________________
AR
कल्प
चोरी करवाने श्रावेला चारसो ने नवाणुं चोरना परिवारवाला प्रनवने पण प्रतिबोध पमाड्यो.|| सो.
६ प्रजाते पांचसो चोर, श्राव स्त्री, ते स्त्रीउनां मावाप अने पोतानां मावापनी साथे पोते पांचसो ॥११॥
द सतावीशमा एवा श्री जंबूस्वामीए नवाणुं करोग सोनैया तजीने दीक्षा लीधी, अनुक्रमे केवली है थया अने सोल वर्ष गृहस्थपणामां, वीश वर्ष उद्मस्थपणामां श्रने चुमालीश वर्ष केवलीपणामां एवी
रीते सर्व श्रायु एंशी वर्षतुं पालीने श्री प्रनवस्वामीने पोतानी पाटे स्थापीने मोदे गया. अहीं कवि घटना करे ने के "जंबूखामी समान को कोटवाल थयो नथी श्रने थशे पण नहीं के जेणे || चोरोने पण मोक्षमार्ग वाहक साधु बनाव्या. प्रनव प्रजु पण जयवंता वर्तों के जेणे चोरी थी। धनने हरतां अमूख्य, चोरीथी हराय नहीं एवं अने अद्भुत एवं रत्नत्रितयं मेलव्यु.”
श्री वीर प्रजना निर्वाण पनी पाठ वर्षे गौतमखामी, वीश वर्षे सधर्माखामी ने चोसठ वर्षे जंबूस्वामी मोदे गया. त्यारपड़ी दश वस्तु विछेद गइ. मनःपर्यवज्ञान १, परमावधि के जेना 8
उत्पन्न थया पठी एक अंतर्मुहूर्त्तनी अंदर केवलज्ञाननी उत्पत्ति थाय २, पुलाकलब्धि के 8 हूँ जेथी चक्रवर्तीना सैन्यने पण चूर्ण करवाने शक्तिमान थाय ३, आहारक शरीरलब्धि ४, रूपक
श्रेणि ५, उपशमश्रेणि ६, जिनकल्प ७, संजमत्रिक ( परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय अने । यथाख्यात चारित्र ) , केवलज्ञान ए अने मोक्षमार्ग १७. अहीं पण कवि कहे जे के "महामुनि जंबूस्वामीनुं सौलाग्य लोकोत्तर डे के जे पतिने पामीने मुक्तिरूपी स्त्री (जरतदेत्रमाथी) हजु । पण बीजा स्वामीने श्वती नथी.” है| काश्यप गोत्रवाला स्थविर आर्यजंबूने कात्यायन गोत्रवाला स्थविर आर्यप्रनव शिष्य थया.||"
|| ॥११॥ कात्यायन गोत्रवाला स्थविर श्रार्यप्रनवने व गोत्रवाला मनकपिता स्थविर आर्यशय्यंजव शिष्य है। जथया. एक दिवसे प्रजव प्रजुए पोतानी पाटे स्थापवाने माटे पोताना गणमां श्रने संघमा उपयोग
१ज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप रत्नत्रयी.
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org