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॥ अथ प्रशस्तिः ॥
श्री वीर जिनेंद्रनी पट्टपरंपराने विषे कल्पद्रुम समान, सर्व इछितने श्रापनार, सुगंधीए करीने | खेंचेल बे पंमितरूपी जमराने जेणे एवा, शास्त्रना उत्कर्षथी सुंदर, स्फुरायमान यती धने विशाल बे कांति जेनी एवा, फलने यापनारा, देदीप्यमान मूलगुण वे जेना एवा, हमेशां अति सारा मनवाला, श्रीमान् छाने देवोथी पूजित श्रीहीर सूरीश्वर थया. १. जेणे दर वर्षे व मास सुधी समग्र पृथ्वीने विषे जीवने अजयदान आपवारूप पटना मिषथी पोतानो यशरूपी पटह वगमाव्यो दतो अने जेना मुखथी शुन धर्मोपदेश सांजलीने अधर्मरसिक, म्लेछोनो अग्रेसर घने निर्मल मति - | वालो अकबर बादशाह धर्मने पाम्यो हतो. २. तेनी पाटरूपी उंचा उदयाचल पर्वतना शिखर पर स्फुरायमान किरणवाला सूर्य समान तथा जव्य लोकोने इच्छित वस्तु श्रापवाने चिंतामणि समान श्रीविजयसेन सूरि थया. जेना शुत्र गुणोथीज जाणे होय तेम स्वछ मेघथी वींटायेलो पृथ्वीनो गोलो जेनी कीर्त्तिरूपी स्त्रीने रमवा माटे दडो होय तेम शोजतो हतो. ३. जे अकबर बादशाहनी सजामां वाणीना वैजव वडे वादीउने जीतीने शौर्यथी श्राश्वर्य पमामेली अने लक्ष्मीथी परिवृत | थयेली जयश्री कन्याने वर्या हता, तेटलामाटे हे मित्र ! मनोहर तेजवाला था ( श्री विजयसेन सूरि ) नी वृद्ध एवी कीर्त्तिरूपी सती स्त्री पतिना अपमानथी शंकित मनवाली थइने अहींथी दिगन्त सुधी चाली गइ तेमां आश्चर्य शुं बे ? ४. तेनी पाटे बहु सूरिथी स्तुत्य, मुनिर्जना नेता अने स्वच्छ चित्तवाला श्री विजयतिलक सूरि थया. शिवनुं दास्य, बरफ, हंस ने हारना जेवी उज्ज्वल शोजा बे जेनी एवी तथा स्फूर्त्तिवाली जेनी कीर्त्ति त्रण जगतमां वर्तती हती. ए. तेनी पाटे राजार्जना समूह वडे जेनां चरणकमल स्तुति करायेलां बे एवा, दुःखनो समूह नाश कर्यो । बे जेणे एवा तथा मुनिर्जने विषे समर्थ एवा विजयानंद सूरि जयवंता वर्तता हता श्रने जे उज्ज्वल
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