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कल्प०
सुवो०
॥ १४२ ॥
मोटा गुणो व गणिने विषे श्रेष्ठ एवा श्री गौतम स्वामीनी साथै स्पर्द्धा करता हता, जे लब्धिना समुद्र हता, दहींना जेवो उज्ज्वल जेनो यश हतो ने जे शास्त्ररूपी समुद्रना पारने पहोंचेला हता. ६. वली खेद रहित किंनरना समूहोए गायन करातुं ने जन्म, जरा तथा मरणने नाश करनारुं ते गुरुनुं चारित्र सांजलीने जगतना जीवो युगलियानी जेम वांछानी पूर्णताने पामे बे. तेथी करीने ते जगतना जीवो श्रेष्ठ गुणगणे करीने सुंदर श्रात्मावाला गुणरागीनी हजार इछानी व्यग्रताने पामता हता. ७.
वी श्रीहीर विजय सूरिने बृहस्पतिने जेम सूर्य चंद्र हता तेम शांत एवा सोमविजय वाचकेन्द्र ने सत्कीर्त्तिवाला कीर्त्तिविजय ए नामे वे प्रधान ने शुभ शिष्य इता. छ. जे (कीर्त्ति - | विजय ) क्षमावानना सौभाग्य अने निर्मल जाग्यने जाणवाने कोण समर्थ बे ? छाने जगतने विषे जेनुं श्रद्भुत चारित्र कोना मनने आश्चर्य पमान्तुं नथी ? जेनी हस्तसिद्धिए मूर्ख शिरोमणि - |उने पंक्ति शिरोमणि कर्या बे ने जेना पादप्रसादे हमेशां चिंतामणि रत्ने करी ने भेदने शिथिल करी नाख्यो बे, जे बालपणथीज प्रसिद्ध महिमावाला हता, वैरागीउने विषे अग्रणी हता, वैयाकरणीउने विषे जे श्रेष्ठ हता, सामा पक्षना तार्किकोथी जे जीताय नहीं एवा हता, जे सिद्धांतरूपी समुद्रने मथन करवाने मंदराचल समान हता, जे कविनी कला कौशल्यनी कीर्त्तिनी उत्पत्तिवाला हता, जे निरंतर सर्वना उपर उपकार करवामां रसिक हता, जे संवेग ( वैराग्य ) ना समुद्र हता, जे विचाररत्नाकर नामे प्रश्नोत्तर ग्रंथ यदि अद्भुत शास्त्रोना बनावनार दता, जे अनेक शास्त्ररूपी समुद्रनुं शोधन करनारा हता ने जे हमेशां अप्रमत्त रहेता ढ्ता ते स्फुरायमान यती विशाल कीर्त्तिवाला पूज्य कीर्त्तिविजय वाचकना विनयविजय नामना शिष्ये कल्पसूत्रने विषे सुबोधिका ( नामनी टीका ) रची. ए-१०-११-१२. वली श्रा सुवोधिकाने पंमित, संविग्न तथा सहृदय महात्माउने विषे मुकुट समान श्री विमलहर्ष वाचकना वंशमां मुक्तामणि
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प्रशस्तिः
॥ १४२ ॥
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