SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लय पामे बे; एटले ते घटादिक वस्तु नाश पाम्ये उते अथवा व्यवहित होते ते तेना उपयोगपणाए करीने जीव पण नाश पामे बे, अने बीजा उपयोगपणाए करीने पालो उत्पन्न थाय अथवा सामान्यरूपपणाए करीने ते रहे , थने तेथी करीने प्रेत्यसंज्ञा नथी, एटखे तेने पहेलांनी घटादिकना उपयोगरूप संझा रहेती नथी; केमके वर्तमान उपयोगपणाथी तेनी घटादिक संज्ञा नाश पामेली बे. वली था श्रात्मा ज्ञानमय बे, अने जे दम, दान अने दया ए त्रणे दकार जाणे ते जीव. वली विद्यमान नोक्ता जेनो एवं श्रा शरीर चावल थादिकनी पेठे नोग्यपणाए करीने ने एटले चावल जेम नोग्य जे तो तेनो नोक्ता पण ने, तेम शरीर नोग्य ने अने तेनो लोक्ता विद्यहै मान ने इत्यादि अनुमाने करीने पण जीव ले. तेमज वली पूधमां जेम घी, तलमां तेल, काष्ठमा अग्नि, पुष्पमा सुगंध तथा चंकांतमा अमृत रहे , तेम आ आत्मा पण शरीरमा रहे, अने ते शरीरथी जूदो बे. एवी रीतनां प्रजुनां वचनथी नाश थयेल डे संदेह जेमनो एवा इंजनूतिए पांचसो शिष्योना परिवार सहित प्रनु पासे दीक्षा लीधी, अने तेज वखते "उपन्ने श्वा, विगमेश्वा अने - धुवे वा” ए त्रिपदी प्रजुना मुखथी पामीने तेणे छादशांगीनी रचना करी ॥इति प्रथम गणधर ॥ हवे तेना बीजा जाइ अग्निजूतिए पोताना लाग्ने दीक्षित थयेलो सांजलीने विचार्यु के अरे ! कदापि पर्वत पीगले, बरफनो समूह सलगी उठे, अग्नि शीतल थाय अने वायु स्थिर थाय ए सर्व & संजवे, पण मारो जाइ हारे ए संजवे नहीं, तेटला माटे घणी अश्रझावाला तेणे लोकोने पूज्यु. त्यार पड़ी तेणे निश्चय जाएये बते मनमा विचार कर्यो के त्यां जश्ने ते धूर्तने जीतीने हुं मारा नाश्ने । पाडो वाली श्रावू; एम विचारी ते पण उतावलो प्रजुनी सन्मुख श्राव्यो; त्यारे प्रजुए तेने पण तेनां 3 गोत्र विगेरे सहित एवा नामथी वोलाव्यो, तथा तेना मनमा रहेला संदेहने प्रगट करीने प्रजुए ४कयु के हे गौतमगोत्री अग्निनूति ! तारा मनमां कर्मनो शो संदेह ? अथवा वेदना तत्वार्थने तुं प्रगट रीते जाणतो नथी ? ते था प्रमाणे . " पुरुष एवेदं नि सर्वं यन्तं यच्च जाव्यं इत्यादि। Jain Education initiational For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy