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________________ नूति पण शिष्यो थया, ते प्रजु तो मारे पण पूजनीकज बे; माटे तेमनी पासे हुं पण जाउं अने मारो संशय पू. एम विचारी ते पण प्रनु पासे आव्यो, श्रने एवी रीते सघला पण श्राव्या, अने। प्रजुए पण सर्वेने प्रतिबोध पमाड्यो. तेनो क्रम या प्रमाणे बे. है| हवे "तजीव तरीर" एटले तेज जीव अने तेज शरीर, तेने विषे संदेहवाला वायुनूतिने प्रजुए जेवं हतुं तेवं कडं के तुं पण वेदना अर्थ जाणतो नथी ? केमके "विज्ञानघन एवैतेच्यो । ४ जूतेभ्यः” इत्यादि वेदपदोए करीने पंच नूतथी जीव पृथक् नथी एम प्रतीति थाय . तथा "सत्येन है, लन्यस्तपसा ह्येष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुको यं पश्यति धीरा यतयः संयतात्मान इत्यादि है हवे ते पदोनो अर्थ था प्रमाणे बे. श्रा ज्योतिमय शुद्ध थात्मा सत्य, तप अने ब्रह्मचर्य वडे मेलवाय एटले जणाय . था वेदपदोथी नूतो थकी पृथक् एवा श्रात्मानी प्रतीति थाय डे; माटे तने संदेद: डे के जे आशरीर के तेज यात्मा बे, के कोबीजो जे ? पण ते अयोग्य , केमके “विज्ञानघन" इत्यादि पदोथी श्रमे कहेला प्रकारे करीने श्रात्मानी सत्ता एटले होवापणुंप्रगटज ॥ इति तृतीय गणधर ॥ है हवे पंच नूतमां संदेहवाला एवा व्यक्त नामना पंमितने प्रजुए जेवं हतुं तेवू कडं के तुं पण वेदना अर्थने जाणतो नथी? "येन स्वप्नोपमं वै सकलं, इत्येष ब्रह्मविधिरंजसा विज्ञेयः" था पदनो तारा मनमां एवो अर्थ जासे डे के खरेखर पृथ्वी आदिक था सघj स्वप्न सरखं एटले असत् , हूँ ४ श्रने या वेदवचनथी पहेला तो पंच नूतोनो अनाव देखा आवे बे; वली "पृथ्वी देवता है पापो देवता” इत्यादि पदथी नूतसत्ता एटले नूतोनु होवापणुंजणा आवे बे; माटे ते बाबतनो तारा मनमां संदेह बे, पण ते अयुक्त बे; केमके "स्वप्नोपमं वैसकलं" इत्यादि पदो अध्यात्म संबंधी चिंत-3 वनमां कनक, कामिनी थादिना संयोगने थनित्यपणुं सूचवनारांबे, पण कंश ते पंच नूतोनो निषेध सूचवनारां नथी॥ इति चतुर्थ गणधर ॥ | पली "जे जेवो ते तेवो” एवी रीतना संदेहवाला सुधर्म नामना पंमितने प्रजुए जेवं हतुं तेवू Jan Education intenziona For Private Personal Use Only
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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