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कल्प० उनालानो प्रथम मास एटले फाल्गुन, तेना शुक्लपक्षमां कालगत थया डे एवा काश्यप गोत्रवाला हूँ
आर्यहस्तीने हुँ वांउंबु. ६. शीललब्धियी संपन्न अने जेना दीदामहोत्सवमां देवोए जेमना ॥१५॥
उपर श्रेष्ठ उत्तम बत्र धारण कयुं हतुं एवा सुव्रत गोत्रवाला थार्यधर्मने वांउं. . काश्यप गोत्र-2 वाला श्रार्यहस्तीने तथा मोद साधक आर्यधर्मने वांडं बुं तेमज काश्यप गोत्रवाला आर्यसिंहने । तथा काश्यप गोत्रवाला आर्यधर्मने पण वांई बु. ७. तेमने मस्तक वडे वांदीने स्थिर सत्त्व, चारित्र अने ज्ञानर्थ। संपन्न एवा गौतम गोत्रवाला स्थविर श्रायजंबूने वाइंबुं. ए. मधुर एवा सरलपणाए (मायाना त्यागे) करीने संपन्न तथा झान, दर्शन अने चारित्रे करीने युक्त एवा काश्यप गोत्र-2 वाला स्थविर नंदितने पण वांउंडं. १०.त्यारपती स्थिर चारित्रवाला अने उत्तम सम्यक्त्व अने सत्त्वथी।
युक्त एवा माढर गोत्रवाला देवर्डिगणि क्षमाश्रमणने वांउं बु. ११. त्यारपली श्रनुयोगना धारक,8 हूँ धीर, मतिना सागर अने महा सत्त्ववंत एवा व गोत्रवाला स्थिरगुप्त दमाश्रमणने वाउं बु. १५. है है त्यारपबी झान, दर्शन श्रने चारित्रने विषे सुस्थित, गुणथी मोटा अने गुणवंत एवा स्थविर कुमारधर्म गणिने वांडं बु. १३. सूत्रार्थरूप रत्नथी नरेला तथा क्षमा, दमे अने मार्दव गुणोए करीने
संपन्न एवा काश्यप गोत्रवाला देवर्षि क्षमाश्रमणने वांई बु. १४. ₹ एवी रीते जगद्गुरु नहारक श्री हीरविजय सूरीश्वरना शिष्यरत्न महोपाध्याय श्री कीर्ति विजय है।
गणिना शिष्योपाध्याय श्री विनयविजय गणिए रचेली श्री कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टीकामां । श्रामुं व्याख्यान समाप्त थयु तेमज स्थविरावली नामे आ बीजो अधिकार पण पूर्ण थयो.श्रीरस्तु.
॥अथ नवमं व्याख्यानं प्रारभ्यते॥ हवे सामाचारीरूप त्रीजी वाचना कहेतां प्रथम पर्युषणा क्यारे करवी ते कहे .
॥१३॥ १ ते कालने विषे थने ते समयने विषे वर्षाकालना एक मास अने वीश दिवस गया बाद १ "मिनमद्दवसंपन्नं"एनो अर्थ टीकाकारे "मृदुना मधुरेण मार्दवेन मायात्यागेन संपन्नम्"एवो को बे. २इंद्रियोने दमवी ते.
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