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कल्प
प्रजु नव महीना ने आठ दिवस गर्नमा रह्या, पार्श्वनाथ प्रनु नव महीना ने उ दिवस गर्नमा ।
रह्या, तथा महावीर प्रजु नव महीना ने सामा सात दिवस गर्नमा रह्या, एवी रीते श्री सोम॥५४॥
तिलक सूरीश्वरे करेल सप्ततिशत स्थानक नामे ग्रंथमां तेनुं यंत्र कहे बे. . 3 ते वखते सघला ग्रहो उच्च स्थानक प्रत्ये श्रावते बते, एटले मेषादि राशिमा रहेला सूर्यादिक उंचार
जाणवा, तेमां पण दशादिक अंशो सुधी परम नच्च जाणवा. तेउनु फल सुखी, जोगी, धनवान् , स्वामी, मंमलाधिप,राजा,चक्री एम अनुक्रमे उच्च ग्रहोगेंफल जाणवू.तेमांत्रण उंचा होय तो राजा थाय,पांच | जंचा होय तो अर्धचक्री थाय,ब जंचा होय तो चक्रवर्ती थाय तथा सात जंचा होय तो तीर्थकर थाय.18 ___एवी रीते उत्तम चंनो योग श्रावते बते, दिशा पण सौम्य कहेता रजनी वृष्टि श्रादिकथी। रहित होते ते, वली ते दिशार्ड केवी ? तो के अंधकारे करीने रहित होते बते, केमके प्रजुना जन्म वखते सर्व जगोए उद्योतज थर रहे डे; तथा दिग्दाह आदिकना अनावथी शुद्ध होते बते, तथा कागमा, घुवम, उर्गा श्रादिकनां पण जयकारक शुकन होते बते, तथा दक्षिणावर्त्तवालो अने श्र-8 नुकूल कहेतां सुगंधी अने शीतल, तथा सुखने देनारो, तथा मंद होवाथी पृथ्वीने स्पर्श करतो,
केमके प्रचंम वायु तो उपरना जागमां फेलाय ले एवी रीतनो वायु वाते उते, तथा जे वखते सपघला प्रकारनां जमीन पर धान्य जगेलां बे, एवो काल होते बते, तथा सुकाल होवाथी खुशी थ
येला अने वसंतोत्सवादिकथी क्रीमामां पडेला एवा देशना लोको होते बते, अपर रात्रिना स-3 मय वखते चंडनो उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र साथे योग श्रावते ते जरा पण बाधारहित थयेला ते
॥५४॥ त्रिशला दत्रियाणी थारोग्य कहेतां पीमारहित एवा पुत्रने जन्म आपतां हवा. 81 एवीरीते महोपाध्याय श्रीकीर्ति विजयगणिना शिष्योपाध्याय श्रीविनयविजयगणिए रचेली श्री
कल्पसूत्रनी सुबोधिका नामनी टोकाना गुजराती भाषांतरमा चोथो कण समाप्त थयो. श्रीरस्तु. है।
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