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________________ नाग जाणवो. अहीं कोई शंका करे के सर्वने साधवा योग्य मोक्षमार्ग एकज दे, तो तेमां पहेला, बेला भने बाकीना बावीश तीर्थंकरोना साधुरीमा श्राचारनो नेद केम ले ? तेना समाधानमा क-18 टू के ते नेद थवानुं कारण जीवविशेष बे, ते कहे बे-श्रीषन प्रजुना तीर्थना जीवो सरल हूँ स्वजावी अने जम बे, तेथी ते ने धर्मनो बोध थवो उर्लन , कारण के तेमनामां जडपणुं , श्रने श्रीवीर प्रजुना तीर्थना जीवो ( साधु ) वक्र अने जम बे, तेथी तेमने धर्मनुं पालन पुष्कर ने, अने अजितनाथ विगेरे बावीश तीर्थंकरोना साधुऊने धर्मनो बोध अने तेनुं पालवू था बंने 8 ६ पण सकर ( सहेलां), कारण के ते सरल अने प्राज्ञ स्वजावी बे, तेथी तेमना श्राचारना बे तूनेद थया ले. अहीं तेना दृष्टांतो बतावे - | पहेला तीर्थंकरना केटलाएक मुनि बहारनी नूमिश्री गुरु पासे श्राव्या, त्यारे गुरुए पूज्यु के,हे मुनि, तमो बाटली वधी वेला क्यां रोकाया ? मुनिए कडं, हे स्वामी, श्रमो एक नृत्य करता नटने जोवामां रोकाया हता, त्यारे गुरुए कह्यु के, नटना नृत्यने जोवं, ते साधुने कल्पे नहीं, त्यारे तेए ६ (बहु सारु) एम कही ते वात अंगीकार करी. वली एक वखते तेज साधु चिरकाले उपाश्रयमां श्राव्या, है त्यारे गुरुए पण पूर्वनी जेम पूज्युं, एटले ते बोल्या के, हे प्रजु, अमो एक नृत्य करती नटीने जोवाने । उन्ना हता, त्यारे गुरुमहाराज बोख्या, हे महानाग, ते वखते में तमने नट जोवानो निषेध को हतो. ज्यारे नटनो निषेध थयो तो पठी नटी जोवानो निषेध थश्चुक्योज. पनी तेए गुरुने विज्ञप्ति करी के, स्वामी, ए वात अमोए जाणी नहीं, हवेधी पुनः तेम नहीं करीए. श्रही ते प्रथम तीर्थकरना सा-हूँ| धु जमहोवाथी नटनो निषेध करवाथी नटीनो निषेध थश् चुक्यो एम ते जाणी शक्या नहीं अने है। है राजु खनावी होवाश्री तेमणे गुरुने सरल उत्तर श्रापी दीधो. एवी रीते आ प्रथम दृष्टांत जाणवो. का अहीं बीजो पण दृष्टांत , को कुंकण देशना वणिके वृद्धावस्थामां दीक्षा लीधी हती. एक वखते हैं। ते वणिक र्यापथिकी कायोत्सर्ग करी चिरकाल रोकाइ रह्यो. ज्यारे कायोत्सर्ग पारी आव्यो एटले SAGARLASCALCCASCADCADCALCOACACADCALCALEGAONKAN Jain Education international For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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