________________
सुवो
कल्प० प्रलंब, नित्यालोक, नित्योद्योत, स्वयंप्रज, अवजास, श्रेयस्कर, देमंकर, श्रानंकर,प्रनंकर, अरजा,
विरजा, अशोक, वीतशोक, वितत, विवस्त्र, विशाल, शाल, सुव्रत, श्रनिवृत्ति, एकजटी,हिजटी, 2 कर, करक, राजा, अर्गल, पुष्प, नाव तथा केतु ए अव्याशी ग्रहोनां नाम जाणवां. | हवे ज्यारथी क्रूर एवो बे हजार वर्षनी स्थितिवालो ते जस्मराशि नामनो ग्रह श्रमण जगवान् । श्री महावीर प्रजुना जन्मनक्षत्रमा संक्रांत थयो, त्यारथी तपस्वी एवा साधु अने साध्वीउना उत्तरोत्तर वृद्धि पामता पूजा एटले वंदनादिक तथा सत्कार एटले वस्त्रदान थादिनुं बहुमान नहीं थाय, अने तेथीज इंजे प्रजुने विनंति करी के हे स्वामिन् ! एक क्षणवार आपनुं आयुष्य वधारो,* के जेथी श्राप जीवता होवाथी श्रापना जन्मनक्षत्रमा संक्रांत थयेलो था जस्मराशि ग्रह आपना है
शासनने पीमा करी शके नहीं. त्यारे प्रजुए कह्यु के हे इंश ! एवं निश्चे पूर्वे कदापि थयुं नथी, है के क्षीण थयेवू श्रायुष्य जिनेसो पण वधारी शके, माटे तीर्थने थनारी बाधा तो अवश्य थशेज,
पण ज्याशी वर्षना श्रायुष्यवाला कड्किन् नामे पुष्ट राजाने ज्यारे तुं मारीश, श्रने ते वखते बे: हजार वर्ष पूर्ण थये ते मारा जन्मनदत्रयी जस्मग्रह पण तरी जशे, श्रने तारा स्थापेला एवा है कदिकपुत्र धर्मदत्तना राज्यथी मामीने साधु साध्वीडनो उत्तरोत्तर पूजासत्कार थवा मांझशे. सूत्र-2 है कारोए पण तेमज कहेलं ले के ज्यारे ते कर एवो बे हजार वर्षनी स्थितिवालो जस्मराशि नामनो महाग्रह जेटलामां जगवानना जन्मनक्षत्रथी उतरी जशे त्यारे तपस्वी एवा साधु अने :
साध्वीउनो उत्तरोत्तर पूजासत्कार थशे. . ४. हवे जे रात्रिए श्रमण जगवंत श्री महावीरस्वामी निर्वाण पाम्या यावत् सर्व पुःखश्री मुक्त है
या ते रात्रिए नहीं उपमी शके एवा कंथुया उत्पन्न थया अने ते स्थिर रह्या हता, तेथी है करीने ते अणचालता थका उद्मस्थ एवा साधु साध्वीने जल्दीथी नजरे नहीं देखाता हता,अने:
जे अस्थिर रह्या हता, तेथी करीने चालता इता तेने तुरत बद्मस्थ एवा साधु साध्वी जोश
॥
॥
JamEducation international
For Private & Personal Use Only