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________________ स्त्रीना संगमने विषे उत्कंगवालु श्रने आसक्त थयेनु ,केमके जे स्त्री रागीने विषे पण राग रहित , ते स्त्रीउने कोण सेवे ? माटे मुक्तिरूपी स्त्री के जे विरागीने विषे रागवाली , तेनी हुँ क्या करूं 15 81 ते वखते राजीमती "हा देव ! था शुं थयुं ?" एम कही मूळ पामी. पडी सखी वडे चंदन-18 रसथी आश्वासन करायेली ते मुश्केलीथी शुधिमां थावी, त्यारे मोटे खरेथी रमवा लागी के हे है जादवकुलमा सूर्य समान ! तथा हे निरुपमझानवाला ! तथा हे जगतना शरणरूप, तथा हे करु णाकर स्वामिन् ! मने बोमीने आप क्या चाव्या ? पनी पोताना हृदयने कहेवा लागी के अरे ! धृष्ट, निष्ठुर, निर्लङ हृदय ! ज्यारे आपणा स्वामी श्रन्यत्र रागवाला थया ने त्यारे हजु पण तुं जीवितने : शुं धारण करे ? वली निःश्वास नाखीने पोताना स्वामीने उपालंज सहित कहेवा लागी के हे| धूर्त ! जो तमे सर्व सिझोए जोगवेली गणिकामां रक्त थया हता, तो आवी रीतना विवाहना श्रारंजथी तमे मने शामाटे विमंबना करी ? त्यारे सखीए तेणीने रोषयी कह्यु के हे सखि ! लोकप्रसिझ एक वार्ता सांजल, के जे श्याम होय ते जाग्येज सरल होय ने कदापि होय तो विधिए नूली जश्ने तेम कर्यु होवु जोइए. आवा प्रीतिरहितने विषे हे प्रिय सखी ! शुं प्रीति-15 नाव करे ? प्रीतिने विषे तत्पर एवो कोइ वीजो जर्तार तारा माटे शोधी काढीगुं. ते सांजली राजी-₹ मती पोताना बन्ने कानने ढांकीने कहेवा लागी के हे सखी ! तमे मने नहीं संजलाववा लायक है नाएवचन केम संजलावो बो ? जो सूर्य कदाच पश्चिम दिशामां नगे, तोपण हुं श्री नेमिकुमारने मूकीने बीजो नर्तार नहीं करूं. वली पण नेमिनाथने कहेवा लागी के हे जगतना अधीश !व्रतनी/3 छावाला तमे घेर श्रावेला एवा याचकोने तेजनी श्छा उपरांत थापो बो, पण मागणी करती|| एवी जे हुं, तेणीए तो हाथ उपर श्रापनो हाथ पण मेलव्यो नहीं. हवे विरक्त राजीमती कहेवा है। लागी के हे विजु ! जो के आपनो श्रा हाथ था लग्नमहोत्सवमां तो मारा हाथ पर नहीं थाव्यो, तोपण मारा दीदासमयना महोत्सवमां ते हाथ मारा शिर पर होजो. JainEducation international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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