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________________ कल्प तेश्री बीजां बे वर्ष सुधी वस्त्रालंकारश्री नूषित एवाप्रनु पण प्रासुक थने एषणीय एवा श्राहारथी,181 सबो० सचित्त पाणीने पण नहीं पीता थका घरमा रह्या. ते वारथी मांमी प्रजुए अचित्त पाणीथी पण ॥६४॥ सर्व स्नान कर्यु नहीं, तथा त्यारथी जीवित पर्यंत ब्रह्मचर्य तेमणे पाव्युं; पण दीकोत्सवमां तो सचित्त पाणीथी प्रजुए स्नान कर्यु , केमके तेवो कप कहेतां श्राचार बे. एवी रीते प्रजुने वै-12 राग्ययुक्त जाणीने चौद खप्नोथी सूचित एवा चक्रवर्तिपणानी बुद्धिथी तेमनी सेवा करता एवा 8 श्रेणिक तथा चंप्रद्योत आदिक राजकुमारो पोतपोताने स्थानके गया. है एवी रीते प्रजुनी प्रतिज्ञा एक बाजुए समाप्त थर, श्रने बीजी तरफ लोकांतिक देवोए प्रजुने । प्रतिबोध कों, लोकांतिक एटले संसारने अंते रहेला देवो, अर्थात् एकावतारी देवो, केमके जो है तेम न मानीए तो ब्रह्मलोकमा रहेनारा एवा देवाने लोकांतिकपणुं घटी शकतं नश्री: ते देवो नव 51 प्रकारना बे. तेऊनां नाम सारखत, श्रादित्य, वह्नि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्यायाध, अग्नि अने 5 अरिष्ट. हवे प्रजु जो के स्वयंबुद्ध हता तेथी तेना उपदेशनी प्रजुने जरुर नथी, तोपण श्राम करवून ए तेमनो आचार . तेज कहे . जीत एटले अवश्य नावे करीने डे कल्प कहेता आचार जे नो ते जीतकदिपक कहेवाय; एवा ते देवो इष्ट, मनोहर आदिक गुणोवाली वाणीयी प्रजुने निरंतर अभिनंदता थका तथा स्तुति करता थका एम कहेवा लाग्या के हे नंदा ! कहेतां हे समृ-3 ऐकिवाला प्रनु ! तमे जय पामो, जय पामो. हे कल्याणवान् ! तमे जय पामो, जय पामो. हे उत्तम है क्षत्रिय! तमे जय पामो, जय पामो. हे जगवान् ! हे लोकना नाथ! तमे प्रतिबोध पामो, अने संघला जगतना जीवोने हितकारी एवा धर्मतीर्थने प्रवर्त्तावो, केमके ते तीर्थ सर्व लोकने विपे सर्व । ||जीवोने हितकारी, सुखकारी थने मोक्षने थापनाकं थशे,एम कही ते जय जय शब्द करवा लाग्या. ॥६॥ हवे श्रमण जगवंत श्री महावीर प्रजुने तो मनुष्यने उचित एवो जे विवाहादिक गृहस्थधर्म तेथी। पहेलांज, अनुपम तथा उपयोगवाला तथा केवलज्ञान उपजे त्यां सुधी स्थिर रहे एवां अवधिज्ञान।।। Jain Educat For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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