SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जेनुं मुख पण जोवालायक नथी एवो ते पुष्ट ,केमके ते तो पोतानी बेनने पण जोगवे बे.त्यारे ते निमि-18| त्तिए अत्यंत लजायुक्त थइएकांतमांबावीने प्रजुने विनंति करी के हे स्वामिन थाप तो विश्वप्रज्य बोअने सर्व जगोए पूजाशो, अने मारी तो अत्रेज श्राजीविका .त्यारे प्रजुए तेनी अप्रीति जाणीने 8 त्यांथी विहार कर्यो; अने श्वेतांबी प्रत्ये जतां थका लोकोए वार्या उतां पण कनकखल नामे तापसना श्राश्रममां चमकौशिकने प्रतिबोधवा माटे प्रनु त्यां गया. है। ते चमकौशिक आगला लवमां महा तपस्वी साधु हतो; पारणाने दिवसे गोचरी जतां थयेली | देमकीनी विराधनाने प्रायश्चित्तपूर्वक पमिकमवा माटे र्यापथिकी प्रतिक्रमण वखते, गोचरी प्रति-81 क्रमण वखते तथा संध्याकालना प्रतिक्रमण वखते एम त्रण वार को लघु शिष्ये तेने संजाली दीधाथी| क्रोधायमान थश्ते लघु शिष्यने मारवा माटे दोड्यो,पण वच्चे स्तंनमां श्रथमा मृत्यु पामी ज्योतिष्क । है देव थयो. त्यांची चवीने ते आश्रममां पांचसे तापसोनो चमकौशिक नामे अधिपति थयो. त्यां पण , पोताना आश्रमनां फलोने ग्रहण करता एवा राजकुमारोने जोश्ने गुस्से थयो थको तेमने मारवा तैयार थियो भने हाथमा कुहामी लइ दोमतां कूवामां पी गयो. त्यां एवी रीते क्रोधयुक्त मरण पामीने तेज 8 श्राश्रममा पूर्वजवना नामवालो दृष्टिविष सर्प थयो. ते सर्प प्रजुने प्रतिमामा रहेला जोश्ने क्रोधथी । बलतो थको सूर्य तरफ जोर जोक्ने दृष्टिज्वाला मूकवा लाग्यो भने मूकीने तेणे विचार्यु के श्रा है प्रजु पडता थका मने न दाबो एम धारीने ते दूर हव्यो, पण प्रजुने तो आगलनी पेठे निश्चल जोश्ने अत्यंत क्रोधातुर थश्ने तेणे प्रजुने मंख मार्या, तोपण प्रजुने अव्याकुल जोश्ने तथा प्रजुना रुधि-5 रने पण दीर सरखं जोश्ने तथा “बुज्क बुक चमकोसिश्रा” एम प्रजुना वचनने सांजलीने र इथयेनुं ले जातिस्मरणशान जेने एवो ते चमकौशिक सर्प प्रजुने त्रण प्रदक्षिणा दश्ने अहो ! करुणासागर है। है एवा प्रजुए मने उर्गतिरूपी कूवामांयी उझर्यो, इत्यादि प्रकारचें मनमा चितवन करीने अनशन है लइएक पखवामीया सुधी विलमां पोतानुं मुख राखोने रह्यो. त्यां घी आदिक वेचनारी स्त्रीए । AMACADEMORECASSACRECAMERRECTORRESCRI Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy