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नथी ? ते सांजली मरीचिए विचायु के, श्रा मारो योग्य शिष्य थशे. एवं विचारीने कछु के, कपिल, जैन मार्गमां पण धर्म बेथने मारा मार्गमा पण बे. ते सांजली कपिले तेनी पासे दीक्षा लीधी. मरीचिए श्रावो नत्मत्र वचनथी कोटाकोटीसागरोपम संसार उपार्जन कर्यो. जे अहीं किरणावलीकार कहे बे के, कविला इत्थं पिश्यंपिए वचन उत्सूत्र मिश्रित जे. तेवा उत्सूत्रनाषीने नियतपणे अनंत संसार है बे एम कही पोताना मतनुं स्थापन करवानी रसिकता ने एम जाणवू. तेनो मत था प्रमाणे के उसूत्र कहेनाराने नियतपणेज अनंत संसार थाय . जो था मरीचिनुं वचन उत्सूत्र कहीए तो एने पण अनंत संसार प्राप्त थवानो प्रसंग श्रावे, पण तेने अनंत संसार थयो नथी, तेथी ते उत्सूत्रमि-13 श्रित एवो तेमनो मत युक्त नथी, कारण के 'उत्सूत्र कहेनाराने अनंत संसार में एवो नियम नथी. -श्रीनगवती सूत्र विगेरे घणा ग्रंथोने अनुसारे उत्सूत्र कहेनाराजमां शिरोमणिरूप जमालिनिहवने पण ,
परिमित संसार जोवामां आव्यो बे. वली उत्सूत्र मिश्र कहेवाथी पण श्रा मरीचिना वचननु उत्सूत्र | पणुं चास्युं जतुं नथी. विषमिश्रित अन्न विषज गणाय बे. हवे ए विषे वधारे कहेवू योग्य नथी,ए-15 टझुंज बस डे. ते कर्मनी थालोचना कर्या वगर चोराशी लाख पूर्व- श्रायुष्य पूर्ण करी मृत्युपामी चोथे । नवे ब्रह्मलोकमां दश सागरोपमनी स्थितिवालो देवता थयो. त्यांधी चवीने पांचमेजवे कोखाक नामना ग्राममां एंशी लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो ब्राह्मण थयो.ते अतिविषयासक्त अने शूकवगरनो थयो. बेवटे त्रिदमी थबहुकाल सुधी संसारमा जम्यो. श्रा तेना नव स्थूल जवनी अंदर गणाता नथी. त्यांथी| बहे नवे स्थूणा नगरीमां बोतेर लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो पुष्प नामे ब्राह्मण थयो. ते त्रिदंमी था
मृत्यु पाम्यो. सातमे नवे सौधर्म कल्पमा मध्य स्थिति देवता थयो. त्यांची चवीने थाम्मे नवे चैत्य है लग्राममां साठ लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो अग्निद्योत नामे ब्राह्मण थयो. ते त्रिदंडी थर मृत्यु पाम्यो.
नवमा नवमां ईशान देवलोके मध्य स्थितिवालो देवता थयो, त्यांची चवी दशमे नवे मंदर ग्रामे उपन्न लाख पूर्वना श्रायुष्यवालो श्रमिनूति नामे ब्राह्मण थयो. अंते त्रिदंमी थश् मृत्यु पाम्यो. अगीयारमा
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