SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्प० ॥ ५८ ॥ मुक्त कराय बे. वली तमो मान एटले रस अने धान्यना विषयरूप, तथा उन्मान एटले जोखाय ते, ते सघलामां वधारो करो; अने तेम करीने या क्षत्रियकुंरुग्राम नामना नगरने अंदरथी अने बहारथी पण तमे अत्यंत शोभायुक्त करो. ते नगरने केवी रीते शोभायुक्त करो ? ते हवे हे बे. सुगंधी जलनो ढंटकाव करीने तेथी यासिक्त करो, तथा कचरो विगेरे दूर करो तथा बाप आदिकथी लींपावो. वली केवुं करो? तो के शृंगाटक कदेतां त्रण खुणावालां स्थानको त्रिक कहेतां ज्यां त्रण मार्गो नेगा थाय एवां स्थानको, चतुष्क कहेतां ज्यां चार मार्गो नेगा याय एवां स्थानको चत्वर कहेतां ज्यां अनेक मार्गों जेगा थाय एवां स्थानको, चतुर्मुख कक्षेतां देवालय यादिक, | महापथ कहेतां राजमार्ग, पंथ कहेतां सामान्य मार्गो, एटलां स्थानकोमां पाणीए करीने सिंचेला, थने तेथी करीनेज पवित्र तथा कचरो विगेरे दूर करवायी शोजायुक्त करेला, एवा जे रथ्यांतर कहेतां मार्गना मध्यजागो तथा आपणवीथि कहेतां दुकानोना मार्गो अर्थात् बजारो, ते बे जेनी अंदर एवं. तथा वली ते नगर केवुं ? तो के मंच कतां महोत्सव जोवा माटे लोकोए वेसवा | माटे करेला ऊरुखायो, तथा यतिमंच कहेतां तेथ्योनी पण उपर करेल ऊरुखाश्रो, तेओए करीने शहेरने शोजायुक्त करो. वली ते नगर केतुं ? तो के नाना प्रकारनी रंगबेरंगी जे ध्वजाओ (कदेतां जेनी अंदर सिंह आदिकनां चित्रामणोए करीने सहित एवां मोटा लुगमांओ लटकी रह्यां बे एवी ध्वजाओ ) तथा पताका कहेतां नानी ध्वजाओ, तेयोए करीने शोजायुक्त करो. विली ते नगर केवुं ? तो के बाण यादिकथी भूमि पर लेपनवालुं तथा चाक यादिकथी जिंतो | पर करेली वे सफेदाइ ज्यां एवं करीने पूजना कर्या सरखुं करो ? वली ते नगर केवुं ? तो के गोशीर्ष चंदन तथा रसयुक्त एवं जे रक्तचंदन, तथा दर्दर एटले पर्वतमा उत्पन्न थयेलुं जे चंदन, ते ए करीने जिंत यादिक पर दीघेला ने पांच आंगलीजना हाथाओ ज्यां एवं ते नगर करो. वली ते नगर केवुं ? तो के घरनी अंदर चोककी ओ पर राखेल वे चंदनना कलशो ज्यां एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only सुवो० 11 ԱԵ www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy