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________________ ***** पर्वतना शिखर उपर दश हजार साधुनी साथे जलरहित चौदलत एटले ब उपवासनो तप करीने है। थनिजित् नामना नक्षत्रने विषे चंयोग प्राप्त थये बते सवारने वखते पल्यंकासने बेग थका निर्वाण पाम्या यावत् सर्व दुःखथी मुक्त थया. | जे वखते श्री षजदेव मोद पाम्या ते वखते जेनुं श्रासन चलित थयुं बे एवो इस अवधिज्ञानथी प्रजुना निर्वाणने जाणीने ज्यां प्रजुनुं शरीर हतुं त्यां अग्रमहिषी, लोकपाल श्रादि सर्व परिवार सहित श्रावीने त्रण प्रदक्षिणा दक्ष आनंदरहित अने श्रश्रुथी जरा गयेलां नेत्रवालो ४थयो बतो नहीं अति नजदीक तेम नहीं अति पूर एम हाथ जोमीने पर्युपासना करवा लाग्यो है अर्थात् उन्नो रह्यो. एवी रीते जेनां आसन कम्पित थयां ने अने जेए प्रजुनुं निर्वाण जाएयु | एवा ईशाने श्रादि सर्वे इंस्रो पोतपोताना परिवार सहित अष्टापद पर्वत उपर ज्यां प्रजनुं शरीर हतुं त्यां श्रावीने विधिपूर्वक पर्युपासना करता उन्ना रह्या. त्यारपडी इंजे नवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक देवो पासे नंदनवनश्री गोशीर्ष चंदननां काष्ठ मंगावीने त्रण चिता करावी.13 18 एक तीर्थंकरना शरीर माटे, एक गणधरोनां शरीर माटे अने एक बाकीना मुनिनां शरीर माटे. पनी आजियोगिक देवो पासे दीर समुश्री पाणी मंगाव्यु. त्यारपती से कीर सर्मुना पाणीथी तीर्थकरना शरीरने न्हवडाव्यु, ताजा गोशीर्षचंदननुं विलेपन कर्यु, हंस लक्षणवायूँ' वस्त्र उढाड्यु अने सर्व अलंकारोथी विनूषित कयु. एवी रीते बीजा देवोए गणधरो अने मुनिनां शरीरोने न्हवमाव्यां, चंदननुं विलेपन कयं श्रने सर्व अलंकारथी विनूषित करू. पठी इंडे विचित्र प्रकारनां 3 चित्रोथी शोजिती त्रण शिबिका करावी श्रने श्रानंदरहित, दीन मनवाला अने अश्रुश्री मिश्रित थयेला नेत्रवाला इंसे तीर्थंकरना शरीरने शिविकामां पधराव्युं अने बीजा देवोए गणधरो अने, मुनिनां शरीरोने शिबिकामां पधराव्या. त्यारपठी इंजे तीर्थकरना शरीरने शिविकामांथी उता १ हंसना चित्रवाटुं. ******ASASARAN JainEducation international For Private &Personal use Only winerjainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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