SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 411
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SAMACROCKNORAMGHASAROK समान, जीतेली ने बृहस्पतिनी बुद्धि जेणे एवा, सर्वत्र जेनी कीर्तिरूप कर्पूर प्रसार पामेलो ने एवा तथा शास्त्ररूपी कंचननी परीक्षामां कसोटी समान श्री नाव विजय वाचकें संशोधन करेली बे. १३-१४. संवत् १६५६ मा वर्षे ज्येष्ठ मासना शुक्ल पक्षनी द्वितीयाने दिवसे गुरुवारना रोज पुष्य नक्षत्रमा श्रा यत्न सफल (पूर्ण) थयो . १५. था विवृत्ति ( सुबोधिका ) करवामां श्री राम-31 विजय पंमितना शिष्य श्री विजयविबुक प्रमुखनी श्रन्यर्थना पण हेतुनूत जाणवी. १६. ज्यांसुधी!! पृथ्वीरूपी स्त्री पर्वतोना समूहरूपी श्रीफल वडे पूर्ण गर्न, चलायमान थता कामना समूहरूपी दर्जवाला, निषधगिरिरूपी कुंकुमथी श्रद्लुत तथा हिमगिरिथी शोजता एवा जंबूद्वीप ना-2 मना मंगल स्थालने धारण करे ने त्यांसुधी पंमितोने परिचित थयेली कल्पसूत्रनी सुबोधा नामे है वृत्ति वृद्धि पामो. १७. ज्यांसुधी जलना एकठा थता कल्लोलनी श्रेणीथी श्राकुल थयेली आकाश-18 गंगा अने दिग्हस्तीए उमामेल कमलने विषे रहेल पाणीना कणीयाश्री नाश पाम्यो श्रम जेनो एवं ज्योतिश्चक अनुक्रमे आकाश अने पृथ्वी पर कायम ब्रमण करे त्यांसुधा विजनोए थाश्रित करेली या कल्पसूत्रनी विवृत्ति वृद्धि पामो. ९०. lain Education international For Private Personal Use Only www.iainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy