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________________ सुबोध कल्प० वडे करीने समस्तपणे रहे, ते अने वार्षिक पर्व बने पण कहेवाय जे. तेमां ते वार्षिक पर्व नाउपद मासनी शुक्ल पंचमीए अने कालकसूरि थया पनी लाउपद शुक्ल चतुर्थीएज थाय जे. समस्तपणाथी रहेवा-है। ॥३॥ रूप जे पर्युषणा कल्पनेते बे प्रकारनो. सालंबन श्रने निरालंबन. तेमां जे निरालंबन एटले कारण नाअनाववालो पर्युषणा कल्प ते जघन्य उत्कृष्ट एवा बेन्नेदवालो . तेमां जघन्य सांवत्सरिक प्रतिक्रम-15 रणथी मामीने कार्तिक चतुर्मासना प्रतिक्रमण सुधी सीत्तेर दिवसना परिमाणनो ,अने उत्कृष्ट प-18 Kषणाकाल चार मासनोबे. आबे प्रकारनो निरालंबन पर्युषणा काल स्थविरकल्पिटनोबेशने जि-त नकल्पिउने तो एक निरालंबन चातुर्मासिकज कल्प . अर्थात् कोश् कारणने लश्ने सालंबन थाय. हवे है जे क्षेत्रमा मास कल्प को होय, तेज देत्रमा चतुर्मास करवाथी अथवा चतुर्मास कर्या पठी मास ६ कल्प करवाथी मासनो कल्प थाय ते पण स्थविरकल्पि-नेज उचित ने अने पांच पांच दिवसोनो वधा-131 रोकरी गृहस्थोने जणाववान जणाववानो अधिकार विस्तारथीअहीं लख्यो नथी, कारण के संघनी आज्ञाथी ते विधि हाल उछेद थ गयो , तेमज ग्रंथविस्तारना जयथी अत्रे कहेलो नथी. जो ते विषे है विशेष जाणवू होय तो कल्पकिरणावली विगेरे टीकाठमां जो खेवू. एवी रीते सर्व ठेकाणे जाणी लेवु. P एवी रीते जेनुं स्वरूप वर्णव्यु ले एवो पर्युषणा कल्प प्रथम अने चरम तीर्थंकरोनां तीर्थमां नियत ने अने | वाकीना बावीश तीर्थंकरोनां तीर्थमां अनियत , कारण के तेउना साधुन तो दोषनो अनाव होय तो है एक क्षेत्रमा देश उणी पूर्व कोटि सुधी रहे , अने जो दोष जोवामां आवे तो एक मास कल्प सुधी पण रहेता नश्री. एवीरीते महाविदेह क्षेत्रमा पण वावीश तीर्थकरोनी जेम सर्व तीर्थंकरोना कल्पनी व्य- वस्था जाणी बेवी. एवीरीते दशमो कल्प जाणवो ॥१॥ उपर कहेला ए दश कल्पो श्रीझपन प्रजु तथा श्रीवर्धमान स्वामीनां तीर्थमां नियत अने बीजाबावीश तीर्थकरोनां तीर्थमां अचेलक, औद्देहै शिक, प्रतिक्रमण, राजपिंड, मास अने पर्युषणा ए उ कल्पो अनियत जे. बाकीना शय्यातर, चतुर्बत, पुरुषज्येष्ठ, कृतिकर्म ए चार कल्पो नियतज .एवी रीते ते दश कल्पोनो नियत अने अनियत वि ॥३॥ Jain Education international For Private & Personal Use Only O jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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