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________________ निग्रंथ साधु विहार करे ले ते सर्वे आर्यसुधर्मा अणगारना शिष्यसंतान जाणवा. बाकीना है गणधरो शिष्यसंतान रहित , केमके पोतपोताना मरणकाले पोतपोताना गण सुधर्मास्वामीने सोपीने ते मोके गया ले. कांबे के-"सर्वे (गणधरो) समस्त लब्धियी संपन्न, वजषन संघयणवाला अने समचतुरस्र संस्थानवाला एक मासना पादोपगमने मोद पाम्या बे.” | श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रनु काश्यप गोत्रवाला हता. ते काश्यप गोत्रवाला श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने अग्निवैश्यायन गोत्रवाला आर्यसुधर्मा स्थविर शिष्य हता. श्री वीर प्रजुनी|2 पाटे श्री सुधर्मास्वामी पांचमा गणधर हता. तेनुं स्वरूप श्रा प्रमाणे जाणवू. कुहाग सन्निवेशमा धम्मिल नामे ब्राह्मणने नदिला नामे स्त्री हती. तेमना पुत्रे (सुधर्मास्वामीए) चौद विद्याना पारंगामी थश्ने पचास वर्षने अंते दीदा लीधी अने त्रीश वर्ष सुधी वीर प्रजुनी सेवा करी. वीर प्रजुना निर्वाण पली बार वर्षने अंते एटले जन्मथीबाणुं वर्षने अंते तेमने केवलज्ञान उत्पन्न प्रथयुं. त्यारपती श्राठ वर्ष सुधी केवलीपणुं पालीने सो वर्षतुं आयुष्य पूर्ण करी पोतानी पाटे जंबूखामीने स्थापीने मोदे गया. | अग्निवैश्यायन गोत्रवाला स्थविर श्रार्यसुधर्माने काश्यप गोत्रवाला थार्यजम्बू नामे स्थविर * शिष्य थया. ते श्री जंबूस्वामीनुं स्वरूप (चरित्र) या प्रमाणे जाणवू. राजगृह नगरमां झपन है अने धारिणीना पुत्र पांचमा देवलोकथी च्यवेला जंबू नामे श्री सुधर्मास्वामी पासे धर्म सांज-12 सवापूर्वक शीले अने सम्यक्त्व पाम्या बतां पण माता पिताना दृढ आग्रहने वश थश्ने आठ कन्या परएया, पण तेउनी स्नेह युक्त वाणीथी ते मोह पाम्या नहीं, कारण के “सम्यक्त्व अने ६ है शीलरूप बे तुंबमां के जेना वझे नवरूपी समुन ( सुखे) तराय बे, ते वे तुंबमांने धारण कर-1 नार जंबू मुनि स्त्रीरूपी नदीमां केवी रीते बूमे ?" लग्ननीज रात्रिए ते स्त्रीने प्रतिबोध देतां | १ सर्वश्री ब्रह्मचर्य उच्चर्या बतां. SARANGACALCALCULARLSEXGARLSROGRESCANNX Jain Education international For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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