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________________ सवोन कपन करीने समस्त एवो जेथा जीवलोक, तेने पूरतुं, अर्थात् दुंदुनिना नादश्री समस्त जगतने व्याप्त करतुं । सुवा ए. वली ते विमान केवु दे तो के कालागुरु एटले कृष्णागुरु, प्रवरकुन्पुरुष्क (कोश् सुगंधवाऱ्याव्यवि३४॥ शेष) तथा तुरुष्क इत्यादि, के जेनां नामो अगाडी आवी गएलां ने तेउनो, श्रने बीजां पण सुगं-3 दधीनां अंगजूतव्यो, तथा दशांग आदिक धूपोनो बलातो, थने तेथी मघमघायमान थइ रहेलो, श्रने वली बाजुबाजु फेलावो पामतो जे गंध, तेणे करीने अनिराम कहेता मनोहर थएबुं एवं. वली है ते विमान के डे तो के ज्यां नित्य प्रकाश रहे बे एवं. वली ते विमान केवु ने तो के जे उज्ज्वल डे अने २ तेथी करीने जेनी कांति उज्ज्वल बे एवं. वली ते विमान केवंतो के सरवर कहेतां उत्तम उत्तम जा-13 तिना जे देवो, तेए करीने सुशोनित एटले जरपूर थएवं, पण खाली नहीं रहेढुंए. वली ते विमान है केबु बे तो के शातावेदनीय नामनुंजे कर्म, तेनो डे उपलोग जेनी अंदर एवं. वली ते विमान केवु दे तो है के विमानवरपुंमरीक कहेता बीजां सघलां विमानोमा पुमरीकनी पेठे अति उत्तम एवं. एवी रीतना विमानने त्रिशला दत्रियाणीए बारमा स्वप्ननी अंदर जोयु. 21 त्यार पड़ी तेरमा स्वप्नमां तेणीए रत्ननिकरराशि कहेतां रत्नोना समूहनो ढगलो जोयो. ते रत्ननो 6 हूँ ढगलो केवो ने तो के पुलक जातिनां रत्नो, वज्र कहेतां हीरानी जातिनां रत्नो, इंजनील कहेतां लीलमनी जातिनां रत्नो, सस्यक जातिनां रत्नो, ककेयण कहेतां कर्केतन जातिनां रत्नो, लोहियरुख कहेतां लोहिताद जातिनां रत्नो, मरगय कहेतां मरकत जातिनां रत्नो, मसारगल जातिनां रत्नो, प्र वाल जातिनां रत्नो, स्फटिक जातिनां रत्नो, सौगंधिक जातिनां रत्नो, हंसगर्न जातिनां रत्नो, अंजण ६ कहेतां अंजन जातिनां रत्नो तथा चंद्रकांतमणिनी जातिनां रत्नो इत्यादि अनेक जातिनां रत्नोए करीने, महीतल कहेतां पृथ्वीतल,ते पर रह्यो उतां पण गगनमंमल कहेतां श्राकाशना मंडलना अंत नागने पण ॥३॥ प्रनाए करीने युक्त करतो एवो. अर्थात् लोकमां प्रसिद्ध एवं जे श्राकाश, तेना शिखरने पण पोतानी है कांतिथी शोलावतो एवो. वली ते रत्नोनो ढगलो केवो ने तो के तुंग कहेतां चंचो एवो. ते केटलो Jain Education a l For Private &Personal use Only A mainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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