकनी वृष्टि, इंसुनिनो नाद, "अहो दानमहो दानं” इत्यादि उद्घोषणा, तथा वसुधारानी वृष्टि, एम पांच दिव्यो प्रगट थयां. | त्यांथी प्रजु विहार करीने मोराक नामना सन्निवेशमा पुश्त नामना तापसना आश्रममां गया. हत्यां सिद्धार्थ राजानो मित्र एवो ते कुलपति प्रजु पासे श्राव्यो. प्रजुए पण प्रर्वोच्यासथी मलवा
माटे हाथ पहोला कर्या. पड़ी तेनी प्रार्थनाथी प्रजु पण एक रात्रि तिहां रहीने पोते निरागी । है चित्तवाला हता, पण तेना आग्रहथी त्यां चोमासुं रहेवार्नु कबुल करीने प्रनु बीजी जगोए वि-है।
हार करवा लाग्या. आठ मास सुधी विहार करीने पाबा प्रजु वर्षाऋतु गालवा माटे त्यां आव्या.*
तथा त्या आवीने कुलपतिए आपेली घासनी फुपमीमा रह्या. त्यां बहारना नागमाथी घास नहीं | मलवाथी अन्य तापसोए पोतपोतानी फुपमीठमांश्री निवारण करेली गायो प्रजुश्री मंमित थयेली|8
कुंपडीने निःशंकपणाथी खावा लागी. त्यारे ते कुंपमीना स्वामीए कुलपति श्रागल तेनी राव
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खाधी. त्यारे कुलपति पण प्रजुने श्रावी कहेवा लाग्यो के हे वर्धमान ! पदी पण पोतपोताना मालानुं रक्षण करवामां दद होय , थने तुं तो राजपुत्र थश्ने पोताना श्राश्रमर्नु रक्षण करवाने केम अशक्त थाय बे ? त्यारे प्रनुए विचायु के मारा यहीं रहेवाश्री श्रामने श्रप्रीति थाय , एम विचारी असाम सुदि पूनमश्री मांगी पंदर दिवसो गया बाद वर्षाकालमां पण प्रनु पांच अनिग्रहो लश्ने अस्थिकग्राम प्रत्ये गया. ते पांच अनिग्रहो नीचे प्रमाणे जाणवा. अप्रीति उपजे एवा घरमा मारे वास करवो नहीं, हमेशां प्रतिमा धारीने रहे, गृहस्थीनो विनय करवो नहीं, मौन रहे, तथा हाथमांज थाहार करवो. __ हवे एवी रीते श्रमण जगवंत श्री महावीर खामी एक वर्ष भने एक मास सुधी वस्त्रधारी रह्या, तथा ते वार पड़ी वस्त्ररहित रह्या, तथा हाथरूपीज पात्रवाला रह्या. प्रजुनुं वस्त्ररहितपणुं| नीचेना वृत्तांतथी जाणवू. | प्रजुए दीक्षा लीधा बाद एक वर्ष अने एक मास गया बाद दक्षिणवाचाल नामना नगरनी पासे सुवर्णवाबुका नामनी नदीने किनारे कांटामां जरावाथी अर्धं देवष्य वस्त्र पडी जते । बते प्रजुए सिंहावलोकनथी तेनी पाठल दृष्टि करी. अहीं केटलाको कहे डे के ममताश्री प्रजुए है। पाउल जोयु; अने वीजा केटलाको कहे डे के ते स्थं मिल जगो पर पड्यु के अस्थं मिल जगो पर पड्युं, ते जोवा माटे प्रजुए पालुं वाली जोयु; अने केटलाको कहे जे के श्रमारी संततिमां वस्त्र पात्र सुलन या दुर्लन थशे, ते जोवा माटे पालुं वाली जोयु, तथा केटलाक वृको वली एम कहे पाने के कांटामां वस्त्र जरायु, तेथी पोतानुं शासन कंटकबहुल थशे एम विचारी पोते निर्लोनी
होवाथी ते अर्धं वस्त्र प्रजुए पालुं लीधुं नहीं.. । हवे ते वस्त्र प्रजुना पिताजीना मित्र एवा कोश् ब्राह्मणे लीधुं, अने अर्धं तो प्रजुए तेने पहेलांज थापी दीधुं हतुं. ते वृत्तांत नीच प्रमाणे जाणवू.
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कल्प०
॥ १० ॥
ब्राह्मण दरी हतो, पण प्रभु ज्यारे वार्षिक दान देता हता, त्यारे ते परदेशमां गयो हतो. त्यां पण दुर्भाग्यपणाथी कं नहीं मलवाथी घेर पाढो आव्यो, त्यारे स्त्रीए तेनी तर्जना करी के दे अजाग्यमां शिरोमणि ! ज्यारे श्रीवर्धमान प्रजुए सुवर्णनो वरसाद वरसाव्यो त्यारे तुं परदेश गयो हतो, अने हवे पाठो पण तुं निर्धनज रहीने श्राव्यो, माटे दूर जा, मोढुं देखा मां. - थवा तो हजु पण ते जंगम कल्पवृक्ष सरखा प्रभु पासे ज याचना कर, के जेथी ते तारुं दरिडीपणुं हरे; केमके जेणे पहेलां दान दीघां ते, ते फरी पण आपवाने समर्थ श्रशे, केमके पाणीना अर्थी माणसो सुकाइ गयेलो एवो पण नदीनो मार्ग खोदे बे. एवी रीतनां स्त्रीनां वाक्योथी प्रेरायेलो ते ब्राह्मण प्रजुनी पासे थावीने विनंति करवा लाग्यो के हे प्रभो ! तमे जगतना उपकारी बो, तमोए सघला जगतनुं दारिद्र्य निर्मूल कर्तुं बे, घने हुं निर्मागी ते वखते त्यां नहीं हतो, अने मने परदेशमां जमतां थका पण कं मत्युं नहीं, माटे पुण्य रहित तथा | विनानो ने निर्धन एवो हुं जगतनां वतिने आपनार एवा आपने शरणे श्राव्यो बुं, अने खाखा जगतनुं दारिद्र्य हरनार एवा आपने मारुं दारिद्र्य हरवुं ए शुं हिसावमां बे ? केमके जरी दीधेल वे सघलुं महीतल जेणे, तथा अद्भुत शक्तिवाला एवा वरसादने एक तुंबकुं नरवा माटे शुं प्रयास पमी शके तेम बे ? एवी रीते याचना करता करता एवा ते ब्राह्मणने करुणावंत जगवाने श्रधुं देवडूष्य वस्त्र आयुं. अहीं केटलाक याचार्यो कहे बे के एवा दानेश्वरी जगवाने पण प्रयोजन विनाना वस्त्रनुं पण जे अर्धं दान दीधुं, ते प्रजुनी संततिमां थनारी वस्त्रपात्रनी मूर्ग सूचवे बे, अने वीजा कहे बे के पहेलां जे विप्रकुलमां उत्पन्न थया हता, तेना ते संस्कार बे.
आश्रय
हवे ते ब्राह्मणे ते वस्त्र लइने तेना बेकार्ड वणवा माटे एक वणकरने बताव्यं. त्यारे ते वणकरे पण कथुंके हे विप्र ! तुं तेज प्रजुनी पाउल दजु जा. ते निर्मम अने करुणावंत एवा प्रभु तने बीजुं पण श्रधुं वस्त्र यापी देशे अने पढी हुं तने ते एवी रीते जोमी श्रापीश के जेथी
सुवो०
॥ ७० ॥
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ते अक्षत जेवू देखाशे अने तेनुं एक लाख सोनामोहोर जेटर्बु मूख्य श्रशे, अने पनी आपणे ते धन बहेंची लश्शु, तेथी आपण वन्नेनुं दारिद्य चूर्ण थशे. एवी रीते तेणे प्रेरणा करेलो ब्राह्मण फरीने पालो प्रनु पासे आव्यो, पण लहाथी मागणी कर्या विना एक वर्ष सुधी प्रजुनी पाउन न-2 म्यो,अने पबी पोतानी मेले पमी गयेधुं ते अर्धं वस्त्र लश्ने चालतो थयो; माटे एवी रीते प्रजुए सवस्त्रधर्म | प्ररूपवा माटे एक वर्ष अने एक मास सुधी वस्त्र धारण कर्यु, अने सपात्रधर्म स्थापवा माटे पहेलु पा-17 रणुं पण गृहस्थना पात्रमा प्रजुए कर्यु, श्रने त्यार पठी डेक जीवित पर्यंत प्रज्जु वस्त्र तथा पात्र विना रह्या. ___एवी रीते विहार करता एवा प्रनुनी को दिवसे गंगाने कांवे सुक्ष्म माटीवाला कादवमां प्र
तिबिंबित थयेली पदपंक्तिमा चक्र, ध्वज, अंकुश आदिक लक्षणोने जोश्ने पुष्पक नामनो साहै मुछिक विचारवा लाग्यो के अहींथी कोइ चक्रवर्ती एकाकी चाल्यो जाय , माटे जश्ने हुं तेनी
सेवा करूं, के जेथी मारो मोटो उदय थाय. एम विचारी तुरत ते पगलांने अनुसारे चालीने ते
प्रजुनी पासे श्राव्यो, अने तेमने जो विचारवा लाग्यो के अरे ! हुं तो फोकटज मोटुं कष्ट वे४ीने पण सामुजिकशास्त्र नएयो; जे श्रावी रीतनां लक्षणयुक्त थश्ने पण साधु थर व्रतकष्टने है
आचरे ; माटे सामुजिकशास्त्रनुं पुस्तक तो हवे मारे पाणीमांज बोलवू. | एटलामां दीधेल के उपयोग जेणे एवो इंच तुरत त्यां श्रावीने प्रजुने नमस्कार करीने ते पुप्पकने कहेवा लाग्यो के हे सामुडिकवेत्ता ! तुं खेद कर नहीं; तारं शास्त्र सत्यज बे; आ ल-18 दणश्री या प्रनु त्रणे जगतने पूजनीक, तथा सुरासुरना पण स्वामी, तथा सर्व प्रकारनी उत्तम संपदाना आश्रयनूत एवा तीर्थंकर थशे; केमके आ प्रजुनी काया परसेवाना मेल रहित , श्वासोश्वास सुगंधी ने, रुधिर तथा मांस गायना ध सरखां श्वेत रंगनां बे, तथा इत्यादिक वाह्य अने अन्यंतर एवां एमनां अनेक सुलक्षणोने गणवाने कोण समर्थ डे ? इत्यादिक तेने 3 कहीने, तथा तेने मणि, सुवर्ण आदिकथी समृशिवान् करीने इंश पोताने स्थानके गयो. ते सा
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कल्प
मुडिकवेत्ता पण हर्ष पामीने पोताने देश गयो, तथा प्रजु पण बीजी जगोए विहार करवा लाग्या. सुबोग
है हवे श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रजु बार वर्ष उपरांत कांथोमा वखत सुधी नित्य कायाने वोस॥ १॥ रावीने अने शरीर उपरथी ममताने तजीने रह्या हता, एवामां जे कोश् उपसर्ग तेमने उपज्या |
हता ते जे श्रा कहेवामां आवे रे ते देवे करेवा, मनुष्ये करेला, जोगप्रार्थनारूप अनुकूल उप-131 सों, तामनादि प्रतिकूल उपसर्गो, ते उत्पन्न श्रयेला उपसर्गोने प्रजुए निर्जयपणे सम्यक् प्रकारे सहन कर्या, क्रोध कर्या विना खम्या, दीनता कर्या विना सहन कर्या अने निश्चलपणाथी है। सहन कर्या. हवे प्रजुए देव संबंधी, मनुष्य संबंधी तथा तिर्यंच संबंधी अनुकूल तथा प्रतिकूल विगेरे ।
जे उपसर्गो सहन कर्या , तेनुं वर्णन करे . 2ी प्रजु पहेवू चोमासुं मोराक नामना सन्निवेषथी आवीने शूलपाणि यदना चैत्यमा रह्या. ते यद । पूर्व नवमां धनदेव नामे वेपारीनो बलदहतो. ते वेपारी नदी उतरतो हतो, ते वारे तेनां पांचसो गामां कादवमां खुंची बेगं. त्यारे जवसायमान थयुं ने वीर्य जेनुं एवा ते वृषने मावी बाजुए जोमाश्ने | विचार्यु के जो माराज कमका करीने बन्ने पमखे मने जोडे, तो हुँ एकलोज सघलांगामां खेंची ला-10 j, एम विचारतां तेणे सघलां गामां कादवमांथी खेंची काढ्यां. एवी रीते पराक्रम कर्याथी ते बलद शरीरना सांधा त्रुटी जवाथी श्रशक्त थइ गयो. त्यारे तेने अशक्त जोश्ने धनदेवे वर्धमान नामे गाममां जश् गामना मुखीउने तेने माटे घास पाणी विगेरेना पैसा आपीने ते बेलने त्यां मूक्यो,
पण ते मुखीए तेनी सारसंजाल लीधी नहीं, तेथी नूख अने तृषाथी पीमित थ शुज अध्यअवसायना योगथी मृत्यु पामीने व्यंतर थयो. त्यां तेणे श्रागला जन्मनो व्रतांत याद लावीने कोअधथी ते गाममां मरकी फेलावीने अनेक माणसोने मारी नाख्या. "केटलाकनो ते संस्कार थाय"|| एम विचारी ममदां तेमनां तेम पमी रहेवाथी तेनां हामकांना समूह उपरथी ते गामनुं श्रस्थिकग्राम एq नाम प्रसिद्ध थयु. पनी बाकी रहेला लोकोए तेनुंआराधन करवायी तेणे प्रत्यद थ
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इने पोनानुं देवल तथा प्रतिमा करावी. त्या माणसो तेनी हमेशां पूजा करता हता. नगवान् पण तेने प्र-
11 तिबोधवा वास्ते तेज चैत्यमां आव्या. लोकोए प्रजुने कर्वा के था मुष्ट यद पोताना चैत्यमां जे रात्रि रहे की, तेने मारी नाखे , एम लोकोए वार्या उतां पण प्रजु त्यांज रात्रि रह्या. तेणे प्रजुने दोज पमामवा माटे
पृथ्वी फाटी जाय एवो अट्टहास कर्यो.पली हाथीनुअने सर्पनुं रूप करीने फुःसह उपसर्गो कर्या, तोपण : प्रन्तु तो जरा पण दोजायमान थया नहीं. पठी अन्यनो जीव जाय एवी तेणे प्रजुने मस्तकमां, कानमां, नासिकामां, चक्कुमां, दांतमां, पीठमां नखमां विगेरे अनेक सुकुमाल स्थानकोमा वेदना करवा मांगी, तेथी पण प्रजुने निष्कंप जोश्ने ते प्रतिबोध पाम्यो. तेज वखते सिद्धार्थ व्यंतर पण त्यां श्रावी तेने कहेवा लाग्यो के दे निर्जागि, उष्ट, शुलपाणि ! तें था शुं आचर्यु ? जे तें इंछने पण, पूजनीक एवा प्रजुनी आशातना करी. जो श्रा वातच जाणशे, तो तारा स्थाननो पण ते नाश करशे. टू ते सांजली शूलपाणि पण नय पामीने प्रजुने पूजवा लाग्यो, तथा तेमनी आगल गायन अने नाच है करवा लाग्यो. ते सांजली लोकोए विचार्यु के आणे ते प्रजुने मार्या , तेथी गाय , अने नाचे जे.
हवे त्यां प्रजुए एक देश ऊणा एवा रात्रिना चार पोहोरो सुधी जे अत्यंत वेदना सहन करी,16 तेथी प्रनाते तेमने क्षणवार निझा श्रावी. ते वखते प्रजु उना थकांज दश स्वप्नो जोश्ने जाग्या.18 हवे प्रनात थयुं एटले लोको एकठा थया. ते वखते त्यां उत्पल अने इंजशर्मा नामे अष्टांग निमित्तना जाणनारा बेनिमित्तिा पण श्राव्या. ते सघलाए प्रजुने दिव्य गंध, चूर्ण, पुष्प
थादिकथी पूजित जोश्ने हर्ष सहित नमस्कार को... 8. पठी उत्पल निमित्ति बोल्यो के हे नगवन् ! श्रापे रात्रिने वेडे जे दश स्वप्नो जोयां ले तेनुं फल
श्राप तो जाणो बगे, तोपण हुं कहुं बु. जे आपे ताल पिशाचने हएयो, तेथी करीने तमो थोमाज वखहै तमां मोहनीय कर्मने हणशो. तथा सेवा करतुं एवं आपे जे श्वेत पदी जोयु, तेथी तमो शुक्ल
ध्यानने धारण करशो. जे तमे चित्र कोकिलने सेवा करतो जोयो, तेथी तमो द्वादशांगीनो अर्थ
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विस्तारशो. जे तमोए गायोनो वर्ग सेवा करतो जोयो, तेथी साधु, साध्वी, श्रावक श्रने श्राविकारूप चतुर्विध संघ यापनी सेवा करशे. वली जे व्यापे स्वप्नमां समुद्रने तय, तेथी थाप संसारने तरी जशो. वली थापे जगतो सूर्य जोयो, तेथी थापने तुरत केवलज्ञान उत्पन्न थशे. वली यापे ांतरमांउथी जे मानुषोत्तरने वढ्यो, तेथी करीने तमारी कीर्ति त्रण वनमां थशे. वली थाप जे मंदराचलना शिखर पर चड्या, तेथी थाप सिंहासन पर बेसीने देव ने मनुष्यनी पर्षदामां धमैने प्ररूपशो. वली आपे जे देवोए करीने शोजायुक्त थयेलुं पद्मसरोवर जोयुं, तेथी करीने श्रा|पने चारे निकायना देवो सेवशे. वली थापे जे मालानुं युग्म जोयुं, तेनो अर्थ हुं जाणी शकतो नथी. त्यारे जगवाने कर्तुं के हे उत्पल ! जे में मालानुं युग्म जोयुं, तेथी हुं साधुधर्म तथा श्रावकधर्म, एम वे | प्रकारना धर्म प्ररूपीश. पठी ते उत्पल पण प्रजुने वांदीने चालतो थयो. त्यां प्रभु श्राव अर्धमा| सक्षपणे करीने ते चोमासुं श्रतिक्रमण करीने मोराक नामना सन्निवेशमां गया. त्यां प्रतिमा धारीने रहेला प्रजुना शरीरमां तेमना सत्कार माटे सिद्धार्थ व्यंतरे दाखल थइने निमित्तो कहेते बते, प्रजुनो महिमा फेलायो. एवी रीते प्रजुना थता महिमाने जोश्ने छंदक नामना त्यां रहेता निमित्तिधाए गुस्से इने तृणवेदना विषयमा प्रश्न करते बते सिद्धार्थे कयुं के नहीं बेदाय; एम कहेते बते जेवो ते वेदवा जाय वे के तुरत उपयोगपूर्वक इंडे त्यां घ्यावीने वज्रथी तेनी छांगली बेदी नाखी. पढी रुष्ट थयेला सिद्धार्थे लोकोने जणाव्युं के था निमित्ति चोर बे. त्यारे लोकोए पूछ के शी रीते ? त्यारे सिद्धार्थे कथं केथा माणसे वीरघोष कर्मकरनो दश पलना प्र मानो वाटको चोरीने खजुरीना वृक्ष नीचे राख्यो वे, तथा इंद्रशर्मानो घेटो पण ते खाइ गयो बे, तेनां दारुकां पोतानां घर थागल रहेली बोरमी नीचे तेथे दाट्यां बे, अने तेनुं त्रीजुं दूषण तो मुखथी कही शकाय तेवुं नथी, ते तेनी स्त्रीज कदेशे . त्यारे माणसोए ज तेनी स्त्रीने पूड - वाथी तेणीए पण ते दिवसे तेनी साथे कजी करेलो होवाथी गुस्साथी कयुं के दे माणसो
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॥ ७२ ॥
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जेनुं मुख पण जोवालायक नथी एवो ते पुष्ट ,केमके ते तो पोतानी बेनने पण जोगवे बे.त्यारे ते निमि-18| त्तिए अत्यंत लजायुक्त थइएकांतमांबावीने प्रजुने विनंति करी के हे स्वामिन थाप तो विश्वप्रज्य बोअने सर्व जगोए पूजाशो, अने मारी तो अत्रेज श्राजीविका .त्यारे प्रजुए तेनी अप्रीति जाणीने 8 त्यांथी विहार कर्यो; अने श्वेतांबी प्रत्ये जतां थका लोकोए वार्या उतां पण कनकखल नामे तापसना
श्राश्रममां चमकौशिकने प्रतिबोधवा माटे प्रनु त्यां गया. है। ते चमकौशिक आगला लवमां महा तपस्वी साधु हतो; पारणाने दिवसे गोचरी जतां थयेली |
देमकीनी विराधनाने प्रायश्चित्तपूर्वक पमिकमवा माटे र्यापथिकी प्रतिक्रमण वखते, गोचरी प्रति-81 क्रमण वखते तथा संध्याकालना प्रतिक्रमण वखते एम त्रण वार को लघु शिष्ये तेने संजाली दीधाथी|
क्रोधायमान थश्ते लघु शिष्यने मारवा माटे दोड्यो,पण वच्चे स्तंनमां श्रथमा मृत्यु पामी ज्योतिष्क । है देव थयो. त्यांची चवीने ते आश्रममां पांचसे तापसोनो चमकौशिक नामे अधिपति थयो. त्यां पण ,
पोताना आश्रमनां फलोने ग्रहण करता एवा राजकुमारोने जोश्ने गुस्से थयो थको तेमने मारवा तैयार थियो भने हाथमा कुहामी लइ दोमतां कूवामां पी गयो. त्यां एवी रीते क्रोधयुक्त मरण पामीने तेज 8
श्राश्रममा पूर्वजवना नामवालो दृष्टिविष सर्प थयो. ते सर्प प्रजुने प्रतिमामा रहेला जोश्ने क्रोधथी । बलतो थको सूर्य तरफ जोर जोक्ने दृष्टिज्वाला मूकवा लाग्यो भने मूकीने तेणे विचार्यु के श्रा है प्रजु पडता थका मने न दाबो एम धारीने ते दूर हव्यो, पण प्रजुने तो आगलनी पेठे निश्चल जोश्ने अत्यंत क्रोधातुर थश्ने तेणे प्रजुने मंख मार्या, तोपण प्रजुने अव्याकुल जोश्ने तथा प्रजुना रुधि-5 रने पण दीर सरखं जोश्ने तथा “बुज्क बुक चमकोसिश्रा” एम प्रजुना वचनने सांजलीने र इथयेनुं ले जातिस्मरणशान जेने एवो ते चमकौशिक सर्प प्रजुने त्रण प्रदक्षिणा दश्ने अहो ! करुणासागर है। है एवा प्रजुए मने उर्गतिरूपी कूवामांयी उझर्यो, इत्यादि प्रकारचें मनमा चितवन करीने अनशन है
लइएक पखवामीया सुधी विलमां पोतानुं मुख राखोने रह्यो. त्यां घी आदिक वेचनारी स्त्रीए ।
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॥
३॥
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तेने घी आदिक नाखीने पूज्यो; श्रने ते घी थादिकनी गंधथी त्यां आवेली कीमोथी अत्यंत है सबो पीमा पामतो तथा प्रजुनी दृष्टिरूपी अमृतथी सिंचातो थको मृत्यु पामी सहस्रार देवलोकमां है। देवता थयो. पठी प्रजु पण त्यांथी बीजी जगोए विहार करी गया. पनी उत्तरवाचालामां नागसेने 5 प्रजुने दीर वोराव्युं. त्यां पंच दिव्यो प्रगट थयां. त्यांथी श्वेतांबी नगरीमा प्रदेशी राजाए ।
प्रजुनो महिमा को. त्यांथी सुरनिपुर प्रत्ये जता प्रजुने पांच रथ लावीने नैयका गोत्रवाला है राजा वांदता हवा. त्यांथी सुरनिपुर नगरे प्रजु गया. त्यां गंगा नदीने कांठे सिझयात्र नाविक
लोकोने नाव पर चडावतो हवो, नगवान् पण ते नावमां चढ्या. ते अवसरे धुवडनो शब्द सांज-12 लीने देमिल नामना निमित्तिए कडं के आजे आपणने मरणांत कष्ट श्रावशे, पण या महात्माना | प्रजावथी ते संकटनो नाश थशे. एवी रीते गंगा नदी उतरतां प्रजुना त्रिपृष्ठना नवमां मारेला सिंहना है। जीव सुदंष्ट्र नामना देवे नाव बुमामवा आदिकनुं विघ्न कयु, पण कंबल अने शंबल नामना नागकुमारोए श्रावीने ते विघ्न निवार्यु. ते बन्नेनी उत्पत्ति नीचे प्रमाणे जाणवी. मथुरा नगरीमां साधुदासी अने जिनदास नामे बे स्त्री जरतार हता, ते परम श्रावक हता, तेथी पांचमा व्रतमां सर्वथा । प्रकारे चोपगां पशु राखवा- पच्चरकाण तेमणे कर्यु हतुं. त्यां एक नरवामण पोतानुं गोरस लावीने |
साधुदासीने आपती हती,अने तेथीते पण तेणीने यथोचित अव्य आपती हती.एवीरीते केटलेक काले है ते बन्नेमां अत्यंत प्रीति थ. एक दहामो ते जरवामणे पोताने घेर विवाह आववाथी ते बन्ने स्त्री
जरतारने निमंत्रण कयु. त्यारे तेउए कह्यु के अमे त्यांावी शकीशुं तो नहीं, पण तमारे विवाहमा 2 जेकं वस्तु जोश्ए, ते अमारे घेरथी लेवी. पठी तेए दीधेलां चंडवादिक उपकरणो तथा वस्त्र, ४ानूषण,धूप थादिकथी ते नरवामपनो विवाह अत्यंत उत्कृष्टो थयो;तेथी ते जरवाड तथा जरवामणे |
S am है खुशी थश्ने अत्यंत मनोहर तथा समान वयवाला एवा बे बालवृषनो लावीने तेमने आप्या. तेउनी
श्छा नहोती, तोपण ते ते बेलोने तेने घेर पराणे बांधीने पोताने घेर गया. त्यारेते वेपारीए विचायु ।
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* के जो था बेलोने पाला श्रापीशुं, तो ते खासी करवा तथा नार उपाझवा श्रादिकथी फुःखी थशे, एम|| विचारी ते तेनुप्रासुक तृण जल आदिकथी पोषण करवा लाग्यो; अने तेथी नार उपामवा आदिकना है। श्रम विना ते त्यां सुखे रहवा लाग्या. कोइ दहामो श्रष्टमी श्रादिने दिवसे ते श्रावक पौषध लश्त्यां पुस्तक श्रादिक वाचतो.ते सांजली ते बलदोनक थया-पली जे दिवसे ते श्रावक उपवास करे, ते दिवसे ते पण तण श्रादिक खाय नहीं. एवीरीते साधर्मिकपणाए करीने ते ते श्रावकने पण अत्यंत प्रिय थपड्या. एक दहामो ते जिनदासना मित्र ते अति बलवान् तथा सुंदर बेल जोड्ने शेठने पूज्या विनाज नंगीर वनना यक्षनी यात्रा माटे जेजेए धुर जोयेल पण नहीं हतुं एवा ते | बेलोने गामीमां जोमीने एवा तो हांक्या के जेथी ते त्रुटी गया; श्रने पड़ी लावीने तेमने शे-४ ने घेर बांध्या. शेठे तेमने एवी अवस्थावाला जोश्ने आंखोमां आंसु लावी खावा श्रादिकनां पञ्च-18 काण करावी नवकार श्रादिकथी तेमनी निर्यामणा करी. पडी त्यांश्री ते बन्ने मृत्यु पामीने नाग-18 कुमार देवो थया; ते त्यां नवा उत्पन्न थया के तेए उपयोग दीधाथी बन्नेमांथी एके ते नावरक्षण कयुं, तथा बीजो ते प्रजुने उपसर्ग करता सुदंष्ट्र देवनी सामो थयो. त्यार पड़ी तेने जीतीने ) नगवाननां सत्त्व तथा रूपनुं गायन करता तथा नाचता थका महोत्सवपूर्वक सुंगंधी जल अने ||४|| पुष्पनी वृष्टि करीने ते पोताने स्थानके गया. | जगवान् पण राजगृही नगरीमां नालंदा नामना पामामां शालवीनी शालाना एक नागमां तेनी रजा लश्ने पहेळ मासढ़पण करीने रह्या. त्यां मंखलि नामे मंख (चित्रकला जाणनार निदाचर विशेष) नी || सुनमा नामनी स्त्रीने पेटे पुत्र थयो हतो.ते बहुल नामना ब्राह्मणनी गोशालामा उत्पन्न थयो हतो,माटे | तेनुं गोशालो नाम पाड्यु हतुं.ते मंख किशोर लगवान् पासे श्राव्यो.त्यां नगवानने मासक्षपणने पारणे है। विजय नामना शेठे कूर आदिक विपुल लोजन विधिए करीने वोराव्यु, तेथी त्यां प्रगट थयेलां पंचर दिव्यादि महिमाने जोश्ने ते गोशाले जगवानने कडं के हुं तमारो शिष्य बुंपली बीजे पारणे नंद शेने
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कल्प०
॥ ७४ ॥
पक्वान्न त्र्यादिथी, तथा श्रीजे पारणे सुनंद शेठे परमान्न श्रादिथी प्रभुने प्रतिलाच्या चोथा मासकपणे प्रभु कोल्लाग नामे सन्निवेशमां पधार्या. त्यां बहुल नामे ब्राह्मणे प्रजुने दुधपाक वोराव्यो. त्यां पण पंच दिव्यो प्रगट थयां.
हवे गोशालो पण प्रजुने ते तंतुशालामां नहीं जोइने श्राखा राजगृह नगरमां शोधतो यको पोतानुं । उपकरण ब्राह्मणोने पीने मुख तथा मस्तकने मुंगावीने कोल्लागमां जगवानने जोइने " तमारी दीक्षा मने होजो" एम कही ने तेमनी साथै रहेवा लाग्यो. प्रजु पण ते शिष्यनी साथै सुवर्णखल नामे गाम तरफ चाल्या. मार्गमां गोवालीयार्ड एक मोटा वासणमां दुधपाक पकावता हता, ते जोइ गोशाले जगवा - नने कयुं के यपणे अहीं जोजन करीने चालीशुं. त्यारे सिद्धार्थे कयुं के ते वास जांगी जशे, | तेथी गोवाली याए यत्न वडे तेनुं घणुं रक्षण कर्यु, तोपण ते वासण जांगी गयुं. त्यारे गोशाले एवो निश्चय कयों के जे थवानुं बे ते थाय बेज, एवो नियतिवाद अंगीकार कर्यो. ते वार पढी प्रभु ब्राह्मणग्राम प्रत्ये गया. त्यां नंद ने उपनंद नामे वे जाइना बे पामा हता. प्रजुए नंदना पाकामां प्रवेश कर्यो. त्यां नंदे प्रजुने वोराव्युं. गोशालो उपनंदना पाकामां गयो. त्यां वासी अन्न उपनंदे वोराव्याथी ते गुस्से थयो, अने शाप दीधो के मारा धर्माचार्यनुं जो तपतेज होय, तो श्रनुं घर बली जार्ज. त्यारपढी प्रजुनो महिमा राखवा वास्ते नजदी कमां रहेला देवे तेनुं घर वाली नाख्युं. पढी प्रभु | चंपा नगरीमां याव्या. त्यां द्विमासपणे करीने ते चतुर्मास रह्या. बेल्ला द्विमासनुं पारणं चंपानी बिहार करी ने कोल्लाग सन्निवेशमां गया.त्यां शून्य घरमां ते कायोत्सर्गध्याने रह्या. गोशाले पण तेज घरमां रहीने सिंह नामे एक ग्रामणीपुत्रने विद्युन्मती दासीनी साथे क्रीडा करतां जो दांसी करी, त्यारे तेणे गोशालाने मार्यो.त्यारे ते प्रजुने कन्युं के मने एकलानेज यहीं आणे मार्यो, पण पेतेने केम निवार्यो नहीं ? त्यारे सिद्धार्थे कयुं के फरीने तुं एवं करीश नहीं पी प्रभु पात्तालक प्रत्ये गया, तथा त्यां शून्य घरमा रह्या. त्यां पण गोशाले स्कंदने पोतानी दासी स्कंदिला साथे क्रीमा करतां
सुबो०
॥ १४ ॥
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नंदघर.
भगवान्.
चित्र ३७.
胆
गोशालो.
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उपनन्द.
पा. ७९
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तेए कह्यु के श्रमोन का बली शके नहीं रानी तेमने मार्या, तेश्री अवागार
मजोर हांसी करी,श्रने तेथी त्यां पण तेणे प्रथमनी पेठे मार खाधो. पडी प्रजु कुमारक नामे सन्निवेशमा|8||
जश्ने चंपारमणीय नामना उद्यानमां कायोत्सर्गध्याने रह्या. त्या पार्श्वनाथ प्रजुना शिष्य मुनिचं मुनि घणा शिष्योना परिवार सहित कुंजारनी शालामा रह्या हता. तेना साधुने जोश गोशाले । * कयु के तमो कोण बो ? त्यारे तेए कह्यु के श्रमो निर्गथ लीए. त्यारे फरीने गोशाले कडं के
तमो क्यां तथा श्रमारा गुरु क्या ? त्यारे तेए कह्यु के जेवो तुं बे, तेवा तारा धर्माचार्य पण हशे. त्यारे गोशाले गुस्से थाने कडं के मारा धर्माचार्यना तपथी तमारो श्राश्रम बली जा. त्यारे ४ तेए कह्यु के श्रमोने कंश तेनी बीक नथी. पनीथी तेणे श्रावी सघलो वृत्तांत कही बताव्यो.2 त्यारे सिफार्थे कडं के ते साधुन कंबली शके नहीं.रात्रिए जिनकल्पनी तुलना करता मुनिचंड मुनि कानस्सग्गमा हता, ते वखते मदोन्मत्त एवा कुंजारे चोरनी बुद्धिथी तेमने मार्या, तेथी अवधिज्ञान उत्पन्न थया बाद ते मृत्यु पामी स्वर्गे गया. पड़ी तेना महिमा माटे देवोए त्यां उद्योत कयों, त्यारे । गोशाले कह्यु के श्रहो ! आ तेमनो उपाश्रय बसे . पठी सिकार्थे तेने खरी वात जणाववाथी ते त्यां । जश्तेना शिष्योने निचुंबीने पालो श्राव्यो.पनी प्रजु चौरा प्रत्ये गया.त्यांप्रनु अने गोशालाने छपी खबर लश् जनारा जासुस जाणीने भारतकोए (श्रगम)देडमां नाखवा मांड्या-त्यांप्रथम गोशालाने अगममा नाख्यो,पण प्रजुने हजुनाख्या नथी,तेटलामांत्यां नत्पल निमित्तिानी सोमा थने जयंती नामनी बे बहे-! सानो के जेजे संयम पालवाने असमर्थ थइने परिवाजिका थरहती,तेए प्रजुने जो अने जेलखीने ते | संकटथी डोमाव्या.पनी प्रजु पृष्ठचंपा प्रत्ये गया.त्यां प्रनु चोमासु चतुर्मासक्षपण वडे निर्गमन करीने से तथा बहारना जागमा ते पारीने (पारणुं करीने) कायंगल नामे सन्निवेश प्रत्ये जश्ने श्रावस्ती नगरीए ।
गया. त्यां बहारना नागमां कायोत्सर्गध्यानमा रह्या. त्यां सिद्धार्थे गोशालाने कडं के आजे तुं मनु-|| काष्यमांस खाश्श.पठी ते सांजली ते पण तेनुं निवारण करवा माटे वाणीथाने घेर निदा माटे जमवा है।
लाग्यो. त्यां पितृदत्त नामे वणिक रहेतो हतो, तेनी स्त्री मरेल बालकने जन्म आपनारी हती. तेणीने
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सुबो
कल्प० | शिवदत्त नामे निमित्तिए बोकरां जीववानो उपाय कह्यो के 'तारे तारा मरी गयेला बालकनुं ॥ ५॥
मांस उधपाकनी साथे मिश्रित करीने को निकुकने श्राप'. त्यारे तेणीए तेज विधिपूर्वक गोशालाने ते आप्यु, अने घर बाली नाखवानी बीकथी घरनुं बार| तेणीए बदलावी नाख्यु. गोशालो पण तेनुं स्वरूप नहीं जाणतां तेनुंजक्षण करीने जगवान् पासे श्राव्यो. सिझार्थे तेने सघलो वृत्तांत कही बताव्याथी तेणे वमन करीने तेनो निश्चय कर्यो, तथा पड़ी तेणीनुं घर बालवा चाल्यो, पण घर नहीं मलवाथी तेणे प्रज्जुने नामे ते पामोज बाली नाख्यो. त्यांथी प्रनु दरिज सन्निवेशनी बहार हरिज वृक्षनी नीचे प्रतिमा धारीने रह्या. त्यां पंथिए सलगावेला अग्नि वडे प्रजु नहीं खसवाथी तेना चरणो दाज्या; ते जो गोशालो त्यांथी नासी गयो. त्यांथी प्रनु मंगला नामे गाममां वासुदेवना स्थानके प्रतिमाथी रह्या. त्यां बालकोने बीवराववा माटे श्रांखोना, |विकारो करता गोशालाने ते बालकोनां माबापोए मार्यो भने मुनिपिशाच कहीने तेनी उपेक्षा है करी. त्यांची प्रनु थावर्त गाममा बलदेवने स्थानके प्रतिमाथी रह्या. त्यां पण बोकरांउने बीवराववा 3
माटे गोशालो मुखना चाला करवा लाग्यो. त्यारे तेऊनां मावापोए विचार्यु के था तो गांमो बे, माटे
थाने मारवाथी गुंडे ? एना गुरुनेज मारवा. एम जाणी जेवा ते प्रजुने मारवाने आव्या के तुरत है ६ ते बलदेवनी मूर्तिए हाथमां हल लइने तेउने वार्या,त्यारे ते सर्वे पण प्रजुने नमवा लाग्या. त्यार पनीर है प्रनु चोराक सन्निवेश गया. त्यां मंझपने विषे नोजन रंधातुं जोइने गोशालो वारंवार नीचो नमीने तक
जोवा लाग्यो. त्यारे लोकोए चोर जाणीने तेने मार्यों. यारे तेणे गुस्से थश्ने प्रजुना नामथी ते मंझपने | वाली नाख्यो. त्यार पठी प्रनु कलम्बका सन्निवेश प्रत्ये गया. त्यां मेघ अने कालहस्ति नामे बे नाइ हता. तेमां कालहस्तिए प्रजुने उपसर्ग कर्या अने मेघे तेमने उलखीने खमाव्या. त्यार पनी प्रजु क्लिष्ट कर्मोनी निर्जरा करवाने अर्थे लाट देश प्रत्ये गया. त्यां हीलना आदि घणा घोर उपसर्गो लोकोए । को. पनी पूर्णकलश नामे अनार्य गाममा जता नगवानने मार्गमां बे चोर मख्या. ते जगवानने 18
॥ ७
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| देखी अपशुकन थयां जाणी खड्ग लइने मारवा दोड्या, त्यारे उपयोग दीधो वे एवा इंद्रे वज्र | वडे तेर्जने मारी नाख्या. त्यांथी प्रभु जडिका नगरीमां चोमासुं करीने तथा चतुर्मासपणनुं पारणुं बहार करीने अनुक्रमे तंबालग्राम प्रत्ये गया. त्यां पार्श्वनाथ प्रजुना संतानीय नंदिषेण नामना श्राचार्य बहु शिष्योना परिवार सहित प्रतिमा धारीने रह्या हृता. त्यां आरक्षकना पुत्रे चोरनी बुद्धिथी तेने जालाथी दण्या, अने अवधिज्ञान पामीने ते देवलोके गया. यहीं पण गोशालानां वचन यादिकनो वृत्तांत मुनिचंद्रनी पेठेज जाणी लेवो. त्यांथी प्रभु कूपिक सन्निवेशे गया. त्यां चारकनी शंकाथी आरक्षकोए तेमने पकड्या, पण पार्श्वनाथ प्रजुनी शिष्या छाने पाठ| लथी परित्राजिका थयेली एवी विजया थाने प्रगल्नाए प्रजुने बोमाव्या. त्यांथी गोशालो प्रभुथी बुटो थइने बीजे मार्गे चालवा लाग्यो. त्यां पांचसें चोरोए तेने मामो मामो करीने तेनी खांध पर चमीने चलाव्यो, तेथी थाकी जइने ते विचारवा लाग्यो के प्रजुनी साथे रहेतुं तेज सारुं बे; एम विचारी प्रजुने शोधवा लाग्यो. प्रभु पण वैशाली नगरीए जश्ने त्यां बुहारनी शालामां प्रतिमाथी रह्या. त्यां एक बुहार ब मास सुधी रोगी थइने नीरोगी थयो थको उपकरणो लइने ते शालामां श्राव्यो. प्रजुने जोइ अपशुकननी बुद्धिथी तेमने घणे करीने ते मारवाने तैयार थयो, ते वखते इंद्रे ते वात अवधिज्ञानथी जाणीने अने यावीने तेज घणथी तेने इएयो. त्यांथी प्रभु ग्रामाक संन्निवेश प्रत्ये गया. त्यां | उद्यानमां बिनेलक नामना यछे महिमा कर्यो. त्यांथी शालिशीर्ष नामे गाममां उद्यानने विषे | प्रतिमाए रहेल प्रभुने माघ मासमां त्रिपृष्ठना जवमां अपमान पामेली स्त्री के जे मरीने व्यंतरी थइ हती, ते तापसीनुं रूप करीने जलथी जरेली जटा वडे सहन थइ शके नहीं एवा शीत उपसग करवा लागी, पण प्रभुने निश्चल जोइने शांत थइ थकी ते प्रजुनी स्तुति करवा लागी. बहना तप वडे ते उपसर्गने सहन करता श्रने विशुद्ध थता प्रजुने ते वखते लोकावधि ज्ञान उत्पन्न थयुं. ते वार पढी प्रभु नजिका नगरीमां बहा चोमासामां चोमासी तप छाने विविध प्रकारना श्रमि
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कल्प
सुबोध
॥
६॥
ग्रहो करता हवा. त्यां फरीने उ मासने अंते पालो गोशालानो मेलाप थयो. त्यां प्रजु बहारना नागमां पारणुं करीने रुतुबंध एवी मगधनूमिमां उपसर्गोए करीने रहित थया थका विहार करवा लाग्या. त्यांथी आलंलिकामा सातमा चोमासामां चतुर्मासक्षपणथी रहीने बहारना नागमां पारणुं । करीने कुंडग नामना सन्निवेशमां वासुदेवना चैत्यमा प्रतिमाथी रह्या. त्यां गोशालो पण वासुदेवनी प्रतिमाथी पराङ्मुख थश्ने मुख प्रत्ये अधिष्ठान करी रह्यो, तेथी लोकोए तेने मार मार्यो. त्यांथी 8 प्रज्जु मईन नामे गाममां बलदेवना चैत्यमा प्रतिमाथी रह्या. त्यां गोशालो बलदेवना मुखने विषे । मेहन राखीने रह्यो. त्यां पण लोकोए तेने मार्यों. एवी रीते बन्ने जगोए तेने मुनि जाणीने में लोकोए बोडी मेव्यो. त्यांथी प्रनु अनुक्रमे उन्नाग नामे सन्निवेशमां गया. त्या मार्गमा सन्मुख श्रावतार एवा दंतुर वहु वरनी गोशाले हांसी करी "के विधिराज कुशल बे के पूरदेशमां पण जे माणस 5 ज्यां वसे ने तेमां जेने जे योग्य होय तेने खोलीने जोमी मेलवे बे.” तेथी तेए तेने मारीने र
सनी जालीमां नाख्यो, पण प्रनु पर बत्र धरनार होवाथी तेने बोडी मेव्यो. त्यांथी प्रजु गोनूमि प्रत्ये गया.त्यांथी प्रजुए राजगृहीमा बाग्मुंचोमासुं कर्युतथा चतुर्मासी तप पण कर्यो,अने बहारना नागमां पारणुं करीने त्यांथी वजनूमिने विषे घणा उपसर्ग डे एम कहीने नवमुं चोमासुं त्यां। (वजनूमिने विष) कयुं, तथा चतुर्मासी तप पण कस्यो तेम वीजा बेमास पण त्यांज प्रजुए विहार को. 8 ६ वसति एटले स्थानकना अनावथी नवमुंचोमासुंअनियत कयुं त्यांथी कूर्मग्राम प्रत्ये जतां मार्गमा एक हूँ
तलना बोमने जोस्ने गोशाले जगवानने पूज्यु के श्रा बोम निपजशे के नहीं ? त्यारे प्रजुए कडं के आमां रहेला तलनां पुष्पोना साते जीवो मरीने एक शंबा(शिंग)मां तलरूप थशे.ते सांजली प्रजुनुं वचन जूर *पामवा माटे ते बोमने उखेमीने तेणे एकांत जगामा मेख्यो. ते वखते नजदीकमां रहेता व्यंतरोए ॥ ६ ॥
विचार्यु के प्रजुनुं वचन जूतुं पडो नहीं, एम विचारी त्यां वृष्टि करी. तथा ते जीनी ६ जमीनमां गायनी खरीथी ते बोम स्थिर थयो. त्यांथी प्रजु कूर्म नामे ग्राममां गया. त्यां
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सिद्धार्थव्यंतर
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वेश्यायन तापस..
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पा.७३.
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हूँ वैश्यायन तापसे आतापना ग्रहण करवा माटे जटा बुटी मुकी हती,तेनी मांदे घणी जुडने जो
गोशाले तेने "यूकाशय्यातर" एम वारंवार कहीने तेनी हांसी करी. तेथी ते तापसे क्रोधायमान Pथ तेना पर तेजोलेश्या मूकी, पण दयारसना सागर एवा प्रजुए शीतलेश्या वझे तेनुं निवा
रण करीने गोशालानुं रक्षण कयु. | पनी ते मंखविना पुत्र गोशाले ते तापसनी तेजोलेश्याने जोश्ने जगवानने पूज्यु के हे जगवन् ! ते तेजोलेश्या केम प्राप्त थाय ? ते सांजली प्रजुए अवश्य जावी जावना जोगथी सर्पने दूध पावानी पेठे| तेवा अनर्थ करनारी एवी पण तेजोलेश्यानी विधि तेने शिखवी के हमेशां आतापनापूर्वक बहनो तप करी, एक मुठी अमदना वाकुलाथी तथा एक उना पाणीनी अंजलिथी पारj करवू, श्रने एवी रीते 8
करनारने उ मासने अंते तेजोलेश्या प्राप्त थाय जे. त्यांथी सिद्धार्थ नामे नगर प्रत्ये जतां गोशाले कह्यु हूँ के ते तलनो बोम निपज्यो नथी, पण प्रजुए कह्यु के ते बोझ तो निपज्यो . गोशाले ते वचन पर श्रका | नहीं राखता ते तलनी शिंग फोमीने जो, तो अंदर सात तलने जोश्ने तेज शरीरमा तेज प्राणीयो फरीने परावर्तन करीने उपजे , एम मति अने नियतिने दृढ करी. त्यांथी ते प्रजुथी जूदो पड्या;
थने श्रावस्ती नगरीमांजशकुंजारनी शालामांरहीने प्रजुए बतावेला जपायथी तेजोलेश्यो साधीने ६ श्रने श्रीपार्श्वनाथ प्रजुना तजीदीधेला व्रतवाला शिष्य पासेथी अष्टांग निमित्त जणीने अहंकारे करीने से हैलोकोने जणाववा लाग्यो के हं तो सर्वक. अहीं किरणावली टीकाकारे काले के तेजोलेश्य
उपाय सिद्धार्थे शिखव्यो बे,ते विचारवा जेवू बे, केमके श्रावश्यक वृति तथा हेमचंडाचार्यजीए करेला श्रीवीरचरित्र थादिक अनेक ग्रंथोमां प्रजुए ते विधि कह्यो एम कडं जे. त्यांथी प्रजुए दशमुं चोमासुंश्रा-18
वस्तीमां कर्यु तथा त्यां तेणे विचित्र प्रकारनो तप पण कर्यो एवी रीते अनुक्रमे प्रजु बहु म्लेडोवाली एवी हूँ दृढ मिमां गया.त्यां पेढाल ग्रामनी बहार पोलास चैत्यमां अष्टमजक्तपूर्वक प्रनु एक रात्रिनी प्रतिमाथी रह्या. ते वखते सजामां श्रावेलाई कडं के वीर प्रजुना चित्तने चलाववामांत्रणे लोकोना रहेवासी
KHASOCIAL ARROSURANCECROSOCIAS
ALSCRECORDCROCALSGAR-SAMACCORDC RECORDINGOCALCRk
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कल्प० ॥७॥
CASARAMSALAM
पण असमर्थ डे, एम प्रजुनी प्रशंसा करी. ते सांजली संगम नामनो सामानिक देव ईर्ष्या लावीने स है सुबोग समक्ष प्रतिज्ञा करवा लाग्यो के एक क्षणवारमा हुँ तेमने चलायमान करीश. एम कही तुरत प्रजु पासे | श्रावीने पहेलां तो तेणे धूलनी वृष्टि करी के जेथी प्रजुनां आंख, कान थादिक विवरो ढंका जवाश्री ते श्वास लेवाने अशक्त थया. ते वार पड़ी वज्र सरखा मुखवाली कीमीए करीने प्रजुना शरीरने तेणे चा-8 लणी सरखं कर्यु.ते कीमी एक बाजुथी प्रवेश करीने बीजी बाजुथी नीकलवा लागी. ते वार पड़ी वन टू। सरखा मुखवाला मांसो,ते वार पड़ी तीक्ष्णमुखवाली घीमेलो,ते वार पड़ी वीजी,ते वार पली नोलीयां,ते है। वार पठी सर्पो,ते वार पनी उंदरो-एसर्वेना नक्षण श्रादिकथी,ते वार पड़ी हाथी तथा हाथणीनी शुंढनाथाघातोथी तथा पगोए करीने कचरवाथी,ते वार पडी पिशाचना अट्टहास श्रादिकथी, ते वार पठी वाघना दाढ तथा नखना विदारण श्रादिकथी,ते वार पड़ी सिझार्थ अने त्रिशलाना करुणाजनक विलाप आदिकथी तेणे उपसर्ग कर्या. पठी स्कंधावार (लश्कर) विकुर्वीने के ज्या लोकोए प्रजुना चरणोनी मध्ये है अग्नि सलगावीने अने वासण मूकीने रसोश्करी हती.ते वार पड़ी चंमालोए प्रजुना कान अने जुजानां । मूल श्रादिने विषे तीक्ष्ण चांचोवाला पदीउनां पांजरां लटकाव्यां अने ते चांचथी नक्षण करवा ला-12 ग्यां.ते वार पनी प्रचंम पवनथी के जे पवन पर्वतोने पण कंपावतो थको प्रजुने उगली उबालीने नीचे पा-3 मतो हतो. ते वार पड़ी वंटोलीपाथी के जे प्रजुने चक्रनी पेठे जमावतो हतो.ते वार पड़ी हजार नारना है प्रमाणवाला चक्रथी के जेथी मेरु पर्वतर्नु शिखर पण चूर्ण थ जाय अने प्रनु पण जेथी बेक घुटण सुधी। जमीनमां खुंची गया हता. ते वार पडी प्रनात करीने तेणे कडं के हे देवार्य ! हजु सुधी केम उन्ना बगे? पण प्रजु तो ज्ञानथी रात्रि के एम जाणे ने. त्यार पड़ी देवनी शधिकरीने कडं के हे महर्षे ! तमारे स्वर्ग अथवा मोक्षजे कंश जोश्ए ते मागीलो; तेथी पण प्रजुने निश्चल जो तेणे देवांगनाना हावनावथी। प्रजुने उपसर्ग कर्या. एवी रीते तेणे एक रात्रिमा वीश उपसर्गो कर्या, पण तेथी प्रजु जरा पण चलायमान थया नहीं. अहीं कविए कह्यु के के हे प्रजु ! तमारंबल जगतनो नाश करवाने अने रक्षण कर
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यदानुं मंदीर.
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पा.७३
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वाने समर्थ , अने अपराधी एवा संगमक उपर करेली दया पण तेवीज बे, एवं विचारीनेज होय नहीं| है जेमतेम रोषथी क्रोध तो तमारा मनने तजीने जतो रह्यो . ते वार पनी उमास सुधी अनेषणीय कहेतां
कल्पे नहीं एवा थाहार करवा श्रादिकना तेना करेला नाना प्रकारना उपसर्गोने सहन करता थका प्रनु थाहार रहित थया थका मास व्यतीत थये बते ते संगम गयो हशे एम धारीने वज्र ग्रामना गोकुलमां गोचरी माटे गया. त्यां पण तेणे थाहारने अनेषणीय करेलो जाणीने प्रनु ते लीधा विना गाम बहार भावी प्रतिमाथी रह्या. पली ते नीच देव प्रजुने अवधिज्ञानथी कोरीते पण स्खलित नहीं थयेला तथा विशुरू परिणामवाला जोश्ने विलखो थश्ने शक्रनी बीकथी प्रजुने वांदीने सौधर्म :
वलोक प्रत्ये गयो. पनी तेज गोकुलमा जता प्रजुने एक घरमी गोवालणीए फुधपाकथी प्रतिछालाच्या, तथा त्यां वसुधारा पण थर. है। अहीं प्रजुने उपसर्ग कर्या तेटलो काल सुधी सौधर्म देवलोकमां रहेनारा सघला देव तथा देवी
आनंद रहित अने उत्साह रहित रह्या, अने ३७ पण गीत, नाटक थादिकने तजीने “श्रा उपसर्गोनो|3 हुंज हेतु थयो बुं,केमके में करेली प्रजुनी प्रशंसाथी आ पुष्ट संगमके प्रजुने उपसर्गो कर्या ने” एम वि-13 चारी अत्यंत पुःखित चित्तवालो थयो थको हाथ पर मुख राखी दीन दृष्टियुक्त थयो थको दिलगीरीमा रह्यो. पठी ज्रष्ट थयेल प्रतिज्ञा जेनी तथा श्याम मुखवाला एवा ते नीच संगमक देवने त्यां है आवतो जोश्ने ई पराङ्मुख थश्ने देवोने कडं के अरे देवो!श्रा पुष्ट कर्मचंमाल पापी श्रावे , माटे तेनुं दर्शन पण महापापने आपना थाय बे; वली एणे आपणनो मोटो अपराध करेलो , केमके तेणे ४ श्रापणा खामीने कदर्थना करी ले. जेम ए पापी थापणाथी मयों नथी, तेम पापी पण मयों नथी; माटे *
उष्ट श्रने अपवित्र एवा देवने स्वर्गमांधी तुरत काढी मूको.एवी रीतेशेाझा करेला सुजटोथी निर्दय परीते लाकमी,मुष्टि विगेरेथी तामना करायेलो,आंगली मोमवाना करेला देवोना आक्रोशने सहन ककरतो,चोरनी पेठे शंकित थश्ने थामतेम जोतो,उरी गयेला अंगारानी पेठे निस्तेज थयेलो अने परिवार
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सुबोग
कल्प विनानो एकलो हमकाया कुतरानी पेठे देवलोकमांथी काढी मूकायेलो ते देवता मंदराचलना शिखर
उपर पोतानुं बाकी रहेनुं एक सागरोपमर्नु आयुष्य संपूर्ण करशे. तेनी अग्रमहिषी पण इंजनी || ॥3 ॥
श्राज्ञाथी दीन मुखवाली थर थकी पोताना जरतारनी पाउल ग. पठी आलं निका नगरीमा हरिकांत तथा श्वेतं बिका नगरीमा हरिसह नामे बे विद्युत्कुमारना ७ प्रजुने कुशल पूवा माटे श्राव्या.1% त्यारपती श्रावस्ती नगरीमां इंच स्कंदनी प्रतिमामां अवतरीने (पेसीने) प्रजुने नमतो हवो,श्रने तेथी। प्रजुनो मोटो महिमा प्रवत्या. त्यांथी कोशांबी नगरीमा प्रजुने वांदवा माटे सूर्य चंद्रयाव्या. त्यारपती वाणारसीमां इंजे,राजगृहीमा ईशाने तथा मिथिला नगरीमा जनक राजाए अने धरणे प्रजुने कुश- | ल पूज्यु. ते वार पनी वैशाली नगरीमा प्रजुनु अग्यारमुंचोमासु थयुं.त्यां नूते प्रजुने कुशल पूज्युं.त्यांथी प्रनु सुसुमार नामे नगर प्रत्ये गया, त्यां चमरेंजनो उत्पात थयो. त्यांची अनुक्रमे कौशांबी नगरीए प्रनु गया. त्यां शतानीक नामे राजा हतो,तेनी मृगावती नामे राणी हती,तथा विजया नामे प्रतिहारी हती, वादी नामनो धर्मपाठक हतो, सुगुप्त नामे अमात्य हतो, तेनी नंदा नामनी स्त्री हती, ते श्राविका हती तथा मृगावतीनी बहेनपणी हती.त्यां प्रजुए पोष सुदि परवाने दिवसे श्रनिग्रह लीधो. अन्यथी सुपमाना खुणामां रहेला बाकुला होय,देवथी एक पग उंबरानी अंदरतथा एक पग उंबराथी वहार राखीने 2 रहेली होय, कालथी सघला निदाचरो निवृत्त थयेला होय, जावथी राजानी पुत्र। के जे दासपणाने
प्राप्त थयेली होय तथा जेणीनु मस्तक मुंमित थयेलु होय, पगमां वेमी होय, रुदन करती होय, ||तथा जेणीने अहम होय एवी को स्त्री जो निदा श्रापशे तो हुँ ग्रहण करीश; एवो श्रनिग्रह
लश्ने प्रजु हमेशां निदा माटे जमवा लाग्या. अमात्य आदिक घणा उपायो करवा लाग्या, 30 तोपण ते अनिग्रह संपूर्ण थतो नथी. ४ ते वखते शतानीक राजाए चंपा नगरीने नांगी थने त्यांना दधिवाहन राजानी राणी धारिणी तथा
तेनी पुत्री वसुमती ए बनेने को सुनटे केद पकमी. त्यां धारिणीने तेणे पोतानी स्त्री करवानुं कह्याथी
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पा.७५
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तेणी तो जीन करडीने मृत्यु पामी, पण वसुमतीने पुत्री तरीके करवानुं समजावीने तेणीने तेणे को
शांबीमां लावीने चौटामा वेचवाने राखी. त्यां धनावह नामना शेठे तेणीने वेचाती लश् चंदना एवं इनाम थापीने पुत्री तरीके राखी अनेते घणी प्रिय थ३. एक दहामो ते शेठना पग धोवरावती हती ते * ४ वखते तेणीनो चोटलो पृथ्वी पर लटकतो हतो,ते शेठे पोते उंचो कों,ते जोश्ने ते शेग्नी मूला नामनी, है स्त्रीए विचार्यु के श्रा युवान बालिका खरेखर शेउनी स्त्री थशे अने हुँ निर्माल्य प्राय थश्श एम धारीने र है खेद युक्त चित्तवाली तेणीए चंदनानुं मस्तक मुंभावी तेणीने बेमी पहेरावी तालामां घालीने क्यांक
चाली गइ. शेग्ने पण महा मुश्केलीए चोथे दहाडे ते खबर पमवाथी तालुं उघाडीने तथा तेवीजरीते 8 तेणीने उंबरामां मूकीने तथा सुपमाना खुणामां श्रमदना वाकुला श्रापीने ते बेमी नांगवा माटे बुहारने ज्यारे बोलाववा गयो, त्यारे चंदनाए विचार्यु के जो कोइ पण निनुका वखते आवे तो तेने श्राबाकुलामांथी आपीने पढ़ी हुँ पण खालं. एम विचार करे ने एटलामां त्यां श्री वीर प्रनु पधार्या. त्यारे तेणीए पण हर्षित थश्ने कडं के हे प्रजु! था तमे व्यो, पण प्रजु पोताना श्रनिग्रहपूर्वक तेणीने रमती नहीं जोड्ने पाठा वल्या. त्यारे चंदनाए विचार्यु के अहो! प्रनु आ वखते श्रावीने कंश पण ग्रहण कर्या । विना पाला चाल्या जाय , एम विचारी खेदपूर्वक ते रमवा लागी. पनी प्रजुए पण पोतानो अनि
ग्रह संपूर्ण थयेलो जाणी ते वाकुला लीधा. अहीं कवि कहे जे के पंमित लोकोए चंदनाने वाला है केम कहेली ने ? (अर्थात् तेणीने तो महा हुशियार समजवी;) केमके तेणीए तो वीर प्रजुने बाकुला वडे |
तरीने मोक्ष लश्लीधुं !!! ते वखते त्यां पंच दिव्यो प्रगट थयां, ३७ पण श्राव्यो, देवो नाचवा लाग्या, तेणीना मुंमित मस्तक पर केश थ गया, बेमी फांऊररूपे थर. त्यां मृगावती मासी, मलQ थयु
तथासंबंधथी वसुधारामां पडेलुंधन शतानीक सेवा लाग्यो,तेने निवारीने चंदनानी आज्ञाथी धनावहने , हैते धन दश्ने तथा आवीर प्रनुनी प्रथम साध्वी थशे, एम कहीनेज अंतर्धान थगयो. पठी अनुक्रमे
जूनिका नामे गाममांझे नाट्यविधि देखामीने कडं के आटले दिवसे छाननी उत्पत्ति थशे. त्यारबाद :
ब.
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कल्प० ढिक नामे गाममां चमरें प्रजुने कुशल पूब्युं. त्यांथी षएमानि नामे गाममांप्रजु बहारना नागमा सुवोण
प्रतिमाथी रह्या हता, तेमनी पासे एक गोवाली पोताना बेलो मूकीने गाममा गयो. पनी वीने है। ॥ ॥
तेणे प्रजुने पूज्युं के हे देवार्य ! मारा बेलो क्यां गया? पण प्रनु मौन रहेवाथी तेणे गुस्से थक्ने प्रजुना है कानमां एवी रीतेवांसना खीला गेक्या के जेमना अग्र जागअंदर एक बीजाने अमक्या अने बहारना। श्रय नाग कापी नाखीने ते न देखाय एवा करी दीधा प्रजुए त्रिपृष्ठना नवमां शय्यापालकना कानमांजे ४ तपावेढुंसीसुंरेमाव्यु हतुं,ते उपार्जन करेलुं कर्मश्रावी रीते वीरनवने विषे उदयमां श्राव्यु.ते शय्यापा-1 लक नव जमीने आज गोवाली थयोहतो. त्यांथी प्रनु मध्यमअपापामां गया.त्यां सिझार्थ नामे वणिकने घेर प्रजुने निदा माटे श्रावेला जोश्ने खरक नामना वैद्ये प्रजुने शस्य सहित जाएया. पनी ते वणिके वैद्यनी साथे उद्यानमां जश्ने ते खीलाने साणसीथी प्रजुना कानमांथी खेंची कढाव्या.
ते काढती वखते वीर प्रजुए एवो अरेराट शब्द कयों के जेथी सघलु उद्यान महा जयंकर थयु. त्यां8 सालोकोए एक देवालय पण बंधाव्यु. पली प्रनु संरोहिणी नामनी औषधिथी नीरोगीथया, तथा ते वैद्य
श्रने वणिक बन्ने वर्गमां गया तथा ते गोवाली सातमी नरके गयो. एवी रीते उपसर्गो गोवालीआधीर शरु थया अने गोवालीआथीज पूर्ण थया. | हवे ते उपसर्गोमांजघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट ए विनागले. ते या प्रमाणे-कटपूतनानो शीतोप-12 सर्ग जघन्यमा उत्कृष्ट जाणवो, कालचक्रनो मध्यममा उत्कृष्ट जाणवो, तथा कानमाथी खीला खेंचवानो उत्कृष्टमां उत्कृष्ट जाणवो. ते सघला उपसर्गो वीर प्रजुए सम्यक् प्रकारे सहन कर्या. ___ त्यारपली श्रमण जगवान् श्रीमहावीर प्रजु अणगार थया. केवा शणगार थया ते
॥ ए। र्यासमिति एटले हलनचलनमा उत्तम प्रवृत्तिवाला थया, तथा नाषासमिति एटले बोलवा करवामां उत्तम प्रवृत्तिवाला थया, तथा एषणासमिति एटले बेंतालीश दोषोए करीने रहित एवी निदा ग्रहण करवामां उत्तम प्रवृत्तिवाला थया, तथा श्रादाननंम्मतनिदेपणासमिति एटले श्रादान कहेतां
*SHARASHASASSASSSSSS
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सिंद्धार्थ शेठऔषध सई नभोठे
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उपकरण थादिक ग्रहण करवामां तथा नाममात्रा कहेतां वस्त्र प्रमुख उपकरणनी जातने अथवा नांग कहेतां वस्त्र आदि तेमज माटीनां वासणने अने मात्र कहेतां पात्रां विगेरेने मूकवामां पण समितियुक्त थया, अर्थात् तेमने बरोबर जोश्प्रमार्जीने उपाडवा तथा मूकवा लाग्या. तथा पारिष्ठाप-टू निकासमिति एटले विष्ठा, मूत्र, थुक, श्लेष्म, देहनो मेल इत्यादिक नाखवा करवामां पण सावधान है रथया, अर्थात् तेमने शुरू जगो पर नाखवा लाग्या.थहीं बेसी बे समिति जो के प्रजुने नांड तथा
श्लेष्म श्रादि नहीं होवाश्री संजवतीज नथी, तोपण तेऊनां नामना अखंमितपणा वास्ते एम कडं .18 ४वली एवी रीते मन, वचन अने कायानी उत्तम प्रवृत्तिवाला थया, तथा अशुन परिणामथी पाल
फरनारा होवाथी मन, वचन अने कायानी गुप्तिवाला थया अने तेथी गुप्त तथा गुप्त इंजियोवाला, तथा वसती श्रादि नव वाडोथी शोजता ब्रह्मचर्यने श्राचरे ने माटे गुप्त ब्रह्मचारी थया, तथा क्रोधरहित । मानरहित, मायारहित अने लोजरहित तथा अंतर्वृत्तिथी शांत, बहिर्वत्तिथी प्रशांत अने बंने वृत्तिथी उपशांत तथा सर्व प्रकारना संतापथी रहित थया, तथा हिंसा आदिक श्राश्रवारनी विरतिथी पाप-18
कर्मनां बंधनोथी रहित थया, तथा ममताए करीने रहित थया, तथा अव्य आदिकथी पण रहित र हथया, तथा निन्नग्रंथ एटले हिरण्य (सुवर्ण) आदिकनी ग्रंथिथी रहित थया, तथा अव्य जावरूप,
मलना निर्गमनथी निरुपलेप थया, तेमांव्य मल एटले शरीरथी उत्पन्न थतो मल तथा नाव मल 2 एटले कर्मथी उत्पन्न थतो मल,ते बन्नेथी रहित थया. (अहीं निरुपलेपपणुं दृष्टांते करीने दृढ करे . कां-13 सानुं पात्र जेम पाणीथी मुक्त होय ने तेम स्नेहथी मुक्त अर्थात् जेम कांसा, पात्र पाणीथी अपातुं नथी, तेम नगवान् पण स्नेहथी लेपाता नथी ए अर्थ जाणवो).तथा शंखनी पेठे राग श्रादिकने विषे नहीं रंगा
वाथी निरंजन थया,तथा जीवनी पेठे सर्व जगोए स्खलनारहित गमन करनारा, तथा श्राकाशनी पेठे * कोश्ना पण आधारनी अपेक्षा नहीं करनारा होवाथी निरालंबन, तथा वायुनी पेठे एकज जगोए नहीं
रहेनारा होवाथी अप्रतिबझ, तथा शरद् ऋतुना पाणीनी पेठे काबुष्ये करीने अकलंकित होवाथी शुरु
MARCHANAURURASKUMARIES
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कल्प
सुबोध
॥1
॥
आदिकनी सहामानी पेठे ए|
पया, नारंपनियत निवास
SROCCOCOMSECORDCRECAUSESASURCC00
हृदयवाला थया,तथा कमलपत्रनी पेठे निर्लेप थया,एटले जेम कमलपत्र पर लेप लागतो नथी,तेम प्रजुने 8 हूँ पण कर्मोनो लेप लागतो नथी, तथा काचबानी पेठे गुप्त इंडियोवाला, तथा गेंमाना शिंगमानी पेठे ए, है काकी अर्थात् गेंमाने जेम एकज शिंगडं होय ,तेम नगवान् पण राग आदिकनी सहाय विनाना, तथा ? पक्षीनी पेठे परिवारनुं मूकवापणुं होवाथी अने अनियत निवास होवाथी विषमुक्त थया, तथा नारंग पक्षीनी पेठे प्रमाद विनाना थया,नारंग पदीना जोडलानुं एकज शरीर होय ने कह्यु के जारंग पदी-8
एक पेटवाला, पृथग ग्रीवावालांत्रण पगवालांतथा मर्त्यनी नाषा बोलनारां होय जे अने तेउनु मृत्यु निन्न फलनी श्वाथी थाय , वली ते अत्यंत अप्रमादी थया थका जीवे ने एउपमा जाणवी. वली में हाथीनी पेठे कोरूपी शत्रुने हणवाने शूरा, तथा वृषजनी पेठे पोते अंगीकार करेला व्रतनारने
उपामवाने समर्थ होवाथी जातपराक्रम, तथा सिंहनी पेठे परिषहादिकरूप श्वापदथी नहीं जीताय 51 ६ तेवा होवाथी पुर्डर्ष, तथा मेरुनी पेठे उपसर्गोरूपी पवनथी चलायमान नहीं थवाथी अप्रकंप, है तथा हर्ष तेमज शोकन कारण होय तेने विषेपण विकार रहित वनावने लीधे समुनी पेठे गंजीर, है तथा शांतपणाने लीधे चंनी पेठे सौम्य खेश्यावाला, तथा सूर्यनी पेठे देदीप्यमान तेजवाला, अर्थात् २
अव्यथी शरीरनी कांतिथी अने लावथी झाने करी कांतिवाला थया,तथा उत्तम सुवर्णनी पेठे थयेवू स्वरूप जेमनुं एवा थया,अर्थात् जेम निश्चे मेल बली जवाथी सोनुं कांतिवाबुंथाय ,तेम नगवान, स्व-18
रूप पण कर्मरूपी मेलनो नाश थवाथी अत्यंत दीप्तिवावं थयेवं हतूं एजाव जाणवो.तथा पृथ्वीनी पेवेद + सर्व स्पर्शने सहन करनारा थया,अर्थात् जेम पृथ्वी टाढ तमको विगेरे समताश्री सहन करे ,तेम नग-है। वान् पण सघ सहन करता हवा,तथा सारीरीते घीयादिकथी सिंचायेलो जे अग्नितेनी पेठे तेजथीजाज्वल्यमान थया. वली ते प्रजुने एवो पदनथी के कोपण जगोए तेमने प्रतिबंध थाय एटले तेम
2 ने कोइ पण जगोए प्रतिबंध नहोतो ए जाव जाणवो.ते प्रतिबंध चार प्रकारनो कहेलो बे. ते याप्रमाणेअव्यथी, क्षेत्रथी, कालथी अने नावथी. तेमां अव्यथी सचित्त, अचित्त अने मिश्र ए त्रण प्रकारे है।
॥॥
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जाणवो. सचित्त अव्य एटले स्त्री श्रादिक, श्रचित्त अव्य एटले श्रानूषण श्रादिक,तथा मिश्र अव्य है एटले शणगारेली स्त्री आदिक तेने विषे. क्षेत्रधी एटले को गाममां, नगरमां.अरण्यमां, धान्य जेमां उत्पन्न थाय एवा क्षेत्रमां, खल कहेतां धान्यने फोतरांथी जूदा करवाना स्थानकमां. घरमां, अथवा घरनाआंगणामां अथवा आकाशमां. कालथी एटले समय जेवा अति सूक्ष्म कालमां के जे काल सेंकडो 8 कमलपत्र विंधवाना अथवा जीर्ण सामी फाडवा आदिना दृष्टांतथी जणाश्यावे , तथा श्रावलि एटले असंख्याता समयवाला कालमां, तथा श्वासोश्वासना प्रमाणवाला कालमां, तथा स्तोक एटले सात
नाप्रमाणवाला कालमां, तथा दाण एटले घमीना बहा नागना प्रमाणवाला कालमां, तथा लव एटले सात स्तोकना मानवाला कालमां, तथा मुहूर्त कहेतां सत्तोतेर लवना मानवाला कालमां, एवी रीते रात्रि दिवस, पक्ष, मास,झतु,अयन अथवा वर्ष पर्यंतना कालमां,तथा बीजा पण युगपूर्व,अंगपूर्व श्रादिक लांबा कालमां. हवे नावथी एटले क्रोधमां,मानमां,मायामां,लोनमां,नयमां, हास्यमां,प्रेममा, षमा, कलहमां, मिथ्या कलंक देवामां, चामीमां, परना अपवादमां, मोहनीयना उदयथी थती रति । अरतिमां, कपट सहित मृषावादमां, तथा मिथ्यात्वरूपी अनेक पुःखना हेतुरूप एवा शस्यमां. एवी रीते पूर्वोक्त स्वरूपवाला जव्य, क्षेत्र, काल अने नावने विषे को पण जगोए प्रजुने प्रतिबंध नहोतो.
हवे ते श्री वीर प्रजु वर्षाकालना चार मास वर्जीने बाकीना ग्रीष्म अने हेमंत ऋतु संबंधी थाउमासमां गाममां एक रात्रि तथा नगरमा पांच रात्रि सुधी रहेता.वली ते प्रजु केवा ? तो के वासी कहेतां सुतारनुं लाकमां बोलवानुं हथियार तथा चंदन, ते बन्नेने विषे तुल्य अध्यवसायवाला, वली ते प्रजु केवा? तो के तृण,मणि,पाषाण थने कांचनमां पण तुल्य दृष्टिवाला,तथा सुख दुःखमां पण तुल्य खनाववाला,तथा थालोक अने परलोकमां पण प्रतिबंध विनाना, अने तेथी करीनेज जीवित अने मरणमा है वांबा रहित एवा, तथा संसाररूपी समुज्ना पार प्रत्ये पहोंचेला तथा कर्मोरूपी शत्रुओने मारवा माटे
उद्यमवंत थयेला एवा प्रजुश्रा क्रम प्रमाणे विचरवा लाग्या.
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कल्प
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१
॥
एवी रीते प्रजुने विचरतां थका अनुपम एवा ज्ञानथी,अनुपम एवा दर्शनथी,अनुपम एवा चारित्रथी, सुबो० अनुपम एवा श्रालयथी एटले स्त्री,नपुंसक विगेरेथी रहित घरमा रहेवाथी, अनुपम एवा विहारे है करीने,अनुपम एवा पराक्रमथी, अनुपम एवा सरलपणाथी,अनुपम एवा निरनिमानथी, अनुपम एवा, लाघवपणाथी,एटले अव्यथी अल्पोपधिपणाथी,तथा जावथी गौरवत्रयना त्यागथी,अनुपम एवी दमा-3 थी,अनुपम एवा निर्लोनपणाथी,अनुपम एवी मनोगुप्ति आदिकथी,अनुपम एवा संतोषथी तेमज सत्य,
संयम तथा वार प्रकारनो तप,तेोनुं जे सदाचरण,तेणे करीने पुष्ट थयेलु डे मुक्तरूपी फल जेनु,एवी रीतिनो रत्नत्रयरूप जे अनुपम एवो मोक्षमार्ग तेणे करीने-एवी रीते उपर वर्ण वेला सर्व गुणोना समूहथी ।
श्रात्माने जावतां थका बार वर्ष वीती गया.ते श्राप्रमाणे-तेमां एक उमासी करी. बीजी मासी पांच ६ दिवस उगनी करी. नव चोमासी करी.वे त्रणमासी करी.बे अढीमासी करी. उ बेमासी करी. वे दोढ-18
मासी करी.बार मासक्षपण काँ. बहोतेर पक्षपण काँ. बे दिवसना प्रमाणनी नअप्रतिमा करी./हूँ। चार दिवसना प्रमाणनी महाजनप्रतिमा करी. दश दिवसना प्रमाणनी सर्वतोनप्रतिमा करी. बसें है। ने गणत्रीश बह कर्या. बार अहम कर्या. त्रणसें ने ओगणपचास पारणां कर्या. एक दीदानो दिवस थयो. श्राप्रमाणे बार वरस अने सामा उमासनो उद्मस्थ पर्याय थयो. श्रा सघलो तप प्रजुए जलरहित है।
कयों. तेम नित्य जक्त के चतुर्थ जक्त कोइ दहामो पण कर्यु नहीं. है। एवी रीते तेरमा वर्षनी अंदर वर्तता एवा प्रजुने जे या ग्रीष्मकालनो बीजो मास, चोथो पद एटले है
वैशाखनो शुक्ल पक्ष, ते वैशाखना शुक्ल पक्षनी दशमीने दहाडे पूर्व दिशा तरफ बाया जाते बते,पाश्चात्य , पौरुषी संपूर्ण होते बते,केवी रीते ? तो के प्रमाण प्राप्त अर्थात् पौरुषीन्यूनाधिक न होते ते,सुव्रत नाम-11 ना दिवसे, विजय नामना मुहूर्ते, गॅनिकग्राम नामना नगरनी बहार,झजुवालुका नामनी नदीने कांठे, 51 व्यावृत्त नामे जुना एवा एक व्यंतरना देवलनी नहीं अति पूरे,तेम नहीं अति नजदीके, श्यामाक नामे है कौटुंबिकनां क्षेत्रमां, सालनामना वृक्षनी नीचे, ग
मना उत्कटिक आसने बेठा थका, था
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४/तापना वडे श्रातापना खेतां थका,जलरहित बहनो तप होते बते, तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रने विषेश चंडनो योग प्राप्त थये बते, ध्यानना मध्य नागमां वर्त्तते उते, अर्थात् शुक्ल ध्यानना चार नेदो ,पहेलु पृथक्त्ववितर्कवालु सविचार, वीजें एकत्व वितर्कवालुं अविचार, त्रीजुं सूक्ष्म क्रिय अप्रतिपाति तथा चोधुं नछिन्नक्रिय अनिवर्ति; तेोमांधी पहेला बे नेदोवालुं ध्यान धरत बते, अनंत एटले अनंत
वस्तुनुं जाणपणुं ने जेमां एवां, अनुपम, वाधा रहित, श्रावरण रहित,संपूर्ण तथा सर्व अवयवे युक्त ४/एवां केवलज्ञान अने केवलदर्शन उत्पन्न थयां. । एवी रीते केवलझान उपन्या बाद श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजु "अर्हन् ” थया, अर्थात् अशोक वृक्ष आदिक प्रातिहार्यथी पूजाने योग्य थया. वली केवा ? तो के जिन कहेतां रागद्वेषने जीतनारा थया, तथा केवली, सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी थया. तथा देव, मनुष्य अने असुर सहित लोकना पर्यायोने जाणनारा तथा जोनारा थया. त्यारे शुं फक्त देव, मनुष्य अने असुरोनाज पर्यायोने जाणनारा थया ? तो के एम नहीं, सर्व लोकने विषे रहेला सर्व जीवोनी नवांतरथी , थागति, नवांतरमांगति, स्थिति एटले तन्नव संबंधी आयुष्य अथवा कायस्थिति, च्यवन एटले देवलोकथी तिर्यंच अने मनुष्यने विषे अवतार, उपपात एटले देवलोकमां अथवा नरकमां उत्पत्ति, तथा सर्व जीव संबंधी (जीवोनां) मन, मनमां चिंतन करे, नोजन फलादि, चोरी श्रादिक कार्य, मैथुन आदि प्रतिसेववं, प्रगट कार्य तथा गर्नु कार्य, ते सघलु सर्व जीवोनुं जगवान् जाणनारा थया.वली ते प्रनु केवा ? तो के त्रणे जुवनने करामलकनी पेठे जोनार होवाथी नथी रहेल कंपण गुप्त जेने एवा, तथा जघन्यपणाथी क्रोम देवो तेमनी सेवा करनारा होवाथी एकांतने नहीं नजनारा एवा ते प्रजु ते ते कालने विपे मन, वचन अने कायाना योगोमा यथायोग्यपणे वर्तता एवा सर्व लोकने विषे सर्व जीवो, तेना सर्व नावोने जाणता अने जोता थका विचरवा लाग्या. वली "सबजी
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कल्प०
॥ ८२ ॥
वाणं" ए पदमां अकारनो प्रश्लेष होवाथी सर्व अजीव एटले धर्मास्तिकाय व्यादिकना पण सर्व पर्यायोने जाणता ने जोता थका प्रभु विचरवा लाग्या एवो पण अर्थ जाणवो.
हवे ते अवसरने विषे एकठा मलेला देव असुर प्रत्ये पत्थरवाली जमीन पर पडेला वरसादनी पेठे | क्षणवार निष्फल एवी देशना दइने प्रभु पापापुरीमां महसेन नामे वनमां गया. त्यां यज्ञ करावता एवा | सोमिल नामे ब्राह्मणना घरमां घणा ब्राह्मणो एकठा थया हता. ते मां इंद्रभूति, अग्निभूति तथा वायजूति नामे त्रण सगा जाइ हता. ते चौदे विद्यामां प्रवीण हता. अनुक्रमे ते मां पहेलाने जीवनो, बीजाने कर्मनो तथा त्रीजाने तेज जीव ने तेज शरीरनो संदेह हतो. तथा ते दरेकने पांचसो पांचसो शिष्योनो परिवार हतो. तेवीज रीते व्यक्त ने सुधर्मा नामना वे ब्राह्मणो तेटलाज परिवारवाला तथा तेवाज | विद्वानो हता. अनुक्रमे तेर्जमांथी पहेलाने पंच भूतो बे के नहीं ? एवो संदेह हतो, तथा बीजाने “जे जेवो ते तेवोज" एवो संदेह दतो. वली तेवाज विद्वान् मंकित ने मौर्यपुत्र नामे वे जाइ हता. ते | दरेकने सामा त्रणसो शिष्योनो परिवार हतो. अनुक्रमे ते मांश्री पहेलाने बंध मोहनो, तथा बीजाने | | देवना संबंधमां संदेह हतो. तथा अकंपित, अचल जाता, मेतार्य अने प्रजास नामे चार ब्राह्मणो हता. ते दरेकने त्रणसो त्रणसो शिष्योनो परिवार हतो; तथा अनुक्रमे ते मांथी पहेलाने नारकीनो, बीजाने पुण्यनो, त्रीजाने परलोकनो तथा चोथाने मोनो संदेह हतो. एवी रीते ते ग्यारे विद्वानोने एक | एक संदेह हतो, पण पोताना सर्वज्ञपणाना अजिमाननी कृतिना जयथी ते मांहोमांहे कोइने प | पोतपोताना संदेह विषे पूठता नहोता. एवी रीते तेर्जना परिवारना चुमाली सें ब्राह्मणो, तथा बीजा पण उपाध्याय, शंकर, ईश्वर, शिवजी, जानी, गंगाधर, महीधर, नूधर, लक्ष्मीधर, पंड्या, विष्णु, मुकुंद, गोविंद, पुरुषोत्तम, नारायण, डुवे, श्रीपति, उमापति, गणपति, जयदेव, व्यास, महादेव, शिवदेव, मूलदेव, सुखदेव, गंगापति, गौरीपति, त्रिवामी, श्रीकंठ, नीलकंठ, हरिहर, रामजी, बालकृष्ण, यडुराम, राम, रामाचार्य, राजल, मधुसूदन, नरसिंह, कमलाकर, सोमेश्वर, हरिशंकर, त्रिकम, जोशी, पूनो,
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रामजी, शिवराम, देवराम, गोविन्दराम,रघुराम,दिराम विगेरे घणा ब्राह्मणो त्यां एकग थया हता.
श्रा वखते प्रजने वांदवा माटे श्रावतासुर अने असुरोने जोश्ने ते ब्राह्मणो विचारवा लाग्या के अहो! था यझनो महिमा केवो !! के श्रहीं था देवो सादात् पधार्या ,पण पड़ी तो तेने ते यज्ञमप तजीने प्रजुनी पासे जता जाणीने ते खेद पामवा लाग्या.पली माणसोनां मुखथी तेने सर्वप्रजुने वांदवा जतासांजलीने अनूति क्रोधवालो थयो थको विचारवा लाग्यो के अरे!! हंसर्व होते बते पण बीजो कोश्वली पोताने शुं सर्वज्ञ लेखावे !!! अरे ! कानने नहीं सांजली शकाय एवं था| कम वचन माराथी केम संजलाय!!! अरे ! वली कदाचित् को पण मूर्ख तो कोश् धूर्त थी उगाय, पण आणे तो देवोने पण उग्या बे; केमके श्रावी रीते आ देवो यज्ञममपने अने मने सर्वज्ञने तजीने । ४/तेनी पासे जायचे. थहो ! ए देवता केमन्त्रांति पाम्या ? के जे तीर्थजलने तजी देनारा कागमानी
पेठे, (कमलाकर) तलावने तेजी देनारा देमकानी पेठे, चंदनने तजी देनारी माखीनी पेठे, सारांकामने तजी देनारा उंटनी पेठे, हीरानने तजी देनारा लुमनी पेठे अने सूर्यना प्रकाशने तजी देनारा घुवमनी पेठे याने तजीने चाल्या जाय ? अथवा जेवो था सर्वज्ञ तेवाज था देवो पण ने, माटे
सरखे सरखो जोग मल्यो !!! कडं ले के सरखापणुं तो जुर्ज,के नमरो आंबाना महोर उपर गुंजारव करे है ४ अने वली कागमानो समूह लीबमाना महोर उपर आकुल थयो थको मले डे, तोपण ढुं तेना
सर्वज्ञपणाना आटोपने सहन करी शकीश नहीं; केमके श्राकाशमां शुंबे सूर्य होश्शके ? अथवा एक गुफामां शुं वे सिंह रही शके ? अथवा एक म्यानमां शुंबे तलवार हो। शके ? तेवी रीते हुँ
श्रने आ बंने सर्वज्ञ शी रीते थइ शकीए ? ४ा हवे प्रजुने वांदीने पाला वलता लोकोने तेणे हांसीपूर्वक पूज्यु के अरे ! लोको! ! तमोए ते सर्व
इने जोयो ? ते केवा रूपवालो ने ? तेनुंझुंखरूप ले ? त्यारे लोकोए कडं के जोत्रणे लोक (त्रणे लोकमां । रहेला जीवो) गणवाने तत्पर थाय, तेमना श्रायुष्यनी समाप्ति न होय अने जो परार्धथी उपर ग-18
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कल्प
॥
३॥
&ाणित होय तो गणवालायक ने समस्त गुणो जेना एवा ते थाय ( अर्थात् तेना समस्त गुणो गणी|
शकाय ). लोकोए एम को बते इंअनूति विचारवा लाग्यो के निश्चे श्रा कोश् महा धूर्त वे तथा मायाने रहेवानुं खास घर , केमके नहींतर ते समस्त लोकोने विन्रममां केम पामी शके ? माटे ते| सर्वज्ञने हुँ कदि क्षणवार पण सहन करी शकीश नहीं; केमके अंधकारना समूहने दूर करवाने सूर्य कंश वाट जोतो नथी. वली अग्नि हाथना स्पर्शने, सिंह पोतानी केशवालीना खेंचवाने तथा क्षत्रिय पोताना शत्रुथी थता अपमानने कदि सहन करी शकतो नथी; कारण के में वादीना सोने पण बो-18 लता बंध करी दीधा ले तो पनी पोताना घरने विषेज शूरवीर एवो था सर्वज्ञ मारी पासे कोण ? जे अग्निए मोटा पर्वतोने वाली नाख्या २ तेनी आगल वृदो कोण मात्र ने ? जेणे हाथीने उमामी मूक्या बे एवा वायुनी आगल रुनी पुणीनुं शुं जोर चाले ? वली मारा जयथी गौम देशमा जन्मेला : मितो तो पूर देशमा चाल्या गया , तथा गुर्जर पंमितो तो मारा नयथी जर्जरित थश्ने त्रास पाम्या : बे, तथा मालवाना पंमितो मरी गया बे, तथा तिलंग देशमां जन्मेला पंडितो तो मारा नयथी कृश शरीरवाला थया ने. अरे ! वली लाट देशमां जन्मेला पंमितो तो माराथी मरीने क्याए जागी गया ,
तथा प्रविम देशना चतुर पंमितो लजातुर थया . अरे! ज्यारे हुं वादीनो श्चातुर थयो ढुं, त्यारेज-18 ६ गतमा वादीनो पण मोटो उकाल पड्यो ; तो मारी बागल वली श्रा कोण वादी ले के जे पोताना
सर्वज्ञपणाना मानने धारण करे ? एम धारीने ज्यारे त्यां प्रनु पासे जवाने ते नत्कंठित थयो, ॐत्यारे अग्निनूतिए तेने आप्रमाणे कयु के हे बंधु ! ते एक वादीकोट (दम विनाना वादी) पासे
जवाने तमारे प्रयास सेवानी शी जरुर ले ? हुं त्यां जा ढुं, केमके एक कमलने उखेमी नाखवा माटे है \ ऐरावणने लश्जवाय खरो? त्यारे अनूतिए कह्यु के जो के ते तो मारा शिष्यथी पण जीती शकाय
तेवो बे,पण ते प्रवादीनुं नाम सांजलीने माराथी अहीं रही शकातुं नथी. जेम(तल)पीलतां को तलनो है दाणो रही जाय, जेम दलतां अनाजनो दाणो रही जाय,जेम नखेमता कोश् तणखबुं रही जाय, जेम
॥३॥
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अगस्तिने (समुद्र) पीतां सरोवर रही जाय तथा खांडतां कोइ पण फोतरुं रही जाय तेनी पेठे श्रा मने थयो वे. तोपण हुं फोकट सर्वज्ञवादीने सहन करी शकतो नथी. ए एक न जीताय तो सर्व पण न जीतायुं थाय. सती स्त्री एक बार पण शीलत्रतथी प्रष्ट थाय तोपण ते हमेशां सतीज कड़े वाय. आश्चर्य वे के त्रण जगतमां हजारो वादीने में वाद वडे जीत्या डे, पण खीचमीनी हांगली मां जेम कोइ कांगडुं मग रही | जाय तेम या वादी रही गयो बे. वली आवादीने जीत्या विना मारो जगतने जीतवाथी उत्पन्न थयेलो यश पण नाश पामशे, केमके शरीरमां र हेलुं अल्प शल्य पण प्राणने तजावे बे. कथं बे के वहाणमां एक अल्पबित्र परुवार्थी पण शुं ते समुद्रमां डुबी जतुं नयी ? तथा एक इंट खसेमवाथी पण समस्त किल्लो | पमी जाय बे. इत्यादि विचार करीने करेल बे बार तिलको जेणे एवो, तथा सोनानी जनोश्थी विनू| षित थयेलो, तथा उत्तम रीते करेल वे पीलां वस्त्रोनो आनंबर जेणे एवो, तथा हाथमां धारण करेल बे पुस्तको जेनुए एवा केटलाक शिष्योथी वींटायेलो, तथा हाथमां पकडेलां वे कर्ममलुट जेर्जए एवा केटलाक शिष्योथी वींटायेलो, तथा दाथमां राखेल बे दर्ज जेए एवा केटलाक शिष्योथी वींटायेलो, तथा हे सरखती जेना कंठनुं आभूषण बे एवा ! हे वादी नी विजयलक्ष्मी ने शरण सरखा ! हे वादीउना | मदने उतारनारा ! हे वादीनां मुखने जांगनारा ! हे वादी रूपी हाथी प्रत्ये सिंह सरखा ! हे वादीउना ईश्वरनो नाश करनार ! हे वादीरूपी सिंह प्रत्ये श्रष्टापद सरखा ! हे वादीने जीतवाथी निर्मल | थयेला ! हे वादी र्जना समूहना राजा ! हे वादी उना शिर प्रत्ये काल सारखा ! हे वादी रूपी केल प्रत्ये तलवार सरखा! हे वादी रूपी अंधकार प्रत्ये सूर्य सरखा ! हे वादीरूपी घने पीसवाने घंटी सरखा ! हे | वादीना मदनुं -मरमनुं मर्दन करनार ! हे वादीरूपी घमाने तो मवाने मुजर (मोघर) सरखा ! हे वादी रूपी | घुमने सूर्य सरखा! हे वादी रूपी समुद्र प्रत्ये अगस्ति ऋषि सरखा ! हे वादी रूपी वृक्षने उखेकी नाख| वामां हाथी सरखा! हे वादी रूपी देवोना इंद्र सरखा! हे वादी रूपी गरुड प्रत्ये गोविंद सरखा ! हे वादीरूपी माणसोना राजा ! हे वादीरूपी कंसने मारवामां कृष्ण सरखा ! हे वादी रूपी हरिण प्रत्ये सिंह
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कल्प
सुबोग
॥
४॥
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सरखा! हे वादीरूपी ज्वर प्रत्ये धन्वंतरि वैद्य सरखा! हे वादीरूपी टोलाना मस सरखा! हे वादीयो- नां हृदय प्रत्ये शख्य सरखा! हे वादीओना समूहने जीतनारा! हे वादीयोरूपी पतंगीयांश्रो प्रत्येदीपक सरखा!हे वादोश्रोना समूहना मुगट सरखा! हे पंमितोमां शिरोमणि सरखा ! हे जीतेल ने श्रनेक वादो जेणे एवा! हे सरखतीथी मलेल ने प्रसाद जेने एवा ! एवी रीते विरुदावलीथी गजावी दीधेल ने दिशाश्रोनो समूह जेणे एवा पांचसो शिष्योश्री वीटायेलो अनूति वीर प्रजु पासे जतो थको । विचारवा लाग्यो के अरे! या कुष्टे था शुं कर्यु के मने सर्वज्ञपणाना श्राटोपथी तेणे गुस्से कर्यो !!! केमके देमको काला सर्पनेलातो मारवा तैयार थयो ! अथवा तो लंदर पोताना दांतथी बिलामीना दांत पामवा तैयार थयो !अथवा बलद पोतानां शिगमां वडे इंजना हाथीने जल्दीथी मारवानी बाकरे * ने!अथवा हाथी पोताना दांतथी तुरत पर्वतने पामी नाखवानो यत्न करे !अथवा शशलो केसरी सिं-12
हना स्कन्ध उपरनी केशवालीने खेंचवाने श्छे ! के जे मारी दृष्टि धागल लोकमां ए पोतानुं सर्वज्ञपणुं है प्रसिक करे ले ? शेषनागना मस्तक उपर रहेला मणिने लेवा माटे तेणे पोतानो हाथ लांबो कर्यो ; हूँ
केमके सर्वाना अनिमानथी तेणे मने कोपायमान कर्यो बे. पवननी सन्मुख थश्ने तेणे दावानल
सलगाव्यो , अथवा पोताना शरीरनां सुख माटे तेणे कवचनी वेलमी साथे निश्चे आलिंगन कयु ; ४ एम हो, पण तेथी ! हमणांज हुँ तेने निरुत्तर करी दश्श, केमके ज्यांसुधी सूर्य उगतो नथी त्यांसु
धीज पतंगीचं तथा चंड गाजे बे(पोताना जोरमां रहे ),पण सूर्य उग्या बाद तो तेओ हता नहता है यश जाय . वली हे हरिण, हाथी, घोमा विगेरेना समूहो! तमे जब्दीश्रा वन थकी पूर जाओ, केमके थाटोप सहित कोपथी स्फुरायमान थयेल ने केशवालीनी शोजाजेनी एवो केसरी सिंह अत्रे था-18 |वे बे. वलीमारा नाग्यना समूहथीज यावादीअहीं श्रावी पहोंच्यो ,माटे खरेखर थाजे तेनी जीननी खरज हुँ दूर करीश. वली लक्षणशास्त्रमांतो मारुं ददपणुं ,साहित्यशास्त्रमांमारी बुझिएकत्रथयेली बे, तर्कशास्त्रमा पण माझं अत्यंत कठिणपणुं(निपुणपणुं), माटे कया शास्त्रमा में श्रम कर्यो नथी?
॥
४
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वली यमने मालव देश शुंधर ? तथा पंमितने निश्चे अपोषित रस कयो ? तथा चक्रीने अजेय गुंडे ?|| तथा वज्रने अनेद्य कश् वस्तु ? तथा महात्माओने शुं असाध्य डे ? तथा नूख्याने गुंखाद्य नथी ? तथा खलने कहेवा योग्य अ॒नथी? तथा कल्पवृदने न आपवा योग्य शुंडे ? तथा वैरागीने न त्यजाय एवं| शुं ? तो पठी हुं तेनी पासे जाउं अने तेनुं पराक्रम जोजवलीत्रणे लोकने जीतनार तथा महा पराक्रमी एवा मने पण अहीं शुं अजेय ले ? माटे हवे त्यां जश्तेने हुं जीती लजं.इत्यादि विचार करतो थको प्रजुने ।
जो पगथी पर रह्यो थको विचारवा लाग्यो के ा ते शुंब्रह्मा, विष्णु,के सदाशिव शंकर ? वली शुरू इथा चंद्र बे? ना, तेम तो नहीं,केमके चं तो कलंक युक्त जे. त्यारे अ॒सूर्य जे ? ना, तेम पण नहीं, केमके
सूर्य तो तीत्र कांतिवालो .त्यारे शुं मेरु ले ? ना,तेम पण नहीं,केमके मेरु तो घणोज कठिन ने.त्यारे । शुं विष्णु ने ? ना, तेम पण नहीं, केमके विष्णु तो श्याम रंगना ले. त्यारे शुं ब्रह्मा बे ? ना, तेम पण : नहीं, केमके ब्रह्मा तो घरमा बे. त्यारे शंते कामदेवले ? ना, तेम पण नहीं, केमके ते तो शरीर नो . हवे मालुम पड्यु के था तो दोषरहित तथा सर्वगुणसंपन्न एवा नेता तीर्थकर बे. । एवीरीते सुवर्णना सिंहासन पर बेठेला,इंडोथी सेवाता अने जगतने पण पूजनीक एवा श्री वीर प्र-5 ६ जुने जोश्ने ते अनूति मनमां विचारवा लाग्यो के अरे! हवे हुँ पहेलां उपार्जन करेऱ्या महत्त्व केम राखी
शकीश? वली एक खीलाने माटे श्राखो महेल जांगवानी कोणश्छा करे ? वली एकने नहीं जीत्याथी ? मारीमानहानिशी थवानी ले ? वली जगतने जीतनारो बुं एवं नाम हवे केम करीश ?वली अरे!में वगर 5 विचायु काम कर्युबे,केमके मंद बुझिएवो जे हूं ते था जगदीशना अवतारने जीतवा माटे श्राव्योबुं.18 ४वली हुं तेनी पासे शीरीते बोली शकीश? तथा तेनी पासे पण शी रीते जडू शकीश ? माटे हवे तो संक-हू
टमां पड्यो बु, तेथी शिव मारा यशनुरक्षण करो. वली कदाच मारा जाग्योदयथी अहीं मारो जय थाय, है त्यारे तो हुँ त्रणे जगतमा पंमितशिरोमणि थालं. एवी रीते विचार करता अनूतिने जिनेश्वर प्रजुए।
तेनां नाम अने गोत्र कहेवापूर्वक अमृत सरखी मीठी वाणीथी बोलाव्यो. हे गौतम अति !
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मन्ये ॥
तुं श्रत्रे जले छान्यो; एवं तेनुं वचन सांजलीने इंद्रभूति विचारवा लाग्यो के घरे ! या शुं मारुं नाम पण जाणे वे ! ! ! अथवा त्रणे जगतमां विख्यात एवं मारुं नाम कोण जाणतो नथी ? केमके सूर्य शुं बालगोपाल पर्यंत लोकने छानो होय खरो ? माटे वे जो मारा मनमां गुप्त रहेला संदेहने ते कही। आपे तो हुं तेमने सर्वज्ञ मानुं, न कही आपे तो कां पण न मानुं. एवी रीते विचार करता इंद्रभूतिने श्रीमहावीर प्रजुए कयुं के तारा मनमां जीवनो शो संशय बे ? तुं वेदनां पदना अर्थने जाणतो नथी. हवे ते वेदपदो सांजल पढी वीर प्रजुए करेलो वेदनो ध्वनि मथन कराता समुद्र सरखो, अथवा गंगाना पूर सरखो, अथवा आदि ब्रह्मना ध्वनि सरखो होय तेम शोजतो हतो. ते वेदनां पदो नीचे प्रमाणे जाणवतं.
" विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानुविनश्यति न प्रेत्यसंज्ञास्तीति”
प्रथम तो तुं ते पदोनो एवो अर्थ करे बे के " विज्ञानघन एटले गमन श्रागमननी चेष्टावालो श्रात्मा " एतेज्यो नूतेभ्यः" एटले पृथ्वी, पू, तेज, वायु ने आकाश ए पांच नूतथी मद्यांगमां मदशक्तिनी | पेठे उत्पन्न थने ते भूतोनी साथे नाश पामे वे एटले ते मांज पाणीमां परपोटानी पेठे लय पामे बे; | माटे एवी रीते पंच भूतथी जूदो आत्मा नहीं होवाथी प्रेत्यसंज्ञा नथी एटले मरी गया बाद तेनो पुनर्जन्म नथी, पण ते अर्थ युक्त ठे. ते पदोनो (खरो) अर्थ हवे तुं सांजल " विज्ञानघन " ए पदनो शुं अर्थ बे ? तो के "विज्ञान" एटले ज्ञान, दर्शनना उपयोगात्मक विज्ञान; वली आत्मा पण तन्मय होवार्थी ते पण " विज्ञानघन" कहेवाय; केमके आत्माना दरेक प्रदेश प्रत्ये ज्ञानना अनंत पर्यायो बे. वली ते विज्ञानघन उपयोगात्मक श्रात्मा कथंचित् भूतो थकी अथवा ते भूतोना विकाररूप | एवा घटादिकथी उत्पन्न याय बे. घटादिकना ज्ञानथी परिणत एवो जे जीव ते हेतुभूत एवा | घटादिकथीज थाय बे, केमके घटादिक ज्ञानना परिणामने घटादिक वस्तुनुं सापेक्षपणुं रहेतुं बे एवी रीते ए नूतरूप घटादिक वस्तुथी तेना उपयोगपणाने लीधे जीव उत्पन्न यइने तेमांज
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लय पामे बे; एटले ते घटादिक वस्तु नाश पाम्ये उते अथवा व्यवहित होते ते तेना उपयोगपणाए करीने जीव पण नाश पामे बे, अने बीजा उपयोगपणाए करीने पालो उत्पन्न थाय अथवा सामान्यरूपपणाए करीने ते रहे , थने तेथी करीने प्रेत्यसंज्ञा नथी, एटखे तेने पहेलांनी घटादिकना उपयोगरूप संझा रहेती नथी; केमके वर्तमान उपयोगपणाथी तेनी घटादिक संज्ञा नाश पामेली बे. वली था श्रात्मा ज्ञानमय बे, अने जे दम, दान अने दया ए त्रणे दकार जाणे ते जीव. वली विद्यमान नोक्ता जेनो एवं श्रा शरीर चावल थादिकनी पेठे नोग्यपणाए करीने
ने एटले चावल जेम नोग्य जे तो तेनो नोक्ता पण ने, तेम शरीर नोग्य ने अने तेनो लोक्ता विद्यहै मान ने इत्यादि अनुमाने करीने पण जीव ले. तेमज वली पूधमां जेम घी, तलमां तेल, काष्ठमा
अग्नि, पुष्पमा सुगंध तथा चंकांतमा अमृत रहे , तेम आ आत्मा पण शरीरमा रहे, अने ते शरीरथी जूदो बे. एवी रीतनां प्रजुनां वचनथी नाश थयेल डे संदेह जेमनो एवा इंजनूतिए पांचसो शिष्योना परिवार सहित प्रनु पासे दीक्षा लीधी, अने तेज वखते "उपन्ने श्वा, विगमेश्वा अने - धुवे वा” ए त्रिपदी प्रजुना मुखथी पामीने तेणे छादशांगीनी रचना करी ॥इति प्रथम गणधर ॥
हवे तेना बीजा जाइ अग्निजूतिए पोताना लाग्ने दीक्षित थयेलो सांजलीने विचार्यु के अरे ! कदापि पर्वत पीगले, बरफनो समूह सलगी उठे, अग्नि शीतल थाय अने वायु स्थिर थाय ए सर्व & संजवे, पण मारो जाइ हारे ए संजवे नहीं, तेटला माटे घणी अश्रझावाला तेणे लोकोने पूज्यु.
त्यार पड़ी तेणे निश्चय जाएये बते मनमा विचार कर्यो के त्यां जश्ने ते धूर्तने जीतीने हुं मारा नाश्ने । पाडो वाली श्रावू; एम विचारी ते पण उतावलो प्रजुनी सन्मुख श्राव्यो; त्यारे प्रजुए तेने पण तेनां 3
गोत्र विगेरे सहित एवा नामथी वोलाव्यो, तथा तेना मनमा रहेला संदेहने प्रगट करीने प्रजुए ४कयु के हे गौतमगोत्री अग्निनूति ! तारा मनमां कर्मनो शो संदेह ? अथवा वेदना तत्वार्थने तुं
प्रगट रीते जाणतो नथी ? ते था प्रमाणे . " पुरुष एवेदं नि सर्वं यन्तं यच्च जाव्यं इत्यादि।
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या पदनो तारा मनमां एवो अर्थ जासे बे के ( अहीं " ग्निं " ए वाक्यना अलंकार माटे बे.) जे छातीत कालमां थयेलुं बे, तथा जे श्रागामी कालमां थवानुं बे, ते सघलुं “पुरुष एव" यात्माज बे वहीं एवकार ए कर्म, ईश्वर या दिकना निषेध माटे बे. या वचनथी जे मनुष्य, देव, तिर्यंच, पर्वत, पृथ्वी यादिक वस्तुओ देखाय बे, ते सघलुं यात्माज बे, अने तेथी कर्मनो निषेध प्रगटज बे. वली श्रमूर्त एवा श्रात्माने मूर्त एवां कर्म वडे अनुग्रह अने उपघात शी रीते संजवे ? जेम आकाशने चंदन आदिकधी शोजित करी शकातुं नथी, अथवा तेने तलवार यादिकथी कापी शकातुं पण नथी, माटे कर्म बेज नहीं, ए प्रमाणे तारा मनमां बे, पण हे अग्निभूति ! ए अर्थ युक्त नथी, कारण के वेदनां ते पदो तो पुरुपनी स्तुतिनां बे, केमके वेदनां पदो ऋण प्रकारनां बे; तेमां केटलांक विधि प्रतिपादन करनारां बे, जेमके | स्वर्गनी इछा करनार प्राणीए अग्निहोत्र कर इत्यादि, वली केटलांक पदो अनुवाद सूचवनारांबे, जेमके बार मासनो एक संवत्सर कदेवाय इत्यादि अने केटलॉक पदो स्तुतिरूप बे, जेमके या उपरनुंज तारा संदेहवालुं पद इत्यादि, माटे ए उपर कहेला पदर्थी पुरुषनो महिमा देखामी खाप्यो बे, परंतु कर्मादिनो जाव कर्यो नथी. जेमके "जले विष्णुः स्थले विष्णुः, विष्णुः पर्वतमस्तके ॥ सर्वभूतमयो विष्णु, |स्तस्माद्विष्णुमयं जगत् ॥ १॥ एटले जलमां विष्णु, स्थलमां विष्णु ने पर्वतना शिखर उपर पण विष्णु बे, विष्णु सर्व भूतमय बे, माटे या जगतज विष्णुमय ठे. या वाक्य थी विष्णुनो महिमा कहेलो बे, पण अन्य वस्तुनो जाव कह्यो नयी. वली अमूर्त एवा आत्माने मूर्तिवंत एवां कर्म वडे अनुग्रह ने उपघात केम थाय? ते कहेतुं पण युक्त बे, कारण के मूर्तिवंत एवा मद्यादिकथी अमूर्त एवा ज्ञाननो पण उपघात थाय बे, अने ब्राह्मी श्रादिक औषधिथी अनुग्रह देखायज ठे वली जो कर्म न होय, तो एक सुखी, बीजो दुःखी, एक शेठ, बीजो चाकर इत्यादि जगतनी प्रत्यक्ष विचित्रता केम संजवे ? प्रजुनां ते वचनो सांजलीने श्रग्निभूतिनो संशय पण दूर थयो, अने तेणे पण दीक्षा लीधी ॥ इति द्वितीय गणधर ॥ हवे वायुभूति ते बन्नेने दीक्षित थयेला सांजलीने विचार्य के जे प्रजुना इंद्रभूति ने अग्नि
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नूति पण शिष्यो थया, ते प्रजु तो मारे पण पूजनीकज बे; माटे तेमनी पासे हुं पण जाउं अने मारो संशय पू. एम विचारी ते पण प्रनु पासे आव्यो, श्रने एवी रीते सघला पण श्राव्या, अने।
प्रजुए पण सर्वेने प्रतिबोध पमाड्यो. तेनो क्रम या प्रमाणे बे. है| हवे "तजीव तरीर" एटले तेज जीव अने तेज शरीर, तेने विषे संदेहवाला वायुनूतिने
प्रजुए जेवं हतुं तेवं कडं के तुं पण वेदना अर्थ जाणतो नथी ? केमके "विज्ञानघन एवैतेच्यो । ४ जूतेभ्यः” इत्यादि वेदपदोए करीने पंच नूतथी जीव पृथक् नथी एम प्रतीति थाय . तथा "सत्येन है,
लन्यस्तपसा ह्येष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुको यं पश्यति धीरा यतयः संयतात्मान इत्यादि है हवे ते पदोनो अर्थ था प्रमाणे बे. श्रा ज्योतिमय शुद्ध थात्मा सत्य, तप अने ब्रह्मचर्य वडे मेलवाय
एटले जणाय . था वेदपदोथी नूतो थकी पृथक् एवा श्रात्मानी प्रतीति थाय डे; माटे तने संदेद: डे के जे आशरीर के तेज यात्मा बे, के कोबीजो जे ? पण ते अयोग्य , केमके “विज्ञानघन" इत्यादि
पदोथी श्रमे कहेला प्रकारे करीने श्रात्मानी सत्ता एटले होवापणुंप्रगटज ॥ इति तृतीय गणधर ॥ है हवे पंच नूतमां संदेहवाला एवा व्यक्त नामना पंमितने प्रजुए जेवं हतुं तेवू कडं के तुं पण
वेदना अर्थने जाणतो नथी? "येन स्वप्नोपमं वै सकलं, इत्येष ब्रह्मविधिरंजसा विज्ञेयः" था पदनो तारा मनमां एवो अर्थ जासे डे के खरेखर पृथ्वी आदिक था सघj स्वप्न सरखं एटले असत् , हूँ ४ श्रने या वेदवचनथी पहेला तो पंच नूतोनो अनाव देखा आवे बे; वली "पृथ्वी देवता है पापो देवता” इत्यादि पदथी नूतसत्ता एटले नूतोनु होवापणुंजणा आवे बे; माटे ते बाबतनो तारा
मनमां संदेह बे, पण ते अयुक्त बे; केमके "स्वप्नोपमं वैसकलं" इत्यादि पदो अध्यात्म संबंधी चिंत-3 वनमां कनक, कामिनी थादिना संयोगने थनित्यपणुं सूचवनारांबे, पण कंश ते पंच नूतोनो निषेध सूचवनारां नथी॥ इति चतुर्थ गणधर ॥ | पली "जे जेवो ते तेवो” एवी रीतना संदेहवाला सुधर्म नामना पंमितने प्रजुए जेवं हतुं तेवू
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कयुं के तुं पण वेदना अर्थने जाणतो नथी ? कारण के "पुरुषो वै पुरुषत्वमश्नुते, पशवः पशुत्वं" इत्यादि पदो जवांतरनुं सादृश्यपणुं सूचवनाएं बे, तथा " शृगालो वै एष जायते यः सपुरीषो द ह्यते" इत्यादि पदो तो वली जवांतरनुं वैसदृश्यपणुं देखामनारांबे. ए तारा मनमां संदेह बे, पण ते | सुंदर विचार नथी; केमके "पुरुषो वै पुरुषत्वमश्नुते" इत्यादि जे पदो बे, तेनो अर्थ तो एवो बे के कोइक मनुष्य पण मार्दव आदिक गुणोए करीने युक्त थयो थको मनुष्य संबंधी व्यायुकर्मने बांधी ने पाठो पण मनुष्यपणाने पामे एवो अर्थ निरूपण करनारां ते पदो बे, पण मनुष्य ते मनुष्यज थाय एवो निश्चय बतावनारां ते पदो नथी. वली तारा मनमां एक एवी युक्ति पण ठसेली वे के मनुष्य | केवी रीते पशु थइ शके ? केमके चावलना दाणा वाव्याथी कंश घटं पेदा नथी, पण ते तारी युक्ति | बरोबर नथी; केमके ठाण श्रादिथी वींटी आदिनी उत्पत्ति देखाय बे, तेथी कार्यनुं वैसदृश्यपणं पण संजवे बे ॥ इति पंचम गणधर ॥
हवे बंध मोक्षना विषयने विषे संदेहवाला मंकित नामना पंडितने प्रजुए जेवं हतुं तेनुं कयुं के तुं पण वेदना श्रर्थने जाणतो नथी ? कारण के " स एष विगुणो विजुर्न बद्ध्यते संसरति वा मुच्यते मोचयति । वा.” या पदोनो अर्थ तुं प्रथम एवो करे बे के ते या कहेवा मांड्यो जीव एटले कोइ जगद्वर्ती जीव बे, ते केवो बे ? तो के विगुण एटले सत्त्वादि रहित ने अने विजु एटले सर्वव्यापक बे. ते बंधातो नथी एटले पुण्य पापथी जोमातो नथी, संसारमां परिभ्रमण करतो नथी, बंधनो अभाव होवाथी ते कर्म वडे मूकातो नथी तेमज अकर्ताएं होवाथी बीजाने ( कर्म थी ) मूकावतो पण नथी, पण था अर्थ योग्य नथी; परंतु (तेनो अर्थ एवो बे के ) ते ए आत्मा केवो बे ? तो के विगुण एटले ब्रद्मस्थ गुण रहित बे. वली केवो बे ? तो के विजु एटले केवल ज्ञानस्वरूपे करी विश्वव्यापकपणुं होवाथी केवलज्ञानवालो ठे. छावा प्रकारनो श्रात्मा पुण्य पापथी जोमातो नयी ए वसुं ॥ इति षष्ठ गणधर ॥ हवे देवविषयमां संदेहवाला एवा मौर्यपुत्र नामना पंमितने प्रभुए जेतुं हतुं तेतुं कयुं के तुं पण
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वेदना अर्थने जाणतो नथी ? कारण के “को जानाति मायोपमान् गीर्वाणान् इंऽयमवरुणकुबेरादीन् । कए पदोथी देवोनो निषेध प्रत्यक्ष देखाय बे, अने “स एव यज्ञायुधी यजमानोंऽजसा स्वर्गलोके ग-3
ति” ए पदथी देवसत्ता एटले देवोर्नु होवापणुं सिद्ध थाय बे, एवी रीतनो तारा मनमां संदेह 8 दाते. पण ते अयुक्त बे; केमके या पर्षदामां बेठेला देवोने तो हूं अने तुं बन्ने प्रत्यक्ष रीते जोए
बीए. वली वेदमां जे "मायोपमान्” एवं देवोनुं विशेषण कयुं , ते तो तेनुं पण अनित्यपणुं । सूचवनारुं ॥इति सप्तम गणधर ॥
हवे नारकीना संबंधमां संदेहवाला एवा पंमितने विषे श्रेष्ठ अकंपित नामना पंमितने प्रजुए 8 जेवं हतुं तेवू कडं के तुं पण वेदना अर्थने जाणतो नथी ? केमके "नह वै प्रेत्य नरके नारकाः संति" इत्यादि पदोथी नारकीनो अनाव जणाय डे अने “नारको वै एष जायते यः शुमान्नम-18 नाति” इत्यादि पदोथी नारकसत्ता एटले नारकीर्नु होवापणुं सिक थाय बे, एवी रीतनो तारा मनमां संदेह बे, पण "नह वै प्रेत्य नरके नारका सन्ति” ए पदनो शो अर्थ के ? तो के परलोकने 3 विषे केटलाएक नारकी मेरु पर्वत आदिनी पेठे शाश्वता नथी, पण जे कोइ पाप आचरे ने ते नारकी थाय बे, अथवा नारकी मरीने फरी नारकीपणे उत्पन्न थता नथी एम "प्रेत्य नारका न है
सन्ति” ए पद कहेलु २ ॥ इति अष्टम गणधर ॥ ही हवे पुण्यना संबंधमां संदेहवाला एवा पंमितने विषे श्रेष्ठ अचलत्रातृ नामना पंमितने प्रजुए जेवं
हतुं तेवू कडं के तुं पण वेदनो अर्थ जाणतो नथी ? तारा संदेहy कारण प्रथम 'पुरुष एवेदं निं सर्व इत्यादि पद अग्निनूतिए कहेढुं ते बे, माटे तेने जे उत्तर त्यां कह्यो ले ते तारे ते प्रमाणेज जाणवो. तथा 'पुण्यः पुण्येन कर्मणा, पापः पापेन कर्मणा एटले पुण्य कर्मथी पुण्य थाय ने अने पाप कर्मथी| पाप थाय . इत्यादि वेदपदोथी पुण्य पापनी सिद्धि थाय ॥ इति नवम गणधर ॥
हवे परजवमां संदेहवाला एवा पंमितप्रवर मेतार्य नामना पंमितने प्रक्षुए जेवं हतुं ते कद्यु
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के तुं पण वेदना अर्थने जाणतो नथी ? तने पण अनूतिए कहेला 'विज्ञानघन एवैतेच्यो जूतेन्यः
सुबो इत्यादि पदो वडे परलोकने विषे संदेह , परंतु ए पदोनो अर्थे में कह्यो जे ते प्रमाणे विचार के जेथी तारो संदेह दूर थाय ॥ इति दशम गणधर ॥ | पढी मोक्षना विषयमां संदेहवाला प्रजास नामना पंमितने पण प्रजुए जे हतुं तेवं कडं के तुं पण वेदना अर्थने जाणतो नथी ? कारण के "जरामर्यं वा यदग्निहोत्रं” आ पदथी करीने मोदनो , अनाव जणाय ने, केमके जे अग्निहोत्र , ते "जरामर्य" कहेतां हमेशां करवं, एम कडं बे, अनेर तेथी करीने अग्निहोत्रनुं प्रतिपादन कर्युः अने ते अग्निहोत्रनी क्रिया तो मोदनुं कारण था। शकती नथी, केमके दोषवाली होवाथी केटलाकने वधनुं कारण थाय ने श्रने केटलाकने उप-12 कारनुं कारण थाय ने तेश्री मोदसाधक एवां अनुष्ठाननी क्रिया करवानो काल कहेलो नथी, माटे मोद डेज नहीं, ए कारणथी मोदनो अनाव प्रतीत थाय बे; तेम वली का डे के "के ब्रह्मणी वेदितव्ये, परमपरं च, तत्र परं सत्यज्ञानं, अनंतरं ब्रह्मेति” इत्यादि पदथी मोक्षसत्तानी प्रतीति थाय . एवी रीतनो तारा मनमां संदेह बे, पण ते संदेह अयुक्त ? बे केमके “जरामर्यं वा यदग्निहोत्रं” ए पदमां “वा” शब्द "अपिना” अर्थमां ने अने ते जिन्न क्रमवालो . तेमज "जरामर्यं यावत् अग्निहोत्रं अपि कुर्यात्" एटले जे को स्वर्गादिकनो अर्थी/8
होय तेणे तो जावजीव सुधी अग्निहोत्र करवू, अने जे को निर्वाणनो अर्थी होय तेणे तो है अग्निहोत्र बोमीने निर्वाणसाधक एवं अनुष्ठान करवं; पण नियमथी “अग्निहोत्रज करवु” एम
नहीं एवो अपि शब्दनो अर्थ बे, तेथी करीने निर्वाण संबंधी अनुष्ठाननो पण काल जणाव्यो, माटे निर्वाण तो बेज ॥ इति एकादश गणधर ॥
॥ ७॥ __एवी रीते चार हजार अने चारसें ब्राह्मणोए प्रनु पासे दीक्षा लीधी. तेमांना मुख्य अगीयारने त्रिपदीना ग्रहणपूर्वक अगीयार अंग तथा चौद पूर्वनी रचना अने गणधरपदनी स्थापना थ.
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त्यां द्वादशांगीनी रचना बाद प्रभु तेर्उने तेनी अनुज्ञा करता हवा अने इंद्र वज्रमय दिव्य स्थाल दिव्य चूर्णोनो जरी प्रजुनी पासे आव्यो. पती प्रजुए रत्नमय सिंहासनथी उठीने ते चूर्णनी संपूर्ण मुठी जरी पठी गौतम प्रमुख अगीयारे गणधरो अनुक्रमे जरा नमीने उजा रह्या. ते वखते देवो पण वाजित्रना ध्वनि तथा गीत आदिने निवारीने सांजलवा लाग्या. ते वखते पहेलां प्रभु कदेवा लाग्या के "गौतमने द्रव्य, गुण तथा पर्यायथी तीर्थ प्रत्ये श्राज्ञा आपुं बुं”, एम कही तेना मस्तक पर चूर्ण नाखता दवा. पठी देवो पण तेमना पर चूर्ण, पुष्प ने सुगंधनी वृष्टि करता दवा; अने | सुधर्मास्वामी ने धुरिपदे स्थापीने प्रभु गण प्रत्ये अनुज्ञा करता हवा. एवी रीते गणधरवाद जाणवो.
हवे ते काल अने ते समयने विषे श्रमण भगवान् श्री महावीर प्रभु अस्थिक ग्रामनी निश्राए पहेलुं चोमासुं करता हवा, त्यारपठी चंपा ने पृष्ठचंपानी निश्राए त्रण चोमासां करता दवा, वली एवीज रीते वैशाली नगरी अने वाणिज्यग्रामनी निश्राए बार चोमासां करता दवा, राजगृह नगरनी | अने नालंदा पामानी निश्राए चौद चोमासां करता हवा, अर्थात् त्यां राजगृह नगरनी उत्तर दिशामां नालंदा नामे पामो एटले शाखापुर डे त्यां चौद चोमासां करता हवा, ब मिथिला नगरी मां करता हवा, बेनडिका नगरीमां करता हवा, एक थालंजिका नगरीमां करता दवा, एक चोमासुं श्रावस्ती नगरीमां करता हवा, एक चोमासुं वज्रभूमि नामे अनार्य देशमां करता हवा, अने एक बेधुं चोमासुं मध्यम | पापा नगरीमां हस्तिपाल राजाना कारकुनोनी जीर्ण एवी एक शालामां करता हवा. पहेलां ते नगरीनुं “पापा” एवं नाम हतुं, पण प्रभु त्यां कालधर्म पाम्या, तेथी देवोए तेनुं "पापा नगरी" एवं नाम श्राप्युं.
दवे जे बेल्ला चोमासामां प्रभु मध्यम पापा नगरीमां हस्तिपाल राजाना कारकुनोनी शालामां श्राव्या, ते चोमासामां या वर्षाकालनो चोथो महिनो, सातमो पक्ष, ते कार्त्तिक मासनो कृष्ण, ते कार्त्तिकना कृष्णपक्षना पंदरमां दिवसे जे बेली रात्रि हती, ते रात्रिए श्रमण भगवान् १ गुजराती आसो मासनी अमासे.
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कल्प० श्री महावीर प्रजु कालधर्मने पाम्या. कायस्थिति अने जवस्थिति थकी कालधर्मने पाम्या. संसारथी
पार उतरी गया. रुडे प्रकारे संसारमध्ये फरीने पाला न श्राववे करीने ऊर्ध्व प्रदेशमा प्रजु गया. ॥जए॥
ते प्रनु केवा ? तो के देला ने जन्म, जरा अने मरणनां बंधनो एटले जन्म, जरा भने मरणनां है कारणरूप कर्मों जेणे एवा,तथा साधित कयों ने अर्थ जेमणे एवा,तथा तत्वना अर्थोनाजाणकार, तथा ? नवोपग्राही कोथी मुक्त थयेला, तथा सर्व पुःखोनो अंत करनारा, सर्व संतापोना अनावी परि-3 निर्वृत श्रयेला, तथा नाश थयेल ने शरीर अने मन संबंधी सर्व फुःखो जेमनां एवा ते प्रजु थया. है हवे जगवंतना निर्वाणवर्ष श्रादिना सिझातनां नामो कदे . जे वर्षमा प्रनु निर्वाणपदने ।
पाम्या, ते चंड नामे बीजो संवत्सर हतो, ते कार्तिक मासनुं प्रीतिवर्धन एवं नाम हतुं, ते पदनुं नंदिवर्धन एवं नाम हतुं, ते दिवसर्नु अग्निवेश्य एवं नाम हतुं, तथा तेनुं उपशम एवं बीजुं नाम । पण हतुं, देवानंदा नामे ते अमावास्यानी रात्रिनुं नाम हतुं, अथवा तेनुं बीजं निरति एवं नाम पण कहे . ते वखते अर्च नामे लव हतो, मुहूर्त नामे प्राण हतो, सिक नामे स्तोक हतो, नागर नामे करण हतुं, या शकुनि आदि चार स्थिर करणोमांनुं त्रीजुं करण हतुं, केमके अमासना उत्तराईमां तेज करण होय जे. सर्वार्थ सिद्ध नामे मुहूर्त हतुं तथा ते वखते स्वाति नामना नदत्रनी है
साथे चंनो जोग प्राप्त थये ते प्रजु कालधर्मने पाम्या यावत् सर्व फुःखथी मुक्त थया. ६ हवे ते संवत्सर, मास, दिवस, रात्रि तथा मुहूर्त्तनां नाम सूर्यप्रज्ञप्तिमां नीचे प्रमाणे श्राप्यां . है एक युगमां पांच संवत्सर होय बे; तेनां नाम चंड, चंड, अनिवर्डित, चंछ श्रने अनिवर्धित.
तथा अभिनंदन, सुप्रतिष्ठ, विजय, प्रीतिवर्डन, श्रेयान् , शिशिर, शोजन, हैमवान , वसंत, कुसुमसंचव, निदाघ भने वनविरोधी, ए श्रावणादि बार मासनां नाम जाणवां. तथा पूर्वांगसिक, मनोरम, मनोहर, यशोज, यशोधर, सर्वकामसमृक, इंज, मूळनिषिक्त, सौमनस, धनंजय, अर्थसिक,8 अनिजित, रत्याशन, शतंजय तथा अग्निवेश्य, ए पंदर दिवसनां नाम जाणवां. तथा उत्तमा, सुन
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भगवान् सुवर्ण कमलें बेठा घएा भव्य जीवो ने धर्मोपदेश देता थका निर्वा ए पाम्या समाधिस्थ थया.
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दत्रा, श्लापत्या, यशोधरा, सौमनसी, श्रीसंनूता, विजया, विजयंती, वैजयंती, अपराजिता, श्वा, समाहारा, तेजा, अनितेजा तथा देवानंदा, ए पंदर रात्रिनां नाम जाणवां. तथा रुख, श्रेयान् , मित्र, वायु, सुप्रतीत, अनिचंड, माहेंज, बलवान् , ब्रह्मा, बहुसत्य, ऐशान, स्त्वष्टा, जावितात्मा,
, वारुण, आनंद, विजय, विजयसेन, प्राजापत्य, उपशम, गंधर्व, अग्निवेश्य, शतवृषन, आ-|| तपवान् , अर्थवान् , झणवान् , नौम, वृषन, सर्वार्थसिक तथा राक्षस, एत्रीश मुहर्त्तनां नाम जाणवां. 1 जे रात्रिए श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रनु कालधर्म पाम्या यावत् सर्व मुखथी मुक्त थया ते ।
रात्रि स्वर्गश्री श्रावता श्रने जता एवा बहु देव अने देवीए करीने प्रकाशवाली थ. | जे रात्रिए श्रमण नगवान् श्री महावीर प्रनु कालधर्म पाम्या यावत् सर्व पुःखथी मुक्त थया ते रात्रि आवता अने जता एवा बहु देव अने देवीए करीने जाणे अत्यंत व्याकुल थक्ष होय तेम
अस्पष्ट शब्दथी कोलाहलमयी थ. है। जे रात्रिए श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रनु कालधर्म पाम्या यावत् सर्व पुःखथी मुक्त थया ते
रात्रिए अनूति नामना मोटा अने गोत्रथी गौतम अनगार शिष्यने झातकुलमा जन्मेला श्री/31 महावीर प्रजु उपरथी प्रेमबंधन तुटी गये बते अनंत अने अनुपम एवां यावत् उत्तम केवलज्ञान अने केवलदर्शन उत्पन्न थयां. तेनो वृतांत नीचे प्रमाणे जाणवो. | प्रजुए पोताना निर्वाण वखते गौतमने कोश्क गाममां देवशर्माने प्रतिबोधवा वास्ते मोकल्या हता. तेने प्रतिबोधीने पाला वलतां श्री गौतमखामी वीर प्रजुनुं निर्वाण सांजलीने जाणे वज्रथी हणाया होय तेम दणवार सुधी मौनपणाने धारण करीने रह्या, तथा पली बोलवा लाग्या के || आजे मिथ्यात्वरूपी अंधकार फेलावा मांड्यो , तथा कुतीर्थिरूपी घुवमो गर्जना करवा लाग्या है। ने, तथा उकाल, युफ, वैर आदिक रादसोनो फेलावो थशे. वली हे प्रजु ! तमारा विना आजे श्रा नरतक्षेत्र, राहुथी ग्रस्त थयेलो ने चं जेमां एवा आकाश सरखं, तथा दीपक विनाना जवन |
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सरखं शोजा रहित थयुं छे. हवे हुं कोना चरणोने नमीने वारंवार पदोना अर्यो पूढीश ? तथा हे जगवंत ! एम दवे हुं कोने कहीश ? तथा मने पण हे गौतम! एम प्राप्त वाणोथी कही कोष बोलावशे ? हा ! हा ! हा ! वीर ! घ्या तमे शुं कर्यु ? के आवा छात्रसरे तमे मने दूर कर्पो !!! शुं यामो मांगीने बालकनी पेठे हुं तमारे बेडे वलगत ? शुं हुं केवलज्ञानमांथी तमारी पासेयी जाग मागत ? श्रथवा मोक्षमां शुं संकमाश था जात ? अथवा शुं आपने कांइ जार पी जात ? के मने श्रम तजीने तमे चाया गया ! ! ! ए प्रमाणे वीर ! वीर ! एम करतां वीर नाम गौतमना मुखे लागी रयुं. हा, हवे में जाएयुं के वीतरागो तो निःस्नेही होय बे; था तो मारोज अपराध बे, | केमके में ते वखते श्रुतनो उपयोग दीधो नहीं; था एक पना स्नेहने धिकार बे ! माटे हवे स्नेहथी सर्यु; हुं तो एकलोज तुंः मारो कोइ नथी; एवी रीते सम्यक् प्रकारे सम परिणाम जावतां थका | तेमने केवलज्ञान उत्पन्न थयुं.
मुरकमग्गपवाणं, सिणेहो वजसिंखला ॥ वीरे जीवंतए जाउँ, गोश्रमो जं न केवली ॥ १ ॥ मोक्षमार्गमां प्रवर्तेलाने स्नेह एवज्रनी सांकल बे, कारण के वीर प्रभु जीवता हता त्यांसुधी गौतम | केवली न थया.
पठी प्रभातकाले इंद्र श्रादिके महोत्सव कर्यो. हीं कवि कहे बे के सघलुं श्राश्चर्यकारीज ययुं छे. तेमनो अहंकार तो उलटो बोधने माटे जति माटे थयो तथा विषाद केवलज्ञानने माटे थयो ! ! !
हवे ते श्री गौतमस्वामी बार वर्ष सुधी केवलिपर्याय पालीने अने सुधर्मास्वामी ने दीर्घायुष्यवाला जाणी गण सोंपीने मोके गया. पाबलथी सुधर्मास्वामीने पण केवलज्ञान थयुं, अने ते पण त्यार वाद आठ वर्ष सुधी विहार करी पछी श्रार्य जंबूस्वामीने पोतानो गए सोंपीने मोके गया. हवे जे रात्रिए भ्रमण जगवंत श्री महावीर स्वामी मोदे गया यावत् सर्व दुःखथी मुक्त थया,
श्री गौतम प्रजुने तो थयो, राग पण गुरुनी
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ते रात्रिए नव मनकी जातिना काशी देशना राजा तथा नव लेखकी जातिना कोशल देशना राजा, के जेओ कार्य पड्याश्री गणनो मेलावो करता हता, अने जे अढारे ते चेटक राजाना | सामंतो कहेवाता हता,ते ते अमावास्याने दिवसे संसाररूपी समुज्ने पार पहोंचामनार एवो पौषधउपवास करता हवा एटले चार प्रकारना थाहारना त्याग वडे पौषधरूप उपवास करता हवा.18 नहींतर दीपक करवानो संभव हो शकतो नथीथने ते वखते नावउद्योत गयो हतो,तेथी हवे अमे है जव्यउद्योत करीशु, एम विचारी तेए दीपको कर्या; अने त्यारथी मामीने दीवालीनो महोत्सव पण चालु थयो , अने कार्तिक सुदि एकमने दहाडे देवोए श्री गौतमस्वामीना केवलज्ञाननो महोत्सव कर्यो, तेथी ते दिवसे पण माणसोने हर्ष थयो. हवे नंदिवर्धन राजा प्रजुनु निवार्ण थयेवू जाणीने शोकथी पीमित थयो, तेथी तेने सुदर्शना नामनी बहेने समजावीने आदर सहित बी-12
जने दहाडे पोताने घेर जमाड्यो. त्यारथी नाश्वीजनो तेहेवार पण चालु थयो. ६ हवे जे रात्रिए श्रमण नगवान् श्री महावीर प्रनु निर्वाणपदने पाम्या यावत् सर्व फुःखथी मुक्त थया १ ६ ते रात्रिए क्रूर वनाववालो जस्मराशि नामे त्रीशमो मोटो ग्रह नगवानना जन्मनक्षत्रमा ( उत्तरा
फाल्गुनी नक्षत्रमा ) संक्रांत थयो हतो. हवे ते ग्रह केवो हतो ? तो के बे हजार वर्षनी स्थिति-2 वालो हतो, केमके एक नक्षत्रमा ते एटला काल सुधी रहे . हवे ते ग्रहो श्रव्याशी , तेमनां है नाम नीचे प्रमाणे जाणवा. अंगारक, विकालक, लोहिताक, शनैश्चर, आधुनिक, प्राधुनिक, कण,8 कणक, कणकणक, कण वितानक, कणसंतानक, सोम, सहित, आश्वासन, कार्योपग, कर्बुरक, श्रजकरक, उनक, शंख, शंखनाल, शंखवाज, कंस, कंसनान, कंसवर्णान, नील, नीलावनास,8 रूपी, रूपावनास, जस्म, जस्मराशि, तिल, तिलपुष्पवर्ण, दक, दकवर्ण, कार्य, वंध्य, शानि, धूमकेतु, हरि, पिंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति, राहु, अगस्ति, माणवक, कामस्पर्श, धुर, प्रमुख, विकट, विसंधिकल्प, प्रकल्प, जटाल, अरुण, अग्नि, काल, महाकाल, स्वस्तिक, सौवस्तिक, वर्धमान,
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सुवो
कल्प० प्रलंब, नित्यालोक, नित्योद्योत, स्वयंप्रज, अवजास, श्रेयस्कर, देमंकर, श्रानंकर,प्रनंकर, अरजा,
विरजा, अशोक, वीतशोक, वितत, विवस्त्र, विशाल, शाल, सुव्रत, श्रनिवृत्ति, एकजटी,हिजटी, 2 कर, करक, राजा, अर्गल, पुष्प, नाव तथा केतु ए अव्याशी ग्रहोनां नाम जाणवां. | हवे ज्यारथी क्रूर एवो बे हजार वर्षनी स्थितिवालो ते जस्मराशि नामनो ग्रह श्रमण जगवान् । श्री महावीर प्रजुना जन्मनक्षत्रमा संक्रांत थयो, त्यारथी तपस्वी एवा साधु अने साध्वीउना उत्तरोत्तर वृद्धि पामता पूजा एटले वंदनादिक तथा सत्कार एटले वस्त्रदान थादिनुं बहुमान नहीं थाय, अने तेथीज इंजे प्रजुने विनंति करी के हे स्वामिन् ! एक क्षणवार आपनुं आयुष्य वधारो,* के जेथी श्राप जीवता होवाथी श्रापना जन्मनक्षत्रमा संक्रांत थयेलो था जस्मराशि ग्रह आपना है
शासनने पीमा करी शके नहीं. त्यारे प्रजुए कह्यु के हे इंश ! एवं निश्चे पूर्वे कदापि थयुं नथी, है के क्षीण थयेवू श्रायुष्य जिनेसो पण वधारी शके, माटे तीर्थने थनारी बाधा तो अवश्य थशेज,
पण ज्याशी वर्षना श्रायुष्यवाला कड्किन् नामे पुष्ट राजाने ज्यारे तुं मारीश, श्रने ते वखते बे: हजार वर्ष पूर्ण थये ते मारा जन्मनदत्रयी जस्मग्रह पण तरी जशे, श्रने तारा स्थापेला एवा है कदिकपुत्र धर्मदत्तना राज्यथी मामीने साधु साध्वीडनो उत्तरोत्तर पूजासत्कार थवा मांझशे. सूत्र-2 है कारोए पण तेमज कहेलं ले के ज्यारे ते कर एवो बे हजार वर्षनी स्थितिवालो जस्मराशि नामनो महाग्रह जेटलामां जगवानना जन्मनक्षत्रथी उतरी जशे त्यारे तपस्वी एवा साधु अने :
साध्वीउनो उत्तरोत्तर पूजासत्कार थशे. . ४. हवे जे रात्रिए श्रमण जगवंत श्री महावीरस्वामी निर्वाण पाम्या यावत् सर्व पुःखश्री मुक्त है
या ते रात्रिए नहीं उपमी शके एवा कंथुया उत्पन्न थया अने ते स्थिर रह्या हता, तेथी है करीने ते अणचालता थका उद्मस्थ एवा साधु साध्वीने जल्दीथी नजरे नहीं देखाता हता,अने:
जे अस्थिर रह्या हता, तेथी करीने चालता इता तेने तुरत बद्मस्थ एवा साधु साध्वी जोश
॥
॥
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| शकता हता. नहीं उपामी शकाय एवा कंथु आउने जोड्ने घणा साधु साध्वीउए ते वखते जातपाणीनां पञ्चरका कर्यां एटले अनशन कर्यु, ए अर्थ जाणवो. ते जोइ कोइ शिष्ये गुरुने पूब्धुं के हे जगवंत ! श्रा जातपाणीनां पच्चरकाण करवानुं शुं कारण बे ? त्यारे गुरुए कयुं के आजश्री मांडीने संयम पालतुं बहु पुष्कर थशे, केमके पृथ्वी जीवाकुल थशे, संयमने लायक क्षेत्र मली शकशे नहीं तथा पाखंडीउनो जमाव थशे.
कालनेविषे नेते समयने विषे श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने इंद्रभूति यदि चौद हजार साधुर्जनी उत्कृष्ट साधुसंपदा थइ, चंदनवाला आदि बत्रीश हजार साध्वीर्जनी उत्कृष्ट साध्वीसंपदा थइ, शंख, शतक यदि एक लाख उगणसाठ हजार श्रावकोनी उत्कष्ट श्रावकसंपदा थ तथा सुलसा रेवती आदि त्रण लाख अढार हजार भाविकानी उत्कृष्ट श्राविका संपदा थइ. ( वहीं जे | सुलसा श्राविका बे ते वत्रीश पुत्रनी माता एवी नागजार्या जाणवी अने रेवतीने प्रजुने औषध देनारी जाणवी. ) तथा सर्वज्ञ नहीं पण सर्वज्ञनी जेवा, जेउने शेयतावडे सर्व अक्षरसंयोग जपायेला बे एवा ने प्रज्ञापनामां केवली छाने श्रुतकेवलीनुं तुल्यपणुं कहेलुं होवाथी जिननी जेम सत्यने कनारा एवा त्रणसो चौदपूर्वीनी उत्कृष्ट संपदा थर, अतिशय एटले आम औषधी यदि लब्धि प्राप्त थयेला एवा तेरसो अवधिज्ञानीर्जुनी उत्कृष्ट संपदा थ, संपूर्ण एवां जे श्रेष्ठ ज्ञान ने दर्शन, तेने धारण करनारा सातसो केवलज्ञानीउनी उत्कृष्ट संपदा थ देवो नहीं बतां पण देवनी रुद्धिने विकुर्ववाने समर्थ एवा सातसो वैक्रियलब्धिवालानी उत्कृष्ट | संपदा थइ तथा अढीद्वीप ने वे समुद्रने विषे पर्याप्ता संज्ञी पंचेंद्रियांना मनोगत जावने जाणनारा पांचसो विपुलमतिर्जनी उत्कृष्ट संपदा थ. त्यां विपुलमति एने जाणवा के थाणे घमो चिंतव्यो, ते सोनानो बे, पाटलिपुत्रमां बनेलो बे, शरद् ऋतुमां करेलो बे, नील वर्णनो बे, इत्या| दि सर्व नेद सहित चारे बाजुए श्रढी घांगल वधारे एवा मनुष्य क्षेत्रमां रहेला संज्ञी पंचेंद्रियोना
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कल्प
नो
॥ए
॥
मनोगत पदार्थने जे जाणे ने अने तुमति तो चारे बाजुए संपूर्ण एवा मनुष्यदेत्रमा रहेला |
संझी पंचेंजियोना मनोगत घट श्रादि पदार्थ मात्रने सामान्यपणे जाणे जे. एवो ते बन्नेमां तफा-18 दूवत जाणवो. तथा देव, मनुष्य श्रने असुरोनी सनामां वादने विषे पराजव नहीं पामता एवा हूँ
चारसो वादीउनी उत्कृष्ट वादिसंपदा थ.श्रमण जगवंत श्री महावीरना सातसो शिष्य मुक्ति पाम्या । यावत् सर्व पुःखथी मुक्त थया तथा चौदसो साध्वी मुक्ति पामी. श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने गति एटले आगामी मनुष्यगतिमां मोदप्राप्तिरूप कल्याण जेउने एवा, स्थिति एटले देवनवमां पण प्राये वीतरागपणुं होवाश्री कल्याण जेऊने एवा तथा आगामी नवमां सिम थवाना 8 होवाथी जेजने कल्याण बे एवा आठसो अनुत्तर विमानमां उत्पन्न थनारा मुनिउंनी उत्कृष्ट संपदा था A हवे श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुनी बे प्रकारनी अंतकृदनूमि थर. अंतकृत् एटसे मोक्ष- 2
गामी, अने तेजनी नूमि एटले काल ते अंतकृदन्नूमि. तेना बे प्रकार ते देखाडे .ते या प्रमाणेःपहेली युगांतकृनूमि अने बीजी पर्यायांतकृलूमि. तेमां युग एटले अनुक्रममा वर्तनारा काल-18 मान विशेष, अने तेना साधर्म्य अादिकमां क्रममां वर्तनारा गुरु, शिष्य, प्रशिष्य आदिरूप जे है पुरुषो ते पण युगोज कदेवाय, श्रने तेथी परिमाण युक्त थयेली जे अंतकृमि ते युगांतकृदनूमि कहेवाय, अने पर्याय एटले प्रजुना केवलीपणाना कालने आश्रित थश्ने रहेली जे अंतकृमि ते । पर्यायांतकृदनूमि कहेवाय. तेमां पहेली त्रीजा पुरुषयुग जंबूखामी सुधीनी युगांतकृदनूमि जाणवी,13
झानप्राप्तिनी थपेक्षाए प्रजुने केवलज्ञान यया बाद चार वर्ष पनी कोश्क केवली मोके गया ते बीजी पर्यायांतकृघ्नमि जाणवी. प्रजुने केवलज्ञान उत्पन्न थया बाद चार वर्षे मोक्षमार्ग चालु है थियो हतो अने ते बेक जंबूस्वामी सुधी चालु रह्यो हतो ए नाव जाणवो. Bा ते कालने विषे श्रने ते समयने विषे श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रनु त्रीश वर्ष गृहस्थावस्थामां रहीने, बार वर्षथी कांक अधिक वखत सुधी उद्मस्थपर्याय पालीने तथा त्रीश वर्षथी कांक अंगा
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४ Jain Educat
वखत सुधी केवलिपर्याय पालीने, तथा एवी रीते एकंदर बेतालीश वर्ष चारित्रपर्याय पालीने अने बहोंतर वर्ष पोतानुं सर्व आयुष्य पालीने जवोपग्राही एवां वेदनीय, आयु, नाम अने गोत्र ए चार कर्म क्षय थये ते अने या अवसर्पिणीमां दुषमसुषम नामे चोथो थारो बहु गये बते एटले के ते श्रारानां त्रण वर्ष अने सामा श्राव मास बाकी रह्ये उते मध्यम पापा नगरीमां हस्तिपाल | राजाना कारकुनोनी शालामां सहाय न होवाथी एक, अद्वितीय एटले एकलाज पण रूपन यादिनी पेठे दश हजार यदि परिवार सहित नहीं एवा (छाहीं कवि कहे बे के वीजा जिनो साथे जेम मुनि मोके गया तेम तमारी साथे कोइ पण मुनि मुक्तिने पाम्या नहीं, तेथे करीने दुषम धारामां थनारा साधुर्जनी गुरुने विषे बेदरकारी जणावी बे ) जल रहित बहनो तप करीने स्वाति नक्षत्रनी साथे चंदनो योग प्राप्त थये बते चार घर्मी रात्रि बाकी रही हती ते वसरे पद्मासने बेठा थका पंचावन अध्ययन कल्याणफलना विपाकवालां, पंचावन अध्ययन पापफलना विपाकवालां अने बत्रीश पृष्ट व्याकरण एटले उत्तरोने कहीने एक प्रधान नामनुं मरुदेवानुं अध्ययन जावता | जावता कालधर्म पाम्या, संसारथी विराम पाम्या, रुडे प्रकारे उपर सिद्ध लोकमां गया, जन्म जरा ने मरणनां बंधन बेदी नाख्यां वे जेणे एवा थया, सिद्ध थया, बुद्ध थया, मुक्त थया, सर्व | कर्मनो नाश करनारा थया, सर्व संताप रहित थथा अने सर्व दुःखो क्षय थयां बे जेमनां एवा थया. हवे जगवंतना निर्वाणकाल अने पुस्तक लखवा विगेरेना कालनुं अंतर कडे बे.
श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रभु मोके गया तेने नवसें वर्ष व्यतीत थयां ने दशमा सैकानो था एंशी मो संवत्सर काल जाय बे. जो के था सूत्रनो बराबर व्यक्त जावार्थ समजातो नथी, तोपण जेम पूर्वटीकाकारोए तेनी व्याख्या करी बे तेम मे पण करीए बीए. ते या प्रमाणेयहीं केटलाक कहे बे के कल्पसूत्रनो पुस्तकमां लखावानो काल जणाववाने माटे या सूत्र श्रीदेवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणे लखेल बे. तेथी या अर्थ थाय बे के 'जेम श्रीवीर निर्वाणथी नवसें एंशी
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कल्प वर्ष व्यतीत थये बते सिद्धांत पुस्तकारूढ थयां त्यारे कल्पसूत्र पण पुस्तकारूढ थयु.' तेमज कयु के
श्री वीर नगवानथी नवसे एंशी वर्षे वहनीपुर नगरने विषे देवर्षिगणि प्रमुख सकल संघे पुस्त॥ए३॥ 15 कमां श्रागम लख्यां.' वीजा कहे जे के 'नवसे एंशी वर्षे श्रानंदपुरमा वीरसेन नामना पुत्रने अर्थे 21
संघ समक्ष महोत्सवपूर्वक पंमितोए वांचवानुं शरु कयु.' इत्यादि अंतर्वाच्यना वचनथी श्री वीर निर्वा-[3]
थी नवसें एंशी वर्ष व्यतीत थये बते सजा समद कल्पसूत्रनी वाचना थर ते जणाववाने माटे || श्रा सूत्र मूक्युं बे, पण तत्त्व तो केवली जाणे. वाचनांतरमा आ नवसे त्राणुंमुं वर्ष जाय जे एम है। देखाय जे. अहीं केटलाक कहे के 'वाचनान्तरे तेनो शुं अर्थ ? तो के बीजी प्रतमां तेणनए'। एटले त्राणुं देखाय , तेथी कल्पसूत्रनुं पुस्तकमां लखावु अथवा पर्षदामां वंचावु ए नवसें एंशी वर्ष व्यतीत श्रये उते थयु एम को पुस्तकमां लखेल ,तेम बीजा पुस्तकमां नवसें त्राणुं वर्ष व्यतीत थये आते हैं। थियुं एम देखाय बे, ए प्रमाणे नाव जाणवो. बीजा वली कहेले के 'अयं अशीतितमे संवत्सरे तेनो अर्थ शुं ने ? तो के पुस्तकमां कल्पसूत्र लखावाना हेतुनूत श्रीवीरथी दशमा सेंकमाना एंशीमा है। वर्षरूप श्रा काल जाय . 'वायणंतरे' एनो शुं अर्थ ? तो के एक पुस्तक लखावारूप वाचनानु, वीजें सनामां वंचावारूप जे वाचनांतर, तेना हेतुनूत दशमा सेंकमार्नु ा त्राणुंमुं वर्ष जे. तेम वली था पण अर्थ थाय के नवसें एंशीमे वर्षे कल्पसूत्रनुं पुस्तकमां लखावु थयुं श्रने नवसें त्रामे वर्षे कल्पसूत्रनी पर्षदामां वाचना थ.तेज प्रमाणे श्री मुनिसुंदर सूरिए पोते बनावेला स्तोत्ररत्नकोशमां पण कहेलु के श्रीवीरथी एए३मे वर्षे चैत्यथी पवित्र एवाजे आनंदपुरमा ध्रुवसेन राजाए महोत्सवपूर्वक सनामां कल्प-18 सूत्रनी पहेली वाचना करी ते आनंदपुरनी स्तुति कोण नथी करतुं ? 'वबहीपुरं मि नयरे'इत्यादि वचनथी पुस्तक लखवानो काल तो उपर जेकह्यो ते प्रसिज,पण तत्त्व केवली जाणे. इति श्रीवीरचरित्रं. ६ ॥ ए३॥ ___एवी रीते महोपाध्याय श्री कीर्तिविजय गणिना शिष्योपाध्याय श्री विनय विजयजी गणिए रचेली कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टीकाना गुजराती जाषांतरमा बहो क्षण समाप्त थयो. श्रीरस्तु.
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| श्री जिनाय नमः ।
॥ अथ सप्तमं व्याख्यानं प्रारभ्यते ॥
हवे जघन्य, मध्यम अवे उत्कृष्ट वाचनाए करीने श्री पार्श्व प्रजुनुं चरित्र कहे ते. हवे ते कालने विषे तथा ते समयने विषे पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुनां पांचे कल्याणको विशाखा नामना नक्षत्रमां थयां बे. ते या प्रमाणे- प्रभु विशाखा नक्षत्रमां देवलोकथी च्यव्या छाने च्यवीने माताना गर्भमां उत्पन्न थया. विशाखा नक्षत्रमांज प्रजुनो जन्म थयो. तथा विशाखा नक्षत्रमांज प्रभु मुंग थइने घरथी नीकली साधुपणाने प्राप्त थया अर्थात् दीक्षा ग्रहण करी तथा विशाखा नक्षत्रमां प्रभु अनंत, छानुपम, निर्व्याघात, आवरण रहित, समग्र अने परिपूर्ण एवां केवलज्ञान ने केवलदर्शनने पाम्या तथा विशाखा नक्षत्रमांज प्रजु मोके गया.
हवे ते कालने विषे तथा ते समयने विषे पुरुषप्रधान अर्दन् श्री पार्श्वनाथ प्रभु या उनालानो पहेलो मास, पहेलो पक्ष, ते चैत्रनो कृष्णपक्ष, ते चैत्र कृष्णपकनी चोथेने दिवसे, वीश सागरोपमनी स्थितिवाला प्राणत नामना दशमा देवलोकयी अंतररहित च्यवीने व्याज जंबूद्वीप नामना | द्वीपने विषे जरतक्षेत्रमां वाणारसी नगरीमां अश्वसेन नामे राजानी वामादेवी नामनी राणीनी कुहिने विषे देव संबंधी श्राहार, देव संबंधी जव ने देव संबंधी शरीरनो त्याग करीने मध्य रात्रिए | विशाखा नक्षत्रमां चंद्रनो योग प्राप्त थये बते गर्भपणे श्रावीने उपन्या. हवे ते पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रभु गर्नमांज त्रण ज्ञानयुक्त हता. ते या प्रमाणे:- “हुं स्वर्गथ । च्यवीश एम प्रभु जाणे, च्यवता न जाणे अने च्यव्या पठी हुं च्यव्यो एम जाणे, ते पूर्वे श्री महावीर प्रजुना च्यवन वखते कहेला पात्र प्रमाणे स्वप्नदर्शन, स्वप्नफल प्रश्न विगेरे सघलुं ज्यांसुधी वामादेवी पोताना घर प्रत्ये | श्रावी धने यावत् सुखे सुखे ते गर्जने पालन करे बे त्यांसुधी कहे.
१ गुजराती फागण वदि चोथने दिवसे.
Mational
* या
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कल्प०
॥ ए४ ॥
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हवे ते कालने विषे तथा ते समयने विषे पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रभु या शीयालानो बीजो महीनो, त्रीजुं पखवामीयुं, ते पोष मासनो कृष्णपक्ष, ते पोष मासना कृष्णपनी दर्शमने दिवसे नव मास बराबर परिपूर्ण थये बते ने सामा सात दिवस गये बते मध्य रात्रिने विषे विशाखा नक्षत्रमां चंद्रयोग प्राप्त थये बते आरोग्य एवा वामादेवीनी कुक्षिए रोगरहित पुत्रपणे उत्पन्न थया. जे रात्रिने विषे पुरुषप्रधान श्रईन् श्री पार्श्वनाथ प्रभु जन्म्या ते रात्रि घणा देव, देवीए करीने यावत् घणी श्राकुल थर होय तेम अव्यक्त शब्दथी कोलाहलमयी य.
बाकीनो प्रजुनो जन्ममहोत्सव विगेरेनो वृत्तांत श्री वीर प्रजुनी पेठे जाणी लेवो, पण ते जन्मोत्सव | विगेरेमां श्रीपार्श्वनाथनुं नाम कहे बुं, ते या कुमारनुं पार्श्व एवं नाम था त्यांसुधी कहेतुं प्रभु ज्यारे गर्नमां हता, त्यारे शय्यामां रहेली माताए पोतानी पमखेथी जता कृष्ण सर्पने जोयो हतो, तेथी तेमनुं "पार्श्व" । एवं नामपाड्यं श्रने क्रमे करी ते यौवनने प्राप्त थया. ते या प्रमाणे- इंद्रे यादिष्ट करेली धात्री थी लालन कराता एवा ते प्रभु नव हाथ प्रमाणना अंगवाला थया थका क्रमे यौवन व्यवस्थाने पाम्या. पछी कुशस्थलना राजा प्रसेनजितनी प्रजावती नामनी कन्या साथे मातापिताए आग्रह थी प्रजुनो विवाह कर्यो.
हवे एक दहाको प्रजु ऊरुखामां बेठेला वे, ते वखते एक दिशा तरफ पुष्प यादिक पूजानां | उपकरणो सहित जता नगरजनोने जोइने तेमणे कोने पूब्धुं के या लोको क्यां जाय बे ? त्यारे ते माणसे प्रजुने कयुं के हे स्वामिन् ! कोइक गाममामां रहेनारो, तथा जेनां माबाप पण मरी गयेलां बे एवो एक कमठ नामनो दरिद्री ब्राह्मणपुत्र तो अने लोको दया लावी कंक तेने
पीने तेनी याजीविका चलावता हता. एक दहामो तेणे रत्नाजरथी नूषित थयेला नगरना लोकोने जोश्ने हो ! या सघली रुद्धि पूर्व जन्मना तपनुं फल वे एम विचारी ते पंचाग्नि आदि १ गुजराती मागसर वदि दशमने दिवसे.
Intentional
सुवो०
॥ ए४ ॥
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चित्र ४३.
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पार्श्वनाथ
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बीजायोगियो.
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स्टटटटटटस्टन्ट
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...................... ARRRRRRRRRA
......... ...............
RAKACARRY
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AAAAAAAAAAAAAAAAAADDREKOON
पा.८८.
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है महा कष्टनो अर्थी एवो तपस्वी थयो. ते कमठ तापस अहीं नगरीनी बहार आव्यो , तेने माटे लोको जाय . ते सांजली प्रनु पण परिवार सहित तेने जोवा माटे गया. त्यां काष्ठनी । अंदर बलता एवा एक मोटा सर्पने करुणाना समुछ एवा प्रजुए पोताना ज्ञानयी जाणीने कदेवा लाग्या के हे मूढ तपस्वी! दया विना फोकट या कष्ट तुं शामाटे करे ? केमके दयारूपी नदीना मोटा कांग पर नगेला तृणना अंकुरा सरखा सर्वे धोबे, माटे जो ते नदी सुकाइ जाय तो ते तृणांकुरो केटली वार सुधी टकी शके ? ते सांजलीने क्रोधायमान थयेलो कम तापस करवा लाग्यो के राजपुत्रो तो हाथी, घोमा थादिकनी क्रीमा करवाज जाणी शके, पण धर्मने तो अमे तपोधनज जाणी शकीए बीए.पली प्रजुए तो अग्निकुंममांयी बलतुं लाकडं काढीने अने कुहामाश्री तेना बे कटका करीने तेमांधी तापथी व्याकुल थयेला सर्पने बहार काढ्यो, अने ते सर्प प्रजुना सेवकना 3 मुखथी नवकार मंत्र तथा प्रत्याख्यान सांजलीने तुरतज मृत्यु पामी धरणे थयो. त्यारे लोकोए प्रजुने "ज्ञानी" एम कहीने स्तुति करी. पी प्रजु पोताने स्थान के गया, थने कमठ पण तप
तपीने मेघमारोमा मेघमाली देव थयो. है। दक्ष (माह्या), दक्ष प्रतिज्ञावाला, रूपवाला, गुणवाला, सरल परिणामवाला अने विनयवाला
एवा पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रनु त्रीश वर्ष सुधी गृहस्थावस्थामा रह्या. एवामां वली जीत-है। ४कल्पिक एवा लोकांतिक देवोए ते इष्ट एवी वाणी वडे यावत् था प्रमाणे कयुः-हे समृद्धिमन् !
तमे जयवंता वर्तो, हे कल्याणवन् ! तमे जयवंता वर्तो. यावत् तेए जय जय शब्द कर्यो. । प्रथम पण पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुने मनुष्यने योग्य एवा गृहस्थधर्मथी अनुपम एवं है उपयोगरूप अवधिज्ञान हतुं, ते पूर्वे कहेझुं (वीर प्रजुनी पेठे) सर्व कहे, यावत् गोत्रीउने धन वहेंची
आपीने या शीयालानो बीजो मास,त्रीजो पक्ष,ते पोष मासनो कृष्णपद,तेपोष मासना कृष्णपदनी
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कल्प
अगीयारसने दिवसे प्रथम प्रहरने विषे विशाला नामनी पालखीमां बेसीने, देव, मनुष्य अने असु. सुबोग रोनी सन्ना जेनी श्रागल चाली रही डे एवा प्रजु इत्यादि सर्व पूर्वनी पेठे (वीर प्रजुनी पेठे)* कहे, परंतु एवं विशेष ले के वाणारसी नगरीना मध्य नागथी नीकल्या, अने नीकलीने ज्यां है आश्रमपद नामर्नु उद्यान डे अने ज्यां अशोक नामनुं वृद डे त्यां श्राव्या श्रने श्रावीने अशोक वृदनी नीचे पालखीने स्थापन करावी अने स्थापन करावीने पालखीथी नीचे उतर्या अने नीचे
उतरीने पोतानी मेलेज श्रानरण माला विगेरे अलंकारो उतारी नाख्या अने उतारी नाखीने ४ दीपोतानी मेलेज पंचमुष्टि लोच को अने लोच करीने जल रहित बहमनो तप करीने विशाखा नक्षत्रमा चंयोग प्राप्त थये ते एक देवष्य वस्त्र लश्ने त्रणसो पुरुषोनी साथे मुंग थश्ने घरथी
नीकली साधुपणाने प्राप्त थया अर्थात् दीक्षा ग्रहण करी. ४। पुरुषप्रधान अर्हन् श्रीपार्श्वनाथ प्रजुए त्र्याशी दिवस सुधी निरंतर कायाने वोसरावीने अनेॐ
शरीर उपरथी ममता तजी दश्ने जे को उपसर्गो उत्पन्न थया, ते जेवा के देव, मनुष्य अने तियचे करेला तेमज अनुकूल अथवा प्रतिकूल ते उत्पन्न थयेला उपसोंने रुमी रीते सहन कर्या,
वेव्या, खम्या अने नोगव्या. तेमां देवे करेल उपसर्ग कमठ संबंधी जे. ते या प्रमाणे :ॐ प्रजु दीक्षा लश्ने विचरता थका एक दहामो तापसना श्राश्रममां एक कुवानी नजदीक
एक वमना वृदनी नीचे रात्रिए प्रतिमाथी रह्या हता. ते वखते ते मेघमाली नामनो पुष्ट देव प्रजुने उपभव करवा आव्यो, अने क्रोधथी अंध थयेला तेणे पोते विकुर्वेलां वाघ, वींडी विगेरेनां रूपोथी प्रजुने नयरहित जोश्ने, ते आकाशमां घोर अंधकार सरखां वादलां विकुर्वीने कल्पांतकालना मेघनी पेठे मुसलधाराथी वरसवा लाग्यो, अने अति जयंकर एवी वीजली सघली दिशामा फेलावी तथा ब्रह्मांक पण फुटी जाय एवी गर्जना पण ते वखते करी. क्षणवारमा जल
१ गुजराती मागसर वदि अगीयारसने दिवसे.
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बेक प्रजुनी नासिकाना अग्र जाग सुधी आवी पहोंच्युं त्यारे धरणेऽनुं श्रासन कंपवाथी ते पोतानी पट्टराणी सहित त्यां श्राव्योअने पोतानी फणाथी प्रज पर बनधर्य. पली धरणे अव-13 धिज्ञानथी मेघमालीने श्रमर्षश्री वरसतो जाणीने तेने धमकाव्यो, त्यारे ते मेघमाली पण प्रजुनु । शरणुं लइने पोताने स्थानके गयो. धरणे पण नाटक आदिकथी प्रजुनी पूजा करीने पोताने 8 स्थानके गयो. एवी रीते प्रजु देवादिके करेला उपसोंने रुडे प्रकारे सहन करता हवा. ___ त्यार पनी पार्श्वनाथ प्रज्जु अणगार थया अने जवा आववामां उत्तम प्रवृत्तिवाला थश्ने यावत
श्रात्मानी नावना जावता त्र्याशी दिवस वीती गया अने चोराशीमा दिवसने विषे वर्तता,श्रा जना-13 हैलानो पहेलो महीनो, पहेलु पखवाडीयुं, ते चैत्र मासनो कृष्णपक्ष, ते चैत्र मासना कृष्णपक्षनी/
चोर्थने दिवसे प्रथम प्रहरने विषे धातकी नामना वृदनी नीचे जल रहित बहनो तप करीने विशाखा | हूँ नक्षत्रमा चंऽयोग प्राप्त थये उते शुक्लध्यानना प्रथम बे नेद ध्याते बते प्रजुने अनंत, अनुपम यावत् श्रेष्ठ, केवलझान अने केवलदर्शन उत्पन्न थयां,यावत् सर्व नावोने जाणता अने जोता थका विचरवा लाग्या. है। पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुने श्राउ गण अने आठ गणधरो हता. तेमां एक वाच-5
नावाला यतिसमूह ते गण अने ते गणना नायक एटले सूरि ते गणधरो जाणवा. ते श्री पार्श्वनाथने श्राप हता, पण श्रावश्यकमां दश गण अने दश गणधर कहेला बे, थने स्थानांगमां बे
अल्पायुषी होवाना कारणे ते बे कहेला नथी एम टिप्पणमां जणाव्युं . ते थाउनां नाम आ|* ट्रप्रमाणेः-शुन्न, आर्यघोष, वशिष्ट, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीरज तथा यशस्वी. है। पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुने आर्यदिन्न थादि सोल हजार साधुउनी उत्कृष्ट साधुसंपदा थइ, पुष्पचूला प्रमुख आमत्रीश हजार साध्वीनी उत्कृष्ट साध्वीसंपदा थर, सुव्रत प्रमुख एक लाख ने चोसठ हजार श्रावकोनी उत्कृष्ट श्रावकसंपदा थर, सुनंदा प्रमुख त्रण
१ गुजराती फागण वदि चोथने दिवसे.
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कल्प०
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| लाख अने सत्तावीस हजार भाविकाउंनी उत्कृष्ट श्राविकासंपदा थइ, केवली नहीं बतां पण केवली सरखा सामा त्रणसो चौदपूर्वीनी उत्कृष्ट संपदा थइ तथा चौदसो अवधिज्ञानी जनी, एक | हजार केवलज्ञानी जनी, अगीयारसो वैक्रियल ब्धिवाला मुनिर्जनी अने बसो मनः पर्यवज्ञानी जैनी संपदा यश तेमज एक हजार साधु मोदे गया ने वे हजार साध्वी मोदे गए. वली श्रावसो विपुलमतिर्जनी, बसो वादीनी तथा वारसो अनुत्तर विमानमां उत्पन्न थनारा मुनिर्जनी संपदा थइ.
पुरुषप्रधान अन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुनी वे प्रकारनी मुक्तिमां जनारानी मर्यादा थइ. ते था | प्रमाणेः- पहेली युगांतकृद्भूमि ने बीजी पर्यायांतकृद्भूमि. तेमां श्री पार्श्वनाथ प्रभुथी आरंजीने चार पाट सुधी मोक्षमार्ग चालु रह्यो ते युगांतकृभूमि तथा प्रभुने केवलज्ञान थया पठी त्रण वर्षे कोइक मुनि मोके गया, तेथी ऋण वर्षथीज मोक्षमार्ग चालु थयो ते पर्यायांतकृभूमि जाणवी.
हवे ते कालने विषे धने ते समयने विषे पुरुषप्रधान अर्हन् श्री पार्श्वनाथ प्रजु त्रीश वर्ष सुधी गृहस्थावस्थामां रहने, त्र्याशी दिवस सुधी उद्मस्थपर्याय पालीने ने कांइक ऊणा एटले त्र्याशी दिवस उठा सीत्तेर वर्ष सुधी केवलिपर्याय पालीने छाने एवी रीते एकंदर परिपूर्ण सीतेर वर्ष चारित्रपर्याय पालीने तथा एकसो वर्षनुं सर्व श्रायुष्य पूर्ण करीने वेदनी, आयु, नाम अने गोत्र कर्मनो दय थये बते आज अवसर्पिणीमां डुषमसुषम नामनो चोथो थारो घणो वीती गये बते या चोमासानो पहेलो मास, द्वितीय पक्ष, ते श्रावण मासनो शुक्लपक्ष, ते श्रावण मासना शुक्लपक्षनी या मने दिवसे समेत नामना | पर्वतना शिखर उपर तेत्रीश साधुर्जनी साथै जल रहित मासरूपणनो तप करीने विशाखा नक्षत्रमां | चंद्रयोग प्राप्त थये बते पहेला प्रहरने विषे बन्ने हाथ लांबा करी कायोत्सर्गध्यानमा रह्या थका मोदे। गया, निर्वृत्ति पाम्या यावत् सर्व दुःखश्री मुक्त थया.
पुरुषप्रधान थन् श्री पार्श्वनाथ प्रजुने निर्वाण पाम्याने वारसो वर्ष थइ गयां ने तेरसोमां सैकानुं था त्रीशमं वर्ष जाय ते. तेमां श्री पार्श्वनाथ प्रजुना निर्वाणथी श्रढीसो वर्षे
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॥ ए६ ॥
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टू प्रजुनुं निर्वाण थयुं श्रने त्यारपती नवसोएंशी वर्ष व्यतीत थये बते पुस्तकवाचना थक्ष, तेथी तेरसोमा है सैकार्नु या त्रीशमुं वर्ष जाय जे ए युक्त कहेलुं .ए प्रमाणे श्री पार्श्वनाथ प्रजनुं चरित्र समाप्त थयु.
ा हवे श्री नेमिनाथजीनु चरित्र जघन्य श्रादि वाचनाथी कहे . ६. ते काले अने ते समये अर्हन् श्री नेमिनाथ प्रजुनां पांचे कल्याणक चित्रा नक्षत्रमा थयां टू. ते श्रावी रीतेः- प्रजु चित्रा नक्षत्रमा देवलोकथी च्यव्या अने च्यवीने गर्नमां उत्पन्न थया, चित्रा नक्षत्रमा तेमनो जन्म थयो, चित्रा नक्षत्रमा दीदा लीधी, चित्रा नक्षत्रमा केवलज्ञान अने केवलदर्शन उत्पन्न थयां तथा चित्रा नक्षत्रमा प्रजु मोदे गया. | ते काले थने ते समये अर्हन् श्री नेमिनाथ प्रनु आ चोमासोनो चोथो मास, सातमो पक्ष, ६ ते कार्तिकनो कृष्णपक्ष, ते कार्तिकना कृष्णपक्षनी वारसने दिवसे बत्रीश सागरोपमनी स्थितिवाला
अपराजित नामना महा विमानथी अंतररहित च्यवीने श्राज जंबूहीप नामना छीपने विष जरतदेत्रमा सौर्यपुर नामे नगरमां समुविजय नामना राजानी शिवादेवी नामनी राणीनी कुदिए मध्य रात्रिने विष चित्रा नक्षत्र साथे चंजनो योग प्राप्त थये बते गर्नपणे उपन्या. __ अहीं माताने थयेल स्वप्नदर्शन तथा व्यंतर देवोए आणेल निधानो श्रादि ए सर्वनुं ( वीर
प्रजुनी पेठे ) वर्णन करवू. है। पड़ी ते काल अने ते समयने विषे अर्हन् श्री नेमिनाथ प्रजु था वर्षाकालनो पहेलो महिनो,
बीजु पखवामीयुं, ते श्रावणनो शुक्लपक्ष, ते श्रावणना शुक्लपक्षनी पंचमीने दिवसे नव मास बराबर ।
पूर्ण श्रये बते यावत् चित्रा नक्षत्रमा चंयोग प्राप्त थये बते आरोग्य एवा शिवादेवीए आरोग्य 8 ६ एवा पुत्रने जन्म श्राप्यो. अहीं जन्मोत्सव समुविजय राजाए कयो एम जाणवू अने ते त्यांसुधी कहे के था अमारा कुमारनुं नाम अरिष्टनेमि था.
१ गुजराती आसो वदि बारसने दिवसे.
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६ प्रनु ज्यारे गर्नमां हता, त्यारे माताए खप्नमां अरिष्टरत्नमय एवी नेमि एटले चक्रनी धारा है जो हती, तेश्री प्रचुर्नु अरिष्टनेमि एबुं नाम पाड्यु, अने अरिष्टमां अ ते अमंगलने त्याग ,
करवा माटे कह्यो डे तेथी अरिष्टनेमि एवं नाम पाड्युं बे, कारण के रिष्ट शब्द अमंगलवाची . | अरिष्टनेमि नहीं परएया होवाथी कुमार कहेवाय जे. ते नहीं परएया ते था प्रमाणे . एक दहामो शिवादेवी माताए प्रजुने युवावावस्थामां श्रावेला जाणीने का के हे वत्स! तुं विवाहा करवानुं मान अने अमारा मनोरथो संपूर्ण कर. त्यारे प्रजुए कह्यु के ज्यारे मने योग्य कन्या मलशे त्यारे हुँ परणीश.. | त्यारपबी वली एक दहामो कौतुकरहित एवा पण ते नेमिकुमार मित्रोथी प्रेराया थका क्रीमा करता कृष्ण वासुदेवनी श्रायुधशालामां गया. त्यां कौतुकना उत्सुकी एवा मित्रोनी विनंतिथी तेणे 8
वासुदेवनुं चक्र ांगलीना अग्र नाग उपर कुंजारना चकनी पेठे फेरव्यु, तेनुं शार्ङ्ग धनुष्य है पण तेणे कमलनालनी पेठे नमाव्युं, कौमुदकी नामनी गदाने एक लाकमीनी पेठे उपामी तथा |तेनो पांचजन्य नामनो शंख मुख पर राखीने पूर्यो-वगाड्यो. | ते वखते श्री नेमिनाथना मुखकमलथी प्रगट थयेल पवन वडे पांचजन्य शंख प्राये बते हाथीनो समूह पोताना बंधनस्तंनोने उखेमी घरनी पंक्तिने नांगतो थको जवा लाग्यो, तथा 8 वासुदेवना घोमा पण तुरत पोतानां बंधनो तोमीने अश्वशालामांश्री नाग थका दोमवा लाग्या, तथा ते वखते समस्त शहेर ते शंखनादथी अद्वैत अने घणी व्याकुलतानी साथे बधिर बनी | गयु. एवी रीतना ते शब्दने सांजलीने 'कोश् शत्रु उत्पन्न थयो ' एवा विचारथी व्याकुल चित्त-2 वाला श्री कृष्ण तुरत श्रायुधशालामा श्राव्या. त्यां नेमिनाथ प्रजुने जोश्ने मनमा श्राश्चर्य पाम्या थका पोतानी नुजाना बलनी तुलना माटे तेणे प्रजुने कर्वा के श्रापणे बन्ने थापणा बलनी परीक्षा करीए, एम कदेतां ते प्रजुनी साथे मदना अखाडामां श्राव्या. पनी त्यां प्रजुए श्री कृष्णने कह्यु
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के हे बांधव ! शहीं तुरत पृथ्वी पर बालाटवा थादिक युक थापन कर तता अनुा. बार माटे बलनी परीक्षा करवा माटे एक बीजानी जुजा वालवानुं युद्ध करो, केमके वी तो ॐ
घटित नथी. बनेए ते वात कबुल करी. पठी कृष्णे पोतानो हाथ आगल धर्यो, त्यारे प्रजुए तो तेने नेतरनी लतानी पेठे अथवा कमलना नालनी पेठे तुरत लीला मात्रमा वाली नाख्यो. पली ४प्रजुए पोतानो हाथ लंबाव्यो, त्यारे कृष्ण तो वृदनी शाखा जेवा प्रजुना हाथने विषे वांदरानी पेते हैलटकवा लाग्या, तेथी उत्पन्न थता खेदने लीधे बमणुं कार्बु थयु ले मुख जेनुं एवा हरिए पोतानुं नामक IRI(हरिएटले वांदरो) यथार्थ कर्य. पडी कृष्णे बढ़ बल वापयुं, तोपण प्रजुनो हाथ वढ्यो नहीं. त्यारे।४
विषाद पाम्युं के चित्त जेनुं एवा कृष्ण श्रा नेमिकुमार सुखेथी मारुं राज्य ले लेशे, एम चिंतातुर थया थका पोताना मनमा विचारवा लाग्या के स्थूलबुद्धिवाला ( मूर्ख ) केवल क्लेशना लागी थाय ने अने फल बुद्धिमान् मेलवे ने, जुन, शंकरे समुन मथन को अने रत्नो देवोने मदयां । है अथवा स्थूलबुझिवाला केवल क्लेशना जागी थाय ने अने फल बुद्धिमान् मेलवे बे, जुङ, दांत
मुश्केलीथी चूर्ण करे ने अने जिह्वा क्षणवारमा गली जाय . | पनी तो श्री कृष्ण बलननी साथे विचार करवा लाग्या के "हवे श्रापणे शुं करवू ? राज्यनी
छावाला नेमिकुमार तो बलवान् बे.” एम ते विचार करे ने एटलामां श्राकाशवाणी थर के हे हरे ! प्रवेनमिनाथ प्रजुए कहेलं ते के बावीशमा तीर्थकर नेमि नामे कुमार थकाज दीक्षा लेशे. ते सांजलीने श्री कृष्ण निश्चिंत थया, तोपण निश्चय माटे नेमिनाथ प्रजुनी साथे जलक्रीमा करवा माटे ते पोतानी राणी सहित तलावमां गया, अने त्यां प्रेमथी नेमिकुमारने हाथे कालीने कृष्ण तुरत तलावमा दाखल थया. पनी त्यां तेणे नेमिनाथ प्रजुने केसरना रंगवालां सुवर्णनी पिचकारीमा
जरेला पाणीथी सिंच्या. तथा रुक्मिणी आदि गोपीउने पण श्रीकृष्णे कही राख्यु हतुं के था नेमिहै कुमारने निःशंकपणे क्रीमाए करीने विवाह करवानी श्छावाला करवा. त्यारपड़ी ते गोपीमांधी
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केटलीक प्रजुने केसरना उत्तम पाणोना समूह वडे बंटकाव करवा लागी, केटलीक सुंदर पुष्पोना है। ॥एज॥
दडाना समूहथी प्रजुने वक्षःस्थलमां मारवा लागो,केटलीक तीक्ष्ण कटादरूप लाखो बाण मारवा । लागी,तथा कामकलाना विलासने विषे कुशल एवी केटलोक मश्करी वडे विस्मय पमामवा लागी. पो तो ते सघली सुवर्णनी पिचकारी ने सुगंधी पाणीथी खूब जरीने तेनी मोटो बालको बडे प्रजुने व्याकुल करवा लागी श्रने क्रीमाथी उल्लसित थयेला बे मन जेणीनां एवी ते स्त्री सतत परस्पर हसवा । लागी एटलामा आकाशमां देववाणी थर ते सर्वए सांजली. ते श्रा प्रमाणेः-हे स्त्री! तमे मुग्ध, गे, केमके आ प्रजुने तो बालपणामां पण चोस इंशोए योजन प्रमाण पहोला मुखवाला हजारो ।
मोटा कलशोथी मेरु पर अनिषेक को हतो तोपण ते प्रजु जरा पण व्याकुल न थया तो तमादराथी सारो यत्न उतां पण ते केम व्याकुल थर शकशे ? पढी नेमिनाथ प्रनु श्री कृष्ण अने।
गोपीने पाणी गंटवा लाग्या, तथा कमलपुष्पना दमा मारवा लाग्या, एवी रीते विस्तारपूर्वक जलकीमा करीने सघला तलावने कीनारे श्राव्या अने त्यां नेमिकुमारने सुवर्णना सिंहासन पर बेसाड्या, तथा सर्वे गोपीन पण तेमने वींटीने उत्नी रही. पड़ी त्यां रुक्मिणीए कडं के हे नेमि-२ कुमार ! तमे श्राजीविका चलाववाना जयथी मरीने परणता नथी ते आयुक्त ने, केमके तमारा ] ना ते अत्यंत समर्थ डे अने बत्रीश हजार (प्रमाण ) स्त्री साथे परणेला प्रसिक .. पठी सत्यजामाए पण कडं के षनदेव आदिक तीर्थंकरोए पण विवाह को बे, राज्य लोगव्यु, ४, विषय नोगव्या तथा तेमने बहु पुत्र पण थया डे, श्रने डेवटे मोटे पण गया थे; परंतु हूँ तमे तो श्राज को नवा मोक्षगामी थया बो ! माटे हे अरिष्टनेमि ! तमे खूब विचार करो. हे
देवर ! तमे सुंदर गृहस्थपणाने जाणो अने बंधुऊनां मनने शांत करो. पनी जांबुवतीए पण उतावलथी||3|॥ ए७ ॥ कडं के हे नेमिकुमार ! सांजलो. पहेला पण हरिवंशमां विनूषण समान एवा मुनिसुव्रत तीर्थ-3 करे अहीं गृहस्थावासमा रही पुत्र थया पली मोदे गया ले. पठी पद्मावतीए कह्यु के निश्चे स्त्री विना
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श्रा संसारमा पुरुषनी कांश शोजा नथी तेम स्त्री विनाना पुरुषनो कोइ पण विश्वास करतुं नथी | केमके स्त्री विनानो पुरुष विट कहेवाय. पड़ी गांधारीए कह्यु के सङनयात्रा एटले घेर सार || माणसो आवे तेनी परोणागत, संघ काढवो ते, पर्वनो उत्सव, घेर विवाहनां काम, उजाणी, पोखj || श्रने पर्षदा ए स्त्री विना शोचतां नथी. पड़ी गौरीए कह्यु के अज्ञानी एवां पदी पण निश्चे श्राखो दिवस पृथ्वीने विषे जमीने सांजरे पोताना मालामां जइ सुखेथी पोतानी स्त्री साथे रहे बे, माटे हे देवर ! तेवां पक्षीउथी पण शुं तमे मूढ दृष्टिवाला हो ? पढी लक्ष्मणाए पण कडं के स्नान श्रादि सर्व अंगनी शोनामां विचक्षण,प्रीतिरसे करीने सुंदर,विश्वासनुं पात्र अने पुःखने विषे । सहाय करनार एवं स्त्री विना निश्चे बीजु कोण थाय बे ? पढी सुसीमा पण कहेवा लागी के स्त्री विना घेर आवेला परोणा तथा मुनिराजोनी पण सेवानक्ति बीजु कोण करे ? अने पुरुष शोना है। पण शी रीते पामे ? एवी रीतनी बीजी पण गोपीउनी वाणीनी युक्तिथी तथा यमुना श्राग्रहथी| मौन रहेला एवा प्रजुने पण जरा हसता मुखवाला जोश्ने ‘निषेधं कर्यो नथी माटे मान्युं वे एवा 31 न्यायथी' नेमिकुमारे तो विवाह करवानुं कबुल कयु बे ए प्रमाणे ते गोपीए उंचे स्वरे उद्घोषणा * करी. ते प्रमाणे ( जादव ) जन बोख्या के मान्यु. | पनी नेमिकुमार माटे श्री कृष्णे उग्रसेन राजानी पुत्री राजीमतीनी मागणी करी, अने कोष्टिक! नामना निमित्तियाने लग्ननो दिवस पूज्यो त्यारे तेणे कडं के श्रा वर्षाकालमां बीजां पण शुन कार्यो को करता नथी त्यारे गृहस्थीनुं मुख्य कार्य जे विवाह के तेनी तो वातज शी करवी ? आपली समुपविजय राजाए निमित्ताने कडं के श्रा वखते कालदेपनी जरुर नश्री, केमके श्री कृष्णे घणी महेनते नेमिकुमारने विवाह माटे हा पमावी बे; माटे विवाहमां विघ्न न थाय एवो जे नजदीकनो दिवस होय ते तुं कहे. त्यारे निमित्तिए पण श्रावण सुदि बहनो दिवस कह्यो.
उत्तम श्रृंगार युक्त, प्रजाने हर्ष पमामनारा, रथमां बेठेला, उत्तम बत्र धारण कर्यु डे एवा तथा
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समुजविजय श्रादि दश दशाई अने केशव, बलन श्रादि विशिष्ट परिवारवाला तथा शिवादेवी प्रमुख स्त्रीउथी गवातो बेधवल मंगलनां गीतोनो विस्तार जेनो एवा नेमिकुमार परणवा माटे चाख्या. | श्रागल चालतां तेमणे सारथि तरफ जोश्ने तेने पूज्युं के था मंगलना समूहे नरेलुं धवल मंदिर है। कोर्नु बे ? त्यारे सारथि पण आंगलीना श्रग्र नागथी बतारतो कहेवा लाग्यो के था तमारा ससरा उग्रसेन राजानो महेल डे, अने तमारी स्त्री राजीमतीनी श्रा चंझानना तथा मृगलोचना नामनी 3 सखी माहोमांहे वातो करे . ते वखते नेमिनाथ प्रजुने जोश् मृगलोचना चंबाननाने कहेवा लागी के हे चंडानना ! स्त्रीवर्गमा एक राजीमतीज वर्णववा लायक डे के जेणीनो हाथ था आवो है। जर्तार ग्रहण करशे; त्यारे चंडानना पण मृगलोचनाने कहेवा लागी के जो विज्ञानने विषे चतुर एवो है |विधाता पण श्रावा अनुत रूपथी मनोहर राजीमतीने बनावीने धावा उत्तम वरनी साथे तेनो मेलाप न करावे तो ते शी प्रतिष्ठा पामे ? ।
पनी वाजिबनो शब्द सांजलीने राजीमती पण माताना घरमांथी नीकलीने सखी उनी वच्चे है आवी अने कहेवा लागी के हे सखी ! आमंबर सहित आवता एवा वरराजाने पण तमे एकलीज जुर्म बो अने हुँ तो जोवा पामती नथी, एम कही बलथी एकदम तेनी वच्चे उनी रहीने 2 नेमिकुमारने जोश्ने श्राश्चर्यपूर्वक विचारवा लागी के शुं आ पातालकुमार ? अथवा काम-31 देव पोतेज ? अथवा इंजने ? अथवा मारां पुण्योनो समूह आ मूर्तिमान् थश्ने श्राव्यो / ? जे विधाताए था सौजाग्य प्रमुख गुणराशिवाला वरने बनाव्यो , ते विधाताना हाथर्नु बुंडणुं हर्षश्री हुँ करु ढुं. | एटलामां मृगलोचनाए राजीमतीनो अभिप्राय समस्त प्रकारे जाणी लइने प्रीतिपूर्वक हास्यथी| 31॥५॥ चंडाननाने कयु के हे सखि ! चंडानना ! श्रा वर समस्त गुणोए करी जो के संपन्न बे,तोपण तेमां : एक दूषण तो बेज, पण वरनी शर्थी एवी राजीमतीना सांजलतां ते कही शकाय नहीं. त्यारे चंझा-18
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नेमीश्वर भगवाननी जान:
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ननाए पण कयु के हे सखि ! मृगलोचना ! मने पण तेनी खबर बे, पण हमणां तो मौनज रहे है। पली राजीमती पण लजाए करीने पोतानुं मध्यस्थपणुं देखामती कदेवा लागी के हे सखी! नूवनमा अद्लुत नाग्ये करीने धन्य एवी गमे ते को कन्यानो श्रा जार हो, पण सर्व गुणे 1 करीने सुंदर एवा आ वरमा जे दूषण काढq ते तो दूधमांथी पूरा काढवा जेवू असंजवितज बे. है पनी ते बन्ने सखीए विनोद सहित कयु के हे राजीमति! पहेला तो वर गौर वर्णवालो जोवाय,
अने बीजा गुण तो परिचय थया बाद जणाय, अने ते गौरपणुं तो आ वरमां काजल सरखं देखाय जे. ही ते सांजली ईर्ष्या सहित राजीमती सखीउने कदेवा लागी के आज दिन सुधी तमे बन्ने ।
चतुर बो एम मने भ्रम हतो, परंतु हवे ते ब्रम नांगी गयो; केमके सर्वे गुणोनुं कारणरूप एवं श्याम-3 पणुं नूषण बतां तमोए पूषणरूपे कडं बे, पण हवे तमे सावधान थश्ने सांजलो. श्यामपणामां है श्रने श्याम वस्तुनो आश्रय करवामां गुण रहेला बे, तथा केवल गौरपणामां तो दोष रहेला है बे केमके पृथ्वी, चित्रावेली, अगर, कस्तुरी, मेघ, अांखनी कीकी, केश, कसोटी, मसी तथा
रात्रि ए सर्वे वस्तु श्याम रंगनी पण महा फलवाली बे. ए श्यामपणामां गुण कह्या ले. वली कपू. परमां अंगारो, चंडमां चिह्न, खमां कीकी, नोजनमां मरी तथा चित्रमा रेखा ए वस्तु श्याम है रंगनी ने तोपण ( सफेद वस्तुने ) गुणनी हेतुचूत . ए श्याम वस्तुना आश्रयमां गुण कह्या है R. तथा लवण खारं बे, बरफ दहन करनारो बे, अति सफेद शरीरवालो रोगी होय डे तथा
चुनो परवश गुणवालो , एवी रीते केवल गौरवर्णमां अवगुण कह्या . 4 एवी रीते ते परस्पर वातो करते बते श्रीमान् नेमिनाथ प्रजु पशुऊनो धार्त स्वर सांजलीने 8 तिरस्कार सहित बोल्या के हे सारथि !था शो दारुण स्वर संजलाय ? त्यारे सारथिए कह्यु के है तमारा विवाहमां नोजन वास्ते एकगं करेलां पशुऊनो श्राखर जे. ए प्रमाणे सारथिए को बते प्रनु । विचारवा लाग्या के था विवाहना उत्सवने धिक्कार ! केमके था पशुउने तो ते अनुत्सव ( शोक ).
KAGRA
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कल्प०
॥१००॥
लामां दे सखी! मारी जमणी यांख या वखते केम फरके बे ? एम बोलती राजीमतीने सखीएकयुं के 'तारुं विघ्न नाश पाम्युं बे, एम कहीने थुथुकार करवा लागी.
नेमिनाथ प्रजुए सारथिने कह्युं के हे सारथि ! तुं रथ अहींथीज पाढो वाल. श्रा वखते नेमिनाथ प्रजुने जोइने एक हरिण पोतानी गरदनथी हरिणीनी गरदनने ढांकीने उज्जो रह्यो. अहीं कवि घटना करे बे के प्रभुने जोइने दक्षिण कदेवा लाग्यो के या मारा हृदयने हरण करनारी हरिणीने मारता नहीं, मारता नहीं. हे स्वामिन् ! मारा मरण करतां पण मारी ते प्रियतमानो | | विरह दुःसह बे. हरिणी नेमिनाथनुं मुख जोइने हरिणने कहेवा लागी के था तो प्रसन्न वदनवाला त्रण भुवनना स्वामी बे, अकारण बंधु बे, तेटला माटे हे वल्लन ! सर्व जीवोनुं रक्षण करवाने विज्ञप्ति करो. त्यारे पत्नीए प्रेरेलो हरिण पण नेमिनाथने कहेवा लाग्यो के निकरणानुं पाणी पीनार, श्ररण्यना तृणनुं जण करनार ने वनने विषे वास करनार एवा श्रमारा निरपराधीना जी वितनुं हे प्रभु ! रक्षण करो! रक्षण करो ! एवी रीते सर्व पशुए पण स्वामी प्रत्ये विज्ञप्ति करी, त्यारे प्रजुए कयुं के हे पशुरक्षको ! या पशुर्जने बोकी आपो, बोमी श्रापो. हुं विवाद करीश नहीं. त्यारे ते पशुरक्षकोए पण श्री नेमिनाथ प्रजुना वचनथी पशुर्जने बोमी दीघां ने सार थिए पण रथ पाठो फेरव्यो.
वहीं कवि कहे बे के जे कुरंग ( हरिण ) चंद्रमाना कलंकने विषे, राम ने सीताना विरहने विषे तथा नेमिनाथ प्रभुश्री राजी मतीना त्यागने विषे हेतुभूत बे, ते कुरंग कदेतां खोटो रंग | करनार ए सत्यज बे.
वे वखते समुद्रविजय तथा शिवादेवी प्रमुख स्वजनोए तुरत रथने जतो अटकाव्यो, तथा शिवादेवी माता यांखोमां श्रांसु लावी कदेवा लाग्या के हे जननीवल्लन वत्स ! हुं प्रथम प्रार्थनानी विनंति करुं हुं के तुं कोइ रीते विवाद करीने मने वहुनुं मुख देखाम. त्यारे ने मिकुमारे कयुं | के हे माता ! तमे ए आग्रह मूकी दो, मारुं मन हवे मनुष्य संबंधी स्त्रीउने विषे नथी, पण मुक्तिरूपी
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सुबो
॥१००॥
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भोजन व्यापवा माटे एकठा करेला चतुष्पद् जीबो तथा पांजरामा रहेला पहीलो तेमने भगवान लूटा करी मूके ढे.
पा.
२
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स्त्रीना संगमने विषे उत्कंगवालु श्रने आसक्त थयेनु ,केमके जे स्त्री रागीने विषे पण राग रहित ,
ते स्त्रीउने कोण सेवे ? माटे मुक्तिरूपी स्त्री के जे विरागीने विषे रागवाली , तेनी हुँ क्या करूं 15 81 ते वखते राजीमती "हा देव ! था शुं थयुं ?" एम कही मूळ पामी. पडी सखी वडे चंदन-18
रसथी आश्वासन करायेली ते मुश्केलीथी शुधिमां थावी, त्यारे मोटे खरेथी रमवा लागी के हे है जादवकुलमा सूर्य समान ! तथा हे निरुपमझानवाला ! तथा हे जगतना शरणरूप, तथा हे करु
णाकर स्वामिन् ! मने बोमीने आप क्या चाव्या ? पनी पोताना हृदयने कहेवा लागी के अरे ! धृष्ट, निष्ठुर, निर्लङ हृदय ! ज्यारे आपणा स्वामी श्रन्यत्र रागवाला थया ने त्यारे हजु पण तुं जीवितने : शुं धारण करे ? वली निःश्वास नाखीने पोताना स्वामीने उपालंज सहित कहेवा लागी के हे| धूर्त ! जो तमे सर्व सिझोए जोगवेली गणिकामां रक्त थया हता, तो आवी रीतना विवाहना श्रारंजथी तमे मने शामाटे विमंबना करी ? त्यारे सखीए तेणीने रोषयी कह्यु के हे सखि ! लोकप्रसिझ एक वार्ता सांजल, के जे श्याम होय ते जाग्येज सरल होय ने कदापि होय तो विधिए नूली जश्ने तेम कर्यु होवु जोइए. आवा प्रीतिरहितने विषे हे प्रिय सखी ! शुं प्रीति-15 नाव करे ? प्रीतिने विषे तत्पर एवो कोइ वीजो जर्तार तारा माटे शोधी काढीगुं. ते सांजली राजी-₹
मती पोताना बन्ने कानने ढांकीने कहेवा लागी के हे सखी ! तमे मने नहीं संजलाववा लायक है नाएवचन केम संजलावो बो ? जो सूर्य कदाच पश्चिम दिशामां नगे, तोपण हुं श्री नेमिकुमारने मूकीने बीजो नर्तार नहीं करूं. वली पण नेमिनाथने कहेवा लागी के हे जगतना अधीश !व्रतनी/3 छावाला तमे घेर श्रावेला एवा याचकोने तेजनी श्छा उपरांत थापो बो, पण मागणी करती|| एवी जे हुं, तेणीए तो हाथ उपर श्रापनो हाथ पण मेलव्यो नहीं. हवे विरक्त राजीमती कहेवा है। लागी के हे विजु ! जो के आपनो श्रा हाथ था लग्नमहोत्सवमां तो मारा हाथ पर नहीं थाव्यो, तोपण मारा दीदासमयना महोत्सवमां ते हाथ मारा शिर पर होजो.
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कल्प
॥१०॥
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हवे श्री नेमिकुमारने परिवार सहित समुजविजय राजा कहेवा लाग्या के षनदेव थादिक 8 जिनेश्वरो पण विवाह करीने मोके गया , माटे हे कुमार ! तमारं ब्रह्मचारीनुं पद तेनाथी हैं पण चुं थशे? | ते सांजली नेमिनाथे कडं के हे तात ! मारां नोगावली कर्मों कीण थयां , वली जेमा एका
स्त्रीनो संग्रह थाय , जेमां अनंता जंतुसमूहनो संहार थाय ने तथा जे संसारने फुःखरूप कर-18 है नार बे एवा विवाह माटे आपनो श्रा \ आग्रह ? है| अहीं कवि उत्प्रेक्षा करे डे के “हुँ एम मार्नु बु के स्त्रीउथी विरक्त एवा श्री नेमिनाथ प्रनु ।
परणवाना मिषधी बहीं थावीने पूर्वना प्रेमथी राजीमतीने मोद माटेनो संकेत करी गया.” | | दक्ष (माह्या) एवाश्रीनेमिनाथ प्रजुत्रणसो वर्ष सुधी कुमारपणे गृहस्थावस्थामा रह्या एटलामा वली131 पण लोकांतिक देवोए इत्यादि सर्व प्रथम कहेलु ते प्रमाणे कहे. लोकांतिक देवो आ प्रमाणे ६ कहेवा लाग्या के हे कामदेवने जीतनारा तथा समस्त जंतुऊने अजयदान देनारा प्रजु! जयवंता वर्तों के अने हमेशांना महोत्सवने माटे श्राप तीर्थने प्रवर्तावो. एवी रीते प्रजुने कडं अने वार्षिक दान दीधा है बाद प्रजु त्रणे नुवनोने आनंद पमाडशे एरीते (कहीने ) समुजविजय प्रमुखने उत्साह पमामता 5 हवा. त्यारपती सघला संतुष्ट थया. पढी ज्यांसुधी गोत्रीने धन वहेंची आप्युं त्यांसुधी कहेवू.18 अहीं संवत्सरीदानविधि श्री वीर प्रज्जुनी पेठेज जाणी लेवो. | वर्षाकालनो पहेलो महीनो, बीजुं पखवामीयु, श्रावण मासनो शुक्लपक्ष, ते श्रावणना शुक्लपदनी बहने दिवसे प्रथम प्रहरने विषे उत्तरकुरा नामनी पालखीमां बेठेला अने देव, मनुष्य तथा असुरोनी पर्षदा जेनी आगल चाली रही एवा प्रनु यावत् छारवती (छारिका) नगरीना | ॥१०॥ मध्य नागमांथी नीकल्या अने नीकलीने ज्यां रैवतक नामर्नु उद्यान ले त्यां श्राव्या अने श्रावीने अशोक नामना वृक्षानी नीचे पालखी स्थापन करावी अने स्थापन करावीने पालखीमांधी नीचे
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वीएढे.
चित्र ५१
अशोक बृदानी नीचे.
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उतर्या अने नीचे उतरीने पोतानी मेलेज बाजरण, माला अने अलंकारोने उतारी नाख्या, पोतानी मेले पंचमुष्टि लोच को अने लोच करीने जलपान रहित एवो बहनो तप करीने चित्रा नद
मां चंडयोग प्राप्त थये बते एक देवयूष्य वस्त्र लश्ने एक हजार पुरुषनी साथे मुंग थश्ने घरधी गानीकली साधुपणाने प्राप्त थया अर्थात् दीक्षा ग्रहण करी. | अहन् श्री नेमिनाथ प्रनु चोपन अहोरात्र सुधी निरंतर कायाने वोसरावीने रद्या हता. अहीं। पूर्वे कहेढुं सघj कहेते ज्यांसुधीमां पंचावनमा अहोरात्रनी मध्ये वर्तता एवा तथा था, वर्षाकालनो त्रीजो महीनो, पांचमुं पखवामीयु, ते आश्विन मासनो कृष्णपक्ष, ते थाश्विन १ मासनी श्रमासने दिवसे, दिवसना पाउला पोहोरे, गिरनार पर्वतना शिखर पर, वेतस नामना वृदनी नीचे जलरहित अहमनो तय होते ते, तथा चित्रा नक्षत्रमां चंयोग प्राप्त थये ते शुक्लध्यानना प्रथम बे नेदतुं ध्यान धरता एवा प्रजुने केवलज्ञान अने केवलदर्शन उत्पन्न थयां, यावत् सर्व जावोने जाणता अने जोता थका प्रनु विचरवा लाग्या. | एवी रीते प्रजुने रैवताचल पर्वत पर सहस्राम्रवनमां केवलज्ञान उत्पन्न थयुं, ते वखते उद्यान-2 पालके श्री कृष्ण पासे जश्ने तेने वधामणी आपी. त्यारे श्री कृष्ण पण मोटा आवरथी प्रजुने । वांदवा श्राव्या; ते वखते राजीमती पण त्यां आव्या. पनी प्रजुनी देशनासांजलीने वरदत्त राजाए बे* हजार राजाउनी साथे व्रत लीधुं (दीक्षा लीधी). पठी त्यां श्री कृष्णे राजीमतीना स्नेहन कारण पूच्याथी
प्रजुए धनवतीना जवथी मांमीने तेनी साथेना पोतानो नव नवनो संबंध कही संजलाव्यो. ते श्रा ६प्रमाणे-पहेला जवने विषे हुं धन नामे राजपुत्र हतो त्यारे ते धनवती नामे मारी पत्नी हती १,
त्यारपबीबीजा नवने विषे श्रमे बंने पहेला देवलोकनेविषे देव देवीपणे नत्पन्न थया तांत्यारपड़ी त्रीजा नवने विषे हुँ चित्रगति नामे विद्याधर हतो त्यारे ते रत्नवती नामे मारी स्त्री हती ३,
१ गुजराती नाप्रपद मासनी अमासने दिवसे.
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कल्प
॥१०॥
त्यारपली चोथा नवने विषे श्रमे बंने चोथा देवलोकमां देव थया हता ४, पांचमा जवने विषे । हुं अपराजित राजा हतो थने ते मारी प्रियतमा राणी हती ५, बहा नवमां अमे बंने श्रगीयारमां देवलोकमां देव थया हता ६, सातमा नवमां दुं शंख नामे राजा हतो अने ते यशोमती नामे मारी राणी हती , श्रापमा जवने विषे अमे बंने अपराजित देवलोकमां देव यया हता है
अने नवमा जवमा हुँ नेमिनाथ बुं अने ए राजीमती . र पड़ी त्यांथी प्रनु बीजी जगोए विहार करीने अनुक्रमे पाना रैवताचल पर समवसख्या. ते वखते।
अनेक राजकन्या सहित राजीमतीए तथा रथनेमिए प्रजु पासे दीक्षा लीधी. हवे एक दहामो : राजीमती प्रजुने वांदवा माटे जती हती तेटलामां मार्गमां वरसादने लीधे वाधा थवाथी ते एक गुफामां दाखल थर अने ते गुफामा पहेलेथी दाखल थयेला रथनेमिने नहीं जाणती तेणीए । पोतानां नींजायेला वस्त्रो सुकववाने चारे तरफ नाख्यां. को त्यारपठी हांसी करेल ने देवांगनाउनुं पण रमणीकपणुं जेणीए एवी तथा सादात् कामदेवनीज स्त्रीनी जेम रमणीय एवी राजीमतीने वस्त्ररहित जोड्ने जाणे नाइ परना वैरथीज होय तेम कामदेवश्री मर्मने विषे हणायो थको रथनेमि कुललजा तजीने तथा धैर्य पकमीने राजीमतीने कहेवा है लाग्यो के हे सुंदर ! सर्व अंगना नोगसंयोगने योग्य अने सौलाग्यना खजानारूप तारा देहने है तुं तप करीने शामाटे शोषावे ले ? माटे हे ना ! तारी श्छाश्री तुं अहीं श्राव ! अने आपणे बन्ने
आपणो जन्म सफल करीए, अने पली बेवटे आपणे तपना विधिने याचरीशु. ४ पड़ी महासती राजीमती ते सांजलीने अने तेने जोश्ने अनुत प्रकार- धैर्य धरीने तेने
॥१०॥ कहेवा लागी के हे महानुनाव ! नर्कना मार्गरूप एवो तुं केम अनिलाष करे ? सघळ सावध
कार्य डोमीने पाली तेनी श्छा करतां थका शुं तने लगा थती नथी ? अगंधन कुलमां उत्पन्न थियेला तिथंच जे सर्पो ने ते पण ज्यारे वमेला पदार्थने बता नथी त्यारे तेथी पण शुं तुं वधारे ४॥
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गिरनार पर्वत पर एक गुफामा रहने मी साधु कानुस्सग करे. अन्ने तेज गुफामा राजीमतीजी नग्न थई ने पोताना बस्त्र सुका डे.
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| नीच बे ? एवी रीतनां राजीमतीनां वाक्योथी प्रतिबोध पामेल रथनेमि मुनि पण श्री नेमिनाथ प्रभु | पासे पोताना अतिचारनी आलोयणा लइ तप तपीने मोके गया. राजीमती पण दीक्षा श्राराधीने | अंते मोक्षशय्या पर चड्या, तथा घणा कालथी प्रार्थित एवा श्री नेमि प्रजुना शाश्वता संयोगने पाम्या कह्युं बे के केवली राजीमती चारसो वर्ष पर्यंत गृहावासमां रह्या, एक वर्ष ब्रह्मस्थपणामां रह्या ने पांचसो वर्ष केवलिपर्याय पालीने मोके गया.
अन् श्री नेमिनाथ प्रजुने श्रढार गण अने अढार गणधरो थया, वरदत्त प्रमुख अढार हजार साधुर्जनी उत्कृष्ट साधुसंपदा थइ, श्रार्ययक्षिणी प्रमुख चालीस हजार साध्वीर्जुनी उत्कृष्ट साध्वी संपदा थर, नंद प्रमुख एक लाख गणोतेर हजार श्रावकोनी उत्कृष्ट श्रावकसंपदा थइ, महासुव्रत प्रमुख त्रण लाख बत्रीश हजार श्राविकानी उत्कृष्ट श्राविकासंपदा थइ, केवली नहीं पण केवली तुल्य एवा चारसो चौदपूर्वधारीनी, पंदरसो अवधिज्ञानी उनी, पंदरसो केवलज्ञानी उनी, पंदरसो वैक्रियलब्धिवालानी, एक हजार विपुलमतिर्जनी, श्रावसो वादीउनी अने सोलसो अनुत्तर विमानमां उत्पन्न घनारा साधुर्जनी संपदा थइ, तथा पंदरसो साधु अने त्रण हजार साध्वी मोदे गया.
अन् श्री नेमिनाथ प्रभुने वे प्रकारनी अंतकृद्भूमि थइ, ते या प्रमाणे- एक युगांतकृद्भूमि अने बीजी पर्यायांतकृद्भूमि. प्रजुनी पठी या पुरुषयुग एटले पट्टधर सुधी मोक्षमार्ग चाल्यो ते युगांतकृद्भूमिछाने प्रजुने केवलज्ञान उपन्या पढी बे वर्षे कोइ पण साधु मोके गया ते पर्यायांतकृद्भूमि जाणवी.
ते काल अने ते समय विषे अर्हन् श्री नेमिनाथ प्रभु त्रणसो वर्ष कुमारावस्थामां रहीने अने चोपन दिवस ब्रद्मस्थ पर्याय पालीने, कांक ( चोपन दिवस ) बा एवां सातसो वर्ष केव| लिपर्याय पालीने, एकंदर परिपूर्ण एवां सातसो वर्ष चारित्रपर्याय पालीने अने एवी रीते एक हजार
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॥१०३॥
वर्षतुं सर्व आयुष्य पालीने वेदनीय, श्रायु,नाम अने गोत्रकर्म क्ष्य थये उते श्राज श्रवसर्पिणीमां| सुबो उषमसुषमा नामनो चोथो श्रारो बहु गये ते था उष्णकालनो चोथो मास, श्राठमो पक्ष, ते आषाढ शुक्लपक, ते थाषाढ शुक्लपक्षनी बाग्मने दिवसे गिरनार पर्वतना शिखर उपर पांचसो बत्रीश साधु सहित जलरहित एक महीनानुं अनशन करीने चित्रा नक्षत्रमा चंयोग प्राप्त थये है
बते मध्यरात्रिने विषे ( पद्मासने ) बेग थका निर्वाण पाम्या यावत् सर्व उःखथी मुक्त थया. & हवे नेमिनिर्वाणथी केटला वखते पुस्तक लखवा विगेरे थयुं ते कहे . ४ अर्हन् श्री अरिष्टनेमि निर्वाण पाम्या यावत् सर्व फुःखथी मुक्त श्रया तेने चोराशी हजार वर्ष गयां| है अने पंच्याशीमा हजारनां पण नवसो वर्ष गयां ने अने दशमा सेंकमार्नु आ एंशीमुं वर्ष जाय .
अर्थात् श्री नेमिनाथना निर्वाण पड़ी चोराशी हजार वर्षे वीर प्रजुनुं निर्वाण थयुं अने त्र्याशी हजार सातसो पचास वर्षे श्री पार्श्वनाथनुं निर्वाण थयु ए पोतानी बुद्धिधी जाणवू. या प्रमाणे, श्री नेमिचरित्र संपूर्ण थयु. | हवे ग्रंथविस्तारना जयथी पठीना अनुक्रमे नमिथी शरु करीने अजित सुधीना जिनेश्वरोना
अंतर कालनुं प्रमाण कडं . है। अर्हन् श्री नमिनाथ निर्वाण पाम्या यावत् सर्व पुःखथी मुक्त थया तेने पांच लाख,
चोराशी हजार अने नवसो वर्ष गयां अने दशमा सेंकमार्नु श्रा एंशीमुं वर्ष जाय डे अर्थात् श्री नमिनाथना निर्वाण पठी पांच लाख वर्षे श्री नेमिनाथ निर्वाण पाम्या अने त्यार पठी चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थ. १
॥१०॥ * अईन् श्री मुनिसुव्रतना निर्वाणथी न लाख वर्षे श्री नमिनाथ निर्वाण पाम्या अने त्यारपती
पांच लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थश्. २०
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श्री मल्लिनाथना निर्वाणथी चोपन लाख वर्षे श्री मुनिसुव्रत निर्वाण पाम्या ने त्यारपटी | अग्यार लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थ. १७
अर्दन् श्री अनाथना निर्वाणथी कोटिसहस्र वर्षे श्री मल्लिनाथ निर्वाण पाम्या ने त्यारपढी पांस लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थइ. १०
अन् श्री कुंथुनाथना निर्वाणथी कोटिसहस्र वर्षे न्यून पल्योपमने चोथे जागे श्री अरनाथ निर्वाण पाम्या ने त्यारपढी सहस्र कोटि पांसठ लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे | पुस्तकवाचना थइ. १७
अन् श्री शांतिनाथना निर्वाणी अर्ध पत्योपमे श्री कुंथुनाथ निर्वाण पाम्या अने त्यारपटी पल्योपमनो चोथो जाग तथा पांसठ लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थइ. १६
अन् श्री धर्मनाथना निर्वाणथी पोणा पल्योपमे न्यून त्रण सागरोपमे श्री शांतिनाथ निर्वाण | पाम्या छाने त्यारपठी पोणुं पल्योपम पांसठ लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थइ. १५
अन् श्री अनंतनाथना निर्वाणथी चार सागरोपमे श्री धर्मनाथ निर्वाण पाम्या ाने त्यारपढी त्रण सागरोपम पांसठ लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना ३. १४
अन् श्री विमलनाथना निर्वाणथी नव सागरोपमे श्री अनंतनाथ निर्वाण पाम्या श्रने त्यारपढी | सात सागरोपम पांसठ लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थ. १३
श्री वासुपूज्यनानिर्वाणथी त्रीश सागरोपमे श्री विमलनाथ निर्वाण पाम्या श्रने त्यारपढी सोल सागरोपम पांस लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना इ. १२
अन् श्री श्रेयांसनाथना निर्वाणथी चोपन सागरोपमे श्री वासुपूज्य निर्वाण पाम्या ने त्यारपछी बेंतालीश सागरोपम पांसठ लाख चोराशी हजार नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थइ. ११ अर्हन् श्री शीतलनाथना निर्वाणथी एकसो सागरोपम बासठ लाख बवीश हजार वर्षे न्यून
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सबो.
कल्प एक कोटि सागरोपमे श्री श्रेयांसनाथ निर्वाण पाम्या, त्यारपठी त्रण वर्ष सामा थाठ मास अने 8|| ॥१०॥
दूबेतालीश हजार वर्षे न्यून एवा सठ लाख वीश हजार वर्षे अधिक एकसो सागरोपमे श्री है वीर जगवान् निर्वाण पाम्या अने त्यारपली नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थइ. १० | अर्हन् श्री सुविधिनाथना निर्वाणथी नव कोटि सागरोपमे श्री शीतलनाथ निर्वाण पाम्या, त्यार-2 पली त्रण वर्ष सामा श्राठ मास ने बेंतालीश हजार वर्षे न्यून एक कोटि सागरोपमे श्री धीर
नगवान् निर्वाण पाम्या अने त्यारपली नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थ. ए हूँ| अर्हन् श्री चंडप्रजना निर्वाणथी नेवु कोटि सागरोपमे श्री सुविधिनाथ निर्वाण पाम्या, त्यारहै पनी त्रण वर्ष सामा श्राप मास अने बेंतालीश हजार वर्षे न्यून एक कोटि सागरोपमे श्री वीर नगवान् निर्वाण पाम्या अने त्यारपली नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थ. ७
अर्हन श्री सुपार्श्वना निर्वाणथी नवसो कोटि सागरोपमे श्री चंप्रन निर्वाण पाम्या, त्यारपबी छत्रण वर्ष सामा आठ मास ने बेंतालीश हजार वर्षे न्यून एकसो कोटि सागरोपमे श्री वीर जगद्वान् निर्वाण पाम्या अने त्यारपली नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थ३.७ | शर्डन श्री पद्मप्रजना निर्वाणथी हजार कोटि सागरोपमे श्री सपार्श्व निर्वाण पाम्या. त्यारपड़ी त्रण वर्ष सामा आठ मास अने बेंतालीश हजार वर्षे न्यून एक हजार कोटि सागरोपमे ।
श्री वीर नगवान् निर्वाण पाम्या अने त्यारपली नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थइ. ६ ४ अर्हन् श्री सुमतिनाथना निर्वाणथी नेQ हजार कोटि सागरोपमे पद्मप्रन निर्वाण पाम्या, त्यारपबीत्रण वर्ष सामा आठ मास अने बेंतालीश हजार वर्षे न्यून दश हजार कोटि सागरो-18
॥१०॥ |पमे श्री वीर जगवान् निर्वाण पाम्या अने त्यारपबी नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थश्. ५ । अर्हन् श्री अनिनंदनना निर्वाणधी नव लाख कोटि सागरोपमे श्री सुमतिनाथ निर्वाण पाम्या, है
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त्यारपठी त्रण वर्ष सामा या मास ने बैतालीश हजार वर्षे न्यून एक लाख कोटि सागरोपमे | श्री वीर जगवान् निर्वाण पाम्या ने त्यारपढी नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना इ. ४
अन् श्री संजवनाथना निर्वाणथी दश लाख कोटि सागरोपमे श्री अजिनंदन निर्वाण पाम्या, |त्यारपठी त्रण वर्ष सामा आठ मास अने बेंतालीस हजार वर्षे न्यून दश लाख कोटि सागरोपमे श्री वीर जगवान् निर्वाण पाम्या ने त्यारपढी नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थइ. ३
थईन् श्री अजितनाथना निर्वाणथी त्रीश लाख सागरोपमे श्री संजवनाथ निर्वाण पाम्या, त्यारपढी त्रण वर्ष सामा या मास अने बेंतालीस हजार वर्षे न्यून वीश लाख कोटि सागरोपमे श्री वीर जगवान् निर्वाण पाम्या श्रने त्यारपठी नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना इ. २
अन् श्री शषजदेवना निर्वाणथी पचास लाख कोटि सागरोपमे श्री अजितनाथ निर्वाण पाम्या, त्यारपढी त्रण वर्ष सामा श्राव मास ने बेंतालीश हजार वर्षे न्यून पचास लाख कोटि सागरोपमे श्री वीर जगवान् निर्वाण पाम्या ने त्यारपठी नवसो एंशी वर्षे पुस्तकवाचना थइ. १ हवे अवसर्पिणीमां ( धर्मना ) प्रथम प्रवर्तकपणाथी परम उपगारीपणाने लीधे श्री कृषज| देव प्रजुनुं चरित्र कांक विस्तारथी कहे बे.
मने विषे अयोध्यामां जन्मेला श्रईन् श्री रूपनदेव प्रजुनां चार कल्याणक उत्तराषाढा नक्षत्रमां थयेलां वे ने पांचमुं कल्याणक व्यनिजित् नक्षत्रमां थयेलुं वे.ते श्रा प्रमाणे| उत्तराषाढामां च्यव्या ने च्यवीने गर्भमां उत्पन्न थया, उत्तराषाढामां जन्म थयो, उत्तराषाढामां दीक्षा लीधी, उत्तराषाढामां केवलज्ञान उपन्युं छाने अभिजित् नक्षत्रमां निर्वाण पाम्या.
ते काल अने ते समयने विषे अन् कौशलिके श्री कृषनदेव प्रभु या उनालानो चोथो मास, सातमुं पखवामीयुं, ते आषाढ मासनो कृष्णपक्ष, ते श्राषाढ मासना कृष्णपक्षनी चोथने दिवसे १ कोशला ते अयोध्या, त्यां जन्म होवाथी कौशलिक. २ गुजराती जेठ वदि ४.
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कल्प
॥१०॥
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है तेत्रीश सागरोपमनी स्थितिवाला सर्वार्थसिक नामना महाविमानथी अंतर रहित च्यवन करीने से
श्राज जम्बूद्वीप नामना छीपने विषे नरतदेत्रमा श्क्ष्वाकु नूमिमा नानि नामना कुलकरनी मरुदेवा नामनी स्त्रीनी कुदिने विषे मध्य रात्रिने विषे दिव्य आहारनो त्याग करीने यावत् । गर्नपणे उत्पन्न थया. | अर्हन कौशलिक श्री रुषजदेव प्रजु (गर्नमां पण) त्रण झाने करी सहित हता, तेथी हुं च्यवीश एम जाणे त्यांथी (मरुदेवी माताए) स्वप्न जोयां ते जेमके 'गयवसह' इत्यादि गाथा अहीं कहेवी है। विगेरे सर्व वृत्तांत श्री वीर प्रजुनी पेठे (तेमना चरित्रमांथी ) जाणी लेवो, परंतु अहीं एटलुं विशेष बे के मरुदेवा माताए प्रथम वृषनने मुखमा प्रवेश करतो जोयो अने बीजा जिननी माताए
प्रथम हाथीने जोयो ने तथा वीर प्रजुनी माताए सिंहने जोयो बे; अने मरुदेवाए स्वप्ननी हकी-4 हूँ कत नानि कुलकरने कही त्यारे स्वप्नपाठको नहोता, तेथी नानि कुलकरे पोतेज स्वप्ननुं फल कडं . है। ते काल श्रने समयने विष अर्हन् कौशलिक श्री ज्ञषनदेव प्रजु आ जनालानो पहेलो मास,
पहेलु पखवामीयु, ते चैत्र मासनो कृष्णपक्ष, ते चैत्रमासना कृष्णपदनी श्रावमने दिवसे नव मास बरोबर परिपूर्ण थये बते यावत् उत्तराषाढा नक्षत्रमां चंयोग प्राप्त थये ते आरोग्य माताए
आरोग्य पुत्रने जन्म याप्यो. है त्यारपडीनो सघलो वृत्तांत देव श्रने देवीए वसुधारानी वृष्टि करी त्यांसुधी, तेमां बंदि
जनने डोमी मूकवानी, मानोन्मानना वर्जननी अने दाण मूकी देवा प्रमुख कुलमर्यादानी हकीकत बोमी दश्ने बाकीनो सर्व पूर्वोक्त प्रकारे श्री महावीर प्रजुना जन्म वखते कह्यो ने ते प्रमाणे कडेवो. __ हवे देवलोकथी च्यवेला, अद्भुत रूपवाला, अनेक देव देवीथी परिवृत थयेला, सकल गुणे ॥१५॥ ४.१ अहीं यावत् शब्दे देवनवनो त्याग करीने, दिव्य शरीरनो त्याग करीने.२ च्यवता न जाणे, च्यव्या पठी हुं च्यव्यो एम
जाणे. ३ गुजराती फागण वदि . मे ४ केदखानुं नश्री अने व्यापारप्रवृति नश्री, तेथी था त्रण बाबत ते वखते करवानी नथी.
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पा.९६ (षा देवजीने इन्द्र महाराज शेखडी आयेडे. मुकुट कुंडस आपेडे.)
(नाभिराजा सभामां बेठा.)
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करीने ते युगलिक मनुष्योथी अति उत्कृष्ट अने अनुक्रमे वृद्धि पामता एवा श्री रुपनदेव प्रनु । थाहारनी श्छा वखते देवताए सिंचन करेल अमृतरसे करीने रसवाली श्रांगली (अंगुष्ठ )। मुखमां नाखता हता. एवीज रीते बीजा तीर्थंकरोने माटे पण बाल्य अवस्थामां जाणवू. बीजा तीर्थंकरोनी बाल्य अवस्था व्यतीत थये बते अग्निथी पकावेला थाहारनुं नोजन करता हता, परंतु श्री षनदेवे तो दीक्षा लीधी त्यांसुधी देवोए आणेला उत्तरकुरुक्षेत्रनां कल्पवृक्षनां फलोनुंज नोजन कर्यु बे. | हवे प्रजनी जमर एक वर्षथी कांडक नीती त्यारे "प्रथम जिनना वंशनी स्थापना करवीए४ इनो श्राचार ने” एम विचारीने अने "खाली हाथे प्रजु पासे केम जाउँ” एम विचारीने इंस एक मोटो शेरमीनो सांगे लश्ने नानि कुलकरना खोलामां बेठेला प्रजुनी पासे श्रावी उजा रह्या. आ वखते शेरमीना सांगने जोश्ने हर्षित मुखवाला प्रजुए हाथ लांबो कर्ये बते "श्राप शेरमी । खाशो ?” एम कहीने ते सांगे आपीने “कुना अनिलाषयी प्रजुनो वंश इक्ष्वाकु थार्ज, अने। तेमना पूर्वजो पण कुना अनिलाषवाला हता, तेथी तेमनुं गोत्र काश्यप था.” एम कही। जे प्रजुना वंशनी स्थापना करी.
हवे कोश् युगलने तेमनां मातापिताए तालवृदनी नीचे मूक्युं हतुं ते वखते ताल- फल पम-2 वाथी पुरुष मृत्यु पाम्यो. एवीरीते श्रा पहेलं अकाल मृत्यु थयं. हवे बाकी रहेली ते कन्यानां ४ मातापिता मरण पाम्या बाद ते एकलीज वनमां लटकवा लागी. ते सुंदर स्त्रीने जोश्ने युगलि-2
या तेने नानि कुलकर पासे लइ गया. त्यारे नानि कुलकरे पण शिष्ट एवी था सुनंदा नामे रुषनदेवनी पत्नी थशे एम लोकने कहीने तेणीने पोतानी पासे राखी. पनी सुनंदा अने सुमंगलानी, साथे वृकि पामता प्रजु यौवनावस्था पाम्या एटले इसे पण "प्रथम जिननो विवाह करवानो।
१ प्रनु जन्म्या त्यांसुधी युगलिक प्रवृत्ति होवाथी आ सुमंगलानो जन्म पण प्रनुनी साज अयो हतो.
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कल्प०
॥१०६ ॥
अमारो याचार बे” एम विचारीने क्रोमोगमे देव देवी सहित त्यां श्रावीने प्रजुनुं वर संबंधी कार्य पोते कर्यु ने बने कन्यानुं वधू संबंधी कार्य इंद्राणीए ने देवीए कर्यु. त्यारपढी ते बने स्त्री साथै जोग जोगवता जगवानने व लाख पूर्व गये बते सुमंगलाए जरत ने ब्राह्मी - रूप युगलने जन्म श्राप्यो तथा सुनंदाए बाहुबलि ने सुंदरीरूप युगलने जन्म श्राप्यो . त्यारपढी सुमंगलाए अनुक्रमे गणपचास पुत्रयुगलने जन्म श्राप्यो.
अन् कौश लिक श्री रुषजदेव प्रजु काश्यपगोत्रीनां पांच नाम था प्रमाणे कहेवाय वे. १ षन, २ प्र| थम राजा, ३ प्रथम निशाचर (मुनि), ४ प्रथम जिन ( केवली) ने ५ प्रथम तीर्थंकर ए प्रमाणे जाणवतं.
( तेमां ) प्रथम राजा श्री प्रमाणे - कालना प्रजावने लीधे अनुक्रमे वधारे वधारे कषायनो उदय थवाथी परस्पर विवाद करता युगलियाने माटे या प्रमाणे दंमनीति स्थापली हती. विम | लवाहन ने चक्षुष्मत् कुलकरना वखतमां अल्प अपराधीपणाने लीधे हक्काररूपज दंमनीति हती तथा यशस्वी ने अनिचंडना वखतमां अल्प अपराध माटे हक्काररूप अने मोटा अपराध | माटे मकाररूप दंकनीति हती. पढी प्रसेनजित् मरुदेव ने नानि कुलकरना वखतमां जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट अपराध माटे अनुक्रमे दकार, मकार ने धिक्काररूप दंमनीति हती. एवी रीतनी नीतिनुं पण उल्लंघन थवाथी जगवानने ज्ञान आदि गुणोए करीने अधिक जाणीने युग| लियाउए प्रजुने ते वात निवेदन कर्ये ते प्रजुए कयुं के "नीति उल्लंघन करनारने राजा सर्व | प्रकारनो दंग करे अने ते राजानो अभिषेक थवो जोइए तथा ते प्रधान व्यादिकथी परिवृत होवो जोइए." प्रजुए था प्रमाणे कयुं त्यारे युगलियार्जए कयुं के “मारे पण एवो राजा था.” त्यारे प्रजुए कयुं के "तेवा राजा माटेनी मागणी नानि कुलकर पासे करो.” युगलियार्जए नाजि | कुलकर पासे मागणी करवाथी नानि कुलकरे कयुं के "तमारा राजा षनज था.” पढी ते युगलिया राज्या निषेकने माटे पाणी लेवा सारु तलावे गया. ते वखते जेनुं व्यसन कंप्युं बे एवा
सुबो०
॥१०६॥
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इंद्रे पोतानो आचार जाणी त्यां श्रावीने मुकुट, कुंमल, आजरण श्रादिनी शोजा करवापूर्वक प्रजुने राज्यानिषेक कर्यो. या वखते नलिनीना पनियामां पाणी लइ आवेला युगलियार्ड प्रभुने अलंकृत | थयेला जोइने विस्मय पाम्या ने क्षणवार विचार करीने प्रजुना पग उपर पाणी नांख्युं. ते जो|इने तुष्टमान थयेल इंद्र विचारवा लाग्या के "अहो ! श्रा पुरुषो विनीत बे” एम धारीने तेणे वैश्रमणने श्राज्ञा करी के "अहीं बार योजन विस्तारवाली अने नव योजन लांबी विनीता नामनी नगरी बनावो." ए प्रमाणे श्राज्ञा सांजलीने तेणे रत्न अने सुवर्णमय घरोनी पंक्तिवाली अने फरता किल्लाथी शोजिती एवी नगरी बनावी. त्यारपढी प्रजुए पोताना राज्यमां हाथी, घोमा, गाय खादिनो संग्रह करवापूर्वक उग्र, जोग, राजन्य ने क्षत्रियरूप चार कुलो स्थाप्यां. तेमां जय दंग करवाने लीधे उग्र कुलवाला ते श्रारक्षकस्थानीया जाणवा, जोगना योग्यपणाथी जोग कुलवाला ते ( वृद्धो ) गुरुस्थानीया जाणवा, समान वयवाला होवाथी राजन्य कुलवाला ते मित्रस्थानीया जाणवा ने बाकीना प्रधान यादिक ते क्षत्रिय कुलवाला जाणवा
हवे कालनी उत्तरोत्तर हानिथी कृषन कुलकरना वखतमां कल्पवृक्षनां फलो नहीं मली शकवाथी जे इक्ष्वाकु वंशना हता ते शेरमी खाता अने बीजार्ज प्राये अन्य वृक्षोनां पत्र, पुष्प श्रने फल खादिक खाता तेमज अग्निना अजावथी काचा चोखा विगेरे औषधीउ ( धान्य ) खाता; परंतु कालना प्रजावधी ते नहीं पचवाने लीधे ते थोडं थोडं खावा लाग्या, ते पण नहीं पचवाथी प्रजुना कहेवा प्रमाणे चोखा यादिकने दाथथी मसलीने तेनां फोतरां उतारीने खावा लाग्या. ते पण नहीं पचवाथी प्रजुना उपदेशथी पांदमाना परियामां पाणीथी जींजावीने चोखा आदिक खावा लाग्या. ए प्रमाणे पण नहीं पचवाथी केटलोक वखत पाणीमां जींजावीने पढी हथेलीमां राखीने इत्यादि बहु प्रकारे ते तंडुलादि यन्न खावा लाग्या. एम करतां एक दिवस वृक्षोना
१ पोलीस जेवा.
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कल्प
ASIA
॥१०॥
**5555
घसावाथी नवीन उत्पन्न थयेला, पूर्ण बलती ज्वालावाला अने तृणना समूहने ग्रास करी जता 8 अग्मिने जोश्ने "आ कोइ नवीन रत्न " एवी बुद्धिथी लांबा हाथ करीने युगलिया सेवा लाग्या है। त्यारे हाथे दाज्या एटले जयनीत श्रश्ने प्रजुने ते वात जणावी. त्यारे प्रजुए अग्निनी उत्पत्ति जाणीने कडं के "हे युगलिको ! ए अग्नि उत्पन्न थयो बे, माटे हवे तेमां चोखा आदिक औष
धी नाखीने खाउँ के जेथी करीने ते सुखेथी पचशे.” था प्रमाणे प्रजुए उपाय कह्यो तोपण हूँ (पकाववानो ) अन्यास नहीं होवाथी उपायने बरोबर रीते नहीं जाणता एवा ते युगलिया-3
ए औषधीउने अग्निमां नाखीने कल्पवृक्ष पासेथी फल मागता हता तेम तेनी पासेथी ते मागवा लाग्या, पण अग्निथी तेने तद्दन बली गयेल जोश्ने "अरे ! था पापी तो वेतालनी पेठे| अतृप्त थश्ने पोतेज सर्व जण करी जाय , अमने कांश पण पालुं आपतो नथी माटे तेनो अप-13
कहीने तेने शिक्षा करावीशं." एवी बुद्धिथी ते प्रनु पासे जता हता एटलामां मार्गमा प्रजुने हाथी उपर बेसीने सामा श्रावता जोश्ने तेए यथास्थित वात प्रजुने कही, त्यारे प्रनुए कडं के वासण श्रादिना व्यवधानथी तमारे धान्य विगेरे तेमां नाखवानुं करवू. एम कहीने तेउनी पासेज माटीनो पिंड मगावी तेने हाथीना कुंजस्थल उपर मूकावी मावत पासे तेनुं गम बनाव-11
रावीने प्रजुए पहेली कुंजारनी कला प्रकट करी अने कह्यु के "आवी जातनां वासणो बनावीने है तेमां धान्य पकावो.” प्रजुए कहेल कलाने बरोबर ध्यानमा लश्ने ते युगलियार्ड ते प्रमाणे करवा र
लाग्या. एवी रीते पहेली कुंजारनी कला प्रवर्ती. त्यारपनी बुहारनी, चितारानी, वणकरनी अने| नापितनी कलारूप चार कला प्रकट करी. था पांच मूल शिल्पना प्रत्येके वीश नेद थवाथी एकसो
॥१०॥ प्रकारना शिल्प थया. ते सर्व प्राचार्यना उपदेशथी थयेला जाणवा.
दद ( माह्या ), दक्ष ( सत्य ) प्रतिज्ञावाला, सुंदर रूपवाला, सर्व गुणे करीने युक्त, सरल |परिणामवाला अने विनयवंत एवा अर्हन कौशलिक श्री रुपनदेव प्रजु वीश लाख पूर्व सुधी कुमार श्रव-||
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चित्र ५४.
षभदेवजी हाथी पर बेसीने माटीना बासा बनावीने युगली याने पापेढे. तथा युगलीया माटी नापिंड लई घ्यावी भगवान ने आये जे.
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9540005UCEOCOCCASSACROCOCALCOCUC455
स्थामा रह्या पड़ी त्रेसठ लाख पूर्व सुधी राज्यावस्थामा रहेतां उतां लेखन बे आदिमां एवी तथा|२| गणित ने मुख्य जेमां एवी तथा पक्षीउँनो शब्द जाणवानी कला अंते जेमां एवी पुरुषनी बहोंतेर कलाउनो उपदेश कर्यो अर्थात् शीखवी. लेखन श्रादि बहोंतेर कला या प्रमाणे जाणवी. लेखन
१, गणित २, गीत ३, नृत्य ४, वाद्य ५, पठन ६, शिक्षा , ज्योतिष ७, बंद ए, अलंकार १०, & व्याकरण ११, निरुक्ति १५, काव्य १३, कात्यायन १४, निघंटु १५, गजारोहण १६, तुरगारोहण १७,
ते बनेनी शिदा १७, शस्त्राच्यास १ए, रस २०, मंत्र १, यंत्र २२, विष २३, खन्य श्व, गंधवादश्य
प्राकृत २६, संस्कृत २७, पैशाचिका २७, अपभ्रंश भए, स्मृति ३०, पुराण ३१, तेनो विधि ३५, ४सिकांत ३३, तर्क ३४, वैदक ३५, वेद ३६, आगम ३७, संहिता ३७, इतिहास ३ए, सामुनिक ४०, विज्ञान ४१, आचार्यक विद्या ४५, रसायन ४३, कपट ४४, विद्यानुवादना दर्शन अने संस्कार है ४५-४६, धूर्तसंबलक ४७, मणिकर्म ४०, तरुचिकित्सा भए, खेचरीकला ५०, अमरीकला ५१, इंजजाल, ५२, पाताल सिकि ५३, यंत्रक ५४, रसवती ५५, सर्वकरणी ५६, प्रासादलक्षण ५७, पण ५७, चित्रो-3
पल एए, लेप ६०, चर्मकर्म ६१, पत्रवेद ६२, नखछेद ६३, पत्रपरीक्षा ६४, वशीकरण ६५, काष्ठघटन ६ १६६, देशलाषा ६७, गारुम ६, योगांग ६ए, धातुकर्म su, केवलि विधि ७१ अने शकुनरुत ७५. ए
प्रमाणे पुरुषनी बहोंतेर कला जाणवी. | आमां लेखन-लिखित ते हंस लिपि श्रादि अढार जातनी लिपि समजवी तेनुं विधान प्रजुए जमणे हाथे ब्राह्मीने शीखव्यु. तथा एक, दश, सो, हजार, अयुत (दश हजार), लाख, प्रयुत (दश 8 लाख ) कोटि, अर्बुद ( दश कोटि) श्रज, खर्व, निखर्व, महापद्म, शंकु, जलधि, अंत्य, मध्य अने हैं परार्ध-एवी रीते अनुक्रमे दश दश गणी संख्यावाचुं गणित माबे हाथे सुंदरीने शीखव्यु. वली | नरतने काष्ठकर्मादि कर्म अने बाहुबलिने पुरुष श्रादिनां लक्षण शीखव्यां. १ पृथ्वीमा रहेल पदार्थ जाणवानी कला. २ वृदोने अताव्याधिनु औषध जाणवानी कला. ३ एन्जीनीयर खातानी कला.
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कल्प
सुबोध
॥१०॥
हवे स्त्रीनी चोसठ कला था प्रमाणे-नृत्य १, औचित्य , चित्र ३, वादित्र ४, मंत्र ५, तंत्र, ६ घनवृष्टि , फलाकृष्टि ७, संस्कृत वाणी ए, क्रियाकल्प १०, झान ११, विज्ञान १२, दंन १३, अंबु-1 स्तंज १५, गीतमान १५, तालमान १६, थाकारगोपन १७, आरामरोपण १७, काव्यशक्ति १ए वक्रोक्ति २०, नरलक्षण १, गजपरीक्षा २२, दयपरीक्षा २३, वास्तुशुधि लघुबुद्धि २४, शकुन-11 विचार २५, धर्माचार २६, अंजनयोग २७, चूर्णयोग २७, गृहिधर्म श्ए, सुप्रसादनकर्म ३०,8 कनकसिजि ३१, वर्णिकावृद्धि ३५, वाक्पाटव ३३, करलाघव ३४, ललितचरण ३५, तैलसुर
जिताकरण ३६, भृत्योपचार ३७, गेहाचार ३७, व्याकरण ३ए, परनिराकरण ४०, वीणावाद है , वितंमावाद ४२, अंकस्थिति ४३, जनाचार ४४, कुंजत्रम ४५, सारिश्रम ४६, रत्नमणिनेद , लिपिपरिछेद ४७, वैद्य क्रिया भए, कामाविष्करण ५०, रंधन (रसोइ ) ५१, चिकुर( केश )बंध
५५, शालिखंमन ५३, मुखमंगन ५४, कथाकथन ५५, कुसुमग्रथन ५६, वरवेष ५७, सर्व नाषा ६ विशेष ५७, वाणिज्य एए, जोज्य ६०, शनिधानपरिज्ञान ६१, यथास्थान आनूषण धारण ६२,
अंत्यादरिका ६३ अने प्रश्नप्रहेलिका ६४. ए प्रमाणे स्त्रीनी चोसठ कला जाणवी. है शिल्प अने कर्म तेमां कर्म एटले खेती, वाणिज्य थादि, श्रने कुंजार आदिकना प्रथम कहेल
सो शिल्प, ते शिल्पोनो प्रजुए उपदेश कर्यो, तेथी श्राचार्य नहीं उपदेश करेल ते कर्म अने आचार्ये । उपदेश करेल ते शिल्प समजवा. ते बेनो तफावत कहे जे के कर्म ते अनुक्रमे पोतानी मेलेज
उत्पन्न थाय ने (आवडे डे). शिल्प शीखववा पमे . तेथी पुरुषनी बहोंतर कला, स्त्रीनी चोसmom हूँ कला अने सो शिल्प ए त्रण वस्तुनो प्रजाना हितने माटे प्रजुए उपदेश कर्यो, अने उपदेश
करीने सो पुत्रने सो देशनां राज्य उपर स्थापन कर्या. तेमां जरतने विनीतानुं मुख्य राज्य थाप्यु ।
१ सारी पासे रमवू ते.
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तथा बाहुबलिने बहली देशने विषे तक्षशिला राज्य प्राप्युं श्रने बाकीना श्रगणुं पुत्रोने जूदा है। है जूदा देशो वहेंची थाप्या. हा श्री शषजदेव प्रजुना सो पुत्रोनां नाम था प्रमाणे जाणवां-जरत १, बाहुबलि २, शंख ३,
विश्वकर्मा ४, विमल ५, सुलक्षण ६, अमल , चित्रांग ७, ख्यातकीर्ति ए, वरदत्त १०, सागर ६/११, यशोधर १२, अमर १३, रथवर १४, कामदेव १५, ध्रुव १६, वत्स १७, नंद १७, सूर १५,
सुनंद २०, कुरु २१, अंग १२, वंग २३, कोशल २४, वीर २५, कलिंग २६, मागध २७, विदे संगम श्ए, दशार्ण ३०, गंजीर ३१, वसुवर्मा ३२, सुवर्मा ३३, राष्ट्र ३४, सुराष्ट्र ३५, बुद्धिकर ३६,12 विविधकर ३, सुयशा ३७, यशःकीर्त्ति ३ए, यशस्कर ४०, कीर्तिकर ४१, सूरण ४५, ब्रह्मसेन ४३,13
विक्रान्त ४४, नरोत्तम ४५, पुरुषोत्तम ४६, चंडसेन ४७, महासेन 4G, ननःसेन ४ए, नानु ५०, हूँ सुकान्त ५१, पुष्पयुत ५५, श्रीधर ५३, पुर्बर्ष ५४, सुसुमार ५५, उर्जय ५६, अजेयमान ५७,
सुधर्मा ५७, धर्मसेन एए, श्रानंदन ६०, आनंद ६१, नंद ६५, अपराजित ६३, विश्वसेन ६४, हरि
षेण ६५, जय ६६, विजय ६७, विजयन्त ६०, प्रनाकर ६ए, अरिदमन su, मान ७१, महाबाहु । ४/७५, दीर्घबाहु ७३, मेघ १४, सुघोष ७५, विश्व ७६, वराह , सुसेन ७, सेनापति पुए, कपिल ७०,
शैल विचारी र, अरिंजय ७२, कुंजरवल ७३, जयदेव , नागद ७५, काश्यप ७६, बल , वीर है , शुजमति ए, सुमति ए, पद्मनान ए१, सिंह एर, सुजाति ए३, संजय ए४, सुनान एए, नर-है
देव ए६, चित्तहर एs, सुस्वर एG, दृढरथ एए अने प्रनंजन १००.. न हवे राज्य अथवा देशोनां नाम था प्रमाणे जाणवां-अंग १, वंग २, कलिंग ३, गौम ४,8
चौक ५, कर्णाट ६, लाट उ, सौराष्ट्र ७, काश्मीर ए, सौवीर १०, बाजीर ११, चीण १५, महाहूँ चीण १३, गूर्जर १४, बंगाल १५, श्रीमाल १६, नेपाल १७, जहाल १७, कौशल १ए, मालव २०,
सिंहल १, मरुस्थला २५ विगेरे. (बहोले जागे पुत्रनां नाम प्रमाणे देशोनां पण नामो समजवां).
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सुबी
कल्प० हूँ सो पुत्रोने राज्यने विषे प्रजुए स्थापन कर्या त्यारपनी जीतकदिपक एवा लोकांतिक देवोए है
इष्ट एवी वाणी वडे प्रजुने को बते (दीदाश्रवसर जणाव्ये उते ) बाकीचें धन गोत्रीउने वहेंची ॥१०॥
आप्युं त्यांसुधी सघ पूर्वनी माफक ( वीरचरित्रवत् ) कहे. पड़ी आ जनालानो पहेलो मास, पहेलु पखवामीयु, ते चैत्रनो कृष्णपद, ते चैत्रना कृष्णपदनी आवमने दिवसे दिवसना पाबले
पहोरे सुदर्शना नामनी शिविका (पालखी)मां बेठेला अने देव, मनुष्य तथा असुरोनी पर्षदा ६ है जेनी आगल चाली रही डे एवा प्रनु विनीता नगरीना मध्य नागथी नीकल्या अने नीकलीने ज्यां सिद्धार्थवन नामे उद्यान अने ज्यां अशोक नामे श्रेष्ठ वृक्षाचे त्यां श्राव्या. श्रावीने श्रेष्ठ । अशोकवृक्षनी नीचे पोतानी मेले चार मुष्टि लोच को. या प्रमाणे चार मुष्टि लोच कर्या पली बाकी रहेली एक मुष्टि जे सुवर्ण सरखी कांतिवाला खन्ना उपर लटकती हती ते जाणे सुवर्णना 5
कलश उपर शोजती नील कमलनी माला होय तेवी ( सुंदर ) जोश्ने हर्षित चित्तवाला थयेला हूँ है जना आग्रहथी प्रजुए ते राखी. लोच कर्या पली जलरहित एवो बहनो तप करीने उत्तराPषाढा नक्षत्रमा चंयोग प्राप्त थये बते उग्र, जोग, राजन्य अने क्षत्रिय कुलना कल, महाकन आदि ।
चार हजार पुरुषो के जेए “जेम प्रनु करशे तेम अमे पण करीशुं” ए प्रमाणे निर्णय कयों इ
हतो तेउनी साथे एक देवष्य वस्त्र लश्ने मुंग थश्ने घरथी नीकली साधुपणाने प्राप्त थया, है अर्थात् दीक्षा ग्रहण करी.
अर्हन् कौशलिक श्रीषनदेव प्रजु एक हजार वर्ष सुधी नित्य कायाने वोसरावीने थने तेनो ममत्व है बोमीने विचर्या ( तेनो विस्तार कहे ). दीक्षा लश्ने प्रनु घोर अनिग्रह धारण करीने गामोगाम विहार करवा लाग्या. ते वखते लोको पासे अत्यंत समृफि होवाथी निदा शुं ? श्रने निदाचरो near केवा होय ? ते हकीकत कोइ पण जाणतुं नहोतुं, तेथी जेए प्रजुनी साथे दीक्षा लीधी हती
१ प्रनुने दीक्षानो समय जणाववाना आचारवाला. २ गुजराती फागण वदि - मे.
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ते कुधा श्रादिथी पीमित थया थका प्रजुने थाहारनो उपाय पूजवा लाग्या, पण मौन धारण करनारा प्रजुए कांश उत्तर आप्यो नहीं, तेथी तेए कल अने महाकबने विज्ञप्ति करी. तेए पण कयु के "अमे पण श्राहारना विधिने जाणता नश्री तेमज पहेलो पण प्रजुने ते विधि पूज्यो
नयी अने हवे आहार विना रही शकाय तेम नथी तेमज भरतनी लजाथी घेर पण जq अयुक्त, # तेथी विचार करतां वनवासज श्रेष्ठ जे एम लागे जे.” आ प्रमाणे विचार करीने प्रजुनुज ध्यान 8
धरता ते गंगाने कांठे खरी गयेल पत्र विगेरेने खानारा बने साफ नहीं करेला केशना गुला-14 वाला जटाधारी तापसो थया. है। हवे श्रही कल अने महाकछना नमि अने विनमि नामना पुत्रो के जेठने प्रनुए पुत्र तरीके
इता ते देशांतरथी श्राव्या त्यारे नरत राजाए देवा मांडेला राज्य नागनी अवगणना, करीने ते पितानां वचनथी प्रनु पासे श्राव्या अने प्रतिमा धारीने रहेला प्रजुनी बागल कमलपत्र वडे पाणी लावीने चारे वाजु नूमिने सिंचन करी तथा ढींचण सुधी पुष्प बीउगवीने पंचांग
वडे नमस्कार करवापूर्वक “राज्यजाग आपो” ए प्रमाणे हमेशां विज्ञप्ति करता बता ते प्रजुनी नक्ति 81 & करवा लाग्या. एक दहाडो प्रजुने वंदन करवा श्रावेला धरणे तेमने श्रावी रीते जोश्ने तेउनी
प्रनु परनी नक्तिथी संतुष्ट थइ कहेवा लाग्या के "अरे! प्रजु तो निःसंग ने माटे तेमनी पासे तमे ,
मागो नहीं, प्रजुनी जक्तिथी हुंज तमने आपीश.” एम कहीने ते ने अमतालीश हजार विद्या छापी तेमां गौरी, गांधारी, रोहिणी अने प्रज्ञप्तिरूप चार महाविद्या पाठसिक आपी. ( अहीं| 3 टू किरणावली टीकाकारे अमतालीश विद्या कही ते अयुक्त , कारण के आवश्यकवृत्तिमा
श्रमतालीश हजार विद्या कदेली बे.) विद्या श्रापीने कडं के आ विद्या वडे विद्याधरनी है। झझिने प्राप्त थया थका तमे तमारा वजन कुटुंबने लश्ने वैताढ्य पर्वत उपर जा. त्यां दक्षिण
१ कायोत्सर्ग करीने.
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कल्प
॥११॥
श्रेणिमां गौरेय, गांधार प्रमुख श्राप निकायोने तथा रथनूपुरचक्रवाल प्रमुख पचास नगरोने भने
सुबोग उत्तरश्रेणिमा पंझक वंशालय प्रमुख आठ निकायोने तथा गगनवसन प्रमुख साठ नगरोने वसावीने रहो. पली कृतार्थ थयेला ते बंने पोतानां मातापिताने तथा जरतने पोतानो वृत्तांत कहीने
दक्षिणश्रेणिमा नमि अने उत्तरश्रेणिमा विनमि जश्ने रह्या. है| हवे अन्नपान आदि देवामां अकुशल एवा समृद्धिवाला लोको प्रजुने वस्त्र, आजरण, कन्या || विगेरे आपवा लाग्या, पण योग्य निदा नहीं मलवा बतां क्लेशरहित मनवाला प्रनु कुरुदेशमा हस्तिनागपुर नगर तरफ गया, अने त्यां ( आवश्यकवृत्तिने अनुसारे ) बाहुबलिना पुत्र सोमप्रजनो पुत्र श्रेयांस युवराज हतो. ते श्रेयांसे ते रात्रिए एवं स्वप्न दी के "में श्याम वर्णना मेरुने । अमृतना कलशोथी सिंचन कर्यो तेथी ते अत्यंत शोनावालो थयो.” त्यांना सुबुद्धि नामना नगरशेठे एवं स्वप्न जोडे के सूर्यमंमलथी खरी पडेला हजार किरणोने फरीथी श्रेयांसे त्यां जोमी दीधा तेथी ते सूर्य घणोज शोजवा लाग्यो.” त्यांना राजाए (सोमप्रने) स्वप्नमां एम जोडेर के “एक महा पुरुष शत्रुना लश्करनी साथे लमतो हतो ते श्रेयांसनी सहायथी विजयी थयो."
ते त्रणे जणाए सवारमा सनामां एकठा थश्ने पोतपोतानां स्वप्न परस्पर निवेदन कया. तेथी| है"श्रेयांसने कोई पण मोटो लान थवानो ने” एम राजाए निर्णय करीने सजाने विसर्जन करी.13
श्रेयांस पण पोताने घेर जश्ने फरुखामां बेगे तेवामां "प्रनु कां पण लेता नथी” एवो लोकोनो कोलाहल सांजलीने अने प्रजुने जोश्ने "में कोइ पण जगोए पूर्वे आवो वेश जोयो ।” एम हा. पोह करतां श्रेयांसने जातिस्मरणशान उत्पन्न थयु. तेथी तेणे जाएयुं के "अहो ! हुँ तो पूर्व र नवमां प्रजुनो सारथि हतो अने प्रजुनी साथे में दीदा लीधी हती अने ते वखते वज्रसेन प्रजुए
॥११॥ है कयु हतुं के श्रा वजनान नरतक्षेत्रमा पहेला तीर्थंकर थशे, तेज था प्रनु बे.” हवे तेज वखते
१ सोमयशा.
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onsoonition HEGARAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAERARRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR882908222228800 श्रेयांस कुमर भगवान ने सेखडी नो रस वहोरावे जे.
पा.१००
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को एक माणस उत्तम शेरडीना रसना घमा श्रेयांस कुमारने नेट तरीके आपवा श्राव्यो, तेमांथी एक घमो लश्ने तेणे प्रजुने कछु के "श्रा योग्य निदा श्राप ग्रहण करो.” त्यारे प्रजुए पण| पोताना हाथ पसार्या ( लांबा कर्या ) एटले श्रेयांसे सर्व घमानो रस रेकी दीधो, परंतु एक पण| बिंदु नीचे पड्यू नहीं, रसनी शिखा उपर उपर वधवा लागी. कहुं ले के-"जेना हाथनी अंदर हजारो : घमा समाइ जाय अथवा सर्वे समु समाश् जाय एवी जेने लब्धि प्राप्त थाय तेज पाणिप्रतिग्रही ( हस्तपात्री) थायः" अहीं कवि घटना करे ले के-प्रजुए पोताना जमणा हाथने कयु के | "अरे ! तुं जिदा केम लतो नथी?" त्यारे तेणे कडं के "हे प्रजु ! हुं श्रापनारना हाथनी नीचे शी रीते थालं ? कारण के पूजा, नोजन, दान, शांतिकर्म, कला, पाणिग्रहण, स्थापना, शुद्धता, प्रेक्षणे, हस्तकश्चर्पणे विगेरे कार्योमां हूं तो वपरातो बुं” एम कहीने जमणो हाथ स्थित थयो त्यारे (प्रजुए मावा हाथने शिक्षा सेवा कयु. तेना जवाबमां ) मावा हाथे कडं के "हुँ रणसंग्राममा सन्मुख थनाराब, अंक गणवामां तत्पर अनेमाबा पमखे सवा वि
विगेरेमां सहाय करनारो अने था जमणो हाथ तो जुगार आदि व्यसनवालो बे.” त्यारे जमणा हाथे कडं के "हुँ पवित्र डं, तुं पवित्र नथी.” त्यारपती (प्रजुए बंने हाथने समजाव्या के) "तमे राज्यलक्ष्मी उपार्जन करी|
श्रने अर्थीना समूहने दान देवावडे कृतार्थ करेल , वली निरंतर संतुष्ट बो तोपण दान देनारा है। ४ उपर दया लावीने हवे दान ग्रहण करो.” एवी रीते प्रजुए एक वर्ष सुधी बंने हाथने समजावीने 2
श्रेयांस कुमार पासेथी मलेला ताजा शेरमीना रसे करीने तेने पूर्ण कर्या. एवा श्री रुपनदेव । प्रनु तमारुं रक्षण करो. | श्रेयांस कुमारना दानने वखते नेत्रमा वर्षाश्रुनी धारा, वाणीरूपी फुधनी धारा अने शेरमीना रसनी धारा स्पर्धा वडे वधवा लागी अने तेज आशये ( तेनाथी सिंचायेवू ) धर्मरूपी वृक्ष वधवा
१ हस्तरेखा बताववी ते प्रेक्षण. २ हाथो देवो, कोल आपवो, वचन आपवं, ए सर्व हस्तकअर्पण समजवू.
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कल्प
॥१९॥
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| लाग्यु. पनी ते रसथी प्रजुए सांवत्सरिक तपनुं पारणुं कयु. ते वखते त्यां वसुधारानी' वृष्टि, चेलो-|| त्देपे, आकाशमां देवकुंकुनि, गंधोदक पुष्पवृष्टि अने अहो दान अहो दान एवी श्राकाशमा उद्घोषणा एवी रीतनां पांच दिव्य प्रगट थयां. पली सर्वे लोको त्यां एकग थया. श्रेयांस कुमारे, | तेमने जणाव्युं के "हे लोको ! सद्गति मेलववानी श्छाथी आ प्रमाणे साधुनने एषणीय श्राहारनी निदा अपाय .” एवी रीते आ श्रवसर्पिणीमां श्रेयांस कुमारे बतावेलु दान प्रथम जाणवू. “तमे | आ बाबत केवी रीते जाणी?" ए प्रमाणे श्रेयांसने लोकोए पूज्युएटले तेणे प्रजुनी साथेनो पोतानो | आठ नवनो संबंध कही संजलाव्यो के 'ज्यारे प्रजु ईशान देवलोकमां ललितांग नामे देव हता त्यारे हुँ पूर्व नवनी निर्नामिका तेमनी स्वयंप्रता नामे देवी थर हती १, त्यारपली पूर्व विदेहमा पुष्कलावती विजयने विषे लोहार्गल नामना नगरमां प्रनु वनजंघ राजा हता त्यारे टुं श्रीमती नामे
तेमनी राणी हती २, त्यांथी उत्तरकुरुमां लगवान् युगलिक हता अने हुँ तेमनी युगलिनी हती ३, * त्यांथी सौधर्म देवलोकमां श्रमे बने मित्रदेव थया हता ४, त्यारपडी प्रनु अपर विदेहमा वैद्यपुत्र
हता त्यारे हुँ जीर्ण शेग्नो पुत्र केशव नामे तेमनो मित्र हतो ५, त्यांथी अच्युत देवलोकमां श्रमे । ४ बने देव थया हता ६, त्यांथी पुमरी किणी नगरीमा प्रनु वज्रनाल चक्री हता ते वखते ढुं तेमनो |
सारथि हतो , त्यांथी सर्वार्थ सिद्ध विमानमा अमे बंने देव थया हता ७ अने श्रहीं हुं प्रजुनो | प्रपौत्र थयो ढुं.' आ प्रमाणेनी हकीकत सांजलीने सर्वे लोको "शषनदेव समान पात्र, शेरमीना रस समान निरवद्य दान अने श्रेयांसना जेवो जाव जो पूर्वनुं लाग्य होय तोज प्राप्त थाय.” इत्यादि स्तुति करता पोतपोताने स्थानके गया. एवीरीते दीक्षाना दिवसथी मामीने एक हजार वर्ष सुधी प्रजुना उद्मस्थपणानो काल जाणवो. तेमां सघलो मली प्रमादकाल एक अहोरात्रनो जाणवो.
॥१११॥ ___एवीरीते यात्माने नावता उता एक हजार वर्ष पूर्ण थयां, त्यारपबीआ शियालानो चोथो मास,
१व्यनी. २ वस्त्रनी वृष्टि. ३ दोषरहित. मग्गी-मार्गितं मागणुं (नाग्य ).
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भरत महाराज हाथीमा. स्कंध पर बेटा थका मरु देवी माताने भगवानk समवशरए देखाडे डे.
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पा.१०१
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सातमुं पखवामीयुं, ते फागण मासनो कृष्णपक्ष, ते फागण मासना कृष्णपक्षनी एकादशीना | दिवसे सवारना वखते पुरिमताल नामना विनीता नगरीना शाखानगरेनी बहार शकटमुख नामना उद्यानमां न्यग्रोध नामना वृक्षनी नीचे जलरहित श्रहमनो तप करीने उत्तराषाढा नक्षत्रमां चंद्रयोग प्राप्त ये ते ध्यानांतर दशामां वर्ततां प्रजुने अनंत केवलज्ञान उत्पन्न थयुं यावत् ( सर्व प्राणीना जावने ) जाणता, जोता उता विचरवा लाग्या.
ए प्रमाणे एक हजार वर्ष गया बाद विनीता नगरीना पुरिमताल नामना शाखानगरमां प्रजुने | केवलज्ञान उत्पन्न थयुं तेज वखते जरत राजाने चक्ररत्न पण उत्पन्न थयुं. ते वखते विषयतृष्णाना विषमपणाने लीधे हुं 'प्रथम पितानी पूजा करूं के चक्रीनी करूं ? एम क्षण वार विचारीने या लोक घने परलोकमां सुख श्रापनारा पितानी पूजा कर्याथी मात्र या लोकमां सुख व्यापार चक्रनी पूजा तो थइज चुकी, ए प्रमाणे बराबर विचारीने हमेशां ठपको देता एवा मरुदेवा माताने हाथी उपर बेसामी श्रगल करीने सर्व कृद्धि सहित जरत राजा प्रजुने वांदवा चाल्या. ज्यारे समवसरणनी नजीक याव्या त्यारे 'हे माता ! तमारा पुत्रनी शद्धि जुड़े.' ए प्रमाणे जरत राजाए कयुं, तेथी हर्षथी | रोमांचित अंगवाला थयेला छाने आनंदनां अश्रु जरावाने लीधे निर्मल नेत्रवाला थयेलों मरुदेवा माता प्रजुनी छत्र, चामर यादिक प्रातिहार्यनी लक्ष्मी जोइने विचारवा लाग्या के "अहो ! मोहथी | विह्वल थथेला सर्वे प्राणीउने धिक्कार बे ! तेर्ज स्वार्थने लीवेज स्नेह करे छे, कारण के रुपजनां दुःखथी रुदन करती एवी जे हुं तेनां तो नेत्र पण हीन तेजवालां थयां, परंतु रुषन तो यावी रीते सुर ने सुरथी सेवातो थको ने यावी जातनी समृद्धि जोगवतो बतो पण मने सुखवार्तानो
१ गुजराती माघ वदि ११. २ परुं. ३ शुक्लध्यानना प्रथमना वे नेदनुं ध्यान करी रह्या पबीनी दशा ते ध्यानांतर दशा जाणवी. ते वखते ध्यान होतुं नथी. बाकीना वे पाया जवने अंते ध्यावामां आवे छे. ४ प्रजुना विरहे रुदन करतां खमां परुल आवेलां ते या वखतनां हर्षाश्रुथी धोवाइ गयां तेथी नेत्र निर्मल थयां .
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कल्प०
॥११॥
| संदेशो पण मोकलतो नथी, माटे या स्नेहने धिक्कार बे” ! एम जावना जावतां मरुदेवाने केवल - | ज्ञान उत्पन्न थयुं ने तेज क्षणे श्रायुष्यनो दय थवाथी ते ( अंतकृत् केवली थइने ) मुक्ति पाम्या. कवि घटना करे बे के - 'जगतमां युगादीश एटले रुषजदेव समान पुत्र नथी, कारण के जेमणे एक हजार वर्ष सुधी पृथ्वी उपर जमी जमीने जे केवलज्ञानरूपी उत्तम रत्न उपार्जन | कर्यु ते स्नेहथी तुरतज पोतानी माताने थापी दीधुं, तेमज मरुदेवा समान माता पण जगतमां नथी के जे पोताना पुत्रने माटे मुक्तिरूपी कन्याने अने प्रगटपणे शिवमार्गने पण जोवाने माटे प्रथमथी मोके गया.' प्रजुए पण समवसरणमां बेसीने धर्मदेशना थापी ते वखते त्यां जरतना | शषनसेन यादि पांचसो पुत्रोए तथा सातसो पौत्रोए दीक्षा लीधी. तेर्जमांथी प्रजुए रुषजसेन श्रादि चोराशी गणधर स्थाप्या. ब्राह्मीए पण दीक्षा लीधी ( ते मुख्य साध्वी थइ ) अने जरत राजा श्रावक थया ( श्रावकधर्मने अंगीकार कर्यो ) 'था स्त्रीरत्न थशे' एम धारीने जरते दीक्षा लेतां अटकावेली सुंदरी श्राविका थइ. एवी रीते चतुर्विध संघनी स्थापना थइ पढी कछ छाने | महाकछ सिवायना सघला तापसोए प्रजुनी पासे यावी दीक्षा ग्रहण करी. पढी इंद्रना प्रतिबोधथी मरुदेवा मातानो शोक निवारीने जरत राजा पोताने स्थानके गया.
पढी जरत राजा चक्ररलनी पूजा करीने शुज दिवसे प्रयाण करी साठ हजार वर्षे जरतक्षेत्रना बखंग साधीने पोताने घेर श्राव्या, परंतु चक्ररत्न तो श्रायुधशालानी बहारज रयुं. ते वखते जरते पोताना श्रवाएं जाइने "मारी श्राज्ञा मानो” एम इतना मुखश्री कदेवरायुं. तेथी ते सर्वे एका थइने “अमारे जरतनी आज्ञा मानवी के तेनी साथे युद्ध करकुं” ए पूढवा माटे प्रजुनी पासे गया. प्रजुए पण वैतालीय अध्ययननी प्ररूपणा वडे तेमने प्रतिबोध पमामीने दीक्षा यापी. त्यारपढ़ी जरते बाहुबलि उपर डूत मोकल्यो. ते पण क्रोधथी थंध अने अहंकारथी उडुर थया थका पोताना सैन्य सहित सामा यावीने जरत राजानी साथे बार वर्ष सुधी लड्या, पण हार्या
सुबो०
॥ ११२ ॥
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हूँ नहीं. त्यारे माणसोनो जबरो संहार थतो जाणीने से श्रावीने दृष्टि, वाग् , मुष्टि अने दंगरूप
चार जातनां युक परावी थाप्यां. तेमां पण जरत चक्रीनो पराजय थयो. त्यारे क्रोधथी बांधला थश्ने जरते बाहुबलिनी उपर चक्र मूक्युं, पण एक गोत्रीयपणाने लीधे ते चक्रे तेनो कां पण परा-18 नव को नहीं. ते वखते क्रोधना वशथी जरतने हणवानी श्वावाला मुठी उपामीने दोमता 81 बाहुबलिए "अरे ! पिता तुल्य मोटा नाश्ने हणवो ए मने अनुचित डे अने उपाडेली मुठी हूँ , पण निष्फल केम थाय” एम विचारीने ते मुठीने पोताना मस्तक उपर मूकी केशनो लोच करीने
अने सर्वनो त्याग करीने काउस्सग्ग कर्यो. ते जोश्ने जरत चक्री तेमने नमीने पोतानो अपराध है। खमावी पोताने स्थानके गया. बाहुबलि पण “दीदापर्यायथी मोटा एवा नाना जाने केवी रीते || नमुं ? तेथी ज्यारे केवलज्ञान उत्पन्न थशे त्यारेज हुँ प्रजुनी पासे जश्श' एम विचारीने एक वर्ष | सुधी कानस्सग्गमांज उजा रह्या, वर्ष पढी प्रजुए मोकलेली पोतानी बहेनोए "हे ना ! गजश्री उतरो" एम कहीने बाहुबलिने प्रतिबोध पमाड्यो. पनी बाहुबलिए जेवा पग उपाड्या के तरतज , तेने केवलज्ञान उत्पन्न थयु. त्यारपनी प्रनु पासे जश्ने लांबो वखत विहार करी प्रजुनी साथेज ते मोके गया. जरत चक्री पण लांबा वखत सुधी चक्रवर्तीनी लक्ष्मीने नोगवीने एक दिवस ६ श्रारीसाजवनमा वींटी विनानी पोतानी श्रांगलीने जोश् अनित्यपणानी नावना नावता केवल-* शान मेलवीने दश हजार राजानी साथे देवताए श्रापेला मुनिवेशने ग्रहण करी लांबो वखत है विहार करी मोदे गया. 5 थईन् कौशलिक श्री ऋषनदेव प्रजुने चोराशी गण अने चोराशी गणधर थया, षनसेन प्रमुख
चोराशी हजार साधुऊनी उत्कृष्ट साधुसंपदा थर, ब्राह्मी, सुंदरी प्रमुख त्रण लाख साध्वीउनी उत्कृष्ट साध्वीसंपदा थर, श्रेयांस प्रमुख त्रण लाख ने पांच हजार श्रावकोनी उत्कृष्ट श्रावकसंपदा है। थर, सुजना प्रमुख पांच लाख ने चोपन हजार श्राविकानी उत्कृष्ट श्राविकासंपदा थक्ष, केवली
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RG
कल्प
॥११३॥
हूँ नहीं पण केवली तुल्य एवा चार हजार सातसो ने पचास चौदपूर्वधरनी उत्कृष्ट संपदा थक्ष
सुबोध नव हजार अवधिज्ञानीनी, वीश हजार केवल ज्ञानीउनी, वीश हजार ने बसो वैक्रियलब्धिPवालानी, श्रढीछीप थने बे समुज्ने विषे पर्याप्त संझी पंचेंजिय जीवोना मनोगत जावने जाण-12
नारा एवा बार हजार उसो ने पचास विपुलमतिउनी अने बार हजार उसो ने पचास वादीउनी उत्कृष्टी ६ संपदा थ. अर्हन् कौशलिक श्री ऋषनदेव प्रजुना वीश हजार शिष्यो ( साधु ) अने चालीश ६ है हजार साध्वी मोदे गया. अर्हन कौशलिक श्रीषजदेव प्रजुने अनुत्तर विमानमा उत्पन्न थनारा है अने श्रागामी मनुष्यगतिमां मोदे जनारा वीश हजार अने नवसो मुनिनी उत्कृष्टी संपदा था।
अर्हन् कौशलिक श्रीषनदेव प्रजुनी बे प्रकारनी अंतकृचूमि यश्. ते आ प्रमाणे-एक युगांतकृदनूमि अने बीजी पर्यायांतकृद्नूमि. जगवान् पनी अनुक्रमे असंख्याता पुरुषयुग मोदे गया ते 31 हूँ युगांतकृदनूमि जाणवी अने जगवंतने केवलज्ञान उत्पन्न थया पनी अंतर्मुहूर्ते मरुदेवा माता
अंतकृद्केवली थने मोदे गया ते पर्यायांतकृदनूमि जाणवी. Pा ते कोल अने ते समयने विषे अर्हन कौशलिक श्री ऋषजदेव प्रनु वीश लाख पूर्व कुमारावस्थामा |
रहीने अने त्रेसठ लाख पूर्व राज्यावस्थामांरहीने एकंदर त्र्याशी लाख पूर्व गृहस्थावस्थामा रहीने, एक ६ हजार वर्ष उद्मस्थपर्याय पालीने अने एक हजार वर्ष उबां एक लाख पूर्व सुधी केवलिपर्याय पालीने, एकंदर संपूर्ण एक लाख पूर्व चारित्रपर्याय पालीने-चोराशी लाख पूर्व सुधी सर्व है। आयुष्य पालीने वेदनीय, आयुः, नाम अने गोत्र ए चार कर्म दय थये बते श्रा अवसर्पिणीमा है। सुषमष्षम नामनो त्रीजो अारो बह गये बते एटले त्रण वर्ष अने सामा पाठ मास बाकी है रह्ये बते अर्थात त्रीजा आरानां नेव्याशी पखवामीयां बाकी रह्ये बते था शियालानो त्रीजो मास,ISom पांचमो पक्ष, ते माघ मासनो कृष्णपक्ष, ते माघ मासना कृष्णपक्षनी तेरसने दिवसे' श्रष्टापद
१ गुजराती पोस वदि १३.
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चित्र ५७.
हालो ते
हमारे देवता निर्वाणा महोत्सव करे के
Whi
साधु नुनी साथे :
अष्टापद पर्वत..
प्रभु निर्वाण पाम्या.
पा. १०२
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पर्वतना शिखर उपर दश हजार साधुनी साथे जलरहित चौदलत एटले ब उपवासनो तप करीने है। थनिजित् नामना नक्षत्रने विषे चंयोग प्राप्त थये बते सवारने वखते पल्यंकासने बेग थका निर्वाण पाम्या यावत् सर्व दुःखथी मुक्त थया. | जे वखते श्री षजदेव मोद पाम्या ते वखते जेनुं श्रासन चलित थयुं बे एवो इस अवधिज्ञानथी प्रजुना निर्वाणने जाणीने ज्यां प्रजुनुं शरीर हतुं त्यां अग्रमहिषी, लोकपाल श्रादि सर्व
परिवार सहित श्रावीने त्रण प्रदक्षिणा दक्ष आनंदरहित अने श्रश्रुथी जरा गयेलां नेत्रवालो ४थयो बतो नहीं अति नजदीक तेम नहीं अति पूर एम हाथ जोमीने पर्युपासना करवा लाग्यो है अर्थात् उन्नो रह्यो. एवी रीते जेनां आसन कम्पित थयां ने अने जेए प्रजुनुं निर्वाण जाएयु |
एवा ईशाने श्रादि सर्वे इंस्रो पोतपोताना परिवार सहित अष्टापद पर्वत उपर ज्यां प्रजनुं शरीर हतुं त्यां श्रावीने विधिपूर्वक पर्युपासना करता उन्ना रह्या. त्यारपडी इंजे नवनपति, व्यंतर,
ज्योतिष्क अने वैमानिक देवो पासे नंदनवनश्री गोशीर्ष चंदननां काष्ठ मंगावीने त्रण चिता करावी.13 18 एक तीर्थंकरना शरीर माटे, एक गणधरोनां शरीर माटे अने एक बाकीना मुनिनां शरीर माटे.
पनी आजियोगिक देवो पासे दीर समुश्री पाणी मंगाव्यु. त्यारपती से कीर सर्मुना पाणीथी तीर्थकरना शरीरने न्हवडाव्यु, ताजा गोशीर्षचंदननुं विलेपन कर्यु, हंस लक्षणवायूँ' वस्त्र उढाड्यु अने सर्व अलंकारोथी विनूषित कयु. एवी रीते बीजा देवोए गणधरो अने मुनिनां शरीरोने न्हवमाव्यां, चंदननुं विलेपन कयं श्रने सर्व अलंकारथी विनूषित करू. पठी इंडे विचित्र प्रकारनां 3 चित्रोथी शोजिती त्रण शिबिका करावी श्रने श्रानंदरहित, दीन मनवाला अने अश्रुश्री मिश्रित थयेला नेत्रवाला इंसे तीर्थंकरना शरीरने शिविकामां पधराव्युं अने बीजा देवोए गणधरो अने, मुनिनां शरीरोने शिबिकामां पधराव्या. त्यारपठी इंजे तीर्थकरना शरीरने शिविकामांथी उता
१ हंसना चित्रवाटुं.
******ASASARAN
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कल्प
॥१४॥
रीने चितामा स्थापन कयु अने वीजा देवोए गणधरो श्रने मुनिउँनां शरीरोने चितामा स्थापन , कां. त्यारपली इंजना हुकमयी श्रानंदरहित तथा उत्साहरहित एवा अग्निकुमारोए चितामां| अग्नि प्रदीप्त कर्यो, वायुकुमारोए वायु विकुव्यों अने बाकीना देवोए ते।चताउँमां कालागुरु, चंदन||
आदि उत्तम काष्ठो नाख्यां तथा मध अने घीना घमाथी ते चिताउने सिंचन करी अने ज्यारे है तेजेनां शरीरनां अस्थि मात्र बाकी रह्यां त्यारे इंजना हुकमथी मेघकुमार देवोए ते चिताउने (जल
वडे ) गरी. पनी सौधर्म इसे प्रजुनी उपरनी जमणी दाढा ग्रहण करी, ईशाने उपरनी माबी दाढा ग्रहण करी. चमरें नीचेनी जमणी दाढा अने बलींजे नीचेनी माबी दाढा ग्रहण करीअने बीजा देवोए केटलाके जिननक्तिथी, केटलाके पोतानो आचार समजीने श्रने केटलाके धर्म समजीने ४ वाकी रहेलां अंगोपांगनां अस्थि ग्रहण काँ. पनी इंजे एक जिनेश्वर नगवाननो,एक गणधरोनो , साधने एक बाकीना मुनिर्जनो एम प्रण रत्नमय स्तूप कराव्या अने तेम करीने शक श्रादि देवो*
नंदीश्वर श्रादि छीपेज अहा महोत्सव करीने पोतपोतानां विमानमा जश्पोतपोतानी सनामां
वज्रमय माबलामां जिनदाढाने मूकीने गंध, माव्य श्रादि वडे तेनी पूजा करवा लाग्या. 8 है सर्व फुःखथी मुक्त थयेला अर्हन कौशलिक श्री ऋषनदेव प्रजुना मुक्त थया पड़ी त्रण वर्ष अने सामा
आठ मास व्यतीत थया. त्यारेबेंतालीश हजार वर्ष तथा त्रण वर्ष भने सामा आठ मास अधिक एटलो काल जंबो एवी एक सागरोपम कोटाकोटी गश्ते समये श्रमण जगवान् श्री महावीर स्वामी निर्वाण पाम्या. त्यारपछी नवसो वर्ष गयां अने दशमा सेंकमार्नु आ एंशीमुं वर्ष जाय . (ते समये पुस्तकवाचनाथ). या प्रमाणे श्रीषनदेव प्रजुन चरित्र जाणq. | एवी रीते जगद्गुरु नहारक श्री हीरविजय सूरीश्वरना शिष्यरत्न महोपाध्याय श्रीकीतिविजय ॥१९॥ गणिना शिष्योपाध्याय श्री विनयविजय गणिए रचेली श्रीकल्पसत्र सबोधिका नामनी टीकामा सात, व्याख्यान समाप्त थयुं तेमज जिनचरितरूप प्रथम वाच्य व्याख्यान पूर्ण थयु. श्रीरस्तु.
१ देरी अने पगलां.
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॥ अथ अष्टमं व्याख्यानं प्रारभ्यते ॥ हवे गणधरादि स्थविरावलीरूप बीजी वाचनामां स्थविरावली कहे जे.
ते काल अने ते समयने विषे श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने नव गण श्रने अगीयार गणधरो | थया. हवे शिष्य पूजे डे के हे जगवन् ! ते कया हेतुथी श्राप्रमाणे कहो बो के श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने नव गण अने अगीयार गणधरो थया ? केमके बीजा जिनेश्वरोने तो "जेने जेटला गण| 8 तेने तेटला गणधर” ए सूत्रथी गण अने गणधरोनी संख्या सरखी वे.श्रा प्रमाणे शिष्ये पूज्ये बते है आचार्य कहे ( उत्तर आपे ) के श्रमण जगवंत श्रीमहावीर प्रजुना गौतम गोत्रवाला मोटा है
अनूति नामे अणगार पांचसो साधुने वाचना श्रापता हतो, गौतम गोत्रवाला वचला अग्निनूति ॐनामे श्रणगार पांचसो साधुउने वाचना आपता हता, गौतम गोत्रवाला नाना वायुनूति नामे अण-31
गार पांचसो साधुउने वाचना थापता हता, नाराज गोत्रवाला आर्यव्यक्त नामे स्थविर पांचसो % है साधुटने वाचना आपता हता, अग्निवैश्यायन गोत्रवाला स्थविर आर्यसुधर्मा पांचसो साधुने ।
वाचना थापता हता, वासिष्ठ गोत्रवाला स्थविर मंमितपुत्र सामा त्रणसो साधुऊने वाचना ॐापता हता, काश्यप गोत्रवाला स्थविर मौर्यपुत्र सामा त्रणसो साधुउने वाचना श्रापता | ॐ हता, गौतम गोत्रवाला स्थविर अकम्पित अने हारितायन गोत्रवाला स्थविर श्रचलत्राता ए बने ।
स्थविर त्रणसो त्रणसो साधुउने वाचना श्रापता हता तथा कोमिन्य गोत्रवाला स्थविर मेतार्य है। है श्रने स्थविर प्रनास ए बने स्थविर त्रणसो त्रणसो साधुने वाचना थापता हता. ते हेतुथी हे ।
आर्य ! ते एम कडेवाय डे के श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने नव गण अने अगीयार गणधरो हता, केमके अकम्पित अने श्रचलत्रातानी एकज वाचना हती तथा मेतार्य अने प्रनासनी
१ तेटला तेना मुख्य शिष्यो हता एम बधे समजवु.
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कल्प
॥१९॥
एकज वाचना हती तेथी नव गण अने अगीयार गणधरो हता ए युक्तज कल जे. जे कारण ५ माटे एक वाचनावालो यतिसमुदाय तेने गण कहे जे. अहीं मंमित अने मौर्यपुत्रनी माता एक हती, पण ते बंने लाउनां गोत्र जूदा जूदा बापनी अपेदाए निन्न निन्न कहेला . तेमां मंमि
तनो पिता धनदेव हतो अने मौर्यपुत्रनो पिता मौर्य हतो. ते देशमा एक पति मरी गया बाद ४ बीजो पति करवानो निषेध नहोतो एम वृक्ष आचार्योनो मत . है अनूति श्रादि था सर्वे श्रमण नगवंत श्री महावीर प्रजुना अगीयारे गणधरो हता ते केवा
हता ? तो के छादशांगी एटले आचारांगथी मामीने दृष्टिवाद पर्यंत बारे अंगने जाणनारा हता; केमके पोतेज तेना रचनार हता. चौद पूर्वना पण जाणनारा हता. छादशांगीना ज्ञाता कहेवाथी र चौदपूर्विपणुं तेमां श्रावीज जाय तोपण ते अंगोमां चौद पूर्वनुं प्रधानपणुं जणाववा माटे तेने पृथक् ग्रहण करेल . ते प्रधानपणुं प्रथम रचवाने लीधे, अनेक विद्या, मंत्र श्रादिना अर्थमय 4 होवाने लीधे तेमज तेनुं मोटुं प्रमाण होवाने लीधे . छादशांगिपणुं श्रने चौदपूर्विपणुं तो मात्र सूत्रना ज्ञाता कहेवाथी पण श्रावी जाय ते पूर करवाने माटे कडं बे के समस्त गणिपिटकने धारण 2 करनारा हता एटले जेने गण होय ते गणी एटले नावाचार्य,तेनी जाणे पिटक कहेतां पेटीज होय । ते गणिपिटक एटले हादशांगी, ते छादशांगीने पण स्थूलिनानी पेठे देशथी नहीं, परंतु सर्व अदरना संयोग जाणवाने लीधे तेने सूत्रथी श्रने अर्थथी धारण करनारा हता. ते अगीयारे गणधरो राजगृह नगरमां जलरहित मासजक्तना तपथी एटले एक मास सुधी जोजन- प्रत्याख्यान करीने पादपोपगमन अनशन वमे मोदे गया बे यावत् सर्व पुःखथी मुक्त थया . श्री महावीर प्रजु मोक्ष पाम्या पली स्थविर इंजनूति अने स्थविर आर्यसुधर्मा ए बंने स्थविर मोक्ष पाम्या बे, एटले ए श्रगीयार गणधरोमांथी नव गणधरो तो नगवंतना जीवतांज मोद पाम्या : श्रने जूति तथा आर्यसुधर्मा जगवंत निर्वाण पाम्या पली निर्वाण पाम्या दे. हमणां वर्त्तता जे श्रा
॥११५॥
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निग्रंथ साधु विहार करे ले ते सर्वे आर्यसुधर्मा अणगारना शिष्यसंतान जाणवा. बाकीना है गणधरो शिष्यसंतान रहित , केमके पोतपोताना मरणकाले पोतपोताना गण सुधर्मास्वामीने सोपीने ते मोके गया ले. कांबे के-"सर्वे (गणधरो) समस्त लब्धियी संपन्न, वजषन संघयणवाला अने समचतुरस्र संस्थानवाला एक मासना पादोपगमने मोद पाम्या बे.” | श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रनु काश्यप गोत्रवाला हता. ते काश्यप गोत्रवाला श्रमण जगवंत
श्री महावीर प्रजुने अग्निवैश्यायन गोत्रवाला आर्यसुधर्मा स्थविर शिष्य हता. श्री वीर प्रजुनी|2 पाटे श्री सुधर्मास्वामी पांचमा गणधर हता. तेनुं स्वरूप श्रा प्रमाणे जाणवू. कुहाग सन्निवेशमा धम्मिल नामे ब्राह्मणने नदिला नामे स्त्री हती. तेमना पुत्रे (सुधर्मास्वामीए) चौद विद्याना पारंगामी थश्ने पचास वर्षने अंते दीदा लीधी अने त्रीश वर्ष सुधी वीर प्रजुनी सेवा करी.
वीर प्रजुना निर्वाण पली बार वर्षने अंते एटले जन्मथीबाणुं वर्षने अंते तेमने केवलज्ञान उत्पन्न प्रथयुं. त्यारपती श्राठ वर्ष सुधी केवलीपणुं पालीने सो वर्षतुं आयुष्य पूर्ण करी पोतानी पाटे
जंबूखामीने स्थापीने मोदे गया. | अग्निवैश्यायन गोत्रवाला स्थविर श्रार्यसुधर्माने काश्यप गोत्रवाला थार्यजम्बू नामे स्थविर * शिष्य थया. ते श्री जंबूस्वामीनुं स्वरूप (चरित्र) या प्रमाणे जाणवू. राजगृह नगरमां झपन है अने धारिणीना पुत्र पांचमा देवलोकथी च्यवेला जंबू नामे श्री सुधर्मास्वामी पासे धर्म सांज-12 सवापूर्वक शीले अने सम्यक्त्व पाम्या बतां पण माता पिताना दृढ आग्रहने वश थश्ने आठ
कन्या परएया, पण तेउनी स्नेह युक्त वाणीथी ते मोह पाम्या नहीं, कारण के “सम्यक्त्व अने ६ है शीलरूप बे तुंबमां के जेना वझे नवरूपी समुन ( सुखे) तराय बे, ते वे तुंबमांने धारण कर-1 नार जंबू मुनि स्त्रीरूपी नदीमां केवी रीते बूमे ?" लग्ननीज रात्रिए ते स्त्रीने प्रतिबोध देतां |
१ सर्वश्री ब्रह्मचर्य उच्चर्या बतां.
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कल्प
चोरी करवाने श्रावेला चारसो ने नवाणुं चोरना परिवारवाला प्रनवने पण प्रतिबोध पमाड्यो.|| सो.
६ प्रजाते पांचसो चोर, श्राव स्त्री, ते स्त्रीउनां मावाप अने पोतानां मावापनी साथे पोते पांचसो ॥११॥
द सतावीशमा एवा श्री जंबूस्वामीए नवाणुं करोग सोनैया तजीने दीक्षा लीधी, अनुक्रमे केवली है थया अने सोल वर्ष गृहस्थपणामां, वीश वर्ष उद्मस्थपणामां श्रने चुमालीश वर्ष केवलीपणामां एवी
रीते सर्व श्रायु एंशी वर्षतुं पालीने श्री प्रनवस्वामीने पोतानी पाटे स्थापीने मोदे गया. अहीं कवि घटना करे ने के "जंबूखामी समान को कोटवाल थयो नथी श्रने थशे पण नहीं के जेणे || चोरोने पण मोक्षमार्ग वाहक साधु बनाव्या. प्रनव प्रजु पण जयवंता वर्तों के जेणे चोरी थी। धनने हरतां अमूख्य, चोरीथी हराय नहीं एवं अने अद्भुत एवं रत्नत्रितयं मेलव्यु.”
श्री वीर प्रजना निर्वाण पनी पाठ वर्षे गौतमखामी, वीश वर्षे सधर्माखामी ने चोसठ वर्षे जंबूस्वामी मोदे गया. त्यारपड़ी दश वस्तु विछेद गइ. मनःपर्यवज्ञान १, परमावधि के जेना 8
उत्पन्न थया पठी एक अंतर्मुहूर्त्तनी अंदर केवलज्ञाननी उत्पत्ति थाय २, पुलाकलब्धि के 8 हूँ जेथी चक्रवर्तीना सैन्यने पण चूर्ण करवाने शक्तिमान थाय ३, आहारक शरीरलब्धि ४, रूपक
श्रेणि ५, उपशमश्रेणि ६, जिनकल्प ७, संजमत्रिक ( परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय अने । यथाख्यात चारित्र ) , केवलज्ञान ए अने मोक्षमार्ग १७. अहीं पण कवि कहे जे के "महामुनि जंबूस्वामीनुं सौलाग्य लोकोत्तर डे के जे पतिने पामीने मुक्तिरूपी स्त्री (जरतदेत्रमाथी) हजु । पण बीजा स्वामीने श्वती नथी.” है| काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यजंबूने कात्यायन गोत्रवाला स्थविर आर्यप्रनव शिष्य थया.||"
|| ॥११॥ कात्यायन गोत्रवाला स्थविर श्रार्यप्रनवने व गोत्रवाला मनकपिता स्थविर आर्यशय्यंजव शिष्य है। जथया. एक दिवसे प्रजव प्रजुए पोतानी पाटे स्थापवाने माटे पोताना गणमां श्रने संघमा उपयोग
१ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप रत्नत्रयी.
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60******
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दोधो, पण तेवो योग्य कोई पुरुष नहीं जोवाथी परतीर्थमा उपयोग दीघे बते राजगृहमा यज्ञ है| है करता शय्यंनव जट्ट जोवामां श्राव्या. पनी ( तेमनी प्रेरणाथी गयेसा) बे साधुए त्यां जश्ने |
"अहो कष्टमहो कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते परं" एटसे अहो था तो कष्टज, कष्टज, श्रेष्ठ तत्व तो जणातंज नथी. ए प्रमाणे वचन संजसाव्यु.पळीखाथी बीवमावेसा तेना ब्राह्मण गुरुए देखामेली यस्तंजनी नीचे रहेली श्री शांतिनाथनी प्रतिमाना दर्शनथी ते प्रतिबोध पाम्या थने (प्रजव खामी पासे) दीक्षा लीधी. पनी प्रजव प्रजु श्री शय्यंनवने पोतानी पाटे स्थापीने स्वर्गे गया. ए प्रमाणे प्रजव प्रचुन चरित्र जाणवं. | त्यारपती श्री शय्यंजवे पण गर्न सहित तजी दीघेसी पोतानी स्त्रीए जन्म आपेल मनक नामना ६ पुत्रना हितने माटे श्री दशवैकालिक रच्युं श्रने अनुक्रमे श्री यशोजने पोतानी पाटे स्थापीने है श्री वीर प्रजुथी अगणुं वर्षे ते स्वर्गे गया. | वछ गोत्रवाला मनक पिता स्थविर आर्यशय्यंजवने तुंगिकायन गोत्रवाला स्थविर आर्ययशोजन शिष्य हता. श्री यशोजन सूरि पण श्री नवाहु अने संजूतिविजय नामे वे शिष्यने पोतानी | पाटे स्थापीने स्वर्गलोके गया.
हवे श्रहीं प्रथम संक्षिप्त वाचना वडे स्थविरावली कहे जे. संक्षिप्त वाचना वझे श्रार्ययशोजपथी। है आगल आ प्रमाणे स्थविरावली कही बे. तुंगिकायन गोत्रवाला स्थविर आर्ययशोज ने बे
स्थविर शिष्य हता. एक माढर गोत्रवाला स्थविर संचूति विजय अने वीजा प्राचीन गोत्रवासा स्थविर आर्यनप्रवाहु. श्री यशोजनी पाटे श्री संजूति विजय श्रने श्री नावाहु नामे वे पट्ट-5
धर थया. तेमां श्री जवाहुनो संबंध था प्रमाणे -प्रतिष्ठानपुरमां वराहमिहिर अने जवाहु है नामे बे ब्राह्मणोए दीक्षा लीधी. तेमां नजबाहुने आचार्यपद आपवाथी गुस्से थयो थको वराह है।
ब्राह्मणनो वेष ग्रहण करीने वाराहीसंहिता बनावीने निमित्त जोवा वमे आजीविका चलाववा
***436454
in Erm
al
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कल्प
सुबोग
॥११॥
SANGRAGRICROGRESUSUHAGRAAGAMGAR
लाग्यो भने लोकमां कहेवा लाग्यो के "श्ररएयमां कोश्क जगोए शिलानी उपर में सिंहलग्न ६ चितमु हतुं, सूती वखते ते जूंसी नाख्यु नथी एम याद श्राव्याथी लग्मनी नक्तिथी त्यां जतां सिंहने है तेनी उपर बेठेलो जोश्ने पण तेनी नीचे हाथ नाखीने लग्न जूंसी नाख्यु, तेश्री संतुष्ट थयेलो है। सिंहसननो अधिपति सूर्य प्रत्यक्ष थश्ने मने पोताना मंगलमा लइ गयो अने ग्रहनो सर्व चार (चाल) मने देखाड्यो.” एक दिवसे वराहे राजानी आगल कह्यु के "श्रा करेल कुमालाना मध्य 8 जागमां बावन पलना प्रमाणवालो मत्स्य (आकाशमांथी) पमशे.” त्यारे नबाहु स्वामीए का | के "मार्गमां अर्ध पल शोषार जवाथी सामी एकावन पलना प्रमाणनो अने कुंमालाने मे पडशे." ते प्रमाणे वात मली. वली एक दिवसे राजाने पुत्र श्रावतां वराहे तेनुं एकसो वर्षनुं श्रायुष्य कां ?
अने "श्रा (नाबाहु ) व्यवहारने जाणनारा नथी के राजाना पुत्रने जोवा पण श्राव्या नहीं" ए॥ हूँ प्रमाणे जैनोनी तेणे निंदा करी त्यारे (नाबाहु स्वामीए)सातमे दिवसे बिलामीथी तेनुं मृत्यु थशे 8
एम कडं. (अहीं किरणावलीकारे "सप्तनिर्दिनैः" ने बदसे सप्तदिनैः एप्रमाणे आखो प्रयोग मूक्यो है। P ते संख्याए करीने समाहार हिट थवाथी वैयाकरणीए विचारवा लायक . ) राजाए शहे-है रमांधी सर्व बिलामीने काढी मकावी तोपण सातमे दिवसे धावता बालकनी उपर बिलामीना
श्राकारना मुखवालो श्रागली पमवाथी ते बालक मरण पाम्यु. तेथी गुरुनी प्रशंसा थर अने 81 ₹ वराह मिहिरनी सर्वत्र निंदा थ. त्यारपडी क्रोधथी मरीने ते व्यंतर थयो. मरकी आदिकथी संघने र
उपजव करता ते व्यंतरने उपसर्गहर स्तोत्र करीने गुरुए पूर कर्यो. कडुं ने के “करुणाने विषे तत्पर है।
एवा जेणे उपसर्गहर स्तोत्र करीने संघनुं कल्याण कयु ते जज्बाहु गुरु जयवंता वर्तो.". 31 माढर गोत्रवाला स्थविर आर्यसंनूति विजयने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यस्थूलना ॥१७॥ शिष्य हता. स्थूलनअनो संबंध आ प्रमाणे डे-पाटलीपुरमा शकटास मंत्रीना पुत्र श्री स्थूलना बार वर्ष कोशा नामे वेश्याने घेर रह्या हता. वररुचि ब्राह्मणना प्रयोगथी तेना पिता, मृत्यु
MEMALESEARCANCERCOALSALASS
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थया बाद नंद राजाए तेने बोलावीने मंत्रीपदवी आपवा माटे कडं त्यारे पोताना चित्तमां पोताना बापना मरणर्नु चितवन करीने तेणे दीक्षा ग्रहण करी अने पनी व्रत लश्ने गुरुनी आझापूर्वक कोशाना घरमा चोमासु रह्या. चोमासाने अंते बहु हावन्नाव करनारी एवी वेश्याने पण प्रतिबोध/ पमामीने गुरुनी पासे थाव्या त्यारे तेए "पुष्करपुष्करकारक” ए प्रमाणे संघ समक्ष का. ते* वचनथी सिंहगुफा पासे, सर्पना दर पासे अने कूवाना काष्ठ उपर चोमासु रहेनार त्रणे मुनि खेद पाम्या. तेउमांथी सिंहगुफा पासे रहेनार मुनि गुरुए ना पाड्या बता पण बीजे चोमासे 31 कोशाने घर गया. दिव्य रूपवाली ते वेश्याने जोश्ने ते तरत चलायमान चित्तवाला थया. त्यारपली तेणीए नेपाल देशथी मंगावेल रत्नकंबल खालमां फेंकी दश्ने तेने प्रतिबोध पमाड्यो. त्यारे ते गुरु पासे आवीने कहेवा लाग्या के तमाम साधुउँमा स्थूलना ते स्थूलन एकज , तेने में गुरुए पुष्करपुष्करकारक कहेल ने ते युक्त जे. “पुष्प, फल, दारु, मांस ने महिलाना रसने जाणतां बतां जे तेनाथी विरक्त थया डे ते पुष्करकारकने हुं वांडु बुं.” कोशा पण स्थूलनाथी प्रतिबोध पामी हती. तेने त्यां राजानी थाज्ञायी आवेला अने बाणना मूलना नागमां बीजु बाण
नाखीने, तेना मूलमां त्रीजुं बाण नाखीने, एम केटलांक बाणो वडे घर रदेल थांबानी मुंबने , है तोमी श्राणवाथी गर्वित थयेला पोताना कामी रथकारने सर्षवना ढगला उपर राखेल सोयना,
श्रम जाग उपर रहेल पुष्पना उपर नाच करती उती कदवा लागी के "श्रांवानी बुंब तोमवी ते कां पुष्कर नथी तेम सर्षव उपर नाचवू ते पण पुष्कर नथी, पण तेज पुष्कर ने ४ के जे ते महानुनाव मुनिए प्रमदारूपी वनमा मूर्बित न थश्ने करी बताव्युं जे.” अहीं कविन पण कहे जे के “पर्वतमां, गुफामां अने मनुष्य विनाना वनमां वास करता हजारो मुनि जियोने वश करनारा थया , पण अति मनोहर महेलमां स्त्री पासे रहीने इंजियोने वश करनार तो एक शकटालनंदन ( स्थूलन) जडे, के जेणे अग्निमां प्रवेश कयों तोपण
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कल्प०
॥१२८॥
दाज्या नहीं, तरवारनी धारा उपर चाल्या पण छेद पाम्या नहीं, काला सर्पना दरमां रह्या पण | डंखाया नहीं तथा काजलनी कोटमीमां रह्या तोपण माघ लाग्यो नहीं. वेश्या रागवाली दती, हमेशां तेना कदेवा प्रमाणे चालनारी दती, षडूरस जोजन मलतुं इतुं, सुंदर चित्रशाली दती, मनोहर शरीर दतुं, नव्य वयनो संगम हतो ( यौवन वय इती ) अने काल पण घादलांथी श्याम ( वर्षा शतुनो ) दतो तोपण जेणे यादरपूर्वक कामने जीत्यो एवा युवतीने प्रतिबोध पमावामां कुशल स्थूलन मुनिने हुं वंदन करूं तुं. हे कामदेव ! मनोहर नेत्रवाली स्त्री तो तारुं मुख्य अस्त्र बे, वसंत रुतु, कोयल, पंचम स्वर तथा चंद्र ए तारा मुख्य योद्धा के थने विष्णु, ब्रह्मा तथा शिव विगेरे तो तारा सेवको के तोपण छारे हताश ! तुं श्रा मुनिथी केवी रीते हणायो ? हे मदन ! तें नंदिषेण, रथनेमि ने मुनीश्वर कुमारनी बुद्धिथी या मुनिने पण जोया ? तें एटलुं पण न जाएयुं के रणसंग्राममां मने मारीने या मुनि तो नेमिनाथ, जंबूस्वामी अने सुदर्शन शेवनी |पटी चोथा थशे ? श्रीनेमिनाथथी पण शकटालसुतनो विचार करतां श्रमे एने एकनेज वीर पुरुष मानीए बीए, कारण के श्री नेमिनाथजीए तो पर्वत उपर जश्ने मोहने जीत्यो पण या मुनिए तो | | मोहना घरमा दाखल थइने मोहने वश कर्यो.”
एक वखते बार वर्षना दुकालने अंते संघना थामथी श्री जद्रबाहु स्वामी पांचसो साधुचने दृष्टिवादनी हमेशां सात वाचना श्रापता हता. सात वाचनाथी पण अतृप्त रहेता बीजा साधु उमि थयाथी विहार करी गया. श्री स्थूलन एकला रह्या. ते बे वस्तुए बां दश पूर्व जएया. एक वखत वंदनने माटे श्रावेल या साध्वी प्रमुख पोतानी बेनोने सिंहनुं रूप देखामवानी हकीकतथी खेद पामेला श्री जद्रबाहु स्वामीए स्थूलनने कयुं के “ वाचना माटे तमे अयोग्य ठो.” पढी संघना थाग्रहाथी "बीजाने तमारे वाचना यापवी नहीं" एम कहीने बाकीनां
सुबो०
॥११॥
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चार पूर्वनी सूत्रधी वाचना थापी कयुं वे के "जंबूस्वामी बेला केवली थथा तथा प्रजव प्रभु शय्यंजव, यशोद्र, संभूतिविजय, जडवाहु अने स्थूलन एव श्रुतकेवली यया.”
गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रार्यस्थलजने बे स्थविर शिष्य हता. एक एलापत्य गोत्रवाला स्थविर श्रार्यमहागिरि ने बीजा वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर यार्य सुदस्ति तेमनो संबंध आ प्रमाणे बे- जिनकल्प विछेद गये उते पण धार्यमहागिरिए जिनकल्पनी तुलना करवा मांगी. " जिनकल्प विच्छेद गये बते पण जे धीर पुरुषे जिनकरूपनी तुलना करी ते मुनिर्उने विषे रुपन | समान ने श्रेष्ठ चारित्रने धारण करनार श्रार्यमहागिरिने हुं वंदन करुं बुं. जेणे जिनकम्पनी परिकर्मा (तुलना ) करी छाने जेनी स्तवना श्रेष्ठीना घरमां श्रार्य सुदस्तिए करी ते श्रार्यमदागिरिने हुं वंदन करूं बुं. जेने सीधे संप्रति राजा सर्व प्रसिद्ध रुद्धि अने परम चारित्रने पाम्या ते मुनिप्रवर श्री आर्यसुहस्तिने हुं वंदन करुं हुं”. जे श्रार्यसुदस्ति महाराजाए साधुर्जनी पासे निक्षा मागता निक्षुकने दीक्षा यापी हती ते निक्कुक मरण पामीने श्रेणिकनो पुत्र कोशिक, तेनो पुत्र उदायी, तेनी पाटे नव नंद, तेनी पाटे चंद्रगुप्त, तेनो पुत्र बिंदुसार, तेनो पुत्र अशोकश्री, तेनो पुत्र कुणाल ने तेनो पुत्र संप्रति नामे थयो. तेने जन्मतांज तेना दादाए राज्य श्राप्यं. |पी रथयात्रामां प्रवृत्त थयेल श्री आर्यसुहस्तिने जोड़ने तेने जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न ययुं. तेथी तेणे सवा लाख जिनालय, सवा क्रोम नवीन जिनबिंब, बत्रीश हजार जीर्णोद्धार, पंचाएं हजार पीतलनी प्रतिमा तथा हजारोगमे दानशालाउंथी त्रण खंम पृथ्वीने पण विभूषित करी. ( यहीं किरणावलीकारे सवा क्रोम जिनजवन एम कट्टेल बे ते विचारवा जेवुं बे, कारण के अंतर्वाच्य श्रादिमां 'सपादलक्ष' एटले सवा लाख एम देखाय बे ). अनार्य देशोने पण करथी मुक्त करीने प्रथम साधुवेष धारण करनार सेवकोने मोकली साधुउने विहार करवाने योग्य कर्या ने पोताना | सेवक राजाउने जैनधर्मने विषे रक्त कर्या. तथा वस्त्र, पात्र, अन्न, दुधी आदि प्रासुक वस्तु जे
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कल्पण वेचता हता तेने संप्रति राजाए कयु के "तमे श्रावता जता साधुऊनी बागल पोतानी वस्तु
है मूकजो अने ते पूज्य जे वस्तु ग्रहण करे ते तेने श्रापजो. श्रमारो खजानची ते वस्तुनुं तमाम , ॥११॥
मूल्य तथा तमारो इडित लाल गुप्त रीते आपशे.” ते राजानी श्राज्ञाश्री तेम करवा लाग्या
अने ते अशुरू बतां पण शुद्ध बुझिथी साधु ग्रहण करवा लाग्या.. 8 वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर आर्यसुदस्तिने व्याघ्रापत्य गोत्रवाला सुस्थित अने सुप्रतिबुझ हूँ नामना कोटिक अने कार्कदिक एवा बे स्थविर शिष्य थया. एक क्रोमवार सूरिमंत्रनो जाप कर
वाथी सुस्थित मुनि कोटिक कहेवाता हता अने काकंदी नगरीमा जन्मेला होवाथी सुप्रतिबुद्ध मुनि । कादिक कहेवाता हता. व्याघ्रापत्य गोत्रवाला सुस्थित श्रने सुप्रतिबुद्ध एवा स्थविर कोटिक अने कादिकने कौशिक गोत्रवाला स्थविर आर्यसदिन्न शिष्य हता. कौशिक गोत्रवाला स्थविर ४
आर्यइन्डदिन्नने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यदिन्न शिष्य इता. गौतमत्रवाला स्थविर आर्यदिन्नने है। & कौशिक गोत्रवाला अने जातिस्मरणशानवाला स्थविर आर्यसिंहगिरि शिष्य हता. कौशिक |
गोत्रवाला अने जातिस्मरणशानवाला स्थविर आर्यसिंहगिरिने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यवन शिष्य हता. गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रार्यवजने उत्कौशिक गोत्रवाला स्थविर आर्यवज्रसेन 31 शिष्य हता. उत्कौशिक गोत्रवाला स्थविर श्रार्यवज्रसेनने चार स्थविर शिष्य हता. स्थविर | थार्यनागिल, स्थविर आर्यपौमिल, स्थविर आर्यजयन्त अने स्थविर आर्यतापस. स्थविर आर्यनागिलथी आर्यनागिला शाखा नीकली,स्थविर आर्यपौमिलथी आर्यपौमिला शाखा नीकली, स्थविर ।
आर्यजयन्तथी आर्यजयन्ती शाखा नीकली थने स्थविर आर्यतापसभी श्रार्यतापसी शाखा नीकली. __ हवे विस्तारवाली वाचनाथी स्थविरावली कहे . था विस्तर वाचनामां श्रार्ययशोजमश्री श्रा8| ॥११॥
प्रमाणे स्थविरावली जाणवी. तेमा घणा नेदो तो लेखकदोषना हेतुनूत जाणवा. बाकी स्थविहै रोनी शाखा अने कुलो प्राये करीने एक पण हाल जणातां नथी, ते बीजां नामथी तिरोहित
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ययेस हशे एम तेना जाणनारनुं कहे . तेमां कुल एटले एक श्राचार्यनो परिवार समजवो अने है
गण एटले एक वाचना लेनार मुनिसमुदाय जाणवो. कडुंबे के "एक श्राचार्यनी संतति ४ कुल जाणवू अने बे अथवा तेथी वधारे श्राचार्यना मुनि एक बीजाथी सापेक्ष वर्तता होय तो है तेनो एक गण जाणवो.” शाखा एटसे एक आचार्यनी संततिमांज उत्तम पुरुषोना जूदा जूदा |
अन्वय (वंश) अथवा विवक्षित आद्य पुरुषनी संतति जाणवी. जेम अमारी वस्र नामना सूरिथी वरी शाखा बे. शिष्यनाजूदा जूदा अन्वय ते कुल जाणवां.जेम चांऽकुल, नागें कुल इत्यादि.2 7 तुंगिकायन गोत्रवाला स्थविर आर्ययशोजउने आ बे स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. (जेना उत्पन्न थवाथी पूर्वजो उर्गतिमा अथवा अयशरूप कादवमां पमता नथी ते अपत्य-पुत्र थादिक श्रने तेनी सरखा ते यथापत्य-पुत्र समान कहेवाय.) ते था प्रमाणे-एक प्राचीन हूँ गोत्रवाला स्थविर आर्यनजबाहु अने बीजा माढर गोत्रवाला स्थविर आर्यसंचूति विजय. प्राचीन गोत्रवाला स्थविर आर्यनजवाहुने श्रा चार स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ते था | प्रमाणे-स्थविर गोदास, स्थविर अग्निदत्त, स्थविर यज्ञदत्त अने स्थविर सोमदत्त. ते चारे काश्यप गोत्रवाला हता. काश्यप गोत्रवाला स्थविर गोदासश्री गोदास नामनो गण नीकल्यो बे. तेनी चार शाखा आवी रीते कहेवाय ले. तामलिप्तिका १, कोटिवर्षिक ५, पुंड्रवर्धनिका ३अने दासीखर्ब टिका है। ४. माढर गोत्रवाला स्थविर श्रार्यसंनूतिविजयने बार स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिक हता.
ते प्रमाणे-नंदनना १, उपनंद २, तिष्यनज ३, यशोना ४, सुमनोज ५, मणिना ६/६, पूर्णजा , स्थूलना , जुमति ए, जंबू १७, दीर्घजा ११ अने पांमुजज १५. माढर गोत्रवाला|8| ६ स्थविर धार्यसंचूतिविजयने सात शिष्या पुत्री समान प्रसिद्ध हती. ते था प्रमाणे-यक्षा १, है
यक्षदिन्ना २, जूता ३, नूतदिन्ना ५, सेणा५, वेणा६ अने रेणा . ए साते स्थूल नउनी बहेनो हती. गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यस्थूलनाने बे स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ते श्रा
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सुबोग
कल्प
प्रमाणे-एलापत्य गोत्रवाला स्थविर श्रार्यमहागिरि १ अने वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर आर्यसुह
वास्ति . एलापत्य गोत्रवाला स्थविर आर्यमहागिरिने आठ स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ॥१०॥
दाते या प्रमाणे-स्थविर उत्तर १, स्थविर बलिस्सहर, स्थविर धनाढ्य ३, स्थविर श्रीन, स्थविरल है कोमिन्य ५, स्थविर नाग ६, स्थविर नागमित्र ७ अने कौशिक गोत्रवाला स्थविर षमुलूक रोहगुप्त , 1. अव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष अने समवाय ए ड पदार्थने प्ररूपवाथी षडू अने उलूक ||गोत्रमा उत्पन्न थवाथी उलूक, ए षड् अने उलूकनो कर्मधारय समास करवाथी षमुलूक. तेनो ४ हूँ प्राकृत प्रयोग बडुलूए थाय ने तेथी सूत्रमा तेमने कौशिक गोत्री कहेल . उलूक अने कौशिक हैए बने शब्दनो अर्थ एकज होवाथी कहेल के. कौशिक गोत्रवाला स्थविर बडुलूक रोहगुप्तथी/
राशिक नीकल्या. जीव, अजीव अने नोजीव नामे त्रण राशिने प्ररूपनारा तेना शिष्य, प्रशिष्य ते त्रैराशिक कहेवाय बे. तेनी उत्पत्ति श्रा प्रमाणे -श्री वीर प्रजुना निर्वाण पनी पांचसो चुमालीशमे वर्षे अंतरंजिका नामे नगरीमां नूतग्रह जेवा व्यंतरना चैत्यमा रहेला श्रीगुप्त ६ थाचार्यने वांदवा माटे बीजा गामथी श्रावता तेनारोहगुप्त नामना शिष्ये वादीए वगमावेला पटहनो है। ध्वनि सांजलीने ते पटहने स्पर्श कर्यो अने श्राचार्यने ते वात निवेदन करी. पली वीडी, सर्प, || बंदर, मृगी, वराही, काकी श्रने शकुनिका ए नामनी परिव्राजकनी विद्याऊने उपघात करनारी मयूरी, नकुली, बिमाली, व्याघ्री, सिंही, उलूकी अने श्येनी ए नामनी सात विद्या तथा सर्व 8 उपवने शमावनार रजोहरण गुरु पासेथी मेलवीने बलश्री नामे राजानी सनामां श्रावी पोहशाल नामना परिव्राजकनी साथे वाद करवा मांड्यो. ते परिव्राजके जीव अजीव, सुख दुःख यादि बे राशिनुं स्थापन कयें. त्यारे त्रण देव, त्रण अग्नि, त्रण शक्ति, त्रण स्वर, त्रण लोक, त्रण पद, त्रण ॥२॥ पुष्कर, त्रण ब्रह्म, त्रण वर्ण, त्रण गुण, त्रण पुरुष, संध्या श्रादित्रण काल, त्रण जातनी संध्या, त्रण वचन अने वली त्रण अर्थ कहेल ने, ए प्रमाणे कहेता रोहगुप्ते जीव, अजीव श्रने नोजीव
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इत्यादि ऋण राशि स्थापी, त्यारपढी तेनी विद्याउने पोतानी विद्या वडे जीत्ये बते तेणे मूकेली रासजी विद्याने रजोहरणथी जीतीने महोत्सवपूर्वक गुरु पासे श्रावी सर्व वृत्तांत कह्यो. त्यारे गुरुए कयुं के " हे वत्स ! तें तेने जीत्यो ते सारुं कयुं, पण जीव, जीव ने नोजीव ए त्रण राशिनी स्थापना करी ते उत्सूत्र बे तेथी त्यां जश्ने मिथ्या दुष्कृत थाप." पढी "तेवी रीते सजामां पोतेज प्ररूपीने तेने केवी रीते हुं अप्रमाण करूं ?" ए प्रमाणे तेने अहंकार उत्पन्न थवाथी तेणे ते प्रमाणे न कर्यु पछी गुरुए व मास सुधी राजसनामां तेनी साथे वाद करीने बेवढे कुत्रिकापथी नोजीवनी मागणी करी. त्यां ते नहीं मलवाथी चुमालीशसो प्रश्न वडे तेने परास्त कर्यो. ते बतां पण कोइ रीते पोतानो आग्रह न बोमवाथी गुरुए क्रोधथी थुकवाना पात्रमांथी तेना | मस्तक पर जस्म नाखवापूर्वक तेने संघ बहार कर्यो. त्यारपठी ते त्रैराशिक बघा निहवे अनुक्रमे | वैशेषिक दर्शन प्रकट कर. जो के सूत्रमां रोदगुप्त ने श्रार्यमहागिरिनो शिष्य कहेल बे, परंतु उत्त| राध्ययन वृत्ति ने स्थानांगवृत्ति विगेरेमां श्री गुप्ताचार्यनो शिष्य कहेल होवाथी श्रमोए पण ते प्रमाणेज लखेल बे. तेमां तत्त्व शुं बे ते बहुश्रुतो जाणे.
स्थविर उत्तरवलिरसह थी उत्तरबलिस्सद नामनो गए नीकल्यो बे. तेनी चार शाखा श्रा प्रमाणे कहेवाय . कौशांबिका १, सौरितिका २, कौटुंबीनी ३, चंदनागरी ४. वासिष्ट गोत्रवाला | स्थविर श्रार्यसुदस्तीने बार स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ते या प्रमाणे- स्थविर आर्यरोहण १, जयश २, मेघ ३, कामर्द्धि ४, सुस्थित ए, सुप्रतिबुद्ध ६, रक्षित ७, रोदगुप्त छ, रुषिगुप्त ए, श्रीगुप्त १०, बह्मा ११ ने सोम १२. ए प्रमाणे सुहस्तीना गहने धारण करनारा था बार | शिष्यो हता. काश्यप गोत्रवाला स्थविर श्रार्यरोहणथी उद्देह गए नामनो गए नीकल्यो. तेमांथी १ कृत्रिक एटले लोक, तेमांनी तमाम वस्तु मले एवी आपण एटले दुकान ते कृत्रिकापण. या राजगृहीमां | देवाधिष्ठित दुकान हती. त्यां नोजीव न मध्यो.
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कल्प०
॥१२२॥
चार शाखा छाने व कुल नीकल्यां ते यावी रीते कहेवाय बे. ते कइ शाखार्ज ? शाखार्ड या प्रमाणे कदेवाय बे-उडुंबरिका १, मासपूरिका २, मतिपत्रका ३, पूर्णपत्रिका ४. या शाखार्ड डे. ते कुलो कयां ? तो के कुलो या प्रमाणे कदेवाय बे. ते जेमके-पहेलुं नागनूत, बीजुं सोमजूत, त्रीजुं उलगछ, चोथुं इस्तलिप्त, पांचमुं नंदिऊ ने बहु पारिहासक. या उद्देह गणनां व कुल जाएवां. हारित गोत्रवाला स्थविर श्रीगुप्तथी चारण गए नामनो गए नीकट्यो बे. तेनी चार शाखा ने सात कुल या प्रमाणे कद्देवाय बे. ते कइ शाखा ? तो के शाखार्ड या प्रमाणे कड़ेवाय बे. ते जेमके - हारितमालागारी १, संकासीका २, गवेधुका ३ यने वज्रनागरी ते या शाखा बे. ते कुलो कयां ? तो के कुलो या प्रमाणे कद्देवाय बें. ते जेमके - पहेलुं वत्सलिक बीजुं प्रीतिधर्मिक, त्रीजुं दालिऊ, चोथुं पुष्यमित्रिक, पांचमुं मालिक, बहु श्रार्यवेडक ने सात कृष्णसख. या सात चारण गणनां कुलो बे. जारद्वाज गोत्रवाला स्थविर जयशथी जमुवाटिक गए नामनो गण नीकल्यो बे. तेनी चार शाखार्ड ने त्रण कुल या प्रमाणे कदेवाय बे. ते कर शाखार्ड बे ? तो के शाखा या प्रमाणे कद्देवाय बे. ते जेमके - चंपिया १, नहिंडिया २, काकंदिका ३ अने मेघदलि क्रिया. ते या शाखा बे. ते कुलो कयां बे ? तो के ते या प्रमाणे कहेवाय ते. ते जेमकेनद्रयशिक १, नद्रगुप्तिक २ ने यशोज ३. ए त्रण उवाटिक गणनां कुलो बे. स्थविर काम|र्द्धिथी वेसवाटिक गए नामनो गण नीकल्यो बे. तेनी चार शाखार्ड ने चार कुलो था प्रमाणे कहेवाय बे. ते शाखार्ज कर बे ? तो के शाखा या प्रमाणे कद्देवाय बे. ते जेमके श्रावस्तिका १, राज्यपालिका २, अंतरिक्रिया ३ श्रने देम लिजिया ४. ते या शाखार्ड बे. ते कुलो कयां बे ? तो के कुलो या प्रमाणे कहेवाय बे. ते जेमके-गणिक १, मेधिक २, कामर्द्धिक ३ अने इंद्र| पुरक ४. या वेसवाटिक गणनां चार कुलो बे. वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर कृषिगुप्त काकं दिकधी | माणव गण नामनो गण नीकल्यो बे. तेनी चार शाखा ने त्रण कुल था प्रमाणे कहेवाय बे.
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॥१२१॥
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ते शाखार्ड कइ बे ? तो के शाखा या प्रमाणे कहेवाय ते. ते जेमके - काश्यपिका १, गौतमीका २१ वाशिष्टिका ३ ने सौराष्ट्रिका. ते या शाखा बे. ते कुलो कयां बे ? तो के कुलो या प्रमाणे कहेवाय बे. ते जेमके - पहेलुं ऋषिगुप्तिक, बीजुं कृषिदत्तिक ने श्रीजुं निजयंत ए त्रण कुल | माणव गणनां जाणवां व्याघ्रापत्य गोत्रवाला अने कौटिक तथा काकंदिक उपनामवाला स्थविर सुस्थित अने स्थविर सुप्रतिबुद्धथी कौटिक गए नामनो गण नीकल्यो बे. तेनी चार शाखाउँ अने चार कुलो या प्रमाणे कद्देवाय बे. ते शाखा कइ बे ? तो के ते शाखा या प्रमाणे कहे| वाय ते. ते जेमके-उच्च नागरी १, विद्याधरी २, वज्री ३ अने मध्यमिका. ए चार कौटिक गणनी शाखा बे. ते कुलो कयां बे ? तो के कुलो या प्रमाणे कड़ेवाय बे. ते जेमके - पहेलुं बंज लिप्त, बीजं । वस्त्रलिप्त, त्रीजुं वाणिज्य अने चोथुं प्रश्नवादनक. व्याघ्रापत्य गोत्रवाला ने कौटिक तथा काकं|दिक उपनामवाला स्थविर सुस्थित छाने स्थविर सुप्रतिबुद्धना श्रा पांच स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध इता. ते श्र प्रमाणे- स्थविर आर्यदिन १, स्थविर प्रियग्रंथ २, काश्यप गोत्रवाला स्थविर विद्याधरगोपाल ३, स्थविर ऋषिदत्त ४ अने स्थविर दत्त ५.
स्थविर प्रियग्रंथनो संबंध कहे बे. त्रणसो जिनजवन, चारसो लौकिक प्रासाद, श्रढारसो ब्राह्मणनां घर, बत्रीशसो वणिकनां घर, नवसो बगीचा, सातसो वात्र, बसो कूवा अने सातसो दानशालाथी विराजित ने अजमेरनी नजदी कमां श्रावेल एवा सुनटपाल राजाना दर्षपुर नामना नगरमां एक वखत श्री प्रियग्रंथ सूरि पधार्या. अन्यदा ब्राह्मणोए त्यां यज्ञमां बकराने होमवानो यरंज कर्यो. त्यारे प्रियग्रंथ सूरिए श्रावकना हाथमां वासदेप आपीने ते बकरा | उपर नखाववा व तेने अंबिकाथी अधिष्ठित कर्यो. एटले ते बकरो आकाशमां रहीने बोलवा लाग्यो के " अरे ब्राह्मणो ! तमे मने बांधीने लाव्या वो थने मारो होम करवा व तमे मने मारी नाखवा धारो बे, परंतु जो तमारी पेठे हुं निर्दय थाउं तो हुं तमने बधाने क्षण वारमां मारी
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कल्पण
नाखुं. कोप पामेला हनुमाने जेम राक्षसोने माटे लंकाना किल्लामा कर्यु हतुं तेम हुँ उंचे रह्यो थको र सबोग
जोदया वचमां न श्रावती होत तो तमारे माटे पण करत. (कृष्णे कयु डे के )"हे जारत! पशुना है। ॥११॥
शरीरने विषे जेटला रोमकूप ने तेटला हजार वर्ष सुधी पशुना घात करनारा (नरकमां ) पचे . जो कोइ सोनानो मेरु तेमज आखी पृथ्वी दानमा थापे अने बीजो कोइ एकने जीवित थापे तो हे युधिष्ठिर ! ते बंने सरखा थ६ शकता नथी. अर्थात् जीवित थापनार वधे ले. मोटां एवां 8 दानोनुं फल पण काले करीने क्षीण थाय , परंतु नय पामेलाने अजय दान पनारना पुन्यनो है।
यज थतो नथी, विगेरे.” पनी लोकोए तुं कोण बो ? तारा श्रात्माने प्रगट कर, एम कडं त्यारे है। तेणे कर्वा "हुँ अग्नि ढुं. तमे मारा वाहनरूप था पशुने फोगट शामाटे मारो बो ? अहीं श्री प्रियग्रंथ सूरी आवेला ने तेमने शुद्ध धर्म पूजो अने मननी शुधिपूर्वक तेने थाचरो. जेम नरेन्द्रने विषे चक्री श्रने धनुष्यधारीमा धनंजय (अर्जुन ) ने तेम सत्यवादीउने विषे धोरी ते आचार्य एकज है।
.” पली ब्राह्मणोए तेमना कह्या प्रमाणे कस्तूं. | स्थविर प्रियग्रंथथी अहीं मध्यमा शाखा नीकली . काश्यप गोत्रवाला स्थविर विद्याधरगोपालथी अहीं विद्याधरी शाखा नीकली . काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यसदिन्नने | गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रार्यदिन्न शिष्य हता. गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यदिन्नने बे स्थ शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ते था प्रमाणे-माढर गोत्रवाला आर्यशांतिसेनिक अने जातिस्म
रणज्ञानवाला तथा कौशिक गोत्रवाला आर्यसिंद गिरि. माढर गोत्रवाला स्थविर आर्यशांतिसेनिकथी सही उच्चनागरी शाखा नीकली बे. माढर गोत्रवाला स्थविर श्रार्यशांतिसेनिकने चार स्थविर 1
शिष्य पुत्र समान प्रसिक हता. ते था प्रमाणे-स्थविर श्रार्यसेनिक १, स्थविर थार्यतापस २, ॥९श्शा स्थविर आर्यकुबेर ३ अने स्थविर आर्यज्ञषिपालित. स्थविर आर्यसेनिकथी अहीं थार्य
१ जारत संबोधन अर्जुन अथवा युधिष्ठिरने माटे .
ASHASRA-SHAHARASHTRA
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छटटटटटटटन
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चित्रपट.
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TECARDAMAARAARAAAAAAARREARARRRRRRRRRRRRR8222338388RRRRRRRRRRRRRRRARI त्रए वर्ष थया पठी सुनंदायें राजसभामा फरीयाद करी परंतु राजायें न्याय करी ते डोकरोअपाव्यो नहीं.
पा.१०७
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Wanyong
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सेनिका शाखा नीकली वे, स्थविर श्रार्यतापसथी यहीं श्रर्यतापसी शाखा नीकली वे, स्थविर आर्यकुबेरथी अहीं आर्यकुबेरी शाखा नीकली वे अने स्थविर आर्यशषिपालितथी श्रार्यरुषिपालिता शाखा नीकली बे. जातिस्मरणज्ञानवाला अने कौशिक गोत्रवाला आर्यसिंह गिरिने चार स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिद्ध हता. ते आ प्रमाणे- स्थविर धन गिरि १, स्थविर श्रार्यवज्र २, स्थविर प्रार्यसमित ३ श्रने स्थविर श्रईदिन्न ४.
वहीं स्थविर आर्यवज्रनो संबंध कहे बे. तुंबवन नामना गाममां सुनंदा नामनी पोतानी स्त्रीने उधान सहित ( गर्जवंती ) मूकीने धन गिरिए दीक्षा लीधी. सुनंदाने पुत्र प्रसव्यो. ते पुत्रने पोताना जन्म वखतेज पितानी दीक्षा सांजलीने जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न थयुं. पी माने | उद्वेग आपवा माटे' हमेशां रमवा लाग्यो. तेथी तेनी माताए ते व मासनो थयो त्यारेज धन गिरिने श्रापी दीघो ( वहोरावी दीधो. ) तेथे गुरुना हाथमां श्राप्यो. गुरुए बहु जार होवाने लीधे तेनुं वज्र नाम आप्युं. ते पारणामां रह्यो थको सांजलीने अग्यार अंग जएयो. पठी ते ज्यारे त्रण वर्षनो थयो त्यारे तेनी माताए राजानी समक्ष विवादमां अनेक सुखमी - रमकमां विगेरेथी तेने ललचाव्यो तोपण तेणे ते नलीधुं अने धनगिरिए आपेलुं रजोहरणज लीधुं. त्यारपठी माताए पण | दीक्षा लीधी. वज्रने गुरुए दीक्षा पी. पढी या वर्षनी खरे एक वखत तेना पूर्व जवना | मित्र जुंनक देवोए उयिनीना मार्गमां वरसाद विराम पाम्ये बते कूष्मांनी निक्षा देवा मांगी ते वखते तेना अनिमिषपणोथी या देवपिंड वे तेथी कल्प्य वे एम धारीने ते ग्रहण नहीं कर वाथी संतुष्ट थयेला देवोए तेने वैक्रियलब्धि थापी तेवीज रीते बीजी वेलाए घेवर नहीं लेवाथी नजोगमन ( श्राकाशगामिनी ) विद्या थापी ते वज्र मुनिए पाटलीपुरमां धन श्रेष्ठीए करोड़ धन १ माता उद्वेग पामे तो तेना पर मोह न लावतां दीक्षा लेवा दे ए हेतु हतो. २ साकर कोलानी. ३ यांख मटकुं मारती न होवाथी.
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कल्प
॥१२३॥
ANSARMACAUREAUCACASSASCARRORECRURUCAX
सहित आपवा मांगेली अने साध्वी पासेथी वजना गुणोने सांजलीने 'हुं वजनेज वरीश' एवो सुबो श्रनिग्रह जेणे लीधो हतो एवी रुक्मिणी नामनी कन्याने प्रतिबोधीने दीक्षा अपावी. अहीं कवि है। कहे जे के "जे वज्र कृषिए बाल्यवयमांज लीला मात्रमा मोहरूपी समुज्ने एक घुटमो करी नाख्यो, तेने स्त्रीरूपी नदीना स्नेहन पर केवी रीते जीजावी शके ?" ते वज्र स्वामी एक वखत पुकालमा संघने पटे उपर बेसामीने सुकालवाली नगरीमा लश् गया. त्यां बौछ राजाए जिनमंदिरोमा पुष्पनो 8 निषेध कर्यो हतो. (अहीं पण किरणावली श्रने दीपिकामां 'बौद्धराज्ञा' एवो प्रयोग लखेलोडे ते । विचारवा योग्य बे.) पनी पर्युषणामां श्रावकोए विज्ञप्ति करवाथी आकाशगामिनी विद्या वझे । + माहेश्वरी पुरीमा पिताना मित्र एक मालीने पुष्प एकगं करवा माटे कहीने पोते हिमवत् पर्वत
उपर लक्ष्मी देवीने घेर गया. त्यांची लक्ष्मी देवीए आपे महापद्म तथा हुताशन वनमांश्री वीश ४ लाख पुष्प सहित जूंनक देवोए विकुर्वेला विमानमां बेसी महोत्सवपूर्वक त्यां श्रावीने जिनशा-* सननी प्रनावना करी अने राजाने पण श्रावक को. एक दिवस ते वन स्वामीए कफना उपक्रम , माटे नोजन पड़ी खावा सारु कान उपर राखेली अ॒ग्नो प्रमादथी प्रतिक्रमण वखते पात थवाथी । पोतानुं मृत्यु नजदीक श्रावेj जाणीने श्री वज्रसेन नामना पोताना शिष्यने कह्यु के "बार वर्षनो 3 उकाल पमशे अने जे दिवसे लद मूल्यवाला चावलमांथी तने निदा मले ते दिवस पड़ीना 4 दिवसनी सवारे सुकाल थशे एम जाणजे.” एम कहीने तेने बीजी जगोए विहार कराव्यो अने । पोते पोतानी साथे रहेला साधुऊनी साथे रथावर्त पर्वत उपर जश् अनशन ग्रहण करी देवलोके गया. ते वखते संघयण चतुष्क अने दशमुं पूर्व विछेद गयां (अहीं किरणावलीकारे 'तुर्य संहननं । व्युछिन्नं एटले चोएं संघयण विच्छेद गयुं एम कहे जे ते विचारवा जेवं डे,कारण के तंफुल वैचा-3
॥१३॥ रिक वृत्ति अने दीपालिका कल्प विगेरेमां चतुष्क ए प्रमाणे पाठ कहेलो बे.) त्यारपबी बार
१ पोताना वस्त्र उपर २ खावी नूली जवाश्री.
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वर्षी पुकाल पड्यो तेनी प्रांते सोपारक नगरमां जिनदत्त श्रावकना घरमां लद मूल्यवाझुं अन्न | राधीने तेनी ईश्वरा नामनी स्त्री तेमां विष नाखती हती तेने गुरुर्नु वचन कहीने श्री वनसेने | निवाझुं. बीजे दिवसे सवारमांज वहाण वमे पुष्कल धान्य थाववाथी सुकाल थयो, अने जिन-11 दत्ते पोतानी स्त्री तथा नागेंड, चंड, निर्वृति अने विद्याधर नामना चार पुत्र सहित दीक्षा लीधी.18॥ त्यारपली ते चार शिष्योना नामथी चार शाखा प्रवृत्त थ. * गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रार्यसमितथी ब्रह्मदीपिका नामनी शाखा नीकली बे. तेनो संबंध है।
या प्रमाणे - बाजीर देशमां अचलपुरनी नजदीकमां अने कन्ना तथा बेन्ना नदीनी मध्यमां आवेला ब्रह्महीपमां पांचसो तापस रहेता हता. तेमांनो एक पगे खेप करीने जमीन उपरनी जेम जल पर चाली जलथी पग जीजाया सिवाय बेन्ना नदी उतरीने पारणाने माटे जतो इतो. ते जोश 'श्रहो ! आनी तपनी शक्ति केवी ने ? जैनीठमां कोइ पण एवो प्रनावी नथी' ए प्रमाणे सांजलीने श्रावकोए श्री वन स्वामीना मामा आर्यसमित सूरिने बोलाव्या त्यारे तेणे कडं के 'आ तेनी मात्र अस्प एवी पादलेपशक्तिज .' पली श्रावकोए ते तापसने जमवानुं श्रामंत्रण आप्यु थने ते जमवा बेग त्यारे तेना पग अने पाउका (पावमी) धोश् नाखवापूर्वक पोताने घेर । जमाड्या. त्यारपडी तेउनी साथेज श्रावको पण नदीए गया अने ते तापस पण धृष्टतानुं आलं
बन करीने नदीमा प्रवेश करतांज बुमवा लाग्यो. ते वखते तापसोनी थपत्राजना थ. तेज श्रव-14 है सरे आर्यसमित सूरिए त्यां श्रावीने लोकोने प्रतिबोध आपवा माटे योगचूर्ण नाखीने कयु के ।
हे बेन्ना ! मारे पेसे पार जq डे' एम कदेतांज बंने कांग एका थर गया. लोकोने बहु आश्चर्य है। शाययु. पनी सूरि महाराजे तापसोना आश्रममा जश्ने तेउने प्रतिबोधी दीक्षा आपी. त्यारपली ते-है
उथी ब्रह्मकीपिका शाखा नीकली.
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कल्प
सुबो
॥१२॥
थार्यमहागिरि, आर्यसुहस्ती, श्री गुणसुंदर सूरि, श्यामार्य, स्कंदिलाचार्य, रेवतीमित्र सूरीश्वर, श्रीधर्म, जगुप्त, श्रीगुप्त अने वज्र सूरीश्वर ए दश दशपूर्वी अने श्रेष्ठ युगप्रधानो थया. ___ गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यवज्रथी थार्यवज्री शाखा नीकली . गौतम गोत्रवाला स्थविर
आर्यवज्रने त्रण स्थविर शिष्य पुत्र समान प्रसिक हता. ते या प्रमाणे-स्थविर आर्यवज्रसेन १, स्थविर आर्यपद्म ५ अने स्थविर श्रार्यरथ ३. स्थविर आर्यवज्रसेनथी आर्यनागिली शाखा है
नीकली, स्थविर आर्यपद्मथी आर्यपद्मा शाखा नीकली अने स्थविर आर्यरथथी थार्यजयंती है शाखा नीकली. वछ गोत्रवाला स्थविर श्रार्यरथने कौशिक गोत्रवाला स्थविर आर्यपुष्पगिरि शिष्य 8 हता. कौशिक गोत्रवाला स्थविर आर्यपुष्पगिरिने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यफल्गुमित्र शिष्य में हता. गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यफल्गुमित्रने वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर आर्यधनगिरि शिष्य है। हता. वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर श्रार्यधनगिरिने कुछ गोत्रवाला स्थविर आर्य शिवनूति शिष्य || हता. कुछ गोत्रवाला स्थविर आर्य शिवनतिने काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यन शिष्य हता. काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यजाने काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यनत्र शिष्य हता. का-18 श्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यनक्षत्रने काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यरत शिष्य हता. (अहीं बहुश्रुतनी प्रसिद्धिने पामेला किरणावलीकारने पण अनाजोग विलसित थयुं जणाय डे, कार
ण के जे तोसलिपुत्र श्राचार्यना शिष्य, श्री वन स्वामीनी पासे सामा नव पूर्व नणेला अने नामथी । हूँ श्री श्रार्यरहित हता ते जूदा ने अने था श्रीवन स्वामीथी शिष्य, प्रशिष्यनी गणनाथी नवमी/81 पाटे थयेल आर्यरद नामे ते पण जूदा जे. ए प्रमाणे आर्यरक्षित अने आर्यरदानो स्फुट नेदर
नूली जश्ने आर्यरदने ठेकाणे आर्यरकितनी हकीकत लखी दीधी बे.) काश्यप गोत्रवाला | ॥१२ ६ स्थविर आर्यरहने गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रआर्यनाग शिष्य हता. गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्य
नागने वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर आर्यजेहिल शिष्य हता. वासिष्ट गोत्रवाला स्थविर आर्य-8
.
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15 जेहखिने माढर गोत्रवाला स्थविर आर्यविश्नु शिष्य हता. माढर गोत्रवाला स्थविर आर्यविचने है। हूँ गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यकालिक शिष्य हता. गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यकालिकने गौतम है।
गोत्रवाला था बे स्थविर शिष्य हता. स्थविर आर्यसंपलित अने स्थविर श्रार्यजड.
गोत्रवाला आ बे स्थविरोने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यवृद्ध शिष्य हता. गौतम गोत्रवाला 8 स्थविर आर्यवृडने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यसंघपालित शिष्य हता. गौतम गोत्रवाला!!
स्थविर आर्यसंघपालितने काश्यप गोत्रवाला स्थविर थार्यहस्ती शिष्य हता. काश्यप गोत्रवाला | है स्थविर आर्यहस्तीने सुव्रत गोत्रवाला स्थविर श्रआर्यधर्म शिष्य हता. सुव्रत गोत्रवाला स्थविर र
आर्यधर्मने काश्यप गोत्रवाला स्थविर श्रार्यसिंह शिष्य इता. काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्य-3 सिंहने काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यधर्म शिष्य हता. काश्यप गोत्रवाला स्थविर श्रार्यधर्मने ६ स्थविर श्रार्यसंमिल शिष्य हता. है। (अहींथी 'वंदामि फग्गुमित्त' इत्यादि चौद गाथा बे. तेनो श्रर्थ घणो खरो उपर कडेवार गयो बे, पण तेज हकीकत फरीने पद्यमा संग्रहीत करेली होवाथी तेनो अर्थ पण फरीने लख्यो । ने तेथी पुनरुक्तिनी शंका करवी नहीं.) चौद गाथानो शब्दार्थ नीचे प्रमाणे बे.
गौतम गोत्रवाला फल्यमित्रने, वासिष्ट गोत्रवाला धनगिरिने, कुछ गोत्रवाला शिवनतिने तथा कौशिक गोत्रवाला उर्जय कृष्णने वांई बु. १. तेमने मस्तक वडे वांदीने काश्यप गोत्रवाला है नअने, काश्यप गोत्रवाला नक्षत्रने अने काश्यप गोत्रवाला रहने पण वांउं .. गौतम गोत्रवाला आर्यनागने, वासिष्ट गोत्रवाला जेहिलने, माढर गोत्रवाला विश्नुने अने गौतम गोत्रवाला कालि-15 कने वांउं बु. ३. गौतम गोत्रवाला कुमार संपलितने तथा थार्यनने वांडंडे तेमज गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यवृहने वांउं . ४. तेमने मस्तक वडे वांदीने स्थिर सत्व, चारित्र अने ज्ञानथी है। संपन्न एवा काश्यप गोत्रवाला स्थविर संघपालितने वांउं बु. ५. दमाना सागर, धीर अने जे
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कल्प० उनालानो प्रथम मास एटले फाल्गुन, तेना शुक्लपक्षमां कालगत थया डे एवा काश्यप गोत्रवाला हूँ
आर्यहस्तीने हुँ वांउंबु. ६. शीललब्धियी संपन्न अने जेना दीदामहोत्सवमां देवोए जेमना ॥१५॥
उपर श्रेष्ठ उत्तम बत्र धारण कयुं हतुं एवा सुव्रत गोत्रवाला थार्यधर्मने वांउं. . काश्यप गोत्र-2 वाला श्रार्यहस्तीने तथा मोद साधक आर्यधर्मने वांडं बुं तेमज काश्यप गोत्रवाला आर्यसिंहने । तथा काश्यप गोत्रवाला आर्यधर्मने पण वांई बु. ७. तेमने मस्तक वडे वांदीने स्थिर सत्त्व, चारित्र अने ज्ञानर्थ। संपन्न एवा गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रायजंबूने वाइंबुं. ए. मधुर एवा सरलपणाए (मायाना त्यागे) करीने संपन्न तथा झान, दर्शन अने चारित्रे करीने युक्त एवा काश्यप गोत्र-2 वाला स्थविर नंदितने पण वांउंडं. १०.त्यारपती स्थिर चारित्रवाला अने उत्तम सम्यक्त्व अने सत्त्वथी।
युक्त एवा माढर गोत्रवाला देवर्डिगणि क्षमाश्रमणने वांउं बु. ११. त्यारपली श्रनुयोगना धारक,8 हूँ धीर, मतिना सागर अने महा सत्त्ववंत एवा व गोत्रवाला स्थिरगुप्त दमाश्रमणने वाउं बु. १५. है है त्यारपबी झान, दर्शन श्रने चारित्रने विषे सुस्थित, गुणथी मोटा अने गुणवंत एवा स्थविर कुमारधर्म गणिने वांडं बु. १३. सूत्रार्थरूप रत्नथी नरेला तथा क्षमा, दमे अने मार्दव गुणोए करीने
संपन्न एवा काश्यप गोत्रवाला देवर्षि क्षमाश्रमणने वांई बु. १४. ₹ एवी रीते जगद्गुरु नहारक श्री हीरविजय सूरीश्वरना शिष्यरत्न महोपाध्याय श्री कीर्ति विजय है।
गणिना शिष्योपाध्याय श्री विनयविजय गणिए रचेली श्री कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टीकामां । श्रामुं व्याख्यान समाप्त थयु तेमज स्थविरावली नामे आ बीजो अधिकार पण पूर्ण थयो.श्रीरस्तु.
॥अथ नवमं व्याख्यानं प्रारभ्यते॥ हवे सामाचारीरूप त्रीजी वाचना कहेतां प्रथम पर्युषणा क्यारे करवी ते कहे .
॥१३॥ १ ते कालने विषे थने ते समयने विषे वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद १ "मिनमद्दवसंपन्नं"एनो अर्थ टीकाकारे "मृदुना मधुरेण मार्दवेन मायात्यागेन संपन्नम्"एवो को बे. २इंद्रियोने दमवी ते.
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5954505055555
श्रमण नगवान् श्री महावीरे चोमासामा पर्युषणापर्व कयुं बे. १. हे पूज्य ! ते शा कारणथी एम है कहेवाय बे के वर्षाकालना एक मास थने वीश दिवस गया बाद श्रमण जगवान् श्री महावीरे 3
चोमासामां पर्युषणापर्व कर्यु ले ? ए प्रमाणे शिष्ये प्रश्न कर्ये बते गुरु उत्तर श्रापवाने सूत्र कहे| ने ( उत्तर आपे ले ). जे कारणथी प्राये गृहस्थोनां घर सादमीथी ढांकेला होय बे, चूनाथी धोलेला होय , घास विगेरेथी थानादित करेलां होय , गण श्रादिश्री लीपेला होय जे, वृत्ति (वाम) करवा विगेरेथी गुप्त करेलां होय बे, विषम नूमिने खोदीने सरखां करेलां होय , पाषाणना कटकाथी घसीने कोमल (लीसां) करेलां होय , सुगंधी माटे धूपश्री वासित करेला
य बे, परनालरूप पाणी जवाना मार्गवालां करेलां होय श्रने खालो खोदावी राखेला होय एवी रीते (गृहस्थोए) पोताना माटे घर अचित्त करेला होय ,ते कारण थी हे शिष्य ! एम कहेवाय ने के वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद श्रमण नगवान् श्री महावीरे चोमासामां पर्युष-2 णापर्व कयु जे. २. तेवीज रीते गणधरोए पण वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद चोमा-3 सामां पर्युषणापर्व कर्यु . ३. जेवी रीते गणधरोए वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद पर्युषणापर्व कर्यु तेवी रीते गणधरना शिष्योए एक मास श्रने वीश दिवस गया बाद पर्युषणापर्व कर्यु. ४. जेवी रीते गणधरना शिष्योए वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद पर्युषणा-12 पर्व कर्यु तेवी रीते स्थविरोए पण वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद पर्युषणा-3 पर्व कयु. ५. जेवी रीते स्थविरोए वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद पर्युषणापर्व, कर्यु तेवी राते आर्यपणाए करीने अथवा व्रतस्थ विरपणाए करीने वर्तता एवा जे श्रा ( हम-10 णांना ) श्रमण निग्रंथो विहार करे जे ते पण वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद
१ एक मास ने वीश दिवस पी पर्युषणा करवी एटले त्यां चोमासानो बाकीनो काल स्थिति करवानुं कहेवू, जेथी ते आरंजना निमित्त मुनि न थाय. आ रहस्य के.
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कल्प
लापर्यषणापर्व करे .. ६. जेवी रीते हालना समयमा जे था श्रमण निग्रंथो पण वर्षाकालना एक|| सुबो०
मास अने वीश दिवस गया बाद चोमासामां पर्युषणापर्व करे ने तेवी रीते अमारा पण श्राचार्यों ? ॥१६॥
थने उपाध्यायो पर्युषणापर्व करे जे. ७. जेवी रीते श्रमारा आचार्यों श्रने उपाध्यायो पर्युषणापर्व
करे ने तेवी रीते अमे पण वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद चोमासामा पर्यु-18 झाषणापर्व करीए बीए. तेनी ( जादरवा सुदि ५नी) पहेला पण पर्युषणापर्व करतुं कल्पे , परंतु ते है। (नादरवा सुदि ५ नी) रात्रि अतिक्रमवी ( उलंघवी) कल्पे नहीं . ७.
सर्व प्रकारे अने उषणं-वसनं एटले वसतुं ते पर्युषणा..ते वे प्रका-12 करनी बे. एक गृहि ज्ञाता (गृहस्थोए जाणेली) अने बीजी गृह्यज्ञाता (गृहस्थोए नहीं जाणेली).8 ४तेमां गृह्यज्ञाता ए डे के जेमां वर्षा (चोमासा )ने योग्य पीठे, फलक श्रादि प्राप्त कर्ये बते ४
कल्पमां कहेल इव्य, क्षेत्र, काल अने जावरूप स्थापना करवामां आवे , अने ते आषाढ है पूर्णिमानी अंदर करवामां आवे बे, परंतु योग्य देवना अनावे पांच पांच दिवसनी वृद्धिथी| दश पर्वतिथिना क्रमवडे श्रावण वदि श्रमास सुधीज करवामां थावे . गृहिझाता पण वे प्रकारनी बे. एक सांवत्सरिक कृत्य विशिष्टा एटले सांवत्सरिक कृत्योए करीने युक्त अने
बीजी गृहिज्ञातमात्रा एटले मात्र गृहस्थोए जाणेली. तेमां सांवत्सरिक प्रतिक्रमण, लोच, है अमनो तप, सर्व जिनेश्वरोनी नक्तिपूजा अने संघy अरस्परस खामवं ए सांवत्सरिक है।
कृत्यो ने अने ते कृत्योए करीने युक्त एवी पर्युषणा नादरवा सुदि पंचमीने दिवसेज अने कालिकाचार्यना आदेशश्री चतुर्थीने दिवसे पण करवामां आवे . मात्र गृहस्थोए जाणेली ते 8 ए ले के जे वर्षमां अधिक मास होय ते वर्षमा चोमासाना दिवसथी मामीने वीश दिवसे मुनि
॥२२६॥ 'श्रमे श्रहीं रह्या बीए' एम प्रश्न करनार गृहस्थोनी पागल कहे बे. ते पण जैन टीपणाने अनुसारे ।
* या पर्युषणा वार्षिक पर्वरूप समजवी. १ पाटलो. २ पाट. ३ अहीं कहप शब्दे वृहत् कट्पादि लेवु.
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है, कारण के तेमां युगनी मध्यमां पौष तथा युगनी अंते आषाढ मासनी वृद्धि थाय बे, पण बीजा
को मासनी वृद्धि थती नथी. ते टीपणुं पण हमणां तद्दन जणातुं नथी. तेथी (श्राषाढ पूर्णि-|| माथी ) पचास दिवसेज पर्युषणा करवी युक्त जे एम वृक्ष आचार्यों कहे जे. अहीं कोई कहे || (शंका करे ले ) के श्रावण मासनी वृद्धि होय त्यारे (बीजा) श्रावण सुदि चतुर्थीने दिवसेज है। पर्युपणा करवी युक्त , पण नादरवा सुदि चतुर्थीने दिवसे युक्त नथी, केमके तेथी एंशी दिवस थवाथी 'वासाणं सवीसराए मासे विश्कते' एटले वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस|| गया बाद ए वचनने बाधा आवे . हे देवानप्रिय ! जो तुं तेमज कहेतो हो तो ते तेम नथी. कारण के एवी रीते तो आश्विन मासनी वृद्धिश्रवाश्री चोमासानुं कृत्य (बीजा) आश्विन मासनी शुक्ल चतुर्दशीएज कर जोए, केमके कार्तिक मासनी शुक्ल चतुर्दशीए करवाश्री सो दिवस थाय अने तेथी 'समणे नगवं महावीरे वासाणं सवीसराए मासे विश्कते सित्तरि राइदिएहिं सेसेहिं। एटले 'श्रमण नगवान् श्री महावीरे वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद अने| सिनेर दिवस बाकीरोनते (पर्यषणा करी ममतामांगमा
करी) ए समवायांग सूत्रना वचनने बाधा श्रावे. वली एम पण कहेवू नहीं के 'चोमासां तो आषाढ आदि मासथी प्रतिबक बे, तेथी कार्तिक चोमा-|| सानुं कृत्य कार्तिक मासनी शुक्ल चतुर्दशीएज करवू युक्त ने अने दिवसनी गणत्रीने विषे अधिक !
मास कालचूला तरीके होवाथी तेनी अविवक्षाने लश्ने सित्तेर दिवसोज थाय ने तो समवायांगना ॐ वचनने क्याथी वाधा श्रावे ? ( उत्तर कहे . ) जेम चोमासां थाषाढ श्रादि मासथी प्रति-11 बने तेम पर्युषणा पण नादरवा मासथी प्रतिवद्ध ने तेथी ते नादरवामांज करवी. दिवसनी गणत्रीने विषे अधिक मास कालचूला तरीके ने तेथी तेने गणत्रीमा लेवानो नहीं होवाथी पचा-12 सज दिवसो थाय, तो पनी एंशीनी वात पण क्याथी श्रावे? श्रने पर्यषणा नादरवा मासथी। प्रतिबकने एम कहे, ते पण श्रयुक्त नथी, कारण के ते प्रमाणे घणा श्रागमने विषे प्रतिपादन
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कल्प
करेलुं बे. दाखला तरीके 'अन्यदा पर्युषणानो दिवस श्राव्ये ते थार्यकालक सूरिए शालि
वाहनने कडं के जादरवा सुदि पंचमीए पर्युषणा इत्यादि' पर्युषणाकल्पनी चूर्णिमां . वली ॥१२॥
हूँ शालिवाहन राजा जे श्रावक हतो ते कालक सूरिने श्रावेला सांजलीने सन्मुख जवा नीकल्यो ।
अने श्रमण संघ पण नीकल्यो. महा विनूतिए कालक सूरिए प्रवेश कयों अने प्रवेश करीने कडं के 'नादरवा सुदि पंचमीए पर्युषणा करवी.' श्रमण संघे ते कबूल कयु. त्यारे राजाए कडं के
ते दिवसे लोकानुवृतिए महोत्सव होवाथी पर्युषणा थर शकशे नहीं, तो बहने दिवसे पर्यु६षणा करीए.' आचार्ये कडं के (पंचमी) अतिक्रमवी न जोश्ए.' त्यारे राजाए कह्यु 'बागल
चोथने दिवसे पर्युषणा करीए.' त्यारे श्राचार्ये कां 'ए प्रमाणे हो.' पनी चोथे पर्युषणा करी.
ए प्रमाणे युगप्रधाने कारणे चोथ प्रवर्तावी, थने ते सर्व साधुने मान्य ने. इत्यादि निशीथ चूर्णिना 31 ४ दशमा उद्देशामां कडं . एवी रीते ज्यां को जगोए पण पर्युषणानुं निरूपण श्रावे त्यांनाउपद
संबंधीज जाणवं, परंतु कोश पण आगमने विषे 'जद्दवयसुझपंचमीए पड़ोसविजापत्ति' एटले. नादरवा सुदि पंचमीए पर्युषणा करवी ए पानी माफक 'अनिवम्ब्यिवरिसे सावणसुझपंचमीएर पडोस विकात्ति' एटले अनिवर्डित वर्षमां श्रावण सुदि पंचमीए पर्युषणा करवी एवो पाठ उपलब्ध थतो नथी. तेथी कार्तिक मासथी प्रतिबक चतुर्मासक कृत्य करवामां जेम थधिक मास प्रमाण नथी तेम नादरवा मासथी प्रतिबक पर्युषणा करवामां अधिक मास प्रमाण नथी, माटे कदाग्रहने बोमी दे. वली अधिक मास शुं कागमो नदण करी गयो ? अथवा शुं ते मासमां पाप लागतुं नथी के नूख लागती नथी ? इत्यादि उपहास्य करीने तारं पोतानुं घेलापणुं प्रकट न कर, कारण के तुं पण अधिक मास होते ते एटले तेर मास ते सांवत्सरिक खामणामां 'बार- ॥९२७॥ सएहं मासाणं' इत्यादि बोलतां अधिक मासनो अंगीकार करतो नथी. ए प्रमाणे चतुर्मासिक खामणामां अधिक मास होय तोपण 'चनएहं मासाणं' इत्यादि अने पाक्षिक खामणामां अधिक
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तिथि होय तोपण 'पन्नरसएहं दिवसाणं' ए प्रमाणे तुं बोले . तेवीज रीते नव कल्प विहार
आदि लोकोत्तर कार्यने विषेपण बोलाय . (दश कक्ष्प कहेवाता नथी.) वली 'श्रासाढे मासे उपया' । इत्यादि, सूर्यचारने विषे पण तेमज कहेवाय ले. लोकमां पण दीवाली, अक्षयतृतीया श्रादि पर्वने विषे 81
तेमज व्याज गणवा श्रादिने विषे अधिक मास गणातो नथी, ते पण तुं जाणे . वली सर्वे शुन है कार्यो अधिक मास नपुंसक ने तेथी तेमां न करवां एम कहीने ज्योतिःशास्त्रमा तेनो निषेध करेलो है।
. वली बीजो मास अधिक होय तेनी वात तो वाजु पर रहो, पण जो जादरवो मास अधिक होय । तोपण पहेलो नादरवो अप्रमाणज डे ( एटले वीजा जाउपदमां संवत्सरीपर्व करवामां आवे | ६). जेम चतुर्दशी अधिक होय तो पहेली चतुर्दशीने लेखामां नहीं गणीने बीजी चतुर्दशीए
पाक्षिक कृत्य करवामां आवे ने तेम शाही पण जाणवू. वली जो एम होय तो 'श्रप्रमाण (यधि-है क) मासमां देवपूजा, मुनिदान थने आवश्यक आदि कार्य पण न करवां जोए' एम कहे-12 वाने तारा अधरोष्ठने चपल न कर; कारण के दिनप्रतिबद्ध देवपूजा, मुनिदान विगेरे कृत्य || ते तो हमेशा करवांज जोइए श्रने जे सन्ध्या आदि समयप्रतिबक श्रावश्यक आदि कृत्य जे ते पण 81 दरेक संध्यासमय पामीने करवांज जोश्ए थने नाउपद आदि मासश्री प्रतिबक जे कृत्यो ते बेहूँ नाउपद होय तो कया नाउपदमां करवां ? तेना विचारमा प्रथम नाउपदने अवगणीने (नहीं । गणीने) बीजा नामपदमां ते करवां एम सम्यक् प्रकारे विचार कर. वली जो, अचेत एवी। वनस्पति पण अधिक मास अंगीकार करती नथी, जेथी अधिक मासने त्यजीने बीजा मासमां पुष्पित थाय बे. जे माटे आवश्यक नियुक्तिमां कडं ले के-जइ फुटखा कणियारा, चूअगणा अहिमासयंमि घुमि । तुह न खमं फुल्लेलं, जश् पञ्चंता करिति ममराई ॥१॥ नावार्थ-हे आम्र वृक्ष!
१ व्याज, जाउँ, पगार विगेरेमां हिंऽ मासनी गणत्रीए हालमां अधिक मासर्नु वधारे सेवा देवामां आवे ने ते नवीन प्रवृत्ति के तेश्रीज तेवो करार खखवो पके वे.
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कल्प०
॥१२॥
अधिक मासनी उद्घोषणा थये ते कदि कणेरनां फूल तो फूले पण तने फूल घटे नहीं, केमके तेथी तुछ जातिनां वृक्षो तारी हांसी करशे. वली को 'अविडियंमि वीसा इारेसु सर्वीस - मासे' ए वचनबल वडे मास अधिक होय त्यारे वीश दिवसेज लोच श्रादि कृत्य युक्त पर्युषणा करे वे ते पण प्रयुक्त बे, कारण के 'विअंमि वीसा' ए वचन गृहिज्ञात ( पर्युषणा ) मात्रनी अपेक्षाए वे अन्यथा 'प्रासादमासिए पोसविंति एस उस्सग्गो, सेसकालं पतोसविताणं श्रववाउत्ति' एटले आषाढ मासमां पर्युषणा करवी ए उत्सर्ग वे छाने वाकीना कालमां पर्युषणा करवी ए अपवाद ठे. एवा श्री निशीथ चूर्णिना दशमा उद्देशाना वचनथी आषाढ पूर्णिमाएज लोच श्रादि कृत्य युक्त पर्युषणा करवी जोइए. (पण ते चतुर्मास रहेवानी अपेक्षानुं वचन बे, कृत्यविशिष्ट पर्युषणा करवा माटे नथी तेथीज तेम करवामां श्रावतुं नथी. ) या संबंधम वधारे कहेवाथी सर्यु.
कल्पनेविषे कली द्रव्य, क्षेत्र, काल ने जावरूप स्थापना था प्रमाणे बे. द्रव्य स्थापनातृण, मंगल, बार, मल्लर्क श्रादिनो परिजोग करवो ने सचित्त श्रादिनो त्याग करवो. तेमां | सचित्त द्रव्य एटले अति श्रद्धावाला राजा घने राजाना प्रधान सिवाय शिष्यने दीक्षा श्रपवी नहीं, चित्त द्रव्य एटले वस्त्र आदि ग्रहण करवां नहीं घने मिश्र द्रव्य एटले उपधि सहित | शिष्य ग्रहण करवो नहीं देत्रस्थापना - एक योजन ने एक गाउ ( पांच गाउ जनुं व्याववुं कल्पे ) छाने ग्लानने माटे वैद्य, औषध यादिना कारणे चार अथवा पांच योजन कल्पे. कालस्थापनाचार मास रहेवुं ते अने जावस्थापना - क्रोध श्रादिनो विवेक ( त्याग ) ने ईर्यासमिति आदिने विषे उपयोग. ८.
२ चोमासुं रहेला साधु अथवा साध्वीउने चारे दिशा ने विदिशामां एक योजन ने एक गाउनो ( एटले पांच गाउनो ) अवग्रह कल्पे. अवग्रह करीने 'अदालन्दमिव' कथं वे तेमां अथ १ कुंकी विगेरे. २ राजा के प्रधान दीक्षा लेवा ले तो तेने यापवी.
सुबो
॥१२॥
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NCRACACCORDCRACA-HAR
ऐए अव्यय अने लन्द शब्द वमे काल जाणवो. तेमां जेटला वखतमां नीनो हाथ सुकाइ जाय |
तेटला कालने जघन्य लन्द कहे बे, पांच अहोरात्रिने उत्कृष्ट लन्द कहे जे; अने तेनी बच्चेना है। कालने मध्यम लन्द कहे . लन्द काल सुधी पण एटले तेटलो वखत पण अवग्रहने विषे रहेवू 0
करपे, पण अवग्रहश्री बहार रहे, कल्पे नहीं. अपि शब्दथी श्रलन्दमपि एटले बहु काल सुधी है मास एक साथे अवग्रहमां रहे, कल्पे, पण अवग्रहनी बहार रहेवू करपे नहीं. गजेन्पद !
श्रादि पर्वतनी मेखलानां ग्रामोने विषे रहेला साधु साध्वीने उपाश्रयथी नए दिशामां (जवानो)
श्रढी कोश अने जवा आववानो पांच कोशनो अवग्रह होय दे. अहीं “विदिशामां” एम कहेढुं| ६ ते व्यावहारिक विदिशानी अपेक्षाए , कारण के नैश्चयिक विदिशाउनु एक प्रदेशपणुं होवाथी 3 त्यां जवानो असंभव . अटवी ( जंगल ), जल आदिथी व्याघात थये ते त्रण दिशानो, बे दिशानो अथवा एक दिशानो अवग्रह नाववो ( समजवो ). ए. | ३ चोमासं रडेला साध अथवा साध्वीजने चारे दिशा अने विदिशामां एक योजन थने एक गाउ निदाचर्याए जवू श्रावq कल्पे. १७. ज्यां नदी नित्य पुष्कल पाणीवाली होय अने नित्य वहेती होय त्यां सर्व दिशा अने विदिशामा एक योजन अने एक गाउ निदाचर्याए जq श्राव कल्पे नहीं. ११. कुणाला नामनी नगरीने विषे ऐरावती नामनी नदी हमेशां बे गाउ वहेती , तेवी नदी थोड़ें (चंडं) पाणी होवाथी उलंघवी कल्पे डे के ज्यां था प्रमाणे करी शकाय. केवी है। रीते करी शकाय ? ते कहे -एक पगजलमां राखीने श्रने बीजो पग स्थल उपर राखीने एटले २ पाणीथी उपर अधर राखीने-आवी रीते जो जइ शकाय तो चारे दिशा अने विदिशामां एक 5 योजन अने एक गाउ (निदा निमित्ते ) जर्बु श्राव, कल्पे. १५. ज्यां पूर्वोक्त रीति प्रमाणे न जश् शकाय त्यां साधुने चारे दिशा अने विदिशामां तेटवू जर्बु श्रावq कल्पे नहीं श्रने ज्यां ए|
१ तेटला पहोला प्रवाहवाली वे.
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कहप०
प्रमाणे न करी शकाय श्रने पाणी विलोमीने ज पमे त्यां जq कल्पे नहीं. जंघार्ध सुधी पाणी
होय ते दकसंघट्ट कहेवाय, नानि सुधी पाणी होय ते लेप कहेवाय अने नानिथी उपर होय तो ॥श्या
लेपोपरि कहेवाय. त्यां शेष कालमा त्रण वार दकसंघट्ट थये ते देत्र हणाय नहीं एटले त्यां है जवं कल्पे ए नाव जाणवो. वर्षाकालमा सात वार दकसंघट्ट थाय तोपण क्षेत्र हणाय नहीं. शेष । है कालमा चोथो अने वर्षाकालमा आठमो दकसंघट्ट थये ते क्षेत्र हणाय . लेप तो एक पण होय 8
तो देत्रने हणे ने तेथी नानि सुधी जल होय तो जq कल्पे नहीं तो पड़ी लेपोपरि एटले हूँ नाजिनी उपर जल होय तो तेनी तो वातज शी करवी ? १३. | ४ चोमासु रहेला को साधुने गुरुए आ प्रमाणे प्रथमथी कही राखेनुं होय के 'हे शिष्य ! हूँ ग्लान साधुने अमुक वस्तु लावी श्रापजे.' त्यारे ते साधुने (ते वस्तु) लावी श्रापवी कल्पे, पण तेने 3 है पोताने ते वापरवी करपे नहीं. १४. चोमासुंरहेला कोई साधुने गुरुए था प्रमाणे प्रथमथी कहेलु होय 8
के 'हे शिष्य ! (अमुक वस्तु) तुं पोते लेजे',त्यारे तेने लेवी कल्पे, पण तेने (बीजाने) आपवी कल्पे नहीं है अर्थात् एम कहे होय के 'तुं पोतेज लेजे, ग्लानने बीजो श्रापशे'. त्यारे तेने पोताने खेवं कल्पे, पण ?
आपq कल्पे नहीं. १५. चोमासुंरहेला कोश् साधुने गुरुए प्रथमथी कही राखेझुं होय के 'हे शिष्य ! है तुं लावी आपजे अने तुं पोते पण लेजे.' त्यारे तेने लावी श्राप, पण करपे अने लेवू पण कल्पे.
अर्थात् तुं श्रापजे अने लेजे एम कही राखेनुं होय तो आपq अने लेवु ए बने पण कल्पे . १६.४ को ५ चोमासुं रहेला (अमुक) साधु अने साध्वीउने ( विगय देवी ) कल्पे नहीं. ते साधु है 18 साध्वी केवा ? तो के हृष्ट एटले तरुण श्रवस्थाने लीधे समर्थ, ( तरुण पण केटलाक रोगी|
अने निर्बल शरीरवाला होय जे तेथी कडं डे के ) आरोग्य अने बलवंत शरीरवाला साधु-5॥१२ए। उने था हवे पनी कहेवामां श्रावशे एवी नव रसे करीने प्रधान विकृति ( विग ) वारंवार खावी कल्पे नहीं. ते विकृति या प्रमाणे जाणवी-दुध, दहीं २, माखण ३, घी,
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, गोल ६, मध , मद्य श्रने मांस ए. अजीक्ष्णना ग्रहण करवायी कारणे कल्पे वे एम समजवं अने नवना ग्रहण करवाथी को दिवस पक्वान्ने पण ग्रहण कराय बे. तेमा विकृति सांचयिका अने श्रसांचयिका ए बे प्रकारनी . तेमां उध, दही, पकवान्न ए नामनी बहु काल|| सुधी राखी शकाय नहीं ते असांचयिका जाणवी. रोगना कारणे, गुरु, बाल थादिने उपग्रह करवाने अर्थे अथवा श्रावकना निमंत्रणथी ते लेवी. घी, तेल थने गोल ए नामनी त्रण विकृति सांचयिका जाणवी. ते त्रण विकृति प्रतिलाजता गृहस्थीने कहे, के 'हजु घणो वखत रहेवारों ने
तेथी अमे ग्लान थादिने माटे लश्शु.' त्यारे ते गृहस्थी कहे के 'चोमासा सुधी लेजो, ते घणी जे.' दैत्यारे ते सेवी अने वाल श्रादिने देवी, पण तरुणने आपवी नहीं. जो के मध, मांस श्रने माखणनो
(मुनिने ) जावजीव सुधी त्याग होय ने तोपण अत्यंत अपवाददशामां बाह्य परिजोग विगेरेने । माटे कोई दिवस ग्रहण करवी, पण चोमासामां तो सर्वथा निषेध ने. १७. । ६ चोमासु रहेला साधुने विषे वैयावच्च करनारा मुनिए गुरुने प्रथमथी एम कही राखेचु होय 3 के 'हे नगवन् ! ग्लानने माटे कांश वस्तुनो खप ?' ए प्रमाणे वैयावच्च करनार को मुनिए ।
व्ये बते ते गुरु कहे के 'ग्लानने वस्तु जोए बीए ? जोश्ती होय तो ग्लानने पूडो के उध विगेरे है। केटली विगयनो तमने खप ?' ते ग्लाने पोताने जोश्ता प्रमाणमां को बते ते वैयावच्च करनारे । गुरुनी पासे श्रावीने कदेवू के 'ग्लानने आटली वस्तुनो खप जे.' त्यारे गुरु कहे के 'जेटबुं प्रमाण 3
ते ग्लान कहे जे तेटला प्रमाणमा ते विगय तारे लेवी.' पड़ी ते वैयावच्च करनार गृहस्थ पासे मागे टूथने मागणी करतां वैयावच्च करनार उध विगेरे ते वस्तु प्राप्त थाय तो पनी ग्लाने कह्या प्रमाण है।
जेटली मले एटले राखो,थयु' एम गृहस्थने कहे. गृहस्थ एम कहे के 'हे जगवन् ! 'थयु' एम केम कहो बो?' त्यारे साधु कहे के 'ग्लानने एटलोज खप.' था प्रमाणे कहेता साधुने कदाच गृहस्थ कहे के
१ए नवश्री जूदी विगय .
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कल्प
| पुरोग
॥१३॥
हे आर्य साधु ! तमे ग्रहण करो. ग्लाने नोजन कर्या बाद पक्वान्न श्रादिक जे काश्वधे ते तमे खाजो,
उध श्रादिक पीजो.' क्वचित् पाहिसित्तिने बदले दाहिसित्ति जोवामां श्रावे . त्यारे एम अर्य ६ करवो के 'ग्लाने लोजन कर्या बाद जे कांश वधे ते तमे खाजो श्रने बीजाने श्रापजो.
एम तेणे ( गृहस्थे ) को उते अधिक खेवू कटपे; पण खाननी निश्राए गृद्धि यी पोताने माटे लेवू कल्पे नहीं. ग्लानने माटे मागी आणेल थाहारादि मंत्रीमा आण नहीं. १७. की चोमासु रहेला साधुग्ने ते प्रकारनां अनिंदनीय घरो जेवां के तेर श्रया बीजार
श्रावक करेला होय, प्रत्ययवंत अथवा प्रीति उपजावनारां होय, अपवादानने विषे स्थिरतावाला | होय, निश्चे श्रहीं मने मलशे एवो ज्यां विश्वास होय, ज्यां सर्व यतिनो प्रवेश संमत होय, जेने है घणा साधु संमत (इष्ट ) होय अथवा ज्यां घरनां घणां मनुष्योने साधु संमत होय तया ज्या
दाननी आज्ञा द राखी होय अथवा सर्व साधु सरखा बे एम धारीने ज्यां लघु शिष्य पण इष्ट होय, परंतु मुख जोइने टीझुं करातुं न होय तेवां घरने विषे जोती वस्तु अगदी या प्रमाणे कहेवं कल्पे नहीं के 'हे आयुष्मन् ! आ वस्तु ?' एम नहीं जोयेली वस्तुने माटे पूg कहपे नहीं ए अर्थ जाणवो. 'हे जगवन् ! ते शामाटे ?” ए प्रमाणे शिष्ये प्रश्न करवायी गुरू कहे के ना-13 वान् गृहस्थ मूख्य वडे लावे अने जो मूख्य वडे न मले तो घणी श्रमाने लीधे चोरी पण करे.' कृपणना घेर वस्तु अणदीवे पण मागवामां दोष नथी. १ए. . चोमासु रहेला हमेशां एकासणुं करनार साधुने सूत्र पौरुषी कीधा पछी एक वार गोची
जवाना काले गृहस्थy घर कल्पे वे एटले जात अने पाणीने अर्थे गृहस्थना घरमांधीनीक है श्रने प्रवेश करवो कल्पे बे, पण बीजी वार कल्पे नहीं. अन्यत्र कहेतां श्राचार्य श्रादिनी वैधा
वृत्त्य करनाराउँने वर्जीने ए श्रर्थ बे; ते जो एक वार जोजन करवा वडे वैयावृत्त्य करी न शके तो बे वार पण जोजन करे, कारण के तपश्री वैयावृत्त्य श्रेष्ठ बे. श्राचार्य नी वैयावृत्य करनारा, जपा
Recorrowesorrowwws
॥१३॥
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SRICKSHA
ध्यायनी वैयावृत्त्य करनारा, तपस्वीनी वैयावृत्त्य करनारा तेमज ग्लाननी वैयावृत्य करनारा साध ₹उने वर्जीने बीजा साधु एक वार जोजन करे. ज्यांसुधी व्यंजन कहेतां मूढ, दाढी, बगल श्रादिना
वाल न श्राव्या होय त्यांसुधी शिष्य अने शिष्याने पण बे वखत जोजन करवामां दोष नथी.
अथवा जे वैयावृत्य करनार होय ते वैयावृत्त्यकर जाणवो. (तेने पण बे वार कल्ये वे.) श्राचाॐार्यश्च वैयावृत्त्यश्च आचार्यवैयावृत्त्यौ. एवी रीते उपाध्याय श्रादिने विषे पण जाणवू. ते यी श्राचार्य,
उपाध्याय, तपस्वी, ग्लान अने लघु शिष्यनी वैयावृत्य करनाराने वे वखत जोजन करवामां पण|
दोष नथी ए अर्थ समजवो. २०. है। चोमासु रहेला एकांतरे उपवास करनार साधुने था हवे पढी कही\ एटवें विशेष ले. ते
सवारमा गोचरी जवा माटे ( उपाश्रयथी ) नीकलीने पहेलांज शुद्ध प्रासुक आहार (आणी) खाश्ने, बाश आदिक पीश्ने, पातरांने निर्लेप करीने-वस्त्रथी लुही नाखीने अने प्रमार्जीने-धोर नाखीने ते जो चलावी शके तो तेटलाज जोजन वमे ते दिवसे रहे कल्पे बे. जो ते साधु | थाहार थोमो थवाथी न चलावी शके तो तेने बीजी वार गृहस्थ ने घेर जात पाणीने माटे नीक-13 ल अने पेस, कल्पे बे. २१. चोमासु रहेला नित्य कह करनार साधुने गृहस्थने घेर जात पाणीने ||
अर्थे नीकलवा अने पेसवाने बे गोचरीना काल कल्पे डे एटले बे वखत गोचरीए जq कल्पे .* १२. चोमासु रहेला नित्य अहम करनार साधुने गृहस्थने घेर जात पाणीने अर्थ नीकल वा अने है।
पेसवाने त्रण गोचरीना काल कल्पे ने एटले त्रण वार गोचरीए जq कल्पे . २३. चोमासुं रहे ला 2
नित्य अहम उपरांत तप करनार साधुने गृहस्थने घेर जात पाणीने अर्थे नीकलवा श्रने पेसवाने 28 सर्वे गोचरीना काल कल्पे ने एटले चार, पांच विगेरे वखत गोचरीए जq कहपे जे. ज्यारे श्छा 3
थाय त्यारे गोचरी लावे, पण सवारमा लावेली राखी शके नहीं, कारण के तेयी संयम, जीव
R
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कल्प०
॥१३१॥
संसक्ति, सर्पाघ्राण यदि दोषोनो संभव थाय बे. २४. ए प्रमाणे श्राहारविधि कदीने दवे पीवाना पदार्थोंनी विधि कहे बे.
चोमासुं रहेला नित्य एकास करनार साधुने सर्व प्रकारनां पाणी कल्पे बे. ते सर्व एटले आचारांगमां कहेलां एकवीश प्रकाशनां श्रथवा यहीं जे कहेवामां आवशे ते नव प्रकारनां पाणी | समजवां. तेमां श्राचारांगमां कहेलां पाणी या प्रमाणे बे- उत्स्वे दिम १, संस्वेदिम २, तंमुलोदक ३, तुषोदक ४, तिलोदक ए, जवोदक ६, व्यायाम उ, सोवीर छ, शुद्धविकट ए, अंबय १०, अंबामक ११, कवि ( कपिथ्य ) १२, मजलिंग ( मातुलिंग ) १३, दरक ( द्राक्ष १४, दामिम १५, खर १६, नालिकेर १७, कयर १०, बोरजल १०, आमलग २० श्रने चिंचानां पाणी २१ प्रथम अंग ( श्राचारांग ) ने विषे कलां बे. तेमांथी प्रथमनां नव तो यहीं पण कहेलां बे. चोमासुं रहेला एकांतरे उपवास करनार साधुने त्रण प्रकारनां पाणी लेवां कल्पे ते या प्रमाणे - उत्स्वे| दिम एटले घाटा विगेरेथी खरमायेला हाथ थादिना धोनुं पाणी १, संस्वेदिम एटले पांदगां यदि उकालीने टंका पाणी वमे जे पाणी सिंचन कराय ते २ श्रने चोखाना धोनुं पाणी ३. | चोमासुं रहेला नित्य बघ करनार साधुने त्रण प्रकारनां पाणी लेवां कल्पे ते या प्रमाणे- तलना धोनुं पाणी १, व्रीहि (मांगर ) यदि तुषना धोणनुं पाणी २ अने जवना धोनुं पाणी ३. चोमासुं रहेला नित्य श्रम करनार साधुने त्रण प्रकारनां पाणी लेवां कल्पे ते या प्रमाणेश्रायामक एटले सामण १, सोवीर एटले कांजीनुं पाणी २खने शुद्धविकट एटले जनुं पाणी ३. चोमासुं रहेला अहम उपरांत तप करनार साधुने एक उनुं पाणी लेवुंज कल्पे बे. ते पण सिक्थुं । रहित होय तो कल्पे, पण सिक्यु सहित दोय तो न कल्पे. चोमासुं रहेला अनशन करनार | साधुने एक जनुं पाणी लेवुं कल्पे बे, ते पण सिक्यु रहित पण सिक्यु सहित नहीं, ते पण गलेलुं १ सर्प संधी जाय तेथी तेनुं विष संक्रमे. २ कोइ पण प्रकारनो दाणो.
सुबो
॥१३१॥
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कल्पे पण तृण यदि लागवाथी अणगल न कल्पे, ते पण परिमित कल्पे पण अपरिमित नहीं, ते पण कांइक थोऊं लेवुं, पण बहु थोडं लेवुं नहीं, केमके तेथी तृष्णा उपशम पामती नथी. २५.
१० चोमासुं रहेला दत्तिनी संख्या ( श्रनिग्रह ) करनारा साधुने जोजननी पांच दत्ति अने पाणीनी पांच दत्ति, अथवा जोजननी चार दत्ति अने पाणीनी पांच दत्ति, अथवा जोजननी पांच दत्ति अने पाणीनी चार दत्ति लेवी कल्पे बे. त्यां थोकुं अथवा घणुं जे एक | वार आपवामां आवे वे ते दत्ति कदेवाय ते. तेमां लवणास्वादने प्रमाणमां पण जोजन आदि ग्रहण करतां एक दत्ति थाय, कारण के लवण थोडुं आपवामां आवे बे अने तेटलाज प्रमाणमां जात पाणी जो ते ग्रहण करे तो ते पण दत्ति गणाय बे. पांच ए उपलक्षण बे तेथी चार, त्रण, बे, एक, व अथवा सात-जेटलो अनिग्रह कर्यो होय ते प्रमाणे कहेवी. श्राखा सूत्रनो था जाव ठे के जेटली दत्ति जात पाणीनी राखेली होय तेटलीज तेने कल्पे बे, पण परस्पर समावेश करवो कल्पे नहीं तेमज दत्तिथी वधारे लेतुं पण कल्पे नहीं. ते दिवसे तेटलाज जोजन वमे रहेवानुं तेने कल्पे बे, पण गृहस्थना घेर जात पाणीने अर्थे बीजी वार जतुं ने पेस कल्पे नहीं. २६.
११ चोमासुं रहेला साधु साध्वीउने था ( दवे कदेशे ते ) जग्याए निक्षा माटे जनुं कल्पे नहीं. एटले एक शय्यातरगृह कहेतां उपाश्रयना मालेकनुं घर अने बीजां व घर तजवां जोइए, कारण के तेर्ज नजीक होवाथी साधुना गुणानुरागी थवा वके उद्गमादि दोषनो संजव रहे. कोने जवुं न कल्पे ? निषिद्ध घरथी पाठा फरनारा साधुने न कल्पे. एटले निषिऊ करेलां घरथी तेर्जने बीजी जगाए जनुं कल्पे ए जाव बे. यहीं जिक्षाने माटे जवामां बहुवचनने बदले एकवचन वापरेल बे, पण बहुपणुं श्र प्रमाणे देखाने बे. सात घरमां माणसोथी जरपूर जमणवार | एटले संखमी होय त्यारे जनुं कल्पे नहीं. यहीं अर्थमां सूत्रकारना जूदा जूदा मतो बे. एक वली १ लूनी चपटी जेटलुं.
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कल्प०
॥१३२॥
या प्रमाणे कहे बे. निषिद्ध करेलां घरथी बीजे जता साधुर्जने जमणवारमां उपाश्रयथी श्ररंजीने सात घरने विषे निक्षाने माटे जतुं कल्पे नहीं. एक वली या प्रमाणे कड़े बे के निषिद्ध करेलां घरथी बीजे जता साधुर्जने जमणवारमां उपाश्रयथी आरंजीने आगलना सात घरने विषे | निक्षाने माटे जतुं कल्पे नहीं. यहीं बीजा मतमां उपाश्रय ( शय्यातरगृह ) ने बीजां सात घर तजवां ए जाव बे, घने त्रीजा मतमां ( शय्यातरगृह ) उपाश्रय, त्यार पढीनुं एक घर अने यागल सात घर तजवां ए जाव वे. २७.
१२ चोमासुं रहेला पाणिपात्री ( हाथज के पात्र जेने एवा ) जिनकरूपी यदि साधुने स धुंवरी एवी पण वृष्टिकाय ( अकाय ) पकते बते गृहस्थना घेर जात पाणी माटे नीकलवुं पेसवुं कल्पे नहीं. २०. चोमासुं रहेला करपात्री जिनकल्पी यदि साधुने अनाच्छादित जग्याए निका ग्रहण करीने आहार करवो कल्पे नहीं. अनाच्छादित स्थाने तेने आहार करतां जो अकस्मात् वर्षाद पने तो निक्षानो थोको जाग खाइने अने थोमो जाग हाथमां लइने तेने ( श्राहारना थोमा जागवाला हाथने ) बीजा हाथ वडे ढांकीने हृदयनी आगल ढांकी राखे अथवा कांखमां ढांकी राखेने ए प्रमाणे करीने गृहस्थोए पोताने निमित्ते श्रादित करेलां घर प्रत्ये जाय अथवा जामनां मूल प्रत्ये जाय के जेवी रीते त्यां ते साधुना हाथ उपर पाणी, पाणीनां मोटां बिंदु अथवा नानां बिंदु विराधना करे नहीं एटले पके नहीं. जो के जिनकल्पी यदि देशोन दश पूर्वधर होवाथी प्रथमथीज वर्षादनो उपयोग थाय बे ( वर्षाद यशे के नहीं ते जाणे बे ) अने तेथी धुं खाधा बाद जवुं पके ए संजवतुं नथी तोपण ब्रद्मस्थपणाने लइने कदाचित् धनुपयोग पण थाय २५. कहेला अर्थनेज जणावतां कहे बे के चोमासुं रहेला पाणिपात्री साधुने कांइ पण पाणीना बांटा तेना उपर पके तो ते जिनकल्पी या दिने गृहस्थने घेर जात पाणीने माटे नीकल वुं | पेसवुं कल्पे नहीं. ३०. पाणिपात्रीनी विधि ए प्रमाणे कही. हवे पात्र राखनारा साधुनी विधि कहे बे.
सुबो०
॥१३२॥
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HARRASTASISHAHAHOROSHIRIS*XX364063-
| १३ चोमासु रहेला पात्रधारी स्थविरकरूपी आदि साधुने अविविन्न धारा वडे वरसाद पमतो | होय त्यारे अथवा जेमा वर्षाकल्प एटले वर्षाकालमां 5ढवावें कपडं अथवा (गपरानुं ) नेवें पाणीथी टपकवा मांझे अथवा कल्प (कपमा)ने नेदीने अंदरना नागमां (पाणी) शरीरने नीजावे त्यारे गृहस्थने घेर जात पाणीने माटे नीकलq पेसQ न कल्पे. थही अपवाद कहे के ते स्थ-13 विरकल्पी श्रादिने आंतरे श्रांतरे थोडी वृष्टि थती होय त्यारे श्रथवा अंदर सुतरनुं कपडं अने ! उपर जननं कपलं ए बेथी वेष्टित थयेल स्थविरकल्पीने थोमी वृष्टिमां गृहस्थने घेर जात पाणी माटे नीकल पेसवु कल्पे. त्यां पण अपवादमा तपखी अने नूख सहन नहीं करी शके एवा साधुन । निक्षाने माटे दरेक आगली वस्तुना अनावे उनना, उंटना वालना, घासना अथवा सुतरना
कपमा वझे तेमज तालपत्र अथवा पलाशना बत्र वमे वेष्टित थश्ने पण श्राहार लेवा जाय. ३१. 3 र चोमासु रहेल साधु साध्वीने गृहस्थने घेर निदालाननी प्रतिज्ञाथी एटले अहीं मने मलशे एवी
बुद्धिथी गोचरीए गयेल साधुने रही रहीने वरसाद पमे तो ते साधुने श्रारामनी नीचे ( बगीचादिमां), सांजोगिक एटले आपणा अगर बीजाना उपाश्रयनी नीचे, तेने बजावे विकटगृह एटले मंगप के ज्यां गाममानी पर्षदा बेसे ले तेनी नीचे अथवा कामना मूल अथवा निर्जल केरमा15 श्रादिना मूलनी नीचे जq कल्पे . ३२. तेमां विकटगृह, वृक्षमूल श्रादिने विषे रहेला ते साधुने 8
तेना श्राववा पहेलां रांधवा मांमेल जात विगेरे अने पाउलथी रांधवा मांमेल मसरनी दाल, श्रमहै दनी दाल अथवा तेलवाली दाल होय त्यारे तेने जात विगेरे ले, कल्पे, पण मसूर आदि दाल है
लेवी कल्पे नहीं. तेनो श्रा अर्थ डे के साधुना श्राववा पहेलांज पोताना माटे गृहस्थोए जे रांधवा मांमेल होय ते तेने कल्पे , कारण के तेथी दोष लागतो नथी अने साधुना श्राववा पठी जे रांधवा 5 मांड्यु होय ते पश्चादायुक्त थाय ने अने तेथी उद्गमादि दोषनो संजव ने तेथी ते लेवं कल्पे टू
१ कामली विगेरे.
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कल्प
॥१३३॥
SANSANSANSARSONAGACAKACOM
नहीं. ए प्रमाणे वाकीनी बने हकीकत जाणवी. ३३. तेना घेर ते साधुना श्राववा पहेलां मसूर हूँ। आदि दाल प्रथम रांधवा मांझी होय अने तंमुल आदि पालथी रांधवा मांमेल होय तो तेने मसूर श्रादि दाल लेवी कल्पे, पण तंमुल आदि लेईं कल्पे नहीं.३४. तेने घेर ते साधुना श्राववा 2 पहेला जो बंने वस्तु रांधवा मांमेल होय तो बने लेवी कल्पे अने तेना श्राववा पनी जो बने ।
वस्तु रांधवा मांमी होय तो बंने वस्तु लेवी कल्पे नहीं. जे चीज तेना आववा पहेलां रांधवा है मामी होय ते तेने लेवी कल्पे श्रने जे चीज तेना आववा पळी रांधवा मांमी होय ते लेवी कल्पे है
नहीं. ३५. चोमासु रहेल साधु साध्वी गृहस्थने घेर निदा सेवा दाखल थयेल होय तेने जो रही है
रहीने वरसाद पमे तो श्रारामनी नीचे यावत् कामना मूले जर्बु कल्पे , पण पहेलां ग्रहण करेल ६ जात पाणी सहित नोजनवेला अतिक्रमवी कल्पे नहीं. त्यारे जो वरसाद बंध न रहे तो श्राराम 8
थादिने विषे रहेल साधुने शुं करवू ? ते कहे जे.प्रथम उद्गम आदिथी शुरू थाहार खाइने, पीने, है पात्र निर्लेप करीने श्रने धोश्नाखीने एक बाजुए पात्रादि उपकरणने राखीने (शरीरनी साथे वीटा
लीने ) वर्षता वरसादमां सूर्य अस्त थयां पहेला ज्यां उपाश्रय होय त्यां जq कल्पे डे, पण गृहस्थने घेरज ते रात्री अतिक्रमवी (रहेवी ) तेने कल्पे नहीं, कारण के एकला बहार वसता
साधुने 'स्वपरसमुत्था' एटले पोता थकी अने पर थकी उत्पन्न थता घणा दोषोनो संजव ने तेमज है उपाश्रयमा रहेला साधु पण अधृति ( चिंता) करे (ते पण कारण डे ). ३६. चोमासु रहेला, साधु साध्वी गृहस्थने घेर निदा लेवा दाखल थयेल होय तेने जो रही रहीने वरसाद पडे तो । आरामनी नीचे यावत् कामना मूले जवू करपे . ३७. दवे रही रहीने वरसाद पडतो होय तो है जो श्राराम आदिने विषे साधु उन्ना रहे तो ते कश विधिए (उना रहे ) ते कहे . विकटगृह, ॥१३३॥ वृक्षमूल आदिने विषे रहेल साधु होय तेने अने एक साध्वीने साथे रहेतुं कल्पे नहीं, एक साधु अने र बे साध्वीउने साथे रहे कल्पे नहीं, बे साधु अने एक साध्वीने साये रहेवं कल्पे नहीं, बे साधु है।
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ने बे साध्वी ने साथे रहे कल्पे नहीं; जो त्यां कोई पांचमो कुल्लक (नानो चेलो) अथवा चेली होय अथवा ते स्थान बीजानो दृष्टिविषय होय एटले बीजा जोर शके तेम होय अथवा बहु छार सहित ते स्थान होय तो साथे रहे कल्पे. तेनो जावार्थ था प्रमाणे बे-एक साधुने एक साध्वी साथे रहे कल्पे नहीं, एक साधुने बे साध्वी साथे रहेQ कल्पे नहीं, बे साधुने एक साध्वी साथे रहेवं कल्पे नहीं तेमज बे साधुने बे साध्वी साथे रहे, कल्पे नहीं. जो वहीं कोइ पण लघाई
चेलो अथवा चेली (पांचमुं) सादी होय तो ( रहे, ) कल्पे . अथवा वरसाद पमते ते ४ पोतानुं काम नहीं मूकनारा एवा लुहार थादिनी हाष्टए अथवा ते घरना कोइ पण बारणे श्रा प्रमाणे पांचमा विना पण रहेवं कल्पे . ३७. चोमासुं रहेला साधुने गृहस्थने घेर निक्षा सेवा माटे यावत् ( हवे कदेशे ते रीते) रहे, कल्पे नहीं. त्यां एक साधु अने एक श्राविकाने साथे रहे करपे नहीं. ए प्रमाणे चार लांगा जे. जो अहीं कोर पण पांचमो स्थविर अथवा स्थविरा सादी होय तो रहे कल्पे ने अथवा बीजा जोश् शके तेवं ते स्थान होय अथवा बहु धार सहित 2
ते स्थान होय तो साथे रहे कल्पे बे. एवी रीते साध्वी अने गृहस्थनी पण चतुर्नंगी जाणवी.13 है यहीं साधुनुं एकाकीपणुं कर्यु ले ते कारणसर साधुने एकला जवू पडे तेने माटे समज. सांधा-2 टिकने विषे, बीजा को साधुने उपवास होय अथवा असुख होवाथी कारणे तेम थाय . नहीं । तो उत्सर्ग मार्गे साधु पोताना सहित बीजो एटले बे जणा अने साध्वी त्रण जणी विचरे । एटले साथे जाय एम समजवू. ३ए. दी १४ चोमासु रहेला साधु साध्वी ने "मारा माटे तुं लावजे” ए प्रमाणे जेने नहीं कडं होय एवा
साधुए "तारा योग्य हुँ लावीश” एम जेने जपाव्युं नथी एवासाधुने निमित्ते अशन आदि आहार कलाववो कल्पे नहीं. ४०. "हे जगवन् ! ते शामाटे ?” एम शिष्ये प्रश्न कर्ये ते गुरु कहे जे के "जेने
१ श्रा सूत्र पण वहोरवा गया होय अंने वरसादना कारणथी उजा रहे, पमे तेने माटे समजवं.
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कल्प०
॥१३४॥
जपावेलुं नहीं एवो साधु के जेने माटे थाहार लाववामां श्राव्यो होय ते जो इछा होय तो आहार में सुबो० करे ने जो इछा न होय तो आहार न करे श्रने जलदुं श्रा प्रमाणे कहे के " को कयुं हतुं के तुं श्रा लाव्यो?" वली जो इछा वगर दाक्षिण्यताए ते खाय तो अजीर्ण या दिथी दुःख याय ने चोमासामां | कदी परठववुं पडे तो स्थं मिलना दुर्लजपणाने लीचे दोषापत्ति थाय तेटलामाटे पूढीने घ्यावं. ४१.
१५ चोमासुं रहेल साधु साध्वीने पाणीथी टपकता (नीतरता ) शरीरे तथा थोमा पाणीथी | जीजायेल शरीरे प्रशन यादिक ( चार प्रकारनो) आहार करवो कल्पे नहीं. ४२. “हे पूज्य ! ते शामाटे ?” एम शिष्ये प्रश्न कर्ये बते गुरु कहे बे के जेमां लांबे काले पाणी सुकाय एवां पाणी रहे | वानां सात स्थान जिनेश्वरोए कहेलां बे. ते या प्रमाणे - वे हाथ १, हाथनी रेखा ( श्रायुरेखा यादि, कारण के तेमां लांबे काले पाणी सुकाय वे ) २, ( अखंग ) नख ३, नखना छा जाग ४, जमर ( अांखनी उपरना वाल , दाढी ६ ने मूढ ७. दवे वली एम जाणे के मारुं शरीर पाणीरहित बे-तद्दन सुकाइ गयुं वे त्यारे ते साधुने अशन आदिक ( चार प्रकारना ) आदार करवा कल्पे. ४३.
१६ चोमासुं रहेला साधु साध्वीउने यहीं ( जिनशासनने विषे ) निश्चे या ( दवे कहेवाशे ते ) श्राव सूक्ष्मो बे, जे बद्मस्थ साधु साध्वीए वारंवार ज्यां ज्यां ते स्थान करे त्यां त्यां सूत्रना उपदेश वडे जाणवा योग्य वे, यांखथी जोवानां वे अने जाणीने तथा जोइने प्रतिलेखवानां बे (परिहरवाना होवाथी विचारवा योग्य बे ). ते आठ सूक्ष्मो या प्रमाणे बे-सूक्ष्म प्राणो ( जीवो ) १, सूक्ष्म पनक फुल्लि २, सूक्ष्म बीज ३, सूक्ष्म हरित ४, सूक्ष्म पुष्प ५, सूक्ष्म मां ६, सूक्ष्म बिल (दर) 9 ने सूक्ष्म स्नेह ( काय ) ८. ते क्या सूक्ष्म प्राणो ? एम शिष्ये पूक्याथी गुरु कहे वे के तीर्थंकर छाने गणधरोए पांच प्रकार (वर्ण) ना सूक्ष्म प्राण कह्या बे. ते या प्रमाणे- काला, नीला, पीला ने धोला. एक वर्णमां हजारो नेदो अने बहु प्रकारना संयोगो बे. ते सर्वे कृष्ण आदि। पांचे वर्णमां वतरे वे ( समावेश याय वे ). अणुद्धरी नामे कुंथुचानी जाति बे जे स्थित रहेली |
राता,
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KARNAGARIKA
होय,हालती चालती न होय त्यारे ते उद्मस्थ साधु साध्वीना दृष्टिविषयमा(नजरे)तुरत थावती नथी हूँ अने जे अस्थिर होय, चालती होय त्यारे ते बद्मस्थ साधु साध्वीना दृष्टिविषयमा ( नजरे)
तुरत श्रावे , माटे उद्मस्थ एवा साधु साध्वीए ते सूक्ष्म प्राणोने वारंवार जाणवा, जोवा अने| भोप्रतिलेखवाना बे, कारण के ते (प्राणो) चालता होय त्यारेज जणाय बे, पण स्थानने विषे
( स्थिर ) होय त्यारे जणाता नथी. ४४. बीजा सूक्ष्म पनक ते कया ? एम शिष्ये पूज्याथी गुरु हूँ कहे जे के-सूक्ष्म पनक पांच प्रकारना कहेला . ते था प्रमाणे-काला, नीला, राता, पीला अने धोला. सूक्ष्म पनक एक जाति के ज्यां ते उत्पन्न थाय बे त्यां ते तेज व्यना समान वर्णवाली होय . ते पनकनी जाति बद्मस्थ साधु साध्वीए जाणवानी, जोवानी थने प्रतिलेखवानी बे. ते प्राये करीने शरद् ऋतुमां जमीन, काष्ठ श्रादिने विषे उत्पन्न थाय ने अने ज्या उत्पन्न थाय ने त्यां ते 8 अव्यना समान वर्णवाली होय . ते प्रसिद्ध . आ सूक्ष्म पनक जाणवा. हवे सूक्ष्म वीजो कयां ? एम शिष्ये गुरुने पूज्याथी गुरु कहे जे के-सूक्ष्म बीजो पांच प्रकारनां कह्यां . ते था प्रमाणेकालां, नीला, रातां, पीलां अने धोलां. कणिका एटले नखिका-'नयुं जे लोकने विषे प्रसिद्ध ले तेना समान वर्णवाला ते सूक्ष्म बीजो कहेला ले. जे बीजो बद्मस्थ साधु साध्वीए जाणवानां, जोवानां अने 8 प्रतिलेखवानां बे. ते सूक्ष्म बीजो जाणवा. हवे सूक्ष्म हरित कर ले ? एम शिष्ये गुरुने पूब्याथी गुरु कहे ले के-सूक्ष्म हरित पांच प्रकारनी कहेली . ते या प्रमाणे-काली, नीली, राती, पीली अने, धोली. सूक्ष्म हरित ए के जे पृथिवी समान वर्णवाली प्रसिद्ध कहेली . जे साधु साध्वीए जाणवानी, जोवानी अने प्रतिलेखवानी बे. ते सूक्ष्म हरित जाणवी. ते नवीन उत्पन्न थयेल पृथ्वीना 3 समान वर्णवाली होय . ते अल्प संघयण (शरीरशक्ति) वाली होवाथी थोमा कालमांज नाश पामे डे. हवे ते सूक्ष्म पुष्पो कयां ? एम शिष्ये पूण्याथी गुरु कहे ले के-सूक्ष्म पुष्पो पांच प्रका
१ नखनी बे बाजुनी चाममी.
ASHAKARERAHASRX
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कल्प
सुबो
॥१३॥
555555ARRARIA
कैरनां कहेला बे. कालाथी धोला वर्ण सुधी. वृक्षना समान वर्णवाला ते सूक्ष्म पुष्पो प्रसिद्ध ले. जे
बद्मस्थ साधु साध्वीए जाणवानां, जोवानां अने प्रतिलेखवानां बे. ते सूक्ष्म पुष्पो जाणवां. हवे ते सूक्ष्म इंमां कयां बे ? एम शिष्ये पूब्याथी गुरु कहे के-सूक्ष्म इमां पांच प्रकारना कह्यां . ते 4
या प्रमाणे-मधमाखी, माकम विगेरनुं शकुंते उदंशांम १, खूता जे लोकमां 'कुलातरो'ना नामे प्रसिद्ध ६ तेनुं इंडं ते उत्कलिकांम २, पिलीपिका एटले कीमी, तेनुं इंडं ते पिपीलिकांम ३, हलिका एटले है
घरोली अथवा ब्राह्मणी, तेनुं इंडं ते हलिकांम ४ अने हदोहलिया एटले अहिलोमी, सरटी जे लोकमां 'काकिमी' कहेवाय ने तेनुं इंडं ते हसोहलिकांम५.जे साधु साध्वीए जाणवानां, जोवानां अने 3 साप्रतिलेखवानां जे. ते सूक्ष्म इंकां जाणवां. हवे लयन एटले जीवोनो श्राश्रय, ज्यां कीमी श्रादि |
अनेक सूक्ष्म जीवो थाय ने ते लयन अर्थात् सूक्ष्म बिलो ते कयां ? एम शिष्ये पूज्याथी गुरु कहे जे ६ के-सूक्ष्म बिल पांच प्रकारनां कह्यां . ते आ प्रमाणे-उत्तिंगा एटले गर्दनना श्राकारना जीवो, तेनुं बिल-नूमि उपर बांधेल घर ते उत्तिंगलयन १, नृगु एटले सुकायेल जमीननी रेखा-पाणी सुका गया पली पाणीना क्यारा श्रादिने विषे बे नाग (फाट) पडे ते नृगुलयन २, सरल बिल एटले सीधुंबील ते सरललयन ३, ताल वृदना मूलना आकार, नीचे पहोवू अने उपर सूदम 3 एवं जे बिल ते तालमूल ४ अने शंबुकावर्त्त एटले जमरानुं घर ५. था पांचे बद्मस्थ साधु साध्वीए जाणवानां, जोवानां श्रने प्रतिलेखवानां जे. ते सूक्ष्म बिल जाणवां. हवे ते सूदम स्नेह (अप्काय), कया ? एम शिष्ये पूज्याथी गुरु कहे जे के-सूदम स्नेह पांच प्रकारना कहेला . ते याप्रमाणेश्रवश्याय एटले उस जे श्राकाशमांथी (रात्रे) पमे बे ते पाणी १, हिम प्रसि २, महिका
।३, करका-करा प्रसिद्ध ४ अनेलीली जमीनमाथी उगी नीकलेल तृणना अग्र नाग १ करोलीया.
॥१३॥
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IP पर बिंदुरूप जल जे यवना अंकुरा श्रादिने विषे देखाय २ ते ५. जे उद्मस्थ साधुए जाणवाना,
जोवाना अने प्रतिलेखवाना ले. ते सूक्ष्म स्नेह जाणवा. ४५. छ। १७ चोमासु रहेल साधु गृहस्थने घेर जात पाणी माटे नीकलवा पेसवा श्छे तो तेने पूज्या &ासिवाय (नीकल पेस) कल्पे नहीं. कोने पूज्या सिवाय ते कहे बे. सूत्रार्थना देनारा
श्राचार्यने १, सूत्र नणावनार उपाध्यायने २, ज्ञान आदिने विषे सीदताने स्थिर करनार श्रने उद्यम-18 वालाने उत्तेजन थापनार स्थविरने ३, ज्ञान आदिने विषे प्रवर्त्तावनार प्रवर्तकने ४, जेनी पासे याचार्यों सूत्र थादिनो श्रन्यास करे ते गणिने ५, तीर्थकरना शिष्य गणधरने ६, जे साधने
लश्ने बहार अन्य क्षेत्रमा रहे बे,गबने माटे क्षेत्र,उपधिनी मार्गणा आदिमां प्रधावन विगेरेना करनार है एटले उपधि विगेरे लावी थापनार ने अने सूत्र तथा अर्थ ए बंनेने जाणनार मे ते गणावबेदकने , अथवा अन्य ( सामान्य ) साधु जे वय अने पर्याये करीने लघु होय पण जेने गुरुपणाए । अंगीकार करीने विचरे ने तेने. ते साधुने श्राचार्य यावत् जेने गुरुपणाए मुकरर करीने विचरे ने तेने पूबीने ( नीकलवू पेसवू ) कल्पे बे. हवे केवी रीते पूल ते कहे . 'हे पूज्य ! जो श्रापनी थाज्ञा होय तो हुँ गृहस्थने घेर जात पाणीने माटे नीकलवा पेसवा श्लु बुं.' जो श्राचार्य श्रादि ते साधुने श्राज्ञा आपे तो तेने गृहस्थने घेर जात पाणी माटे नीकल, पेसवु कल्पे जे. जो श्राचार्य श्रादि ते है साधुने श्राज्ञा न आपे तो गृहस्थने घेर नात पाणी माटे नीकलवू पेस, कल्पे नहीं. 'हे पूज्य! ते शा हेतुथी ?' एम शिष्ये प्रश्न कर्याथी गुरु कहे के 'श्राचार्य श्रादि विघ्नना परिहारने जाणे .' ४६.४ | एवीज रीते विहार एटले जिनचैत्य, तेने विषे जवं, विचारनूमि एटले शरीर चिंता आदिने ६ & माटे जर्बु श्रथवा उवास थादिवर्जीने लीप,सीववू,लखवू श्रादिक जे कांश काम होय ते सर्व पूबीने है।
करवं ए तत्त्व जे. एवीज रीते निदा आदि माटे अथवा ग्लान आदिने कारणे एक गामथी बीजे गाम जq होय तो पूबीने जवं, नहीं तो वर्षातुमा एक गामथी बीजे गाम जqए अनुचितज ३.४.
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कल्प | चोमासु रहेल साधु जो बीजी को विगय खावाने श्वे तो आचार्य यावत् जेने गुरुपणाए कबुल 8
सुबोध 18 करीने विचरे तेने पूज्या सिवाय ( विगय खावी ) कल्पे नहीं. श्राचार्य यावत् जेने गुरुपणाए ॥१३६॥ करीने विचरे ने तेने पूढीने (विगय खावी) कल्पे बे. केवी रीते पूल ते कहे जे-'हे पूज्य ! आपनी
आज्ञा होय तो अनेरी विगय आटला प्रमाणमां अने थाटला वखत खावाने श्ळ बु. ते श्राचार्य | आदि जो तेने आझा आपे तो तेने अनेरी विगय खावी कल्पे . ते श्राचार्य आदि जो तेने आज्ञा न आपे तो अनेरी विगय खावी कल्पे नहीं. 'हे पूज्य! ते शामाटे ?' एम शिष्ये प्रश्न कर्याथी गुरु |
कहे के प्राचार्यो लाजालान जाणे . ४. है चोमासु रहेल साधु वात, पित्त, श्लेष्म अने सन्निपात संबंधी रोगोनी को प्रकारनी चिकित्सा कराववाने श्छे तो (आचार्य इत्यादिने पूजीने करवी विगेरे ) अगाउ जणाव्या मुजब सर्व अहीं । कहे. ते चिकित्सा आतुर, वैद्य, प्रतिचारक अने जैषज्यरूप चार प्रकारनी जे. कयु डे के निषक् । (वैद्य ), अव्यो, उपस्थाता (नोकर) अने रोगी ए चार प्रकार चिकित्सितना जे.' ते प्रत्येकना चार 8 |चार प्रकार कह्या . दक्ष, शास्त्रना अर्थ जाएया बे एवो,, दृष्टकर्मा अने शुचि ए चार प्रकार निषक्ना बे. बहुकल्प, बहुगुण, संपन्न श्रने योग्य ए चार प्रकार औषधना बे. अनुरक्त, शुचि, दद अने। बुद्धिमान् ए चार प्रकार प्रतिचारकना ले तथा आढ्य (धनवान), रोगी, निषक्ने वश अने झायक एटले सत्त्ववान् ए चार प्रकार रोगीना जे.ए. 4 चोमासुं रहेल साधु जो कोई प्रशस्त, कल्याणकारी, उपवने हरनार, धन्य करवावाचु, मंगल है करनार, शोजा आपनारं अने महा प्रजाववायूँ एवी जातर्नु कोश् तपाकर्म अंगीकार करीने ।
विचरवाने श्छे तो गुरुने पूबीने विचरवु (कर) कल्पे इत्यादि अगाउनी माफक सर्व कहेवु. ५०. | ॥१३६॥ __ चोमासु रहेल साधु जे श्वे, ते केवा साधु ? तो के अपश्चिम एटले चरम (बेधुं) मरण ते अपश्चिम मरण, पण प्रतिक्षणे आयुष्यना दलिक अनुजववारूप आवीच मरण नहीं. अपश्चिम मरण है।
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है तेज अंत ने जेने विषे श्रने तेने विषे थयेल ते अपश्चिम मरणांतिकी एवी; शरीर, कषाय श्रादि |
जेथी कृश कराय तेवी संलेखना अव्य नाव दे करीने निन्न (नेदवाली) बे. 'चत्तारि विचि-18 सत्ताई' इत्यादि. तेनुं जोषण एटले सेवन-ते संलेखनानी सेवा, तेनाथी क्षय करी नाख्युं ने शरीर जेणे,181
| अपश्चिम मरणांतिकी संलेखनानी सेवाथी (सेवनथी) क्षय करीनाख्युं ने शरीर जेणे एवा, हथने तेथी करीने नात पाणीनुं प्रत्याख्यान कस्युं जेणे एवा, अने तेथी करीने पादपोगमन (अनहैशन ) कस्खु जे जेणे एवा, अने तेथी करीने काल एटले जीवितकालने नहीं श्चता एवा-साधु
विचरवाने (ते प्रमाणे करवाने) श्ता उता गृहस्थना घरमां नीकलवा पेसवाने, अशन श्रादिकनो थाहार करवाने, मल मूत्र परग्ववाने, खाध्याय करवाने तथा धर्मजागरिका जागवाने एटले श्राज्ञा,
अपाय, विपाक अने संस्थान विचय ए चार नेदरूप धर्मध्यानना विधान श्रादि वझे जागवाने से है तो (गुरुने) पूज्या सिवाय तेने कांश पण कर, कल्पे नहीं. ते सर्व अगाउनी माफक अहीं।
पण जाणवू. श्रा सर्व गुरुनी थाहा वमेज करवं कल्पे ले. ५१... | १७ चोमासु रहेल साधु वस्त्र, पात्र, कंबल (धाबली), पादप्रोंबन एटले रजोहरण तेमज अन्य ६ उपधि तपाववाने एटले एक वार तमकामां मूकवाने अने नहीं तपवाथी कुत्सापनक आदि । दोषनी' उत्पत्तिनो संजव होवाथी फरी फरी तपाववाने श्छे त्यारे एक साधु अथवा अनेक साधुने । जणाव्या-कह्या सिवाय तेने गृहस्थने घेर जात पाणीने माटे नीकल पेसवू, अशन श्रादिनो आहार करवो, जिनचैत्ये जर्बु, शरीरचिंता आदिने माटे जवू, खाध्याय करवो, कायोत्सर्ग करवो तेमज एक स्थाने आसन करीने रहे कल्पे नहीं. जो थहीं कोइ पण नजीकमां रहेल एक अथवा हूँ। टू अनेक साधु होय तो तेने या प्रमाणे कहेवु जोश्ए.'हे थार्य ! ज्यांसुधी हुँ गृहस्थने घेर जाउं श्राद् यावत् कायोत्सर्ग करुं श्रथवा वीरासन आदि करीने एक स्थाने रहुं त्यांसुधी था उपधिने तमे
१ कुंथुवा पम्वा, पनक एटले फुगी वलवी इत्यादि.
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कल्प०
॥१३७॥
संजालजो.' ते जो वस्त्रने संजालवानुं अंगीकार करे तो तेने गृहस्थने घेर गोचरी आदिए जनुं, अशन यादिनो आहार करवो, जिनचैत्ये जनुं अथवा शरीरनी चिंता आदिने माटे जतुं, स्वाध्याय अथवा कायोत्सर्ग करवो तेमज वीरासन आदि करी एक स्थाने रहेतुं कल्पे, ए सर्व कहेतुं. ते जो अंगीकार न करे तो गृहस्थना घेर जतुं यावत् एक स्थाने रहेतुं कल्पे नहीं. ५१.
१० चोमासामा रहेल साधु साध्वीने कल्पे नहीं. (शुं न कल्पे ते कहे वे.) जेणे शय्या ने आसन ग्रहण करेल नथी ते 'अन निगृहीतशय्यासनः' कहेवाय; धने अन निगृहीतशय्यासन तेज न निगृहीतशय्यासनिकः, अहीं 'इक' प्रत्यय स्वार्थे बे. तेवा प्रकारना एटले जेणे शय्या ने आसन ग्रहण करेल नथी एवी रीते साधुए रहेवुं कल्पे नहीं. एटले वर्षाकालमां उपाश्रयमां पीठ (पाटलो ), फलक ( पाटीयुं ) यादि ग्रहण करवां ए जाव जाणवो. नहीं तो शीतल भूमिने विषे सूवा बेसवामां कुंथुवा आदिनी विराधना थवाने लीधे कर्मनुं तेमज दोषनुं श्रादान एटले उपादान कारण थाय बे.
अन निगृहीतशय्यासनिकत्व जाणवुं तेनेज दृढ करे वे. जेणे शय्या यासन ग्रहण करेल नथी तेने, एक हाथ सुधी उंची के जेथी की मी यादिनो वध अने सर्प यादिनो दंश न थाय तेमज | 'कुचा कुच परिस्पन्दे' ए वचनथी परिस्पन्द रहित एटले निश्चल एवी जातनी चारे बाजु काठीवाली शय्या जेने न होय ते अनुच्चाकुचिकः कदेवाय तेने, प्रयोजन वगर बांधनारने, ( एक वार उपरांत प्रयोजन वगर बे, त्रण, चार वार कंबा (काठी) उपर बंध बांधे अने चारनी उपर घणा अड्डुक ( श्रामीया ) बांधे तथा वली स्वाध्यायने विषे विघ्न पलिमंथादि दोषो थाय तेथी बंधन यादिना तेमज पलिमंथना परिहार माटे जो एक श्राखुं चंपा यादिनुं पाटीयुं मले तो तेज ग्रहण करवुं ) जेने शासन नक्की करी राख्युं नथी तेने, (कारण के वारंवार एक स्थानथी बीजे स्थाने जवाथी जीवनो वध थाय ) अनेक यासन सेवनारने, संथारो, पात्र दिने तमकामां नहीं मूकनारने, ईर्या आदि समितिने विषे अनुपयुक्तने, जेने पमिलेक्षण करवानी देव नयी एटले दृष्टि वडे रजोहरण
सुबो०
॥१३७॥
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आदिथी प्रमार्जन करवानी देव नथी तेने-एटले तेवा प्रकारना स्वरूपवाला (थाचरणवाला) है साधुने संयम मुश्केलीथी थाराधन थाय तेवु थाय . ५३.
श्रादान कहीने हवे अनादान कहे . शय्या, श्रासनग्रहण करवू, एक हाथ जंची थने निश्चल शय्या राखवी तेमज पक्षमा एक वार सप्रयोजन शय्यानी काठी उपर बंध बांधवा तेथी कर्मनुं तेमज दोषनुं अनादान एटले तेवा कारणनो अन्नाव बे. ते हवे प्रकट करी देखाडे जे. जेणे|| यासन अने शय्या ग्रहण करेल तेने, जेने एक हाथ उंची अने निश्चल शय्या ने तेने, प्रयोजनपूर्वक काठी उपर बंध बांधे ने तेने, जेने मित एटले नक्की करेलुं ने श्रासनतेने, वस्त्र श्रादिने । जे तमकामां मूके ने तेने, इा श्रादि समितिने विषे उपयोगवालाने तेमज वारंवार पमिलेहण, करवानी एटले प्रमार्जवानी जेने टेव ने तेने एटले श्रावा प्रकारना साधुने ते ते प्रकारे संयम सुखे करीने श्राराधन थाय तेवु थाय . ५४. है| २० चोमासु रहेल साधु साध्वीने उहा, मात्रानी त्रण जग्या कल्पे . जे कांश पण सहन करी
शके नहीं ( वेग रोकी शके नहीं ) तेने त्रण जग्या अंदर राखवी, जे सहन करी शके तेने त्रण जग्या | काबहार राखवा. दूर जवामां थमचण आवे तो मध्य नूमि राखवी, तेमां पण अमचण थावे तो।
नजीकनी नूमि राखवी. ए प्रमाणे श्रासन्न, मध्य अने र ए त्रण प्रकारनी नूमि ले तेने पमिलेहवी. 'जे प्रमाणे चोमासामा करवामां आवे ने ते प्रमाणे शियाला अने उनालामां करवामां आवतुंनथी तेनुं कारण हे पूज्य ! शुंने ?' ए प्रमाणे शिष्ये प्रश्न कर्ये बते गुरु कहे के 'चोमासामा प्राये करीने जीव जेवा के शंखनक, इंजगोप, कमि आदि, तृण (ए प्रसिक ), बीज जेवां के ते ते 81 वनस्पतिना नवा उत्पन्न थयेला अंकुर, पनक एटले फुलण तेमज बीजमांथी उत्पन्न थयेल हरित ए सर्वे पुष्कल थाय बे. (तेथी चोमासा माटे खास कहेवामां श्रावेल .) ५५.
२१ चोमासु रहेल साधु साध्वीने त्रण मात्रां (पात्र) लेवां कल्पे . ते आप्रमाणे-एक उखानु, वीजें
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कल्प
सुबोध
॥१३॥
मूत्रनुं अने त्रीजुं श्लेष्मनु. मात्रं (पात्र ) न होवाथी वखत बीती जबाने लीधे उतावल करतां ।
थात्मविराधना थाय तथा वरसाद वरसतो होय तो बहार जवामां संयमविराधना थाय. ५६. है 'धुवा लो न जिणाणं,निच्चं थेराण वासावासासु' एटले जिनकल्पीने निरंतर अने स्थविरकल्पीने ॥
चतुर्मासमां नित्य लोच कराववो ए वचनथी चोमासु रहेल साधु साध्वीने असाड चतुर्मास पली लांबा केश तो दूर रहो, परंतु गायना रुंवा सरखा पण केश राखवा कल्पे नहीं; तेथी ते रात्रि एटले नाउपद सुदि पांचमनी रात्रि अने हाल सुदि चोथनी रात्रि उलंघवी जोए नहीं. ते पहेलांजर
लोच कराववो जोए. तेनो श्रा जाव ले. जो समर्थ होय तो चोमासामा हमेशां लोच कराववो. है जो असमर्थ होय तो ते रात्रि (जाउपद सुदिप नी रात्रि)उलंघवी जोइए नहीं. पर्युषणा पर्वमा
लोच विना अवश्ये करीने प्रतिक्रमण करवं कल्पे नहीं, कारण के केश राखबाथी अप्कायनी विराधना थाय ने अने तेना संसर्गथी जुनी उत्पत्ति थाय ने अने केश खणतां थका ते जुर्जनो वध । थाय ने अथवा माथामां नख वागे . जो अस्त्राथी अथवा कातरथी मुंडन करावे तो आज्ञाजंग श्रादि दोषो थाय , संयम अने श्रात्मानी विराधना थाय ने, जुनो वध थाय , हजाम पश्चात्-3 कर्म' करे ने अने शासननी अपनाजना थाय ने तेथी लोचन श्रेष्ठ ले. जो कोश् लोच सहन न है करी शके, अथवा लोच करवाथी कोइने ताव आदि आवी जवा संजव होय, अथवा बालक होवाथी है। रमे अथवा तेथी धर्म त्यजी दे तो तेणे लोच करवो नहीं. साधुए उत्सर्गथी लोच करवो जोए । अने अपवादथी बाल, ग्लान आदिए मुंमन कराव जोश्ए. तेमांप्रासुक जल वमे मायाने धोश्ने ४ प्रासक पाणीथी नापित (हजाम ) ना हाथ पण धोवराववा. जे शस्त्राथी (सुमन ) कराववाने|| असमर्थ होय अथवा जेना माथामां गुंबमां आदि थयेल होय तेना केश कातरवा कल्पे. (पंदर अपंदर दिवसे शय्याना बंध बुटा करवा ने प्रतिलेखवा जोशए अथवा सर्व काल पंदर पंदर दिवसे
१ हजाम हजामत कर्या पली हाथ, वस्त्र, शस्त्रादि धोवे घसे ते पश्चात्कर्म.
॥१३॥
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आरोपणा प्रायश्चित्त लेबुं जोइए. चोमासामां विशेषे करीने लेवुं जोइ . ) जे सहन न करी शके तेणे महीने महीने मुंमन कराववुं. जो कातर वडे केश कतरावे तो पंदर पंदर दिवसे गुप्त रीते कतराववा. मुंमन कराववानुं ने कतराववानुं प्रायश्चित्त निशीथमां कहेल यथासंख्य लघु गुरु मासरूप जाणवु लोच ब मासे करवो, पण स्थविरकल्पी साधुमां स्थविर एटले वृद्ध होय तेणे घम| पाथी जर्जरित थवाने लीधे तथा श्रांखनुं रक्षण करवाने माटे एक वर्षे लोच कराववो अने तरुणे चार मासे लोच कराववो. ५७.
२३ चोमासुं रहेल साधु साध्वीने श्रागल एटले पर्युषण पर्व पठी क्लेश उपजावे तेवुं वचन बोलवु कल्पे नहीं. जे साधु अथवा साध्वी क्लेश करावे एवं वचन बोले तेने या प्रमाणे कहेतुं जोइए. 'हे आर्य ! तमे याचार विना बोलो बो, कारण के पर्युषणाना दिवस पहेलां अथवा तेज दिवसे जे क्लेशकारी वचन उत्पन्न थयेल ( बोलेल ) ते तो पर्युषणामां खमायुं श्रने दवे जे पर्युषणा पठी क्लेशकारी वचन बोलो हो ते या अनाचार बे.' ए जाव जाणवो. या प्रमाणे निवार्या बतां जे साधु अथवा साध्वी पर्युषणा पढी क्लेशकारी वचन बोले तेने तंबोलीना पानना दृष्टांतथी संघ बहार करवा. जेम तंबोली सडेला पानने बीजां पान नाश करवाना जयथी काढी नाखे बे तेवी | रीते अनंतानुबंधी क्रोधवालो साधु पण विनष्टज बे एम धारीने तेने दूर करवो. ए जाव जाणवो. वली बीजो पण ब्राह्मणनो दृष्टांत बे. खेट नगरनो वासी रुद्र नामे ब्राह्मण वर्षाकाले खेतरो खेरुवा माटे हल लइने खेतरे गयो। हलने वहन करतां तेनो गली बलद बेसी गयो. |परोणाथी मारतां बतां पण ज्यारे ते उठ्यो नहीं त्यारे ऋण क्यारानां माटीनां ढेफांथी मारतां | मारतां ते माटीनां ढेफां वने तेनुं मुख ढंकाइ गयुं ने श्वास रुंधाइ जवाथी ते मरण पाम्यो. १ आटली शय्या संबंधी हकीकत केशलोचना विषयमां बच्चे केम आवी ते समजातुं नथी. २ कुरमंकने लघु मास ने कतरावनारने गुरु मास.
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सुबो
करूपण पठी ते ब्राह्मण पश्चात्ताप करतो करतो महास्थाने जश्ने त्यां पोतानो वृत्तांत कहेता (बीजा) ब्राह्मणोएर
पूज्युं के 'तुं हजु उपशांत थयो के नहीं ?' त्यारे 'हजु पण मने उपशांति थ नथी' एम कहेतां । ॥१३॥
तेने ब्राह्मणोए पंक्ति (शाति) बहार कर्यो. एवी रीते वार्षिक पर्वमां कोप उपशांत नहीं थवाने 4 हैलीधे जे साधु आदिए खमंतखामणां न कर्यां होय तेने संघ बहार करवा. उपशांतमा उपस्थित कथयो होय तेने मूल प्रायश्चित्त आपQ. ५७.. ४ २४ चोमासुं रहेल साधु साध्वीने बाजेज एटले पर्युषणाने दिवसेज उंचा शब्दवालो तथा कमवाश नरेलो एटले जकार मकार श्रादिरूप कलह थाय तो नानो मोटाने खमावे. जो के मोटाए अपराध को होय तोपण व्यवहारथी नानो मोटाने खमावे. हवे जो धर्म नहीं परिणमवाथी नानो मोटाने न खमावे तो शुं करवू ? ते कहे -मोटो पण नानाने खमावे, पोते खमेथने वीजाने । खमावे, पोते उपशांत थाय अने बीजाने उपशांत करे. सुमतिपूर्वक ( राग वेषना अनावपूर्वक ) सूत्र अने अर्थ संबंधी संपृष्ठना अथवा समाधिप्रश्न पुष्कल थवा जोएं. जेनी साथे कमवाश 3 नरेलो कलह थयेलो होय तेनी साथे निर्मल मनथी वातचीत आदि करवू जोशए ए नाव ले. हवे 4 बेमां जो एक खमावे अने बीजो न खमावे तो कयो रस्तो लेवो ते कहे . जे उपशमे ने तेनी है आराधना थाय .जे उपशमतो नथी तेनी आराधना थती नथी,तेथी पोतेज उपशमित थq. 'हे पूज्य! 2 ते शा कारणथी ?' ए प्रमाणे शिष्ये पूज्ये उते गुरु कहे जे के 'श्रमणपणुं-साधुपणुं वे ते उपशम-13 प्रधान दे.' अहीं दृष्टांत कहे जे के-सिंधु सौवीर देशनो अधिपति श्रने दश मुकुटवक राजाथी सेवातो उदयन नामे राजा विद्युन्माली देवताए आपेली एवी श्रीवीर प्रजुनी प्रतिमानी पूजाथी नीरोगी है
॥१३णा थयेला गंधार श्रावके श्रापेली गोलीना नक्षण करवाथी जेनुं रूप बदजुत थ गयु बे एवी सुवर्णगुलिका नामे दासीने देवाधिदेवनी प्रतिमा सहित हरण करनार अने चौद राजाथी सेवाता
१ शांति थाय तेवी अनेक शास्त्रादिनी वातो करवी जोइए.
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मालव देशना चंम्प्रद्योत नामे राजाने देवाधिदेवनी प्रतिमा पानी लाववा माटे उत्पन्न थयेला संग्राममां बांधीने पाना श्रावतां दशपुर नगरमां चोमासु रह्यो. वार्षिक पर्वने दिवसे राजाए पोते 8 उपवास को. राजाए हुकम करेला रसोयाए जोजन माटे चंप्रद्योतने पूज्यु. त्यारे विषनी ६ बीकथी “हुँ श्रावक हुँ तेथी मने पण बाजे उपवास डे" एम को बते"श्रा धूर्त साधर्मिकने पण खमाव्या है वगर मारु प्रतिक्रमण शुद्ध थशे नहीं” एम उदयन राजाए धारीने तेनुं सर्वख पालुं श्रापीने थने तेना कपाल उपर लखावेला 'मारीदासीनो पति' ए अदरो थाछादन करवा माटे पोतानो मुकटपट्ट थापीने श्री उदयन राजाए चंम्प्रद्योतने खमाव्यो. अहीं श्री उदयन राजानुं तेना उपशांतपणाथी आराधकपणुं जाणवू. है। कोई वखते बनेनुं श्राराधकपणुं होय . ते था प्रमाणे-एक वखत कौशाम्बी नगरीने विषे सूर्य है
अने चंड पोतानां विमान वमे श्री वीर प्रजुने वांदवाने थाव्या. चंदना साध्वी दक्षपणाने सीधे श्रस्तसमय जाणीने पोताने स्थाने गया अने मृगावती सूर्य चंजना जवाथी अंधकार फेलाये बते | रात्रि जाणीने बीती थकी उपाश्रये आवी अने पथिकी प्रतिक्रमीने सूतेला एवा चंदना साध्वीने 'मारो अपराध दमा करो' एम कहेवा लागी. त्यारे चंदनाए पण 'हे न ! तारा जेवी | कुलीनने थाम करवू ते युक्त नथी' ए प्रमाणे कयु. तेणे वली कयु के 'फरीथी थाम करीश नहीं एम कहीने पगे पडी. एटलामां चंदना साध्वीने उघ श्रावी ग अने मृगावतीने ते प्रकारे खमा
वतां केवलज्ञान प्राप्त थयु. पनी को सर्प नजीक श्राववाथी चंदनानो हाथ जंचो लेवाना बना-8 ६ वथी चंदना साध्वी जागी गया अने केवी रीते सर्प जाएयो एम पूढतां चंदनाए मृगावतीने केवल
झान थयेवू जाणीने तेणीने खमावतां पोते पण केवलज्ञान मेलव्यु; तेथी भावी रीते मिथ्या पुष्कृत है देवू जोइए, पण कुंचार श्रने कुबकना दृष्टांते देवु न जोश्ए. ते कुंनार अने कुल्लकनो दृष्टांत श्रा,
प्रमाणे बे- (कुंचारनां ) हांझलां काणां करता को एक कुखक (चेला)ने कुंजार ज्यारे निवारतो
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कल्प०
॥२४॥
त्यारे ते मिथ्या दुष्कृत देतो, पण ते हांकलां काणां करतो खटकतो नहीं, तेथी कांकरा व चेलाना | कान मरमतां ( मसलता ) कुंजारे पण 'हुं दुःख पामुं बुं' एम ते चेले वारंवार को बते पण फोगट | मिथ्या दुष्कृत याप्युं. एए.
१५ चोमासुं रहेल साधु साध्वीने त्रण उपाश्रय ग्रहण करवा कल्पे बे. ते या प्रमाणे जंतुसंसक्ति यादिना जयथी ते त्रण उपाश्रयमां बे उपाश्रयने वारंवार प्रतिलेखवा ( जोवा ) जोइए. साइज धातु श्राखादनना श्रर्थमां वपराय बे तेथी जे उपाश्रय उपजोगमां श्रावतो होय ते संबंधी प्रमार्जना करवी जोइए. एटले जे उपाश्रयमां साधुर्ज रहे बे तेने प्रातःकाले प्रमार्जे बे, फरी ज्यारे साधु वहोरवा जाय त्यारे प्रमार्जे बे ने फरी त्रीजा पहोरने अंते प्रमार्जे बे. एम त्रण वार प्रमार्जे बे. कुतुबद्धे एटले चोमासा सिवाय वे वार प्रमार्जे बे. ज्यारे ( उपाश्रय जीवथी ) प्रसंसक्त होय | तेनो या विधि बे ने संसक्त होय तो वारंवार प्रमार्जे बे. बाकीना वे उपाश्रयने हमेशां नजरथी जोवे बे, पण तेमां ममत्व करता नथी छाने श्रीजे दिवसे पादप्रोंनथी प्रमार्जे बे तेथी 'वेज बिया पमिलेहा' एम कहेलुं बे. ६०.
२६ चोमासुं रहे साधु साध्वीने अन्यतर दिशा एटले पूर्व यदि दिशानो ने अनुदिशा एटले अनि यदि विदिशानो श्रवग्रह करीने अमुक दिशा अथवा विदिशामां हुं जाउं बुं एम बीजा साधुउने कहीने जात पाणी वहोरवा जनुं कल्पे बे. 'हे पूज्य ! ते शा देतुथी ?' एम शिष्ये पूढये बते गुरु कहे बे के 'चोमासामां प्राये करीने साधु जगवंत तपयुक्त रहे बे तेमज प्रायश्चित्त वहन करवाने अर्थे के संयमनेार्थे बघ यदि तप करनारा होय बे. ते तपखी तपने लीधे दुर्बल तथा कृश अंगवाला होय बे तेथी थाक लाग्याथी कदाचित् मूर्छा श्रावे अथवा पमी जाय तो तेज दिशा अथवा अनुदिशामां उपाश्रयमां रहेल साधु जगवंत सार करे ( शोध करे ). जे कह्या विना गयेल होय तेनी क्यां शोध करे ?' ६१.
.
सुबो०
॥१४०॥
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॥ ७ चोमासुं रहेल साधु साध्वीने वर्षाकरूपमा औषध माटे, वैद्यने माटे अथवा ग्लाननी सार | से करवा माटे चार पांच योजन जश्ने पण पाडं यावतुं कल्पे , पण त्यां रदेवू कल्पे नहीं जो पोताने |
स्थाने श्रावी शके तेम न होय तो तेनी वच्चे पण श्रावीने रहे, कल्पे, पण ते जग्याए रहे न कल्पे, कारण के त्यांची नीकली जवाश्री वीर्याचारनुं श्राराधन थाय जे. ज्यां जवाथीजे दिवसे वर्षा ? कल्प आदि मली गयेल होय ते दिवसनी रात्रि त्यां रहे, न कल्पे, नीकली जर्बु कल्पे, ते रात्रि उद्धंघवी कल्पे नहीं. कार्य थये बते तुरतज बहार नीकलीने रहेq ए नाव जाणवो. ६२.
२७ ए प्रमाणे पूर्वे कहेल सांवत्सरिक चोमासा संबंधी स्थविरकल्पने यथासूत्र (एटले सूत्रमा जे प्रमाणे कहेल ने ते प्रमाणे करवो, पण सूत्र विरुक करवो नहीं) अने यथाकल्प ( एटले अहीं है। जे प्रमाणे कहेल बे ते प्रमाणे करवो ते कल्प अने तेथी बीजी रीते करवो ते अकल्प ) करता है। (श्राचरता) झानादि त्रयरूप मार्ग ते यथामार्गने यथातथ्य एटले सत्य वचनानुसारे अने) सम्यक् प्रकारे मन, वचन अने कायाए करीने स्पर्शीने एटले सेवीने, पालीने एटले अतिचारथी टू रक्षण करीने,विधिपूर्वक करवा वडे शोजावीने,यावजीव आराधीने, वीजाने उपदेश करीने, यथोक्त करणपूर्वक थाराधीने, श्राझाए एटले जिनेश्वरे उपदेश कर्या मुजब जेम पूर्वे पाल्यो तेम पठी || पण पालीने केटलाएक श्रमण निग्रंथो तेनी अति उत्तम पालना वडे तेज नवे सिक ( कृतार्थ ) है थाय , केवलझाने करीने बोध पामे , कर्मरूपी पांजराथी मुक्त थाय बे, कर्मकृत सर्व तापना 8
उपशमनथी शीतल थाय ने अने शरीर तथा मन संबंधी सर्व उःखनो अंत करे . केटलाएक
तेनी उत्तम पालना वमे बीजे नवे सिद्ध थाय ने यावत् शरीर तथा मन संबंधी सर्व फुःखनो अंत ४ करे बे. केटलाएक तेनी मध्यम पालना वमे त्रीजे नवे यावत् शरीर तथा मन संबंधी सर्व
पुःखनो अंत करे बे. (केटलाएक) जघन्य अाराधना वडे पण सात आठ नत्र तो अतिक्रमेज नहीं एटले सात आठ नवे तो अवश्य मोदे जाय ए नाव जाणवो. ६३.
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सुबोग
कल्प | ते काले एटले चोथा श्राराने डेडे अने ते समये एटले श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रजु राज
गृह नगरने विषे समवसस्या ते अवसरे गुणशैल नामना चैत्यने विषे घणा साधु, घणी साध्वी, घणा है ॥१४१॥
श्रावक, घणी श्रविका, घणा देवो अने घणी देवीउनी मध्ये रह्या (बेठा) थका ( पण प्रउन्नपणे ६ खुणामां रहीने नहीं ए नाव जाणवो) था प्रमाणे कद्यु, था प्रमाणे वचनयोग वडे नाख्यु, श्रा,
प्रमाणे फल कहेवा वडे करीने जणाव्यु, था प्रमाणे प्ररूप्यु एटले दर्पणनी जेम श्रोताना हृदयमांडू संक्रमाव्युं अने पर्युषणाकल्प नामे अध्ययनने अर्थ एटले प्रयोजन सहित ( पण प्रयोजन विना
नहीं), हेतु सहित ( हेतु एटले निमित्त ते जेमके गुरुने पूढीने सर्व करवं ते शा हेतुथी ? कारBण के प्राचार्यो प्रत्यपाय जाणे इत्यादि हेतु बे ते सहित), कारण सहित ( कारण एटले अपवाद
ते जेमके 'अंतराविसे कप्प' श्रमचणे तेने कल्पे इत्यादि कारण सहित), सूत्र सहित, अर्थ सहित, बने ( सूत्र अने अर्थ ) सहित, व्याकरण सहित (एटले पूजेला अर्थने कहेवा सहित)वारंवार उपदेश्यु. ए प्रमाणे हुं कहुं बु एम श्री नवाहु खामी पोताना शिष्यो प्रत्ये कहेता हवा. ए प्रमाणे श्री पर्युषणा कल्प नामे दशाश्रुतस्कंधन आठमुं अध्ययन संपूर्ण थयु. 4 ए प्रमाणे जगद्गुरु नहारक श्री हीरविजय सूरीश्वरना शिष्यरत्न महोपाध्याय श्री कीर्तिविजय ६ है गणिना शिष्य उपाध्याय श्री विनय विजय गणिए रचेली कल्पसुबोधिकाने विषेसामाचारी व्याख्यान
संपूर्ण थयुं श्रने सामाचारी व्याख्यान नामे श्रात्रीजो अधिकार पण समाप्त थयो. शुन्नं जवतु !
CALC325954505605500RS
॥११॥
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Jain Education
॥ अथ प्रशस्तिः ॥
श्री वीर जिनेंद्रनी पट्टपरंपराने विषे कल्पद्रुम समान, सर्व इछितने श्रापनार, सुगंधीए करीने | खेंचेल बे पंमितरूपी जमराने जेणे एवा, शास्त्रना उत्कर्षथी सुंदर, स्फुरायमान यती धने विशाल बे कांति जेनी एवा, फलने यापनारा, देदीप्यमान मूलगुण वे जेना एवा, हमेशां अति सारा मनवाला, श्रीमान् छाने देवोथी पूजित श्रीहीर सूरीश्वर थया. १. जेणे दर वर्षे व मास सुधी समग्र पृथ्वीने विषे जीवने अजयदान आपवारूप पटना मिषथी पोतानो यशरूपी पटह वगमाव्यो दतो अने जेना मुखथी शुन धर्मोपदेश सांजलीने अधर्मरसिक, म्लेछोनो अग्रेसर घने निर्मल मति - | वालो अकबर बादशाह धर्मने पाम्यो हतो. २. तेनी पाटरूपी उंचा उदयाचल पर्वतना शिखर पर स्फुरायमान किरणवाला सूर्य समान तथा जव्य लोकोने इच्छित वस्तु श्रापवाने चिंतामणि समान श्रीविजयसेन सूरि थया. जेना शुत्र गुणोथीज जाणे होय तेम स्वछ मेघथी वींटायेलो पृथ्वीनो गोलो जेनी कीर्त्तिरूपी स्त्रीने रमवा माटे दडो होय तेम शोजतो हतो. ३. जे अकबर बादशाहनी सजामां वाणीना वैजव वडे वादीउने जीतीने शौर्यथी श्राश्वर्य पमामेली अने लक्ष्मीथी परिवृत | थयेली जयश्री कन्याने वर्या हता, तेटलामाटे हे मित्र ! मनोहर तेजवाला था ( श्री विजयसेन सूरि ) नी वृद्ध एवी कीर्त्तिरूपी सती स्त्री पतिना अपमानथी शंकित मनवाली थइने अहींथी दिगन्त सुधी चाली गइ तेमां आश्चर्य शुं बे ? ४. तेनी पाटे बहु सूरिथी स्तुत्य, मुनिर्जना नेता अने स्वच्छ चित्तवाला श्री विजयतिलक सूरि थया. शिवनुं दास्य, बरफ, हंस ने हारना जेवी उज्ज्वल शोजा बे जेनी एवी तथा स्फूर्त्तिवाली जेनी कीर्त्ति त्रण जगतमां वर्तती हती. ए. तेनी पाटे राजार्जना समूह वडे जेनां चरणकमल स्तुति करायेलां बे एवा, दुःखनो समूह नाश कर्यो । बे जेणे एवा तथा मुनिर्जने विषे समर्थ एवा विजयानंद सूरि जयवंता वर्तता हता श्रने जे उज्ज्वल
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कल्प०
सुवो०
॥ १४२ ॥
मोटा गुणो व गणिने विषे श्रेष्ठ एवा श्री गौतम स्वामीनी साथै स्पर्द्धा करता हता, जे लब्धिना समुद्र हता, दहींना जेवो उज्ज्वल जेनो यश हतो ने जे शास्त्ररूपी समुद्रना पारने पहोंचेला हता. ६. वली खेद रहित किंनरना समूहोए गायन करातुं ने जन्म, जरा तथा मरणने नाश करनारुं ते गुरुनुं चारित्र सांजलीने जगतना जीवो युगलियानी जेम वांछानी पूर्णताने पामे बे. तेथी करीने ते जगतना जीवो श्रेष्ठ गुणगणे करीने सुंदर श्रात्मावाला गुणरागीनी हजार इछानी व्यग्रताने पामता हता. ७.
वी श्रीहीर विजय सूरिने बृहस्पतिने जेम सूर्य चंद्र हता तेम शांत एवा सोमविजय वाचकेन्द्र ने सत्कीर्त्तिवाला कीर्त्तिविजय ए नामे वे प्रधान ने शुभ शिष्य इता. छ. जे (कीर्त्ति - | विजय ) क्षमावानना सौभाग्य अने निर्मल जाग्यने जाणवाने कोण समर्थ बे ? छाने जगतने विषे जेनुं श्रद्भुत चारित्र कोना मनने आश्चर्य पमान्तुं नथी ? जेनी हस्तसिद्धिए मूर्ख शिरोमणि - |उने पंक्ति शिरोमणि कर्या बे ने जेना पादप्रसादे हमेशां चिंतामणि रत्ने करी ने भेदने शिथिल करी नाख्यो बे, जे बालपणथीज प्रसिद्ध महिमावाला हता, वैरागीउने विषे अग्रणी हता, वैयाकरणीउने विषे जे श्रेष्ठ हता, सामा पक्षना तार्किकोथी जे जीताय नहीं एवा हता, जे सिद्धांतरूपी समुद्रने मथन करवाने मंदराचल समान हता, जे कविनी कला कौशल्यनी कीर्त्तिनी उत्पत्तिवाला हता, जे निरंतर सर्वना उपर उपकार करवामां रसिक हता, जे संवेग ( वैराग्य ) ना समुद्र हता, जे विचाररत्नाकर नामे प्रश्नोत्तर ग्रंथ यदि अद्भुत शास्त्रोना बनावनार दता, जे अनेक शास्त्ररूपी समुद्रनुं शोधन करनारा हता ने जे हमेशां अप्रमत्त रहेता ढ्ता ते स्फुरायमान यती विशाल कीर्त्तिवाला पूज्य कीर्त्तिविजय वाचकना विनयविजय नामना शिष्ये कल्पसूत्रने विषे सुबोधिका ( नामनी टीका ) रची. ए-१०-११-१२. वली श्रा सुवोधिकाने पंमित, संविग्न तथा सहृदय महात्माउने विषे मुकुट समान श्री विमलहर्ष वाचकना वंशमां मुक्तामणि
प्रशस्तिः
॥ १४२ ॥
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SAMACROCKNORAMGHASAROK
समान, जीतेली ने बृहस्पतिनी बुद्धि जेणे एवा, सर्वत्र जेनी कीर्तिरूप कर्पूर प्रसार पामेलो ने एवा तथा शास्त्ररूपी कंचननी परीक्षामां कसोटी समान श्री नाव विजय वाचकें संशोधन करेली बे. १३-१४. संवत् १६५६ मा वर्षे ज्येष्ठ मासना शुक्ल पक्षनी द्वितीयाने दिवसे गुरुवारना रोज पुष्य नक्षत्रमा श्रा यत्न सफल (पूर्ण) थयो . १५. था विवृत्ति ( सुबोधिका ) करवामां श्री राम-31 विजय पंमितना शिष्य श्री विजयविबुक प्रमुखनी श्रन्यर्थना पण हेतुनूत जाणवी. १६. ज्यांसुधी!! पृथ्वीरूपी स्त्री पर्वतोना समूहरूपी श्रीफल वडे पूर्ण गर्न, चलायमान थता कामना समूहरूपी दर्जवाला, निषधगिरिरूपी कुंकुमथी श्रद्लुत तथा हिमगिरिथी शोजता एवा जंबूद्वीप ना-2 मना मंगल स्थालने धारण करे ने त्यांसुधी पंमितोने परिचित थयेली कल्पसूत्रनी सुबोधा नामे है वृत्ति वृद्धि पामो. १७. ज्यांसुधी जलना एकठा थता कल्लोलनी श्रेणीथी श्राकुल थयेली आकाश-18 गंगा अने दिग्हस्तीए उमामेल कमलने विषे रहेल पाणीना कणीयाश्री नाश पाम्यो श्रम जेनो एवं ज्योतिश्चक अनुक्रमे आकाश अने पृथ्वी पर कायम ब्रमण करे त्यांसुधा विजनोए थाश्रित करेली या कल्पसूत्रनी विवृत्ति वृद्धि पामो. ९०.
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R
कल्प
सुबो
पंक्ति .
शुद्ध
त्रक.
शशुध. काल हस्तिप्रनाण
अशुद्ध. तेवो
॥१३॥
महेलना
बसो
उत्तरकायु सागरोपम त्रेवीशमां महानंदा स्वप्ना घणा शाकायन
॥ शुद्धिपत्रक ॥ शुद्ध पृष्ठ. पंक्ति. कहप |
२ हस्तिप्रमाण |
३ एकसो पए उत्तरकार्य ४० १६ सागरोपमनी व १८ त्रेवीशमा देवानंदा स्वप्नां
६ए १५ शाकटायन
६ए .
३० वर्षर्नु
३२
३५
ECHATRNEGISTERIORNSRCISASARAGRECRUGReace
घणो
१२
गाममानां उद्यानिकाना माखसोनी पूजनिक कुष्टरोगवालो वैमुर्य पूर्वोन्यासश्री नीच श्वासोश्वास विचार्यु यारे श्वेतंबिका कोशांबी पान श्वासोश्वास सारखा श्रायुकर्म सार गौतमत्रवाला - खोचन
BREASORRECHINAGARIKAAGAMGANGANAGAR
महेलना गाममांडनां उद्यानिकानां माणसोनी पूजनीक कुष्ठरोगवालो वैडूर्य पूर्वाच्यासथी नीचे श्वासोवास विचार्यु त्यारे श्वेतांबिका कौशांबी पाग श्वासोवास सरखा श्रायुःकर्म सारा गौतमगोत्रवाला लोचज
२० अने ३० वर्षना २० अने ३० पूरी
इशान ३२
खममा श्राप कुन्दरुष्क शरीररमा तेजेनां इशान
१५
१
इंशान ऊरु
पए २७ स्वममा
60 २६ सात
३३५ कुन्कुरुष्क शरीरमां तेना ईशान १३०१३
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॥१४३॥
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Stocks
श्रथमां जे चित्रो नाखवामां श्रावेल बे तेमां पानांना नंबर अगाउनी श्रवृत्ति मुजब नखायेला बे, परंतु श्रा श्रवृत्तिमां केटलोएक सुधारो वधारो करवाथी पहेलां १० चित्रमां लखेल पानांना नंबर पछी वाकीनां चित्रमां लखेल पानांना नंबरमां नीचे मुजब फेरफार वे बे तो ते जगोए सुइ बंधु एने सुधारी सेवा विज्ञप्ति करवामां आवे बे. | चित्र नंबर.
शुरू. चित्र नंबर.
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४ | ३
२०
२१
२२
२३
२४
२५
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२७
२०
२ए
३२
३८
अशुद्ध.
५३
ए४
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५०
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६०
६१
६२
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७१
७३
५५ ४०
५६ ४१
५७ ४२
२७ ४३
७ ४४
६० ४५
६० ४६
६१ ४७
६२ ४८
६४ ४९
६४ ५०
६५ ५१
६० ५२
६० ५३
७१ ५४
७२ ५५
७३ ५६
१४ ५७
७६ ५८
अशुद्ध.
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११३
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________________ 500068800008 // सुबोधिका नामक कल्पसूत्रनी टीकार्नु गुजराती नाषांतर समाप्त // 58668888888888888888888888888888368 00000000000 Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay. Pablished by Bhanji Maya for Bhimsi Maneck, 225-231, Sackgalli, Mandvi, Bombay. Jain Education international For Private Personal use