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कल्प
॥१४॥
रीने चितामा स्थापन कयु अने वीजा देवोए गणधरो श्रने मुनिउँनां शरीरोने चितामा स्थापन , कां. त्यारपली इंजना हुकमयी श्रानंदरहित तथा उत्साहरहित एवा अग्निकुमारोए चितामां| अग्नि प्रदीप्त कर्यो, वायुकुमारोए वायु विकुव्यों अने बाकीना देवोए ते।चताउँमां कालागुरु, चंदन||
आदि उत्तम काष्ठो नाख्यां तथा मध अने घीना घमाथी ते चिताउने सिंचन करी अने ज्यारे है तेजेनां शरीरनां अस्थि मात्र बाकी रह्यां त्यारे इंजना हुकमथी मेघकुमार देवोए ते चिताउने (जल
वडे ) गरी. पनी सौधर्म इसे प्रजुनी उपरनी जमणी दाढा ग्रहण करी, ईशाने उपरनी माबी दाढा ग्रहण करी. चमरें नीचेनी जमणी दाढा अने बलींजे नीचेनी माबी दाढा ग्रहण करीअने बीजा देवोए केटलाके जिननक्तिथी, केटलाके पोतानो आचार समजीने श्रने केटलाके धर्म समजीने ४ वाकी रहेलां अंगोपांगनां अस्थि ग्रहण काँ. पनी इंजे एक जिनेश्वर नगवाननो,एक गणधरोनो , साधने एक बाकीना मुनिर्जनो एम प्रण रत्नमय स्तूप कराव्या अने तेम करीने शक श्रादि देवो*
नंदीश्वर श्रादि छीपेज अहा महोत्सव करीने पोतपोतानां विमानमा जश्पोतपोतानी सनामां
वज्रमय माबलामां जिनदाढाने मूकीने गंध, माव्य श्रादि वडे तेनी पूजा करवा लाग्या. 8 है सर्व फुःखथी मुक्त थयेला अर्हन कौशलिक श्री ऋषनदेव प्रजुना मुक्त थया पड़ी त्रण वर्ष अने सामा
आठ मास व्यतीत थया. त्यारेबेंतालीश हजार वर्ष तथा त्रण वर्ष भने सामा आठ मास अधिक एटलो काल जंबो एवी एक सागरोपम कोटाकोटी गश्ते समये श्रमण जगवान् श्री महावीर स्वामी निर्वाण पाम्या. त्यारपछी नवसो वर्ष गयां अने दशमा सेंकमार्नु आ एंशीमुं वर्ष जाय . (ते समये पुस्तकवाचनाथ). या प्रमाणे श्रीषनदेव प्रजुन चरित्र जाणq. | एवी रीते जगद्गुरु नहारक श्री हीरविजय सूरीश्वरना शिष्यरत्न महोपाध्याय श्रीकीतिविजय ॥१९॥ गणिना शिष्योपाध्याय श्री विनयविजय गणिए रचेली श्रीकल्पसत्र सबोधिका नामनी टीकामा सात, व्याख्यान समाप्त थयुं तेमज जिनचरितरूप प्रथम वाच्य व्याख्यान पूर्ण थयु. श्रीरस्तु.
१ देरी अने पगलां.
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