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उपकरण थादिक ग्रहण करवामां तथा नाममात्रा कहेतां वस्त्र प्रमुख उपकरणनी जातने अथवा नांग कहेतां वस्त्र आदि तेमज माटीनां वासणने अने मात्र कहेतां पात्रां विगेरेने मूकवामां पण समितियुक्त थया, अर्थात् तेमने बरोबर जोश्प्रमार्जीने उपाडवा तथा मूकवा लाग्या. तथा पारिष्ठाप-टू निकासमिति एटले विष्ठा, मूत्र, थुक, श्लेष्म, देहनो मेल इत्यादिक नाखवा करवामां पण सावधान है रथया, अर्थात् तेमने शुरू जगो पर नाखवा लाग्या.थहीं बेसी बे समिति जो के प्रजुने नांड तथा
श्लेष्म श्रादि नहीं होवाश्री संजवतीज नथी, तोपण तेऊनां नामना अखंमितपणा वास्ते एम कडं .18 ४वली एवी रीते मन, वचन अने कायानी उत्तम प्रवृत्तिवाला थया, तथा अशुन परिणामथी पाल
फरनारा होवाथी मन, वचन अने कायानी गुप्तिवाला थया अने तेथी गुप्त तथा गुप्त इंजियोवाला, तथा वसती श्रादि नव वाडोथी शोजता ब्रह्मचर्यने श्राचरे ने माटे गुप्त ब्रह्मचारी थया, तथा क्रोधरहित । मानरहित, मायारहित अने लोजरहित तथा अंतर्वृत्तिथी शांत, बहिर्वत्तिथी प्रशांत अने बंने वृत्तिथी उपशांत तथा सर्व प्रकारना संतापथी रहित थया, तथा हिंसा आदिक श्राश्रवारनी विरतिथी पाप-18
कर्मनां बंधनोथी रहित थया, तथा ममताए करीने रहित थया, तथा अव्य आदिकथी पण रहित र हथया, तथा निन्नग्रंथ एटले हिरण्य (सुवर्ण) आदिकनी ग्रंथिथी रहित थया, तथा अव्य जावरूप,
मलना निर्गमनथी निरुपलेप थया, तेमांव्य मल एटले शरीरथी उत्पन्न थतो मल तथा नाव मल 2 एटले कर्मथी उत्पन्न थतो मल,ते बन्नेथी रहित थया. (अहीं निरुपलेपपणुं दृष्टांते करीने दृढ करे . कां-13 सानुं पात्र जेम पाणीथी मुक्त होय ने तेम स्नेहथी मुक्त अर्थात् जेम कांसा, पात्र पाणीथी अपातुं नथी, तेम नगवान् पण स्नेहथी लेपाता नथी ए अर्थ जाणवो).तथा शंखनी पेठे राग श्रादिकने विषे नहीं रंगा
वाथी निरंजन थया,तथा जीवनी पेठे सर्व जगोए स्खलनारहित गमन करनारा, तथा श्राकाशनी पेठे * कोश्ना पण आधारनी अपेक्षा नहीं करनारा होवाथी निरालंबन, तथा वायुनी पेठे एकज जगोए नहीं
रहेनारा होवाथी अप्रतिबझ, तथा शरद् ऋतुना पाणीनी पेठे काबुष्ये करीने अकलंकित होवाथी शुरु
MARCHANAURURASKUMARIES
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