________________
कल्प०
॥१२॥
अधिक मासनी उद्घोषणा थये ते कदि कणेरनां फूल तो फूले पण तने फूल घटे नहीं, केमके तेथी तुछ जातिनां वृक्षो तारी हांसी करशे. वली को 'अविडियंमि वीसा इारेसु सर्वीस - मासे' ए वचनबल वडे मास अधिक होय त्यारे वीश दिवसेज लोच श्रादि कृत्य युक्त पर्युषणा करे वे ते पण प्रयुक्त बे, कारण के 'विअंमि वीसा' ए वचन गृहिज्ञात ( पर्युषणा ) मात्रनी अपेक्षाए वे अन्यथा 'प्रासादमासिए पोसविंति एस उस्सग्गो, सेसकालं पतोसविताणं श्रववाउत्ति' एटले आषाढ मासमां पर्युषणा करवी ए उत्सर्ग वे छाने वाकीना कालमां पर्युषणा करवी ए अपवाद ठे. एवा श्री निशीथ चूर्णिना दशमा उद्देशाना वचनथी आषाढ पूर्णिमाएज लोच श्रादि कृत्य युक्त पर्युषणा करवी जोइए. (पण ते चतुर्मास रहेवानी अपेक्षानुं वचन बे, कृत्यविशिष्ट पर्युषणा करवा माटे नथी तेथीज तेम करवामां श्रावतुं नथी. ) या संबंधम वधारे कहेवाथी सर्यु.
कल्पनेविषे कली द्रव्य, क्षेत्र, काल ने जावरूप स्थापना था प्रमाणे बे. द्रव्य स्थापनातृण, मंगल, बार, मल्लर्क श्रादिनो परिजोग करवो ने सचित्त श्रादिनो त्याग करवो. तेमां | सचित्त द्रव्य एटले अति श्रद्धावाला राजा घने राजाना प्रधान सिवाय शिष्यने दीक्षा श्रपवी नहीं, चित्त द्रव्य एटले वस्त्र आदि ग्रहण करवां नहीं घने मिश्र द्रव्य एटले उपधि सहित | शिष्य ग्रहण करवो नहीं देत्रस्थापना - एक योजन ने एक गाउ ( पांच गाउ जनुं व्याववुं कल्पे ) छाने ग्लानने माटे वैद्य, औषध यादिना कारणे चार अथवा पांच योजन कल्पे. कालस्थापनाचार मास रहेवुं ते अने जावस्थापना - क्रोध श्रादिनो विवेक ( त्याग ) ने ईर्यासमिति आदिने विषे उपयोग. ८.
२ चोमासुं रहेला साधु अथवा साध्वीउने चारे दिशा ने विदिशामां एक योजन ने एक गाउनो ( एटले पांच गाउनो ) अवग्रह कल्पे. अवग्रह करीने 'अदालन्दमिव' कथं वे तेमां अथ १ कुंकी विगेरे. २ राजा के प्रधान दीक्षा लेवा ले तो तेने यापवी.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
सुबो
॥१२॥
www.jainelibrary.org