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दोधो, पण तेवो योग्य कोई पुरुष नहीं जोवाथी परतीर्थमा उपयोग दीघे बते राजगृहमा यज्ञ है| है करता शय्यंनव जट्ट जोवामां श्राव्या. पनी ( तेमनी प्रेरणाथी गयेसा) बे साधुए त्यां जश्ने |
"अहो कष्टमहो कष्टं तत्त्वं न ज्ञायते परं" एटसे अहो था तो कष्टज, कष्टज, श्रेष्ठ तत्व तो जणातंज नथी. ए प्रमाणे वचन संजसाव्यु.पळीखाथी बीवमावेसा तेना ब्राह्मण गुरुए देखामेली यस्तंजनी नीचे रहेली श्री शांतिनाथनी प्रतिमाना दर्शनथी ते प्रतिबोध पाम्या थने (प्रजव खामी पासे) दीक्षा लीधी. पनी प्रजव प्रजु श्री शय्यंनवने पोतानी पाटे स्थापीने स्वर्गे गया. ए प्रमाणे प्रजव प्रचुन चरित्र जाणवं. | त्यारपती श्री शय्यंजवे पण गर्न सहित तजी दीघेसी पोतानी स्त्रीए जन्म आपेल मनक नामना ६ पुत्रना हितने माटे श्री दशवैकालिक रच्युं श्रने अनुक्रमे श्री यशोजने पोतानी पाटे स्थापीने है श्री वीर प्रजुथी अगणुं वर्षे ते स्वर्गे गया. | वछ गोत्रवाला मनक पिता स्थविर आर्यशय्यंजवने तुंगिकायन गोत्रवाला स्थविर आर्ययशोजन शिष्य हता. श्री यशोजन सूरि पण श्री नवाहु अने संजूतिविजय नामे वे शिष्यने पोतानी | पाटे स्थापीने स्वर्गलोके गया.
हवे श्रहीं प्रथम संक्षिप्त वाचना वडे स्थविरावली कहे जे. संक्षिप्त वाचना वझे श्रार्ययशोजपथी। है आगल आ प्रमाणे स्थविरावली कही बे. तुंगिकायन गोत्रवाला स्थविर आर्ययशोज ने बे
स्थविर शिष्य हता. एक माढर गोत्रवाला स्थविर संचूति विजय अने वीजा प्राचीन गोत्रवासा स्थविर आर्यनप्रवाहु. श्री यशोजनी पाटे श्री संजूति विजय श्रने श्री नावाहु नामे वे पट्ट-5
धर थया. तेमां श्री जवाहुनो संबंध था प्रमाणे -प्रतिष्ठानपुरमां वराहमिहिर अने जवाहु है नामे बे ब्राह्मणोए दीक्षा लीधी. तेमां नजबाहुने आचार्यपद आपवाथी गुस्से थयो थको वराह है।
ब्राह्मणनो वेष ग्रहण करीने वाराहीसंहिता बनावीने निमित्त जोवा वमे आजीविका चलाववा
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