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बोत
कल्प
॥३५॥
विना ज्वाला ते श्रग्निमां हती.) वली ते अग्नि केवो वे तो के ज्वालानुं जे ऊर्ध्व कहेतां चेना नागोमां प्रसरीने जे "ज्वलनक" कहेतां बलवं, (अहीं "ज्वलनक" शब्दने जे "क" प्रत्यय लागेलो है बे, ते "स्वार्थेक" एवीरीतना व्याकरणना सूत्रे करीने लागेलो .) (वली अहीं तृतीया विनक्तिना एक वचननो लोप थश्ने समास थयेलो बे.) ते बलवाए करीने कोश् को प्रदेशमां श्राकाशने पण, जाणे पकावतो होय नहीं ? एवो, अर्थात् ते अग्निनी शिखा श्राकाश प्रत्ये पहोंचवाश्री, जाणे तेने : (आकाशने ) पण पकाववानीज तैयारी करतो होय नहीं ? एवो. (एवी रीतनो कविए उत्प्रेदाअलंकार मेट्यो.) वली ते अग्नि केवो तो के अतिशय एवो जे वेग, तेणे करीने चंचलपणाने प्राप्त थए-12 लो एवो अग्नि त्रिशला कत्रियाणीए चौदमा स्वप्नमां जोयो. एवी रीतनां शुज कहेतां कल्याणना13 हेतुरूप, तथा उमया एटले कीर्तिए करीने पण सहित एवां, तथा प्रियदर्शन कहेतां फक्त जोवा मात्र-18 थीज प्रीतिने उत्पन्न करनारां एवां, तथा उत्तम ने खरूप जेनुं एवां ते स्वप्नोने निशानी अंदर जोश्ने, अरविंद कहेतां कमलना सरखां ने लोचन कहेतां श्रांखोजेनी एवी तथा हर्षे करीने पुलकित कहेता है रोमांच युक्त थएबुं ने शरीरजेणीनुं एवी ते त्रिशला क्षत्रियाणीप्रतिबुझा कहेतां जागी उठी. हवे अहीं। प्रसंग होवाथी उपर कहेलां स्वप्नोने गर्नकालना समय वखते सघला जिनेश्वरोनी माता पण जुए ।
बे, एवं देखामता थका गाथा कहे . हैं एए चउदस सुमिणे, सवा पासे तित्थयरमाया ॥ रयणि वक्कमई, कुछिसि महायसो अरिहा ॥१॥ PI अर्थ-जे रात्रिए महायशवाला एवा अरिहंत प्रजु मातानी कुक्षिमा श्रावे , ते रात्रिए
सघला जिनेश्वर प्रजुनी सघली माता उपर कहेलां चौद स्वप्नांजे जुए . | पनी उपर वर्णवेलां चौद महास्वप्नोने जोस्ने जागी उठी उती हर्ष पामेली, संतोष पामेली, हर्षथी पूर्ण है हृदयवाली, मेघधाराथी सिंचन थएला कदंबपुष्पनी पेठे शरीरनां निरूप कूवाने विषे उल्हास पाम्यां ,
ले रुवामां जेनां एवी त्रिशला दत्रियाणी स्वप्नोनुं स्मरण करे , अने स्मरण करीने शय्यामांथी उठे ,
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