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________________ कल्प० ॥ ८६ ॥ Jain Educatio या पदनो तारा मनमां एवो अर्थ जासे बे के ( अहीं " ग्निं " ए वाक्यना अलंकार माटे बे.) जे छातीत कालमां थयेलुं बे, तथा जे श्रागामी कालमां थवानुं बे, ते सघलुं “पुरुष एव" यात्माज बे वहीं एवकार ए कर्म, ईश्वर या दिकना निषेध माटे बे. या वचनथी जे मनुष्य, देव, तिर्यंच, पर्वत, पृथ्वी यादिक वस्तुओ देखाय बे, ते सघलुं यात्माज बे, अने तेथी कर्मनो निषेध प्रगटज बे. वली श्रमूर्त एवा श्रात्माने मूर्त एवां कर्म वडे अनुग्रह अने उपघात शी रीते संजवे ? जेम आकाशने चंदन आदिकधी शोजित करी शकातुं नथी, अथवा तेने तलवार यादिकथी कापी शकातुं पण नथी, माटे कर्म बेज नहीं, ए प्रमाणे तारा मनमां बे, पण हे अग्निभूति ! ए अर्थ युक्त नथी, कारण के वेदनां ते पदो तो पुरुपनी स्तुतिनां बे, केमके वेदनां पदो ऋण प्रकारनां बे; तेमां केटलांक विधि प्रतिपादन करनारां बे, जेमके | स्वर्गनी इछा करनार प्राणीए अग्निहोत्र कर इत्यादि, वली केटलांक पदो अनुवाद सूचवनारांबे, जेमके बार मासनो एक संवत्सर कदेवाय इत्यादि अने केटलॉक पदो स्तुतिरूप बे, जेमके या उपरनुंज तारा संदेहवालुं पद इत्यादि, माटे ए उपर कहेला पदर्थी पुरुषनो महिमा देखामी खाप्यो बे, परंतु कर्मादिनो जाव कर्यो नथी. जेमके "जले विष्णुः स्थले विष्णुः, विष्णुः पर्वतमस्तके ॥ सर्वभूतमयो विष्णु, |स्तस्माद्विष्णुमयं जगत् ॥ १॥ एटले जलमां विष्णु, स्थलमां विष्णु ने पर्वतना शिखर उपर पण विष्णु बे, विष्णु सर्व भूतमय बे, माटे या जगतज विष्णुमय ठे. या वाक्य थी विष्णुनो महिमा कहेलो बे, पण अन्य वस्तुनो जाव कह्यो नयी. वली अमूर्त एवा आत्माने मूर्तिवंत एवां कर्म वडे अनुग्रह ने उपघात केम थाय? ते कहेतुं पण युक्त बे, कारण के मूर्तिवंत एवा मद्यादिकथी अमूर्त एवा ज्ञाननो पण उपघात थाय बे, अने ब्राह्मी श्रादिक औषधिथी अनुग्रह देखायज ठे वली जो कर्म न होय, तो एक सुखी, बीजो दुःखी, एक शेठ, बीजो चाकर इत्यादि जगतनी प्रत्यक्ष विचित्रता केम संजवे ? प्रजुनां ते वचनो सांजलीने श्रग्निभूतिनो संशय पण दूर थयो, अने तेणे पण दीक्षा लीधी ॥ इति द्वितीय गणधर ॥ हवे वायुभूति ते बन्नेने दीक्षित थयेला सांजलीने विचार्य के जे प्रजुना इंद्रभूति ने अग्नि For Private & Personal Use Only सुबो० ॥ ८६ ॥ jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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