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________________ दश दिवसमां निश्चे फले बे, तथा सूर्योदय वखते दी वेलुं स्वप्न तुरत निश्चे फले बे. दिवसमां दीवेल खप्ननी श्रेणी तेमज श्राधि, व्याधि तथा मलमूत्रादिकनी पी माथी उत्पन्न थलुं स्वप्न ए सर्व निरर्थक जाएबुं. धर्ममां रक्त (यासक्त), समधातुवालो, स्थिर चित्तवालो, जितेंद्रिय तथा दयालु माणस प्राये करीने स्वप्नयी प्रार्थित अर्थने साधे वे. खराब स्वप्न कोइने संजलाववुंज नहीं; सारुं स्वप्न गुरु या दिकने संजलावसुं; अने ते न होय तो गायना कानमां पण संजलाववुं. उत्तम स्वप्नने जोइ बुद्धिवान् माणसे सुबुं नहीं; केमके तेथी तेनुं फल मलतुं नथी, अने श्राखी रात्रि जिनेश्वर प्रजुनां स्तवनमांज गुंजारवी खराब स्वप्न जोइने फरीने पातुं सुइ जनुं, अने ते कोने कहेतुं पण नहीं; अने तेथी ते फलवंत यतुं नथी. जे माणस पहेलां अनिष्ट स्वप्नने जोइने पावलथी शुभ स्वप्न जुए बे, ते तेने (शुभ) फलदायक थाय बे ने एम परावर्ते जाणवुं. स्वप्नमां मनुष्य, सिंह, घोमो, हाथी, वृषन यने सिंहणथी युक्त एवा रथमां आरूढ थयेलो जे माणस जाय वे ते राजा थाय बे. स्वप्नमां घोमा, हाथी, वाहन, आसन, घर, निवसन यादिकनो जे अपहार ते, राजा तरफनी वीक तथा शोक करनारो, बंधुनो विरोध करनारो, तथा पैसानी हानि करनारो थाय बे. जे पुरुष सूर्यचंद्रनां संपूर्ण बिंबने गली जाय, ते गरीब होय तोपण सुवर्ण श्रने समुद्र सहित पृथ्वीने निश्चे मेलवे बे. प्रहरण, आभूषण, मणि, मोती, सोनुं, रूपुं तथा धातुर्जनुं जे दरण, ते धन ने मानने नाश करनाएं, तथा प्रायः जयंकर मरण करनारुं बे. सफेद हाथी पर बेठो थको नदीने कांठे जातनुं जोजन करे, ते जातिहीन होय तोपण धर्मरूपी धनने ग्रहण करतो थको याखी पृथ्वीने जोगवे. पोतानी स्त्रीना हरणथी धननो नाश थाय, पराजवयी क्लेश थाय, अने गोत्रनी स्त्रीना हरण तथा पराजवथी बंधुनो वधबंधन याय. सफेद सर्पथी जे माणस पोतानी जमणी जुजामां मंखाय, ते माणसने पांच रात्रिमां हजार सोनामोहोरो मले. जे माणसनी शय्या तथा पगरखांनुं दण स्वप्नमां थाय, तेनी स्त्री मृत्यु पामे, तथा तेना शरीरे अत्यंत पीमा थाय. जे माणस मनुष्यनां मस्तक, पग तथा हाथनुं स्वप्नमां जप करे वे, तेने अनुक्रमे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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