SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रीने जाणे मंगन युक्त थलुं होय नहीं ? अर्थात् तेमां रहेलां कमलिनीनां पांदडांने जाणे के नील रत्नो| मय बे ने तेर्ज पर मुक्ताफल कहेतां मोतीउनुं अनुकरण करनारां पडेलां जे पाणी नां बिंडुर्ज, ते ए करीने कमलो अत्यंत शोना श्रापनारां देखाय बे. एवां पत्रोए करीने ते तलाव कृतचित्रं इव कहेतां करेलुंबे श्राश्चर्य जेणे, एवं होय नहीं ? तेम देखाय ते. वली ते पद्मसरोवर केतुं वे तो के हृदय कदेतां जे अंतःकरण, यने नयन कहेतां जे यांखो, तेने अत्यंत वल्लज कहेतां मनोहर लागे एवं तथा "पद्मसरोवर" बे नाम जेनुं एवं वली ते पद्मसरोवर केवुं बे तो के सरस्सु कहेतां तलावाने विषे पूज्य कहेतां पूजा करवाने लायक एवं अने तेथीज अभिराम कहेतां अत्यंत रमणीय लागे बे. एवी रीतना | पद्मसरोवरने त्रिशला क्षत्रियाणीए दशमा खप्नने विषे जोयुं. पठी अग्यारमे खने शरद नामनी जे तु, तेना चंद्रमा सरखं बे वदन कहेतां मुख जेनुं, एवी ते त्रिशला क्षत्रियाणीए क्षीरसमुद्रने जोयो. ते कीरसमुद्र के वो बे तो के चंद्र किरणराशि कदेतां चंद्रनां जे किरणो, तेर्जनो जे समूह, तेना सरखी जे श्री कदेतां शोजा, ते सरखी वे वक्षःस्थलनी शोजा जेनी एवो. दवे वक्षः शब्दनो अर्थ तो हृदय थाय बे, अने ते हृदय तो प्राणीजने होय बे, पण कंइ समुद्रने होतुं नथी; माटे वहीं हृदय शब्द व करीने मध्य जाग को वे अने तेश्री जेनो मध्यजाग घणो उज्ज्वल वे एम जाणवुं. वली ते की रसमुद्र केवो बे तो के चतुर्षु दिग्मार्गेषु कहेतां चारे दिशाउंना जे मार्गो, तेउने विषे प्रकर्षेण एटले अत्यंत वेग वडे करीने वर्धमान कहेतां वृद्धि पामतो बे, जलसंचय कहेतां पाणीनो समूह जेनो एवो. अर्थात् चारे दिशामां ते समुद्रमां अत्यंत उंको एवो जलनो प्रवाह बे, एवो जावार्थ जाणवो. वली ते क्षीरसमुद्र केवो बे तो के चपल ने अत्यंत चपल एवा, अत्यंत मोटा मोटा जे कल्लोलो कहेतां मोजांउ, तेर्जए करीने चलायनान यतुं, तथा वली पातुं एकबुं थइने जुडुं पकतुं, एवी रीतनुं वे, तोय कहे तां पाणी जेनुं एवो. वली ते क्षीरसमुद्र के वो बे तो के पटु एटले जरा पण मंदता विनानो एवो जे पवन, तेणे करीने यात कहेता दवाएला, थने तेथी करीनेज उपरा उपरी दोडवाने प्रवृत्त थएला, अने तेथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy