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________________ कल्प० ॥ ३५ ॥ जे कसरतने लायकनां साधनो, (मुल या दिक) ते तेणे लीधां तथा तेथी वल्गन, व्यामर्दन तथा मल्लयुद्ध श्रादिक तेणे कर्यां. वल्गन एटले कुदका मारवा विगेरे, व्यामर्दन एटले परस्पर हाथ व्यादिक अंगोने मोमवा ते, तथा मल्लयुद्ध तो लोकोमां प्रसिद्ध बे. एसघली क्रिया करीने, श्रांत थलो ए|टले सामान्य प्रकारे श्रमने प्राप्त थयो थको, तथा परिश्रांत एटले सर्व अंग प्रत्ये श्रमने प्राप्त थयो थको, | मर्दन करावा लाग्यो. ते मर्दन केवा प्रकारनुं ? तेनुं वर्णन हवे करे बे. शतपाकतैल कहेतां सो वखत नवी नवी औषधिजेना रसोए करीने पकावेलुं, अथवा जेने पकाववामां एक सो सोनामोहोरो लागे एवं, | श्रने एवीज रीते सहस्रपाकतैल कहेतां एक हजार औषधिना रसथी पकावेलुं, अथवा जेने पकावतां | एक हजार सोनामोहोरो लागे एवं. एवी रीतनां श्रुत्यंत सुगंधी उए करीने युक्त घएलां जे तैल यादिको, (यादि शब्दथी कपूरनां पाणी श्रादिकनुं पण ग्रहण कर. ) तेर्जए करीने तेणे मर्दन कराव्युं. वे ते तैलादिको केवां तेनुं वर्णन करे बे. प्रीणनीय कहेतां रस, रुधिर एटले लोही इत्यादि शरीरनी - दर रहेली धातुउने समता करनारां, वली ते तैलादिक केवां तो के दीपनीय कदेतां जठराग्निने प्रदीप्त करनारां, वली ते तैलादिक केवां तो के मदनीय कहेतां कामनी वृद्धि करनारां, वली ते तैलादिक केवां तो के बृंहणीय कहेतां मांसने पुष्टि करनारां, वली ते केवां तो के दर्पणीय कक्षेतां बलने करवावालां, वली ते केवां तो के सघलां इंडिय श्रने अंगोने प्रह्लादनीय कहेतां ध्यानंद उपजावनाएं, एवी रीतनां तैल श्रादिकथी तेणे माणसो पासे पोताना अंगनुं मर्दन कराव्यं, अने तेथी तेनो थाक पण उतरी गयो. हवे ते मर्दन करनारा माणसो केवा तो के निपुण कहेतां सघला प्रकारना उपायोमां विचक्षण एवा. वली ते | माणसो केवा तो के संपूर्ण वे, हाथ अने पगो जेउना, अर्थात् हाथ पगमां कंपू पण खोमखापण विनाना. | वली ते माणसो केवा तो के जेउना हायनां तलीयां पण अत्यंत सुकुमाल बे एवा. ( अहीं किरणावली | नामनी टीका करनार श्री धर्मसागर उपाध्याये तथा दीपिका नामनी टीका करनारे पण " पाणिपा "दस्य " ने बदले " पाणिपादानां " एवो प्रयोग लख्यो बे, ते विजारवा जेवो बे; अर्थात् ते व्याकरणना For Private & Personal Use Only Jain Education International सुबो० ॥ ३५ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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