SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जेवो, वली ते सूर्य केवो तो के पारापत कहेतां जे पारेवां (कबुतर) तेना पग अने श्रांखो जेवो, वली ते सूर्य केवो तो के परभृत कहेतां जे कोयल, तेणे क्रोध थादिकथी लाल करेली जे अांखो, ते आंखोना जेवो, वली ते सूर्य केवो तो के जपापुष्प कहेतां जासूद नामनी जातिनां जे पुष्पो, तेन-14 नो जे राशि कहेता ढगलो, तेना जेवो, वली ते सूर्य केवो तो के प्रसिद्ध एवो जे हिंगलो तेनो जे Pढगलो, तेना जेवो. उपर जे सघली लाल रंगनी वस्तु कही, तेनाथी पण अधिक शोजतो एवो. तेनाथी पण अधिक शोचतो, एम शा माटे कह्यो ? एम जो कोश् शंका करे तो तेने माटे खुलासो एवो के, रताशमां तो तेना सरखो, पण कांतिए करीने तो तेनाथी पण थधिक सूर्य शोने बे, एम वृक्ष श्राचायोंनो मत जे. अथवा लाल रंगमां अशोकथी मामीने ठेक हिंगलाना ढगला सुधीनां जे विशेषणो, तेनो शोजतो एवो जे अतिरेक कहेतां प्रकर्ष, तेना जेवो सूर्य एवो अर्थ पण करवो. वली ते सूर्य केवो । तो के कमलोना जे श्राकरो कहेता उत्पत्तिनां स्थानको, अर्थात् पद्मनी उत्पत्ति थवानांजे तलावो, तेने विषे रहेला जे कमलोनां वनो, तेउने विकखर करनारो, एवो, वली ते सूर्य केवो तो के हजार ने किरणो 3 जेनां एवो, वली ते सूर्य केवो , तो के दिनकर कहेतां दिवसने उत्पन्न करवामां समर्थ एवो, वली ते है सूर्य केवो तोके तेजे करीने देदीप्यमान एवो, वली ते सूर्य केवो तो के तेनां (सूर्यनां) किरणोना जे अनिघात, तेणे करीने अपराधी एटले पुश्मनरूप एवो जे अंधकार, तेनो नाश होते उते, नवो एवो जे तेनो लाल रंगनो ताप, ते जाणे के कुंकुमज होय नहीं? तेनाथी तमाम मनुष्यलोक व्याप्त होते बते, श्र- र्थात् जेम कुंकुमे करीने कंश्क वस्तुने पिंजरी कराय , तेस ते सूर्यनां तेजे करीने पण समस्त मनुष्यलोक हैपण पिंजरा रंगनो (कंशक रातो अने कंश्क पीला रंगनो) कराते उते, ते सिद्धार्थ राजा शयनीय कहेतां से पोतानी शय्यामांथी उठतोहवो. ते शय्यामांधी उठीने ते पादपीठ परथी (पलंग उपरथी नीचे उत-2 करवामादे मुकेली सीमी उपरथी) नीचे उतर्यो. नीचे उतरीने ज्यां अट्टनशाला कहेतां कसरतशाला हती, ते तरफ चाख्यो. ते तरफ चालीने ते तेनी अंदर दाखल थयो. त्यांदाखल थश्ने अनेक प्रकारनां 8 Jain Education M a l For Private & Personal Use Only ainy ong
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy