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| शकता हता. नहीं उपामी शकाय एवा कंथु आउने जोड्ने घणा साधु साध्वीउए ते वखते जातपाणीनां पञ्चरका कर्यां एटले अनशन कर्यु, ए अर्थ जाणवो. ते जोइ कोइ शिष्ये गुरुने पूब्धुं के हे जगवंत ! श्रा जातपाणीनां पच्चरकाण करवानुं शुं कारण बे ? त्यारे गुरुए कयुं के आजश्री मांडीने संयम पालतुं बहु पुष्कर थशे, केमके पृथ्वी जीवाकुल थशे, संयमने लायक क्षेत्र मली शकशे नहीं तथा पाखंडीउनो जमाव थशे.
कालनेविषे नेते समयने विषे श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने इंद्रभूति यदि चौद हजार साधुर्जनी उत्कृष्ट साधुसंपदा थइ, चंदनवाला आदि बत्रीश हजार साध्वीर्जनी उत्कृष्ट साध्वीसंपदा थइ, शंख, शतक यदि एक लाख उगणसाठ हजार श्रावकोनी उत्कष्ट श्रावकसंपदा थ तथा सुलसा रेवती आदि त्रण लाख अढार हजार भाविकानी उत्कृष्ट श्राविका संपदा थइ. ( वहीं जे | सुलसा श्राविका बे ते वत्रीश पुत्रनी माता एवी नागजार्या जाणवी अने रेवतीने प्रजुने औषध देनारी जाणवी. ) तथा सर्वज्ञ नहीं पण सर्वज्ञनी जेवा, जेउने शेयतावडे सर्व अक्षरसंयोग जपायेला बे एवा ने प्रज्ञापनामां केवली छाने श्रुतकेवलीनुं तुल्यपणुं कहेलुं होवाथी जिननी जेम सत्यने कनारा एवा त्रणसो चौदपूर्वीनी उत्कृष्ट संपदा थर, अतिशय एटले आम औषधी यदि लब्धि प्राप्त थयेला एवा तेरसो अवधिज्ञानीर्जुनी उत्कृष्ट संपदा थ, संपूर्ण एवां जे श्रेष्ठ ज्ञान ने दर्शन, तेने धारण करनारा सातसो केवलज्ञानीउनी उत्कृष्ट संपदा थ देवो नहीं बतां पण देवनी रुद्धिने विकुर्ववाने समर्थ एवा सातसो वैक्रियलब्धिवालानी उत्कृष्ट | संपदा थइ तथा अढीद्वीप ने वे समुद्रने विषे पर्याप्ता संज्ञी पंचेंद्रियांना मनोगत जावने जाणनारा पांचसो विपुलमतिर्जनी उत्कृष्ट संपदा थ. त्यां विपुलमति एने जाणवा के थाणे घमो चिंतव्यो, ते सोनानो बे, पाटलिपुत्रमां बनेलो बे, शरद् ऋतुमां करेलो बे, नील वर्णनो बे, इत्या| दि सर्व नेद सहित चारे बाजुए श्रढी घांगल वधारे एवा मनुष्य क्षेत्रमां रहेला संज्ञी पंचेंद्रियोना
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