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________________ कल्प० ॥ १२ ॥ जवमां त्रीजा कल्पनी अंदर मध्यस्थितिवालो देवता थयो. त्यांथी चवी बारमे जवे श्वेतांबी नगरीमां चुम्मालीश लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो नारद्वाज नामे ब्राह्मण थयो. ते त्रिदंडी थइ मृत्यु पामी तेरमे जवे | माहेंद्र कल्पमां मध्य स्थिति देवता थयो. त्यांथी चवीने केटलोक काल संसारमां जमी चौदमे जवे | राजगृह नगरमां चोत्रीश लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो स्थावर नामे ब्राह्मण थयो. ते त्रिदंडी थइ मृत्यु पामी पंदरमा जवमां ब्रह्मलोकमां मध्यम स्थितिवालो देव थयो. सोलमा जवमां कोटिवर्षना श्रायुष्यवालो विश्वभूति नामे युवराज पुत्र थयो. ते संभूति मुनि पासे चारित्र लइ एक हजार वर्ष पुस्तप तपस्या करवा लाग्यो. एक समये मासोपवासना पारणा माटे मथुरापुरी मां गोचरी सारु गयो. त्यां कोइ एक गाये तपस्याथी कृश थवाने सीधे तेने पृथ्वी उपर पामी नाख्यो. तेने पडेलो जोइ त्यां परणवाने श्रावेला विशाखनंदी नामना तेना काकाना पुत्रे तेनुं उपहास्य कर्यु, तेथी कोप पामी तेणे ते गायने वे शींगडे पकड़ी थाकाशमां जमावी ने एवं नियाएं कर्यु के, में करेला उग्र तपथी हुं जवांतरे घणो पराक्रमी थाउं. त्यांथी | मृत्यु पामी सत्तरमे जवे महाशुक्र विमाने उत्कृष्ट स्थितिवालो देवता थयो. त्यांथी चवीने अढारमे जवे पोतनपुरनो राजा प्रजापति के जे पोतानी पुत्री उपर कामी थयो हतो, तेनी पत्नीरूप मृगावती पुत्रीनी कुक्षिमां चोराशी लाख वर्षना श्रायुष्यवालो त्रिपृष्ट नामे वासुदेव थयो. त्यां बाल्यवयमां पण | प्रतिवासुदेवना शालि क्षेत्रमां विघ्न करनारा सिंहने शस्त्र बोकी विदारण कर्यो. अनुक्रमे वासुदेवपणाने प्राप्त थयो. एक वखते ते वासुदेवे पोताना शय्यापालकने श्राज्ञा करी के, ज्यारे श्रमे सुर जइए त्यारे तुं श्रा गायकोने गायन करता अटकावजे तेवी श्राज्ञा कर्या ठतां गीतरसमां आसक्त थयेला | ते शय्यापालके वासुदेव सुता दता ने तेने वार्या नहीं. ते पछी क्षणवारे जाग्रत थइ वासुदेवे । कयुं, "अरे पापी, मारी आज्ञा पालवाथी पण तने गीतश्रवण प्रिय लाग्युं, तो ले, तेनुं फल जोगव.” एम कही तेना बने कानमां तपेलुं सीसुं रेड्यं. या कृत्यथ। तेणे पोताना कानमां खीला नखाववानुं कर्म उपार्जन कर्यु. एवी रीते अनेक दुष्कर्म करी त्यांथी मृत्यु पामी जंगणीशमे नवे सातमी ना For Private & Personal Use Only Jain Education International सुबो० ॥ २२ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
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