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मनोगत पदार्थने जे जाणे ने अने तुमति तो चारे बाजुए संपूर्ण एवा मनुष्यदेत्रमा रहेला |
संझी पंचेंजियोना मनोगत घट श्रादि पदार्थ मात्रने सामान्यपणे जाणे जे. एवो ते बन्नेमां तफा-18 दूवत जाणवो. तथा देव, मनुष्य श्रने असुरोनी सनामां वादने विषे पराजव नहीं पामता एवा हूँ
चारसो वादीउनी उत्कृष्ट वादिसंपदा थ.श्रमण जगवंत श्री महावीरना सातसो शिष्य मुक्ति पाम्या । यावत् सर्व पुःखथी मुक्त थया तथा चौदसो साध्वी मुक्ति पामी. श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने गति एटले आगामी मनुष्यगतिमां मोदप्राप्तिरूप कल्याण जेउने एवा, स्थिति एटले देवनवमां पण प्राये वीतरागपणुं होवाश्री कल्याण जेऊने एवा तथा आगामी नवमां सिम थवाना 8 होवाथी जेजने कल्याण बे एवा आठसो अनुत्तर विमानमां उत्पन्न थनारा मुनिउंनी उत्कृष्ट संपदा था A हवे श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुनी बे प्रकारनी अंतकृदनूमि थर. अंतकृत् एटसे मोक्ष- 2
गामी, अने तेजनी नूमि एटले काल ते अंतकृदन्नूमि. तेना बे प्रकार ते देखाडे .ते या प्रमाणेःपहेली युगांतकृनूमि अने बीजी पर्यायांतकृलूमि. तेमां युग एटले अनुक्रममा वर्तनारा काल-18 मान विशेष, अने तेना साधर्म्य अादिकमां क्रममां वर्तनारा गुरु, शिष्य, प्रशिष्य आदिरूप जे है पुरुषो ते पण युगोज कदेवाय, श्रने तेथी परिमाण युक्त थयेली जे अंतकृमि ते युगांतकृदनूमि कहेवाय, अने पर्याय एटले प्रजुना केवलीपणाना कालने आश्रित थश्ने रहेली जे अंतकृमि ते । पर्यायांतकृदनूमि कहेवाय. तेमां पहेली त्रीजा पुरुषयुग जंबूखामी सुधीनी युगांतकृदनूमि जाणवी,13
झानप्राप्तिनी थपेक्षाए प्रजुने केवलज्ञान यया बाद चार वर्ष पनी कोश्क केवली मोके गया ते बीजी पर्यायांतकृघ्नमि जाणवी. प्रजुने केवलज्ञान उत्पन्न थया बाद चार वर्षे मोक्षमार्ग चालु है थियो हतो अने ते बेक जंबूस्वामी सुधी चालु रह्यो हतो ए नाव जाणवो. Bा ते कालने विषे श्रने ते समयने विषे श्रमण जगवान् श्री महावीर प्रनु त्रीश वर्ष गृहस्थावस्थामां रहीने, बार वर्षथी कांक अधिक वखत सुधी उद्मस्थपर्याय पालीने तथा त्रीश वर्षथी कांक अंगा
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