SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्प० ॥ ६७ ॥ वलज्ञान तेने मेलवो ने मोक्षरूपी परम पदने तमे प्राप्त था. केवी रीते ? तो के जिनेश्वर प्रजुए कहेला अकुटिल मार्ग वमे करीने. शुं करीने ? तो के परिषहोनी सेनाने हणीने तथा हे क्षत्रियने विषे वृषन समान ! तमे जय पामो, जय पामो तथा घणा दिवसो सुधी, घणां पखवामीयांर्ड सुधी तथा घणा महिनाउँ सुधी, तथा घणी एवी हेमंत यादिक बे मासना परि माणवाली रुतु सुधी, तथा घणी उमासी सुधी, तथा घणां वर्षो सुधी, उपसर्गोथी निर्भय थया थका, विजली, सिंह यादिकना जयोने कमाए करीने सहन करता थका तमे जय पामो. वली | तमारा धर्ममां विघ्नोनो अभाव थाओ. एम कही खजन लोको जय जय शब्दो करवा लाग्या. ते वार पडी भ्रमण जगवंत श्री महावीरस्वामी क्षत्रियकुंम नगरनी मध्यमां थश्ने ज्यां ज्ञातखंग नामे वन हतुं तथा ज्यां अशोक वृक्ष दतुं, त्यां श्राव्या. केवी रीते श्राव्या? तो के हजारो एवां नेत्रोनी पंक्ति थी जोवाता, तथा वारंवार जोवातुं वे सौंदर्य जेमनुं एवा; वली केवा ? तो के श्रेणिबंध थ येला लोकोनां मुखनी हजारो गमे पंक्तिथी वारंवार स्तुति कराता; वली केवा ? तो के हजारो गमे हृदयनी पंक्तिथी तमे जय पामो, जीवो, इत्यादि ध्याने करीने समृद्धिने पमामाता; वली केवा ? ' के हजारो गमे मनोरथोनी पंक्तिथी विशेष प्रकारे स्पर्श कराता, अर्थात् आपणे एमना | सेवक थइए तो सारं, एवी रीते लोकोथी चिंतवाता; वली केवा ? तो के कांति, रूप अने गुणोए) करीने प्रार्थना कराता, अर्थात् स्वामिपणाए करीने वांग कराता; वली केवा ? तो के श्रांगली - उनी हजारो पंक्तिथी देखामाता; वली केवा ? तो के जमणा हाथथी हजारो स्त्री पुरुषोना नम|स्काराने ग्रहण करता; वली केवा ? तो के जवनोनी हजारो गमे श्रेणिउने उल्लंघन करता; वली केवा ? तो के वीणा, तलताल, वादित्र, गीत, वादन विगेरेना शब्दोथी, तथा मधुराने मनोहर एवा जय जय शब्दना उद्घोषणथी मिश्रित थयेला एवा अति कोमल मनुष्योना शब्दे करीने सावधान यता तथा, समस्त बत्रादिक राज्य चिह्ननी कलिए करीने तथा, धानूषण यादिकनी सर्व प्र Jain Education International For Private & Personal Use Only सुबो० ॥ ६५ ॥ jainelibrary.org
SR No.005230
Book TitleSubodhika Kalpasutra Tika Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1915
Total Pages414
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy