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कल्प
सुबोग
॥११॥
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लाग्यो भने लोकमां कहेवा लाग्यो के "श्ररएयमां कोश्क जगोए शिलानी उपर में सिंहलग्न ६ चितमु हतुं, सूती वखते ते जूंसी नाख्यु नथी एम याद श्राव्याथी लग्मनी नक्तिथी त्यां जतां सिंहने है तेनी उपर बेठेलो जोश्ने पण तेनी नीचे हाथ नाखीने लग्न जूंसी नाख्यु, तेश्री संतुष्ट थयेलो है। सिंहसननो अधिपति सूर्य प्रत्यक्ष थश्ने मने पोताना मंगलमा लइ गयो अने ग्रहनो सर्व चार (चाल) मने देखाड्यो.” एक दिवसे वराहे राजानी आगल कह्यु के "श्रा करेल कुमालाना मध्य 8 जागमां बावन पलना प्रमाणवालो मत्स्य (आकाशमांथी) पमशे.” त्यारे नबाहु स्वामीए का | के "मार्गमां अर्ध पल शोषार जवाथी सामी एकावन पलना प्रमाणनो अने कुंमालाने मे पडशे." ते प्रमाणे वात मली. वली एक दिवसे राजाने पुत्र श्रावतां वराहे तेनुं एकसो वर्षनुं श्रायुष्य कां ?
अने "श्रा (नाबाहु ) व्यवहारने जाणनारा नथी के राजाना पुत्रने जोवा पण श्राव्या नहीं" ए॥ हूँ प्रमाणे जैनोनी तेणे निंदा करी त्यारे (नाबाहु स्वामीए)सातमे दिवसे बिलामीथी तेनुं मृत्यु थशे 8
एम कडं. (अहीं किरणावलीकारे "सप्तनिर्दिनैः" ने बदसे सप्तदिनैः एप्रमाणे आखो प्रयोग मूक्यो है। P ते संख्याए करीने समाहार हिट थवाथी वैयाकरणीए विचारवा लायक . ) राजाए शहे-है रमांधी सर्व बिलामीने काढी मकावी तोपण सातमे दिवसे धावता बालकनी उपर बिलामीना
श्राकारना मुखवालो श्रागली पमवाथी ते बालक मरण पाम्यु. तेथी गुरुनी प्रशंसा थर अने 81 ₹ वराह मिहिरनी सर्वत्र निंदा थ. त्यारपडी क्रोधथी मरीने ते व्यंतर थयो. मरकी आदिकथी संघने र
उपजव करता ते व्यंतरने उपसर्गहर स्तोत्र करीने गुरुए पूर कर्यो. कडुं ने के “करुणाने विषे तत्पर है।
एवा जेणे उपसर्गहर स्तोत्र करीने संघनुं कल्याण कयु ते जज्बाहु गुरु जयवंता वर्तो.". 31 माढर गोत्रवाला स्थविर आर्यसंनूति विजयने गौतम गोत्रवाला स्थविर आर्यस्थूलना ॥१७॥ शिष्य हता. स्थूलनअनो संबंध आ प्रमाणे डे-पाटलीपुरमा शकटास मंत्रीना पुत्र श्री स्थूलना बार वर्ष कोशा नामे वेश्याने घेर रह्या हता. वररुचि ब्राह्मणना प्रयोगथी तेना पिता, मृत्यु
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